#वे जम दारुण वंशन अंजन।“ ब्रह्मा
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#परमेश्वर कबीर जी ने बताया कि “माँ अष्टंगी पिता निर��जन#वे जम दारुण वंशन अंजन।“ ब्रह्मा#विष्णु#महेश की माता दुर्गा और पिता ज्योति निरंजन
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#दुर्गाजीअर्धकुँवारी_है_तो_माता_क्योंकहतेहैं
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दुर्गा अर्धकुँवारी है तो माता क्यों कहते हैं?
दुर्गा (अष्टंगी) जी अर्धकुँवारी नहीं हैं बल्कि उनका पति ज्योति निरंजन (काल ब्रह्म) है। इस बारे में कबीर परमेश्वर ने कबीर सागर के अध्याय ज्ञानबोध के पृष्ठ 21-22 में बताया है कि
माँ अष्टंगी पिता निरंजन। वे जम दारुण वंशन अंजन।।
धर्मराय किन्हाँ भोग विलासा। माया को रही तब आसा।।
तीन पुत्र अष्टंगी जाये। ब्रह्मा विष्णु शिव नाम धराये।।
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Sadhna TV Satsang || 11-10-2024 || Episode: 3053 || Sant Rampal Ji Mahar...
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दुर्गा अर्धकुँवारी है तो माता क्यों कहते हैं?
दुर्गा (अष्टंगी) जी अर्धकुँवारी नहीं हैं बल्कि उनका पति ज्योति निरंजन (काल ब्रह्म) है। इस बारे में कबीर परमेश्वर ने कबीर सागर के अध्याय ज्ञानबोध के पृष्ठ 21-22 में बताया है कि
माँ अष्टंगी पिता निरंजन। वे जम दारुण वंशन अंजन।।
धर्मराय किन्हाँ भोग विलासा। माया को रही तब आसा।।
तीन पुत्र अष्टंगी जाये। ब्रह्मा विष्णु शिव नाम धराये।।
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दुर्गा (अष्टंगी) जी अर्धकुंवारी नहीं हैं बल्कि उनका पति ज्योति निरंजन (काल ब्रह्म) है।
इस बारे में कबीर परमेश्वर ने कबीर सागर के अध्याय ज्ञानबोध के पृष्ठ 21-22 में बताया है कि
माँ अष्टंगी पिता निरंजन । वे जम दारुण वंशन अंजन ।। धर्मराय किन्हाँ भोग विलासा । माया को रही तब आसा ।। तीन पुत्र अष्टंगी जाये। ब्रह्मा विष्णु शिव नाम धराये ।।
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#दुर्गाअर्धकुँवारी_है_तो_माता क्यों कहते हैं?
दुर्गा (अष्टंगी) जी अर्धकुँवारी नहीं उनका पति ज्योति निरंजन (काल ब्रह्म) है। कबीर सागर के अध् ज्ञानबोध के पृष्ठ 21-22 में बताया है
माँ अष्टंगी पिता निरंजन। वे जम दारुण वंशन अंजन।
तीन पुत्र अष्टांगी जाए, ब्रह्मा विष्णु शिव नाम धराए
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#दुर्गाजीअर्धकुँवारी_है_तो_माता_क्योंकहतेहैं
कबीर सागर के अध्याय ज्ञानबोध के पृष्ठ 21-22 में बताया है कि
माँ अष्टंगी पिता निरंजन। वे जम दारुण वंशन अंजन।।
धर्मराय किन्हाँ भोग विलासा। माया को रही तब आसा।।
तीन पुत्र अष्टंगी जाये। ब्रह्मा विष्णु शिव नाम धराये।।
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#दुर्गाजीअर्धकुँवारी_है_तो_माता_क्योंकहतेहैं
दुर्गा अर्धकुँवारी है तो माता क्यों कहते हैं?
दुर्गा (अष्टंगी) जी अर्धकुँवारी नहीं हैं बल्कि उनका पति ज्योति निरंजन (काल ब्रह्म) है। इस बारे में कबीर परमेश्वर ने कबीर सागर के अध्याय ज्ञानबोध के पृष्ठ 21-22 में बताया है कि
माँ अष्टंगी पिता निरंजन। वे जम दारुण वंशन अंजन।।
धर्मराय किन्हाँ भोग विलासा। माया को रही तब आसा।।
तीन पुत्र अष्टंगी जाये। ब्रह्मा विष्णु शिव नाम धराये।।
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दुर्गा अर्धकुँवारी है तो माता क्यों कहते हैं?
दुर्गा (अष्टंगी) जी अर्धकुँवारी नहीं हैं बल्कि उनका पति ज्योति निरंजन (काल ब्रह्म) है। इस बारे में कबीर परमेश्वर ने कबीर सागर के अध्याय ज्ञानबोध के पृष्ठ 21-22 में बताया है कि
माँ अष्टंगी पिता निरंजन। वे जम दारुण वंशन अंजन।।
धर्मराय किन्हाँ भोग विलासा। माया को रही तब आसा।।
तीन पुत्र अष्टंगी जाये। ब्रह्मा विष्णु शिव नाम धराये।।दुर्गा अर्धकुँवारी है तो माता क्यों कहते हैं?
अमर ग्रन्थ के अध्याय "हंस परमहंस की कथा" की वाणी नं. 37 में संत गरीबदास जी ने कहा है:
माया आदि निरंजन भाई, अपने जाये आपै खाई।
ब्रह्मा विष्णु महेश्वर चेला, ओम् सोहं का है खेला।।
अर्थात दुर्गा (माया) का पति ज्योति निरंजन (काल ब्रह्म) है। जिससे सिद्ध होता है कि दुर्गा जी अर्धकुँवारी नहीं हैं।
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#हिन्दूसाहेबान_नहींसमझे_गीतावेदपुराणPart119 के आगे पढिए.....)
📖📖📖
#हिन्दूसाहेबान_नहींसमझे_गीतावेदपुराणPart120
पूज्य कबीर परमेश्वर (कविर् देव) जी की अमृतवाणी में सृष्टी रचना
कबीर परमेश्वर जी की अमृतवाणी में सृष्टी रचना का प्रमाण
विशेष:- निम्न अमृतवाणी सन् 1403 से {जब पूज्य कविर्देव (कबीर परमेश्वर) लीलामय शरीर में पाँच वर्ष के हुए} सन् 1518 {जब कविर्देव (कबीर परमेश्वर) मगहर स्थान से सशरीर सतलोक गए} के बीच में लगभग 600 वर्ष पूर्व परम पूज्य कबीर परमेश्वर (कविर्देव) जी द्वारा अपने निजी सेवक (दास भक्त) आदरणीय धर्मदास साहेब जी को सुनाई थी तथा धनी धर्मदास साहेब जी ने लिपिबद्ध की थी। परन्तु उस समय के पवित्र हिन्दुओं तथा पवित्र मुसलमानों के नादान गुरुओं (नीम-हकीमों) ने कहा कि यह धाणक (जुलाहा) कबीर झूठा है। किसी भी सद् ग्रन्थ में श्री ब्रह्मा जी, श्री विष्णु जी तथा श्री शिव जी के माता-पिता का नाम नहीं है। ये तीनों प्रभु अविनाशी हैं इनका जन्म मृत्यु नहीं होता। न ही पवित्र वेदों व पवित्र कुरान शरीफ आदि में कबीर परमेश्वर का प्रमाण है तथा परमात्मा को निराकार लिखा है। हम प्रतिदिन पढ़ते हैं। भोली आत्माओं ने उन विचक्षणों (चतुर गुरुओं) पर विश्वास कर लिया कि सचमुच यह कबीर धाणक तो अशिक्षित है तथा गुरु जी शिक्षित हैं, सत्य कह रहे होंगे। आज वही सच्चाई प्रकाश में आ रही है तथा अपने सर्व पवित्र धर्मों के पवित्र सद्ग्रन्थ साक्षी हैं। इससे सिद्ध है कि पूर्ण परमेश्वर, सर्व सृष्टी रचनहार, कुल करतार तथा सर्वज्ञ कविर्देव (कबीर परमेश्वर) ही है जो काशी (बनारस) में कमल के फूल पर प्रकट हुए तथा 120 वर्ष तक वास्तविक तेजोमय शरीर के ऊपर मानव सदृश शरीर हल्के तेज का बना कर रहे तथा अपने द्वारा रची सृष्टी का ठीक-ठीक (वास्तविक तत्व) ज्ञान देकर सशरीर सतलोक चले गए। कृपा प्रेमी पाठक पढ़ें निम्न अमृतवाणी परमेश्वर कबीर साहेब जी द्वारा उच्चारित :-
धर्मदास यह जग बौराना। कोइ न जाने पद निरवाना।।
यहि कारन मैं कथा पसारा। जगसे कहियो राम नियारा।।
यही ज्ञान जग जीव सुनाओ। सब जीवोंका भरम नशाओ।।
अब मैं तुमसे कहों चिताई। त्रायदेवनकी उत्पति भाई।।
कुछ संक्षेप कहों गुहराई। सब संशय तुम्हरे मिट जाई।।
भरम गये जग वेद पुराना। आदि रामका का भेद न जाना।।
राम राम सब जगत बखाने। आदि राम कोइ बिरला जाने।।
ज्ञानी सुने सो हिरदै लगाई। मूर्ख सुने सो गम्य ना पाई।।
माँ अष्टंगी पिता निरंजन। वे जम दारुण वंशन अंजन।।
पहिले कीन्ह निरंजन राई। पीछेसे माया उपजाई।।
माया रूप देख अति शोभा। देव निरंजन तन मन लोभा।।
कामदेव धर्मराय सत्ताये। देवी को तुरतही धर खाये।।
पेट से देवी करी पुकारा। साहब मेरा करो उबारा।।
टेर सुनी तब हम तहाँ आये। अष्टंगी को बंद छुड़ाये।।
सतलोक में कीन्हा दुराचारि, काल निरंजन दिन्हा निकारि।।
माया समेत दिया भगाई, सोलह संख कोस दूरी पर आई।।
अष्टंगी और काल अब दोई, मंद कर्म से गए बिगोई।।
धर्मराय को हिकमत कीन्हा। नख रेखा से भगकर लीन्हा।।
धर्मराय किन्हाँ भोग विलासा। मायाको रही तब आसा।।
तीन पुत्र अष्टंगी जाये। ब्रह्मा विष्णु शिव नाम धराये।।
तीन देव विस्त्तार चलाये। इनमें यह जग धोखा खाये।।
पुरुष गम्य कैसे को पावै। काल निरंजन जग भरमावै।।
तीन लोक अपने सुत दीन्हा। सुन्न निरंजन बासा लीन्हा।।
अलख निरंजन सुन्न ठिकाना। ब्रह्मा विष्णु शिव भेद न जाना।।
तीन देव सो उनको धावें। निरंजन का वे पार ना पावें।।
अलख निरंजन बड़ा बटपारा। तीन लोक जिव कीन्ह अहारा।।
ब्रह्मा विष्णु शिव नहीं बचाये। सकल खाय पुन धूर उड़ाये।।
तिनके सुत हैं तीनों देवा। आंधर जीव करत हैं सेवा।।
अकाल पुरुष काहू नहिं चीन्हां। काल पाय सबही गह लीन्हां।।
ब्रह्म काल सकल जग जाने। आदि ब्रह्मको ना पहिचाने।।
तीनों देव और औतारा। ताको भजे सकल संसारा।।
तीनों गुणका यह विस्त्तारा। धर्मदास मैं कहों पुकारा।।
गुण तीनों की भक्ति में, भूल परो संसार।
कहै कबीर निज नाम बिन, कैसे उतरैं पार।।
उपरोक्त अमृतवाणी में परमेश्वर कबीर साहेब जी अपने निजी सेवक श्री धर्मदास साहेब जी को कह रहे हैं कि धर्मदास यह सर्व संसार तत्वज्ञान के अभाव से विचलित है। किसी को पूर्ण मोक्ष मार्ग तथा पूर्ण सृष्टी रचना का ज्ञान नहीं है। इसलिए मैं आपको मेरे द्वारा रची सृष्टी की कथा सुनाता हूँ। बुद्धिमान व्यक्ति तो तुरंत समझ जायेंगे। परन्तु जो सर्व प्रमाणों को देखकर भी नहीं मानेंगे तो वे नादान प्राणी काल प्रभाव से प्रभावित हैं, वे भक्ति योग्य नहीं। अब मैं बताता हूँ तीनों भगवानों (ब्रह्मा जी, विष्णु जी तथा शिव जी) की उत्पत्ति कैसे हुई? इनकी माता जी तो अष्टंगी (दुर्गा) है तथा पिता ज्योति निरंजन (ब्रह्म, काल) है। पहले ब्रह्म की उत्पत्ति अण्डे से हुई। फिर दुर्गा की उत्पत्ति हुई। दुर्गा के रूप पर आसक्त होकर काल (ब्रह्म) ने गलती (छेड़-छाड़) की, तब दुर्गा (प्रकृति) ने इसके पेट में शरण ली। मैं वहाँ गया जहाँ ज्योति निरंजन काल था। तब भवानी को ब्रह्म के उदर से निकाल कर इक्कीस ब्रह्मण्ड समेत 16 संख कोस की दूरी पर भेज दिया। ज्योति निरंजन (धर्मराय) ने प्रकृति देवी (दुर्गा) के साथ भोग-विलास किया। इन दोनों के संयोग से तीनों गुणों (श्री ब्रह्मा जी, श्री विष्णु जी तथा श्री शिव जी) की उत्पत्ति हुई। इन्हीं तीनों गुणों (रजगुण ब्रह्मा जी, सतगुण विष्णु जी, तमगुण शिव जी) की ही साधना करके सर्व प्राणी काल जाल में फंसे हैं। जब तक वास्तविक मंत्र नहीं मिलेगा, पूर्ण मोक्ष कैसे होगा?
Kabir Vani Creation Universe
विशेषः- प्रिय पाठक विचार करें कि श्री ब्रह्मा जी श्री विष्णु जी तथ श्री शिव जी की स्थिति अविनाशी बताई गई थी। सर्व हिन्दु समाज अभी तक तीनों परमात्माओं को अजर, अमर व जन्म-मृत्यु रहित मानते रहे जबकि ये तीनों नाश्वान हैं। इन के पिता काल रूपी ब्रह्म तथा माता दुर्गा (प्रकृति/अष्टांगी) हैं जैसा आप ने पूर्व प्रमाणों में पढ़ा यह ज्ञान अपने शास्त्रों में भी विद्यमान है परन्तु हिन्दु समाज के कलयुगी गुरूओं, ऋषियों, सन्तों को ज्ञान नहीं। जो अध्यापक पाठ्यक्रम (सलेबस) से ही अपरिचित है वह अध्यापक ठीक नहीं (विद्वान नही) है, विद्यार्थियों क�� भविष्य का शत्रु है। इसी प्रकार जिन गुरूओं को अभी तक यह नहीं पता कि श्री ब्रह्मा, श्री विष्णु तथा श्री शिव जी के माता-पिता कौन हैं? तो वे गुरू, ऋषि,सन्त ज्ञान हीन हैं। जिस कारण से सर्व भक्त समाज को शास्त्र विरूद्ध ज्ञान (लोक वेद अर्थात् दन्त कथा) सुना कर अज्ञान से परिपूर्ण कर दिया। शास्त्राविधि विरूद्ध भक्तिसाधना करा के परमात्मा के वास्तविक लाभ (पूर्ण मोक्ष) से वंचित रखा सबका मानव जन्म नष्ट करा दिया क्योंकि श्री मद्भगवत गीता अध्याय 16 श्लोक 23.24 में यही प्रमाण है कि जो शास्त्राविधि त्यागकर मनमाना आचरण पूजा करता है। उसे कोई लाभ नहीं होता पूर्ण परमात्मा कबीर जी ने सन् 1403 से ही सर्व शास्त्रों युक्त ज्ञान अपनी अमृतवाणी (कविरवाणी) में बताना प्रारम्भ किया था। परन्तु उन अज्ञानी गुरूओं ने यह ज्ञान भक्त समाज तक नहीं जाने दिया। जो वर्तमान में स्पष्ट हो रहा है इससे सिद्ध है कि कर्विदेव (कबीर प्रभु) तत्वदर्शी सन्त रूप में स्वयं पूर्ण परमात्मा ही आए थे।
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आध्यात्मिक जानकारी के लिए आप संत रामपाल जी महाराज जी के मंगलमय प्रवचन सुनिए। Sant Rampal Ji Maharaj YOUTUBE चैनल पर प्रतिदिन 7:30-8.30 बजे। संत रामपाल जी महाराज जी इस विश्व में एकमात्र पूर्ण संत हैं। आप सभी से विनम्र निवेदन है अविलंब संत रामपाल जी महाराज जी से नि:शुल्क नाम दीक्षा लें और अपना जीवन सफल बनाएं।
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दुर्गा अर्धकुँवारी है तो माता क्यों कहते हैं?
दुर्गा (अष्टंगी) जी अर्धकुँवारी नहीं हैं बल्कि उनका पति ज्योति निरंजन (काल ब्रह्म) है। इस बारे में कबीर परमेश्वर ने कबीर सागर के अध्याय ज्ञानबोध के पृष्ठ 21-22 में बताया है कि
माँ अष्टंगी पिता निरंजन। वे जम दारुण वंशन अंजन।।
धर्मराय किन्हाँ भोग विलासा। माया को रही तब आसा।।
तीन पुत्र अष्टंगी जाये। ब्रह्मा विष्णु शिव नाम धराये।।
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➜ श्रद्धा Tv 📺 दोपहर - 2:00 से 3:00
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दुर्गा अर्धकुँवारी है तो माता क्यों कहते हैं?
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धर्मराय किन्हाँ भोग विलासा। माया को रही तब आसा।।
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*#दुर्गाअर्धकुँवारी_है_तो_माता क्यों कहते हैं*
👸दुर्गा अर्धकुँवारी है तो माता क्यों कहते हैं?
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दुर्गा (अष्टंगी) जी अर्धकुँवारी नहीं हैं बल्कि उनका पति ज्योति निरंजन (काल ब्रह्म) है। इस बारे में कबीर परमेश्वर ने कबीर सागर के अध्याय ज्ञानबोध के पृष्ठ 21-22 में बताया है कि
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