#मिल्खा सिंह आगे
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भारत का टीकाकरण कार्यक्रम दुनिया के लिए एक केस स्टडी हो सकता है : मन की बात के दौरान पीएम मोदी.
https://soundcloud.com/narendramodi
मेरे प्यारे देशवासियो,नमस्कार! अक्सर‘मन की बात’ में, आपकेप्रश्नों की बौछार रहती है | इस बार मैंने सोचा कि कुछ अलग किया जाए, मैं आपसे प्रश्न करूँ |तो, ध्यान से सुनिए मेरे सवाल |
....Olympic में Individual Gold जीतने वाला पहला भारतीय कौन था?
....Olympic के कौन से खेल में भारत ने अब तक सबसे ज्यादा medal जीते हैं?
...Olympic में किस खिलाड़ी ने सबसे ज्यादा पदक जीते हैं?
साथियो, आप मुझे जवाब भेजेंन भेजें, पर MyGov में Olympics परजो quiz है, उसमें प्रश्नों के उत्तर देंगे तो कई सारे इनाम जीतेंगे | ऐसे बहुत सारे प्रश्न MyGovके ‘Road to Tokyo Quiz’ में हैं | आप ‘Road to Tokyo Quiz’ में भाग लें | भारत ने पहले कैसा perform किया है ? हमारी Tokyo Olympics के लिए अब क्या तैयारी है ?- ये सब ख़ुद जानें और दूसरों को भी बताएं | मैं आप सब से आग्रह करना चाहता हूँ कि आप इस quiz competition में ज़रुर हिस्सा लीजिये |
साथियो, जब बात Tokyo Olympics की हो रही हो, तो भला मिल्खा सिंह जी जैसे legendary athlete को कौन भूल सकता है !कुछ दिन पहले ही कोरोना ने उन्हें हमसे छीन लिया | जब वे अस्पताल में थे, तो मुझे उनसे बात करने का अवसर मिला था |
बात करते हुए मैंने उनसे आग्रह किया था | मैंने कहा था कि आपने तो 1964 में Tokyo Olympics में भारत का प्रतिनिधित्व किया था, इसलिए इस बार, जब हमारे खिलाड़ी,Olympics के लिए Tokyo जा रहे हैं, तोआपको हमारे athletes का मनोबल बढ़ाना है, उन्हें अपने संदेश से प्रेरित करना है | वो खेल को लेकर इतना समर्पित और भावुक थे कि बीमारी में भी उन्होंने तुरंत ही इसके लिए हामी भर दी लेकिन, दुर्भाग्य से नियति को कुछ और मंजूर था | मुझे आज भी याद है 2014 में वो सूरत आए थे | हम लोगों ने एक Night Marathon का उद्घाटन किया था | उस समय उनसे जो गपशप हुई, खेलों के बारे में जो बात हुई, उससे मुझे भी बहुत प्रेरणा मिली थी | हम सब जानते हैं कि मिल्खा सिंह जी का पूरा परिवार sports को समर्पित रहा है, भारत का गौरव बढ़ाता रहा है |
साथियो, जब Talent, Dedication, Determination और Sportsman Spirit एक साथ मिलते हैं, तब जाकर कोई champion बनता है |हमारे देश में तो अधिकांश खिलाड़ी छोटे-छोटे शहरों, कस्बों, गाँवों से निकल करके आते हैं |Tokyo जा रहे हमारे Olympic दल में भी कई ऐसे खिलाड़ी शामिल हैं, जिनका जीवन बहुत प्रेरित करता है | हमारे प्रवीण जाधव जी के बारे में आप सुनेंगे, तो, आपको भी लगेगा कि कितने कठिन संघर्षों से गुजरते हुए प्रवीण जी यहाँ पहुंचे हैं | प्रवीण जाधव जी, महाराष्ट्र के सतारा ज़िले के एक गाँव के रहने वाले हैं | वो Archery के बेहतरीन खिलाड़ी हैं | उनके माता-पिता मज़दूरी कर परिवार चलाते हैं, और अब उनका बेटा, अपना पहला,Olympics खेलने Tokyo जा रहा है | ये सिर्फ़ उनके माता-पिता ही नहीं, हम सभी के लिए कितने गौरव की बात है | ऐसे ही, एक और खिलाड़ी हैं, हमारी नेहा गोयल जी | नेहा,Tokyoजा रही महिला हॉकी टीम की सदस्य हैं | उनकी माँ और बहनें, साईकिल की factory में काम करके परिवार का ख़र्च जुटाती हैं | नेहा की तरह ही दीपिका कुमारी जी के जीवन का सफ़र भी उतार-चढ़ाव भरा रहा है | दीपिका के पिता ऑटो-रिक्शा चलाते हैं और उनकी माँ नर्स हैं, और अब देखिए, दीपिका, अब Tokyo Olympics में भारत की तरफ से एकमात्र महिला तीरंदाज़ हैं | कभी विश्व की नंबर एक तीरंदाज़ रहीं दीपिका के साथ हम सबकी शुभकामनाएँ हैं |
साथियो, जीवन में हम जहां भी पहुँचते हैं, जितनी भी ऊंचाई प्राप्त करते हैं, जमीन से ये जुड़ाव, हमेशा, हमें अपनी जड़ों से बांधे रखता है | संघर्ष के दिनों के बाद मिली सफलता का आनंद भी कुछ और ही होता है |Tokyo जा रहे हमारे खिलाड़ियों ने बचपन में साधनों-संसाधनों की हर कमी का सामना किया, लेकिन वो डटे रहे, जुटे रहे | उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर की प्रियंका गोस्वामी जी का जीवन भी बहुत सीख देता है | प्रियंका के पिता बस कंडक्टर हैं | बचपन में प्रियंका को वो बैग बहुत पसंद था, जो medal पाने वाले खिलाड़ियों को मिलता है | इसी आकर्षण में उन्होंने पहली बार Race-Walking प्रतियोगिता में हिस्सा लिया था | अब, आज वो इसकी बड़ी champion हैं |
Javelin Throw में भाग लेने वाले शिवपाल सिंह जी, बनारस के रहने वाले हैं | शिवपाल जी का तो पूरा परिवार ही इस खेल से जुड़ा हुआ है | इनके पिता, चाचा और भाई, सभी भाला फेंकने में expert हैं | परिवार की यही परंपरा उनके लिए Tokyo Olympics में काम आने वाली है |Tokyo Olympic के लिए जा रहे चिराग शेट्टी और उनके partner सात्विक साईराज का हौसला भी प्रेरित करने वाला है | हाल ही में चिराग के नाना जी का कोरोना से निधन हो गया था | सात्विक भी खुद पिछले साल कोरोना पॉज़िटिव हो गए थे | लेकिन, इन मुश्किलों के बाद भी ये दोनों Men’s Double Shuttle Competition में अपना सर्वश्रेष्ठ देने की तैयारी में जुटे हैं |
एक और खिलाड़ी से मैं आपका परिचय कराना चाहूँगा, ये हैं, हरियाणा के भिवानी के मनीष कौशिक जी | मनीष जी खेती-किसानी वाले परिवार से आते हैं | बचपन में खेतों में काम करते-करते मनीष को boxing का शौक हो गया था | आज ये शौक उन्हें टोक्यो ले जा रहा है | एक और खिलाड़ी हैं, सी.ए. भवानी देवी जी | नाम भवानी है और ये तलवारबाजी में expert हैं | चेन्नई की रहने वाली भवानी पहली भारतीय Fencer हैं, जिन्होंने Olympic में qualify किया है | मैं कहीं पढ़ रहा था कि भवानी जी की training जारी रहे, इसके लिए उनकी माँ ने अपने गहने तक गिरवी रख दिये थे |
साथियो, ऐसे तो अनगिनत नाम हैं लेकिन ‘मन की बात’ में, मैं, आज कुछ ही नामों का जिक्र कर पाया हूँ | टोक्यो जा रहे हर खिलाड़ी का अपना संघर्ष रहा है, बरसों की मेहनत रही है | वो सिर्फ़ अपने लिए ही नहीं जा रहें बल्कि देश के लिए जा रहे हैं | इन खिलाड़ियों को भारत का गौरव भी बढ़ाना है और लोगों का दिल भी जीतना है और इसलिए मेरे देशवासियों मैं आपक�� भी सलाह देना चाहता हूँ, हमें जाने-अनजाने में भी हमारे इन खिलाड़ियों पर दबाव नहीं बनाना है, बल्कि खुले मन से, इनका साथ देना है, हर खिलाड़ी का उत्साह बढ़ाना है |
Social Media पर आप #Cheer4India के साथ अपने इन खिलाड़ियों को शुभकामनाएँ दे सकते हैं | आप कुछ और भी innovative करना चाहें, तो वो भी ज़रूर करें | अगर आपको कोई ऐसा idea आता है जो हमारे खिलाड़ियों के लिए देश को मिलकर करना चाहिए, तो वो आप मुझे ज़रुर भेजिएगा | हम सब मिलकर टोक्यो जाने वाले अपने खिलाड़ियों को support करेंगे - Cheer4India!!!Cheer4India!!!Cheer4India!!!
मेरे प्यारे देशवासियो, कोरोना के खिलाफ़ हम देशवासियों की लड़ाई जारी है,लेकिन इस लड़ाई में हम सब साथ मिलकर कई असाधारण मुकाम भी हासिल कर रहे हैं | अभी कुछ दिन पहले ही हमारे देश ने एक अभूतपूर्व काम किया है | 21 जून को vaccine अभियान के अगले चरण की शुरुआत हुई और उसी दिन देश ने 86 लाख से ज्यादा लोगों को मुफ़्त vaccine लगाने का record भी बना दिया और वो भी एक दिन में ! इतनी बड़ी संख्या में भारत सरकार की तरफ से मुफ़्त vaccination और वो भी एक दिन में ! स्वाभाविक है, इसकी चर्चा भी खूब हुई है |
साथियो, एक साल पहले सबके सामने सवाल था कि vaccine कब आएगी ? आज हम एक दिन में लाखों लोगों को‘ Made in India’ vaccine मुफ़्त में लगा रहे हैं और यही तो नए भारत की ताक़त है |
साथियो,vaccine की safety देश के हर नागरिक को मिले, हमें लगातार प्रयास करते रहना है |कई जगहों पर vaccine hesitancy को खत्म करने के लिए कई संगठन, civil society के लोग आगे आये हैं और सब मिलकर के बहुत अच्छा काम कर रहे हैं | चलिये, हम भी, आज, एक गाँव में चलते हैं, और,उन्हीं लोगों से बात करते हैं vaccine के बारे में मध्य प्रदेश के बैतूल ज़िले के डुलारिया गाँव चलते हैं |
प्रधानमंत्री : हलो !
राजेश : नमस्कार !
प्रधानमंत्री : नमस्ते जी |
राजेश : मेरा नाम राजेश हिरावे, ग्राम पंचायत डुलारिया, भीमपुर ब्लॉक|
प्रधानमंत्री : राजेश जी, मैंने फ़ोन इसलिए किया कि मैं जानना चाहता था कि अभी आपके गाँव में, अब कोरोना की क्या स्थिति है ?
राजेश : सर, यहाँ पे कोरोना की स्थिति तो अभी ऐसा कुछ नहीं है यहाँ I
प्रधानमंत्री : अभी लोग बीमार नहीं हैं ?
राजेश : जी |
प्रधानमंत्री : गाँव की जनसँख्या कितनी है? कितने लोग हैं गाँव में ?
राजेश : गाँव में 462 पुरुष हैं और 332 महिला हैं,सर |
प्रधानमंत्री : अच्छा! राजेश जी, आपने vaccine ले ली क्या ?
राजेश : नहीं सर, अभी नहीं लिए हैं |
प्रधानमंत्री : अरे ! क्यों नहीं लिया ?
राजेश : सर जी, यहाँ पर कुछ लोगों ने, कुछ WhatsApp पर ऐसा भ्रम डाल दिया गया कि उससे लोग भ्रमित हो गए सर जी |
प्रधानमंत्री : तो क्या आपके मन में भी डर है ?
राजेश : जी सर, पूरे गाँव में ऐसा भ्रम फैला दिया था सर |
प्रधानमंत्री : अरे रे रे, यह क्या बात की आपने ? देखिये राजेश जी...
राजेश : जी |
प्रधानमंत्री : मेरा आपको भी और मेरे सभी गाँव के भाई-बहनों को यही कहना है कि डर है तो निकाल दीजिये |
राजेश : जी |
प्रधानमंत्री : हमारे पूरे देश में 31 करोड़ से भी ज्यादा लोगों ने वैक्सीन का टीका लगवा लिया है |
राजेश : जी |
प्रधानमंत्री : आपको पता है न, मैंने खुद ने भी दोनों dose लगवा लिए हैं |
राजेश : जी सर |
प्रधानमंत्री : अरे मेरी माँ तो क़रीब-क़रीब 100 साल की हैं, उन्होंने भी दोनों dose लगवा लिए हैं I कभी-कभी किसी को इससे बुखार वगैरह आता है, पर वो बहुत मामूली होता है, कुछ घंटो के लिए ही होता है |देखिए vaccine नहीं लेना बहुत ख़तरनाक हो सकता है |
राजेश : जी |
प्रधानमंत्री : इससे आप ख़ुद को तो ख़तरे में डालते ही हैं, साथ ही में परिवार और गाँव को भी ख़तरे में डाल सकते हैं |
राजेश : जी |
प्रधानमंत्री : और राजेश जी इसलिए जितना जल्दी हो सके vaccine लगवा लीजिये और गाँव में सबको बताइये कि भारत सरकार की तरफ से मुफ़्त vaccine दी जा रही है और 18 वर्ष से ऊपर के सभी लोगों के लिए यह मुफ़्त vaccination है |
राजेश : जी... जी...
प्रधानमंत्री : तो ये आप भी लोगों को गाँव में बताइये और गाँव में ये डर का तो माहौल का कोई कारण ही नहीं है |
राजेश : कारण यही सर, कुछ लोग ने ऐसी गलत अफ़वाह फैला दी जिससे लोग बहुत ही भयभीत हो गए उसका उदाहरण जैसे, जैसा उस vaccine को लगाने से बुखार आना, बुखार से और बीमारी फ़ैल जाना मतलब आदमी की मौत हो जाना यहाँ तक की अफ़वाह फैलाई |
प्रधानमंत्री : ओहोहो... देखिये आज तो इतने रेडियो, इतने टी.वी., इतनी सारी खबरें मिलती हैं और इसलिए लोगों को समझाना बहुत सरल हो जाता है और देखिये मैं आपको बताऊँ भारत के अनेक गाँव ऐसे हैं जहाँ सभी लोग vaccine लगवा चुके है यानी गाँव के शत प्रतिशत लोग | जैसे मैं आपको एक उदाहरण देता हूँ...
राजेश : जी |
प्रधानमंत्री : कश्मीर में बांदीपुरा ज़िला है, इस बांदीपुरा ज़िले में एक व्यवन(Weyan)गाँव के लोगों ने मिलकर 100%, शत प्रतिशत vaccine का लक्ष्य बनाया और उसे पूरा भी कर दिया | आज कश्मीर के इस गाँव के 18 साल से ऊपर के सभी लोग टीका लगवा चुके हैं | नागालैंड के भी तीन गाँवों के बारे में मुझे पता चला कि वहाँ भी सभी लोगों ने 100%, शत प्रतिशत टीका लगवा लिया है |
राजेश : जी... जी...
प्रधानमंत्री : राजेश जी, आपको भी अपने गाँव, अपने आस-पास के गाँव में ये बात पहुँचानी चाहिये और आप भी जैसे कहते हैं ये भ्रम है, बस ये भ्रम ही है |
राजेश : जी... जी...
प्रधानमंत्री : तो भ्रम का जवाब यही है कि आपको ख़ुद को टीका लगा कर के समझाना पड़ेगा सबको | करेंगे न आप ?
राजेश : जी सर |
प्रधानमंत्री : पक्का करेंगे ?
राजेश : जी सर, जी सर | आपसे बात करने से मुझे ऐसा लगा कि मैं ख़ुद भी टीका लगाऊंगा और लोगों को इसके बारे में आगे बढ़ाऊँ |
प्रधानमंत्री : अच्छा, गाँव में और भी कोई है जिनसे मैं बात कर सकता हूँ ?
राजेश : जी है सर |
प्रधानमंत्री : कौन बात करेगा ?
किशोरीलाल : हेल्लो सर... नमस्कार !
प्रधानमंत्री : नमस्ते जी, कौन बोल रहे हैं ?
किशोरीलाल : सर, मेरा नाम है किशोरीलाल दूर्वे |
प्रधानमंत्री : तो किशोरीलाल जी, अभी राजेश जी से बात हो रही थी |
किशोरीलाल : जी सर |
प्रधानमंत्री : और वो तो बड़े दुखी हो ��रके बता रहे थे कि vaccine को लेकर लोग अलग-अलग बातें करते हैं |
किशोरीलाल : जी |
प्रधानमंत्री : आपने भी ऐसा सुना है क्या ?
किशोरीलाल : हाँ... सुना तो हूँ सर वैसा...
प्रधानमंत्री : क्या सुना है ?
किशोरीलाल : क्योंकि ये है सर ये पास में महाराष्ट्र है उधर से कुछ रिश्तेदारी से जुड़े लोग मतलब कुछ अफ़वाह फैलाते कि vaccine लगाने से लोग सब मर रहा है, कोई बीमार हो रहा है कि सर लोगों के पास ज्यादा भ्रम है सर, इसलिए नहीं ले रहे हैं |
प्रधानमंत्री :नहीं.. कहते क्या है ? अब कोरोना चला गया, ऐसा कहते है ?
किशोरीलाल : जी |
प्रधानमंत्री : को���ोना से कुछ नहीं होता है ऐसा कहते है ?
किशोरीलाल : नहीं, कोरोना चला गया नहीं बोलते सर, कोरोना तो है बोलते लेकिन vaccine जो लेते उससे मतलब बीमारी हो रहा है, सब मर रहे है | ये स्थिति बताते सर वो |
प्रधानमंत्री : अच्छा vaccine के कारण मर रहे हैं ?
किशोरीलाल : अपना क्षेत्र आदिवासी-क्षेत्र है सर, ऐसे भी लोग इसमें जल्दी डरते हैं .. जो भ्रम फैला देते कारण से लोग नहीं ले रहे सर vaccine |
प्रधानमंत्री :देखिये किशोरीलाल जी...
किशोरीलाल : जी हाँ सर...
प्रधानमंत्री : ये अफ़वाहें फैलाने वाले लोग तो अफ़वाहें फैलाते रहेंगे |
किशोरीलाल : जी |
प्रधानमंत्री : हमें तो ज़िन्दगी बचानी है, अपने गाँव वालों को बचाना है, अपने देशवासियों को बचाना है | और ये अगर कोई कहता है कि कोरोना चला गया तो ये भ्रम में मत रहिए |
किशोरीलाल : जी |
प्रधानमंत्री : ये बीमारी ऐसी है, ये बहुरूपिये वाली है |
किशोरीलाल : जी सर |
प्रधानमंत्री : वो रूप बदलती है... नए-नए रंग-रूप कर के पहुँच जाती है |
किशोरीलाल : जी |
प्रधानमंत्री : और उसमें बचने के लिए हमारे पास दो रास्ते हैं | एक तो कोरोना के लिए जो protocol बनाया, मास्क पहनना, साबुन से बार-बार हाथ धोना, दूरी बनाए रखना और दूसरा रास्ता है इसके साथ-साथ vaccine का टीका लगवाना, वो भी एक अच्छा सुरक्षा कवच है तो उसकी चिंता करिए |
किशोरीलाल : जी |
प्रधानमंत्री : अच्छा किशोरीलाल जी ये बताइये |
किशोरीलाल : जी सर
प्रधानमंत्री : जब लोग आपसे बातें करते है तो आप कैसे समझाते है लोगों को ? आप समझाने का काम करते है कि आप भी अफ़वाह में आ जाते हैं ?
किशोरीलाल : समझाएं क्या, वो लोग ज्यादा हो जाते तो सर हम भी भयभीत में आ जाते न सर |
प्रधानमंत्री : देखिये किशोरीलाल जी, मेरी आपसे बात हुई है आज, आप मेरे साथी हैं|
किशोरीलाल : जी सर
प्रधानमंत्री : आपको डरना नहीं है और लोगों के डर को भी निकालना है | निकालोगे ?
किशोरीलाल : जी सर | निकालेंगे सर, लोगों के डर को भी निकालेंगे सर | मैं स्वयं भी ख़ुद लगाऊंगा |
प्रधानमंत्री : देखिये, अफ़वाहों पर बिल्कुल ध्यान न दें |
किशोरीलाल : जी
प्रधानमंत्री : आप जानते है, हमारे वैज्ञानिकों ने कितनी मेहनत करके ये vaccine बनाई है |
किशोरीलाल : जी सर |
प्रधानमंत्री : साल भर, रात-दिन इतने बड़े-बड़े वैज्ञानिकों ने काम किया है और इसलिए हमें विज्ञान पर भरोसा करना चाहिये, वैज्ञानिकों पर भरोसा करना चाहिये | और ये झूठ फैलाने वाले लोगों को बार-बार समझाना चाहिये कि देखिये भई ऐसा नहीं होता है, इतने लोगों ने vaccine ले लिया है कुछ नहीं होता है |
किशोरीलाल : जी
प्रधानमंत्री : और अफ़वाहों से बहुत बच करके रहना चाहिये, गाँव को भी बचाना चाहिये |
किशोरीलाल : जी
प्रधानमंत्री : और राजेश जी, किशोरीलाल जी, आप जैसे साथियों को तो मैं कहूँगा कि आप अपने ही गाँव में नहीं, और गाँवों में भी इन अफ़वाहों को रोकने का काम कीजिये और लोगों को बताइये मेरे से बात हुई है |
किशोरीलाल : जी सर |
प्रधानमंत्री : बता दीजिये, मेरा नाम बता दीजिये |
किशोरीलाल : बताएँगे सर और समझायेंगे लोगों को और स्वयं भी लेंगे |
प्रधानमंत्री : देखिये, आपके पूरे गाँव को मेरी तरफ से शुभकामनाएं दीजिये |
किशोरीलाल : जी सर |
प्रधानमंत्री : और सभी से कहिये कि जब भी अपना नंबर आये...
किशोरीलाल : जी...
प्रधानमंत्री : vaccine जरुर लगवाएं |
किशोरीलाल : ठीक है सर |
प्रधानमंत्री : मैं चाहूँगा कि गाँव की महिलाओं को, हमारी माताओं-बहनों को...
किशोरीलाल : जी सर
प्रधानमंत्री : इस काम में ज्यादा से ज्यादा जोड़िये और सक्रियता के साथ उनको साथ रखिये |
किशोरीलाल : जी
प्रधानमंत्री : कभी-कभी माताएँ-बहनें बात कहती है न लोग जल्दी मान जाते हैं |
किशोरीलाल : जी
प्रधानमंत्री : आपके गाँव में जब टीकाकरण पूरा हो जाए तो मुझे बताएँगे आप ?
किशोरीलाल : हाँ, बताएँगे सर |
प्रधानमंत्री : पक्का बताएँगे ?
किशोरीलाल : जी
प्रधानमंत्री : देखिये, मैं इंतज़ार करूँगा आपकी चिट्ठी का |
किशोरीलाल : जी सर
प्रधानमंत्री : चलिये, राजेश जी, किशोर जी बहुत-बहुत धन्यवाद | आपसे बात करने का मौक़ा मिला |
किशोरीलाल : धन्यवाद सर, आपने हमसे बात किया है | बहुत-बहुत धन्यवाद आपको भी |
साथियो, कभी-ना-कभी, ये विश्व के लिए case study का विषय बनेगा कि भारत के गाँव के लोगों ने, हमारे वनवासी-आदिवासी भाई-बहनों ने, इस कोरोना काल में, किस तरह, अपने सामर्थ्य और सूझबूझ का परिचय दिया | गाँव के लोगों ने quarantine centreबनाए, स्थानीय ज़रूरतों को देखते हुए COVID protocol बनाए | गाँव के लोगों ने किसी को भूखा नहीं सोने दिया, खेती का काम भी रुकने नहीं दिया | नजदीक के शहरों में दूध-सब्जियाँ, ये सब हर रोज पहुंचता रहे, ये भी, गाँवों ने सुनिश्चित कियायानी ख़ुद को संभाला, औरों को भी संभाला | ऐसे ही हमें vaccination अभियान में भी करते रहना है | हमें जागरूक रहना भी है,और जागरूक करना भी है | गांवों में हर एक व्यक्ति को vaccine लग जाए,यह हर गाँव का लक्ष्य होना चाहिए | याद रखिए,और मैं तो आपको ख़ास रूप से कहना चाहता हूँ | आप एक सवाल अपने मन में पूछिये - हर कोई सफल होना चाहता है लेकिन निर्णायक सफलता का मंत्र क्या है ? निर्णायक सफलता का मंत्र है -निरंतरता |इसलिए हमें सुस्त नहीं पड़ना है, किसी भ्रांति में नहीं रहना है | हमें सतत प्रयास करते रहना है, कोरोना पर जीत हासिल करनी है |
मेरे प्यारे देशवासियों, हमारे देश में अब मानसून का सीजन भी आ गया है | बादल जब बरसते हैं तो केवल हमारे लिए ही नहीं बरसते, बल्कि बादल आने वाली पीढ़ियों के लिए भी बरसते हैं | बारिश का पानी जमीन में जाकर इकठ्ठा भी होता है, जमीन के जलस्तर को भी सुधारता है | और इसलिए मैं जल संरक्षण को देश सेवा का ही एक रूप मानता हूँ | आपने भी देखा होगा, हम में से कई लोग इस पुण्य को अपनी ज़िम्मेदारी मानकर लगे रहे हैं | ऐसे ही एक शख्स हैं उत्तराखंड के पौड़ी गढ़वाल के सच्चिदानंद भारती जी | भारती जी एक श��क्षक हैं और उन्होंने अपने कार्यों ��े भी लोगों को बहुत अच्छी शिक्षा दी है | आज उनकी मेहनत से ही पौड़ी गढ़वाल के उफरैंखाल क्षेत्र में पानी का बड़ा संकट समाप्त हो गया है | जहाँ लोग पानी के लिए तरसते थे, वहाँ आज साल-भर जल की आपूर्ति हो रही है |
साथियों, पहाड़ों में जल संरक्षण का एक पारंपरिक तरीक़ा रहा है जिसे ‘चालखाल’ भी कहा जाता है , यानि पानी जमा करने के लिए बड़ा सा गड्ढा खोदना | इस परंपरा में भारती जी ने कुछ नए तौर –तरीकों को भी जोड़ दिया | उन्होंने लगातार छोटे-बड़े तालाब बनवाये | इससे न सिर्फ उफ��ैंखाल की पहाड़ी हरी-भरी हुई, बल्कि लोगों की पेयजल की दिक्कत भी दूर हो गई | आप ये जानकर हैरान रह जायेंगे कि भारती जी ऐसी 30 हजार से अधिक जल-तलैया बनवा चुके हैं | 30 हजार ! उनका ये भागीरथ कार्य आज भी जारी है और अनेक लोगों को प्रेरणा दे रहे हैं |
साथियों, इसी तरह यूपी के बाँदा ज़िले में अन्धाव गाँव के लोगों ने भी एक अलग ही तरह का प्रयास किया है | उन्होंने अपने अभियान को बड़ा ही दिलचस्प नाम दिया है – ‘खेत का पानी खेत में, गाँव का पानी गाँव में’ | इस अभियान के तहत गाँव के कई सौ बीघे खेतों में ऊँची-ऊँची मेड़ बनाई गई है | इससे बारिश का पानी खेत में इकठ्ठा होने लगा, और जमीन में जाने लगा | अब ये सब लोग खेतों की मेड़ पर पेड़ लगाने की भी योजना बना रहे हैं | यानि अब किसानों को पानी, पेड़ और पैसा, तीनों मिलेगा | अपने अच्छे कार्यों से, पहचान तो उनके गाँव की दूर-दूर तक वैसे भी हो रही है |
साथियों, इन सभी से प्रेरणा लेते हुए हम अपने आस-पास जिस भी तरह से पानी बचा सकते हैं, हमें बचाना चाहिए | मानसून के इस महत्वपूर्ण समय को हमें गंवाना नहीं है |
मेरे प्यारे देशवासियों, हमारे शास्त्रों में कहा गया है –
“नास्ति मूलम् अनौषधम्” ||
अर्थात, पृथ्वी पर ऐसी कोई वनस्पति ही नहीं है जिसमें कोई न कोई औषधीय गुण न हो! हमारे आस-पास ऐसे कितने ही पेड़ पौधे होते हैं जिनमें अद्भुत गुण होते हैं, लेकिन कई बार हमें उनके बारे में पता ही नहीं होता! मुझे नैनीताल से एक साथी, भाई परितोष ने इसी विषय पर एक पत्र भी भेजा है | उन्होंने लिखा है कि, उन्हें गिलोय और दूसरी कई वनस्पतियों के इतने चमत्कारी मेडिकल गुणों के बारे में कोरोना आने के बाद ही पता चला ! परितोष ने मुझे आग्रह भी किया है कि, मैं ‘मन की बात’ के सभी श्रोताओं से कहूँ कि आप अपने आसपास की वनस्पतियों के बारे में जानिए, और दूसरों को भी बताइये | वास्तव में, ये तो हमारी सदियों पुरानी विरासत है, जिसे हमें ��ी संजोना है | इसी दिशा में मध्य प्रदेश के सतना के एक साथी हैं श्रीमान रामलोटन कुशवाहा जी, उन्होंने बहुत ही सराहनीय काम किया है | रामलोटन जी ने अपने खेत में एक देशी म्यूज़ियम बनाया है | इस म्यूज़ियम में उन्होंने सैकड़ों औषधीय पौधों और बीजों का संग्रह किया है | इन्हें वो दूर–सुदूर क्षेत्रों से यहाँ लेकर आए है | इसके अलावा वो हर साल कई तरह की भारतीय सब्जियाँ भी उगाते हैं | रामलोटन जी की इस बगिया, इस देशी म्यूज़ियम को लोग देखने भी आते हैं, और उससे बहुत कुछ सीखते भी हैं | वाकई, ये एक बहुत अच्छा प्रयोग है जिसे देश के अलग–अलग क्षेत्रों में दोहराया जा सकता है | मैं चाहूँगा आपमें से जो लोग इस तरह का प्रयास कर सकते हैं, वो ज़रूर करें | इससे आपकी आय के नए साधन भी खुल सकते हैं | एक लाभ ये भी होगा कि स्थानीय वनस्पतियों के माध्यम से आपके क्षेत्र की पहचान भी बढ़ेगी |
मेरे प्यारे देशवासियों, अब से कुछ दिनों बाद 1 जुलाई को हम National Doctors’ Day मनाएंगे | ये दिन देश के महान चिकित्सक और Statesman, डॉक्टर बीसी राय की जन्म-जयंती को समर्पित है | कोरोना-काल में doctors के योगदान के हम सब आभारी हैं | हमारे डॉक्टर्स ने अपनी जान की परवाह न करते हुए हमारी सेवा की है | इसलिए, इस बार National Doctors’ Day और भी ख़ास हो जाता है |
साथियों, मेडिसिन की दुनिया के सबसे सम्मानित लोगों में से एक Hippocrates ने कहा था :
“Wherever the art of Medicine is loved, there is also a love of Humanity.”
यानि ‘जहाँ Art of Medicine के लिए प्रेम होता है, वहाँ मानवता के लिए भी प्रेम होता है’ | डॉक्टर्स, इसी प्रेम की शक्ति से ही हमारी सेवा कर पाते हैं इसलिए, हमारा ये दायित्व है कि हम उतने ही प्रेम से उनका धन्यवाद करें, उनका हौसला बढ़ाएँ | वैसे हमारे देश में कई लोग ऐसे भी हैं जो डॉक्टर्स की मदद के लिए आगे बढ़कर काम करते हैं | श्रीनगर से एक ऐसे ही प्रयास के बारे में मुझे पता चला | यहाँ डल झील में एक Boat Ambulance Service की शुरुआत की गई | इस सेवा को श्रीनगर के Tariq Ahmad Patloo जी ने शुरू किया, जो एक Houseboat Owner हैं | उन्होंने खुद भी COVID-19 से जंग लड़ी है और इसी से उन्हें Ambulance Service शुरू करने के लिए प्रेरित किया | उनकी इस Ambulance से लोगों को जागरूक करने का अभियान भी चल रहा है वो लगातार Ambulance से Announcement भी कर रहे हैं | कोशिश यही है कि लोग मास्क पहनने से लेकर दूसरी हर ज़रूरी सावधानी बरतें |
साथियों, Doctors’ Day के साथ ही एक जुलाई को Chartered Accountants Day भी मनाया जाता है | मैंने कुछ वर्ष पहले देश के Chartered Accountants से, ग्लोबल लेवल की भारतीय ऑडिट फर्म्स का उपहार मा��गा था | आज मैं उन्हें इसकी याद दिलाना चाहता हूँ | अर्थव्यवस्था में पारदर्शिता लाने के लिए Chartered Accountants बहुत अच्छी और सकारात्मक भूमिका निभा सकते हैं | मैं सभी Chartered Accountants, उनके परिवार के सदस्यों को अपनी शुभकामनाएं देता हूँ |
मेरे प्यारे देशवासियों, कोरोना के खिलाफ़ भारत की लड़ाई की एक बड़ी विशेषता है | इस लड़ाई में देश के हर व्यक्ति ने अपनी भूमिका निभाई है | मैंने “मन की बात” में अक्सर इसका ज़िक्र किया है | लेकिन कुछ लोगों को शिकायत भी रहती है कि उनके बारे में उतनी बात नहीं हो पाती है | अनेक लोग चाहे बैंक स्टाफ हो, टीचर्स हों, छोटे व्यापारी या दुकानदार हों, दुकानों में काम करने वाले लोग हों, रेहड़ी-पटरी वाले भाई-बहन हों, Security Watchmen, या फिर Postmen और Post Office के कर्मचारी- दरअसल यह लिस्ट बहुत ही लंबी है और हर किसी ने अपनी भूमिका निभाई है | शासन प्रशासन में भी कितने ही लोग अलग-अलग स्तर पर जुटे रहे हैं |
साथियों, आपने संभवतः भारत सरकार में सचिव रहे गुरु प्रसाद महापात्रा जी का नाम सुना होगा | मैं आज “मन की बात” में, उनका ज़िक्र भी करना चाहता हूँ | गुरुप्रसाद जी को कोरोना हो गया था, वो अस्पताल में भर्ती थे, और अपना कर्त्तव्य भी निभा रहे थे | देश में ऑक्सीजन का उत्पादन बढे, दूर-सुदूर इलाकों तक ऑक्सीजन पहुंचे इसके लिए उन्होंने दिन-रात काम किया | एक तरफ कोर्ट कचहरी का चक्कर, Media का Pressure - एक साथ कई मोर्चों पर वो लड़ते रहे, बीमारी के दौरान उन्होंने काम करना बंद नहीं किया | मना करने के बाद भी वो ज़िद करके ऑक्सीजन पर होने वाली वीडियों कॉन्फ्रेंस में भी शामिल हो जाते थे | देशवासियों की इतनी चिंता थी उन्हें | वो अस्पताल के Bed पर खुद की परवाह किए बिना, देश के लोगों तक ऑक्सीजन पहुंचाने के लिए इंतजाम में जुटे रहे | हम सबके लिए दुखद है कि इस कर्मयोगी को भी देश ने खो दिया है , कोरोना ने उन्हें हमसे छीन लिया है | ऐसे अनगिनत लोग हैं जिनकी चर्चा कभी हो नहीं पाई | ऐसे हर व्यक्ति को हमारी श्रद्धांजलि यही होगी कि हम कोविड प्रोटोकॉल का पूरी तरह पालन करें, वैक्सीन ज़रुर लगवाएं |
मेरे प्यारे देशवासियों, “मन की बात’ की सबसे अच्छी बात ये है कि इसमें मुझसे ज्यादा आप सबका योगदान रहता है | अभी मैंने MyGov में एक पोस्ट देखी, जो चेन्नई के थिरु आर.गुरुप्रसाद जी की है | उन्होंने जो लिखा है, वो जानकर आपको भी अच्छा लगेगा | उन्होंने लिखा है कि वो “मन की बात” programme के regular listener हैं | गुरुप्रसाद जी की पोस्ट से अब मैं कुछ पंक्तियाँ Quote कर रहा हूँ | उन्होंने लिखा है,
जब भी आप तमिलनाडु के बारे में बात करते हैं, तो मेरा Interest और भी बढ़ जाता है |
आपने तमिल भाषा और तमिल संस्कृति की महानता, तमिल त्योहारों और तमिलनाडु के प्रमुख स्थानों की चर्चा की है |
गुरु प्रसाद जी आगे लिखते हैं कि – “मन की बात” में मैंने तमिलनाडु के लोगों की उपलब्धियों के बारे में भी कई बार बताया है | तिरुक्कुरल के प्रति आपके प्यार और तिरुवल्लुवर जी के प्रति आपके आदर का तो कहना ही क्या ! इसलिए मैंने ‘मन की बात’ में आपने जो कुछ भी तमिलनाडु के बारे में बोला है, उन सबको संकलित कर एक E-Book तैयार की है | क्या आप इस E-book को लेकर कुछ बोलेंगे और इसे NamoApp पर भी release करेंगे ? धन्यवाद |
‘ये मैं गुरुप्रसाद जी का पत्र आप के सामने पढ़ रहा था |’
गुरुप्रसाद जी, आपकी ये पोस्ट पढ़कर बहुत आनंद आया | अब आप अपनी E-Book में एक और पेज जोड़ दीजिये |
..’नान तमिलकला चाराक्तिन पेरिये अभिमानी |
नान उलगतलये पलमायां तमिल मोलियन पेरिये अभिमानी |..’
उच्चारण का दोष अवश्य होगा लेकिन मेरा प्रयास और मेरा प्रेम कभी भी कम नहीं होगा | जो तमिल-भाषी नहीं हैं, उन्हें मैं बताना चाहता हूँ गुरुप्रसाद जी को मैंने कहा है –
मैं तमिल संस्कृति का बहुत बड़ा प्रशंसक हूँ |
मैं दुनिया की सबसे पुरानी भाषा तमिल का बड़ा प्रशंसक हूँ |
साथियों, हर हिन्दुस्तानी को, विश्व की सबसे पुरातन भाषा हमारे देश की है, इसका गुणगान करना ही चाहिए, उस पर गर्व महसूस करना चाहिए | मैं भी तमिल को लेकर बहुत गर्व करता हूँ | गुरु प्रसाद जी, आपका ये प्रयास मेरे लिए नई दृष्टि देने वाला है | क्योंकि मैं ‘मन की बात’ करता हूँ तो सहज-सरल तरीक़े से अपनी बात रखता हूँ | मुझे नहीं मालूम था कि इसका ये भी एक element था | आपने जब पुरानी सारी बातों को इकठ्ठा किया, तो मैंने भी उसे एक बार नहीं बल्कि दो बार पढ़ा | गुरुप्रसाद जी आपकी इस book को मैं NamoApp पर जरुर upload करवाऊंगा | भविष्य के प्रयासों के लिए आपको बहुत-बहुत शुभकामनायें |
मेरे प्यारे देशवासियों,आज हमने कोरोना की कठिनाइयों और सावधानियों पर बात की, देश और देशवासियों की कई उपलब्धियों पर भी चर्चा की |अब एक और बड़ा अवसर भी हमारे सामने है |15 अगस्त भी आने वाला है |आज़ादी के 75 वर्ष का अमृत-महोत्सव हमारे लिए बहुत बड़ी प्रेरणा है |हम देश के लिए जीना सीखें |आज़ादी की जंग- देश के लिए मरने वालों की कथा है | आज़ादी के बाद के इस समय को हमें देश के लिए जीने वालों की कथा बनाना है |हमारा मंत्र होना चाहिए –India First. हमारे हर फ़ैसले , हर निर्णय का आधार होना चाहिए - India First |
साथियों, अमृत-महोत्सव में देश ने कई सामूहिक लक्ष्य भी तय किए हैं |जैसे, हमें अपने स्वाधीनता सेनानियों को याद करते हुए उनसे जुड़े इतिहास को पुनर्जीवित करना है |आपको याद होगा कि ‘��न की बात’ में, मैंने युवाओं से स्वाधीनता संग्राम पर इतिहास लेखन करके, शोध करने, इसकी अपील की थी |मक़सद यह था कि युवा प्रतिभाएं आगे आए, युवा-सोच, युवा-विचार सामने आए, युवा- कलम नई ऊर्जा के साथ लेखन करे |मुझे ये देखकर बहुत अच्छा लगा कि बहुत ही कम समय में ढाई हज़ार से ज्यादा युवा इस काम को करने के लिए आगे आए हैं | साथियों, दिलचस्प बात ये है 19वीं- 20 वीं शताब्दी की जंग की बात तो आमतौर पर होती रहती है लेकिन ख़ुशी इस बात की है कि 21वीं सदी में जो युवक पैदा हुए हैं, 21वीं सदी में जिनका जन्म हुआ है, ऐसे मेरे नौजवान साथियों ने 19वीं और 20वीं शताब्दी की आज़ादी की जंग को लोगों के सामने रखने का मोर्चा संभाला है |इन सभी लोगों ने MyGov पर इसका पूरा ब्यौरा भेजा है |ये लोग हिंदी – इंग्लिश, तमिल, कन्नड़ा, बांग्ला, तेलुगू, मराठी – मलयालम, गुजराती, ऐसी देश की अलग-अलग भाषाओँ में स्वाधीनता संग्राम पर लिखेंगें |कोई स्वाधीनता संग्राम से जुड़े रहे, अपने आस-पास के स्थानों की जानकारी जुटा रहा है, तो कोई, आदिवासी स्वाधीनता सेनानियों पर किताब लिख रहा है |एक अच्छी शुरुआत है |मेरा आप सभी से अनुरोध है कि अमृत-महोत्सव से जैसे भी जुड़ सकते हैं, ज़रुर जुड़े |ये हमारा सौभाग्य है कि हम आज़ादी के 75 वर्ष के पर्व का साक्षी बन रहे हैं |इसलिए अगली बार जब हम ‘मन की बात’ में मिलेंगे, तो अमृत-महोत्सव की और तैयारियों पर भी बात करेंगे |आप सब स्वस्थ रहिए, कोरोना से जुड़े नियमों का पालन करते हुए आगे बढ़िए, अपने नए-नए प्रयासों से देश को ऐसे ही गति देते रहिए |इन्हीं शुभकामनाओं के साथ, बहुत बहुत धन्यवाद |
मेरे प्यारे देशवासियो,नमस्कार! अक्सर‘मन की बात’ में, आपकेप्रश्नों की बौछार रहती है | इस बार मैंने सोचा कि कुछ अलग किया जाए, मैं आपसे प्रश्न करूँ |तो, ध्यान से सुनिए मेरे सवाल |
....Olympic में Individual Gold जीतने वाला पहला भारतीय कौन था?
....Olympic के कौन से खेल में भारत ने अब तक सबसे ज्यादा medal जीते हैं?
...Olympic में किस खिलाड़ी ने सबसे ज्यादा पदक जीते हैं?
साथियो, आप मुझे जवाब भेजेंन भेजें, पर MyGov में Olympics परजो quiz है, उसमें प्रश्नों के उत्तर देंगे तो कई सारे इनाम जीतेंगे | ऐसे बहुत सारे प्रश्न MyGovके ‘Road to Tokyo Quiz’ में हैं | आप ‘Road to Tokyo Quiz’ में भाग लें | भारत ने पहले कैसा perform किया है ? हमारी Tokyo Olympics के लिए अब क्या तैयारी है ?- ये सब ख़ुद जानें और दूसरों को भी बताएं | मैं आप सब से आग्रह करना चाहता हूँ कि आप इस quiz competition में ज़रुर हिस्सा लीजिये |
साथियो, जब बात Tokyo Olympics की हो रही हो, तो भला मिल्खा सिंह जी जैसे legendary athlete को कौन भूल सकता है !कुछ दिन पहले ही कोरोना ने उन्हें हमसे छीन लिया | जब वे अस्पताल में थे, तो मुझे उनसे बात करने का अवसर मिला था |
बात करते हुए मैंने उनसे आग्रह किया था | मैंने कहा था कि आपने तो 1964 में Tokyo Olympics में भारत का प्रतिनिधित्व किया था, इसलिए इस बार, जब हमारे खिलाड़ी,Olympics के लिए Tokyo जा रहे हैं, तोआपको हमारे athletes का मनोबल बढ़ाना है, उन्हें अपने संदेश से प्रेरित करना है | वो खेल को लेकर इतना समर्पित और भावुक थे कि बीमारी में भी उन्होंने तुरंत ही इसके लिए हामी भर दी लेकिन, दुर्भाग्य से नियति को कुछ और मंजूर था | मुझे आज भी याद है 2014 में वो सूरत आए थे | हम लोगों ने एक Night Marathon का उद्घाटन किया था | उस समय उनसे जो गपशप हुई, खेलों के बारे में जो बात हुई, उससे मुझे भी बहुत प्रेरणा मिली थी | हम सब जानते हैं कि मिल्खा सिंह जी का पूरा परिवार sports को समर्पित रहा है, भारत का गौरव बढ़ाता रहा है |
साथियो, जब Talent, Dedication, Determination और Sportsman Spirit एक साथ मिलते हैं, तब जाकर कोई champion बनता है |हमारे देश में तो अधिकांश खिलाड़ी छोटे-छोटे शहरों, कस्बों, गाँवों से निकल करके आते हैं |Tokyo जा रहे हमारे Olympic दल में भी कई ऐसे खिलाड़ी शामिल हैं, जिनका जीवन बहुत प्रेरित करता है | हमारे प्रवीण जाधव जी के बारे में आप सुनेंगे, तो, आपको भी लगेगा कि कितने कठिन संघर्षों से गुजरते हुए प्रवीण जी यहाँ पहुंचे हैं | प्रवीण जाधव जी, महाराष्ट्र के सतारा ज़िले के एक गाँव के रहने वाले हैं | वो Archery के बेहतरीन खिलाड़ी हैं | उनके माता-पिता मज़दूरी कर परिवार चलाते हैं, और अब उनका बेटा, अपना पहला,Olympics खेलने Tokyo जा रहा है | ये सिर्फ़ उनके माता-पिता ही नहीं, हम सभी के लिए कितने गौरव की बात है | ऐसे ही, एक और खिलाड़ी हैं, हमारी नेहा गोयल जी | नेहा,Tokyoजा रही महिला हॉकी टीम की सदस्य हैं | उनकी माँ और बहनें, साईकिल की factory में काम करके परिवार का ख़र्च जुटाती हैं | नेहा की तरह ही दीपिका कुमारी जी के जीवन का सफ़र भी उतार-चढ़ाव भरा रहा है | दीपिका के पिता ऑटो-रिक्शा चलाते हैं और उनकी माँ नर्स हैं, और अब देखिए, दीपिका, अब Tokyo Olympics में भारत की तरफ से एकमात्र महिला तीरंदाज़ हैं | कभी विश��व की नंबर एक तीरंदाज़ रहीं दीपिका के साथ हम सबकी शुभकामनाएँ हैं |
साथियो, जीवन में हम जहां भी पहुँचते हैं, जितनी भी ऊंचाई प्राप्त करते हैं, जमीन से ये जुड़ाव, हमेशा, हमें अपनी जड़ों से बांधे रखता है | संघर्ष के दिनों के बाद मिली सफलता का आनंद भी कुछ और ही होता है |Tokyo जा रहे हमारे खिलाड़ियों ने बचपन में साधनों-संसाधनों की हर कमी का सामना किया, लेकिन वो डटे रहे, जुटे रहे | उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर की प्रियंका गोस्वामी जी का जीवन भी बहुत सीख देता है | प्रियंका के पिता बस कंडक्टर हैं | बचपन में प्रियंका को वो बैग बहुत पसंद था, जो medal पाने वाले खिलाड़ियों को मिलता है | इसी आकर्षण में उन्होंने पहली बार Race-Walking प्रतियोगिता में हिस्सा लिया था | अब, आज वो इसकी बड़ी champion हैं |
Javelin Throw में भाग लेने वाले शिवपाल सिंह जी, बनारस के रहने वाले हैं | शिवपाल जी का तो पूरा परिवार ही इस खेल से जुड़ा हुआ है | इनके पिता, चाचा और भाई, सभी भाला फेंकने में expert हैं | परिवार की यही परंपरा उनके लिए Tokyo Olympics में काम आने वाली है |Tokyo Olympic के लिए जा रहे चिराग शेट्टी और उनके partner सात्विक साईराज का हौसला भी प्रेरित करने वाला है | हाल ही में चिराग के नाना जी का कोरोना से निधन हो गया था | सात्विक भी खुद पिछले साल कोरोना पॉज़िटिव हो गए थे | लेकिन, इन मुश्किलों के बाद भी ये दोनों Men’s Double Shuttle Competition में अपना सर्वश्रेष्ठ देने की तैयारी में जुटे हैं |
एक और खिलाड़ी से मैं आपका परिचय कराना चाहूँगा, ये हैं, हरियाणा के भिवानी के मनीष कौशिक जी | मनीष जी खेती-किसानी वाले परिवार से आते हैं | बचपन में खेतों में काम करते-करते मनीष को boxing का शौक हो गया था | आज ये शौक उन्हें टोक्यो ले जा रहा है | एक और खिलाड़ी हैं, सी.ए. भवानी देवी जी | नाम भवानी है और ये तलवारबाजी में expert हैं | चेन्नई की रहने वाली भवानी पहली भारतीय Fencer हैं, जिन्होंने Olympic में qualify किया है | मैं कहीं पढ़ रहा था कि भवानी जी की training जारी रहे, इसके लिए उनकी माँ ने अपने गहने तक गिरवी रख दिये थे |
साथियो, ऐसे तो अनगिनत नाम हैं लेकिन ‘मन की बात’ में, मैं, आज कुछ ही नामों का जिक्र कर पाया हूँ | टोक्यो जा रहे हर खिलाड़ी का अपना संघर्ष रहा है, बरसों की मेहनत रही है | वो सिर्फ़ अपने लिए ही नहीं जा रहें बल्कि देश के लिए जा रहे हैं | इन खिलाड़ियों को भारत का गौरव भी बढ़ाना है और लोगों का दिल भी जीतना है और इसलिए मेरे देशवासियों मैं आपको भी सलाह देना चाहता हूँ, हमें जाने-अनजाने में भी हमारे इन खिलाड़ियों पर दबाव नहीं बनाना है, बल्कि खुले मन से, इनका साथ देना है, हर खिलाड़ी का उत्साह बढ़ाना है |
Social Media पर आप #Cheer4India के साथ अपने इन खिलाड़ियों को शुभकामनाएँ दे सकते हैं | आप कुछ और भी innovative करना चाहें, तो वो भी ज़रूर करें | अगर आपको कोई ऐसा idea आता है जो हमारे खिलाड़ियों के लिए देश को मिलकर करना चाहिए, तो वो आप मुझे ज़रुर भेजिएगा | हम सब मिलकर टोक्यो जाने वाले अपने खिलाड़ियों को support करेंगे - Cheer4India!!!Cheer4India!!!Cheer4India!!!
मेरे प्यारे देशवासियो, कोरोना के खिलाफ़ हम देशवासियों की लड़ाई जारी है,लेकिन इस लड़ाई में हम सब साथ मिलकर कई असाधारण मुकाम भी हासिल कर रहे हैं | अभी कुछ दिन पहले ही हमारे देश ने एक अभूतपूर्व काम किया है | 21 जून को vaccine अभियान के अगले चरण की शुरुआत हुई और उसी दिन देश ने 86 लाख से ज्यादा लोगों को मुफ़्त vaccine लगाने का record भी बना दिया और वो भी एक दिन में ! इतनी बड़ी संख्या में भारत सरकार की तरफ से मुफ़्त vaccination और वो भी एक दिन में ! स्वाभाविक है, इसकी चर्चा भी खूब हुई है |
साथियो, एक साल पहले सबके सामने सवाल था कि vaccine कब आएगी ? आज हम एक दिन में लाखों लोगों को‘ Made in India’ vaccine मुफ़्त में लगा रहे हैं और यही तो नए भारत की ताक़त है |
साथियो,vaccine की safety देश के हर नागरिक को मिले, हमें लगातार प्रयास करते रहना है |कई जगहों पर vaccine hesitancy को खत्म करने के लिए कई संगठन, civil society के लोग आगे आये हैं और सब मिलकर के बहुत अच्छा काम कर रहे हैं | चलिये, हम भी, आज, एक गाँव में चलते हैं, और,उन्हीं लोगों से बात करते हैं vaccine के बारे में मध्य प्रदेश के बैतूल ज़िले के डुलारिया गाँव चलते हैं |
प्रधानमंत्री : हलो !
राजेश : नमस्कार !
प्रधानमंत्री : नमस्ते जी |
राजेश : मेरा नाम राजेश हिरावे, ग्राम पंचायत डुलारिया, भीमपुर ब्लॉक|
प्रधानमंत्री : राजेश जी, मैंने फ़ोन इसलिए किया कि मैं जानना चाहता था कि अभी आपके गाँव में, अब कोरोना की क्या स्थिति है ?
राजेश : सर, यहाँ पे कोरोना की स्थिति तो अभी ऐसा कुछ नहीं है यहाँ I
प्रधानमंत्री : अभी लोग बीमार नहीं हैं ?
राजेश : जी |
प्रधानमंत्री : गाँव की जनसँख्या कितनी है? कितने लोग हैं गाँव में ?
राजेश : गाँव में 462 पुरुष हैं और 332 महिला हैं,सर |
प्रधानमंत्री : अच्छा! राजेश जी, आपने vaccine ले ली क्या ?
राजेश : नहीं सर, अभी नहीं लिए हैं |
प्रधानमंत्री : अरे ! क्यों नहीं लिया ?
राजेश : सर जी, यहाँ पर कुछ लोगों ने, कुछ WhatsApp पर ऐसा भ्रम डाल दिया गया कि उससे लोग भ्रमित हो गए सर जी |
प्रधानमंत्री : तो क्या आपके मन में भी डर है ?
राजेश : जी सर, पूरे गाँव में ऐसा भ्रम फैला दिया था सर |
प्रधानमंत्री : अरे रे रे, यह क्या बात की आपने ? देखिये राजेश जी...
राजेश : जी |
प्रधानमंत्री : मेरा आपको भी और मेरे सभी गाँव के भाई-बहनों को यही कहना है कि डर है तो निकाल दीजिये |
राजेश : ��ी |
प्रधानमंत्री : हमारे पूरे देश में 31 करोड़ से भी ज्यादा लोगों ने वैक्सीन का टीका लगवा लिया है |
राजेश : जी |
प्रधानमंत्री : आपको पता है न, मैंने खुद ने भी दोनों dose लगवा लिए हैं |
राजेश : जी सर |
प्रधानमंत्री : अरे मेरी माँ तो क़रीब-क़रीब 100 साल की हैं, उन्होंने भी दोनों dose लगवा लिए हैं I कभी-कभी किसी को इससे बुखार वगैरह आता है, पर वो बहुत मामूली होता है, कुछ घंटो के लिए ही होता है |देखिए vaccine नहीं लेना बहुत ख़तरनाक हो सकता है |
राजेश : जी |
प्रधानमंत्री : इससे आप ख़ुद को तो ख़तरे में डालते ही हैं, साथ ही में परिवार और गाँव को भी ख़तरे में डाल सकते हैं |
राजेश : जी |
प्रधानमंत्री : और राजेश जी इसलिए जितना जल्दी हो सके vaccine लगवा लीजिये और गाँव में सबको बताइये कि भारत सरकार की तरफ से मुफ़्त vaccine दी जा रही है और 18 वर्ष से ऊपर के सभी लोगों के लिए यह मुफ़्त vaccination है |
राजेश : जी... जी...
प्रधानमंत्री : तो ये आप भी लोगों को गाँव में बताइये और गाँव में ये डर का तो माहौल का कोई कारण ही नहीं है |
राजेश : कारण यही सर, कुछ लोग ने ऐसी गलत अफ़वाह फैला दी जिससे लोग बहुत ही भयभीत हो गए उसका उदाहरण जैसे, जैसा उस vaccine को लगाने से बुखार आना, बुखार से और बीमारी फ़ैल जाना मतलब आदमी की मौत हो जाना यहाँ तक की अफ़वाह फैलाई |
प्रधानमंत्री : ओहोहो... देखिये आज तो इतने रेडियो, इतने टी.वी., इतनी सारी खबरें मिलती हैं और इसलिए लोगों को समझाना बहुत सरल हो जाता है और देखिये मैं आपको बताऊँ भारत के अनेक गाँव ऐसे हैं जहाँ सभी लोग vaccine लगवा चुके है यानी गाँव के शत प्रतिशत लोग | जैसे मैं आपको एक उदाहरण देता हूँ...
राजेश : जी |
प्रधानमंत्री : कश्मीर में बांदीपुरा ज़िला है, इस बांदीपुरा ज़िले में एक व्यवन(Weyan)गाँव के लोगों ने मिलकर 100%, शत प्रतिशत vaccine का लक्ष्य बनाया और उसे पूरा भी कर दिया | आज कश्मीर के इस गाँव के 18 साल से ऊपर के सभी लोग टीका लगवा चुके हैं | नागालैंड के भी तीन गाँवों के बारे में मुझे पता चला कि वहाँ भी सभी लोगों ने 100%, शत प्रतिशत टीका लगवा लिया है |
राजेश : जी... जी...
प्रधानमंत्री : राजेश जी, आपको भी अपने गाँव, अपने आस-पास के गाँव में ये बात पहुँचानी चाहिये और आप भी जैसे कहते हैं ये भ्रम है, बस ये भ्रम ही है |
राजेश : जी... जी...
प्रधानमंत्री : तो भ्रम का जवाब यही है कि आपको ख़ुद को टीका लगा कर के समझाना पड़ेगा सबको | करेंगे न आप ?
राजेश : जी सर |
प्रधानमंत्री : पक्का करेंगे ?
राजेश : जी सर, जी सर | आपसे बात करने से मुझे ऐसा लगा कि मैं ख़ुद भी टीका लगाऊंगा और लोगों को इसके बारे में आगे बढ़ाऊँ |
प्रधानमंत्री : अच्छा, गाँव में और भी कोई है जिनसे मैं बात कर सकता हूँ ?
राजेश : जी है सर |
प्रधानमंत्री : कौन बात करेगा ?
किशोरीलाल : हेल्लो सर... नमस्कार !
प्रधानमंत्री : नमस्ते जी, कौन बोल रहे हैं ?
किशोरीलाल : सर, मेरा नाम है किशोरीलाल दूर्वे |
प्रधानमंत्री : तो किशोरीलाल जी, अभी राजेश जी से बात हो रही थी |
किशोरीलाल : जी सर |
प्रधानमंत्री : और वो तो बड़े दुखी हो करके बता रहे थे कि vaccine को लेकर लोग अलग-अलग बातें करते हैं |
किशोरीलाल : जी |
प्रधानमंत्री : आपने भी ऐसा सुना है क्या ?
किशोरीलाल : हाँ... सुना तो हूँ सर वैसा...
प्रधानमंत्री : क्या सुना है ?
किशोरीलाल : क्योंकि ये है सर ये पास में महाराष्ट्र है उधर से कुछ रिश्तेदारी से जुड़े लोग मतलब कुछ अफ़वाह फैलाते कि vaccine लगाने से लोग सब मर रहा है, कोई बीमार हो रहा है कि सर लोगों के पास ज्यादा भ्रम है सर, इसलिए नहीं ले रहे हैं |
प्रधानमंत्री :नहीं.. कहते क्या है ? अब कोरोना चला गया, ऐसा कहते है ?
किशोरीलाल : जी |
प्रधानमंत्री : कोरोना से कुछ नहीं होता है ऐसा कहते है ?
किशोरीलाल : नहीं, कोरोना चला गया नहीं बोलते सर, कोरोना तो है बोलते लेकिन vaccine जो लेते उससे मतलब बीमारी हो रहा है, सब मर रहे है | ये स्थिति बताते सर वो |
प्रधानमंत्री : अच्छा vaccine के कारण मर रहे हैं ?
किशोरीलाल : अपना क्षेत्र आदिवासी-क्षेत्र है सर, ऐसे भी लोग इसमें जल्दी डरते हैं .. जो भ्रम फैला देते कारण से लोग नहीं ले रहे सर vaccine |
प्रधानमंत्री :देखिये किशोरीलाल जी...
किशोरीलाल : जी हाँ सर...
प्रधानमंत्री : ये अफ़वाहें फैलाने वाले लोग तो अफ़वाहें फैलाते रहेंगे |
किशोरीलाल : जी |
प्रधानमंत्री : हमें तो ज़िन्दगी बचानी है, अपने गाँव वालों को बचाना है, अपने देशवासियों को बचाना है | और ये अगर कोई कहता है कि कोरोना चला गया तो ये भ्रम में मत रहिए |
किशोरीलाल : जी |
प्रधानमंत्री : ये बीमारी ऐसी है, ये बहुरूपिये वाली है |
किशोरीलाल : जी सर |
प्रधानमंत्री : वो रूप बदलती है... नए-नए रंग-रूप कर के पहुँच जाती है |
किशोरीलाल : जी |
प्रधानमंत्री : और उसमें बचने के लिए हमारे पास दो रास्ते हैं | एक तो कोरोना के लिए जो protocol बनाया, मास्क पहनना, साबुन से बार-बार हाथ धोना, दूरी बनाए रखना और दूसरा रास्ता है इसके साथ-साथ vaccine का टीका लगवाना, वो भी एक अच्छा सुरक्षा कवच है तो उसकी चिंता करिए |
किशोरीलाल : जी |
प्रधानमंत्री : अच्छा किशोरीलाल जी ये बताइये |
किशोरीलाल : जी सर
प्रधानमंत्री : जब लोग आपसे बातें करते है तो आप कैसे समझाते है लोगों को ? आप समझाने का काम करते है कि आप भी अफ़वाह में आ जाते हैं ?
किशोरीलाल : समझाएं क्या, वो लोग ज्यादा हो जाते तो सर हम भी भयभीत में आ जाते न सर |
प्रधानमंत्री : देखिये किशोरीलाल जी, मेरी आपसे बात हुई है आज, आप मेरे साथी हैं|
किशोरीलाल : जी सर
प्रधानमंत्री : आपको डरना नहीं है और लोगों के डर को भी निकालना है | निकालोगे ?
किशोरीलाल : जी सर | निकालेंगे सर, लोगों के डर को भी निकालेंगे सर | मैं स्वयं भी ख़ुद लगाऊंगा |
प्रधानमंत्री : देखिये, अफ़वाहों पर बिल्कुल ध्यान न दें |
किशोरीलाल : जी
प्रधानमंत्री : आप जानते है, हमारे वैज्ञानिकों ने कितनी मेहनत करके ये vaccine बनाई है |
किशोरीलाल : जी सर |
प्रधानमंत्री : साल भर, रात-दिन इतने बड़े-बड़े वैज्ञानिकों ने काम किया है और इसलिए हमें विज्ञान पर भरोसा करना चाहिये, वैज्ञानिकों पर भरोसा करना चाहिये | और ये झूठ फैलाने वाले लोगों को बार-बार समझाना चाहिये कि देखिये भई ऐसा नहीं होता है, इतने लोगों ने vaccine ले लिया है कुछ नहीं होता है |
किशोरीलाल : जी
प्रधानमंत्री : और अफ़वाहों से बहुत बच करके रहना चाहिये, गाँव को भी बचाना चाहिये |
किशोरीलाल : जी
प्रधानमंत्री : और राजेश जी, किशोरीलाल जी, आप जैसे साथियों को तो मैं कहूँगा कि आप अपने ही गाँव में नहीं, और गाँवों में भी इन अफ़वाहों को रोकने का काम कीजिये और लोगों को बताइये मेरे से बात हुई है |
किशोरीलाल : जी सर |
प्रधानमंत्री : बता दीजिये, मेरा नाम बता दीजिये |
किशोरीलाल : बताएँगे सर और समझायेंगे लोगों को और स्वयं भी लेंगे |
प्रधानमंत्री : देखिये, आपके पूरे गाँव को मेरी तरफ से शुभकामनाएं दीजिये |
किशोरीलाल : जी सर |
प्रधानमंत्री : और सभी से कहिये कि जब भी अपना नंबर आये...
किशोरीलाल : जी...
प्रधानमंत्री : vaccine जरुर लगवाएं |
किशोरीलाल : ठीक है सर |
प्रधानमंत्री : मैं चाहूँगा कि गाँव की महिलाओं को, हमारी माताओं-बहनों को...
किशोरीलाल : जी सर
प्रधानमंत्री : इस काम में ज्यादा से ज्यादा जोड़िये और सक्रियता के साथ उनको साथ रखिये |
किशोरीलाल : जी
प्रधानमंत्री : कभी-कभी माताएँ-बहनें बात कहती है न लोग जल्दी मान जाते हैं |
किशोरीलाल : जी
प्रधानमंत्री : आपके गाँव में जब टीकाकरण पूरा हो जाए तो मुझे बताएँगे आप ?
किशोरीलाल : हाँ, बताएँगे सर |
प्रधानमंत्री : ��क्का बताएँगे ?
किशोरीलाल : जी
प्रधानमंत्री : देखिये, मैं इंतज़ार करूँगा आपकी चिट्ठी का |
किशोरीलाल : जी सर
प्रधानमंत्री : चलिये, राजेश जी, किशोर जी बहुत-बहुत धन्यवाद | आपसे बात करने का मौक़ा मिला |
किशोरीलाल : धन्यवाद सर, आपने हमसे बात किया है | बहुत-बहुत धन्यवाद आपको भी |
साथियो, कभी-ना-कभी, ये विश्व के लिए case study का विषय बनेगा कि भारत के गाँव के लोगों ने, हमारे वनवासी-आदिवासी भाई-बहनों ने, इस कोरोना काल में, किस तरह, अपने सामर्थ्य और सूझबूझ का परिचय दिया | गाँव के लोगों ने quarantine centreबनाए, स्थानीय ज़रूरतों को देखते हुए COVID protocol बनाए | गाँव के लोगों ने किसी को भूखा नहीं सोने दिया, खेती का काम भी रुकने नहीं दिया | नजदीक के शहरों में दूध-सब्जियाँ, ये सब हर रोज पहुंचता रहे, ये भी, गाँवों ने सुनिश्चित कियायानी ख़ुद को संभाला, औरों को भी संभाला | ऐसे ही हमें vaccination अभियान में भी करते रहना है | हमें जागरूक रहना भी है,और जागरूक करना भी है | गांवों में हर एक व्यक्ति को vaccine लग जाए,यह हर गाँव का लक्ष्य होना चाहिए | याद रखिए,और मैं तो आपको ख़ास रूप से कहना चाहता हूँ | आप एक सवाल अपने मन में पूछिये - हर कोई सफल होना चाहता है लेकिन निर्णायक सफलता का मंत्र क्या है ? निर्णायक सफलता का मंत्र है -निरंतरता |इसलिए हमें सुस्त नहीं पड़ना है, किसी भ्रांति में नहीं रहना है | हमें सतत प्रयास करते रहना है, कोरोना पर जीत हासिल करनी है |
मेरे प्यारे देशवासियों, हमारे देश में अब मानसून का सीजन भी आ गया है | बादल जब बरसते हैं तो केवल हमारे लिए ही नहीं बरसते, बल्कि बादल आने वाली पीढ़ियों के लिए भी बरसते हैं | बारिश का पानी जमीन में जाकर इकठ्ठा भी होता है, जमीन के जलस्तर को भी सुधारता है | और इसलिए मैं जल संरक्षण को देश सेवा का ही एक रूप मानता हूँ | आपने भी देखा होगा, हम में से कई लोग इस पुण्य को अपनी ज़िम्मेदारी मानकर लगे रहे हैं | ऐसे ही एक शख्स हैं उत्तराखंड के पौड़ी गढ़वाल के सच्चिदानंद भारती जी | भारती जी एक शिक्षक हैं और उन्होंने अपने कार्यों से भी लोगों को बहुत अच्छी शिक्षा दी है | आज उनकी मेहनत से ही पौड़ी गढ़वाल के उफरैंखाल क्षेत्र में पानी का बड़ा संकट समाप्त हो गया है | जहाँ लोग पानी के लिए तरसते थे, वहाँ आज साल-भर जल की आपूर्ति हो रही है |
साथियों, पहाड़ों में जल संरक्षण का एक पारंपरिक तरीक़ा रहा है जिसे ‘चालखाल’ भी कहा जाता है , यानि पानी जमा करने के लिए बड़ा सा गड्ढा खोदना | इस परंपरा में भारती जी ने कुछ नए तौर –तरीकों को भी जोड़ दिया | उन्होंने लगातार छोटे-बड़े तालाब बनवाये | इससे न सिर्फ उफरैंखाल की पहाड़ी हरी-भरी हुई, बल्कि लोगों की पेयजल की दिक्कत भी दूर हो गई | आप ये जानकर हैरान रह जायेंगे कि भारती जी ऐसी 30 हजार से अधिक जल-तलैया बनवा चुके हैं | 30 हजार ! उनका ये भागीरथ कार्य आज भी जारी है और अनेक लोगों को प्रेरणा दे रहे हैं |
साथियों, इसी तरह यूपी के बाँदा ज़िले में अन्धाव गाँव के लोगों ने भी एक अलग ही तरह का प्रयास किया है | उन्होंने अपने अभियान को बड़ा ही दिलचस्प नाम दिया है – ‘खेत का पानी खेत में, गाँव का पानी गाँव में’ | इस अभियान के तहत गाँव के कई सौ बीघे खेतों में ऊँची-ऊँची मेड़ बनाई गई है | इससे बारिश का पानी खेत में इकठ्ठा होने लगा, और जमीन में जाने लगा | अब ये सब लोग खेतों की मेड़ पर पेड़ लगाने की भी योजना बना रहे हैं | यानि अब किसानों को पानी, पेड़ और पैसा, तीनों मिलेगा | अपने अच्छे कार्यों से, पहचान तो उनके गाँव की दूर-दूर तक वैसे भी हो रही है |
साथियों, इन सभी से प्रेरणा लेते हुए हम अपने आस-पास जिस भी तरह से पानी बचा सकते हैं, हमें बचाना चाहिए | मानसून के इस महत्वपूर्ण समय को हमें गंवाना नहीं है |
मेरे प्यारे देशवासियों, हमारे शास्त्रों में कहा गया है –
“नास्ति मूलम् अनौषधम्” ||
अर्थात, पृथ्वी पर ऐसी कोई वनस्पति ही नहीं है जिसमें कोई न कोई औषधीय गुण न हो! हमारे आस-पास ऐसे कितने ही पेड़ पौधे होते हैं जिनमें अद्भुत गुण होते हैं, लेकिन कई बार हमें उनके बारे में पता ही नहीं होता! मुझे नैनीताल से एक साथी, भाई परितोष ने इसी विषय पर एक पत्र भी भेजा है | उन्होंने लिखा है कि, उन्हें गिलोय और दूसरी कई वनस्पतियों के इतने चमत्कारी मेडिकल गुणों के बारे में कोरोना आने के बाद ही पता चला ! परितोष ने मुझे आग्रह भी किया है कि, मैं ‘मन की बात’ के सभी श्रोताओं से कहूँ कि आप अपने आसपास की वनस्पतियों के बारे में जानिए, और दूसरों को भी बताइये | वास्तव में, ये तो हमारी सदियों पुरानी विरासत है, जिसे हमें ही संजोना है | इसी दिशा में मध्य प्रदेश के सतना के एक साथी हैं श्रीमान रामलोटन कुशवाहा जी, उन्होंने बहुत ही सराहनीय काम किया है | रामलोटन जी ने अपने खेत में एक देशी म्यूज़ियम बनाया है | इस म्यूज़ियम में उन्होंने सैकड़ों औषधीय पौधों और बीजों का संग्रह किया है | इन्हें वो दूर–सुदूर क्षेत्रों से यहाँ लेकर आए है | इसके अलावा वो हर साल कई तरह की भारतीय सब्जियाँ भी उगाते हैं | रामलोटन जी की इस बगिया, इस देशी म्यूज़ियम को लोग देखने भी आते हैं, और उससे बहुत कुछ सीखते भी हैं | वाकई, ये एक बहुत अच्छा प्रयोग है जिसे देश के अलग–अलग क्षेत्रों में दोहराया जा सकता है | मैं चाहूँगा आपमें से जो लोग इस तरह का प्रयास कर सकते हैं, वो ज़रूर करें | इससे आपकी आय के नए साधन भी खुल सकते हैं | एक लाभ ये भी होगा कि स्थानीय वनस्पतियों के माध्यम से आपके क्षेत्र की पहचान भी बढ़ेगी |
मेरे प्यारे देशवासियों, अब से कुछ दिनों बाद 1 जुलाई को हम National Doctors’ Day मनाएंगे | ये दिन देश के महान चिकित्सक और Statesman, डॉक्टर बीसी राय की जन्म-जयंती को समर्पित है | कोरोना-काल में doctors के योगदान के हम सब आभारी हैं | हमारे डॉक्टर्स ने अपनी जान की परवाह न करते हुए हमारी सेवा की है | इसलिए, इस बार National Doctors’ Day और भी ख़ास हो जाता है |
साथियों, मेडिसिन की दुनिया के सबसे सम्मानित लोगों में से एक Hippocrates ने कहा था :
“Wherever the art of Medicine is loved, there is also a love of Humanity.”
यानि ‘जहाँ Art of Medicine के लिए प्रेम होता है, वहाँ मानवता के लिए भी प्रेम होता है’ | डॉक्टर्स, इसी प्रेम की शक्ति से ही हमारी सेवा कर पाते हैं इसलिए, हमारा ये दायित्व है कि हम उतने ही प्रेम से उनका धन्यवाद करें, उनका हौसला बढ़ाएँ | वैसे हमारे देश में कई लोग ऐसे भी हैं जो डॉक्टर्स की मदद के लिए आगे बढ़कर काम करते हैं | श्रीनगर से एक ऐसे ही प्रयास के बारे में मुझे पता चला | यहाँ डल झील में एक Boat Ambulance Service की शुरुआत की गई | इस सेवा को श्रीनगर के Tariq Ahmad Patloo जी ने शुरू किया, जो एक Houseboat Owner हैं | उन्होंने खुद भी COVID-19 से जंग लड़ी है और इसी से उन्हें Ambulance Service शुरू करने के लिए प्रेरित किया | उनकी इस Ambulance से लोगों को जागरूक करने का अभियान भी चल रहा है वो लगातार Ambulance से Announcement भी कर रहे हैं | कोशिश यही है कि लोग मास्क पहनने से लेकर दूसरी हर ज़रूरी सावधानी बरतें |
साथियों, Doctors’ Day के साथ ही एक जुलाई को Chartered Accountants Day भी मनाया जाता है | मैंने कुछ वर्ष पहले देश के Chartered Accountants से, ग्लोबल लेवल की भारतीय ऑडिट फर्म्स का उपहार माँगा था | आज मैं उन्हें इसकी याद दिलाना चाहता हूँ | अर्थव्यवस्था में पारदर्शिता लाने के लिए Chartered Accountants बहुत अच्छी और सकारात्मक भूमिका निभा सकते हैं | मैं सभी Chartered Accountants, उनके परिवार के सदस्यों को अपनी शुभकामनाएं देता हूँ |
मेरे प्यारे देशवासियों, कोरोना के खिलाफ़ भारत की लड़ाई की एक बड़ी विशेषता है | इस लड़ाई में देश के हर व्यक्ति ने अपनी भूमिका निभाई है | मैंने “मन की बात” में अक्सर इसका ज़िक्र किया है | लेकिन कुछ लोगों को शिकायत भी रहती है कि उनके बारे में उतनी बात नहीं हो पाती है | अनेक लोग चाहे बैंक स्टाफ हो, टीचर्स हों, छोटे व्यापारी या दुकानदार हों, दुकानों में काम करने वाले लोग हों, रेहड़ी-पटरी वाले भाई-बहन हों, Security Watchmen, या फिर Postmen और Post Office के कर्मचारी- दरअसल यह लिस्ट बहुत ही लंबी है और हर किसी ने अपनी भूमिका निभाई है | शासन प्रशासन में भी कितने ही लोग अलग-अलग स्तर पर जुटे रहे हैं |
साथियों, आपने संभवतः भारत सरकार में सचिव रहे गुरु प्रसाद महापात्रा जी का नाम सुना होगा | मैं आज “मन की बात” में, उनका ज़िक्र भी करना चाहता हूँ | गुरुप्रसाद जी को कोरोना हो गया था, वो अस्पताल में भर्ती थे, और अपना कर्त्तव्य भी निभा रहे थे | देश में ऑक्सीजन का उत्पादन बढे, दूर-सुदूर इलाकों तक ऑक्सीजन पहुंचे इसके लिए उन्होंने दिन-रात काम किया | एक तरफ कोर्ट कचहरी का चक्कर, Media का Pressure - एक साथ कई मोर्चों पर वो लड़ते रहे, बीमारी के दौरान उन्होंने काम करना बंद नहीं किया | मना करने के बाद भी वो ज़िद करके ऑक्सीजन पर होने वाली वीडियों कॉन्फ्रेंस में भी शामिल हो जाते थे | देशवासियों की इतनी चिंता थी उन्हें | वो अस्पताल के Bed पर खुद की परवाह किए बिना, देश के लोगों तक ऑक्सीजन पहुंचाने के लिए इंतजाम में जुटे रहे | हम सबके लिए दुखद है कि इस कर्मयोगी को भी देश ने खो दिया है , कोरोना ने उन्हें हमसे छीन लिया है | ऐसे अनगिनत लोग हैं जिनकी चर्चा कभी हो नहीं पाई | ऐसे हर व्यक्ति को हमारी श्रद्धांजलि यही होगी कि हम कोविड प्रोटोकॉल का पूरी तरह पालन करें, वैक्सीन ज़रुर लगवाएं |
मेरे प्यारे देशवासियों, “मन की बात’ की सबसे अच्छी बात ये है कि इसमें मुझसे ज्यादा आप सबका योगदान रहता है | अभी मैंने MyGov में एक पोस्ट देखी, जो चेन्नई के थिरु आर.गुरुप्रसाद जी की है | उन्होंने जो लिखा है, वो जानकर आपको भी अच्छा लगेगा | उन्होंने लिखा है कि वो “मन की बात” programme के regular listener हैं | गुरुप्रसाद जी की पोस्ट से अब मैं कुछ पंक्तियाँ Quote कर रहा हूँ | उन्होंने लिखा है,
जब भी आप तमिलनाडु के बारे में बात करते हैं, तो मेरा Interest और भी बढ़ जाता है |
आपने तमिल भाषा और तमिल संस्कृति की महानता, तमिल त्योहारों और तमिलनाडु के प्रमुख स्थानों की चर्चा की है |
गुरु प्रसाद जी आगे लिखते हैं कि – “मन की बात” में मैंने तमिलनाडु के लोगों की उपलब्धियों के बारे में भी कई बार बताया है | तिरुक्कुरल के प्रति आपके प्यार और तिरुवल्लुवर जी के प्रति आपके आदर का तो कहना ही क्या ! इसलिए मैंने ‘मन की बात’ में आपने जो कुछ भी तमिलनाडु के बारे में बोला है, उन सबको संकलित कर एक E-Book तैयार की है | क्या आप इस E-book को लेकर कुछ बोलेंगे और इसे NamoApp पर भी release करेंगे ? धन्यवाद |
‘ये मैं गुरुप्रसाद जी का पत्र आप के सामने पढ़ रहा था |’
गुरुप्रसाद जी, आपकी ये पोस्ट पढ़कर बहुत आनंद आया | अब आप अपनी E-Book में एक और पेज जोड़ दीजिये |
..’नान तमिलकला चाराक्तिन पेरिये अभिमानी |
नान उलगतलये पलमायां तमिल मोलियन पेरिये अभिमानी |..’
उच्चारण का दोष अवश्य होगा लेकिन मेरा प्रयास और मेरा प्रेम कभी भी कम नहीं होगा | जो तमिल-भाषी नहीं हैं, उन्हें मैं बताना चाहता हूँ गुरुप्रसाद जी को मैंने कहा है –
मैं तमिल संस्कृति का बहुत बड़ा प्रशंसक हूँ |
मैं दुनिया की सबसे पुरानी भाषा तमिल का बड़ा प्रशंसक हूँ |
साथियों, हर हिन्दुस्तानी को, विश्व की सबसे पुरातन भाषा हमारे देश की है, इसका गुणगान करना ही चाहिए, उस पर गर्व महसूस करना चाहिए | मैं भी तमिल को लेकर बहुत गर्व करता हूँ | गुरु प्रसाद जी, आपका ये प्रयास मेरे लिए नई दृष्टि देने वाला है | क्योंकि मैं ‘मन की बात’ करता हूँ तो सहज-सरल तरीक़े से अपनी बात रखता हूँ | मुझे नहीं मालूम था कि इसका ये भी एक element था | आपने जब पुरानी सारी बातों को इकठ्ठा किया, तो मैंने भी उसे एक बार नहीं बल्कि दो बार पढ़ा | गुरुप्रसाद जी आपकी इस book को मैं NamoApp पर जरुर upload करवाऊंगा | भविष्य के प्रयासों के लिए आपको बहुत-बहुत शुभकामनायें |
मेरे प्यारे देशवासियों,आज हमने कोरोना की कठिनाइयों और सावधानियों पर बात की, देश और देशवासियों की कई उपलब्धियों पर भी चर्चा की |अब एक और बड़ा अवसर भी हमारे सामने है |15 अगस्त भी ���ने वाला है |आज़ादी के 75 वर्ष का अमृत-महोत्सव हमारे लिए बहुत बड़ी प्रेरणा है |हम देश के लिए जीना सीखें |आज़ादी की जंग- देश के लिए मरने वालों की कथा है | आज़ादी के बाद के इस समय को हमें देश के लिए जीने वालों की कथा बनाना है |हमारा मंत्र होना चाहिए –India First. हमारे हर फ़ैसले , हर निर्णय का आधार होना चाहिए - India First |
साथियों, अमृत-महोत्सव में देश ने कई सामूहिक लक्ष्य भी तय किए हैं |जैसे, हमें अपने स्वाधीनता सेनानियों को याद करते हुए उनसे जुड़े इतिहास को पुनर्जीवित करना है |आपको याद होगा कि ‘मन की बात’ में, मैंने युवाओं से स्वाधीनता संग्राम पर इतिहास लेखन करके, शोध करने, इसकी अपील की थी |मक़सद यह था कि युवा प्रतिभाएं आगे आए, युवा-सोच, युवा-विचार सामने आए, युवा- कलम नई ऊर्जा के साथ लेखन करे |मुझे ये देखकर बहुत अच्छा लगा कि बहुत ही कम समय में ढाई हज़ार से ज्यादा युवा इस काम को करने के लिए आगे आए हैं | साथियों, दिलचस्प बात ये है 19वीं- 20 वीं शताब्दी की जंग की बात तो आमतौर पर होती रहती है लेकिन ख़ुशी इस बात की है कि 21वीं सदी में जो युवक पैदा हुए हैं, 21वीं सदी में जिनका जन्म हुआ है, ऐसे मेरे नौजवान साथियों ने 19वीं और 20वीं शताब्दी की आज़ादी की जंग को लोगों के सामने रखने का मोर्चा संभाला है |इन सभी लोगों ने MyGov पर इसका पूरा ब्यौरा भेजा है |ये लोग हिंदी – इंग्लिश, तमिल, कन्नड़ा, बांग्ला, तेलुगू, मराठी – मलयालम, गुजराती, ऐसी देश की अलग-अलग भाषाओँ में स्वाधीनता संग्राम पर लिखेंगें |कोई स्वाधीनता संग्राम से जुड़े रहे, अपने आस-पास के स्थानों की जानकारी जुटा रहा है, तो कोई, आदिवासी स्वाधीनता सेनानियों पर किताब लिख रहा है |एक अच्छी शुरुआत है |मेरा आप सभी से अनुरोध है कि अमृत-महोत्सव से जैसे भी जुड़ सकते हैं, ज़रुर जुड़े |ये हमारा सौभाग्य है कि हम आज़ादी के 75 वर्ष के पर्व का साक्षी बन रहे हैं |इसलिए अगली बार जब हम ‘मन की बात’ में मिलेंगे, तो अमृत-महोत्सव की और तैयारियों पर भी बात करेंगे |आप सब स्वस्थ रहिए, कोरोना से जुड़े नियमों का पालन करते हुए आगे बढ़िए, अपने नए-नए प्रयासों से देश को ऐसे ही गति देते रहिए |इन्हीं शुभकामनाओं के साथ, बहुत बहुत धन्यवाद |
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वह अविश्वसनीय दौड़... जब नेहरू ने पूछा- बताइए आपको क्या चाहिए, और मिल्खा ने मांगा... Divya Sandesh
#Divyasandesh
वह अविश्वसनीय दौड़... जब नेहरू ने पूछा- बताइए आपको क्या चाहिए, और मिल्खा ने मांगा...
भारतीय खेल जगत की सबसे सम्मानित हस्तियों में से एक, मशहूर धावक मिल्खा सिंह का शुक्रवार देर रात निधन हो गया। आजादी के फौरन बाद वैश्विक खेल मंच पर अगर किसी एक खिलाड़ी ने भारत का सिर ऊंचा किया तो वो थे मिल्खा सिंह। मिल्खा ने अपनी जिंदगी में कई यादगार रेस पूरी की हैं, मगर 1958 की उस रेस के बाद सबकुछ बदल गया था। मिल्खा ने टाइम्स ऑफ इंडिया से बातचीत में उस रेस का अनुभव साझा किया था। पढ़िए 1958 की उस गौरवशाली रेस की कहानी, मिल्खा सिंह की जुबानी।Mikha Singh Flying Sikh: 1958 के कॉमनवेल्थ खेलों में हिस्सा लेने गए मिल्खा सिंह का मुकाबला वर्ल्ड रेकॉर्ड होल्ड मैल्कम क्लाइव से था। क्लाइव उस समय 400 मीटर रेस में दुनिया के सबसे बेहतरीन धावक हुआ करते थे।भारतीय खेल जगत की सबसे सम्मानित हस्तियों में से एक, मशहूर धावक मिल्खा सिंह का शुक्रवार देर रात निधन हो गया। आजादी के फौरन बाद वैश्विक खेल मंच पर अगर किसी एक खिलाड़ी ने भारत का सिर ऊंचा किया तो वो थे मिल्खा सिंह। मिल्खा ने अपनी जिंदगी में कई यादगार रेस पूरी की हैं, मगर 1958 की उस रेस के बाद सबकुछ बदल गया था। मिल्खा ने टाइम्स ऑफ इंडिया से बातचीत में उस रेस का अनुभव साझा किया था। पढ़िए 1958 की उस गौरवशाली रेस की कहानी, मिल्खा सिंह की जुबानी।’अरे इंडिया क्या है, इंडिया इज नथिंग'”मैं टोक्यो एशियन गेम्स में दो गोल्ड मेडल्स (200 मीटर और 400 मीटर) जीतकर 1958 के कॉमनवेल्थ गेम्स (कार्डिफ, वेल्स) में हिस्सा लेने पहुंचा था। जमैका, साउथ अफ्रीका, केन्या, इंग्लैंड, कनाडा और ऑस्ट्रेलिया के वर्ल्ड क्लास एथलीट्स वहां थे। कार्डिफ में चुनौती बेहद तगड़ी थी। और कार्डिफ के लोग सोचते थे: ‘अरे इंडिया क्या है, इंडिया इज नथिंग।’ मुझे यकीन नहीं था कि मैं कॉमनवेल्थ गेम्स में गोल्ड जीत सकता हूं। उस तरह का भरोसा कभी रहा ही नहीं क्योंकि मैं वर्ल्ड रेकॉर्ड होल्डर मैल्कम क्लाइव स्पेंस (साउथ अफ्रीका) से टक्कर ले रहा था। वह उस समय 400m में दुनिया के सर्वश्रेष्ठ धावक थे।”चरपाई पर बैठ कोच ने दिया ब्रह्मज्ञान”मैं मेरे अमेरिकन कोच डॉ आर्थर डब्ल्यू हावर्ड को क्रेडिट दूंगा। NIS पटियाला के पहले डेप्युटी डायरेक्टर, डॉ पटियाला उन गेम्स में भारत की एथलेटिक्स टीम के कोच थे। पूरे रेस की रणनीति उन्होंने की तैयार की थी। उन्होंने स्पेंस को पहले और दूसरे राउंड में दौड़ते हुए देखा। फाइनल रेस से पहले वाली रात वो चारपाई पर बैठे और मुझसे कहा, “मिल्का, मैं थोड़ी-बहुत हिंदी ही समझता हूं लेकिन मैं तुम्हें मैल्कम स्पेंस की रणनीति के बारे में बताता हूं और ये भी कि तुम्हें क्या करना चाहिए।”कोच ने मुझसे कहा कि स्पेंस अपनी रेस के शुरुआती 300-350 मीटर धीमे दौड़ता है और फाइनल स्ट्रेच में बाकियों को पछाड़ देता है। डॉ हावर्ड ने कहा, तुम्हें शुरू से ही पूरी स्पीड से जाना चाहिए क्योंकि तुममें स्टैमिना है। अगर तुम ऐसा करोगे तो स्पेंसर अपनी रणनीति भूल जाएगा।'”मिल्खा की चाल ने उड़ा दिए स्पेंस के होश”मैं आउटर लेन पर था, नंबर 5 वाली और स्पेंस दूसरी पर था। कार्डिफ आर्म्स पार्क स्टेडियम में रेस होनी थी। उन दिनों आप एक बैग से जो नंबर चुनते थे, उसके आधार पर लेन अलॉट होती थी। इसी वजह से मुझे 5 नंबर वाली मिली। मतलब हमें शुरुआती राउंड में पहले दौड़ना था, फिर क्वार्टरफाइनल्स में, सेमीफाइनल में और फाइनल में भी।मैं ��ुरू से ही पूरा दम लगाकर भागा, आखिरी 50 मीटर तक बड़ी तेज दौड़ा। और जैसा डॉ हावर्ड ने कहा था, स्पेंस को अहसास हो गया कि ‘सिंह बहुत आगे निकल गया है।’ मुझे दिख रहा था कि स्पेंस अपनी रणनीति भूल गया है क्योंकि वह मेरी बराबरी में लगा था। वह तेज दौड़ने लगा और आखिर में वह मुझसे एक फुट ही पीछे था। वह आखिर तक मेरे कंधों के पास था मगर मुझे हरा नहीं पाया। मैंने 46.6 सेकेंड्स में रेस खत्म की और उसने 46.9 में। डॉ हावर्ड का शुक्रिया कि मैंने गोल्ड मेडल जीता।”जब नेहरू ने पूछा, क्या चाहते हो मिल्खा सिंह?”वह गोल्ड मेडल भारत के लिए बड़ा मौका था। मुझे बहुत सारे लोगों के कॉल्स और मेसेजेस मिले, प्रधानमंत्री पंडित (जवाहरलाल) नेहरू जी का भी। उन्होंने मुझसे पूछा, ‘मिल्खा, तुम्हें क्या चाहिए?’ उस वक्त मुझे पता नहीं था कि क्या मांगना चाहिए। मैंने दिल्ली में 200 एकड़ जमीन या घर मांग लिए होते। मैं भारत में एक दिन की छुट्टी मांग लेता।”
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स्मार्ट सिटी चंडीगढ़ की इन जगहों पर घूमना न करें मिस, फूडी ट्रैवलर्स यहां जरूर जाएं »
इस शहर के साथ हरियाणा का पंचकूला तथा पंजाब का मोहाली भी जुड़ गया है।
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स्मार्ट सिटी की चर्चा के बीच बात करें, तो आजादी के बाद देश का पहला नियोजित शहर है चंडीगढ़। यह शहर ऊर्जा क्षेत्र में भी देश को नई राह दिखा रहा है। यह देश का ऐसा पहला शहर होगा जिसके इस साल के आखिर तक अक्षय ऊर्जा पर निर्भर हो जाने की उम्मीद है। आज वंदना वालिया बाली के साथ चलते हैं चंडीगढ़ के सफर पर..आजाद भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू का सपना था कि देश में एक ऐसा आधुनिक शहर बसाया जाए जो नए गणतंत्र की रचनात्मक क्षमता को दर्शाए। इस सपने की नींव चंडीगढ़ के रूप में 1948 में रखी गई। इसके लिए मंजूर जमीन में 24 गांव आए जिनमें एक का नाम चंडीगढ़ था। शक्ति की प्रतीक मां चंडी के दुर्ग यानी गढ़ के रूप में चंडीगढ़ शहर बसा। आज हर घुमक्कड़ की सूची में इसका नाम अनिवार्य रूप से ��ुमार होता है।
इतना खास है चंडीगढ़
इस शहर के साथ हरियाणा का पंचकूला तथा पंजाब का मोहाली भी जुड़ गया है, इसलिए इसे 'ट्राइसिटी' भी कहा जाने लगा है। यह एकमात्र ऐसा केंद्रशासित प्रदेश है, दो प्रदेशों पंजाब तथा हरियाणा की राजधानी भी है। ली कार्बूजिए की वास्तु संरचना इस शहर के निर्माण की जिम्मेदारी फ्रांस के मशहूर वास्तुकार ली कार्बूजिए को सौंपी गई। उन्होंने मानव शरीर की कार्यप्रणाली को ध्यान में रखते हुए इस शहर का ढांचा तैयार किया, जिससे कि एक स्वस्थ व संपूर्ण शहर का अक्स उभर कर आए। शहर के फेफड़ों की संज्ञा दी गई लेजर वैली को, जो कई पाकरें की श्रृंखला है। सड़कों के जाल को उन्होंने संचार व्यवस्था कहा और इंडस्टि्रयल एरिया को विसरा। करीब 44 वर्ग मील में फैले इस शहर की खूबसूरती सभी को आकर्षित करती है। शहर के हर सेक्टर की बसावट कमोबेश एक जैसी है, इसके बावजूद उनकी अपनी अलग विशेषता और पहचान है। बर्फी की तरह आयताकार वर्ग में सेक्टर बंटे हैं जहां ग्रीन बेल्ट है। ली कार्बूजिए के निधन के बाद उनके कजिन पियेरे जेनरे तथा मैक्सवेल फ्राए ने उनके काम को आगे बढ़ाया। वास्तुकारों का स्वर्गचंडीगढ़ की हेरिटेज बिल्डिंग्स में आर्किटेक्ट्स की काफी दिलचस्पी रहती है ऐसा कहते हैं चंडीगढ़ टूरिज्म के डायरेक्टर जितेंद्र यादव। इन बिल्डिंग्स में पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट, ओपन हैंड, पंजाब यूनिवर्सिटी का गांधी भवन, कैपिटल कॉम्पलेक्स, विधानसभा और सचिवालय शामिल हैं। यूनेस्को द्वारा इन्हें हेरिटेज का दर्जा दिया गया है। इनमें कैपिटल कॉम्प्लेक्स की बात करें तो इसे ली कार्बूजिए ने ही डिजाइन किया था। इसे शहर की शान भी कहा जाता है। 100 एकड़ में बनी यह इमारत पंजाब हरियाणा हाईकोर्ट, विधानसभा और सचिवालय बिल्डिंग को एक साथ जोड़ती है। वर्ष 2016 में इन्हें यूने���्को द्वारा वर्ल्ड हेरिटेज घोषित किया गया और फिर आम लोगों के लिए ��ी खोल दिया गया। सभी इमारतें ज्यामेट्रिकल शेप में डिजाइन की गई हैं। इसी कॉम्प्लेक्स का हिस्सा है 'ओपन हैंड मॉन्यूमेंट'। इसे ली कार्बूजिए ने चंडीगढ़ के प्रतीक चिह्न के रूप में 1948 में डिजाइन किया था, पर अपने रहते उसे बनवा न सके। उनकी याद में इसे 1985 में बनाया गया। एक अन्य धरोहर है गांधी भवन। इसे ली कार्बूजिए के कजिन पियरे जेनरे ने डिजाइन किया था। पंजाब यूनिवर्सिटी के परिसर में बनी यह बिल्डिंग अपने बेहतरीन आर्किटेक्ट के लिए जानी जाती है।
चंडीगढ़ के लगभग हर सेक्टर में एक खूबसूरत गार्डन है लेकिन सबसे लोकप्रिय है रोज गार्डन जो हर रंग के गुलाबों से गुलजार रहता है। देश के पूर्व राष्ट्रपति जाकिर हुसैन के नाम पर स्थापित रोज गार्डन, सेक्टर 16 में स्थित है। यहां गुलाब की करीब 900 किस्में लोगों को लुभाती हैं। पौधों की संख्या करीब 50,000 है। यहां फरवरी महीने के मध्य में वार्षिक रोज फेस्टिवल का आयोजन होता है, जिसे देश-विदेश से पर्यटक देखने आते हैं। इस गार्डन का उद्घाटन 1967 में हुआ था। हस्तियों का बसेराफैशन और अभिनय हो या फिर खेलों का क्षेत्र, इस शहर ने इन सभी क्षेत्रों में एक से बढ़कर एक हस्तियां दुनिया को उपहार में दिया है। वान्या मिश्रा 2012 में फेमिना मिस इंडिया वर्ल्ड रह चुकी हैं। इसी तरह अभिनय के क्षेत्र में किरण खेर, गुल पनाग, गुरलीन चोपड़ा, यामी गौतम जैसे बड़े नाम हैं, जो इसी शहर से आते हैं। निशानेबाजी में देश को ओलंपिक्स में पहला गोल्ड दिलाने वाले अभिनव बिंद्रा चंडीगढ़ के ही हैं। वहीं, क्रिकेट में युवराज सिंह, कपिल देव, दिनेश मोंगिया जैसे खिलाड़ी चंडीगढ़ ने दिए हैं। यहां का गोल्फ रेंज बेहद खास है जो दो भागों में बंटी है। यहां कई अंतरराष्ट्रीय टूर्नामेंट भी खेले गए। एथलीट मिल्खा सिंह, जीव मिल्खा सिंह, बलबीर सिंह सीनियर भी शहर की शान हैं।
ये खास जगहें देखना न भूलें
खुलेपन का प्रतीक'ओपन टू गिव, ओपन टू रिसीव', यह मर्म छिपा है ओपन हैंड के प्रतीक के पीछे। यह शहर के स्वभाव को दर्शाता है। जो सभी के लिए खुला है और सदैव देने का भाव रखता है। 26 मीटर ऊंचा और 50 टन भारी यह ओपन हैंड हवा में हर दिशा में घूमता है। सड़कों का नायाब जाल खूबसूरती के साथ आधुनिकता ��ें भी अव्वल है यह शहर। क्वालिटी लाइफ की तलाश यहां आकर पूरी होती है। इस खूबसूरत शहर की एक और विशेषता यह है कि यातायात के लिए यहां सात प्रकार की सड़कें बनाई गई हैं जिन्हें कार्बूजिए ने 7 वीएस का नाम दिया था। ये सड़कें जहां शहर की खूबसूरत बढ़ाती हैं वहीं रिहायशी इलाकों को यातायात के शोर और प्रदूषण से भी दूर रखती हैं। इनमें वी-1 वे सड़कें हैं जो चंडीगढ़ को अंबाला, शिमला व खरड़ से जोड़ती हैं। वी-2 वे सड़कें हैं जिनमें चंडीगढ़ के मुख्य व्यावसायिक व प्रशासनिक संस्थान बने हुए हैं। वी-3 सड़कें सेक्टर्स में से गुजरते तेज वाहनों के लिए हैं। वी-4 सड़कें बाजारों और सेक्टर्स के बीच बनी हैं। वी-5 सेक्टर्स के बीच की सड़कें हैं और वी-6 घरों तक जाने वाली व वी-7 फुटपाथ या फिर साइकिल-रिक्शालेन है। सुहावनी सुखना झीलमानव निर्मित सुखना झील शहरवासियों की जान है। प्रकृति के मनोरम नजारों का आनंद लेने या वॉक अथवा जॉगिंग करने सुबह और शाम यहां लोग पहुंचते हैं। इसके अलावा नौका विहार, ऊंट की सवारी, अपना स्केच बनवाना, कैफेटेरिया में भोजन का आनंद, चंडीगढ़ के सिंबल के साथ फोटो खिंचवाना भी यहां आने वालों के लिए आकर्षण का केंद्र रहता है। इस झील का निर्माण भी आर्किटेक्ट ली कार्बूजिए ने चंडीगढ़ के लिए जल प्रबंधन और उसका बाढ़ से बचाव करने के लिए करवाया था। इसके लिए 1958 में सुखना झील पर बांध बनाकर तीन वर्ग किलोमीटर में यह झील बनाई गई और बाद में उस झील की राह ही बदल दी गई। यह 8 से 16 फीट गहरी है, और तीन किलोमीटर तक फैली हुई है। इसके दक्षिणी छोर की ओर गोल्फ कोर्स तथा दूसरे छोर पर 'गार्डन ऑफ साइलेंस' या 'बुद्धा पीस पार्क' है।
लीड के आसपास कला का बेजोड़ नमूना 'रॉक गार्डन'नेक चंद द्वारा निर्मित रॉक गार्डन न केवल चंडीगढ़ में बल्कि द��निया भर में प्रसिद्ध है। करीब 40 एकड़ में फैले इस विशाल गार्डन में वेस्ट मैटीरियल यानी बेकार के सामानों से ही एक से बढ़कर एक नायाब कलाकृतियां बनाई गई हैं। 1958 में नेकचंद ने अपने खाली समय के सदुपयोग के लिए इसे गुप्त रूप से बनाना शुरू किया। तब 18 साल तक अधिकारियों को इसका पता भी नहीं था। 1975 में जब इसकी जानकारी मिली तो इस कार्य को गैरकानूनी करार दिया गया लेकिन अद्भुत रचनात्मकता देखते हुए और जनता की मांग पर नेक चंद को न केवल इसका कार्य आगे चलाने की अनुमति मिली बल्कि 'सबडिवीजन इंजीनियर, रॉक गार्डन' की उपाधि, वेतन व 50 मजदूर काम में सहायता के लिए भी दिए गए। आज इसके एक भाग में मनभावन झरनों का कोलाहल है तो शेष भाग में अलग-अलग खंडों में घरों से एकत्रित किए गए कबाड़ से बनी कलाकृतियां हैं। हालांकि अब नेकचंद तो नहीं हैं, लेकिन उनकी क्रिएटिविटी यहां हर तरफ देखी जा सकती है।इंटरनेशनल डॉल म्यूजियम सेक्टर 23 में बने डॉल म्यूजियम में देश-विदेश की करीब 300 से ज्यादा डॉल्स दुनिया के विभिन्न देशों की संस्कृति की पहचान कराती हैं।
खाने-पीने के शौकीनों के लिए खास
कई पौराणिक कथाओं की झांकियां भी यहां देखी जा सकती हैं। पंजाबी खुशबू वाले लजीज खानेसिटी ब्यूटीफुल में यदि आप रोड साइड पंजाबी ढाबे ढूंढ़ेगे तो वे आपको नहीं मिलेंगे क्योंकि यहां उनका आधुनिकीकरण हो चुका है। लेकिन लगभग हर सेक्टर के रेस्टोरेंट्स में पंजाबी खानों की खुशबू जरूर मिल जाती है। बटर चिकन खाने वालों के लिए तो जैसे चंडीगढ़ स्वर्ग है। सेक्टर 28 डी का पाल का ढाबा नॉन-वेज पसंद करने वालों के लिए मशहूर डेस्टिनेशन है तो सेक्टर 22 बी के मार्केट में तहल सिंह चिकन कॉर्नर पर पहुंच जाएंगे और रुमाली रोटी के साथ बटर चिकन खाएंगे तो मजा ही अनोखा होगा। ऐसा नहीं है क��� चंडीगढ़ में नॉनवेज रेस्तरांओं में वेज खाना मजेदार नहीं मिलेगा। विशुद्ध पंजाबी स्वाद का चना मसाला, शाही पनीर, दाल मक्खनी ऐसी मिलेगी कि स्वाद नहीं भूल पाएंगे।
Posted By: Pratima Jaiswal
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बॉलीवुड की इन टैलेंटेड अभिनेत्रियों को नेपोटिज़्म की चुकानी पड़ी बड़ी कीमत!
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बॉलीवुड की इन टैलेंटेड अभिनेत्रियों को नेपोटिज़्म की चुकानी पड़ी बड़ी कीमत!
दोस्तों बॉलीवुड अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत की मौत ने सभी को हिला कर रख दिया है, खबरों की माने तो सुशांत ने अपनी जान फिल्म इंडस्ट्री में चल रहे है नेपोटिज़्म के चलते दी है और इस पर बहस तेज़ हो गई है। उनकी मौत के बाद अनेक अभिनेताओं नेपोटिज़्म पर अपने दर्द को सोशल मीडिया पर शेयर किया है।
अपने विचार रखते हुए उन्होंने बताया है की बॉलीवुड में छोटे शहरों से आये हुए बाहरी लोगों के साथ केसा व्यवहार किया जाता है और नेपोटिज़्म के कारण स्टार किड्स को उनकी जगह फिल्म या सीरियल में ले लिया जाता है। ऐसे में आज आपको कुछ ऐसी अभिनेत्रियो के बारे में बता रहे है है जिन्हे भाई-भतीजावाद के कारण खामियाज़ा भुगतना पड़ा।
ऋचा चड्ढा
बॉलीवुड फिल्म जगत की अभिनेत्री और फुकरे की भोली पंजाब अभिनेत्री ऋचा चड्ढा ने मसान, फुकरे, सबरजीत और सेक्शन 375 बेहतरीन फिल्मों में काम किया है। प्रतिभावान होने के बावज़ूद ऋचा चढ़ा को मेन लीड रोल वाली फिल्म हासिल करने के लिए फिल्मों में संघर्ष करना पड़ रहा है। हाल ही में ऋचा को फिल्म पंगा में सपोर्टिंग रोल में देखा गया है। इस फिल्म में ऋचा चड्ढा ने कंगना रनौत की बेस्ट फ्रेंड की भूमिका निभाई है। एक साक्षात्कार में ऋचा चड्ढा ने कहा था “मैंने बहुत मेहनत और लग्न से अपनी पढाई पूरी की थी। उसके बाद कुछ बनने का सपना लिए मुंबई की रुख किया। तब यहाँ पर हमारी ऑडिशन की प्रक्रिया चल रही थी। ऐसे में इंडस्ट्री के स्टार किड्स जो ग्रूम हो रहे होते हैं, जिनका प्यूबर्टी पीरियड चल रहा था, उन्हें बड़े प्रोडूसर्स और डायरेक्टर्स लॉन्च करने की तैयारी कर रहे थे और हम जैसे लोग काम की तलाश कर रहे होते थे या आज भी काफी वक्त बिताने के बाद भी कुछ लोग सीख रहे होते हैं। यह इंडस्ट्री स्टार किड्स के लिए इनर सर्किल सपोर्ट सिस्टम उपलब्ध कराती है।
यामी गौतम
शानदार अभिनय से दर्शकों को प्रभावित करने के बाद यामनी ने बॉलीवुड में प्रवेश किया, अपने लिए एक खास जगह बनाई। यामी गौतम ने विक्की डोनर और काबिल जैसी फिल्मों मेंअपने बेजोड़ अभिनय से यह साबित कर दिखाया कि खूबसूरत होने के साथ वे टैलेंटेड एक्ट्रेस भी हैं। इन फिल्मों के अलावा यामी गौतम को बेहतरीन रोल मिला भी नहीं।
मा��ी गिल
बॉलीवुड फलम जगत की खूबसूरत और टेलेंटेड अभिनेत्रियों में से एक अभिनेत्री माही गिल ने फिल्म देव डी में शानदार एक्टिंग करके न केवल दर्शकों क दिल जीत लिया, बल्कि बॉलीवुड में भी एंट्री की। यह उनकी पहली थी और पहली ही फिल्म ने माही को सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का फिल्मफेयर क्रिटिक्स अवार्ड मिला। फिल्म साहेब, बीवी और गैंगस्टर, पानसिंह तोमर, शारिक और गैंग ऑफ़ घोस्ट में माही गिल ने बेहतरीन एक्टिंग की।
सुरवीन चावल
टीवी जगत से अपने करियर की शुरुआत करने वाली अभिनेत्री सुरवीन चावल ने सीरियल्स में ही अपनी एक्टिंग लोगो का दिल जित लिया था और फिर उन्होंने फिल्मो के तरफ रुख किया था। लेकिन उन्हें कोई कोई सफलता नहीं मिली। पर वेब सीरीज़ सेक्रेड गेम्स और फिल्म हेट स्टोरी २ में बोल्ड सीन और अच्छी एक्टिंग से दर्शकों का ध्यान करके अपनी और खींचा। एक और जहाँ उनके काम को सराहा गया, वहीँ दूसरी ओर स्टार किड्स के आने से उन्हें बॉलीवुड में नेपोटिज़्म का सामना करना पड़ा। एक इंटरव्यू के दौरान सुरवीन चावला ने कहा थी कि मुझे अपने करियर में टॉप पर टीवी छोड़ने का डर नहीं रहा।इसके बावजूद मैं आगे बढ़ रही थी, लेकिन मुझे वापस नीचे धकेल दिया गया। ऐसा नहीं थी मुझमें टैलेंट की कमी थी। इसकी वजह था वो स्टार किड़, जिसके पास मुझसे बेहतर कॉन्टैक्ट थे। मुझे इस बात से गहरा धक्का लगा और काफी समय लगा इस से बाहर निकलने में। फिर चीज़े सामान्य होने लगी और मैंने अपने अन्दर फिर से विश्वास पैदा किया।
दिव्या दत्ता
फिल्म इंडस्ट्री की बेहतरीन और बहुमुखी अभिनेताओं में से एक हैं दिव्या दत्ता। अपनी शानदार एक्टिंग से दर्शकों का दिल जीत लिया। दिव्या ने वीर-जारा, दिल्ली 6 , भाग मिल्खा भाग जैसे सुपर हिट फिल्मोंमें काम किया और उनकी एक्टिंग की बहुत तारीफ भी हुई। कुछ बेहतरीन फिल्मों में निभाय गए सपोर्टिंग रोल के लिये उन्हें ���ुरुस्कार भी मिले, लेकिन दुख की बात है कि इतना समय फिल्म इंडस्ट्री में बिताने के बाद भी उन्हें उनके टैलेंटेड के अनुसार कभी काम नहीं मिला।
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फिल्म 'स्टूडेंट ऑफ द इयर' से बॉलिवुड में दस्तक देने वाले ने अपने सात साल के करियर में सफलता और असफलता दोनों का स्वाद चख लिया। उनकी तीसरी ही फिल्म एक विलेन जहां ब्लॉकबस्टर रह��, वहीं बीते सालों में 'बार बार देखो', 'अ जेंटलमैन', 'अय्यारी' जैसी फिल्में नहीं चलीं। हालांकि, सिद्धार्थ मानते हैं कि इस सफलता और असफलता दोनों से ही उन्होंने काफी सीखा। सफलता-असफलता दोनों ने सिखाया बॉलिवुड में अपने अब तक के सफरनामे पर सिद्धार्थ कहते हैं, 'इन सात सालों में मैंने बहुत सारे उतार-चढ़ाव देखे। बहुत कुछ सीखा। शुरू में आपमें एक अनअवेयरनेस होती है, वहां से फोकस्ड होने में समय लगता है और उस समय में आप बहुत कुछ सीखते हैं। मैंने अपनी पिछली तीन-चार फिल्मों से बहुत कुछ सीखा है। कोई फिल्म चलेगी या नहीं, यह रिलीज के पहले समझ पाना बहुत मुश्किल है। इसलिए आपकी कोशिश होनी चाहिए कि एक ऐक्टर के तौर पर आप अपना काम अच्छे से करें, दर्शकों को कुछ अलग दें, ताकि फिल्म न भी चले, तो लोग कम से कम यह कहें कि इस लड़के ने कुछ अलग करने की कोशिश की। यह एक सीख रही। इसके अलावा यह भी एक सीख रही कि स्क्रिप्ट, बजट और बॉक्स ऑफिस के हिसाब से किसके साथ किस सुर की फिल्म करनी चाहिए, क्योंकि हर डायरेक्टर का अलग सुर होता है। इंशाअल्लाह, अगर इस साल सबकुछ अच्छा जाता है, तो मैं एक्चुअली खुश हूं कि मैं इस उतार-चढ़ाव से गुजरा, क्योंकि जब आप अपनी तीसरी ही फिल्म में इतनी सक्सेस पा जाते हैं, जैसा 'एक विलेन' के साथ हुआ, तो आप उस सक्सेस को भी भांप नहीं पाते। तब मैं उतना अवेयर नहीं था, क्योंकि मेरा इंडस्ट्री से कोई क्लोज कनेक्शन नहीं था।' कॉम्पटिटिव न होता, तो दिल्ली में बैठा होता सिद्धार्थ की पहली फिल्म 'स्टूडेंट ऑफ द इयर' कॉम्पिटिशन पर बेस्ड थी, जिससे आलिया भट्ट और वरुण धवन ने भी डेब्यू किया था। क्या कभी ऐसा लगता है कि बाकी दोनों स्टूडेंट उनसे आगे निकल गए? सिद्धार्थ रियल लाइफ में खुद को कितना कॉम्पटिटिव मानते हैं? यह पूछने पर उनका कहना है, 'बिलकुल वे बहुत अच्छा काम कर रहे हैं। रही बात मेरे कॉम्पटिटिव होने की, तो हम लोग, जो बाहर से आते हैं, वे पहले दिन से ही सैकड़ों लोगों के साथ ऑडिशन देते हैं और अगर वहां से यहां तक पहुंचे हैं, तो यह अच्छा करने की चाहत ही है। वरना, मैं यहां बांद्रा के पाली हिल में नहीं होता, अपने शहर दिल्ली में ही कुछ कर रहा होता। इसलिए मुझमें कॉम्पटिटिवनेस तो है ही। कभी-कभी लोग कॉम्पिटिशन को नेगेटिव तौर पर लेते हैं, लेकिन आप अगर इसे अच्छा काम करने, फोकस्ड रहने, महत्वाकांक्षी होने के नजरिए में लें, तो यह मुझमें सौ गुना से भी ज्यादा है। अगर मुझमें यह न होता, तो अपने शहर, अपने फैमिली प्रफेशन को छोड़कर यहां नहीं पहुंच पाता, क्योंकि यहां शुरू से ही काफी निरा��ा झेलनी पड़ती है। जब आप अपना पहला ऑडिशन देते हैं और सिलेक्ट नहीं होते हैं, वहीं से कहानी शुरू हो जाती है कि रिजेक्शन को एक्सेप्ट करना है और आगे बढ़ना है, तो कॉम्पटिटिव तो मैं बहुत हूं, जो जरूरी भी है।' सच्चे हीरोज पर फिल्में बननी चाहिए सिद्धार्थ अपनी पहली बायॉपिक फिल्म के रूप में कारगिल शहीद मेजर विक्रम बत्रा की जिंदगी को परदे पर उतारने जा रहे हैं। देखा जाए, तो इन दिनों इंडस्ट्री में देशभक्ति वाली फिल्मों का ट्रेंड सा चल रहा है। लेकिन सिद्धार्थ इसे सक्सेस का फॉर्म्युला नहीं मानते। बकौल सिद्धार्थ, 'अगर मैं 'शेरशाह' की बात करूं, तो मेरे लिए यह बिना आर्मी, बिना इंडिया या पाकिस्तान का जिक्र या किसी और देश को हराने या जिंगोइजम के बगैर भी एक बहुत प्रेरक और भावनात्मक कहानी है। हालांकि, विक्रम बत्रा ने देश के लिए जान दी है, इसलिए हम इस साइड को नकार नहीं सकते। लेकिन मुझे वह एक कैरेक्टर के तौर पर बहुत दिलचस्प लगे। उनकी लव स्टोरी बहुत दिलचस्प रही है। उनकी गर्लफ्रेंड अब भी उन्हें उतने ही प्यार से याद करती हैं। रही ट्रेंड की बात, तो सच्ची घटनाओं पर आधारित फिल्में बनाना एक क्रिएटिव पर्सन के तौर पर हमारा अधिकार है। मुझे नहीं लगता कि यह एक बॉलिवुड फॉर्म्युला है। आप सच्ची कहानी दर्शा रहे हैं। ये जवान या खिलाड़ी, जैसे मिल्खा सिंह पर फिल्म बनी थी, ये हमारे सच्चे हीरोज हैं। ऐसे किरदारों पर हर देश, हर कल्चर में फिल्में बनाई जाती हैं, ताकि वे बच्चों को इंस्पायर कर सकें।' अफेयर की खबरों से फर्क नहीं पड़ता प्रफेशनल लाइफ के अलावा सिद्धार्थ के लिंक अप की खबरें भी अक्सर सुर्खियों में रहती हैं। उनका नाम कभी को-स्टार तारा सुतारिया, तो कभी कियारा आडवानी के साथ जोड़ा जाता है। ऐसे में क्या ये खबरें उन्हें परेशान करती हैं? इस पर वह कहते हैं, 'अब नहीं। बिलकुल नहीं। शुरुआत में, जब मैं दिल्ली से आया था, तो मुझे इतनी जानकारी नहीं थी कि ऐसी भी चीजें लिखी जाती हैं, जो न भी सच हों। कभी-कभी ये बातें सच भी होती हैं। ऐसे रिलेशनशिप हम सबके हुए हैं। लेकिन कुछ समय के बाद एक मच्योरिटी आती है, आप समझ जाते हैं कि यह खब��� कहां से आई है और कैसे लोग सोच रहे हैं, तो आपको ये चीजें परेशान नहीं करती हैं।' घर का है पुराना फिल्मी कनेक्शन पिछले दिनों सिद्धार्थ के बैचलर पैड की भी काफी चर्चा रही, जिसे गौरी खान ने डिजाइन किया है। सिद्धार्थ बताते हैं, 'इस जगह का फिल्मी इतिहास रहा है। यहां देव आनंद साहब का पुराना स्टूडियो हुआ करता था। अभी भी नीचे उनकी मूर्ति लगी हु�� है, तो मैं लकी हूं कि ऐसी जगह पर रह रहा हूं। इसे डिजाइन करने में गौरी खान जी ने मेरी मदद की है। दरअसल, मुझे घर स्टाइलिश, लेकिन एक वार्म फीलिंग वाला चाहिए था, जिसमें जमीन से जुड़े होने का अहसास हो। वह हमेशा कहती थीं कि आप कुछ वैसा चाहते हैं, जैसा आर्यन को पसंद है। कुछ सेक्शन को लेकर वह कहती थीं कि शाहरुख भी इसे पसंद करते। बाहर जो झूला है, वह शाहरुख सर ने अपने फार्म के लिए खरीदा था। यह उनकी स्वीटनेस है कि उन्होंने वह मुझे दे दिया। मेरे लिए यह काफी मजेदार रहा, क्योंकि मैं खुद पिछले दस-बारह सालों में मुंबई में बहुत सारे घर में रह चुका हूं, छोटे से लेकर बड़े तक में, टचवुड अभी तक यह बेहतर ही हुआ है और इंशाअल्लाह आगे और बेहतर ही होगा।'
from Entertainment News in Hindi, Latest Bollywood Movies News, मनोरंजन न्यूज़, बॉलीवुड मूवी न्यूज़ | Navbharat Times https://navbharattimes.indiatimes.com/movie-masti/interviews/actor-sidharth-malhotras-candid-and-amusing-revelations-in-an-interview/articleshow/69997419.cms
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Biography of milkha singh (मिल्खा सिंह की जीवनी )
मिल्खा सिंह यह एक ऐसा खिलाडी था जो भागता नहीं था उड़ता था , जिस के लिए मिल्खा सिंह को “The flying Sikh” भी कहा जाता है , बचपन : मिल्खा सिंह का जनम 1935 में पाकिस्तान के लिआलपुर में हुआ , मिल्खा सिंह का बचपन पाकिस्तान में ही गुजरा मगर जब देश का बटवारा हुआ तो पाकिस्तान में वी दंगे शुरू हो गे और मिल्खा सिंह के माता पिता को मिल्खा सिंह की आँखों के साह्मने कतल कर दिया गिया , और मिल्खा सिंह आपने भागने के हुनर के दम पर ही इन दंगो से बच सके , मिल्खा सिंह ने आपनी एक इंटरव्यू में बताया था के जब उन के पिता को मारा जा रहा था तो उन के मूह से आखरी बोल निकले थे “ भाग मिल्खा भाग “ जिस के लिए मिल्खा सिंह वह से भागे और भारत आ गए , भारत में आ कर मिल्खा सिंह आर्मी में भारती हो गए , उस वक़्त यह कोई नहीं जानता था के यह दुगला पतला सा दिखने वाला सरदार एक दिन ऐसे हवा में उड़ने लगे गा के लोग इसे “ The flying sikh” कह कर पुकारे गे , Biography of milkha singh(मिल्खा सिंह की जीवनी ) बात 1951 की है जब आर्मी में एक पालटून की क्रॉस कंट्री रेस होनी थी जिस में मिल्खा सिंह ने वी भाग लिया था , इस रेस में 500 रेसर थे , मगर जब यह रेस पूरी होई तो मिल्खा सिंह पहले 10 रेसर में से एक थे , बस वही वोह वक़्त था जिस से मिल्खा सिंह की तकदीर बदली , मिल्खा सिंह जिस को पहले कोई नहीं जानता था वोह एक रात में स्टार बन गे , आगे चल कर आर्मी में होलदार गुरदेव सिंह ने इन का मार्ग दर्शन किया , और बिग्रेदीअर जोहन अब्राहम जो अब रटेर हो चुके हैं उन से वी मिल्खा सिंह को बहुत प्रोत्साहन मिला , 1956 को पहली बार मिल्खा सिंह भारत की तरफ से मेलबोर्न ओलम्पिक्स में खेले , उस वक़्त मिल्खा सिंह के पास वोह अनुभव नहीं था जो इसे अन्तराष्ट्री पद पर एक गोल्ड मैडल जिता सकता , 1958 में एशियन गेम्स में मिल्खा सिंह 200 मीटर और 400 रेस में गोल्ड मैडल जीता , उसी साल comonwelth games में 400 मीटर की रेस में एक और गोल्ड मैडल . The flying sikh title : 1960 में पाकिस्तान की तरफ से मिल्खा सिंह को निओता आया मगर मिखा ��िंह पाकिस्तान नहीं जाना चाहते थे क्यों की पाकिस्तान वोह धरती थी जिस पर मिल्खा सिंह का बचपन बीता था मगर पाकिस्तान वोह धरती वी थी जहाँ पर इनोह ने बहुत ही खौफनाक मंजर देखे थे जो इन का दिल देहला चुके थे , और यह उन यादों में वापस नहीं जाना चाहते थे , मगर उस वक़्त के परधान मंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरु के कहने पर मिल्खा सिंह पाकिस्तान गए , पाकिस्तान में यह 400 मीटर की रेस थी उस वक़्त के सब से वरिष्ठ धावक अब्दुल खलीफ के साथ यह रेस थी , उस वक़्त सभी यह सोच रहे थे के यह पतला दुगला सरदार कैसे अब्दुल खलीफ के साथ मुकाबला कर सके गा , मगर जब यह रेस शुरू होई थो मिल्खा सिंह ने सभ को गलत साबत कर दिया , और अब्दुल खलीफ को बुरी तरेह से हरा दिया ,satedium में बेठी हज़ारो बुरका पहने औरतों ने अपना निकाब हटाया और इस उड़ते हुए सरदार की झलक देखि और उस वक़्त के पकिस्तान के जनरल अजूब खान ने कहा के मिल्खा सिंह भागा नहीं , हवा से बातें करता हुआ उड़ा है , वही से मिल्खा सिंह को यह टाइटल द फ्लाइंग सिख मिला , 1960 के रोम ओलम्पिक में मिल्खा सिंह थोड़े ही मार्जन से मिल्खा सिंह मेडल से बंजित रह गे जिस के बारे में मिल्खा सिंह आज वी आपने इंटरव्यू में कहते हैं के जो मैडल उस वक़्त हमारे हाथ से छूट गया आज कोई ऐसा खिलाडी पैदा हो जो उस को वापस ली आए , Milkha singh’s faimly : मिल्खा सिंह का विवाह निर्मल कौर (wife) से हुआ था जो भारतीय वोलीबाल टीम की कप्तान रह चुकी हैं , इन का बेटा (son) जीत्मिल्खा सिंह एक जाना मान गोल्फर है , Facts about milkha singh’s life :मिल्खा सिंह ने अबतक 80 races लगाईं हैं जिस में से 77 जीती है , यह अबतक का वर्ल्ड रिकॉर्ड है अबतक किसी वी खिलाडी ने इतनी races नहीं जीती , मिल्खा सिंह पाकिस्तान में अपने स्कूल से घर भाग कर जाते थे जो के उस वक़्त 10 किल्लोमीटर दूर था , 1958 में मिल्खा सिंह पहले ऐसे भारतीय थे जीनो ने आजाद भारत को पहली वार गोल्ड मैडल दिलाया था , मिल्खा सिंह की जिन्दगी पर एक एक bollywood की movie बन चुकी है जिस का नाम है “bhag milkha bhag” जिस में फरहान अख्तर ने मिल्खा सिंह का रोल किया है Biography of Milkha singh (The flying Sikh) http://www.educationhindi.com/2018/02/biography-of-milkha-singh-flying-sikh-in-hindi.html
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