#मेरा अस��ी रूप
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jayshrisitaram108 · 3 years ago
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श्रीरामचरितमानस बालकाण्ड
श्रीराम भक्तिमयी कविता
कबि न होउँ नहिं चतुर कहावउँ । मति अनुरूप राम गुन गावउँ
कहँ रघुपति के चरित अपारा । कहँ मति मोरि निरत संसारा॥5॥
मैं न तो कवि हूँ, न चतुर कहलाता हूँ, अपनी बुद्धि के अनुसार श्री रामजी के गुण गाता हूँ । कहाँ तो श्री रघुनाथजी के अपार चरित्र, कहाँ संसार में आसक्त मेरी बुद्धि !॥5॥ ।
जेहिं मारुत गिरि मेरु उड़ाहीं । कहहु तूल केहि लेखे माहीं ॥
समुझत अमित राम प्रभुताई । करत कथा मन अति कदराई॥6
जिस हवा से सुमेरु जैसे पहाड़ उड़ जाते हैं, कहिए तो, उसके सामने रूई किस गिनती में है । श्री रामजी की असीम प्रभुता को समझकर कथा रचने में मेरा मन बहुत हिचकता है-॥6॥
दोहा :
सारद सेस महेस बिधि आगम निगम पुरान । नेति नेति कहि जासु गुन करहिं निरंतर गान ॥12॥
सरस्वतीजी, शेषजी, शिवजी, ब्रह्माजी, शास्त्र, वेद और पुराण- ये सब नेति-नेति कहकर (पार नहीं पाकर ऐसा नहीं, ऐसा नहीं कहते हुए) सदा जिनका गुणगान किया करते हैं ॥12॥
चौपाई :
सब जानत प्रभु प्रभुता सोई । तदपि कहें बिनु रहा न कोई ॥
तहाँ बेद अस कारन राखा । भजन प्रभाउ भाँति बहु भाषा॥1॥
यद्यपि प्रभु श्री रामचन्द्रजी की प्रभुता को सब ऐसी (अकथनीय) ही जानते हैं, तथापि कहे बिना कोई नहीं रहा । इसमें वेद ने ऐसा कारण बताया है कि भजन का प्रभाव बहुत तरह से कहा गया है । (अर्थात भगवान की महिमा का पूरा वर्णन तो कोई कर नहीं सकता, परन्तु जिससे जितना बन पड़े उतना भगवान का गुणगान करना चाहिए, क्योंकि भगवान के गुणगान रूपी भजन का प्रभाव बहुत ही अनोखा है, उसका नाना प्रकार से शास्त्रों में वर्णन है । थोड़��� सा भी भगवान का भजन मनुष्य को सहज ही भवसागर से तार देता है)॥1॥
एक अनीह अरूप अनामा । अज सच्चिदानंद पर धामा ॥
ब्यापक बिस्वरूप भगवाना । तेहिं धरि देह चरित कृत नाना॥
जो परमेश्वर एक है, जिनके कोई इच्छा नहीं है, जिनका कोई रूप और नाम नहीं है, जो अजन्मा, सच्चिदानन्द और परमधाम है और जो सबमें व्यापक एवं विश्व रूप हैं, उन्हीं भगवान ने दिव्य शरीर धारण करके नाना प्रकार की लीला की है॥2॥
सो केवल भगतन हित लागी । परम कृपाल प्रनत अनुरागी ॥
जेहि जन पर ममता अति छोहू । जेहिं करुना करि कीन्ह न कोहू॥3॥
वह लीला केवल भक्तों के हित के लिए ही है, क्योंकि भगवान परम कृपालु हैं और शरणागत के बड़े प्रेमी हैं । जिनकी भक्तों पर बड़ी ममता और कृपा है, जिन्होंने एक बार जिस पर कृपा कर दी, उस पर फिर कभी क्रोध नहीं किया॥3॥
गई बहोर गरीब नेवाजू । सरल सबल साहिब रघुराजू ॥
बुध बरनहिं हरि जस अस जानी । करहिं पुनीत सुफल निज बानी॥4॥
वे प्रभु श्री रघुनाथजी गई हुई वस्तु को फिर प्राप्त कराने वाले, गरीब नवाज (दीनबन्धु), सरल स्वभाव, सर्वशक्तिमान और सबके स्वामी हैं । यही समझकर बुद्धिमान लोग उन श्री हरि का यश वर्णन करके अपनी वाणी को पवित्र और उत्तम फल (मोक्ष और दुर्लभ भगवत्प्रेम) देने वाली बनाते हैं॥4॥
जय श्री राम🏹🙏
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ghumteganesh · 5 years ago
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भगवान हनुमान को हजारों साल तक अमर रहने का वरदान क्यों मिला था ! दिल को छू लेनेवाली कहानी !
हनुमान के जीवित होने का राज
धर्म की रक्षा के लिए भगवान शिव ने अनेक अवतार लिए हैं.
  त्रेतायुग में भगवान श्रीराम की सहायता करने और दुष्टों का नाश करने के लिए भगवान शिव ने ही हनुमान के रूप में अवतार लिया था. हनुमानजी भगवान शिव के सबसे श्रेष्ठ अवतार कहे जाते हैं.
  रामायण हो या फिर महाभारत दोनों में कई जगह पर हनुमान अवतार का जिक्र किया गया है. अब रामायण तो हनुमान के बिना अधूरी ही है किन्तु महाभारत में भी अर्जुन के रथ से लेकर भीम की परीक्षा तक, कई जगह हनुमान के दर्शन हुए हैं.
  तो अब सवाल यह उठता है कि अगर रामायण के सभी पात्र बाद में अपना जीवन चक्र पूरा करके चले जाते हैं तो मात्र हनुमान ही क्यों ��जारों लाखों साल बाद भी जीवित बताया जा रहा है. क्या है  हनुमान के जीवित होने का राज?
  तो आज आपको हम पहले हनुमान के जीवित होने का राज बता देते हैं और उसके बाद आपको बतायेंगे कि कैसे हनुमान भी माता सीता के पास अपनी जीवन लीला समाप्त करवाने गये थे –
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हनुमान के जीवित होने का राज –
वाल्मीकि रामायण के अनुसार
लंका में बहुत ढूढ़ेने के बाद भी जब माता सीता का पता नहीं चला तो हनुमानजी उन्हें मृत समझ बैठे, लेकिन फिर उन्हें भगवान श्रीराम का स्मरण हुआ और उन्होंने पुन: पूरी शक्ति से सीताजी की खोज प्रारंभ की और अशोक वाटिका में सीताजी को खोज निकाला. सीताजी ने हनुमानजी को उस समय अमरता का वरदान दिया था. इसलिए हनुमान हर युग में भगवान श्रीराम के भक्तों की रक्षा करते हैं.
  हनुमान चालीसा की एक चौपाई में भी लिखा है- ‘अष्ट सिद्धि नौ निधि के दाता। अस ब�� दीन्ह जानकी माता’.
  अर्थात – ‘आपको माता श्री जानकी से ऐसा वरदान मिला हुआ है जिससे आप किसी को भी आठों सिद्धियां और नौ निधियां दे सकते हैं.
  जब श्रीराम ने अपनी मृत्यु की घोषणा की –
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आपको शायद इस बात का ज्ञान ना हो कि भगवान श्री राम ने अपने जीवित समय में ही यह बता दिया था कि वह कब धरती के सफर को पूरा कर अब स्वर्गलोक में विराजमान होंगे. यह सुनकर सबसे ज्यादा दुःख जिसको हुआ था वह राम भक्त हनुमान जी ही थे. राम जी से यह खबर सुनते ही हनुमान जी माता सीता के पास जाते हैं और कहते हैं : –
  ‘हे माता मुझे आपने अजर-अमर होने का वरदान तो दिया किन्तु एक बात बतायें कि जब मेरे प्रभु राम ही धरती पर नहीं होंगे तो मैं यहाँ क्या करूँगा. मुझे अपना दिया हुआ अमरता का वरदान वापस ले लो.’
  हनुमान माता-सीता के सामने जिद पर अड़ जाते हैं और तब माता सीता ध्यानकर, राम को यहाँ आने के लिए बोलती हैं. कुछ ही देर में भगवान राम वहां प्रकट होते हैं और हनुमान को गले लगाते हुए बोलते हैं-
  ‘हनुमान मुझे पता था कि तुम सीता के पास आकर यही बोलोगे. देखो हनुमान धरती पर आने वाला हर प्राणी, चाहे वह संत है या देवता कोई भी अमर नहीं है. तुमको तो वरदान है हनुमान, क्योकि जब इस धरती पर और कोई नहीं होगा तो राम नाम लेने वालों का बेड़ा तुमको ही तो पार करना है. एक समय ऐसा आएगा जब धरती पर कोई देव अवतार नहीं होगा, पापी लोगों की संख्या अधिक होगी तब राम के भक्तों का उद्धार मेरा हनुमान ही तो करेगा. इसलिए तुमको अमरता का वरदान दिलवाया गया है हनुमान.’
  तब हनुमान अपने अमरता के वरदान को समझते हैं और राम की आज्ञा समझकर आज भी धरती पर विराजमान हैं. हनुमान को हर राम भक्त का बेड़ा पार करना है और जहाँ भी रामनाम लिया जाता है वहां हनुमान जरूर प्रकट होते हैं.
  ये था  हनुमान के जीवित होने का राज –
इसलिए आज कलयुग में ��ाम नाम जपने वाला ही सुखी बताया गया
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margdarsanme · 4 years ago
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NCERT Class 12 Hindi Chapter 8 Laxman Murch aur Ram ka Bilap
NCERT Class 12 Hindi Chapter 8 :: Laxman Murch aur Ram ka Bilap
कवितावली (उत्त�� कांड से), लक्ष्मण-मूच्छ और राम का विलाप
काव्य भाग
पाठ्यपुस्तक के प्रश्न-अभ्यास
पाठ के साथ
प्रश्न 1.कवितावली में उद्धृत छंदों के आधार पर स्पष्ट करें कि तुलसीदास को अपने युग की आर्थिक विषमता की अच्छी समझ है। (CBSE-2010, 2015)अथवा‘कवितावली’ के आधार पर पुष्टि कीजिए कि तुलसी को अपने समय की आर्थिक-सामाजिक समस्याओं की जानकारी थी। (CBSE-2016)उत्तर:‘कवितावली’ में उद्धृत छंदों के अध्ययन से पता चलता है कि तुलसीदास को अपने युग की आर्थिक विषमता की अच्छी समझ है। उन्होंने समकालीन समाज का यथार्थपरक चित्रण किया है। वे समाज के विभिन्न वगों का वर्णन करते हैं जो कई तरह के कार्य करके अपना निर्वाह करते हैं। तुलसी दास तो यहाँ तक बताते हैं कि पेट भरने के लिए लोग गलत-सही सभी कार्य करते हैं। उनके समय में भयंकर गरीबी व बेरोजगारी थी। गरीबी के कारण लोग अपनी संतानों तक को बेच देते थे। बेरोजगारी इतनी अधिक थी कि लोगों को भीख तक नहीं मिलती थी। दरिद्रता रूपी रावण ने हर तरफ हाहाकार मचा रखा था।
प्रश्न 2.पेट की आग का शमन ईश्वर ( राम ) भक्ति का मेघ ही कर सकता है—तुलसी का यह काव्य-सत्य क्या इस समय का भी युग-सत्य है? तुर्क संगत उत्तर दीजिए।उत्तर:जब पेट में आग जलती है तो उसे बुझाने के लिए व्यक्ति हर तरह का उलटा अथवा बुरा कार्य करता है, किंतु यदि वह ईश्वर का नाम जप ले तो उसकी अग्नि का शमन हो सकता है क्योंकि ईश्वर की कृपा से वह सब कुछ प्राप्त कर सकता है। तुलसी का यह काव्य सत्य आज भी उतना ही प्रासंगिक है जितना कि उस समय था। ईश्वर भक्ति का मेघ ही मनुष्य को अनुचित कार्य करने से रोकने की क्षमता रखता है।
प्रश्न 3.तुलसी ने यह कहने की ज़रूरत क्यों समझी? धूत कहौ, अवधूत कहौ, रजपूतु कहौ, जोलहा कहौ कोऊ/काहू की बेटीसों बेटा न ब्याहब, काहूकी जाति बिगार न सोऊ। इस सवैया में काहू के बेटासों बेटी न ब्याहब कहते तो सामाजिक अर्थ में क्या परिवर्तन आती?उत्तर:तुलसीदास के युग में जाति संबंधी नियम अत्यधिक कठोर हो गए थे। तुलसी के संबंध में भी समाज ने उनके कुल व जाति पर प्रश्नचिहन लगाए थे। कवि भक्त था तथा उसे सांसारिक संबंधों में कोई रुचि नहीं थी। वह कहता है कि उसे अपने बेटे का विवाह किसी की बेटी से नहीं करना। इससे किसी की जाति खराब नहीं होगी क्योंकि लड़की वाला अपनी जाति के वर ढूँढ़ता है। पुरुष-प्रधान समाज में लड़की की जाति विवाह के ब���द बदल जाती है। तुलसी इस सवैये में अगर अपनी बेटी की शादी की बात करते तो संदर्भ में बहुत अंतर आ जाता। इससे तुलसी के परिवार की जाति खराब हो जाती। दूसरे, समाज में लड़की का विवाह न करना गलत समझा जाता है। तीसरे, तुलसी बिना जाँच के अपनी लड़की की शादी करते तो समाज में जाति-प्रथा पर कठोर आघात होता। इससे सामाजिक संघर्ष भी बढ़ सकता था।
प्रश्न 4.धूत कहौ ….. वाले छंद में ऊपर से सरल व निरीह दिखाई पड़ने वाले तुलसी की भीतरी असलियत एक स्वाभिमानी भक्त हृदय की है। इससे आप कहाँ तक सहमत हैं? (CBSE-2013, 2014, 2017)उत्तर:तुलसीदास का जीवन सदा अभावों में बीता, लेकिन उन्होंने अपने स्वाभिमान को जगाए रखा। इसी प्रकार के भाव उनकी भक्ति में भी आए हैं। वे राम के सामने गिड़गिड़ाते नहीं बल्कि जो कुछ उनसे प्राप्त करना चाहते हैं वह भक्त के अधिकार की दृष्टि से प्राप्त करना चाहते हैं। उन्होंने अपनी स्वाभिमानी भक्ति का परिचय देते हुए राम से यही कहा है कि मुझ पर कृपा करो तो भक्त समझकर न कि कोई याचक या भिखारी समझकर।।
प्रश्न 5.व्याख्या करें(क) मम हित लागि तजेहु पितु माता। सहेहु बिपिन हिम आतप बाता।जौं जनतेउँ बन बंधु बिछोहू। पितु बचन मनतेउँ नहिं ओहू॥(ख) जथा पंख बिनु खग अति दीना। मनि बिनु फनि करिबर कर हीना।अस मम जिवन बंधु बिनु तोही। जौं जड़ दैव जिआवै मोही॥(ग) माँग के खैबो, मसीत को सोइबो, लैबोको एकु ने दैबको दोऊ॥(घ) ऊँचे नीचे करम, धरम-अधरम करि, पेट को ही पचत, बेचत बेटा-बेटकी॥उत्तर:(क) लक्ष्मण के मूर्चिछत होने पर राम विलाप करते हुए कहते हैं कि तुमने मेरे हित के लिए माता-पिता का त्याग कर दिया और वनवास स्वीकार किया। तुमने वन में रहते हुए सर्दी, धूप, आँधी आदि सहन किया। यदि मुझे पहले ज्ञात होता कि वन में मैं अपने भाई से बिछड़ जाऊँगा तो मैं पिता की बात नहीं मानता और न ही तुम्हें अपने साथ लेकर वन आता। राम लक्ष्मण की नि:स्वार्थ सेवा को याद कर रहे हैं।
(ख) मूर्चिछत लक्ष्मण को गोद में लेकर राम विलाप कर रहे हैं कि तुम्हारे बिना मेरी दशा ऐसी हो गई है जैसे पंखों के बिना पक्षी की, मणि के बिना साँप की और सँड़ के बिना हाथी की स्थिति दयनीय हो जाती है। ऐसी स्थिति में मैं अक्षम व असहाय हो गया हूँ। यदि भाग्य ने तुम्हारे बिना मुझे जीवित रखा तो मेरा जीवन इसी तरह शक्तिहीन रहेगा। दूसरे शब्दों में, मेरे तेज व पराक्रम के पीछे तुम्हारी ही शक्ति कार्य करती रही है।
(ग) तुलसीदास ने समाज से अपनी तटस्थता की बात कही है। व��� कहते हैं कि समाज की बातों का उन पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता। वे किसी पर आश्रित नहीं हैं वे मात्र राम के सेवक हैं। जीवन-निर्वाह के लिए भिक्षावृत्ति करते हैं तथा मस्जिद में सोते हैं। उन्हें संसार से कोई लेना-देना नहीं है।
(घ) तुलसीदास ने अपने समय की आर्थिक दशा का यथार्थपरक चित्रण किया है। इस समय लोग छोटे-बड़े, गलतसही सभी प्रकार के कार्य कर रहे हैं, क्योंकि उन्हें अपनी भूख मिटानी है। वे कर्म की प्रवृत्ति व तरीके की परवाह नहीं करते। पेट की आग को शांत करने के लिए वे अपने बेटा-बेटी अर्थात संतानों को भी बेचने के लिए विवश हैं अर्थात पेट भरने के लिए व्यक्ति कोई भी पाप कर सकता है।
प्रश्न 6.भ्रातृशोक में हुई राम की दशा को कवि ने प्रभु की नर लीला की अपेक्षा सच्ची मानवीय अनुभूति के रूप में रचा है। क्या आप इससे सहमत हैं? तर्कपूर्ण उत्तर दीजिए।उत्तर:जब लक्ष्मण को शक्ति बाण लगा तो राम एकदम विह्वल हो उठे। वे ऐसे रोए जैसे कोई बालक पिता से बिछुड़कर होता है। सारी मानवीय संवेदनाएँ उन्होंने प्रकट कर दीं। जिस प्रकार मानव-मानव के लिए रोता है ठीक वैसा ही राम ने किया। राम के ऐसे रूप को देखकर यही कहा जा सकता है कि राम की दशा को कवि ने प्रभु की नर लीला की अपेक्षा सच्ची मानवीय अनुभूति के रूप में रचा है। मानव में अपेक्षित सारी अनुभूतियाँ इस शोक सभा में दिखाई देती हैं।
प्रश्न 7.शोकग्रस्त माहौल में हनुमान के अवतरण को करुण रस के बीच वीर रस का आविर्भाव क्यों कहा गया है?उत्तर:हनुमान लक्ष्मण के इलाज के लिए संजीवनी बूटी लाने हिमालय पर्वत गए थे। उन्हें आने में देर हो रही थी। इधर राम बहुत व्याकुल हो रहे थे। उनके विलाप से वानर सेना में शोक की लहर थी। चारों तरफ शोक का माहौल था। इसी बीच हनुमान संजीवनी बूटी लेकर आ गए। सुषेण वैद्य ने तुरंत संजीवनी बूटी से दवा तैयार कर के लक्ष्मण को पिलाई तथा लक्ष्मण ठीक हो गए। लक्ष्मण के उठने से राम का शोक समाप्त हो गया और सेना में उत्साह की लहर दौड़ गई। लक्ष्मण स्वयं उत्साही वीर थे। उनके आ जाने से सेना का खोया पराक्रम प्रगाढ़ होकर वापस आ गया। इस तरह हनुमान द्वारा पर्वत उठाकर लाने से शोक-ग्रस्त माहौल में वीर रस का आविर्भाव हो गया था।
प्रश्न 8.“जैहउँ अवध कवन मुहुँ लाई । नारि हेतु प्रिय भाइ गॅवाई॥बरु अपजस सहतेउँ जग माहीं। नारि हानि बिसेष छति नाहीं॥भाई के शोक में डूबे राम के इस प्रलाप-वचन में स्त्री के प्रति कैसा सामाजिक दृष्टिकोण संभावित है?उत्तर:इस वचन में नारी के प्रति नकारात्मक दृष्टिकोण दिखाई देता है। राम ने अपनी पत्नी के खो जाने से बढ़कर लक्ष्मण के मूर्छित हो जाने को महत्त्व दिया है। उन्हें इस बात का पछतावा होता है कि नारी के लिए मैंने भाई खो दिया है यह सबसे बड़ा कलंक है। यदि नारी खो जाए तो उसके खो जाने से कोई बड़ी हानि ��हीं होती। नारी से बढ़कर तो भाई-बंधु हैं जिनके कारण व्यक्ति समाज में प्रतिष्ठा पाता है, यदि वही खो जाए तो माथे पर जीवनभर के लिए कलंक लग जाता है।
पाठ के आसपास
प्रश्न 1.कालिदास के रघुवंश महाकाव्य में पत्नी (इंदुमती) के मृत्यु-शोक पर ‘अज’ तथा निराला की ‘सरोज-स्मृति’ में पुत्री (सरोज) के मृत्यु-शोक पर पिता के करुण उद्गार निकले हैं। उनसे भ्रातृशोक में डूबे राम के इस विलाप की तुलना करें।उत्तर:‘सरोज-स्मृति’ में कवि निराला ने अपनी पुत्री की मृत्यु पर उद्गार व्यक्त किए थे। ये एक असहाय पिता के उद्गार थे जो अपनी पुत्री की आकस्मिक मृत्यु के कारण उपजे थे। भ्रातृशोक में डूबे राम का विलाप निराला की तुलना में कम है। लक्ष्मण अभी सिर्फ़ मूर्चिछत ही हुए थे। उनके जीवित होने की आशा बची हुई थी। दूसरे, सरोज की मृत्यु के लिए निराला की कमजोर आर्थिक दशा जिम्मेदार थी। वे उसकी देखभाल नहीं कर पाए थे, जबकि राम के साथ ऐसी समस्या नहीं थी।
प्रश्न 2.‘पेट ही को पचत, बेचते बेटा-बेटकी’ तुलसी के युग का ही नहीं आज के युग का भी सत्य है। भुखमरी में किसानों की आत्महत्या और संतानों (खासकर बेटियों) को भी बेच डालने की हृदयविदारक घटनाएँ हमारे देश में घटती रही हैं। वर्तमान परिस्थितियों और तुलसी के युग की तुलना करें। (CBSE-2013)उत्तर:भुखमरी की स्थिति बहुत दयनीय होती है। व्यक्ति भुखमरी की इस दयनीय स्थिति में हर प्रकार का नीच कार्य करता है। कर्ज लेता है, बेटा-बेटी तक को बेच देता है। जब कर्ज का बोझ बढ़ता जाता है तो आत्महत्या तक कर लेता है। तुलसी का समाज भी लगभग वैसा ही था जैसा कि आज का भारतीय मध्यवर्गीय समाज। उस समय की परिस्थिति भी बहुत भयानक थी। लोगों के पास कमाने का कोई साधन न था ऊपर से अकाल ने लोगों को भुखमरी के किनारे तक पहुँचा दिया। इस स्थिति से तंग आकर व्यक्ति वे सभी अनैतिक कार्य करने लगे। बेटा-बेटी का सौदा करने लगे। यदि साहूकार का ऋण नहीं उतरता है तो स्वयं मर जाते थे। ठीक यही परिस्थिति हमारे समाज की है। किसान कर्ज न चुकाने की स्थिति में आत्महत्याएँ कर रहे हैं। कह सकते हैं कि तुलसी का युग और आज का युग एक ही है। आर्थिक दृष्टि से दोनों युगों में विषमताएँ रहीं।
प्रश्न 3.तुलसी के युग की बेकारी के क्या कारण हो सकते हैं? आज की बेकारी की समस्या के कारणों के साथ उसे मिलाकर कक्षा में परिचर्चा करें।उत्तर:
तुलसी के युग में बेकारी के निम्नलिखित कारण हो सकते हैं-
खेती के लिए पानी उपलब्ध न होना।
बार-बार अकाल पडना।
अराजकता।
व्यापार व वाणिज्य में गिरावट।
आज बेकारी के कारण पहले की अपेक्षा भिन्न हैं-
भ्रष्टाचार।
शारीरिक श्रम से नफ़रत करना।
कृषि-कार्य के प्रति अरुचि।
जन��ंख्या विस्फोट, अशिक्षा तथा अकुशलता।
प्रश्न 4.राम कौशल्या के पुत्र थे और लक्ष्मण सुमित्रा के। इस प्रकार वे परस्पर सहोदर ( एक ही माँ के पेट से जन्मे ) नहीं थे। फिर, राम ने उन्हें लक्ष्य कर ऐसा क्यों कहा-“मिलइ न जगत सहोदर भ्राता”? इस पर विचार करें।उत्तर:राम और लक्ष्मण का जन्म यद्यपि एक ही माँ के पेट से नहीं हुआ था, लेकिन इनके पिता एक ही थे-महाराज दशरथ। इसलिए राम ने लक्ष्मण को सहोदर भ्राता कहा। लक्ष्मण ने सदा राम की सेवा की। उनके सुख के लिए अपने सुखों का त्याग कर दिया। केवल एक ही पेट से जन्म लेने वाले सगे नहीं होते बल्कि वही भाई सहोदर होता है जो पारिवारिक संबंधों को अच्छी तरह निभाता है। लक्ष्मण ने श्रीराम के दुख दूर करने के लिए जीवनभर कष्ट उठाए। राम का छोटा-सा दुख भी उनसे देखा नहीं जाता था। इसलिए राम ने उन्हें लक्ष्य कर ‘मिलइ न जगत सहोदर भ्राता’ कहा।
प्रश्न 5.यहाँ कवि तुलसी के दोहा, चौपाई, सोरठा, कवित्त, सवैया-ये पाँच छंद प्रयुक्त हैं। इसी प्रकार तुलसी साहित्य में और छंद तथा काव्य-रूप आए हैं। ऐसे छंदों व काव्य-रूपों की सूची बनाएँ।उत्तर:काव्य-रूप-प्रबंध काव्य- रामचरितमानस (महाकाव्य)।मुक्तक काव्य- विनयपत्रिका।गेय पद शैली- गीतावली, कृष्ण गीतावली।
अन्य महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1.तुलसीदास का समाज कैसा था? इस बारे में लिखिए।उत्तर:तुलसीदास का समाज ज्यादा बेहतर नहीं था। सामाजिक मान्यताएँ खत्म होती जा रही थीं। परंपराएँ टूटती जा रही थीं। लोगों के पास कोई रोजगार नहीं था। धार्मिक कट्टरता व्याप्त थी। अंधविश्वासों के चक्र में पूरा समाज जकड़ा हुआ था। लोगों ने मर्यादाओं को ताक पर रख दिया था। नारी की स्थिति बदतर थी। उसकी हालत सबसे खराब थी।
प्रश्न 2.तुलसी युग की आर्थिक विषमता के संदर्भ में लिखें।उत्तर:वर्तमान समाज की तरह तुलसी युग की आर्थिक स्थिति भी बहुत दयनीय थी। किसान को खेती नहीं थी तो व्यापारी के पास व्यापार नहीं था। लोग केवल यही सोचते रहते कि क्या करें, कहाँ जाएँ? इसी फेर में रहते कि धन कैसे और कहाँ से प्राप्त किया जाए? लोग कर्जा लेकर जीवनयापन करते थे और जब कर्जा बढ़ जाता तो आत्महत्या कर लेते थे।
प्रश्न 3.लक्ष्मण के मूर्छित हो जाने पर राम क्या सोचने लगे?उत्तर:जब लक्ष्मण को शक्तिबाण लगा तो वे मूर्छित हो गए। यह देखकर राम भावुक हो उठे। वे सोचने लगे कि इस वन में आकर मैंने पहले तो जानकी को खो दिया अब अपने भाई को खोने जा रहा हूँ। केवल एक स्त्री के कारण मेरा भाई आज मृत्यु की गोद में सो रहा है। यदि स्त्री खो जाए तो कोई बड़ी हानि नहीं होती किंतु भाई के खो जाने से जीवनभर कलंक मेरे माथे पर रहेगा।
प्रश्न 4.स्त्री के प्रति तुलसी युग का दृष्टिकोण कैसा था? (CBSE-2010)उत्तर:तुलसी का ��ुग स्त्रियों के लिए बहुत कष्टदायी था। लोग स्त्री को घोर अपमान करते थे। पैसों के लिए वे बेटी तक को बेच देते थे। इस काल में स्त्रियों का हर प्रकार से शोषण होता था। नारी के बारे में लोगों की धारणा संकुचित थी। नारी केवल भोग की वस्तु थी। इसी कारण उसकी दशा दयनीय थी। वह शोषण की चक्की में पिसती जा रही थी।
प्रश्न 5.क्या तुलसी का साहित्य आज भी प्रासंगिक है?उत्तर:तुलसी ने लगभग 450 वर्ष पहले जो कहा था, वह आज भी प्रासंगिक है। उन्होंने अपने समाज की सभी समस्याओं का चित्रण किया। इन्हीं समस्याओं के कारण तुलसी युग का समाज पूरी तरह से बिखर चुका था। उन्होंने इन सारी विद्रुपताओं को देखा और उसका चित्रण किया। जिस प्रकार की परिस्थितियाँ उस युग में विद्यमान थी ठीक वही परिस्थितियाँ आज भी विद्यमान हैं। इसीलिए तुलसीदास का साहित्य आज भी प्रासंगिक है।
प्रश्न 6.तुलसी की काव्य भाषा के बारे में बताइए।उत्तर:तुलसी ने मुख्य रूप से अवधी भाषा का प्रयोग किया है। उस युग में इसी भाषा का प्रचलन था। लोगों के बीच इसी व्यवहार की भाषा प्रचलित थी। इसीलिए तुलसी ने इस लोक व्यवहार की भाषा का प्रयोग किया है।
प्रश्न 7.तुलसीदास की अलंकार योजना पर प्रकाश डालिए।उत्तर:तुलसीदास के काव्य में कई अलंकारों का प्रयोग हुआ है। उन्होंने मुख्य रूप से उपमा, अनुप्रास, रूपक, अतिश्योक्ति, वीरता आदि अलंकारों का प्रयोग किया है। इन अलंकारों के प्रयोग से भाषा में चमत्कार उत्पन्न हुआ है। वह अधिक प्रभावी बन गई है।
प्रश्न 8.तुलसी की छंद योजना कैसी है?उत्तर:तुलसी ने दोहे और चौपाई छंद का प्रयोग प्रमुखता से किया है। उन्होंने अपने सारे काव्यों में इन्हीं छंदों का प्रयोग किया। इनका प्रयोग करके तुलसी ने अपनी बात को अधिक स्पष्ट ढंग से कह दिया है। तुलसी की चौपाइयाँ इतनी सरल और प्रभावी बन पड़ी हैं कि लोग आज भी इनका काव्य पाठ करते हैं। तुलसी ने कहीं-कहीं हरिगीतिका छंद का प्रयोग भी किया है, लेकिन न्यून मात्रा में। लेकिन बहुलता दोहा और चौपाई छंदों की रही है।
प्रश्न 9.काव्य-सौंदर्य स्पष्ट करें-
खेती न किसान को, भिखारी को न भीख, बलिबनिक को बनिज, न चाकर को चाकरी।जीविका बिहीन लोग सीद्यमान सोच बस,कहें एक एकन सों ‘कहाँ जाई, का करी ?’बेदहूँ पुरान कही, लोकहूँ बिलोकिअत,साँकरे सबै पै, राम! रावरें कृपा करी।दारिद-दसानन दबाई दुनी, दीनबंधुदुरित-दहन देखि तुलसी हेहा करी ॥
उत्तर:इस पद में कवि ने तत्कालीन समाज को यथार्थपरक चित्रण किया है। कवि संकट में भगवान को ही सहारा मानता है। कवि ने दीनबंधु, दुरित दहन आदि शब्दों के द्वारा श्रीराम के विशेषणों पर प्रकाश डाला है। ‘दारिद-दसानन, दुरित-दहन’ में रूपक अलंकार है। पूरे पद में अनुप्रास अलंकार की छटा है। ब्रजभाषा का लालित्य है। गीतिकाव्य की सभी विशेषताएँ हैं। मनहर घनाक्षरी छंद का प्रयोग है। शब्द चयन उपयुक्त है। ‘ह��ा’ शब्द से भाव गंभीरता आई है।
प्रश्न 10.काव्य-सौंदर्य स्पष्ट करेंतव प्रताप उर राखि प्रभु जैहउँ नाथ तुरंत।अस कहि आयसु पाइ पद बंदि चलेउ हनुमंत॥भरत बाहु बल सील गुन प्रभु पद प्रीति अपार।मन महुँ जात सराहत पुनि पुनि पवनकुमार॥उत्तर:इस पद में हनुमान जी द्वारा संजीवनी बूटी लाने का संकल्प दिखाया गया है। ‘पाद पद, बाहुबल, प्रभु पद प्रीति, मन महँ’ अनुप्रास अलंकार है। पुनि-पुनि’ में पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार है। रूपक अलंकार है। अवधी को बोलचाल रूप है। गेयतत्व की विद्यमानता है। दोहा छंद है। वीर रस का उद्रेक हुआ है। अमिधा शब्दशक्ति है।
प्रश्न 11.लक्ष्मण मूच्र्छा और राम का विलाप’ काव्यांश में लक्ष्मण के प्रति राम के प्रेम के कौन-कौन-से पहलू अभिव्यक्त हुए हैं?(CBSE-2013)अथवातुलसीदास की संकलित चौपाइयों के आधार पर लक्ष्मण के प्रति रामं के स्नेह संबंधों पर प्रकाश डालिए। (CBSE-2010)उत्तर:शक्ति लगने से लक्ष्मण मूर्च्छित हो गए थे। उनकी यह दशा देखकर राम भावुक हो उठे। वे आम आदमी की तरह विलाप करने लगे। वे लक्ष्मण को वन में लाने के लिए स्वयं को दोषी मानते हैं। वे नारी हानि को भ्रातृहानि के समक्ष कुछ नहीं मानते। वे शोक व ग्लानि से पीड़ित थे। उनकी सारी संवेदनाएँ आम आदमी की तरह प्रकट हो गई।
प्रश्न 12.कुंभकरण के द्वारा पूछे जाने पर रावण ने अपनी व्याकुलता के बारे में क्या कहा और कुंभकरण से क्या सुनना पड़ा? (CBSE-2015)उत्तर:जब कुंभकरण ने रावण से उसकी व्याकुलता के बारे में पूछा तो रावण ने विस्तार से बताया कि उसने किस तरह सीता का हरण किया। फिर हनुमान ने अनेक राक्षसों को मार डाला और महान योद्धाओं का अंत कर दिया। कुंभकरण ने उसकी बात सुनकर उसे लताड़ा और कहा कि तूने जगत जानकी को चुराकर गलत किया। तेरा कल्याण अब संभव नहीं है।
प्रश्न 13.तुलसी के सवैया के आधार पर प्रतिपादित कीजिए कि उन्हें भी जातीय भेदभाव का दबाव झेलना पड़ा था? (CBSE-2015)उत्तर:कवि तुलसी लोगों से कहते हैं कि वे चाहे कुछ भी कह लें धूर्त अथवा तपस्वी, राजपूत अथवा जुलाहा। इससे उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता। वह किसी भी जाति से बँधे हुए नहीं है। इन पंक्तियों से पता चलता है कि उन्हें जातीय भेदभाव का दबाव झेलना पड़ा।
इन्हें भी जानेंचौपाई
चौपाई सम मात्रिक छंद है। यह चार पंक्तियों का होता है जिसकी प्रत्येक पंक्ति में 16-16 मात्राएँ होती हैं। चालीस चौपाइयों वाली रचना को चालीसा कहा जाता है-यह तथ्य लोकप्रसिद्ध है।
दोहादोहा अर्धसम मात्रिक छंद है। इसके सम चरणों (दूसरे और चौथे चरण) में 11-11 मात्राएँ होती हैं तथा विषम चरणों (पहले और तीसरे) में 13-13 मात्राएँ होती हैं। इनके साथ अंत लघु (1) वर्ण होता है।
सो��ठा
दोहे को उलट देने से सोरठा बन जाता है। इसके सम चरणों (दूसरे और चौथे चरण) में 13-13 मात्राएँ होती हैं तथा विषम चरणों (पहले और तीसरे) में 11-11 मात्राएँ होती हैं। परंतु दोहे के विपरीत इसके सम चरणों (दूसरे और चौथे चरण) में अंत्यानुप्रास या तुक नहीं रहती, विषम चरणों (पहले और तीसरे) में तुक होती है।
कवित्त
यह वार्णिक छंद है। इसे मनहरण भी कहते हैं। कवित्त के प्रत्येक चरण में 31-31 वर्ण होते हैं। प्रत्येक चरण के 16वें और फिर 15वें वर्ण पर यति रहती है। प्रत्येक चरण का अंतिम वर्ण गुरु होता है।
सवैया
चूँकि सवैया वार्णिक छंद है, इसलिए सवैया छंद के कई भेद हैं। ये भेद गणों के संयोजन के आधार पर बनते हैं। इनमें सबसे प्रसिद्ध मत्तगयंद सवैया है इसे मालती सवैया भी कहते हैं। सवैया के प्रत्येक चरण में 22 से 26 वर्ण होते हैं। यहाँ प्रस्तुत तुलसी का सवैया कई भेदों को मिलाकर बनता है।
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ghumteganesh · 5 years ago
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भगवान हनुमान को हजारों साल तक अमर रहने का वरदान क्यों मिला था ! दिल को छू लेनेवाली कहानी !
हनुमान के जीवित होने का राज
धर्म की रक्षा के लिए भगवान शिव ने अनेक अवतार लिए हैं.
  त्रेतायुग में भगवान श्रीराम की सहायता करने और दुष्टों का नाश करने के लिए भगवान शिव ने ही हनुमान के रूप में अवतार लिया था. हनुमानजी भगवान शिव के सबसे श्रेष्ठ अवतार कहे जाते हैं.
  रामायण हो या फिर महाभारत दोनों में कई जगह पर हनुमान अवतार का जिक्र किया गया है. अब रामायण तो हनुमान के बिना अधूरी ही है किन्तु महाभारत में भी अर्जुन के रथ से लेकर भीम की परीक्षा तक, कई जगह हनुमान के दर्शन हुए हैं.
  तो अब सवाल यह उठता है कि अगर रामायण के सभी पात्र बाद में अपना जीवन चक्र पूरा करके चले जाते हैं तो मात्र हनुमान ही क्यों हजारों लाखों साल बाद भी जीवित बताया जा रहा है. क्या है  हनुमान के जीवित होने का राज?
  तो आज आपको हम पहले हनुमान के जीवित होने का राज बता देते हैं और उसके बाद आपको बतायेंगे कि कैसे हनुमान भी माता सीता के पास अपनी जीवन लीला समाप्त करवाने गये थे –
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हनुमान के जीवित होने का राज –
वाल्मीकि रामायण के अनुसार
लंका में बहुत ढूढ़ेने के बाद भी जब माता सीता का पता नहीं चला तो हनुमानजी उन्हें मृत समझ बैठे, लेकिन फिर उन्हें भगवान श्रीराम का स्मरण हुआ और उन्होंने पुन: पूरी शक्ति से सीताजी की खोज प्रारंभ की और अशोक वाटिका में सीताजी को खोज निकाला. सीताजी ने हनुमानजी को उस समय अमरता का वरदान दिया था. इसलिए हनुमान हर युग में भगवान श्रीराम के भक्तों की रक्षा करते हैं.
  हनुमान चालीसा की एक चौपाई में भी लिखा है- ‘अष्ट सिद्धि नौ निधि के दाता। अस बर दीन्ह जानकी माता’.
  अर्थात – ‘आपको माता श्री जानकी से ऐसा वरदान मिला हुआ है जिससे आप किसी को भी आठों सिद्धियां और नौ निधियां दे सकते हैं.
  जब श्रीराम ने अपनी मृत्यु की घोषणा की –
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आपको शायद इस बात का ज्ञान ना हो कि भगवान श्री राम ने अपने जीवित समय में ही यह बता दिया था कि वह कब धरती के सफर को पूरा कर अब स्वर्गलोक में विराजमान होंगे. यह सुनकर सबसे ज्यादा दुःख जिसको हुआ था वह राम भक्त हनुमान जी ही थे. राम जी से यह खबर सुनते ही हनुमान जी माता सीता के पास जाते हैं और कहते हैं : –
  ‘हे माता मुझे आपने अजर-अमर होने का वरदान तो दिया किन्तु एक बात बतायें कि जब मेरे प्रभु राम ही धरती पर नहीं होंगे तो मैं यहाँ क्या करूँगा. मुझे अपना दिया हुआ अमरता का वरदान वापस ले लो.’
  हनुमान माता-सीता के सामने जिद पर अड़ जाते हैं और तब माता सीता ध्यानकर, राम को यहाँ आने के लिए बोलती हैं. कुछ ही देर में भगवान राम वहां प्रकट होते हैं और हनुमान को गले लगाते हुए बोलते हैं-
  ‘हनुमान मुझे पता था कि तुम सीता के पास आकर यही बोलोगे. देखो हनुमान धरती पर आने वाला हर प्राणी, चाहे वह संत है या देवता कोई भी अमर नहीं है. तुमको तो वरदान है हनुमान, क्योकि जब इस धरती पर और कोई नहीं होगा तो राम नाम लेने वालों का बेड़ा तुमको ही तो पार करना है. एक समय ऐसा आएगा जब धरती पर कोई देव अवतार नहीं होगा, पापी लोगों की संख्या अधिक होगी तब राम के भक्तों का उद्धार मेरा हनुमान ही तो करेगा. इसलिए तुमको अमरता का वरदान दिलवाया गया है हनुमान.’
  तब हनुमान अपने अमरता के वरदान को समझते हैं और राम की आज्ञा समझकर आज भी धरती पर विराजमान हैं. हनुमान को हर राम भक्त का बेड़ा पार करना है और जहाँ भी रामनाम लिया जाता है वहां हनुमान जरूर प्रकट होते हैं.
  ये था  हनुमान के जीवित होने का राज –
इसलिए आज कलयुग में राम नाम जपने वाला ही सुखी बताया गया
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margdarsanme · 4 years ago
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NCERT Class 12 Hindi Chapter 8 Laxman Murch aur Ram ka Bilap
NCERT Class 12 Hindi Chapter 8 :: Laxman Murch aur Ram ka Bilap
कवितावली (उत्तर कांड से), लक्ष्मण-मूच्छ और राम का विलाप
काव्य भाग
पाठ्यपुस्तक के प्रश्न-अभ्यास
पाठ के साथ
प्रश्न 1.कवितावली में उद्धृत छंदों के आधार पर स्पष्ट करें कि तुलसीदास को अपने युग की आर्थिक विषमता की अच्छी समझ है। (CBSE-2010, 2015)अथवा‘कवितावली’ के आधार पर पुष्टि कीजिए कि तुलसी को अपने समय की आर्थिक-सामाजिक समस्याओं की जानकारी थी। (CBSE-2016)उत्तर:‘कवितावली’ में उद्धृत छंदों के अध्ययन से पता चलता है कि तुलसीदास को अपने युग की आर्थिक विषमता की अच्छी समझ है। उन्होंने समकालीन समाज का यथार्थपरक चित्रण किया है। वे समाज के विभिन्न वगों का वर्णन करते हैं जो कई तरह के कार्य करके अपना निर्वाह करते हैं। तुलसी दास तो यहाँ तक बताते हैं कि पेट भरने के लिए लोग गलत-सही सभी कार्य करते हैं। उनके समय में भयंकर गरीबी व बेरोजगारी थी। गरीबी के कारण लोग अपनी संतानों तक को बेच देते थे। बेरोजगारी इतनी अधिक थी कि लोगों को भीख तक नहीं मिलती थी। दरिद्रता रूपी रावण ने हर तरफ हाहाकार मचा रखा था।
प्रश्न 2.पेट की आग का शमन ईश्वर ( राम ) भक्ति का मेघ ही कर सकता है—तुलसी का यह काव्य-सत्य क्या इस समय का भी युग-सत्य है? तुर्क संगत उत्तर दीजिए।उत्तर:जब पेट में आग जलती है तो उसे बुझाने के लिए व��यक्ति हर तरह का उलटा अथवा बुरा कार्य करता है, किंतु यदि वह ईश्वर का नाम जप ले तो उसकी अग्नि का शमन हो सकता है क्योंकि ईश्वर की कृपा से वह सब कुछ प्राप्त कर सकता है। तुलसी का यह काव्य सत्य आज भी उतना ही प्रासंगिक है जितना कि उस समय था। ईश्वर भक्ति का मेघ ही मनुष्य को अनुचित कार्य करने से रोकने की क्षमता रखता है।
प्रश्न 3.तुलसी ने यह कहने की ज़रूरत क्यों समझी? धूत कहौ, अवधूत कहौ, रजपूतु कहौ, जोलहा कहौ कोऊ/काहू की बेटीसों बेटा न ब्याहब, काहूकी जाति बिगार न सोऊ। इस सवैया में काहू के बेटासों बेटी न ब्याहब कहते तो सामाजिक अर्थ में क्या परिवर्तन आती?उत्तर:तुलसीदास के युग में जाति संबंधी नियम अत्यधिक कठोर हो गए थे। तुलसी के संबंध में भी समाज ने उनके कुल व जाति पर प्रश्नचिहन लगाए थे। कवि भक्त था तथा उसे सांसारिक संबंधों में कोई रुचि नहीं थी। वह कहता है कि उसे अपने बेटे का विवाह किसी की बेटी से नहीं करना। इससे किसी की जाति खराब नहीं होगी क्योंकि लड़की वाला अपनी जाति के वर ढूँढ़ता है। पुरुष-प्रधान समाज में लड़की की जाति विवाह के बाद बदल जाती है। तुलसी इस सवैये में अगर अपनी बेटी की शादी की बात करते तो संदर्भ में बहुत अंतर आ जाता। इससे तुलसी के परिवार की जाति खराब हो जाती। दूसरे, समाज में लड़की का विवाह न करना गलत समझा जाता है। तीसरे, तुलसी बिना जाँच के अपनी लड़की की शादी करते तो समाज में जाति-प्रथा पर कठोर आघात होता। इससे सामाजिक संघर्ष भी बढ़ सकता था।
प्रश्न 4.धूत कहौ ….. वाले छंद में ऊपर से सरल व निरीह दिखाई पड़ने वाले तुलसी की भीतरी असलियत एक स्वाभिमानी भक्त हृदय की है। इससे आप कहाँ तक सहमत हैं? (CBSE-2013, 2014, 2017)उत्तर:तुलसीदास का जीवन सदा अभावों में बीता, लेकिन उन्होंने अपने स्वाभिमान को जगाए रखा। इसी प्रकार के भाव उनकी भक्ति में भी आए हैं। वे राम के सामने गिड़गिड़ाते नहीं बल्कि जो कुछ उनसे प्राप्त करना चाहते हैं वह भक्त के अधिकार की दृष्टि से प्राप्त करना चाहते हैं। उन्होंने अपनी स्वाभिमानी भक्ति का परिचय देते हुए राम से यही कहा है कि मुझ पर कृपा करो तो भक्त समझकर न कि कोई याचक या भिखारी समझकर।।
प्रश्न 5.व्याख्या करें(क) मम हित लागि तजेहु पितु माता। सहेहु बिपिन हिम आतप बाता।जौं जनतेउँ बन बंधु बिछोहू। पितु बचन मनतेउँ नहिं ओहू॥(ख) जथा पंख बिनु खग अति दीना। मनि बिनु फनि करिबर कर हीना।अस मम जिवन बंधु बिनु तोही। जौं जड़ दैव जिआवै मोही॥(ग) माँग के खैबो, मसीत को सोइबो, लैबोको एकु ने दैबको दोऊ॥(घ) ऊँचे नीचे करम, धरम-अधरम करि, पेट को ही पचत, बेचत बेटा-बेटकी॥उत्तर:(क) लक्ष्मण के मूर्चिछत होने पर राम विलाप करते हुए कहते हैं कि तुमने मेरे हित के लिए माता-पिता का त्याग कर दिया और वनवास स्वीकार किया। तुमने वन में रहते हुए सर्दी, धूप, आँधी आदि सहन किया। यदि मुझे पहले ज्ञात होता कि वन में मैं अपने भाई से बिछड़ जाऊँगा तो मैं पिता की बात नहीं मानता और न ही तुम्हें अपने साथ लेकर वन आता। राम लक्ष्मण की नि:स्वार्थ सेवा को याद कर रहे हैं।
(ख) मूर्चिछत लक्ष्मण को गोद में लेकर राम विलाप कर रहे हैं कि तुम्हारे बिना मेरी दशा ऐसी हो गई है जैसे पंखों के बिना पक्षी की, मणि के बिना साँप की और सँड़ के बिना हाथी की स्थिति दयनीय हो जाती है। ऐसी स्थिति में मैं अक्षम व असहाय हो गया हूँ। यदि भाग्य ने तुम्हारे बिना मुझे जीवित रखा तो मेरा जीवन इसी तरह शक्तिहीन रहेगा। दूसरे शब्दों में, मेरे तेज व पराक्रम के पीछे तुम्हारी ही शक्ति कार्य करती रही है।
(ग) तुलसीदास ने समाज से अपनी तटस्थता की बात कही है। वे कहते हैं कि समाज की बातों का उन पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता। वे किसी पर आश्रित नहीं हैं वे मात्र राम के सेवक हैं। जीवन-निर्वाह के लिए भिक्षावृत्ति करते हैं तथा मस्जिद में सोते हैं। उन्हें संसार से कोई लेना-देना नहीं है।
(घ) तुलसीदास ने अपने समय की आर्थिक दशा का यथार्थपरक चित्रण किया है। इस समय लोग छोटे-बड़े, गलतसही सभी प्रकार के कार्य कर रहे हैं, क्योंकि उन्हें अपनी भूख मिटानी है। वे कर्म की प्रवृत्ति व तरीके की परवाह नहीं करते। पेट की आग को शांत करने के लिए वे अपने बेटा-बेटी अर्थात संतानों को भी बेचने के लिए विवश हैं अर्थात पेट भरने के लिए व्यक्ति कोई भी पाप कर सकता है।
प्रश्न 6.भ्रातृशोक में हुई राम की दशा को कवि ने प्रभु की नर लीला की अपेक्षा सच्ची मानवीय अनुभूति के रूप में रचा है। क्या आप इससे सहमत हैं? तर्कपूर्ण उत्तर दीजिए।उत्तर:जब लक्ष्मण को शक्ति बाण लगा तो राम एकदम विह्वल हो उठे। वे ऐसे रोए जैसे कोई बालक पिता से बिछुड़कर होता है। सारी मानवीय संवेदनाएँ उन्होंने प्रकट कर दीं। जिस प्रकार मानव-मानव के लिए रोता है ठीक वैसा ही राम ने किया। राम के ऐसे रूप को देखकर यही कहा जा सकता है कि राम की दशा को कवि ने प्रभु की नर लीला की अपेक्षा सच्ची मानवीय अनुभूति के रूप में रचा है। मानव में अपेक्षित सारी अनुभूतियाँ इस शोक सभा में दिखाई देती हैं।
प्रश्न 7.शोकग्रस्त माहौल में हनुमान के अवतरण को करुण रस के बीच वीर रस का आविर्भाव क्यों कहा गया है?उत्तर:हनुमान लक्ष्मण के इलाज के लिए संजीवनी बूटी लाने हिमालय पर्वत गए थे। उन्हें आने में देर हो रही थी। इधर राम बहुत व्याकुल हो रहे थे। उनके विलाप से वानर सेना में शोक की लहर थी। चारों तरफ शोक का माहौल था। इसी बीच हनुमान संजीवनी बूटी लेकर आ गए। सुषेण वैद्य ने तुरंत संजीवनी बूटी से दवा तैयार कर के लक्ष्मण को पिलाई तथा लक्ष्मण ठीक हो गए। लक्ष्मण के उठने से राम का शोक समाप्त हो गया और सेना में उत्साह की लहर दौड़ गई। लक्ष्मण स्वयं उत्साही वीर थे। उनके आ जाने से सेना का खोया पराक्रम प्रगाढ़ होकर वापस आ गया। इस तरह हनुमान द्वारा पर्वत उठाकर लाने से शोक-ग्रस्त माहौल में वीर रस का आविर्भाव हो गया था।
प्रश्न 8.“जैहउँ अवध कवन मुहुँ लाई । नारि हेतु प्रिय भाइ गॅवाई॥बरु अपजस सहतेउँ जग माहीं। नारि हानि बिसेष छति नाहीं॥भाई के शोक में डूबे राम के इस प्रलाप-वचन में स्त्री के प्रति कैसा सामाजिक दृष्टिकोण संभावित है?उत्तर:इस वचन में नारी के प्रति नकारात्मक दृष्टिकोण दिखाई देता है। राम ने अपनी पत्नी के खो जाने से बढ़कर लक्ष्मण के मूर्छित हो जाने को महत्त्व दिया है। उन्हें इस बात का पछतावा होता है कि नारी के लिए मैंने भाई खो दिया है यह सबसे बड़ा कलंक है। यदि नारी खो जाए तो उसके खो जाने से कोई बड़ी हानि नहीं होती। नारी से बढ़कर तो भाई-बंधु हैं जिनके कारण व्यक्ति समाज में प्रतिष्ठा पाता है, यदि वही खो जाए तो माथे पर जीवनभर के लिए कलंक लग जाता है।
पाठ के आसपास
प्रश्न 1.कालिदास के रघुवंश महाकाव्य में पत्नी (इंदुमती) के मृत्यु-शोक पर ‘अज’ तथा निराला की ‘सरोज-स्मृति’ में पुत्री (सरोज) के मृत्यु-शोक पर पिता के करुण उद्गार निकले हैं। उनसे भ्रातृशोक में डूबे राम के इस विलाप की तुलना करें।उत्तर:‘सरोज-स्मृति’ में कवि निराला ने अपनी पुत्री की मृत्यु पर उद्गार व्यक्त किए थे। ये एक असहाय पिता के उद्गार थे जो अपनी पुत्री की आकस्मिक मृत्यु के कारण उपजे थे। भ्रातृशोक में डूबे राम का विलाप निराला की तुलना में कम है। लक्ष्मण अभी सिर्फ़ मूर्चिछत ही हुए थे। उनके जीवित होने की आशा बची हुई थी। दूसरे, सरोज की मृत्यु के लिए निराला की कमजोर आर्थिक दशा जिम्मेदार थी। वे उसकी देखभाल नहीं कर पाए थे, जबकि राम के साथ ऐसी समस्या नहीं थी।
प्रश्न 2.‘पेट ही को पचत, बेचते बेटा-बेटकी’ तुलसी के युग का ही नहीं आज के युग का भी सत्य है। भुखमरी में किसानों की आत्महत्या और संतानों (खासकर बेटियों) को भी बेच डालने की हृदयविदारक घटनाएँ हमारे देश में घटती रही हैं। वर्तमान परिस्थितियों और तुलसी के युग की तुलना करें। (CBSE-2013)उत्तर:भुखमरी की स्थिति बहुत दयनीय होती है। व्यक्ति भुखमरी की इस दयनीय स्थिति में हर प्रकार का नीच कार्य करता है। कर्ज लेता है, बेटा-बेटी तक को बेच देता है। जब कर्ज का बोझ बढ़ता जाता है तो आत्महत्या तक कर लेता है। तुलसी का समाज भी लगभग वैसा ही था जैसा कि आज का भारतीय मध्यवर्गीय समाज। उस समय की परिस्थिति भी बहुत भयानक थी। लोगों के पास कमाने का कोई साधन न था ऊपर से अकाल ने लोगों को भुखमरी के किनारे तक पहुँचा दिया। इस स्थिति से तंग आकर व्यक्ति वे सभी अनैतिक कार्य करने लगे। बेटा-बेटी का सौदा करने लगे। यदि साहूकार का ऋण नहीं उतरता है तो स्वयं मर जाते थे। ठीक यही परिस्थिति हमारे समाज की है। किसान कर्ज न चुकाने की स्थिति में आत्महत्याएँ कर रहे हैं। कह सकते हैं कि तुलसी का युग और आज का युग एक ही है। आर्थिक दृष्टि से दोनों युगों में विषमताएँ रहीं।
प्रश्न 3.तुलसी के युग की बेकारी के क्या कारण हो सकते हैं? आज की बेकारी की समस्या के कारणों के साथ उसे मिलाकर कक्षा में परिचर्चा करें।उत्तर:
तुलसी के युग में बेकारी के निम्नलिखित कारण हो सकते हैं-
खेती के लिए पानी उपलब्ध न होना।
बार-बार अकाल पडना।
अराजकता।
व्यापार व वाणिज्य में गिरावट।
आज बेकारी के कारण पहले की अपेक्षा भिन्न हैं-
भ्रष्टाचार।
शारीरिक श्रम से नफ़रत करना।
कृषि-कार्य के प्रति अरुचि।
जनसंख्या विस्फोट, अशिक्षा तथा अकुशलता।
प्रश्न 4.राम कौशल्या के पुत्र थे और लक्ष्मण सुमित्रा के। इस प्रकार वे परस्पर सहोदर ( एक ही माँ के पेट से जन्मे ) नहीं थे। फिर, राम ने उन्हें लक्ष्य कर ऐसा क्यों कहा-“मिलइ न जगत सहोदर भ्राता”? इस पर विचार करें।उत्तर:राम और लक्ष्मण का जन्म यद्यपि एक ही माँ के पेट से नहीं हुआ था, लेकिन इनके पिता एक ही थे-महाराज दशरथ। इसलिए राम ने लक्ष्मण को सहोदर भ्राता कहा। लक्ष्मण ने सदा राम की सेवा की। उनके सुख के लिए अपने सुखों का त्याग कर दिया। केवल एक ही पेट से जन्म लेने वाले सगे नहीं होते बल्कि वही भाई सहोदर होता है जो पारिवारिक संबंधों को अच्छी तरह निभाता है। लक्ष्मण ने श्रीराम के दुख दूर करने के लिए जीवनभर कष्ट उठाए। राम का छोटा-सा दुख भी उनसे देखा नहीं जाता था। इसलिए राम ने उन्हें लक्ष्य कर ‘मिलइ न जगत सहोदर भ्राता’ कहा।
प्रश्न 5.यहाँ कवि तुलसी के दोहा, चौपाई, सोरठा, कवित्त, सवैया-ये पाँच छंद प्रयुक्त हैं। इसी प्रकार तुलसी साहित्य में और छंद तथा काव्य-रूप आए हैं। ऐसे छंदों व काव्य-रूपों की सूची बनाएँ।उत्तर:काव्य-रूप-प्रबंध काव्य- रामचरितमानस (महाकाव्य)।मुक्तक काव्य- विनयपत्रिका।गेय पद शैली- गीतावली, कृष्ण गीतावली।
अन्य महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1.तुलसीदास का समाज कैसा था? इस बारे में लिखिए।उत्तर:तुलसीदास का समाज ज्यादा बेहतर नहीं था। सामाजिक मान्यताएँ खत्म होती जा रही थीं। परंपराएँ टूटती जा रही थीं। लोगों के पास कोई रोजगार नहीं था। धार्मिक कट्टरता व्याप्त थी। अंधविश्वासों के चक्र में पूरा समाज जकड़ा हुआ था। लोगों ने मर्यादाओं को ताक पर रख दिया था। नारी की स्थिति बदतर थी। उसकी हालत सबसे खराब थी।
प्रश्न 2.तुलसी युग की आर्थिक विषमता के संदर्भ में लिखें।उत्तर:वर्तमान समाज की तरह तुलसी युग की आर्थिक स्थिति भी बहुत दयनीय थी। किसान को खेती नहीं थी तो व्यापारी के पास व्यापार नहीं था। लोग केवल यही सोचते रहते कि क्या करें, कहाँ जाएँ? इसी फेर में रहते कि धन कैसे और कहाँ से प्राप्त किया जाए? लोग कर्जा लेकर जीवनयापन करते थे और जब कर्जा बढ़ जाता तो आत्महत्या कर लेते थे।
प्रश्न 3.लक्ष्मण के मूर्छित हो जाने पर राम क्या सोचने लगे?उत्तर:जब लक्ष्मण को शक्तिबाण लगा तो वे मूर्छित हो गए। यह देखकर राम भावुक हो उठे। वे सोचने लगे कि इस वन में आकर मैंने पहले तो जानकी को खो दिया अब अपने भाई को खोने जा रहा हूँ। केवल एक स्त्री के कारण मेरा भाई आज मृत्यु की गोद में सो रहा है। यदि स्त्री खो जाए तो कोई बड़ी हानि नहीं होती किंतु भाई के खो जाने से जीवनभर कलंक मेरे माथे पर रहेगा।
प्रश्न 4.स्त्री के प्रति तुलसी युग का दृष्टिकोण कैसा था? (CBSE-2010)उत्तर:तुलसी का युग स्त्रियों के लिए बहुत कष्टदायी था। लोग स्त्री को घोर अपमान करते थे। पैसों के लिए वे बेटी तक को बेच देते थे। इस काल में स्त्रियों का हर प्रकार से शोषण होता था। नारी के बारे में लोगों की धारणा संकुचित थी। नारी केवल भोग की वस्तु थी। इसी कारण उसकी दशा दयनीय थी। वह शोषण की चक्की में पिसती जा रही थी।
प्रश्न 5.क्या तुलसी का साहित्य आज भी प्रासंगिक है?उत्तर:तुलसी ने लगभग 450 वर्ष पहले जो कहा था, वह आज भी प्रासंगिक है। उन्होंने अपने समाज की सभी समस्याओं का चित्रण किया। इन्हीं समस्याओं के कारण तुलसी युग का समाज पूरी तरह से बिखर चुका था। उन्होंने इन सारी विद्रुपताओं को देखा और उसका चित्रण किया। जिस प्रकार की परिस्थितियाँ उस युग में विद्यमान थी ठीक वही परिस्थितियाँ आज भी विद्यमान हैं। इसीलिए तुलसीदास का साहित्य आज भी प्रासंगिक है।
प्रश्न 6.तुलसी की काव्य भाषा के बारे में बताइए।उत्तर:तुलसी ने मुख्य रूप से अवधी भाषा का प्रयोग किया है। उस युग में इसी भाषा का प्रचलन था। लोगों के बीच इसी व्यवहार की भाषा प्रचलित थी। इसीलिए तुलसी ने इस लोक व्यवहार की भाषा का प्रयोग किया है।
प्रश्न 7.तुलसीदास की अलंकार योजना पर प्रकाश डालिए।उत्तर:तुलसीदास के काव्य में कई अलंकारों का प्रयोग हुआ है। उन्होंने मुख्य रूप से उपमा, अनुप्रास, रूपक, अतिश्योक्ति, वीरता आदि अलंकारों का प्रयोग किया है। इन अलंकारों के प्रयोग से भाषा में चमत्कार उत्पन्न हुआ है। वह अधिक प्रभावी बन गई है।
प्रश्न 8.तुलसी की छंद योजना कैसी है?उत्तर:तुलसी ने दोहे और चौपाई छंद का प्रयोग प्रमुखता से किया है। उन्होंने अपने सारे काव्यों में इन्हीं छंदों का प्रयोग किया। इनका प्रयोग करके तुलसी ने अपनी बात को अधिक स्पष्ट ढंग से कह दिया है। तुलसी की चौपाइयाँ इतनी सरल और प्रभावी बन पड़ी हैं कि लोग आज भी इनका काव्य पाठ करते हैं। तुलसी ने कहीं-कहीं हरिगीतिका छंद का प्रयोग भी किया है, लेकिन न्यून मात्रा में। लेकिन बहुलता दोहा और चौपाई छंदों की रही है।
प्रश्न 9.काव्य-सौंदर्य स्पष्ट करें-
खेती न किसान को, भिखारी को न भीख, बलिबनिक को बनिज, न चाकर को चाकरी।जीविका बिहीन लोग सीद्यमान सोच बस,कहें एक एकन सों ‘कहाँ जाई, का करी ?’बेदहूँ पुरान कही, लोकहूँ बिलोकिअत,साँकरे सबै पै, राम! रावरें कृपा करी।दारिद-दसानन दबाई दुनी, दीनबंधुदुरित-दहन देखि तुलसी हेहा करी ॥
उत्तर:इस पद में कवि ने तत्कालीन समाज को यथार्थपरक चित्रण किया है। कवि संकट में भगवान को ही सहारा मानता है। कवि ने दीनबंधु, दुरित दहन आदि शब्दों के द्वारा श्रीराम के विशेषणों पर प्रकाश डाला है। ‘दारिद-दसानन, दुरित-दहन’ में रूपक अलंकार है। पूरे पद में अनुप्रास अलंकार की छटा है। ब्रजभाषा का लालित्य है। गीतिकाव्य की सभी विशेषताएँ हैं। मनहर घनाक्षरी छंद का प्रयोग है। शब्द चयन उपयुक्त है। ‘हहा’ शब्द से भाव गंभीरता आई है।
प्रश्न 10.काव्य-सौंदर्य स्पष्ट करेंतव प्रताप उर राखि प्रभु जैहउँ नाथ तुरंत।अस कहि आयसु पाइ पद बंदि चलेउ हनुमंत॥भरत बाहु बल सील गुन प्रभु पद प्रीति अपार।मन महुँ जात सराहत पुनि पुनि पवनकुमार॥उत्तर:इस पद में हनुमान जी द्वारा संजीवनी बूटी लाने का संकल्प दिखाया गया है। ‘पाद पद, बाहुबल, प्रभु पद प्रीति, मन महँ’ अनुप्रास अलंकार है। पुनि-पुनि’ में पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार है। रूपक अलंकार है। अवधी को बोलचाल रूप है। गेयतत्व की विद्यमानता है। दोहा छंद है। वीर रस का उद्रेक हुआ है। अमिधा शब्दशक्ति है।
प्रश्न 11.लक्ष्मण मूच्र्छा और राम का विलाप’ काव्यांश में लक्ष्मण के प्रति राम के प्रेम के कौन-कौन-से पहलू अभिव्यक्त हुए हैं?(CBSE-2013)अथवातुलसीदास की संकलित चौपाइयों के आधार पर लक्ष्मण के प्रति रामं के स्नेह संबंधों पर प्रकाश डालिए। (CBSE-2010)उत्तर:शक्ति लगने से लक्ष्मण मूर्च्छित हो गए थे। उनकी यह दशा देखकर राम भावुक हो उठे। वे आम आदमी की तरह विलाप करने लगे। वे लक्ष्मण को वन में लाने के लिए स्वयं को दोषी मानते हैं। वे नारी हानि को भ्रातृहानि के समक्ष कुछ नहीं मानते। वे शोक व ग्लानि से पीड़ित थे। उनकी सारी संवेदनाएँ आम आदमी की तरह प्रकट हो गई।
प्रश्न 12.कुंभकरण के द्वारा पूछे जाने पर रावण ने अपनी व्याकुलता के बारे में क्या कहा और कुंभकरण से क्या सुनना पड़ा? (CBSE-2015)उत्तर:जब कुंभकरण ने रावण से उसकी व्याकुलता के बारे में पूछा तो रावण ने विस्तार से बताया कि उसने किस तरह सीता का हरण किया। फिर हनुमान ने अनेक राक्षसों को मार डाला और महान योद्धाओं का अंत कर दिया। कुंभकरण ने उसकी बात सुनकर उसे लताड़ा और कहा कि तूने जगत जानकी को चुराकर गलत किया। तेरा कल्याण अब संभव नहीं है।
प्रश्न 13.तुलसी के सवैया के आधार पर प्रतिपादित कीजिए कि उन्हें भी जातीय भेदभाव का दबाव झेलना पड़ा था? (CBSE-2015)उत्तर:कवि तुलसी लोगों से कहते हैं कि वे चाहे कुछ भी कह लें धूर्त अथवा तपस्वी, राजपूत अथवा जुलाहा। इससे उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता। वह किसी भी जाति से बँधे हुए नहीं है। इन पंक्तियों से पता चलता है कि उन्हें जातीय भेदभाव का दबाव झेलना पड़ा।
इन्हें भी जानेंचौपाई
चौपाई सम मात्रिक छंद है। यह चार पंक्तियों का होता है जिसकी प्रत्येक पंक्ति में 16-16 मात्राएँ होती हैं। चालीस चौपाइयों वाली रचना को चालीसा कहा जाता है-यह तथ्य लोकप्रसिद्ध है।
दोहादोहा अर्धसम मात्रिक छंद है। इसके सम चरणों (दूसरे और चौथे चरण) में 11-11 मात्राएँ होती हैं तथा विषम चरणों (पहले और तीसरे) में 13-13 मात्राएँ होती हैं। इनके साथ अंत लघु (1) वर्ण होता है।
सोरठा
दोहे को उलट देने से सोरठा बन जाता है। इसके सम चरणों (दूसरे और चौथे चरण) में 13-13 मात्राएँ होती हैं तथा विषम चरणों (पहले और तीसरे) में 11-11 मात्राएँ होती हैं। परंतु दोहे के विपरीत इसके सम चरणों (दूसरे और चौथे चरण) में अंत्यानुप्रास या तुक नहीं रहती, विषम चरणों (पहले और तीसरे) में तुक होती है।
कवित्त
यह वार्णिक छंद है। इसे मनहरण भी कहते हैं। कवित्त के प्रत्येक चरण में 31-31 वर्ण होते हैं। प्रत्येक चरण के 16वें और फिर 15वें वर्ण पर यति रहती है। प्रत्येक चरण का अंतिम वर्ण गुरु होता है।
सवैया
चूँकि सवैया वार्णिक छंद है, इसलिए सवैया छंद के कई भेद हैं। ये भेद गणों के संयोजन के आधार पर बनते हैं। इनमें सबसे प्रसिद्ध मत्तगयंद सवैया है इसे मालती सवैया भी कहते हैं। सवैया के प्रत्येक चरण में 22 से 26 वर्ण होते हैं। यहाँ प्रस्तुत तुलसी का सवैया कई भेदों को मिलाकर बनता है।
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margdarsanme · 4 years ago
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NCERT Class 12 Hindi Chapter 8 Laxman Murch aur Ram ka Bilap
NCERT Class 12 Hindi Chapter 8 :: Laxman Murch aur Ram ka Bilap
कवितावली (उत्तर कांड से), लक्ष्मण-मूच्छ और राम का विलाप
काव्य भाग
पाठ्यपुस्तक के प्रश्न-अभ्यास
पाठ के साथ
प्रश्न 1.कवितावली में उद्धृत छंदों के आधार पर स्पष्ट करें कि तुलसीदास को अपने युग की आर्थिक विषमता की अच्छी समझ है। (CBSE-2010, 2015)अथवा‘कवितावली’ के आधार पर पुष्टि कीजिए कि तुलसी को अपने समय की आर्थिक-सामाजिक समस्याओं की जानकारी थी। (CBSE-2016)उत्तर:‘कवितावली’ में उद्धृत छंदों के अध्ययन से पता चलता है कि तुलसीदास को अपने युग की आर्थिक विषमता की अच्छी समझ है। उन्होंने समकालीन समाज का यथार्थपरक चित्रण किया है। वे समाज के विभिन्न वगों का वर्णन करते हैं जो कई तरह के कार्य करके अपना निर्वाह करते हैं। तुलसी दास तो यहाँ तक बताते हैं कि पेट भरने के लिए लोग गलत-सही सभी कार्य करते हैं। उनके समय में भयंकर गरीबी व बेरोजगारी थी। गरीबी के कारण लोग अपनी संतानों तक को बेच देते थे। बेरोजगारी इतनी अधिक थी कि लोगों को भीख तक नहीं मिलती थी। दरिद्रता रूपी रावण ने हर तरफ हाहाकार मचा रखा था।
प्रश्न 2.पेट की आग का शमन ईश्वर ( राम ) भक्ति का मेघ ही कर सकता है—तुलसी का यह काव्य-सत्य क्या इस समय का भी युग-सत्य है? तुर्क संगत उत्तर दीजिए।उत्तर:जब पेट में आग जलती है तो उसे बुझाने के लिए व्यक्ति हर तरह का उलटा अथवा बुरा कार्य करता है, किंतु यदि वह ईश्वर का नाम जप ले तो उसकी अग्नि का शमन हो सकता है क्योंकि ईश्वर की कृपा से वह सब कुछ प्राप्त कर सकता है। तुलसी का यह काव्य सत्य आज भी उतना ही प्रासंगिक है जितना कि उस समय था। ईश्वर भक्ति का मेघ ही मनुष्य को अनुचित कार्य करने से रोकने की क्षमता रखता है।
प्रश्न 3.तुलसी ने यह कहने की ज़रूरत क्यों समझी? धूत कहौ, अवधूत कहौ, रजपूतु कहौ, जोलहा कहौ कोऊ/काहू की बेटीसों बेटा न ब्याहब, काहूकी जाति बिगार न सोऊ। इस सवैया में काहू के बेटासों बेटी न ब्याहब कहते तो सामाजिक अर्थ में क्या परिवर्तन आती?उत्तर:तुलसीदास के युग में जाति संबंधी नियम अत्यधिक कठोर हो गए थे। तुलसी के संबंध में भी समाज ने उनके कुल व जाति पर प्रश्नचिहन लगाए थे। कवि भक्त था तथा उसे सांसारिक संबंधों में कोई रुचि नहीं थी। वह कहता है कि उसे अपने बेटे का विवाह किसी की बेटी से नहीं करना। इससे किसी की जाति खराब नहीं होगी क्योंकि लड़की वाला अपनी जाति के वर ढूँढ़ता है। पुरुष-प्रधान समाज में लड़की की जाति विवाह के बाद ब���ल जाती है। तुलसी इस सवैये में अगर अपनी बेटी की शादी की बात करते तो संदर्भ में बहुत अंतर आ जाता। इससे तुलसी के परिवार की जाति खराब हो जाती। दूसरे, समाज में लड़की का विवाह न करना गलत समझा जाता है। तीसरे, तुलसी बिना जाँच के अपनी लड़की की शादी करते तो समाज में जाति-प्रथा पर कठोर आघात होता। इससे सामाजिक संघर्ष भी बढ़ सकता था।
प्रश्न 4.धूत कहौ ….. वाले छंद में ऊपर से सरल व निरीह दिखाई पड़ने वाले तुलसी की भीतरी असलियत एक स्वाभिमानी भक्त हृदय की है। इससे आप कहाँ तक सहमत हैं? (CBSE-2013, 2014, 2017)उत्तर:तुलसीदास का जीवन सदा अभावों में बीता, लेकिन उन्होंने अपने स्वाभिमान को जगाए रखा। इसी प्रकार के भाव उनकी भक्ति में भी आए हैं। वे राम के सामने गिड़गिड़ाते नहीं बल्कि जो कुछ उनसे प्राप्त करना चाहते हैं वह भक्त के अधिकार की दृष्टि से प्राप्त करना चाहते हैं। उन्होंने अपनी स्वाभिमानी भक्ति का परिचय देते हुए राम से यही कहा है कि मुझ पर कृपा करो तो भक्त समझकर न कि कोई याचक या भिखारी समझकर।।
प्रश्न 5.व्याख्या करें(क) मम हित लागि तजेहु पितु माता। सहेहु बिपिन हिम आतप बाता।जौं जनतेउँ बन बंधु बिछोहू। पितु बचन मनतेउँ नहिं ओहू॥(ख) जथा पंख बिनु खग अति दीना। मनि बिनु फनि करिबर कर हीना।अस मम जिवन बंधु बिनु तोही। जौं जड़ दैव जिआवै मोही॥(ग) माँग के खैबो, मसीत को सोइबो, लैबोको एकु ने दैबको दोऊ॥(घ) ऊँचे नीचे करम, धरम-अधरम करि, पेट को ही पचत, बेचत बेटा-बेटकी॥उत्तर:(क) लक्ष्मण के मूर्चिछत होने पर राम विलाप करते हुए कहते हैं कि तुमने मेरे हित के लिए माता-पिता का त्याग कर दिया और वनवास स्वीकार किया। तुमने वन में रहते हुए सर्दी, धूप, आँधी आदि सहन किया। यदि मुझे पहले ज्ञात होता कि वन में मैं अपने भाई से बिछड़ जाऊँगा तो मैं पिता की बात नहीं मानता और न ही तुम्हें अपने साथ लेकर वन आता। राम लक्ष्मण की नि:स्वार्थ सेवा को याद कर रहे हैं।
(ख) मूर्चिछत लक्ष्मण को गोद में लेकर राम विलाप कर रहे हैं कि तुम्हारे बिना मेरी दशा ऐसी हो गई है जैसे पंखों के बिना पक्षी की, मणि के बिना साँप की और सँड़ के बिना हाथी की स्थिति दयनीय हो जाती है। ऐसी स्थिति में मैं अक्षम व असहाय हो गया हूँ। यदि भाग्य ने तुम्हारे बिना मुझे जीवित रखा तो मेरा जीवन इसी तरह शक्तिहीन रहेगा। दूसरे शब्दों में, मेरे तेज व पराक्रम के पीछे तुम्हारी ही शक्ति कार्य करती रही है।
(ग) तुलसीदास ने समाज से अपनी तटस्थता की बात कही है। वे कहते हैं कि समाज की बातों का उन पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता। वे किसी पर आश्रित नहीं हैं वे मात्र राम के सेवक हैं। जीवन-निर्वाह के लिए भिक्षावृत्ति करते हैं तथा मस्जिद में सोते हैं। उन्हें संसार से कोई लेना-देना नहीं है।
(घ) तुलसीदास ने अपने समय की आर्थिक दशा का यथार्थपरक चित्रण किया है। इस समय लोग छोटे-बड़े, गलतसही सभी प्रकार के कार्य कर रहे हैं, क्योंकि उन्हें अपनी भूख मिटानी है। वे कर्म की प्रवृत्ति व तरीके की परवाह नहीं करते। पेट की आग को शांत करने के लिए वे अपने बेटा-बेटी अर्थात संतानों को भी बेचने के लिए विवश हैं अर्थात पेट भरने के लिए व्यक्ति कोई भी पाप कर सकता है।
प्रश्न 6.भ्रातृशोक में हुई राम की दशा को कवि ने प्रभु की नर लीला की अपेक्षा सच्ची मानवीय अनुभूति के रूप में रचा है। क्या आप इससे सहमत हैं? तर्कपूर्ण उत्तर दीजिए।उत्तर:जब लक्ष्मण को शक्ति बाण लगा तो राम एकदम विह्वल हो उठे। वे ऐसे रोए जैसे कोई बालक पिता से बिछुड़कर होता है। सारी मानवीय संवेदनाएँ उन्होंने प्रकट कर दीं। जिस प्रकार मानव-मानव के लिए रोता है ठीक वैसा ही राम ने किया। राम के ऐसे रूप को देखकर यही कहा जा सकता है कि राम की दशा को कवि ने प्रभु की नर लीला की अपेक्षा सच्ची मानवीय अनुभूति के रूप में रचा है। मानव में अपेक्षित सारी अनुभूतियाँ इस शोक सभा में दिखाई देती हैं।
प्रश्न 7.शोकग्रस्त माहौल में हनुमान के अवतरण को करुण रस के बीच वीर रस का आविर्भाव क्यों कहा गया है?उत्तर:हनुमान लक्ष्मण के इलाज के लिए संजीवनी बूटी लाने हिमालय पर्वत गए थे। उन्हें आने में देर हो रही थी। इधर राम बहुत व्याकुल हो रहे थे। उनके विलाप से वानर सेना में शोक की लहर थी। चारों तरफ शोक का माहौल था। इसी बीच हनुमान संजीवनी बूटी लेकर आ गए। सुषेण वैद्य ने तुरंत संजीवनी बूटी से दवा तैयार कर के लक्ष्मण को पिलाई तथा लक्ष्मण ठीक हो गए। लक्ष्मण के उठने से राम का शोक समाप्त हो गया और सेना में उत्साह की लहर दौड़ गई। लक्ष्मण स्वयं उत्साही वीर थे। उनके आ जाने से सेना का खोया पराक्रम प्रगाढ़ होकर वापस आ गया। इस तरह हनुमान द्वारा पर्वत उठाकर लाने से शोक-ग्रस्त माहौल में वीर रस का आविर्भाव हो गया था।
प्रश्न 8.“जैहउँ अवध कवन मुहुँ लाई । नारि हेतु प्रिय भाइ गॅवाई॥बरु अपजस सहतेउँ जग माहीं। नारि हानि बिसेष छति नाहीं॥भाई के शोक में डूबे राम के इस प्रलाप-वचन में स्त्री के प्रति कैसा सामाजिक दृष्टिकोण संभावित है?उत्तर:इस वचन में नारी के प्रति नकारात्मक दृष्टिकोण दिखाई देता है। राम ने अपनी पत्नी के खो जाने से बढ़कर लक्ष्मण के मूर्छित हो जाने को महत्त्व दिया है। उन्हें इस बात का पछतावा होता है कि नारी के लिए मैंने भाई खो दिया है यह सबसे बड़ा कलंक है। यदि नारी खो जाए तो उसके खो जाने से कोई बड़ी हानि नहीं होती। नारी से बढ़कर तो भाई-बंधु हैं जिनके कारण व्यक्ति समाज में प्रतिष्ठा पाता है, यदि वही खो जाए तो माथे पर जीवनभर के लिए कलंक लग जाता है।
पाठ के आसपास
प्रश्न 1.कालिदास के रघुवंश महाकाव्य में पत्नी (इंदुमती) के मृत्यु-शोक पर ‘अज’ तथा निराला की ‘सरोज-स्मृति’ में पुत्री (सरोज) के मृत्यु-शोक पर पिता के करुण उद्गार निकले हैं। उनसे भ्रातृशोक में डूबे राम के इस विलाप की तुलना करें।उत्तर:‘सरोज-स्मृति’ में कवि निराला ने अपनी पुत्री की मृत्यु पर उद्गार व्यक्त किए थे। ये एक असहाय पिता के उद्गार थे जो अपनी पुत्री की आकस्मिक मृत्यु के कारण उपजे थे। भ्रातृशोक में डूबे राम का विलाप निराला की तुलना में कम है। लक्ष्मण अभी सिर्फ़ मूर्चिछत ही हुए थे। उनके जीवित होने की आशा बची हुई थी। दूसरे, सरोज की मृत्यु के लिए निराला की कमजोर आर्थिक दशा जिम्मेदार थी। वे उसकी देखभाल नहीं कर पाए थे, जबकि राम के साथ ऐसी समस्या नहीं थी।
प्रश्न 2.‘पेट ही को पचत, बेचते बेटा-बेटकी’ तुलसी के युग का ही नहीं आज के युग का भी सत्य है। भुखमरी में किसानों की आत्महत्या और संतानों (खासकर बेटियों) को भी बेच डालने की हृदयविदारक घटनाएँ हमारे देश में घटती रही हैं। वर्तमान परिस्थितियों और तुलसी के युग की तुलना करें। (CBSE-2013)उत्तर:भुखमरी की स्थिति बहुत दयनीय होती है। व्यक्ति भुखमरी की इस दयनीय स्थिति में हर प्रकार का नीच कार्य करता है। कर्ज लेता है, बेटा-बेटी तक को बेच देता है। जब कर्ज का बोझ बढ़ता जाता है तो आत्महत्या तक कर लेता है। तुलसी का समाज भी लगभग वैसा ही था जैसा कि आज का भारतीय मध्यवर्गीय समाज। उस समय की परिस्थिति भी बहुत भयानक थी। लोगों के पास कमाने का कोई साधन न था ऊपर से अकाल ने लोगों को भुखमरी के किनारे तक पहुँचा दिया। इस स्थिति से तंग आकर व्यक्ति वे सभी अनैतिक कार्य करने लगे। बेटा-बेटी का सौदा करने लगे। यदि साहूकार का ऋण नहीं उतरता है तो स्वयं मर जाते थे। ठीक यही परिस्थिति हमारे समाज की है। किसान कर्ज न चुकाने की स्थिति में आत्महत्याएँ कर रहे हैं। कह सकते हैं कि तुलसी का युग और आज का युग एक ही है। आर्थिक दृष्टि से दोनों युगों में विषमताएँ रहीं।
प्रश्न 3.तुलसी के युग की बेकारी के क्या कारण हो सकते हैं? आज की बेकारी की समस्या के कारणों के साथ उसे मिलाकर कक्षा में परिचर्चा करें।उत्तर:
तुलसी के युग में बेकारी के निम्नलिखित कारण हो सकते हैं-
खेती के लिए पानी उपलब्ध न होना।
बार-बार अकाल पडना।
अराजकता।
व्यापार व वाणिज्य में गिरावट।
आज बेकारी के कारण पहले की अपेक्षा भिन्न हैं-
भ्रष्टाचार।
शारीरिक श्रम से नफ़रत करना।
कृषि-कार्य के प्रति अरुचि।
जनसंख्या विस्फोट, अशिक्षा तथा अकुशलता।
प्रश्न 4.राम कौशल्या के पुत्र थे और लक्ष्मण सुमित्रा के। इस प्रकार वे परस्पर सहोदर ( एक ही माँ के पेट से जन्मे ) नहीं थे। फिर, राम ने उन्हें लक्ष्य कर ऐसा क्यों कहा-“मिलइ न जगत सहोदर भ्राता”? इस पर विचार करें।उत्तर:राम और लक्ष्मण का जन्म यद्यपि एक ही माँ के पेट से नहीं हुआ था, लेकिन इनके पिता एक ही थे-महाराज दशरथ। इसलिए राम ने लक्ष्मण को सहोदर भ्राता कहा। लक्ष्मण ने सदा राम की सेवा की। उनके सुख के लिए अपने सुखों का त्याग कर दिया। केवल एक ही पेट से जन्म लेने वाले सगे नहीं होते बल्कि वही भाई सहोदर होता है जो पारिवारिक संबंधों को अच्छी तरह निभाता है। लक्ष्मण ने श्रीराम के दुख दूर करने के लिए जीवनभर कष्ट उठाए। राम का छोटा-सा दुख भी उनसे देखा नहीं जाता था। इसलिए राम ने उन्हें लक्ष्य कर ‘मिलइ न जगत सहोदर भ्राता’ कहा।
प्रश्न 5.यहाँ कवि तुलसी के दोहा, चौपाई, सोरठा, कवित्त, सवैया-ये पाँच छंद प्रयुक्त हैं। इसी प्रकार तुलसी साहित्य में और छंद तथा काव्य-रूप आए हैं। ऐसे छंदों व काव्य-रूपों की सूची बनाएँ।उत्तर:काव्य-रूप-प्रबंध काव्य- रामचरितमानस (महाकाव्य)।मुक्तक काव्य- विनयपत्रिका।गेय पद शैली- गीतावली, कृष्ण गीतावली।
अन्य महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1.तुलसीदास का समाज कैसा था? इस बारे में लिखिए।उत्तर:तुलसीदास का समाज ज्यादा बेहतर नहीं था। सामाजिक मान्यताएँ खत्म होती जा रही थीं। परंपराएँ टूटती जा रही थीं। लोगों के पास कोई रोजगार नहीं था। धार्मिक कट्टरता व्याप्त थी। अंधविश्वासों के चक्र में पूरा समाज जकड़ा हुआ था। लोगों ने मर्यादाओं को ताक पर रख दिया था। नारी की स्थिति बदतर थी। उसकी हालत सबसे खराब थी।
प्रश्न 2.तुलसी युग की आर्थिक विषमता के संदर्भ में लिखें।उत्तर:वर्तमान समाज की तरह तुलसी युग की आर्थिक स्थिति भी बहुत दयनीय थी। किसान को खेती नहीं थी तो व्यापारी के पास व्यापार नहीं था। लोग केवल यही सोचते रहते कि क्या करें, कहाँ जाएँ? इसी फेर में रहते कि धन कैसे और कहाँ से प्राप्त किया जाए? लोग कर्जा लेकर जीवनयापन करते थे और जब कर्जा बढ़ जाता तो आत्महत्या कर लेते थे।
प्रश्न 3.लक्ष्मण के मूर्छित हो जाने पर राम क्या सोचने लगे?उत्तर:जब लक्ष्मण को शक्तिबाण लगा तो वे मूर्छित हो गए। यह देखकर राम भावुक हो उठे। वे सोचने लगे कि इस वन में आकर मैंने पहले तो जानकी को खो दिया अब अपने भाई को खोने जा रहा हूँ। केवल एक स्त्री के कारण मेरा भाई आज मृत्यु की गोद में सो रहा है। यदि स्त्री खो जाए तो कोई बड़ी हानि नहीं होती किंतु भाई के खो जाने से जीवनभर कलंक मेरे माथे पर रहेगा।
प्रश्न 4.स्त्री के प्रति तुलसी युग का दृष्टिकोण कैसा था? (CBSE-2010)उत्तर:तुलसी का युग स्त्रियों के लिए बहुत कष्टदायी था। लोग स्त्री को घोर अपमान करते थे। पैसों के लिए वे बेटी तक को बेच देते थे। इस काल में स्त्रियों का हर प्रकार से शोषण होता था। नारी के बारे में लोगों की धारणा संकुचित थी। नारी केवल भोग की वस्तु थी। इसी कारण उसकी दशा दयनीय थी। वह शोषण की चक्की में पिसती जा रही थी।
प्रश्न 5.क्या तुलसी का साहित्य आज भी प्रासंगिक है?उत्तर:तुलसी ने लगभग 450 वर्ष पहले जो कहा था, वह आज भी प्रासंगिक है। उन्होंने अपने समाज की सभी समस्याओं का चित्रण किया। इन्हीं समस्याओं के कारण तुलसी युग का समाज पूरी तरह से बिखर चुका था। उन्होंने इन सारी विद्रुपताओं को देखा और उसका चित्रण किया। जिस प्रकार की परिस्थितियाँ उस युग में विद्यमान थी ठीक वही परिस्थितियाँ आज भी विद्यमान हैं। इसीलिए तुलसीदास का साहित्य आज भी प्रासंगिक है।
प्रश्न 6.तुलसी की काव्य भाषा के बारे में बताइए।उत्तर:तुलसी ने मुख्य रूप से अवधी भाषा का प्रयोग किया है। उस युग में इसी भाषा का प्रचलन था। लोगों के बीच इसी व्यवहार की भाषा प्रचलित थी। इसीलिए तुलसी ने इस लोक व्यवहार की भाषा का प्रयोग किया है।
प्रश्न 7.तुलसीदास की अलंकार योजना पर प्रकाश डालिए।उत्तर:तुलसीदास के काव्य में कई अलंकारों का प्रयोग हुआ है। उन्होंने मुख्य रूप से उपमा, अनुप्रास, रूपक, अतिश्योक्ति, वीरता आदि अलंकारों का प्रयोग किया है। इन अलंकारों के प्रयोग से भाषा में चमत्कार उत्पन्न हुआ है। वह अधिक प्रभावी बन गई है।
प्रश्न 8.तुलसी की छंद योजना कैसी है?उत्तर:तुलसी ने दोहे और चौपाई छंद का प्रयोग प्रमुखता से किया है। उन्होंने अपने सारे काव्यों में इन्हीं छंदों का प्रयोग किया। इनका प्रयोग करके तुलसी ने अपनी बात को अधिक स्पष्ट ढंग से कह दिया है। तुलसी की चौपाइयाँ इतनी सरल और प्रभावी बन पड़ी हैं कि लोग आज भी इनका काव्य पाठ करते हैं। तुलसी ने कहीं-कहीं हरिगीतिका छंद का प्रयोग भी किया है, लेकिन न्यून मात्रा में। लेकिन बहुलता दोहा और चौपाई छंदों की रही है।
प्रश्न 9.काव्य-सौंदर्य स्पष्ट करें-
खेती न किसान को, भिखारी को न भीख, बलिबनिक को बनिज, न चाकर को चाकरी।जीविका बिहीन लोग सीद्यमान सोच बस,कहें एक एकन सों ‘कहाँ जाई, का करी ?’बेदहूँ पुरान कही, लोकहूँ बिलोकिअत,साँकरे सबै पै, राम! रावरें कृपा करी।दारिद-दसानन दबाई दुनी, दीनबंधुदुरित-दहन देखि तुलसी हेहा करी ॥
उत्तर:इस पद में कवि ने तत्कालीन समाज को यथार्थपरक चित्रण किया है। कवि संकट में भगवान को ही सहारा मानता है। कवि ने दीनबंधु, दुरित दहन आदि शब्दों के द्वारा श्रीराम के विशेषणों पर प्रकाश डाला है। ‘दारिद-दसानन, दुरित-दहन’ में रूपक अलंकार है। पूरे पद में अनुप्रास अलंकार की छटा है। ब्रजभाषा का लालित्य है। गीतिकाव्य की सभी विशेषताएँ हैं। मनहर घनाक्षरी छंद का प्रयोग है। शब्द चयन उपयुक्त है। ‘हहा’ शब्द से भाव गंभीरता आई है।
प्रश्न 10.काव्य-सौंदर्य स्पष्ट करेंतव प्रताप उर राखि प्रभु जैहउँ नाथ तुरंत।अस कहि आयसु पाइ पद बंदि चलेउ हनुमंत॥भरत बाहु बल सील गुन प्रभु पद प्रीति अपार।मन महुँ जात सराहत पुनि पुनि पवनकुमार॥उत्तर:इस पद में हनुमान जी द्वारा संजीवनी बूटी लाने का संकल्प दिखाया गया है। ‘पाद पद, बाहुबल, प्रभु पद प्रीति, मन महँ’ अनुप्रास अलंकार है। पुनि-पुनि’ में पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार है। रूपक अलंकार है। अवधी को बोलचाल रूप है। गेयतत्व की विद्यमानता है। दोहा छंद है। वीर रस का उद्रेक हुआ है। अमिधा शब्दशक्ति है।
प्रश्न 11.लक्ष्मण मूच्र्छा और राम का विलाप’ काव्यांश में लक्ष्मण के प्रति राम के प्रेम के कौन-कौन-से पहलू अभिव्यक्त हुए हैं?(CBSE-2013)अथवातुलसीदास की संकलित चौपाइयों के आधार पर लक्ष्मण के प्रति रामं के स्नेह संबंधों पर प्रकाश डालिए। (CBSE-2010)उत्तर:शक्ति लगने से लक्ष्मण मूर्च्छित हो गए थे। उनकी यह दशा देखकर राम भावुक हो उठे। वे आम आदमी की तरह विल��प करने लगे। वे लक्ष्मण को वन में लाने के लिए स्वयं को दोषी मानते हैं। वे नारी हानि को भ्रातृहानि के समक्ष कुछ नहीं मानते। वे शोक व ग्लानि से पीड़ित थे। उनकी सारी संवेदनाएँ आम आदमी की तरह प्रकट हो गई।
प्रश्न 12.कुंभकरण के द्वारा पूछे जाने पर रावण ने अपनी व्याकुलता के बारे में क्या कहा और कुंभकरण से क्या सुनना पड़ा? (CBSE-2015)उत्तर:जब कुंभकरण ने रावण से उसकी व्याकुलता के बारे में पूछा तो रावण ने विस्तार से बताया कि उसने किस तरह सीता का हरण किया। फिर हनुमान ने अनेक राक्षसों को मार डाला और महान योद्धाओं का अंत कर दिया। कुंभकरण ने उसकी बात सुनकर उसे लताड़ा और कहा कि तूने जगत जानकी को चुराकर गलत किया। तेरा कल्याण अब संभव नहीं है।
प्रश्न 13.तुलसी के सवैया के आधार पर प्रतिपादित कीजिए कि उन्हें भी जातीय भेदभाव का दबाव झेलना पड़ा था? (CBSE-2015)उत्तर:कवि तुलसी लोगों से कहते हैं कि वे चाहे कुछ भी कह लें धूर्त अथवा तपस्वी, राजपूत अथवा जुलाहा। इससे उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता। वह किसी भी जाति से बँधे हुए नहीं है। इन पंक्तियों से पता चलता है कि उन्हें जातीय भेदभाव का दबाव झेलना पड़ा।
इन्हें भी जानेंचौपाई
चौपाई सम मात्रिक छंद है। यह चार पंक्तियों का होता है जिसकी प्रत्येक पंक्ति में 16-16 मात्राएँ होती हैं। चालीस चौपाइयों वाली रचना को चालीसा कहा जाता है-यह तथ्य लोकप्रसिद्ध है।
दोहादोहा अर्धसम मात्रिक छंद है। इसके सम चरणों (दूसरे और चौथे चरण) में 11-11 मात्राएँ होती हैं तथा विषम चरणों (पहले और तीसरे) में 13-13 मात्राएँ होती हैं। इनके साथ अंत लघु (1) वर्ण होता है।
सोरठा
दोहे को उलट देने से सोरठा बन जाता है। इसके सम चरणों (दूसरे और चौथे चरण) में 13-13 मात्राएँ होती हैं तथा विषम चरणों (पहले और तीसरे) में 11-11 मात्राएँ होती हैं। परंतु दोहे के विपरीत इसके सम चरणों (दूसरे और चौथे चरण) में अंत्यानुप्रास या तुक नहीं रहती, विषम चरणों (पहले और तीसरे) में तुक होती है।
कवित्त
यह वार्णिक छंद है। इसे मनहरण भी कहते हैं। कवित्त के प्रत्येक चरण में 31-31 वर्ण होते हैं। प्रत्येक चरण के 16वें और फिर 15वें वर्ण पर यति रहती है। प्रत्येक चरण का अंतिम वर्ण गुरु होता है।
सवैया
चूँकि सवैया वार्णिक छंद है, इसलिए सवैया छंद के कई भेद हैं। ये भेद गणों के संयोजन के आधार पर बनते हैं। इनमें सबसे प्रसिद्ध मत्तगयंद सवैया है इसे मालती सवैया भी कहते हैं। सवैया के प्रत्येक चरण में 22 से 26 वर्ण होते हैं। यहाँ प्रस्तुत तुलसी का सवैया कई भेदों को मिलाकर बनता है।
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