बागपत के प्रसिद्ध तीर्थ स्थलों में शुमार है बरवाला का गोगाजी धाम
बागपत, उत्तर प्रदेश। विवेक जैन।
बरवाला का देव जाहरवीर गोगाजी धाम जनपद बागपत के प्रसिद्ध तीर्थ स्थलों में शुमार है। हर वर्ष हजारो लोग अपने असाध्य रोगों के ईलाज और मनोकामना पूर्ण करने के लिए देव जाहरवीर गोगाजी मेडी, गुरू गोरखनाथ जी, नर्मदेश्वर महादेव जी, माता भद्रकाली जी, बटुक भैरव जी, भगवान शिव, भगवान शनिदेव की चमत्कारी मूर्तियों की पूजा अर्चना करते है। मान्यता है कि इस धाम में आने वाला व्यक्ति…
Jamshedpur durga puja : दुर्गा पूजा समितियों के साथ टाटा स्टील यूआइएसएल के जीएम ने की बैठक, बेहतर सेवा देने का संकल्प दोहराया
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Paras Parivaar Organization: Praised Mahakal Temple (महाकाल मंदिर) in India
पारस परिवार के संस्थापक, आदरणीय “महंत श्री पारस भाई जी” एक सच्चे मार्गदर्शक, एक महान ज्योतिषी, एक आध्यात्मिक लीडर, एक असाधारण प्रेरक वक्ता और एक सामाजिक कार्यकर्ता हैं जो देश और समाज के कल्याण के लिए खुद को समर्पित करते हैं। उनका एक ही लक्ष्य है लोगों के सुखी और समृद्ध जीवन की कामना करना। लोगों को अँधेरे से निकालकर उनके जीवन में रोशनी फैलाना।
“पारस परिवार” हर किसी के जीवन को बेहतर बनाने के लिए निरंतर प्रतिबद्ध है। पारस परिवार से जो भी जुड़ जाता है वो इस परिवार का एक अहम हिस्सा बन जाता है और यह संगठन और भी मजबूत बन जाता है। जिस तरह एक परिवार में एक दूसरे की जरूरतों का ख्याल रखा जाता है। ठीक उसी तरह पारस परिवार भी एक परिवार की तरह एक दूसरे का सम्मान करता है और जरूरतमंद लोगों के जीवन में बदलाव लाने के साथ यह परिवार एकजुट की भावना रखता है ।
‘महंत श्री पारस भाई जी’ एक ऐसे समाज का निर्माण करना चाहते हैं जहाँ कमजोर आर्थिक स्थिति के कारण कोई भी व्यक्ति भूखा न रहे, जहाँ जाति-धर्म के नाम पर झगड़े न हों और जहाँ आपस में लोग मिलजुलकर रहें। साथ ही लोगों में द्वेष न रहे और प्रेम की भावना का विकास हो। पारस परिवार निस्वार्थ रूप से जन कल्याण की विचारधारा से प्रभावित है।
इसी विचारधारा को लेकर वह भक्तों के आंतरिक और बाहरी विकास के लिए कई आध्यात्मिक और सामाजिक कार्यक्रम समय-समय पर आयोजित करते हैं। आध्यात्मिक क्षेत्र (Spiritual Sector) की बात करें तो महंत श्री पारस भाई जी “दुख निवारण महाचण्डी पाठ”, “प्रार्थना सभा” और “पवित्र जल वितरण” जैसे दिव्य कार्यक्रम आयोजित करते हैं।
जिससे वे भक्तों के दुखों का निवारण, उनकी आंतरिक शांति और उनकी सुख-समृद्धि के लिए समर्पित हैं। इसी तरह सामाजिक क्षेत्र की बात करें तो पारस परिवार सामाजिक जागरूकता और समाज कल्याण के लिए भारतीय संस्कृति को संरक्षित करने के लिए लंगर, धर्मरथ और गौ सेवा जैसे महान कार्यों में अपनी सेवाएं दे रहे हैं। इसके अलावा हरियाणा और मध्य प्रदेश में “डेरा नसीब दा” जैसे महान कार्य का निर्माण भी है, जहाँ जाकर सोया हुआ नसीब भी जाग जाता है।
धार्मिक नगरी उज्जैन पूरी दुनिया में काफी मशहूर है। मध्य प्रदेश की तीर्थ नगरी उज्जैन में शिप्रा तट के निकट 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक बाबा महाकालेश्वर हैं। उज्जैन में महाकालेश्वर मंदिर भारत में भगवान शिव को समर्पित सबसे प्रतिष्ठित और प्राचीन मंदिरों में से एक है। इसके अलावा यहाँ हर 12 साल में कुंभ मेले का भी आयोजन किया जाता है जो सिंहस्थ के नाम से जाना जाता है।
इस मंदिर में किए जाने वाले अनोखे अनुष्ठानों में से एक भस्म आरती है, जो अद्भुत रहस्य से भरी है इसलिए यह भस्म आरती दुनिया भर से भक्तों को आकर्षित करती है। आज इस ब्लॉग में हम उज्जैन के महाकालेश्वर मंदिर के बारे में और महाकाल भस्म आरती के महत्व के बारे में विस्तार से जानेंगे।
12 ज्योतिर्लिंगों में से एक बाबा महाकालेश्वर
मध्यप्रदेश राज्य के उज्जैन नगर में स्थित, महाकालेश्वर भगवान का यह प्रमुख मंदिर है। उज्जैन में भारत के 12 ज्योर्तिलिंगों में से एक महाकाल मंदिर स्थित है। महाकाल की नगरी उज्जैन को सब तीर्थों में श्रेष्ठ माना जाता है। यहां 12 ज्योर्तिलिंगों में से एक महाकाल मंदिर स्थित है।
यह न केवल एक पूजा स्थल है बल्कि अत्यधिक ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व का स्थल भी है। मंदिर की उत्पत्ति चौथी शताब्दी ईसा पूर्व की मानी जाती है, जिसका उल्लेख मत्स्य पुराण और अवंती खंड जैसे प्राचीन संस्कृत ग्रंथों में मिलता है।
इस मंदिर में किया जाने वाले सबसे मुख्य अनुष्ठान भस्म आरती है जो हर किसी का ध्यान अपनी ओर बरबस ही खींचती है। पुराणों, महाभारत और कालिदास जैसे महाकवियों की रचनाओं में इस मंदिर का मनोहर वर्णन मिलता है। यह भगवान शिव का सबसे पवित्र निवास स्थान माना जाता है।
महंत श्री पारस भाई जी ने कहा कि बाबा महाकालेश्वर के दर्शन मा��्र से ही मोक्ष की प्राप्ति हो जाती है।
वास्तुकला
यह मंदिर उत्तर भारतीय मंदिर वास्तुकला का एक बेहतरीन उदाहरण है। इसमें पाँच-स्तरीय शिकारा (शिखर), जटिल नक्काशी और एक विशाल प्रवेश द्वार है। इसके साथ ही मंदिर का आध्यात्मिक माहौल, पास में शिप्रा नदी के शांत घाटों के साथ मिलकर, भक्तों और पर्यटकों के लिए एक शांत वातावरण बनाता है। हिंदू धर्म में उज्जैन शहर का अपना अलग महत्व है। यह प्राचीन धार्मिक नगरी देश के 51 शक्तिपीठों और चार कुंभ स्थलों में से एक है।
क्यों कहा जाता है महाकाल ?
काल के दो अर्थ होते हैं एक समय और दूसरा मृत्यु। भगवान भोलेनाथ की नगरी उज्जैन हमेशा से ही काल-गणना के लिए बेहद उपयोगी एवं महत्वपूर्ण मानी जाती रही है। देश के नक्शे में यह शहर 23.9 डिग्री उत्तर अक्षांश एवं 74.75 अंश पूर्व रेखांश पर स्थित है।
कर्क रेखा भी इस शहर के ऊपर से गुजरती है। साथ ही उज्जैन ही वह शहर है, जहां कर्क रेखा और भूमध्य रेखा एक-दूसरे को काटती है। इस शहर की इन्हीं विशेषताओं को ध्यान में रख काल-गणना, पंचांग निर्माण और साधना के लिए उज्जैन को सर्वश्रेष्ठ माना गया है।
दरअसल महाकाल को महाकाल इसलिए कहा जाता है क्योंकि प्राचीन समय से ज्योतिषाचार्य यहीं से भारत की काल गणना करते आए हैं और यहीं से प्राचीन काल में पूरे विश्व का मानक समय निर्धारित होता था। इसी काल की गणना के कारण ही यहां भगवान शिव को महाकाल के नाम से जाना जाता है और यही वजह है कि इस ज्योतिर्लिंग का नाम महाकालेश्वर पड़ा।
“महाकाल” शब्द यानि “महान समय” है, जो भगवान शिव की शाश्वत प्रकृति को दर्शाता है। कहते हैं काल भी महाकाल के रौद्र रूप महाकाल के सामने हाथ जोड़कर खड़े हो जाते हैं।
शास्त्रों का एक मंत्र- आकाशे तारकेलिंगम्, पाताले हाटकेश्वरम्। मृत्युलोके च महाकालम्, त्रयलिंगम् नमोस्तुते।। यानि सृष्टि में तीन लोक हैं- आकाश, पाताल और मृत्यु लोक। आकाश लोक के स्वामी हैं तारकलिंग, पाताल के स्वामी हैं हाटकेश्वर और मृत्युलोक के स्वामी हैं महाकाल। मृत्युलोक यानी पूरे संसार के स्वामी महाकाल ही हैं।
भस्म आरती
कालों के काल महाकाल के यहाँ हर दिन सुबह भस्म आरती होती है। इस आरती की सबसे विशेष बात यह है कि इसमें ताजा मुर्दे की भस्म से भगवान महाकाल का श्रृंगार किया जाता है। यानि महाकालेश्वर मंदिर में सबसे अनोखा अनुष्ठान है भस्म आरती। इस अनुष्ठान में शिव लिंगम पर पवित्र राख, या “भस्म” लगाना शामिल है।
मध्य प्रदेश के शहर उज्जैन का नाम तो हर किसी ने सुना होगा। धार्मिक मान्यताओं के लिए मशहूर यह शहर पूरी दुनिया में दो चीजों के लिए सबसे ज्यादा जाना जाता है। इनमें से पहला है यहां स्थित बाबा महाकाल का मंदिर और दूसरा यहां होने वाला कुंभ।
कालों के काल बाबा महाकाल के इस मंदिर के दर्शन करने दूर-दूर से हर साल लाखों की संख्या में भक्त यहां पहुँचते हैं। महंत श्री पारस भाई जी ने बताया कि यह स्थल अत्यन्त पुण्यदायी है। भगवान शिव के इस स्वरूप का वर्णन शिव पुराण में भी विस्तार से मिलता है।
भस्म आरती का समय
भस्म आरती के दर्शन करने के नियम कुछ खास होते हैं, इनका आपको पालन करना होता है। आपको बता दें कि यहां आरती करने का अधिकार सिर्फ यहा�� के पुजारियों को ही दिया जाता है अन्य लोग इसे केवल देख सकते हैं।
इस आरती को देखने के लिए पुरुषों को केवल धोती पहननी पड़ती है और महिलाओं को आरती के समय सिर पर घूंघट रखना पड़ता है। भस्म आरती का समय ऋतु परिवर्तन और सूर्योदय एवं सूर्यास्त के समय के साथ थोड़ा बदल जाता है। विशेष रूप से सुबह की भस्म आरती सबसे लोकप्रिय है और इसमें बहुत भीड़ होती है।
इस पवित्र समारोह को देखने और इसमें भाग लेने के लिए भक्त भोर से पहले ही जाग जाते हैं। भस्म आरती में अनुष्ठानों की एक श्रृंखला शामिल होती है, जिसमें वैदिक मंत्रों का जाप, पवित्र जल (अभिषेकम) की पेशकश और शिव पर विभूति का अनुप्रयोग शामिल है। पुजारी इन अनुष्ठानों को विधि विधान और समर्पण के साथ करते हैं।
भस्म आरती का समय
उज्जैन के महाकालेश्वर मंदिर में भस्म आरती एक दैनिक अनुष्ठान है जो सुबह जल्दी शुरू होती है। भस्म आरती का समय निम्न है-
प्रातः भस्म आरती
यह भस्म आरती प्रातः 4:00 बजे से प्रातः 6:00 बजे तक होती है। यह सबसे प्रसिद्ध भस्म आरती है, इस पवित्र भस्म आरती के दर्शन के लिए भक्त बड़ी संख्या में आते हैं।
मध्याह्न भस्म आरती
यह भस्म आरती सुबह 10:30 से 11:00 बजे तक होती है।
संध्या भस्म आरती
इसका समय शाम 7:00 बजे से शाम 7:30 बजे तक है। इसका समय सूर्यास्त के समय के साथ बदलता रहता है।
महंत श्री पारस भाई जी ने बताया कि भस्म आरती देखना और भगवान शिव का आशीर्वाद लेना बेहद शुभ होता है। आरती के बाद, भक्तों को प्रसाद के रूप में पवित्र राख दी जाती है। ऐसा माना जाता है कि इस राख को अपने माथे या शरीर पर लगाने से आध्यात्मिक शुद्धि और सुरक्षा मिलती है।
मंदिर का वैज्ञानिक महत्व
हम सबने भगवान शिव के इस मंदिर की पौराणिक कथाओं के बारे में सुना है लेकिन इस मंदिर का वैज्ञानिक महत्व शायद आपको पता न हो। खगोल शास्त्री मानते हैं कि मध्य प्रदेश का शहर उज्जैन ही पृथ्वी का केंद्र बिंदु है।
खगोल शास्त्रियों के अनुसार मध्य प्रदेश का यह प्राचीन शहर धरती और आकाश के बीच में स्थित है। इसके अलावा शास्त्रों में भी उज्जैन को देश का नाभि स्थल बताया गया है। यहाँ तक कि वराह पुराण में भी उज्जैन नगरी को शरीर का नाभि स्थल और बाबा महाकालेश्वर को इसका देवता कहा बताया गया है
उज्जैन के कुंभ को क्यों कहा जाता है सिंहस्थ
यहां हर 12 साल में पूर्ण कुंभ तथा हर 6 साल में अर्द्धकुंभ मेला लगता है। उज्जैन में होने वाले कुंभ मेले को सिंहस्थ कहा जाता है। आपको बता दें कि सिंहस्थ का संबंध सिंह राशि से है। जब सिंह राशि में बृहस्पति और मेष राशि में सूर्य का प्रवेश होता है तो तब उज्जैन में कुंभ का आयोजन होता है इसलिए उज्जैन के कुंभ को सिंहस्थ कहा जाता है।
दक्षिणमुखी ज्योतिर्लिंग है महाकाल
उज्जैन स्थित महाकाल मंदिर का पौराणिक महत्व भी बहुत अधिक है। ऐसी मान्यता है कि भगवान शिव ने यहां दूषण नामक राक्षस का वध कर अपने भक्तों की रक्षा की थी, जिसके बाद भक्तों के आग्रह के बाद भोलेबाबा यहां विराजमान हुए थे। दूषण का वध करने के पश्चात् भगवान शिव को कालों के काल महाकाल या भगवान महाकालेश्वर नाम से पुकारा जाने लगा।
यह मंदिर भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में से तीसरा ज्योतिर्लिंग है। ज्योतिर्लिंगों में सोमनाथ, मल्लिकार्जुन के बाद तीसरे नंबर पर महाकालेश्वर मंदिर आता है। इस मंदिर की खास बात यह है कि यह एक मात्र ऐसा ज्योतिर्लिंग है, जो दक्षिणमुखी है।
इसलिए तंत्र साधना के लिए इसे काफी महत्वपूर्ण माना जाता है। दरअसल तंत्र साधना के लिए दक्षिणमुखी होना जरूरी है। इस मंदिर को लेकर ये भी मान्यता है कि यहां भगवान शिव स्वयं प्रकट हुए थे।
ज्योतिर्लिंग यानी शिव जी ज्योति स्वरूप में विराजित हैं। देशभर में 12 ज्योतिर्लिंग हैं। इन 12 जगहों पर शिव जी प्रकट हुए थे और भक्तों की इच्छा पूरी करने के लिए इन जगहों पर ज्योति रूप में विराजमान हो गए।
यह मंदिर हिंदुओं के लिए अत्यधिक धार्मिक महत्व रखता है। महंत श्री पारस भाई जी ने कहा कि इस मंदिर की तीर्थयात्रा करने से आपके सभी पाप धुल जाते हैं और आपको जन्म और मृत्यु के चक्र से मुक्ति मिल जाती है। महाकाल को उज्जैन का महाराज भी कहते हैं, माना जाता है कि किसी भी शुभ चीज को करने से पहले महाकाल का आशीर्वाद लेना बहुत ही शुभ फल देता है।
इन नामों से भी जाना जाता है उज्जैन को
शिप्रा, जिसे क्षिप्रा के नाम से भी जाना जाता है यह मध्य भारत के मध्य प्रदेश राज्य की एक नदी है। क्षिप्रा नदी के तट पर बसे होने की वजह से इस शहर को शिप्रा के नाम से भी जाना जाता है। इसके अलावा यह शहर संस्कृत के महान कवि कालिदास की नगरी के नाम से भी काफी प्रचलित है।
यह मध्य प्रदेश के पांचवें सबसे बड़े शहरों में से है, जो अपनी धार्मिक मान्यातों के चलते दुनियाभर में पर्यटन का प्रमुख स्थल है। प्राचीन समय में उज्जैन को अवन्तिका, उज्जयनी, कनकश्रन्गा के नाम से भी जाना जाता था।
'हम आपकी सुरक्षा करने में विफल रहे…', बांग्लादेश की अंतरिम सरकार ने हिंदू समुदाय से मांगी माफी
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इतिहास गवाह है कि तपस्या से भगवान नहीं मिले, वर मिल गया लेकिन मोक्ष ना हुआ। आज भी लोग भौतिक पूजा स्थलों में ही भगवान ढूंढ रहे हैं जबकि सच्चा भगवान तो स्वयं आकर सतभक्ति का मार्ग दिखा रहा है।
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मक्कू मठ: एक धार्मिक धरोहर और प्राकृतिक सौंदर्य का संगम
उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले में स्थित मक्कू मठ एक प्राचीन और पवित्र स्थल है जो धार्मिक और प्राकृतिक सौंदर्य का अद्भुत संगम प्रस्तुत करता है। यह स्थान न केवल श्रद्धालुओं के लिए एक महत्वपूर्ण तीर्थ है, बल्कि पर्यटकों के लिए भी एक आकर्षक गंतव्य है जो शांति और अद्वितीय अनुभव की तलाश में हैं।
मक्कू मठ का धार्मिक महत्व
मक्कू मठ का निर्माण आदि शंकराचार्य ने करवाया था और यह भगवान शिव को समर्पित है। इस मठ में भगवान शिव के विभिन्न रूपों की पूजा होती है। मान्यता है कि यहाँ आने से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं और जीवन में शांति एवं समृद्धि का वास होता है। मठ के अंदरूनी हिस्सों में अद्भुत प्राचीन मूर्तियों और चित्रों की श्रृंखला है जो इसकी धार्मिक और सांस्कृतिक धरोहर को प्रदर्शित करती है।
प्राकृतिक सौंदर्य का अद्भुत दृश्य
मक्कू मठ के आसपास का क्षेत्र अपने प्राकृतिक सौंदर्य के लिए प्रसिद्ध है। यहाँ के घने जंगल, हिमालय की उंची चोटियाँ और हरे-भरे मैदान एक शांतिपूर्ण और सुकून भरा माहौल प्रदान करते हैं। यहाँ से गढ़वाल हिमालय की सुंदरता को निहारना एक अविस्मरणीय अनुभव होता है। यह स्थान ट्रेकिंग और फोटोग्राफी के शौकीनों के लिए भी एक आदर्श स्थल है।
कैसे पहुँचें मक्कू मठ?
मक्कू मठ पहुँचने के लिए सबसे पहले रुद्रप्रयाग पहुँचना होता है। रुद्रप्रयाग से मक्कू मठ की दूरी लगभग 40 किलोमीटर है, जिसे आप बस या टैक्सी द्वारा तय कर सकते हैं। रुद्रप्रयाग निकटतम रेलवे स्टेशन और हवाई अड्डा देहरादून में स्थित जॉली ग्रांट हवाई अड्डा है।
मक्कू मठ यात्रा के लिए सुझाव
उचित कपड़े पहनें: उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्रों का मौसम अक्सर बदलता रहता है, इसलिए गर्म कपड़े साथ लेकर चलें।
ट्रेकिंग का आनंद लें: अगर आप ट्रेकिंग के शौकीन हैं, तो यहाँ के आसपास की ट्रेकिंग रूट्स का आनंद अवश्य लें।
स्थानीय संस्कृति का सम्मान करें: मठ और उसके आसपास के स्थलों पर स्थानीय संस्कृति और परंपराओं का सम्मान करें।
स्वच्छता का ध्यान रखें: मक्कू मठ और उसके आसपास के क्षेत्र को साफ-सुथरा रखें और कचरा इधर-उधर न फेंके।
शनि की बिगड़ी दशा को ठीक करने के लिए कुछ उपायों का पालन किया जा सकता है। ये उपाय ज्योतिष शास्त्र में प्राचीन विधियों के आधार पर बताए गए हैं, लेकिन किसी भी उपाय को अपनाने से पहले, आप टोना टोटका सॉफ्टवेयर का प्रयोग करे।
शनि की शांति पूजा: शनि के उपाय के लिए शनि की शांति पूजा की जा सकती है। इस पूजा के दौरान, शनि मंत्र जप और शनि को अर्पित किए गए अन्य उपहारों को भी समर्पित किया जा सकता है।
शनि की शांति के लिए दान: शनि की बिगड़ी दशा को ठीक करने के लिए दान करना भी एक प्रभावशाली उपाय हो सकता है। शनि के उपाय में तिल, उरद दाल, बारले दाल, अदरक, बजरे का आटा, सिंदूर, जटा, नीला, शनि के उपायों में सांप भगवान को अर्पित किया जा सकता है।
शनि के मंत्र जप: शनि के मंत्र जप करना भी शनि की बिगड़ी दशा को ठीक करने में मददगार हो सकता है। शनि के मंत्र 'ॐ प्रां प्रीं प्रौं सः शनैश्चराय नमः' का जाप करना लाभदायक हो सकता है।
ध्यान और तप: शनि की बिगड़ी दशा को ठीक करने के लिए ध्यान और तप का अभ्यास भी किया जा सकता है। योग, प्राणायाम, और ध्यान के माध्यम से शनि के दुष्प्रभावों को कम किया जा सकता है।
शनि की यात्रा: कुछ लोग शनि की बिगड़ी दशा को ठीक करने के लिए शनि की यात्रा करते हैं। शनि के शान्ति स्थलों पर जाने से उनके दुष्प्रभाव कम हो सकते हैं।
श्री जाहरवीर गोगामेड़ी डौला में हुआ वार्षिक मेले का भव्य आयोजन
बागपत, उत्तर प्रदेश। विवेक जैन।
जनपद बागपत के प्रसिद्ध तीर्थ स्थलों में शुमार श्री जाहरवीर गोगामेड़ी डौला में दो दिवसीय मेले का भव्य आयोजन किया गया। मंदिर के पुजारी राकेश कुमार शर्मा द्वारा विधि-विधान के साथ पूजा-अर्चना कराकर मेले का विधिवत शुभारम्भ किया गया। श्री जाहरवीर गोगामेड़ी डौला मंदिर में पहले दिन विशाल भंडारे का आयोजन किया गया, जिसमें हजारों लोगों ने प्रसाद ग्रहण किया। दूसरे दिन मंदिर…
Jamshedpur rural yoga divas : 21 जून को बुरुडीह डैम के किनारे 500 साधक एक साथ करेंगे योग साधना, गुडमॉर्निंग घाटशिला की पहल पर विश्व योग दिवस पर हो रहा है यह आयोजन
घाटशिला : विश्व योग दिवस के अवसर पर आगामी 21 जून की सुबह 5:00 बजे घाटशिला के प्रसिद्ध पर्यटन स्थलों में एक बुरुडीह डैम में 500 योग साधक एक साथ योग करेंगे. घाटशिला में पर्यटन को बढ़ावा देने वाली संस्था गुड मॉर्निंग घाटशिला की पहल पर योग साधना शिविर का आयोजन किया जा रहा है. इस आयोजन के संबंध में काशिदा स्थित अशोककुंज दुर्गा पूजा मंडप में आयोजन समिति की एक बैठक आयोजित हुई, जिसमें सर्वसम्मति से…
बद्रीनाथ या बद्रीनारायण मंदिर एक हिंदू मंदिर है। यह मंदिर भारत में उत्तराखंड के बद्रीनाथ शहर में स्थित भगवान विष्णु को समर्पित है। बद्रीनाथ मंदिर चारधाम और छोटा चारधाम यात्रा का एक हिस्सा है। यह अलकनंदा नदी के बाएं किनारे पर नर और नारायण नामक दो पर्वत श्रृंखलाओं के बीच स्थित तीर्थ स्थलों में से एक है।
बद्रीनाथ मंदिर शहर का मुख्य आकर्षण है। प्राचीन शैली में बना भगवान विष्णु का यह मंदिर बहुत विशाल है। इसकी ऊंचाई करीब 15 मीटर है। मंदिर को 3 भागों में विभाजित किया गया है गर्भगृह, पूजा कक्ष और सम्मेलन कक्ष। मंदिर में भगवान विष्णु की एक लंबे काले पत्थर की मूर्ति है। इस मंदिर को “पृथ्वी का वैकुंठ” भी कहा जाता है।
मथुरा ईदगाह पर सर्वोच्च न्यायालय का आदेश अदालती रूख में कोई बदलाव नहीं
मथुरा में कृष्ण जन्मभूमि-शाही ईदगाह परिसर का सर्वेक्षण करने के लिए एक अधिवक्ता आयोग नियुक्त करने के इलाहाबाद उच्च न्यायालय के फैसले पर रोक लगाने वाला सर्वोच्च न्यायालय का आदेश विवादित पूजा स्थलों के संबंध में न्यायपालिका के सामान्य दृष्टिकोण में कोई खास बदलाव नहीं करता है, जो कि अन्य मुद्दों के बजाय आस्था के पक्ष में अधिक जोर देता है।
हिंदू धर्म के प्रसिद्ध तीर्थ स्थलों को लेकर अदभुत, आश्चर्यचकित, महत्वपूर्ण और उपयोगी जानकारी आईए जानते हैं:-
Q.No.1. क्या आप जानते हैं तीर्थ स्थलों की स्थापना कैसे हुई?
Q.No.2. क्या आप जानते हैं तीर्थ स्थल पर भ्रमण करने से मोक्ष मिलता है या नहीं?
Q.No.3. क्या आप जानते हैं सबसे बड़ा तीर्थ कौन सा तीर्थ है?
Q.No.4. क्या आप जानते हैं शिव जी ने अमरनाथ तीर्थ स्थल पर पार्वती जी को कौन सी कथा सुनाई थी?
Q.No.5. क्या आप जानते हैं वैष्णो देवी, नैना देवी, ज्वाला देवी, अन्नपूर्णा देवी, आदि मंदिरों की स्थापना कैसे हुई?
Q.NO.6. क्या आप जानते हैं पशुपतिनाथ मंदिर में किसकी पूजा होती है?
Q.No.7. क्या आप जानते हैं 12 ज्योतिर्लिंग क्या है?
Q.No.8. क्या आप जानते हैं कि चार धाम यात्रा से मोक्ष मिलता है या नहीं?
Q.No.9. क्या आप जानते हैं? चार धाम कहीं जाने वाले बद्रीनाथ, द्वारका, जगन्नाथ पुरी और रामेश्वरम, की स्थापना कैसे हुई?
Q.No.10. क्या आप जानते हैं कि जगन्नाथ का मंदिर किसने बनाया था?
Q.No.11. क्या आप जानते हैं कि शिवलिंग क्या है?
Q.No.12. क्या आप जानते हैं कि शिवलिंग की पूजा करना सही है या गलत है?
Q.No.13. क्या आप जानते हैं पूजा तथा साधना में क्या अंतर होता है?
अब इन सभी प्रश्नों से पर्दा हट चुका है और इन सभी प्रश्नों के उत्तरों को जानने के लिए पढ़े पुस्तक *"हिन्दू साहेबान! नहीं समझे गीता, वेद, पुराण"* पुस्तक को Sant Rampal Ji Maharaj App से डाउनलोड करें धन्यवाद। जानकारी अच्छी लगी हो तो अपने दोस्तों के साथ जरूर शेयर करें ।
📙इस पवित्र पुस्तक की PDF भी साथ भेजी जा रही है जिसको आप आसानी से पढ़ सकते हैं ।
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क्या आप जानते हैं ?
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QNo.1. क्या आप जानते हैं कि वर्तमान में कलयुग कितना ��ीत गया है?
Q.No.2. क्या आप जानते हैं सतयुग, त्रेता, द्वापर में एक सनातन धर्म था तो कलयुग में मानव अनेक धर्मों में कैसे बट गया?
Q.No.3.क्या आप जानते हैं की चारों युग कितने वर्ष के होते हैं?
Q.No.4.क्या आप जानते हैं कि श्री ब्रह्मा जी श्री शिवजी तथा श्री विष्णु जी कितने युगों तक जीवित रहते हैं?
Q.No.5. क्या आप जानते हैं कि ब्रह्म तथा पर ब्रह्म कितने युगों तक जीवित रहते हैं?
Q.No.6. क्या आप जानते हैं की पूर्ण ब्रह्म की आयु क्या है?
Q.No.7. क्या आप जानते हैं कि ब्रह्म, परब्रह्म तथा पूर्ण ब्रह्म में क्या अंतर है?
Q.No.8. क्या आप जानते हैं कि स्वर्ग लोक, ब्रह्मापुरी, शिवपुरी, विष्णुपुरी, महास्वर्ग और सतलोक में क्या अंतर है?
Q.No.9. क्या आप जानते हैं पृथ्वी लोक, स्वर्ग लोक तथा सतलोक में क्या अंतर है?
Q.No.10. क्या आप जानते हैं कि कलयुग में एक बार फिर से सतयुग जैसा माहौल कब आएगा तथा कौन लायेगा?
Q.No.11. क्या आपको पता है कि सनातन धर्म की पूजा का अंत कैसे हुआ? तथा इसका पुन: उत्थान कैसे होगा और कौन करेगा?
Q.No.12. क्या आप जानते हैं कि वर्तमान में हिंदुस्तान की पावन धरा पर मौजूद एक संत, आदि सनातन धर्म का पुनः उत्थान कर रहा है वह संत कौन है?
Q.No.13. क्या आप जानते हैं? वर्तमान में आदि सनातन धर्म की पुनः स्थापना करने वाला संत हिंदुस्तान में कहां पर मौजूद है?
इत्यादि सभी प्रश्नों के उत्तर जानने के लिए पढ़ें "पुस्तक हिन्दू साहेबान! नहीं समझे गीता, वेद, पुराण" इस पुस्तक को Sant Rampal Ji Maharaj App से डाउनलोड करके पढ़ें। अगर जानकारी अच्छी लगे तो अपने दोस्तों के साथ शेयर करना बिल्कुल ना भूले धन्यवाद।
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इतिहास गवाह है कि तपस्या से भगवान नहीं मिले, वर मिल गया लेकिन मोक्ष ना हुआ। आज भी लोग भौतिक पूजा स्थलों में ही भगवान ढूंढ रहे हैं जबकि सच्चा भगवान तो स्वयं आकर सतभक्ति का मार्ग दिखा रहा है।