#मौसम समा��ोह
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jayveer18330 · 7 years ago
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अमीर
         शाम के पांच बजे थे । गर्मी का मौसम चल रहा था । इस गर्मी के मौसम में परीक्षार्थियों की परीक्षा चल रही थी जिसकी वजह से कई घरों में कुछ ज्यादा ही गर्म वातावरण बना हुआ था । पूरे साल जो पढ़ाई की है उस सब��ोसिर्फ़ तीन घंटो में कैसे जाना सकता है इसका जवाब आज तक कोई दे नही पाया लेकिन सिस्टम आज भी यही चल रही है और इसके कई मात्र और मात्र नुकशान होने के बावजूद इसको किसी से विरोध का सामना नही करना पड़ा । बस किसी अमर जीव की भांति ये चली जा रही है ।          पेपर खत्म होने का साइरन बज गया । सब हाथ मे पेपर और छोटे छोटे पैकेट लेकर एक दूसरे से " कैसा रहा ? " , " इस सवाल का जवाब ए था या बी " की बातें करते चले आ रहे है ।   रामू और लकी भी इस भीड़ में से रास्ता करते हुए बहार निकल आये ।     " चल दोस्त ! आज एक्जाम खत्म ! "     " हा , यार । भेजा का दही हो गया । अब तो पूरे वेकेशन में मजे करूँगा । "    " गाँव जाने वाला है ? "      " हा , दोस्त । कल से मेरे नाना घर पर आए हुए है । दो साल से गाँव गया ही नही । तो कल जाऊँगा और शायद बीस पच्चीस दिन बाद वापस आऊंगा । "  " क्या कहा , बीस - पच्चीस दिन - तू वहाँ रहेगा । " लकी चोंक गया ।   " हा । बहुत मजा आएगा । "    " तेरे तो यार जलसे है । मैं यही हूँ। " कुछ मायूसी की लकीरें लकी के चेहरे पर खींच गई ।     " क्या यार ! इतने दिनों तक हम मिलेंगे नही ना ? "      " हा । " रामु भी कुछ उदास हो गया ।       ***************               *****************     एक काम करते है - कहकर लकी ने एक बात कही , " एक काम करते है । आज तू मेरे घर चल । वैसे भी तू कभी मेरे घर भी आया । मुजे तू कभी अपने घर लेकर भी नही गया । आज तू मेरे घर चल । "कहकर लकी ने लगभग रामु को जैसे घसीट ही लिया ।     लकी ने अपनी महँगी साइकल पर रामु को बैठा लिया । लकी के पास जो साईकिल थी उसके जैसी महँगी साईकिल पूरे स्कूल में दूसरे किसी और के पास नही थी । क्योंकि लकी एक जानेमाने उद्योगपति थे । जिसके पास करोड़ो की संपति थी । हर दिन स्वच्छ कपड़े , महँगी घड़ी , जूते , पेन और यहाँ तक कि उसकी पेन भी असामान्य होती थी । लेकिन इस पैसों के बीच मे भी लकी एक अच्छा लड़का बना हुआ था । हर किसी से प्यार से बात करना , सब का आदर करना और अपने स्वभाव की वजह से हर कोई उसका दोस्त बनता था । इन सब मे रामु उसका खास दोस्त था । वैसे रामु इस स्कूल में अभी छे सात महीने पहले ही आया है लेकिन वह नही जानता कि उसकी फीस लकी के पिताजी भरते है ।   रामु लकी के पीछे बैठा हुआ था । चड्डी में दो छेद पर कपड़ा सिया हुआ था । जेब मे शायद कुछ माचिस के चित्र होंगे । वह बहुत मजे ��े बैठ गया था । आधा घंटे बाद वो दोनों लकी के घर पहुँच गए ।
       रामु का पूरा घर समा जाय शायद उससे से बड़ा तो सिर्फ़ दरवाजा था । दोनों धीरे से दरवाजा खोलकर अंदर गए । किसी महल की तरह लकी का घर था । जैसे ही वे पहुँचे सामने एक पृरुष और एक महिला तैयार होकर बैठे थे । जैसे ही लकी को देख लिया महिला बोल पड़ी - आ गया मेरा राजा बेटा ! देख हम पाँच छः दिन के लिए जा रहे है । नाथकाका को कह दिया है । मजे से रहना । किसी चीज की जरूर पड़े तो फोन कर देना । हम बंदोबस्त कर देंगे ह बेटा । 
       और वह सज्जन भी - चल बेटा बाय । टेक कर हा । पढ़ाई में ध्यान देना । बाय । 
     और दोनों आकर रुकी हुई वैभवी कार में बैठकर चले गए । 
   लकी मायूस होकर उस सोफे पर बैठ गया । रामु तो नीचे ही बैठ गया । कहि सोफ़ा गन्दा हो गया तो ? 
     चल दोस्त खाते है । 
       " तुम्हारे आई बाबा थे ? ऐसे कैसे तुमको छोडकर चले गए । मैं तो घर जाऊ तो माँ मुजे प्यार करती है और बाबा अपनी साइकिल पर बिठाकर नास्ता करने ले जाते है । तुम आआगे न तो तुमको भी प्यार करेंगे । " 
      लकी कुछ बोल नही पाया । शायद अमीरी का बोझ उस के बचपन पर भारी पड़ गया था । चीजे सब थी बस प्यार के सिवा । 
        थोड़ी देर बाद बंगले से एक साइकिल निकली । 
         एक छोटे से घर से फिर एक साईकिल निकली दो बच्चों को लेकर । 
    लकी की आँखे ख़ुर्शी से नाच रही थी और उसका बचपन भी ! 
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