#पवित्र आत्मा की वाणी
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Aaj Tak के पत्रकार Sudhir Chaudhary की झूठी खबरों का पर्दाफाश | Exposing...
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True Guru Sant Rampal Ji
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🙏हम भारत के नागरिक मांग करते हैं कि
@abpasmitatv तुरंत गुमराह करने वाले लेख को वापस लें!
और संत रामपाल जी महाराज और उनके अनुयायियों से सार्वजनिक माफी मांगे!
*इस माफी में गलतियों को स्वीकार करना!* +
*हुए नुकसान को स्वीकार करना!*
+
*भविष्य में ऐसी गैरजिम्मेदार पत्रकारिता को रोकने के उपायों का उल्लेख होना चाहिए।*
*पूर्ण संत और पूर्ण सतगुरु है संत रामपाल जी महाराज!*
यदि मीडिया को
संत रामपाल जी महाराज क्षमा कर देंगे तो मीडिया समझ लें!
कि परमेश्वर ने उन्हें बख्श दिया !
लेकिन
*भविष्य में दोबारा ऐसी गलती ना करें!*
अगर मीडिया आम व्यक्ति के लिए भी ऐसी गलती करता है तो परमात्मा रुष्ट होते हैं,क्योंकि आत्मा परमात्मा का अंश है!
लेकिन यह तो सतगुरु रूप में स्वयं कबीर परमेश्वर हैं पूजनीय हैं, संत रामपाल जी महाराज जी तो कोई गलती कर ही नहीं सकते, इस संसार को कैसे समझाया जाए!
ऐसे पूर्ण सतगुरु और संत की तो पूजा होनी चाहिए!
जिन्होंने
एक महान सत्य के लिए के लिए संघर्ष किया है !
आत्मा और परमात्मा को मिलाने वाला पवित्र सत्य जन-जन तक पहुंचाने का पूर्ण रूप से प्रयास किया है!
संत रामपाल जी महाराज जो
समाज का सद्भक्ति के माध्यम से
+
सत्य तत्व ज्ञान के माध्यम से_ पूर्ण रूप से सुधार कर रहे हैं!
संत रामपाल जी महाराज के सभी शिष्य पूरी ईमानदारी से संत रामपाल जी महाराज जी की शिक्षाओं + नियमों + आज्ञाओं
का पालन करते हैं!
क्योंकि
संत रामपाल जी महाराज सभी बुराई से जीवात्मा को दूर कर रहे हैं और उनके कष्टों का भी निवारण कर रहे हैं!
संत रामपाल जी महाराज
की
कथनी और करनी में
किंचित मात्र भी अंतर नहीं है
Article Only For INDIAN Media
👇👇👇
🙏(1) मीडिया को चाहिए संत रामपाल जी महाराज के सत्संग अपने चैनलों पर चलाएं और दुनिया को दिखाएं की संत रामपाल जी महाराज सत्संग के माध्यम से क्या बता रहे हैं!
(2) विश्व में जितने भी गुरु हैं उन सब की एक-एक करके डिबेट संत रामपाल जी से महाराज जी से मीडिया के माध्यम से रखी जाए!
(3) मीडिया से अनुरोध है अपनी ईमानदारी दिखाएं !भारत का नाम ऊंचा करें !
फिर से भारत के लोगों में हृदय में अपनी जगह बनाएं!
🙏सत साहेब जी🙏
पूर्ण ब्रह्म कबीर परमेश्वर जी की वाणी में परमेश्वर जी ने कहा है कि
बावले मानव मौत भूल गया है यह बड़ी अचरज की बात है! तन ऐसे मिट्टी में मिल जाएगा,जैसे आटे में नून!!
इसलिए
🙏हे मीडिया वालों सुकर्म कर लो!
संत रामपाल जी महाराज जी से मीडिया के माध्यम से ही माफ़ी मांग लें!
🙏संत रामपाल जी महाराज के पवित्र शास्त्र अनुकूल सत्संग अपने मीडिया पर दिखाएं!
डिबेट रखें अन्य छोटे-बड़े सभी गुरुओं महा मंडलेशवरों के साथ!
जिससे संसार को पूर्ण सत्य रूप से सच्चाई का पता लगे !
आपके कर्म ऊंचे हो !
भगवान की नजरों में उठो !
इंसान की नजर में तो अपने आप उठ जाओगे!
आम जनता धोखे में ना रहने दें!
मनुष्य जन्म सभी के लिए अनमोल है!
बार-बार नहीं मिलता है !
आप इसके साथ खिलवाड़ ना करें!
वरना उस परम शक्ति के अपराधी हो जाएंगे आप !
डरें बुरी वक़्त से!
आशा करती हूं आप दासी की वचनों को हल्के में नहीं लेंगे
और बड़ाई और बधाई का काम करेंगे!
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*🙏मीडिया वालों बोलो *जय बंदी छोड की* आपकी सत्बुद्धि और विवेक दोनों सुचारु रूप से काम कर सकें!
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🙏यही प्रार्थना है हमारी उस परमपिता परमेश्वर से !
क्योंकि
हम सब उसके बच्चे हैं और वह हमारे दुखों से दुखी होता है,हमारी बुराई से भी दुखी होता है!
और
कॉल रूपी राक्षस इसका फायदा उठाता है जिसे हम भगवान समझ रहे हैं वह शैतान का कार्य कर और कर रहा है !
अपनी तीन गुण की माया फैलाकर
हम जीवों को उसने भ्रमित किया हुआ है !
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🙏जागो हे मीडिया वालों !
🙏एक आपके जागने से संसार जाग जाएगा !
🙏क्या आप ��ोग यह पुण्य कमाना नहीं चाहोगे!
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✨️कबीर परमेश्वर चारों युगों में आते हैं।✨️
परमेश्वर कबीर साहिब जी चारों युगों में आते हैं और अच्छी आत्मा को मिलते हैं अपना ज्ञान समझा कर वापिस सतलोक ले जाते हैं।
यही प्रमाण वेदों में मिलता है
पवित्र यजुर्वेद अध्याय 29 मंत्र 25 -
समिद्धोऽअद्य मनुषो दुरोणे देवो देवान्यजसि जातवेद���।
आ च वह मित्रामहश्चिकित्वान्त्वं दूतः कविरसि प्रचेताः।।25।।
जिस समय भक्त समाज को शास्त्रविधी त्यागकर मनमाना आचरण (पूजा) कराया जा रहा होता है। उस समय कविर्देव (कबीर परमेश्वर) तत्व ज्ञान को प्रकट करता है।
कबीर परमेश्वर जी नानकदेवजी के गुरु थे जो नानक जी को बेई नदी पर मिले तथा मुक्ति का मार्ग बताया। दादू जी, धर्मदास जी, अब्राहम सुल्तान अधम सुल्तान आदि को कबीर साहेब ने ही दीक्षा दी। प्रमाण नानक जी व गरीबदास जी महाराज की वाणी में भी है
गरीब, हम सुल्तानी नानक तारे, दादू को उपदेश दिया। जात जुलाहा भेद न पाया, काशी माही कबीर हुआ।।
एक बार दिल्ली के बादशाह सिकंदर लोधी को एक असाध्य (जलन) रोग था। वह जलन का रोग किसी भी मुल्ला, काजी नीम-हकीम की दवा और जंत्र-मंत्र से ठीक नहीं हुआ था। उस रोग को कबीर परमेश्वर ने आशीर्वाद मात्र से ठीक कर दिया था। जिसके बाद सिकंदर लोधी ने कबीर परमेश्वर को अपना गुरु बनाया।
कबीर परमेश्वर ने अपनी वाणियों के माध्यम से बताया है
अवधु अविगत से चल आए, कोई मेरा भेद मर्म नहीं पाया।
न मेरा जन्म न गर्भ बसेरा, बालक हो दिखलाया।
काशी नगर जल कमल पर डेरा, वहाँ जुलाहे ने पाया।। मात-पिता मेरे कुछ नाहीं, ना मेरे घर दासी (पत्नी)। जुलहा का सुत आन कहाया, जगत करें मेरी हाँसी।। पाँच तत्व का धड़ नहीं मेरा, जानुं ज्ञान अपारा।
सत्य स्वरूपी (वास्तविक) नाम साहेब (पूर्ण प्रभु) का सोई नाम हमारा।।
अधर द्वीप (ऊपर सत्यलोक में) गगन गुफा में तहां निज वस्तु सारा।
ज्योत स्वरूपी अलख निरंजन (ब्रह्म) भी धरता ध्यान हमारा।।
हाड़ चाम लहु ना मेरे कोई जाने सत्यनाम उपासी।
तारन तरन अभय पद दाता, मैं हूँ कबीर अविनाशी।।
सभी ग्रंथों में प्रमाणित है फिर भी उसे कवि या संत, भक्त या जुलाहा कहते हैं। परन्तु वह पूर्ण परमात्मा ही होता है। उसका वास्तविक नाम कविर्देव है। वह स्वयं सतपुरुष कबीर ही ऋषि या संत रूप में होता है। परन्तु तत्व ज्ञानहीन ऋषियों व संतों गुरूओं के अज्ञान सिद्धांत के आधार पर आधारित प्रजा उस समय अतिथि रूप में प्रकट परमात्मा को नहीं पहचानते क्योंकि उन अज्ञानी ऋषियों, संतों व गुरूओं ने परमात्मा को निराकार बताया होता है।
#SantRampalJiMaharaj
#GodKabir_Appears_In_4_Yugas
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संत रामपाल जी महाराज जी से निःशुल्क नाम उपदेश लेने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर जायें।
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पवित्र पुस्तक "कबीर परमेश्वर"
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🧩गुरु-शिष्य परंपरा बनाए रखने के लिए कबीर साहेब ने रामानन्द जी को गुरू धारण किया
ऋषि रामानंद जी का जीव सतयुग में विद्याधर ब्राह्मण था जिसे परमेश्वर सतसुकृत नाम से मिल�� थे। त्रेता युग में रामानन्द जी का जीव वेदविज्ञ नामक ऋषि था जिसको परमेश्वर मुनींद्र ऋषि के रूप में मिले थे। दोनों जन्मों में यह नि:संतान थे। परमात्मा इनको शिशु रूप में मिले, उस समय इन्होंने परमेश्वर को पुत्रवत पाला तथा प्यार किया था। उसी पुण्य के कारण यह आत्मा परमात्मा को चाहने वाली थी।
कलयुग में भी इनका परमेश्वर के प्रति अटूट विश्वास था।
स्वामी रामानंद जी अपने समय के सुप्रसिद्ध की विद्वान कहे जाते थे। वह द्रविड़ से काशी नगर में वेद व गीता ज्ञान के प्रचार हेतु आए थे।
स्वामी रामानंद जी ने 1400 ऋषि शिष्य बना रखे थे। परमेश्वर कबीर जी ने अपने नियमानुसार रामानंद स्वामी को शरण में लेना था।
गरीब- जो जन हमरी शरण है, उसका हूँ मैं दास।
गेल-गेल लाग्या फिरू, जब तक धरती आकाश।।
गोता मारू स्वर्ग में, जा बैठू पाताल।
गरीबदास ढूंढत फिरु अपने हीरे मोती लाल।।
रामानन्द जी प्रतिदिन सूर्योदय से पूर्व गंगा नदी के तट पर बने पंचगंगा घाट पर स्नान करने जाते थे। 5 वर्षीय कबीर परमेश्वर ने ढाई वर्ष के बच्चे का रूप धारण किया व लीला करके रामानन्द को गुरू बनाकर उनका उद्धार किया।
गरीब- ज्यों बच्छा गऊ की नजर में, यूं साई कूं संत।
भक्तों के पीछे फिरे, भक्त वच्छल भगवंत।।
जब कबीर परमेश्वर ने स्वामी रामानंद जी को सतलोक के दर्शन कराए थे तब स्वामी रामानंद की आत्मा को आंखों देखकर दृढ़ विश्वास हुआ कि कबीर ही परमात्मा है। जिसका चित्रार्थ गरीब दास जी महाराज जी ने अपनी वाणी किया है–
बोलत रामानंद जी सुन कबीर करतार।
गरीबदास सब रूप में, तुमही बोलनहार॥
दोहु ठोर है एक तू, भया एक से दोय।
गरीबदास हम कारणें, उतरे हो मग जोय॥
तुम साहेब तुम संत हो, तुम सतगुरु तुम हंस। गरीबदास तुम रूप बिन और न दूजा अंस॥
तुम स्वामी मैं बाल बुद्धि, भर्म-कर्म किये नाश। गरीबदास निज ब्रह्म तुम, हमरे दृढ़ विश्वास॥
कबीर परमेश्वर ने स्वामी रामानंद जी को गुरु बना कर न केवल उनका उद्धार किया बल्कि उनकी जातिवादी सोच का भी नाश किया क्योंकि किसी भी प्रकार के जाति धर्म, ऊंच नीच का भेदभाव रखने वाला व्यक्ति सतलोक नहीं जा सकता।
साथ ही कबीर साहेब ने गुरु शिष्य परम्परा का निर्वाह इसलिए किया कि कलयुग कोई पाखण्डी गुरु यह नहीं कह सके कि गुरु बनाने की कोई आवश्यकता नहीं, कबीर साहेब ने कौनसा गुरु बनाया था।
इसलिए कबीर साहेब ने गुरु बनाया ��था यह बताया कि:-
गुरु बिन माला फेरते, गुरु बिन देते दान। गुरु बिन दोनों निष्फल है, चाहे पूछो वेद पुराण।।
राम कृष्ण से कौन बड़ा, उन्हों भी गुरु कीन्ह। तीन लोक के वे धणी, गुरु आगे आधीन।।
गुरु बड़े गोविंद से, मन में देख विचार। हरि सुमरे सो रह गए, गुरु सुमरे होय पार।।
वर्तमान में संत रामपाल जी महाराज पूर्ण गुरु/तत्वदर्शी संत हैं तथा कबीर साहेब के अवतार हैं। उनसे नाम दीक्षा लेकर अपने जीव का कल्याण कराये।
#KabirPrakatDiwas
#SantRampalJiMaharaj
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पवित्र पुस्तक "कबीर परमेश्वर"
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#GodNightSaturday
#noidagbnup16
गरीब, बिन रसना है बदंगी, निज चसमों दीदार । निज श्रवण बानी सुनै, निरमल तत्त्व निहार।।
सतगुरु द्वारा दीक्षा में दिए वास्तविक नामों का जाप विधि अनुसार करने से यानि बिना रसना (जीभ) के बंदगी (नम्र भाव से स्मरण) यानि अजपा जाप करने से निज चिसमों के यानि दिव्य दष्टि से परमेश्वर का दीदार (दर्शन) होता है। निज श्रवण यानि आत्मा के कानों से अमर लोक की वाणी सुनाई देती है। उस निर्मल तत्त्व यानि पवित्र परमेश्वर को निहार यानि एकटक देख।
जगतगुरू तत्वदशी संत रामपाल जी महाराज
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गरीब, बिन रसना है बदंगी, निज चसमों दीदार । निज श्रवण बानी सुनै, निरमल तत्त्व निहार।।
सतगुरु द्वारा दीक्षा में दिए वास्तविक नामों का जाप
विधि अनुसार करने से यानि बिना रसना (जीभ) के
बंदगी (नम्र भाव से स्मरण) यानि अजपा जाप करने से
निज चिसमों के यानि दिव्य दष्टि से परमेश्वर का दीदार
(दर्शन) होता है। निज श्रवण यानि आत्मा के कानों से
अमर लोक की वाणी सुनाई देती है। उस निर्मल तत्त्व
यानि पवित्र परमेश्वर को निहार यानि एकटक देख
#GodMorningSaturdaynoidagbnup16#आदि राम कबीर#कबीर परमेश्वर#संत रामपाल जी महाराज#कबीर इस गॉड#कबीर बड़ा या कृष्ण
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#हिन्दूसाहेबान_नहींसमझे_गीतावेदपुराणPart82 के आगे पढिए.....)
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#हिन्दूसाहेबान_नहींसमझे_गीतावेदपुराणPart83
"पवित्र कबीर सागर में प्रमाण"
* विशेष विचार :- पूरे गुरु ग्रन्थ साहेब में कहीं प्रमाण नहीं है कि श्री नानक जी, परमेश्वर कबीर जी के गुरु जी थे। जैसे गुरु ग्रन्थ साहेब आदरणीय तथा प्रमाणित है, ऐसे ही पवित्र कबीर सागर भी आदरणीय तथा प्रमाणित सद्ग्रन्थ है तथा श्री गुरुग्रन्थ साहेब से पहले का है। इसीलिए तो सैंकड़ों वाणी 'कबीर सागर' सद्ग्रन्थ से गुरु ग्रन्थ साहिब में ली गई हैं।
पवित्र कबीर सागर में विस्तृत विवरण है नानक जी तथा परमेश्वर कबीर साहेब जी की वार्ता का तथा श्री नानक जी के पूज्य गुरुदेव कबीर परमेश्वर जी
थे। कृपया निम्न पढ़ें। विशेष प्रमाण के लिए कबीर सागर (स्वसमबेदबोध) पृष्ठ न. 158 से 159
से सहाभार :-
नानकशाह कीन्हा तप भारी। सब विधि भये ज्ञान अधिकारी ।। भक्ति भाव ताको समिझाया। ता पर सतगुरु कीनो दाया।। जिंदा रूप धरयो तब भाई। हम ��ंजाब देश चलि आई ।। अनहद बानी कियौ पुकारा। सुनि कै नानक दरश निहारा।। सुनि के अमर लोक की बानी। जानि परा निज समरथ ज्ञानी ।।
नानक वचन आवा पुरूष महागुरु ज्ञानी। अमरलोकी सुनी न बानी।। अर्ज सुनो प्रभु जिंदा स्वामी। कहँ अमरलोक रहा निजधामी ।। काहु न कही अमर निजबानी। धन्य कबीर परमगुरु ज्ञानी ।। कोई न पावै तुमरो भेदा। खोज थके ब्रह्मा चहुँ वेदा ।।
जिन्दा वचन
नानक तुम बहुतै तप कीना। निरंकार बहुते दिन चीन्हा ।। निरंकारते पुरूष निनारा। अजर द्वीप ताकी टकसारा ।। पुरूष बिछोह भयौ तव (त्व) जबते। काल कठिन मग रोंक्यौ तबते ।।
इत तव (त्व) सरिस भक्त नहिं होई। क्यों कि परमपुरूष न भेटेंउ कोई ।। जबते हमते बिछुरे भाई। साठि हजार जन्म भक्त तुम पाई ।। धरि धरि जन्म भक्ति भलकीना। फिर काल चक्र निरंजन दीना ।। गहु मम शब्द तो उतरो पारा। बिन सत शब्द लहै यम द्वारा ।। तुम बड़ भक्त भवसागर आवा। और जीवकी कौन चलावा ।। निरंकार सब सृष्टि भुलावा। तुम करि भक्तिलौटि क्यों आवा ।।
नानक वचन
धन्य पुरूष तुम यह पद भाखी। यह पद हमसे गुप्त कह राखी ।। जबलों हम तुमको नहिं पावा। अगम अपार भर्म फैलावा ।। कहो गोसाँई हमते ज्ञाना। परमपुरूष हम तुमको जाना ।। धनि जिंदा प्रभु पुरूष पुराना। बिरले जन तुमको पहिचाना ।।
जिन्दा वचन
भये दयाल पुरूष गुरु ज्ञानी। दियो पान परवाना बानी ।। भली भई तुम हमको पावा। सकलो पंथ काल को ध्यावा ।। तुम इतने अब भये निनारा। फेरि जन्म ना होय तुम्हारा।। भली सुरति तुम हमको चीन्हा। अमर मंत्र हम तुमको दीन्हा ।। स्वसमवेद हम कहि निज बानी। परमपुरूष गति तुम्हें बखानी ।।
नानक वचन
धन्य पुरूष ज्ञानी करतारा। जीवकाज प्रकटे संसारा ।। धनि (धन्य) करता तुम बंदी छोरा��� ज्ञान तुम्हार महाबल जोरा ।।
दिया नाम दान किया उबारा। नानक अमरलोक पग धारा ।। भावार्थ :- परम पूज्य कबीर प्रभु एक जिन्दा महात्मा का रूप बना कर
श्री नानक जी से मिलने पंजाब में गए तब श्री नानक साहेब जी से वार्ता हुई। तब परमेश्वर कबीर जी ने कहा कि आप जैसी पुण्यात्मा जन्म-मृत्यु का कष्ट भोग रहे हो फिर आम जीव का कहाँ ठिकाना है?
जिस निरंकार को आप प्रभु मान कर पूज रहे हो पूर्ण परमात्मा तो इससे भी भिन्न है। वह मैं ही हूँ। जब से आप मेरे से बिछुड़े हो साठ हजार जन्म तो अच्छे-2 उच्च पद भी प्राप्त कर चुके हो (जैसे सतयुग में यही पवित्र आत्मा राजा अम्ब्रीष तथा त्रेतायुग में राजा जनक (जो सीता जी के पिता ��ी थे) हुए तथा कलियुग में श्री नानक साहेब जी हुए।) फिर भी जन्म मृत्यु के चक्र में ही हो।
मैं आपको सतशब्द अर्थात् सच्चा नाम जाप मन्त्र बताऊँगा उससे आप अमर हो जाओगे। श्री नानक साहेब जी ने प्रभु कबीर से कहा कि आप बन्दी छोड भगवान हो, आपको कोई बिरला सौभाग्यशाली व्यक्ति ही पहचान सकता है।
कबीर सागर के अध्याय "अगम निगम बोध" में पृष्ठ नं. 44 पर शब्द है :-
।। नानक वचन ।।
।। शब्द ।।
वाह वाह कबीर गुरु पूरा है।
पूरे गुरु की मैं बलि जावाँ जाका सकल जहूरा है।।
अधर दुलिच परे है गुरुनके शिव ब्रह्मा जह शूरा है।।
श्वेत ध्वजा फहरात गुरुनकी बाजत अनहद तूरा है।।
पूर्ण कबीर सकल घट दरशै हरदम हाल हजूरा है।। नाम कबीर जपै बड़भागी नानक चरण को धूरा है।।
* विशेष विवेचन : बाबा नानक जी ने उस कबीर जुलाहे (धाणक) काशी वाले को सत्यलोक (सच्चखण्ड) में आँखों देखा तथा फिर काशी में धाणक (जुलाहे) का कार्य करते हुए देखा तथा बताया कि वही धाणक रूप (जुलाहा) सत्यलोक में सत्यपुरुष रूप में भी रहता है तथा यहाँ भी वही है।
आदरणीय श्री नानक साहेब जी का आविर्भाव (जन्म) सन् 1469 तथा सतलोक वास सन् 1539 "पवित्र पुस्तक जीवनी दस गुरु साहिबान"। आदरणीय कबीर साहेब जी धाणक रूप में मृतमण्डल में सन् 1398 में सशरीर प्रकट हुए तथा सशरीर सतलोक गमन सन् 1518 में "पवित्र कबीर सागर"। दोनों महापुरुष 49 वर्ष तक समकालीन रहे।
श्री गुरु नानक साहेब जी का जन्म पवित्र हिन्दू धर्म में हुआ। प्रभु प्राप्ति के बाद कहा कि "न कोई हिन्दू न मुसलमाना" अर्थात् अज्ञानतावश दो धर्म बना बैठे। सर्व एक परमात्मा सतपुरुष के बच्चे हैं। श्री नानक देव जी ने कोई धर्म नहीं बनाया, बल्कि धर्म की बनावटी जंजीरों से मानव को मुक्त किया तथा शिष्य परम्परा चलाई। जैसे गुरुदेव से नाम दीक्षा लेने वाले भक्तों को शिष्य बोला जाता है, उन्हें पंजाबी भाषा में सिक्ख कहने लगे। जैसे आज इस दास के लाखों शिष्य हैं, परन्तु यह धर्म नहीं है। सर्व पवित्र धर्मों की पुण्यात्माएँ आत्म कल्याण करवा रही हैं। यदि आने वाले समय में कोई धर्म बना बैठे तो वह दुर्भाग्य ही होगा। भेदभाव तथा संघर्ष की नई दीवार ही बनेगी, परन्तु लाभ कुछ नहीं होगा।
गवाह नं 6 संत घीसा दास जी गाँव-खेखड़ा जिला-बागपत, उत्तर प्रदेश (भारत) : इनको छः वर्ष की आयु में कबीर परमेश्वर जी मिले थे। पूरा गाँव खेखड़ा गवाह है। संत घीसा जी ने बताया कि मैंने परमेश्वर कबीर जी के साथ ऊपर सतलोक में जाकर देखा था। जो काशी में जुलाहे का कार्य करता था, वह पूर्ण परमात्मा है। सारी सृष्��ि का सृजनकर्ता है। असंख्य ब्रह्मण्डों का मालिक है।
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आध्यात्मिक जानकारी के लिए आप संत रामपाल जी महाराज जी के मंगलमय प्रवचन सुनिए। Sant Rampal Ji Maharaj YOUTUBE चैनल पर प्रतिदिन 7:30-8.30 बजे। संत रामपाल जी महाराज जी इस विश्व में एकमात्र पूर्ण संत हैं। आप सभी से विनम्र निवेदन है अविलंब संत रामपाल जी महाराज जी से नि:शुल्क नाम दीक्षा लें और अपना जीवन सफल बनाएं।
https://online.jagatgururampalji.org/naam-diksha-inquiry
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संत रामपाल जी महाराज के अनुसार जीवन का अंतिम उद्देश्य केवल और केवल परमात्मा की प्राप्ति है। सतगुरु के मार्गदर्शन में रहते हुए, सच्ची भक्ति और साधना के माध्यम से ही आत्मा को म���क्ष प्राप्त हो सकता है। यह जीवन अत्यंत मूल्यवान है और इसका सही उपयोग केवल सत्गुरु की शरण में ही संभव है।
कबीर साहेब की वाणी में, "पानी केरा बुदबुदा, अस मानुस की जात," इस जीवन को जैसे पानी के बुलबुले की तरह क्षणभंगुर माना जाना चाहिए। इसलिए, इस जीवन का सही उपयोग सतभक्ति और सत्संग में करना चाहिए।
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✰हमे एक ही बात बार-बार क्यों सुनाई/दिखाई जाती है?✰
अवश्य पढ़ें पवित्र सद्ग्रंथों पर आधारित संत रामपाल जी महाराज द्वारा लिखित पुस्तक *ज्ञान गंगा*।
निःशुल्क पुस्तक प्राप्त करने हेतु अपना नाम, पूरा पता, और मोबाइल नंबर हमें व्हाट्सएप करें : +91 7496801825
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#हिन्दूसाहेबान_नहींसमझे_गीतावेदपुराणPart82 के आगे पढिए.....)
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"पवित्र कबीर सागर में प्रमाण"
* विशेष विचार :- पूरे गुरु ग्रन्थ साहेब में कहीं प्रमाण नहीं है कि श्री नानक जी, परमेश्वर कबीर जी के गुरु जी थे। जैसे गुरु ग्रन्थ साहेब आदरणीय तथा प्रमाणित है, ऐसे ही पवित्र कबीर सागर भी आदरणीय तथा प्रमाणित सद्ग्रन्थ है तथा श्री गुरुग्रन्थ साहेब से पहले का है। इसीलिए तो सैंकड़ों वाणी 'कबीर सागर' सद्ग्रन्थ से गुरु ग्रन्थ साहिब में ली गई हैं।
पवित्र कबीर सागर में विस्तृत विवरण है नानक जी तथा परमेश्वर कबीर साहेब जी की वार्ता का तथा श्री नानक जी के पूज्य गुरुदेव कबीर परमेश्वर जी
थे। कृपया निम्न पढ़ें। विशेष प्रमाण के लिए कबीर सागर (स्वसमबेदबोध) पृष्ठ न. 158 से 159
से सहाभार :-
नानकशाह कीन्हा तप भारी। सब विधि भये ज्ञान अधिकारी ।। भक्ति भाव ताको समिझाया। ता पर सतगुरु कीनो दाया।। जिंदा रूप धरयो तब भाई। हम पंजाब देश चलि आई ।। अनहद बानी कियौ पुकारा। सुनि कै नानक दरश निहारा।। सुनि के अमर लोक की बानी। जानि परा निज समरथ ज्ञानी ।।
नानक वचन आवा पुरूष महागुरु ज्ञानी। अमरलोकी सुनी न बानी।। अर्ज सुनो प्रभु जिंदा स्वामी। कहँ अमरलोक रहा निजधामी ।। काहु न कही अमर निजबानी। धन्य कबीर परमगुरु ज्ञानी ।। कोई न पावै तुमरो भेदा। खोज थके ब्रह्मा चहुँ वेदा ।।
जिन्दा वचन
नानक तुम बहुतै तप कीना। निरंकार बहुते दिन चीन्हा ।। निरंकारते पुरूष निनारा। अजर द्वीप ताकी टकसारा ।। पुरूष बिछोह भयौ तव (त्व) जबते। काल कठिन मग रोंक्यौ तबते ।।
इत तव (त्व) सरिस भक्त नहिं होई। क्यों कि परमपुरूष न भेटेंउ कोई ।। जबते हमते बिछुरे भाई। साठि हजार जन्म भक्त तुम पाई ।। धरि धरि जन्म भक्ति भलकीना। फिर काल चक्र निरंजन दीना ।। गहु मम शब्द तो उतरो पारा। बिन सत शब्द लहै यम द्वारा ।। तुम बड़ भक्त भवसागर आवा। और जीवकी कौन चलावा ।। निरंकार सब सृष्टि भुलावा। तुम करि भक्तिलौटि क्यों आवा ।।
नानक वचन
धन्य पुरूष तुम यह पद भाखी। यह पद हमसे गुप्त कह राखी ।। जबलों हम तुमको नहिं पावा। अगम अपार भर्म फैलावा ।। कहो गोसाँई हमते ज्ञाना। परमपुरूष हम तुमको जाना ।। धनि जिंदा प्रभु पुरूष पुराना। बिरले जन तुमको पहिचाना ।।
जिन्दा वचन
भये दयाल पुरूष गुरु ज्ञानी। दियो पान परवाना बानी ।। भली भई तुम हमको पावा। सकलो पंथ काल को ध्यावा ।। तुम इतने अब भये निनारा। फेरि जन्म ना होय तुम्हारा।। भली सुरति तुम हमको चीन्हा। अमर मंत्र हम तुमको दीन्हा ।। स्वसमवेद हम कहि निज बानी। परमपुरूष गति तुम्हें बखानी ।।
नानक वचन
धन्य पुरूष ज्ञानी करतारा। जीवकाज प्रकटे संसारा ।। धनि (धन्य) करता तुम बंदी छोरा। ज्ञान तुम्हार महाबल जोरा ।।
दिया नाम दान किया उबारा। नानक अमरलोक पग धारा ।। भावार्थ :- परम पूज्य कबीर प्रभु एक जिन्दा महात्मा का रूप बना कर
श्री नानक जी से मिलने पंजाब में गए तब श्री नानक साहेब जी से वार्ता हुई। तब परमेश्वर कबीर जी ने कहा कि आप जैसी पुण्यात्मा जन्म-मृत्यु का कष्ट भोग रहे हो फिर आम जीव का कहाँ ठिकाना है?
जिस निरंकार को आप प्रभु मान कर पूज रहे हो पूर्ण परमात्मा तो इससे भी भिन्न है। वह मैं ही हूँ। जब से आप मेरे से बिछुड़े हो साठ हजार जन्म तो अच्छे-2 उच्च पद भी प्राप्त कर चुके हो (जैसे सतयुग में यही पवित्र आत्मा राजा अम्ब्रीष तथा त्रेतायुग में राजा जनक (जो सीता जी के पिता जी थे) हुए तथा कलियुग में श्री नानक साहेब जी हुए।) फिर भी जन्म मृत्यु के चक्र में ही हो।
मैं आपको सतशब्द अर्थात् सच्चा नाम जाप मन्त्र बताऊँगा उससे आप अमर हो जाओगे। श्री नानक साहेब जी ने प्रभु कबीर से कहा कि आप बन्दी छोड भगवान हो, आपको कोई बिरला सौभाग्यशाली व्यक्ति ही पहचान सकता है।
कबीर सागर के अध्याय "अगम निगम बोध" में पृष्ठ नं. 44 पर शब्द है :-
।। नानक वचन ।।
।। शब्द ।।
वाह वाह कबीर गुरु पूरा है।
पूरे गुरु की मैं बलि जावाँ जाका सकल जहूरा है।।
अधर दुलिच परे है गुरुनके शिव ब्रह्मा जह शूरा है।।
श्वेत ध्वजा फहरात गुरुनकी बाजत अनहद तूरा है।।
पूर्ण कबीर सकल घट दरशै हरदम हाल हजूरा है।। नाम कबीर जपै बड़भागी नानक चरण को धूरा है।।
* विशेष विवेचन : बाबा नानक जी ने उस कबीर जुलाहे (धाणक) काशी वाले को सत्यलोक (सच्चखण्ड) में आँखों देखा तथा फिर काशी में धाणक (जुलाहे) का कार्य करते हुए देखा तथा बताया कि वही धाणक रूप (जुलाहा) सत्यलोक में सत्यपुरुष रूप में भी रहता है तथा यहाँ भी वही है।
आदरणीय श्री नानक साहेब जी का आविर्भाव (जन्म) सन् 1469 तथा सतलोक वास सन् 1539 "पवित्र पुस्तक जीवनी दस गुरु साहिबान"। आदरणीय कबीर साहेब जी धाणक रूप में मृतमण्डल में सन् 1398 में सशरीर प्रकट हुए तथा सशरीर सतलोक गमन सन् 1518 में "पवित्र कबीर सागर"। दोनों महापुरुष 49 वर्ष तक समकालीन रहे।
श्री गुरु नानक साहेब जी का जन्म पवित्र हिन्दू धर्म में हुआ। प्रभु प्राप्ति के बाद कहा कि "न कोई हिन्दू न मुसलमाना" अर्थात् अज्ञानतावश दो धर्म बना बैठे। सर्व एक परमात्मा सतपुरुष के बच्चे हैं। श्री नानक देव जी ने कोई धर्म नहीं बनाया, बल्कि धर्म की बनावटी जंजीरों से मानव को मुक्त किया तथा शिष्य परम्परा चलाई। जैसे गुरुदेव ��े नाम दीक्षा लेने वाले भक्तों को शिष्य बोला जाता है, उन्हें पंजाबी भाषा में सिक्ख कहने लगे। जैसे आज इस दास के लाखों शिष्य हैं, परन्तु यह धर्म नहीं है। सर्व पवित्र धर्मों की पुण्यात्माएँ आत्म कल्याण करवा रही हैं। यदि आने वाले समय में कोई धर्म बना बैठे तो वह दुर्भाग्य ही होगा। भेदभाव तथा संघर्ष की नई दीवार ही बनेगी, परन्तु लाभ कुछ नहीं होगा।
गवाह नं 6 संत घीसा दास जी गाँव-खेखड़ा जिला-बागपत, उत्तर प्रदेश (भारत) : इनको छः वर्ष की आयु में कबीर परमेश्वर जी मिले थे। पूरा गाँव खेखड़ा गवाह है। संत घीसा जी ने बताया कि मैंने परमेश्वर कबीर जी के साथ ऊपर सतलोक में जाकर देखा था। जो काशी में जुलाहे का कार्य करता था, वह पूर्ण परमात्मा है। सारी सृष्टि का सृजनकर्ता है। असंख्य ब्रह्मण्डों का मालिक है।
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आध्यात्मिक जानकारी के लिए आप संत रामपाल जी महाराज जी के मंगलमय प्रवचन सुनिए। Sant Rampal Ji Maharaj YOUTUBE चैनल पर प्रतिदिन 7:30-8.30 बजे। संत रामपाल जी महाराज जी इस विश्व में एकमात्र पूर्ण संत हैं। आप सभी से विनम्र निवेदन है अविलंब संत रामपाल जी महाराज जी से नि:शुल्क नाम दीक्षा लें और अपना जीवन सफल बनाएं।
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#असल_आजादी_क्या_हैं_?
✓✓✓ यह आत्मा काल लोक में तीनों गुणों के द्वारा बलपूर्वक कराए जा रहे नाना प्रकार के कर्मों के बंधन (बेड़ियों) में युगों युगों से जबरदस्त जकड़ा हुआ हैं,बंधा हुआ हैं और इसी बंधन से आजादी पाना अर्थात् मोक्ष को प्राप्त करना ही हमारी असली आज़ादी हैं और यही देव दूर्लभ हमारे अनमोल मानव जीवन का मूल उद्देश्य भी हैं।
(पवित्र गीता जी की वाणी, कबीर साहेब की जूबानी...)
जहाँ आशा तहाँ बाशा होई। मन कर्म बचन सुमरियो सोई।। (गीता अ. 8 श्लोक 6)
जोहै सनातन अविनाशी भगवाना। वाकि भक्ति करै वा पर जाना।।
जैसे सूरज चमके आसमाना। ऐसे #सत्यपुरूष सत्यलोक रहाना।।
वाकी भक्ति करे वाको पावै। बहुर नहीं जग में आवै।। (गीता अ. 8 श्लोक 8-9-10)
मम मंत्र है ओम् अकेला। (गीता अ. 8 श्लोक 13)
ताका #ओम्_तत्_सत् दूहेला।। (गीता अ. 17 श्लोक 23)
तुम अर्जुन जावो वाकी शरणा। सो है परमेश्वर तारण तरणा।। (गीता अ. 18 श्लोक 62, 66)
वाका भेद #परमसंत से जानो। तत ज्ञान में है प्रमाणो।। (गीता अ. 4 श्लोक 34)
वह ज्ञान वह बोलै आपा। ताते मोक्ष पूर्ण हो जाता।। (गीता अ. 4 श्लोक 32)
सब पाप नाश हो जाई। बहुर नहीं जन्म-मरण में आई।।
मिले संत कोई #तत्त्वज्ञानी। फिर वह पद खोजो सहिदानी।।
जहाँ जाय कोई लौट न आया। जिन यह संसार वृक्ष निर्माया।। (गीता अ. 15 श्लोक 4)
और अधिक जानकारी हेतु सपरिवार देखिए साधना टीवी चैनल सायं 07:30 pm.
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Shraddha TV Satsang 29-10-2024 || Episode: 2728 || Sant Rampal Ji Mahara...
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मोक्ष
Complete Salvation
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🔰*मानुष जन्म दुर्लभ है, मिले ना बारंबार!जैसे तरुवर से पत्ता टूट गिरे,बहुर ना लगता डार!!*
⏩जी हां, मानव जन्म अनमोल और दुर्लभ है! मनुष्य जन्म एकमात्र मोक्ष प्राप्ति के लिए ही प्राप्त हुआ है!
हम केवल पूर्ण ब्रह्म परम अक्षर पुरुष परमेश्वर कबीर जी की भक्ति करके ही मोक्ष की प्राप्ति कर सकते हैं,अन्यथा काल द्वारा लगाए हुए कर्म बंधन में आत्मा फंसी रहती है, जिससे जीवात्मा का बार-बार जन्म और मरण होता रहता है + 84 लाख योनियों को प्राप्त रहती है! पाप-पुण्य कर्म में बंधी रहती है !
⏩कोई भी आत्मा स्व इच्छा से पाप कर्म नहीं करना चाहती!
बुराई नहीं करना चाहती!
काम-क्रोध-मोह-लोभ-अहंकार विषय विकारों में फंसा नहीं रहना चाहती !
लेकिन काल व्यवस्था के अनुसार आत्मा को स्वत: ही पाप कर्म लगते रहते हैं और आत्मा मनुष्य जन्म में प्रारब्ध और संचित पाप-पुण्य कर्मों के अनुसार फल भोगती रहती है!
👑कबीर परमेश्वर की भक्ति से हम जीवात्माओं को इस कर्म बंधन से छुटकारा मिल सकता है!
साथ ही अच्छा जीवन जीने के लिए और भक्ति करने के लिए परमात्मा से हमें शारीरिक-मानसिक-आर्थिक-सामाजिक और आध्यात्मिक लाभ प्राप्त होते रहते हैं + साथ ही हमारे प्रारब्ध और संचित पाप कर्मों का नाश भी होता रहता है और सतभक्ति से हम सुकर्म कर्मों के धनी होकर अपने निज घर सतलोक जा पाते हैं अर्थात पूर्ण मोक्ष हो जाता है !
सतलोक में किसी भी प्रकार का अभाव और कष्ट नहीं है+ रोग बुढ़ापा और मृत्यु नहीं है!
इस काल लोक में यह कहर जीवात्मा के साथ सदा बना रहता है! पृथ्वी लोक + काल के 21 ब्रह्मांड में_ रोग भी होगा बुढ़ापा भी आएगा मृत्यु भी होगी!
⏩शरीर तो सतलोक जाने के लिए भी छोड़ना पड़ेगा लेकिन उसकी व्यवस्था बहुत सुंदर ढंग से परमात्मा करते हैं,जिससे आत्मा सद्भक्ति करते-करते अपने निज घर चली जाती है!
⏩वर्तमान में संत रामपाल जी महाराज जी ही इस पृथ्वी पर एक पूर्ण संत पूर्ण हंस और पूर्ण सतगुरु स्वरूप हैं!
परमात्मा कबीर जी ने अपनी वाणी में कहा है_
*सतगुरु पूर्ण ब्रह्म हैं, सतगुरु आप अलेख! सतगुरु रमता राम हैं! या में मीन ना मेंख!!*
*संत शरण में जाने से आई टले बला!जै मस्तक में सूली हो,कांटे में टल जा!!*
🙏सत साहेब जी🙏
🙏जय बंदीछोड़ जी की 🙏
🙏⏩आप सभी जी से दासी का विनम्र निवेदन है कि अवश्य सब्सक्राइब करें!
संत रामपाल जी महाराज
यू ट्यूब चैनल पर और प्रतिदिन देखें पवित्र मंगल सत्संग के अमृत प्रवचन!
📚जो पूर्ण रूप से शास्त्र प्रमाणित हैं!
अपने मानव जीवन के उद्धार के लिए और अपने परिवार वंश कुल की भलाई के लिए अवश्य सद्भक्ति करें !
संत रामपाल जी महाराज की शरण ग्रहण करें !
इसी में आत्मा का मंगल और कल्याण है!
🙏संत रामपाल जी महाराज की बताई हुई भक्ति से ही और परमात्मा रूपी सतगुरु के आशीर्वाद से ही इस धरती पर राम राज्य आ सकता है !
स्वर्ण युग+ मोक्ष युग की शुरुआत हो चुकी है!
यह मोक्ष युग परमात्मा ने हमारे उद्धार के लिए चुना है! अपना कल्याण अवश्य करवाएं!
🙏परमेश्वर कबीर जी ने अपनी वाणी में कहा है_
*अमर करूं सतलोक पठाऊँ तांतें बंदीछोड़ कहांऊँ!कलयुग मध्य सतयुग लाऊँ तांतें बंदीछोड़ कहांऊँ!! *
🙏⏩संत रामपाल जी महाराज कबीर अवतार हैं! भक्ति मुक्ति के दाता हैं एकमात्र नाम दीक्षा देने के अधिकारी पुरुष हैं इसमें संदेह नाम मात्र भी नहीं किया जा सकता है!
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छठी किस्त
राधा स्वामी पंथ की कहानी-उन्हीं की जुबानी: जगत गुरु
(धन-धन सतगुरु, सच्चा सौदा तथा जय गुरुदेव पंथ भ��� राधास्वामी की शाखाएं हैं)
(छठी किस्त)
(23 अप्रैल 2006 को पंजाब केसरी में प्रकाशित)
(---- गतांक से आगे)
पूर्ण सन्त की पहचान (2)
नानक साहेब जी कहते हैं:-
सोई सतगुरू पूरा कहावै। दोय अख्खर का भेद बतावै।।
एक छुड़ावै एक लखावै। तो प्राणी निज घर जावै।।
गीता अध्याय 17 श्लोक 23 में उस पूर्ण परमात्मा (सतपुरूष) की साधना का भी संकेत दिया है। कहा है कि उस पूर्ण परमात्मा की प्राप्ति का तो केवल ॐ-तत्-सत् इस तीन मन्त्र के जाप का निर्देश है। जिसका तीन विधि से स्मरण किया जाता है। यही साधना साधक जन सृष्टि के प्रारम्भ में करते थे। तीन मन्त्र के स्मरण की विधि तत्वदर्शी(पूर्ण) सन्त बताएगा। क्योंकि गीता अध्याय 4 श्लोक 34 में कहा है कि पूर्ण परमात्मा के विषय में तत्वदर्शी सन्त से पूछो।
ओम् शब्द- यह ब्रह्म (क्षर पुरूष) का जाप है। तत् शब्द यह परब्रह्म का जाप है। यहाँ तत् शब्द सांकेतिक है। जो यह दास केवल उपदेशी को ही बताएगा।
ओम्+तत् (सांकेतिक) मिलकर सतनाम (दो अक्षर का मन्त्र) बनता है तथा सत् शब्द (सांकेतिक) तीसरा मन्त्र है इसे सारनाम भी कहते हैं। इसी को आदि नाम भी कहते हैं। जो गुप्त है उसको पूर्ण सन्त ही बताएगा जो स्मरण करने का है। ओम मन्त्र का जाप काल (ब्रह्म) के ऋण से मुक्त कराएगा (काल से छुड़वाएगा) तथा दूसरा तत् (सांकेतिक) परब्रह्म का मन्त्र है। जिसका जाप परब्रह्म के सात संख ब्रह्मण्डों को पार करने का किराया है। यह भंवर गुफा तक पहुँचाएगा अर्थात पूर्ण परमात्मा को दिखाएगा (लखाएगा) तथा तीसरा मन्त्र सारनाम पूर्ण परमात्मा के सतलोक में स्थाई करेगा। फिर साधक का जन्म-मृत्यु सदा के लिए समाप्त हो जाएगा। सतलोक में पूर्ण परमात्मा अर्थात् सतपुरूष मानव सदृश आकार में है। जिसके एक रोम कूप की शोभा करोड़ सूर्यों तथा इतने ही चन्द्रमाओं के प्रकाश से भी अधिक है। जीव आत्मा भी साकार मानव सदृश शरीर में रहती है तथा आत्मा के शरीर का प्रकाश सोलह सूर्यों के प्रकाश के समान है। आत्मा अपने साकार परमात्मा के सिर पर चंवर करती है (प्रमाण कबीर परमेश्वर की अमृतवाणी शब्द ‘कर नैनों दीदार महल में प्यारा है’ जो सन्तमत प्रकाश भाग-3 के प्रथम पृष्ठ पर लिखा है)।
राधास्वामी पन्थ तथा धन-धन सतगुरू पंथ वाले सन्तों का कहना है कि सतलोक में तो केवल प्रकाश ही प्रकाश है। सतपुरूष निराकार है। आत्मा सतलोक में जा कर परमात्मा में ऐसे समा जाती है जैसे बूंद समुंद्र में समा जाती है। परमात्मा और आत्मा का भिन्न अस्तित्व नहीं रहता। जबकि वास्तविकता ऊपर वर्णित है वह सही है ज�� परमात्मा पूर्ण ब्रह्म (सतपुरुष) ने स्वयं बताई है। मुझ दास को अपनी कृपा से दर्शन कराए हैं।
उपरोक्त सतनाम जो दो अक्षर (ओम् तत् सांकेतिक) के योग से बनता है का उदाहरण स्वयं श्री सावन सिंह जी महाराज (जो श्री खेमामल उर्फ शाहमस्ताना जी के गुरु जी है। शाहमस्ताना जी ने धन-धन सतगुरु सच्चा सौदा सिरसा में स्थापित किया है) ने पुस्तक संतमत प्रकाश भाग-4 के पृष्ठ 261-262 पर लिखा है। परन्तु स्वयं ज्ञान नहीं है, ग्रंथ साहेब का प्रमाण लिया है। नानक साहेब कहते हैं कि -
सोई सतगुरु पूरा कहावै, दोय अख्खर का भेद बतावै। एक छुड़ावै एक लखावै, तो प्राणी निज घर जावै।
फिर कहते हैं - जे तू पढ़या पंडित बीना दोय अख्खर दुयनावां। प्रणवत नानक एक लंघाए जे कर सच्च समावां। (���दि गुरु ग्रन्थ साहेब पृष्ठ 1171)
फिर कबीर परमेश्वर जी की वाणी का प्रमाण दिया है:- कह कबीर अक्षर दुय भाख। होयगा खसम त लेयगा राख। (आदि गुरु ग्रन्थ पृष्ठ 329)
फिर लिखा है:- ओम् शब्द, सोहं शब्द, सतशब्द
विचार करें:- उपरोक्त मंत्र पूर्ण परमात्मा की प्राप्ति तथा सतलोक निवास के हैं जिसका पवित्र गीता जी में तथा पवित्र अमृत वाणी कबीर साहेब तथा प्रभु प्राप्त संतों की अमृतवाणी में भी प्रमाण है। परंतु राधास्वामी पंथ तथा धन-धन सतगुरु पंथ तथा जयगुरुदेव तथा दिनोंद भिवानी आदि राधास्वामी वाले पंथों के संतों को ज्ञान नहीं है। सतनाम जो दो अक्षर के योग से बनता है उस के विषय में गोल-मोल लिख दिया कि ये आगे पारब्रह्म में हैं तथा एक अक्षर (सारनाम) के विषय में लिखा है कि वह भी पारब्रह्म में मिलेगा। स्वयं वे ‘‘ज्योति निरंजन’’, ‘‘औंकार’’, ‘‘ररंकार’’, ‘‘सोहं’’ तथा ‘‘सतनाम’’ ये पांच नाम देते हैं तथा धन-धन सतगुरू सच्चा सौदा वाले सन्त पहले तो यही पांच नाम देते थे अब, ‘‘सतपुरुष’’, ‘‘अकाल मूर्ति’’, ‘‘शब्द स्वरूपी राम’’ ये अन्य तीन नाम देते हैं। दिनोंद भिवानी वाले ताराचन्द जी महाराज वाला पंथ केवल ‘‘राधास्वामी’’ नाम देता है, स्वयं दो अख्खर के वास्तविक मंत्र से अपरिचित हैं।
इसलिए कबीर परमेश्वर की अमृतवाणी तथा श्री नानक जी की अमृतवाणी के आधार से जो दो अक्षर का भेद नहीं जानता वह पूरा गुरु (पूर्ण संत) नहीं है। इससे सिद्ध हुआ कि राधा स्वामी पंथ तथा धन-धन सतगुरू-सच्चा सौदा पंथ तथा श्री ठाकुर सिंह, श्री कृपाल सिंह तथा जय गुरूदेव मथुरा वाले तथा दिनोद भिवानी वाले राधास्वामी के सन्त जी पूर्ण सन्त नहीं हैं क्योंकि उनको दो अक्षर का ज्ञान नहीं है।
पुस्तक सन्तमत प्रकाश भाग-4 पृष्ठ 262 में लिखा है सतनाम हमारी जाति है, सतपुरूष हमारा धर्म है, सच्चखण्ड(सतलोक) हमारा देश है। यहाँ पर सतनाम, सतपुरूष, सच्चखण्ड तीनों को भिन्न-2 बताया है। इसी पुस्तक के पृष्ठ 21 पर सतनाम को स्थान कहा है। पुस्तक सारवचन वार्तिक प्रथम भाग के वचन 4 में सतनाम, सच्चखण्ड, सतपुरूष, सारशब्द, सतशब्द को एक बताया है। क्या ये विचार परम सन्त के हो सकते हैं? {कृप्या पढ़ें सन्तमत प्रकाश भाग-4 पृष्ठ 261-262 से फोटो कापी इसी पुस्तक (सच्चखण्ड का संदेश) के पृष्ठ 109-110 पर}
अधूरे सन्तों के विषय में पूज्य कबीर परमेश्वर जी कहते हैंः-
सतगुरू बिन काहु न पाया ज्ञाना, ज्यों थोथा भुस छिड़ै मूढ किसाना।
सतगुरू बिन बेद पढें जो प्राणी, समझे ना सार रहे अज्ञानी।
वस्तु कहीं खोजे कहीं, किस विद्य लागे हाथ।
एक पलक में पाईए, भेदी लिजै साथ।
एक समय एक व्यक्ति की अचानक मृत्यु हो गई। उसने बहुत सारा धन जमीन में दबा रखा था। उस का विवरण एक बही (पैड) में लिखा था जो सांकेतिक था। उस व्यक्ति ने अपने मकान के एक कोने में मन्दिर बनवा रखा था। बही में लिखा था चाँदनी चैदस रात्रि के बारह बजे मन्दिर के गुमज में सर्व धन दबा रखा है। लड़कों ने रात्रि में मन्दिर का गुमज फोड़ा। उसमें कुछ नहीं पाया। उनके पिता का एक दोस्त दूसरे गांव में रहता था। बच्चों ने उसको सर्व विवरण बताया तथा कहा कि पिता जी ने झूठ लिखा है। मन्दिर के गुमज में धन नहीं मिला। पिता जी के दोस्त ने उस लेख को पढ़ा तथा कहा कि आप मन्दिर के गुमज का पुनर् निर्माण करवाएं। मन्दिर के गुमज का पुनर् निर्माण होने के पश्चात् चांदनी चैदस (शुद्धि चतुर्दशी) को रात्रि के बारह बजे जहां पर गुमज की छाया थी उस स्थान को खोदा गया तो सर्व धन मिल गया।
अपने सद्ग्रन्थों में प्रभु ज्ञान का अपार धन छुपा है जो सांकेतिक है। वह पूर्ण संत (तत्वदर्शी संत) के बिना किसी को नहीं मिला। इसीलिए राधास्वामी तथा धन-धन सतगुरू वाले पंथों के सन्तों ने श्रद्धालुओं को भ्रमित कर दिया कि वेद तथा गीता आदि शास्त्र तो व्यर्थ हैं। कबीर परमेश्वर तो कहते हैं:-
वेद कतेब झूठे नहीं भाई, झूठे हैं जो समझे नाहीं।
भावार्थ है कि वेद तथा गीता जी व र्कुआन झूठे नहीं हैं। जो इन्हें समझ नहीं सके वे अज्ञानी हैं। राधास्वामी तथा धन-धन सतगुरू-सच्चा सौदा वाले पंथों के सन्त जी कहते हैं कि गीता व वेदों में पूर्ण परमात्मा का ज्ञान नहीं है। स्वयं लोक वेद (दंत कथाओं) के आधार पर ढेर सारी पुस्तकंे रच कर गलत ज्ञान प्रचार कर डाला। अब श्रद्धालुओं को शास्त्रों का ज्ञान समझाना कठिन हो रहा है। वर्तमान में मुझ दास को पूर्ण परमात्मा ने आप सर्व प्रभु प्रेमियों को छुपा धन बताने भेजा है। कृप्या अविलम्ब प्राप्त करें। वर्तमान में दो अक्षर से बने ‘‘सतनाम’’ का तथा एक अक्षर ‘‘सारनाम’’ का केवल मुझ दास (रामपाल दास) ही को दान करने का अधिकार पूज्य गुरूदेव तथा परमात्मा कबीर साहेब ने स्वयं प्रदान किया है। मुझ दास से विमुख एक-दो पापात्माऐं तीनों मंत्रों को प्राप्त करके स्वयंभू गुरू बन कर नाम दान करने लगे हैं। वे अधिकारी नहीं। उन्हें भक्त समाज के पक्के दुश्मन जानना। न तो वे स्वयं पार हो सकते हैं तथा न ही उनसे उपदेश प्राप्त भक्तजन पार हो सकते हैं। ऐसे ही लालची व्यक्तियों ने परमात्मा कबीर जी के साथ भी धोखा किया था जो अभी तक तत्वज्ञान समझने में बाधक सिद्ध हो रहा है। उनके तो दर्शन करना भी पाप है। जिनके विषय में ‘‘परमेश्वर का सार संदेश’’ पुस्तक के अध्याय पन्द्रह में ‘‘शंका समाधान विषय’’ में विस्तृत वर्णन है। एक समय में सन्त एक ही होता है वह पूरे विश्व को नाम देकर पार कर सकता है। जैसे परमपूज्य कबीर परमेश्वर जी काशी में आए थे उस समय पूरे विश्व में अकेले ही नाम दान करते थे। उनके चैसठ लाख शिष्य सर्व धर्मों के हुए थे। अपने रहते उन्होंने कोई उत्तराधिकारी नहीं बनाया था। इसलिए नकली संतों से सावधान रहें।
किस्त संख्या चार तथा किस्त संख्या छः के प्रमाणों से आपजी को स्पष्ट हुआ कि पूर्ण संत की क्या पहचान है ?
‘‘कैसे मिले भगवान?’’
शेष अगले अंक में ----------------
(पुस्तक ‘संतमत प्रकाश‘ भाग-4 पृष्ठ 261 से फोटो काॅपी)
(पुस्तक ‘संतमत प्रकाश‘ भाग-4 पृष्ठ 262 से फोटो काॅपी)
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परमात्मा की वाणी....
आत्मा को झकझोर
कर रख देती हैं।
#GodMorningFriday
#अल्लाह_का_इल्म_बाखबर_से_पूछो
💁🏻📖पवित्र पुस्तक ज्ञान गंगा निःशुल्क पायें | अपना नाम, पूरा पता भेजें +91 7496801823
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पारख के अंग की वाणी नं. 569-572:-
सुन काजी राजी नहीं, आपै अलह खुदाय। गरीबदास किस हुकम से, पकरि पछारी गाय।।569।।
गऊ हमारी मात है, पीवत जिसका दूध। गरीबदास काजी कुटिल, कतल किया औजूद।।570।। गऊ आपनी अमां है, ता पर छुरी न बाहि। गरीबदास घृत दूध कूं, सबही आत्म खांहि।।571।।
ऐसा खाना खाईये, माता कै नहीं पीर। गरीबदास दरगह सरैं, गल में पडै़ जंजीर।।572।।
सरलार्थ:- परमेश्वर कबीर जी ने काजियों व मुल्लाओं से कहा कि गऊ माता के समान है जिसका सब दूध पीते हैं। हे काजी! तूने गाय को काट डाला।
गाय आपकी तथा अन्य सबकी (अमां) माता है क्योंकि जिसका दूध पीया, वह माता के समान आदरणीय है। इसको मत मार। इसके घी तथा दूध को सब धर्मों के व्यक्ति खाते-पीते हैं।
ऐसे खाना खाइए जिससे माता को (गाय को) दर्द न हो। ऐसा पाप करने वाले को परमात्मा के (दरगह) दरबार में जंजीरों से बाँधकर यातनाएँ दी जाएँगी।
परमात्मा कबीर जी के हितकारी वचन सुनकर काजी तथा मुल्ला कहते हैं कि हाय! हाय! कैसा अपराधी है? माँस खाने वालों को पापी बताता है। सिर पीटकर यानि नाराज होकर चले गए। फिर वाद-विवाद करने के लिए आए तो परमात्मा कबीर जी ने कहा कि हे काजी तथा मुल्ला! सुनो, आप मुर्गे को मारते हो तो पाप है। आगे किसी जन्म में मुर्गा तो काजी बनेगा, काजी मुर्गा बनेगा, तब वह मुर्गे वाली आत्मा मारेगी। स्वर्ग नहीं मिलेगा, नरक में जाओगे।
काजी कलमा पढ़त है यानि पशु-पक्षी को मारता है। फिर पवित्र पुस्तक कुरआन को पढ़ता है। संत गरीबदास जी बता रहे हैं कि कबीर परमात्मा ने कहा कि इस (जुल्म) अपराध से दोनों जिहांन बूडे़ंगे यानि पृथ्वी लोक पर भी कर्म का कष्ट आएगा। ऊपर नरक में डाले जाओगे।(576)
कबीर परमात्मा ने कहा कि दोनों (हिन्दू तथा मुसलमान) धर्म, दया भाव रखो। मेरा वचन मानो कि सूअर तथा गाय में एक ही बोलनहार है यानि एक ही जीव है। न गाय खाओ, न सूअर खाओ।
आज कोई पंडित के घर जन्मा है तो अगले जन्�� में मुल्ला के घर जन्म ले सकता है। इसलिए आपस में प्रेम से रहो। हिन्दू झटके से जीव हिंसा करते हैं। मुसलमान धीरे-धीरे जीव मारते हैं। उसे हलाल किया कहते हैं। यह पाप है। दोनों का बुरा हाल होगा।
बकरी, मुर्गी (कुकड़ी), गाय, गधा, सूअर को खाते हैं। भक्ति की (रीस) नकल भी करते हैं। ऐसे पाप करने वालों से परमात्मा (अल्लाह) दूर है यानि कभी परमात्मा नहीं मिलेगा। नरक के भागी हो जाओगे। पाप ना करो।
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🌺 राबिया की कथा🌺
राबिया बसरी जो हज़रत बीबी के रूप में जानी जाती है एक मुस्लिम संत थी, जो बसरा, इराक के एक कबीले से आयीं थी। वह एक पुण्य आत्मा थीं, जिन्हें सर्वशक्तिमान कविर्देव (अल्लाह कबीर) मिले थे और सतभक्ति प्रदान की, जिसे करके उन्होंने मोक्ष प्राप्त किया। हम इस लेख में रबिया बसरी (एक पवित्र मुस्लिम भक्त) की वास्तविक कथा साझा करेंगे और सतभक्ति के महत्व पर प्रकाश डालेंगे जिसके माध्यम से पूर्ण मोक्ष प्राप्त किया जाता है।
राबिया की वास्तविक कथा क्या है?
हर आत्मा सतलोक (अविनाशी स्थान) से काल (शैतान) लोक में अपनी गलती के कारण आयी है। सतलोक में बुढापा (जरा) और मृत्यु (मरण) नहीं है और इसलिए कोई पीड़ा नहीं होती। वहाँ पर सम्पूर्ण सुख है। जो सुविधाएं काल लोक के 'स्वर्ग' और 'महा स्वर्ग' में भी उपलब्ध नही है वो सभी सतलोक में हर 'हंस आत्मा' के लिए बिना कर्म किए बिल्कुल मुफ़्त उपलब्ध हैं। जबकि काल लोक के 'स्वर्ग' और 'महा स्वर्ग' (ब्रह्मलोक) में सभी सुख और सुविधाओं का भुगतान किया जाता है। वे (सुविधाएं) साधक की कमाई के बदले में प्रदान की जाती है। काल की अपनी इच्छा के अनुसार दर होता है। 25% कमीशन अलग से है। सबसे बड़ा अंतर यह है कि 'सतलोक' में मृत्यु नहीं होती। जबकि काल के लोक में मृत्यु सिर पर बनी रहती है, जो दुःखदाई है। मृत्यु से भी बदतर 'बुढ़ापा' है, जो 'सतलोक' में नहीं होता है।
राबिया की वास्तविक कथा प्रारम्भ करने से पूर्व, आइए पहले हम आपको राबिया वाली आत्मा के पिछले कुछ जन्मों का विवरण दें। लेख का केंद्र निम्नलिखित पर होगा:
राबिया बसरी के पिछले जन्म कौनसे थे?
राबिया बसरी का विवाह
राबिया बसरी- एक प्रेरणादायक कथा
राबिया बसरी के साथ जो चमत्कार हुए
राबिया बसरी के पुनर्जन्म
सर्वशक्तिमान कविर्देव ने रबिया उर्फ कमली के जीवन को पुनर्स्थापित किया
आइए हम आगे बढें और जाने कि रा��िया बसरी के पिछले जन्म कौनसे थे?
रबिया बसरी के पिछले जन्म कौनसे थे?
सन्दर्भ: महान संत गरीबदास जी महाराज की पवित्र वाणी का अंग। लेखक महान संत रामपाल जी महाराज है। पुस्तक का नाम 'मुक्तिबोध', पृष्ठ 205-209 पर अध्याय 'पारख के अंग का सरलार्थ'।
'कलयुग' में राबिया बसरी की आत्मा 'सतयुग' में 'दीपिका' वाली आत्मा थी, जो ऋषि 'गंगाधर' की पत्नी थी, जिन्होंने 'सत्ययुग' में सर्वशक्तिमान कविर्देव, जो सतयुग में लीला करने के लिए शिशु रूप में प्रकट हुए थे, का पालन पोषण करके अपने "कर्मों" को प्रफुल्लित करने में कामयाब रहे। ऋषि 'गंगाधर' वाली आत्मा ने त्रेता युग में ऋषि 'वेदविज्ञ' के नाम से जन्म लिया और 'दीपिका' वाली आत्मा ने 'सूर्या' नाम से जन्म लिया। वह ऋषि 'वेदविज्ञ' से विवाहित हुई। त्रेता युग में, सर्वशक्तिमान कविर्देव ऋषि 'मुनिंद्र' के रूप में विद्यमान रहे।
'त्रेता युग' में, सर्वशक्तिमान कविर्देव, लीला करते हुए, एक कमल के फूल पर शिशु रूप में प्रकट हुए जैसे वे 'सतयुग' में प्रकट हुए थे। ऋषि 'वेदविग्य' जो उस समय निःसन्तान थे शिशु रूप सर्वशक्तिमान कविर्देव को अपने घर में ले आये। फिर उनकी पत्नी 'सूर्या' शिशु रूप सर्वशक्तिमान कविर्देव का पालन-पोषण और सेवा करके अपने शुभ कर्मों को बढ़ाने में कामयाब रहे। यही 'दीपिका' वाली आत्मा ने कलियुग में मुस्लिम धर्म में 'राबिया' के नाम से एक लड़की के रूप में जन्म लिया।
राबिया परमेश्वर कबीर जी की पूजा में दृढ़ थी। यहाँ तक कि उसने निकाह करने से भी इनकार कर दिया था क्योंकि सतगुरु कविर्देव जी 'जिंदा बाबा' के रूप में जंगल में उस पुण्य आत्मा को मिले थे जब वह अन्य महिला साथियों के साथ पशुओं का चारा लेने गयी हुई थी। सर्वशक्तिमान कविर्देव ने अपनी शक्ति से जंगल में एक छोटा तालाब (जोहड़) बनाया था। उन्होंने उसके चारों ओर एक छोटा सा बगीचा बनाया, एक झोपड़ी भी। वे वहां 'जिंदा बाबा' के रूप में बैठे थे। चारा काटते हुए लड़की अकेले उस तरफ चली गई। वह एक धर्मी व्यक्ति को देखकर प्रभावित हुई और उसने 'सलाम वालेकुम' कहकर उन्हें प्रणाम किया। फिर उसने उनके उपदेश/ज्ञान को सुनने का अनुरोध किया।
परमेश्वर कबीर जी ने एक घंटे तक उसे ज्ञान सुनाया। उन्होंने उसे सृष्टि रचना के बारे में बताया। लड़की प्रेरित हुई। उसने नाम दीक्षा लेने के लिए अनुरोध किया। सतगुरु ने कहा 'बेटी! दो और दिनों के लिए ज्ञान सुनो, फिर मैं आपको नाम (मंत्र) दूंगा। लेकिन मेरे बारे में किसी और को मत बताना कि कोई 'बाबा' यहां रहता है'। लड़की दो और दिनों तक अकेली गई और आध्यात्मिक ज्ञान सुना और दीक्षा ली। फिर वह घर चली गई। परमात्मा ने उसे बताया कि 'अब, मैं यहां से चला जाऊंगा, तुम भक्ति करना मत छोड़ना'। लड़की ने अल्लाह द्वारा बताई गयी भक्ति चार साल तक जारी रखी। बाद में, प्रवचनों की कमी के कारण, उसने सतभक्ति को त्याग दिया और अपने मुस्लिम धर्म के अनुसार इबादत करनई शुरू कर दी। ��ब तक वह 16 वर्ष की हो गई थी।
राबिया बसरी का निकाह
राबिया खुदा से बहुत स्नेहमय थी, इस हद तक कि उसने निकाह करने से इनकार कर दिया था। उसके माता-पिता उसका निकाह करने के लिए दृढ़ थे। लड़की भी दृढ़ रही। माता-पिता ने कहा कि 'एक जवान लड़की को घर पर नहीं रखा जा सकता। यदि तुम हमसे सहमत नहीं होगी तो हम दोनों आत्महत्या करेंगे। हम तुम्हें चार दिनों का समय देते हैं। विचार करो और हमें बताना'। राबिया ने अपने माता-पिता की स्थिति को समझा और सहमति व्यक्त की। उसने विचार किया कि वह निकाह के लिए सहमत हो जाएगी, लेकिन अपने पति से अनुरोध करेगी कि वह प्रजनन के कार्य में भाग नहीं लेगी क्योंकि उसका उद्देश्य भक्ति करना और अपना कल्याण करवाना है। बेशक वह अपने पति को किसी और से विवाह करने के लिए कहेगी, लेकिन अगर वह असहमत हुआ तो वह अपना जीवन समाप्त कर देगी। यह सोचकर, लड़की ने अपनी मां और पिता को निकाह के लिए स्वीकृति देदी। वह एक अधिकारी से विवाहित हुई।
वह मुस्लिम अधिकारी भगवान से डरने वाला था लेकिन वह कोई विशेष पूजा/भक्ति नहीं करता था। निकाह के बाद, रात के समय, पति ने राबिया से मिलन के लिए कहा, जिसे उसने दृढ़ता से मना कर दिया। उसने उसे बताया कि वह भक्ति करना चाहती है। उसने कहा, "यदि आप चाहते हैं, तो आप फिर से शादी कर सकते हैं। मुझे अपने आंगन में एक झोपड़ी बनवा दें, मैं रह लूँगी"। भगवान से डरते हुए, और शालीनता से, पति ने राबिया से कहा, "यदि आप आदमी के साथ मिलन का इरादा नहीं रखती हैं यानी आप सन्तान उतपत्ति नही करना चाहती थी, तो आप निकाह के लिए रजामंद क्यों हुए थे?" राबिया ने कहा, "मैं अपने माता-पिता के सम्मान को बचाने के लिए निकाह के लिए सहमत हुए थी। उन्होंने मरने का फैसला कर लिया था। समाज के डर के कारण वे अपने जीवन को अंत करने के लिए तैयार थे। इसलिए, मैं सहमत हो गयी। अगर आप मुझे मिलन के लिए मजबूर करेंगे, तो मैं आत्महत्या कर लूँगी। यह मेरा अंतिम निर्णय है "।
पति ने कहा 'राबिया बसरी! यह अच्छा है, कि आप अल्लाह के लिए समर्पित हैं लेकिन मेरी मां और पिता की भी समाज में इज़्ज़त/सम्मान हैं। मेरा फैसले भी सुनो। आप बिना अनुमति के घर छोड़कर नहीं जाएंगी। अपनी भक्ति करो। समाज की दृष्टि में, आप मेरी पत्नी बनी रहोगी लेकिन मेरे लिए आप एक बहन की तरह होंगी। मैं आपको किसी भी चीज की कमी नहीं होने दूंगा, आप भक्ति करना जारी रखो। आपकी सेवा करके मुझे भी लाभ होगा। मैं किसी और से शादी कर लूँगा। फिर उसने किसी और से शादी कर ली और राबिया को अपनी बहन के रूप में रखा। उसने उसकी सभी सुविधाओं का अच्छे से ध्यान रखा।
राबिया बसरी - एक प्रेरणादायक कथा
राबिया बसरी का इतिहास बताता है कि वह एक पुण्य आत्मा थी, परमात्मा से डरने वाली आत्मा।
सन्दर्भ: गरीबदास जी की अमृत वाणी 'अचला के अंग' में पृष्ठ 363-368, पुस्तक 'मुक्तिबोध' में पृष्ठ 205 पर।
गरीब, राबी कु सतगुरु मिले, दीन्हा अपना तेज।
ब्याही एक साहब से, बीबी चढ़ी न सेज।।
गरीब, राबी मक्के कु चली, धर अल-हक़ का ध्यान।
कुत्ती एक प्यासी खड़ी, छूटे जात है प्राण।।
गरीब केश उपारे शीश के, बाटी रस्सी बीन।
जाके वस्त्र बांध कर, जल काढया प्रबीन।।
गरीब, सुनही कु पानी पिया, उतरी अर्स आवाज।
तीन मंजिल मक्का गया, बीबी तुम्हरे काज।।
गरीब, बीबी मक्के पर चढ़ी, राबी रंग अपार।
एक लाख अस्सी जहां, देखे सब संसार।।
गरीब राबी पटरा घाल कर, किया जहाँ स्नान।
एक लाख अस्सी बहे, मंगल मल्या सुल्तान।।
जब राबिया बसरी करीब 55-60 वर्ष की थी उसने मुस्लिम धर्म की धार्मिक प्रथा के अनुसार 'हज' करने का फैसला किया। उसने अपने पति उर्फ अपने शपथबद्ध भाई के सामने इच्छा व्यक्त की, जिस पर उसने आसानी से स्वीकृति देदी। राबिया को गांव के अन्य लोगों के साथ भेजा गया था। जब सब चल रहे थे, उन्होंने रास्ते में एक कुआँ देखा। पानी बाहर लाने के लिए रस्सी और बाल्टी जैसे आवश्यक उपकरण नहीं थे। ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे कि किसी राहगीर यात्री से गलती से बाल्टी कुँए में गिर गई थी। एक प्यासी कुतिया कुँए के बगल में खड़ी थी।
विनम्र आत्मा राबिया समझ गई कि कुतिया प्यासी थी। ऐसा लगता है जैसे उसके पिल्ले भी आस पास थे जिन्होंने अभी तक चलना शुरू नहीं किया था। हज तीर्थयात्रा साथियों ने पानी पीने की इच्छा व्यक्त की, लेकिन रस्सी और बाल्टी की उपलब्धता न होने के कारण, वे आगे बढ़ गए। वे जानते थे कि एक कुँआ 3 किमी आगे था। कुँए नियमित अंतराल पर हज तीर्थयात्रियों के लिए बनाया गया था।
तीर्थयात्रा साथी आगे चले गए। उन्होंने राबिया पर ध्यान नहीं दिया क्योंकि वह रस्सी और बाल्टी की तलाश में गई थी। हालांकि राबिया को कुँए से पानी निकालने के लिए कुछ भी नहीं मिला। वह दयालु और भगवान से डरने वाली थी। उसके पिछले जन्मों के शुभ कर्मों का प्रभाव अधिक प्रभावी था। उसने अपने बालों को अपने सिर से उखाड़ा और उन्हें एक लंबी रस्सी बनाने के लिए बांध दिया। उसने अपने कपड़े उतारे और उन्हें अपने बालों से बनी रस्सी से बांध दिया और उसे कुँए में डुबोया और जल्दी से बाहर खींच लिया। उसने कपड़ों से पानी को एक टूटे हुए मिट्टी के बर्तन के टुकड़े पर निचोड़ा जो कुएं के पास ही गिरा हुआ था। शायद जब रस्सी और बाल्टी उपलब्ध थी, तो यात्री उस मिट्टी के बर्तन के टुकड़े का इस्तेमाल कुत्ते/कुतिया और अन्य छोटे जानवरों के लिए पानी पीने के लिए उसको भरने के लिए किया जाता था। उसी इच्छा से, कुतिया कुएं के पास राबीया के चरणों को छू रही थी और कुएं की तरफ देख रही थी। राबिया ने प���यासी कुतिया को पानी दिया। कुतिया ने अपनी प्यास बुझाई। राबिया ने अपने कपड़े निचोड़े और सुखाए। पानी से उसने लहू को साफ किया जो उसके बालों को उखाड़ने के बाद उसके शरीर पर फैल गया था। उसने अपने कपड़े पहने और आगे बढ़ने की तैयारी की।
यह गरीबदास जी महाराज जी की अमृत वाणी में कहा है:
राबिया रंगी हरि रंग में, कैसी जीव दया दरसाई।
केश उखाड़े, वस्त्र उतारे, एक सुनही की प्यास बुझाई।
मंजिल तीन मक्का ले आयी, वो भी रह गयी वार ही।।
आइए आगे बढ़ते हैं और पुण्य आत्मय राबिया के बारे में और जानते हैं।
राबिया बसरी के साथ जो चमत्कार हुआ
जैसे ही राबिया ने मक्का जाने के लिए आगे बढ़ने की तैयारी की, मक्के की मस्जिद ज�� लगभग 60 मील दूर थी, अपने निज स्थान से उड़ी और कुँए के पास आयी और उसके बगल में स्थित हो गयी। मक्का को देखकर, राबिया आश्चर्यचकित हुई जैसे कि यह एक सपना हो। उसी समय एक आकाशवाणी हुई, "हे भक्त! मक्का आसमान से होते हुए 60 मील की यात्रा की है, केवल आपके लिए। कृपया अंदर प्रवेश करें"। राबिया ने मक्का की मस्जिद में प्रवेश किया। वह इसी मकसद से आई थी।
महान संत गरीबदास जी अपनी अमृत वाणी में 56, 57 छंद में कहते हैं कि;
गरीब, सुल्तानी मक्का गए, मक्का नही मुकाम |
गया रांड के लेन कु, कहे अधम सुल्तान ||
गरीब, राबिया परसी रबस्यों, मक्का की असवारि |
तीन मंजिल मक्का गया, बीबी के दीदार ||
दूसरी तरफ, उस समय इब्राहिम अधम सुल्तान की आत्मा ने मुस्लिम धर्म में मनुष्य जन्म ले लिया था। वह भी मक्का गया हुआ था। सर्वशक्तिमान कविर्देव (अल्लाहु-अकबर) उन्हें मिले थे और उन्हें सच्चा आध्यात्मिक ज्ञान बताया था। अल्लाहु-अकबर ने उन्हें दीक्षा भी दी थी। इब्राहिम अधम भोले-भाले गुमराह लोगों को सच्चा आध्यात्मिक ज्ञान देने के लिए हर साल मक्के का दौरा करते था। जब मक्का की मस्जिद अपने मूल स्थान से उड़ी, तो अन्य लोगों ने कुछ असाधारण संदेह किया। उन्होंने मक्का के ठिकाने के बारे में एक-दूसरे के साथ चर्चा करना शुरू कर दिया और इसे अल्लाह के चमत्कार कहा। इब्राहम ने कहा कि 'मक्का एक रांड को लेने गया है'। यह मक्का एक घर है। अल्लाह इसमें नहीं है। अल्लाह आकाश में है। एक मुस्लिम होने के नाते किसी ने भी इब्राहाम का विरोध नहीं किया।
इसी बीच, मक्का उड़ा और वापस अपनी मूल जगह पर आया और स्थिर हो गया। यह बताया गया था कि यह एक पुण्य आत्मा राबिया को लेने के लिए गया था। सब उसे देखने लगे और उसकी भक्ति की सराहना की। इब्राहाम से पूछताछ की गई 'आपने इतनी पुण्य आत्मा के बारे में गलत क्यों कहा?'। आप पापी बनोंगे'। तब इब्राहाम ने बताया कि अल्लाहु-अकबर इस पुण्य आत्मा को 'जिंदा बाबा' के रूप में मिले थे। इसने दीक्षा ली परन्तु केवल 4 वर्ष तक भक्ति की। फिर इसने मनमानी पूजा करनी शुरू कर दी। उस भक्ति की शक्ति से, उसे इस तरह के साहसिक कार्य करने का साहस म��ला। एक कुतिया की प्यास बुझाने के लिए उसने अपने बालों को उखाड़ दिया, इससे रस्सी तैयार की, अपने कपड़ों की सहायता से उसने कुँए से उस रस्सी के सहारे पानी निकाला, प्यासी कुतिया को पानी दिया और उसकी जान बचाई। इसलिए, अल्लाहु-अकबर ने यह चमत्कार किया '। जब राबिया से पुष्टि करने के लिए पूछा गया, उसने वही बताया। जब राबिया ने स्नान किया तो इब्राहिम सुल्तान अधम ने उस पवित्र आत्मा की कमर से रक्त को साफ करने में उसकी मदद की।
1,80,000 पैगम्बर हुए हैं। अल्लाह ने किसी के लिए चमत्कार नहीं किया। वे सभी राबिया के सामने छोटे लगते हैं। अल्लाह केवल सच्चे भक्तों पर ही कृपा करते हैं।
नोट: एक सच्ची और दृढ़ भक्त होने के बावजूद, राबिया की आत्मा मुक्त नहीं हो सकी। वह जन्म और पुनर्जन्म के दुष्चक्र में ही फंसी रही। यह साबित करता है कि मनमानी पूजा ��े पूर्ण मोक्ष कभी भी प्राप्त नहीं हो सकता। आइए हम पुण्य आत्मा राबिया के कुछ और जन्मों पर प्रकाश डालते हैं।
राबिया बसरी के पुनर्जन्म
महान संत गरीबदास जी ने आगे 58, 59 छंद में अपनी अमृत वाणी में बताया:
गरीब, फ़िर राबिया बंसुरी बनी, मक्का चढाया शीश |
पुर्बले संस्कार कुछ, धनि सतगुरु जगदीश ||
गरीब, बंसुरी से वैश्या बनी, शब्द सुनाया राग |
बहुरि कमाली पुत्री, जुग जुग त्याग बैराग ||
राबीया वाले उस मनुष्य जन्म को पूरा करने के बाद, दूसरे जन्म में वही आत्मा मुस्लिम धर्म में फिर से एक लड़की के रूप में पैदा हुई और 'बंसुरी' नाम रखा। वह बहुत धार्मिक थी और हमेशा अल्लाह का गुणगान करती रहती थी। वह एक गायिका थी जो धार्मिक गीत गाती थी। वह मुस्लिम धर्म की पारंपरिक पूजा करती थी। मुस्लिम धर्म में एक धारणा है कि यदि कोई मक्का में मरता है तो वह सीधे स्वर्ग में जाता है। बंसुरी ने सोचा कि व्यक्ति मक्का में अपना शरीर छोड़ने और स्वर्ग प्राप्त करने से बेहतर और क्या कर सकता है। वह 'हज' के दौरान मक्का में गई। उसने अपना सिर कलम कर दिया और वहां अर्पण कर दिया और अपना जीवन अंत कर दिया। पूरा मुस्लिम समाज इस पर चर्चा करने लगा और कहा कि यह असली बलिदान है।
राबिया वाली आत्मा ने बंसुरी के जन्म में मक्के में अपना मानव शरीर त्याग दिया और अपने तीसरे मनुष्य जन्म में उसने एक वेश्या के पापी जीवन का नेतृत्व किया।
राबिया से भई बंसुरी, फ़िर वैश्या ख्याल बनाया
वैश्या से फिर भई कमाली, तब तेरा ही शारना चाह्या
शरण तेरी में आनंद आया, थी प्यासी दीदार की!
'बंसुरी' का मानव जीवन पूरा होने के बाद 'दीपिका / सूर्या / राबिया' वाली आत्मा ने चौथा मनुष्य जन्म लिया। वह शेखतकी नामक एक मुस्लिम पीर जो दिल्ली के राजा सिकंदर लोधी का आध्यात्मिक गुरु था, की बेटी के रूप में पैदा हुई। जब शेखतकी की बेटी 13 वर्ष की आयु की थी वह मर गई। एक और मनुष्य जन्म देने के लिए उसके पुण्य कर्�� नहीं थे। उसे पक्षी या पशु का जीवन मिलना पूर्व निर्धारित था।
सर्वशक्तिमान कविर्देव जी ने उसके शरीर/शव को कब्र से खोदकर निकलने के बाद उसे जीवन दान दिया। उन्होंने उसकी आयु बढ़ा दी और उसे अपनी बेटी के रूप में ले आये। परमात्मा ने उसे सतभक्ति और दीक्षा दी और उसकी मुक्ति की। आइए जानें कि क्या हुआ और कैसे सर्वशक्तिमान कविर्देव ने 'कमाली' को जीवन दान दिया
सर्व शक्तिमान कविर्देव ने राबिया उर्फ 'कामाली' को जीवन दान दिया
सन्दर्भ: पवित्र कबीर सागर
600 वर्ष पूर्व सर्वशक्तिमान कविर्देव ने काशी, उत्तरप्रदेश में एक धानक की दिव्य लीला की थी। उन्होंने बहुत से चमत्कार किये और लोगों पर मेहर की। शेखतकी नाम का एक मुस्लिम धार्मिक गुरु था।
शेखतकी भगवान कबीर से बेहद ईर्ष्या करता था क्योंकि राजा सिकंदर लोधी सहित बहुत से लोग उनके शिष्य बन गए थे। उसने जनता को यह कहते हुए गुमराह किया, "कबीर एक जादूगर है। इन जादुई तरकीबों को दिखाकर उसने राजा सिकंदर को मूर्ख बनाया"। उसने सभी मुस्लिमों को अपने समर्थन के लिए मनाया और भोले-भाले मुसलमानों उससे सहमत हो गए। शेखतकी ने कहा कि हम 'कबीर भगवान है' तभी स्वीकार करेंगे अगर वह मेरी मृत बेटी जो एक कब्र में दफन है, को जीवित कर देगा। उसने कहा, 'मैं मान लूंगा कि 'कबीर अल्लाह है'। कबीर साहेब जी सहमत हो गए। यह जानकारी हर जगह प्रसारित कर दी गई। एक दिन निर्धारित किया गया और हजारों लोग पुण्य आत्मा की झलक देखने के लिए एकत्रित हो गए।
जिस कब्र में शेखतकी की बेटी को दफनाया गया था, उसे खोदा गया। कबीर साहेब ने शेखतकी से कहा कि पहले आप अपनी बेटी के शव को जीवित करने की कोशिश करें। वहां मौजूद सभी लोगों ने कहा 'यदि शेखतकी के पास शक्ति होती तो वह अपनी बेटी को मरने नहीं देता। अपने बच्चे के जीवन को बचाने के लिए हर व्यक्ति सभी प्रयास करता है। 'हे रहमान! आप कृपया अपनी कृपा करें'। सर्वशक्तिमान कविर्देव जी ने कहा 'हे शेखतकी की बेटी! जीवित हो जा'। उन्होंने यह तीन बार कहा लेकिन लड़की जीवित नही हुई। यह देखकर, शेखतकी नाचने लगा कि एक पाखंड का पाखंड पकड़ा गया है। यह कबीर साहिब की लीला थी। वे चाहते थे कि शेखतकी लोगों के सामने तमाशा करे।
परमेश्वर कबीर जी कहते हैं;
कबीर, राज तजना सहज है, सहज तरिया का नेह,
मान बढाई ईर्ष्या, दुर्लभ तजना ये!
मान बढाई और ईर्ष्या के विनाशकारी परिणाम होते हैं। शेखतकी को अपनी बेटी के जीवित न होने का दुःख/गम नही था, बल्कि कबीर साहेब जी के हारने की खुशी मना रहा था। इन दो लक्षणों के कारण वह नीच सिद्ध हुआ।
कबीर साहेब जी ने शेखतकी से कहा, 'मौलवी जी आप बैठ जाओ, शांति बनाए रखें'। फिर भगवान कबीर ने कहा, 'हे पुण्य आत्मा! जहाँ भी है, कबीर हुकुम/आदेश से, इस शरीर में प्रवेश करो और इस कब्र से बाहर आ जाओ'। जैसे ही ��बीर साहेब ने ये शब्द कहे, मृत शरीर में कंपकंपी होने लगी और लड़की जीवित हो गयी। वह कब्र से बाहर आई और कबीर साहेब जी को दण्डवत प्रणाम किया। कबीर साहेब की कृपा से, लड़की ने कबीर साहेब की मेहर के बारे में डेढ़ घंटे का प्रवचन किया।
उसने कहा 'हे भोले-भाले लोगों! अल्लाह आ गये हैं। वह पूर्ण ब्रह्म, असंख्य ब्रह्मांडों के मालिक हैं। जिसे आप एक साधारण से जुलाहे के रूप में देखते हैं, वह वास्तव में भगवान है। 'हे भटके और गुमराह मनुष्यों! यह आपके सामने भगवान खड़ा है, इन्हें प्रणाम करो, अपने घुटनों पर हो जाओ, दण्डवत करो और खुद को जन्म और मृत्यु के दीर्घ रोग से मुक्त हो जाओ और हम सभी सतलोक में जाएंगे, जहां जाने के बाद आत्मा इस संसार में वापस नहीं आती'।
कमाली ने बताया कि 'बन्दीछोड कबीर साहेब' के अलावा कोई भी आपको काल के जाल से छुटकारा नही दिला सकता। किसी भी धर्म की कोई भी धार्मिक क्रिया काल के जाल से आत्मा को मुक्त नहीं करवा सकती, चाहे वह हिन्दू धर्म की भक्ति विधि हो जैसे व्रत रखना, तीर्थयात्रा, भगवत गीता, रामायण, महाभारत, पुराण, उपनिषद, वेदों का पाठ करना, भगवान राम, श्री कृष्णा, ब्रम्हा, विष्णु, शिव, दुर्गा-शेरांवाली (भवानी, प्रकृति देवी) या ज्योति निरंजन की पूजा हो, कोई भी आत्मा को 84 लाख जूनो में होने वाली पीड़ा से नही बचा सकता और न ही ये मुस्लिम धर्म की धार्मिक क्रियायों से होगा जैसे रोजा रखना, ईद या बकरीद मनाना, दिन में पांच बार नमाज करना, मक्का-मदीना जाना, मस्जिद में बंग देना; यह सब व्यर्थ है। वहां मौजूद सभी लोगों को संबोधित करते हुए, कमाली ने अपने पिछले मनुष्य जन्मों का लेखा-जोखा भी सुनाया।
फिर कबीर साहेब ने कमली से कहा 'बेटी! आप अपने पिता के साथ जाओ। कमाली ने कहा, ' कबीर साहेब आप मेरे असली पिता हो वह मेरे नकली पिता हैं। उन्होंने मुझे कब्र में दफना दिया था, हमारा हिसाब बराबर हुआ'। वहां मौजूद सभी लोग सर्वशक्तिमान कबीर साहेब का यह कहते हुए गुणगान कर रहे थे 'उन्होंने कामल कर दिया' इसी कारण लड़की का नाम 'कमली' रखा था।
कबीर साहेब लड़की को अपनी बेटी के रूप में ले आये। उन्होंने उसे दीक्षा दी। उसने परमेश्वर कबीर जी द्वारा दी गई भक्ति की सही विधि का पालन किया और पूर्ण मोक्ष प्राप्त किया। वह जन्म और पुनर्जन्म के दुष्चक्र से मुक्त हो गयी और अविनाशी स्थान 'सतलोक' पहुंच गयी जहां परम शांति ��ै।
शेख ताकी अत्यधिक शर्मिंदा हुआ कि उसकी प्रभुता खत्म हो गयी।
कबीर साहेब जी कहते हैं;
जो जन मेरी शरण है, ताका हूँ मैं दास।
गेल गेल लागया फिरूँ, जबलग धरती आकाश।।
नोट: यदि एक बार, कोई भी आत्मा किसी भी युग में कबीर साहेब जी की शरण में आती है तो परमात्मा हमेशा ��स पुण्य आत्मा के साथ रहता है और सच्चा आध्यात्मिक ज्ञान देकर, वे उस आत्मा की मुक्ति करवाकर ही रहते हैं। दीपिका की आत्मा कलियुग के प्रारम्भ में (राबिया रूप में) सर्वशक्तिमान कबीर जी की शरण में आयी थी, लेकिन उसकी भक्ति अधूरी रही। इसलिए, भगवान ने उस आत्मा का हर जन्म में तब तक पीछा किया जब तक अगले कलियुग में भक्ति युग आया और अपनी प्यारी आत्मा को कमाली वाले मनुष्य जन्म में मुक्त किया।
कबीर साहेब जी कहते हैं;
ज्यों बच्छा गऊ की नजर में, न्यू साईं को सन्त।
भक्तों के पीछे फिरे, वो भगत वत्सल भगवंत।।
भगवान कहते हैं: जैसे गाय हमेशा अपने बछड़े पर नजर रखती है कि उसका बछड़ा सुरक्षित है, संत को भी ऐसे ही मानें। एक सच्चे संत के कारण यानी परमात्मा अपने प्रिय भक्त की आत्मा का निरन्तर पीछा करते हैं। राबिया की वास्तविक कथा एक उदाहरण है कि भगवान अपने भक्तों पर नजर रखता है और सतभक्ति प्रदान करता है जिससे वे पूर्ण मोक्ष प्राप्त करते हैं।
विचारणीय बिंदु
ब्रह्म - काल के 21 ब्रह्मांडों में जन्म और पुनर्जन्म होता है। राबिया वाली आत्मा ने कई जन्म लिए।
आत्माएं काल के जाल में फंसी हुई हैं, इसलिए वे अपने कर्मों के आधार पर बहुत पीड़ा उठाते हैं।
सभी धर्मों में की जाने वाली धार्मिक क्रियाएं सही नही है इसलिए मोक्ष प्राप्त नही होता और प्राणी पुनरावृत्ति में रहते हैं।
केवल सर्वशक्तिमान कविर्देव की सतभक्ति आत्माओं को शाश्वत अविनाशी स्थान यानी 'सतलोक' प्राप्त करवाने में सहायक हो सकती हैं।
निष्कर्ष:
600 साल पहले सर्वशक्तिमान कबीर जी स्वयं आये थे और काशी, यूपी(उत्तर प्रदेश) में एक जुलाहे/धानक की दिव्य लीला की और 64 लाख भोली आत्माओं को सतभक्ति से धन्य किया। राबिया बसरी एक ऐसी ही पुण्य आत्मा थी जिसे कई जन्मों के बाद कमाली वाले मनुष्य जन्म में पूर्ण मोक्ष प्राप्त हुआ। परमात्मा ने उसे सतभक्ति दी।
आज सर्वशक्तिमान कविर्देव फिर से पृथ्वी पर आए हैं और महान सन्त जगतगुरु तत्वदर्शी रामपाल जी महाराज के रूप में आत्माओं पर कृपा कर रहे हैं।
जीव जो न सत्संग में आया,
भेद न उसे भजन का पाया।
गरीबदास जी को भी बावला बताया,
बन्दीछोड कोभी बावला बताया,
के करले इस दुनिया सयानी का।
कृपया सन्त रामपाल जी महाराज जी के आध्यात्मिक प्रवचनों/सत्संगों को सुनिए और समझिए
हम क्यों जन्मते हैं?
हम मनुष्य जन्मों में दुखी क्यों होते हैं?
हम जन्म मृत्यु के चक्र से छुटकारा/राहत कैसे प्राप्त कर सकते हैं?
भक्ति की सही विधि क्या है?
हम मोक्ष कैसे प्राप्त कर सकते हैं?
वह कौनसा अविनाशी लोक है जहाँ जाने के बाद साधक फिर लौटकर वापिस संसार मे नही आता?
ऊपर दिए सभी प्रश्नों के उत्तर जानने के लिए ज्ञान गंगा पुस्तक पढ़े। सभी से प्राथना है कि परमात्मा को पहचानों और अपना और अपने परिवार का कल्याण करवाओ।
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#हिन्दूसाहेबान_नहींसमझे_गीतावेदपुराणPart82 के आगे पढिए.....)
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#हिन्दूसाहेबान_नहींसमझे_गीतावेदपुराणPart83
"पवित्र कबीर सागर में प्रमाण"
* विशेष विचार :- पूरे गुरु ग्रन्थ साहेब में कहीं प्रमाण नहीं है कि श्री नानक जी, परमेश्वर कबीर जी के गुरु जी थे। जैसे गुरु ग्रन्थ साहेब आदरणीय तथा प्रमाणित है, ऐसे ही पवित्र कबीर सागर भी आदरणीय तथा प्रमाणित सद्ग्रन्थ है तथा श्री गुरुग्रन्थ साहेब से पहले का है। इसीलिए तो सैंकड़ों वाणी 'कबीर सागर' सद्ग्रन्थ से गुरु ग्रन्थ साहिब में ली गई हैं।
पवित्र कबीर सागर में विस्तृत विवरण है नानक जी तथा परमेश्वर कबीर साहेब जी की वार्ता का तथा श्री नानक जी के पूज्य गुरुदेव कबीर परमेश्वर जी
थे। कृपया निम्न पढ़ें। विशेष प्रमाण के लिए कबीर सागर (स्वसमबेदबोध) पृष्ठ न. 158 से 159
से सहाभार :-
नानकशाह कीन्हा तप भारी। सब विधि भये ज्ञान अधिकारी ।। भक्ति भाव ताको समिझाया। ता पर सतगुरु कीनो दाया।। जिंदा रूप धरयो तब भाई। हम पंजाब देश चलि आई ।। अनहद बानी कियौ पुकारा। सुनि कै नानक दरश निहारा।। सुनि के अमर लोक की बानी। जानि परा निज समरथ ज्ञानी ।।
नानक वचन आवा पुरूष महागुरु ज्ञानी। अमरलोकी सुनी न बानी।। अर्ज सुनो प्रभु जिंदा स्वामी। कहँ अमरलोक रहा निजधामी ।। काहु न कही अमर निजबानी। धन्य कबीर परमगुरु ज्ञानी ।। कोई न पावै तुमरो भेदा। खोज थके ब्रह्मा चहुँ वेदा ।।
जिन्दा वचन
नानक तुम बहुतै तप कीना। निरंकार बहुते दिन चीन्हा ।। निरंकारते पुरूष निनारा। अजर द्वीप ताक�� टकसारा ।। पुरूष बिछोह भयौ तव (त्व) जबते। काल कठिन मग रोंक्यौ तबते ।।
इत तव (त्व) सरिस भक्त नहिं होई। क्यों कि परमपुरूष न भेटेंउ कोई ।। जबते हमते बिछुरे भाई। साठि हजार जन्म भक्त तुम पाई ।। धरि धरि जन्म भक्ति भलकीना। फिर काल चक्र निरंजन दीना ।। गहु मम शब्द तो उतरो पारा। बिन सत शब्द लहै यम द्वारा ।। तुम बड़ भक्त भवसागर आवा। और जीवकी कौन चलावा ।। निरंकार सब सृष्टि भुलावा। तुम करि भक्तिलौटि क्यों आवा ।।
नानक वचन
धन्य पुरूष तुम यह पद भाखी। यह पद हमसे गुप्त कह राखी ।। जबलों हम तुमको नहिं पावा। अगम अपार भर्म फैलावा ।। कहो गोसाँई हमते ज्ञाना। परमपुरूष हम तुमको जाना ।। धनि जिंदा प्रभु पुरूष पुराना। बिरले जन तुमको पहिचाना ।।
जिन्दा वचन
भये दयाल पुरूष गुरु ज्ञानी। दियो पान परवाना बानी ।। भली भई तुम हमको पावा। सकलो पंथ काल को ध्यावा ।। तुम इतने अब भये निनारा। फेरि जन्म ना होय तुम्हारा।। भली सुरति तुम हमको चीन्हा। अमर मंत्र हम तुमको दीन्हा ।। स्वसमवेद हम कहि निज बानी। परमपुरूष गति तुम्हें बखानी ।।
नानक वचन
धन्य पुरूष ज्ञानी करतारा। जीवकाज प्रकटे संसारा ।। धनि (धन्य) करता तुम बंदी छोरा। ज्ञान तुम्हार महाबल जोरा ।।
दिया नाम दान किया उबारा। नानक अमरलोक पग धारा ।। भावार्थ :- परम पूज्य कबीर प्रभु एक जिन्दा महात्मा का रूप बना कर
श्री नानक जी से मिलने पंजाब में गए तब श्री नानक साहेब जी से वार्ता हुई। तब परमेश्वर कबीर जी ने कहा कि आप जैसी पुण्यात्मा जन्म-मृत्यु का कष्ट भोग रहे हो फिर आम जीव का कहाँ ठिकाना है?
जिस निरंकार को आप प्रभु मान कर पूज रहे हो पूर्ण परमात्मा तो इससे भी भिन्न है। वह मैं ही हूँ। जब से आप मेरे से बिछुड़े हो साठ हजार जन्म तो अच्छे-2 उच्च पद भी प्राप्त कर चुके हो (जैसे सतयुग में यही पवित्र आत्मा राजा अम्ब्रीष तथा त्रेतायुग में राजा जनक (जो सीता जी के पिता जी थे) हुए तथा कलियुग में श्री नानक साहेब जी हुए।) फिर भी जन्म मृत्यु के चक्र में ही हो।
मैं आपको सतशब्द अर्थात् सच्चा नाम जाप मन्त्र बताऊँगा उससे आप अमर हो जाओगे। श्री नानक साहेब जी ने प्रभु कबीर से कहा कि आप बन्दी छोड भगवान हो, आपको कोई बिरला सौभाग्यशाली व्यक्ति ही पहचान सकता है।
कबीर सागर के अध्याय "अगम निगम बोध" में पृष्ठ नं. 44 पर शब्द है :-
।। नानक वचन ।।
।। शब्द ।।
वाह वाह कबीर गुरु पूरा है।
पूरे गुरु की मैं बलि जावाँ जाका सकल जहूरा है।।
अधर दुलिच परे है गुरुनके शिव ब्रह्मा जह शूरा है।।
श्वेत ध्वजा फहरात गुरुनकी बाजत अनहद तूरा है।।
पूर्ण कबीर सकल घट दरशै हरदम हाल हजूरा है।। नाम कबीर जपै बड़भागी नानक चरण को धूरा है।।
* विशेष विवेचन : बाबा नानक जी ने उस कबीर जुलाहे (धाणक) काशी वाले को सत्यलोक (सच्चखण्ड) में आँखों देखा तथा फिर काशी में धाणक (जुलाहे) का कार्य करते हुए देखा तथा बताया कि वही धाणक रूप (जुलाहा) सत्यलोक में सत्यपुरुष रूप में भी रहता है तथा यहाँ भी वही है।
आदरणीय श्री नानक साहेब जी का आविर्भाव (जन्म) सन् 1469 तथा सतलोक वास सन् 1539 "पवित्र पुस्तक जीवनी दस गुरु साहिबान"। आदरणीय कबीर साहेब जी धाणक रूप में मृतमण्डल में सन् 1398 में सशरीर प्रकट हुए तथा सशरीर सतलोक गमन सन् 1518 में "पवित्र कबीर सागर"। दोनों महापुरुष 49 वर्ष तक समकालीन रहे।
श्री गुरु नानक साहेब जी का जन्म पवित्र हिन्दू धर्म में हुआ। प्रभु प्राप्ति के बाद कहा कि "न कोई हिन्दू न मुसलमाना" अर्थात् अज्ञानतावश दो धर्म बना बैठे। सर्व एक परमात्मा सतपुरुष के बच्चे हैं। श्री नानक देव जी ने कोई धर्म नहीं बनाया, बल्कि धर्म की बनावटी जंजीरों से मानव को मुक्त किया तथा शिष्य परम्परा चलाई। जैसे गुरुदेव से नाम दीक्षा लेने वाले भक्तों को शिष्य बोला जाता है, उन्हें पंजाबी भाषा में सिक्ख कहने लगे। जैसे आज इस दास के लाखों शिष्य हैं, परन्तु यह धर्म नहीं है। सर्व पवित्र धर्मों की पुण्यात्माएँ आत्म कल्याण करवा रही हैं। यदि आने वाले समय में कोई धर्म बना बैठे तो वह दुर्भाग्य ही होगा। भेदभाव तथा संघर्ष की नई दीवार ही बनेगी, परन्तु लाभ कुछ नहीं होगा।
गवाह नं 6 संत घीसा दास जी गाँव-खेखड़ा जिला-बागपत, उत्तर प्रदेश (भारत) : इनको छः वर्ष की आयु में कबीर परमेश्वर जी मिले थे। पूरा गाँव खेखड़ा गवाह है। संत घीसा जी ने बताया कि मैंने परमेश्वर कबीर जी के साथ ऊपर सतलोक में जाकर देखा था। जो काशी में जुलाहे का कार्य करता था, वह पूर्ण परमात्मा है। सारी सृष्टि का सृजनकर्ता है। असंख्य ब्रह्मण्डों का मालिक है।
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