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#दरगह
hindie24bollywood · 2 years
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Rajinikanth Go to Pedda Dargah: तिरुपति मंदिर के बाद एआर रहमान के साथ पेड्डा दरगाह पहुंचे रजनीकांत, देखें तस्वीरें
Rajinikanth Go to Pedda Dargah: तिरुपति मंदिर के बाद एआर रहमान के साथ पेड्डा दरगाह पहुंचे रजनीकांत, देखें तस्वीरें
रजनीकांत पेड्डा दरगाह गए: साउथ सेलिब्रिटी रजनीकांत आज सुबह अपनी बेटी ऐश्वर्या के साथ तिरुपति मंदिर पहुंचे। भगवान का आशीर्वाद लेने के बाद अब वह म्यूजिक कंपोजर एआर रहमान के साथ आंध्र प्रदेश के कडप्पा स्थित अमीन दरगाह पहुंचे हैं. इसकी कुछ तस्वीरें और वीडियो भी सोशल मीडिया पर आए हैं। फैंस उनकी फिल्मों को काफी पसंद करते हैं। थलाइवा कडपा दरगाह पहुंचे हाल ही में, रजनीकांत एआर रहमान की आगामी…
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heeralaldas · 1 year
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#मांस_खाना_हराम
"रोजे रखें और खूनि करें, फिर तसबी ले हाथ।
गरीबदास दरगह सरै, बौहत करी तै घात।।"
अल्लाह की इबादत करने के उद्देश्य से (रोजे) व्रत रखते हो, (तरुबी) माला से जाप भी करते हो। फिर खून करते हो यानि गाय, मुर्गी मुर्गा, बकरा-बकरी मारते हो। यह अल्लाह के साथ धोखा करने जैसा है।
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lavkusdasrajpt · 1 year
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#मांस_खाना_हराम
ऐसा खाना खाईये, माता कै नहीं पीर।
गरीबदास दरगह सरैं, गल में पडै़ जंजीर।।
BaaKhabar Sant Rampal Ji
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veeresh99 · 7 months
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पारख के अंग की वाणी नं. 569-572:-
सुन काजी राजी नहीं, आपै अलह खुदाय। गरीबदास किस हुकम से, पकरि पछारी गाय।।569।।
गऊ हमारी मात है, पीवत जिसका दूध। गरीबदास काजी कुटिल, कतल किया औजूद।।570।। गऊ आपनी अमां है, ता पर छुरी न बाहि। गरीबदास घृत दूध कूं, सबही आत्म खांहि।।571।।
ऐसा खाना खाईये, माता कै नहीं पीर। गरीबदास दरगह सरैं, गल में पडै़ जंजीर।।572।।
सरलार्थ:- परमेश्वर कबीर जी ने काजियों व मुल्लाओं से कहा कि गऊ माता के समान है जिसका सब दूध पीते हैं। हे काजी! तूने गाय को काट डाला।
गाय आपकी तथा अन्य सबकी (अमां) माता है क्योंकि जिसका दूध पीया, वह माता के समान आदरणीय है। इसको मत मार। इसके घी तथा दूध को सब धर्मों के व्यक्ति खाते-पीते हैं।
ऐसे खाना खाइए जिससे माता को (गाय को) दर्द न हो। ऐसा पाप करने वाले को परमात्मा के (दरगह) दरबार में जंजीरों से बाँधकर यातनाएँ दी जाएँगी।
परमात्मा कबीर जी के हितकारी वचन सुनकर काजी तथा मुल्ला कहते हैं कि हाय! हाय! कैसा अपराधी है? माँस खाने वालों को पापी बताता है। सिर पीटकर यानि नाराज होकर चले गए। फिर वाद-विवाद करने के लिए आए तो परमात्मा कबीर जी ने कहा कि हे काजी तथा मुल्ला! सुनो, आप मुर्गे को मारते हो तो पाप है। आगे किसी जन्म में मुर्गा तो काजी बनेगा, काजी मुर्गा बनेगा, तब वह मुर्गे वाली आत्मा मारेगी। स्वर्ग नहीं मिलेगा, नरक में जाओगे।
काजी कलमा पढ़त है यानि पशु-पक्षी को मारता है। फिर पवित्र पुस्तक कुरआन को पढ़ता है। संत गरीबदास जी बता रहे हैं कि कबीर परमात्मा ने कहा कि इस (जुल्म) अपराध से दोनों जिहांन बूडे़ंगे यानि पृथ्वी लोक पर भी कर्म का कष्ट आएगा। ऊपर नरक में डाले जाओगे।(576)
कबीर परमात्मा ने कहा कि दोनों (हिन्दू तथा मुसलमान) धर्म, दया भाव रखो। मेरा वचन मानो कि सूअर तथा गाय में एक ही बोलनहार है यानि एक ही जीव है। न गाय खाओ, न सूअर खाओ।
आज कोई पंडित के घर जन्मा है तो अगले जन्म में मुल्ला के घर जन्म ले सकता है। इसलिए आपस में प्रेम से रहो। हिन्दू झटके से जीव हिंसा करते हैं। मुसलमान धीरे-धीरे जीव मारते हैं। उसे हलाल किया कहते हैं। यह पाप है। दोनों का बुरा हाल होगा।
बकरी, मुर्गी (कुकड़ी), गाय, गधा, सूअर को खाते हैं। भक्ति की (रीस) नकल भी करते हैं। ऐसे पाप करने वालों से परमात्मा (अल्लाह) दूर है यानि कभी परमात्मा नहीं मिलेगा। नरक के भागी हो जाओगे। पाप ना करो।
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pradeepdasblog · 8 months
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( #Muktibodh_part181 के आगे पढिए.....)
📖📖📖
#MuktiBodh_Part182
हम पढ़ रहे है पुस्तक "मुक्तिबोध"
पेज नंबर 348-349
प्रातः काल वक्त से उठा। पहले खाना बनाने लगा। उस दिन भक्ति की कोई क्रिया नहीं की। पहले दिन जंगल से कुछ लकडि़याँ तोड़कर रखी थी। उनको चूल्हे में जलाकर भोजन बनाने लगा। एक लकड़ी मोटी थी। वह बीचां-बीच थोथी थी। उसमें अनेकां चीटियाँ थीं। जब वह लकड़ी जलते-जलते छोटी रह गई तब उसका पिछला हिस्सा धर्मदास जी को दिखाई दिया तो देखा उस लकड़ी के अन्तिम भाग में कुछ तरल पानी-सा जल रहा है।
चीटियाँ निकलने की कोशिश कर रही थी, वे उस तरल पदार्थ में गिरकर जलकर मर रही थी। कुछ अगले हिस्से में अग्नि से जलकर मर रही थी। धर्मदास जी ने विचार किया। यह
लकड़ी बहुत जल चुकी है, इसमें अनेकों चीटियाँ जलकर भस्म हो गई है। उसी समय अग्नि बुझा दी। विचार करने लगा कि इस पापयुक्त भोजन को मैं नहीं खाऊँगा। किसी साधु सन्त को खिलाकर मैं उपवास रखूँगा। इससे मेरे पाप कम हो जाएंगे। यह विचार करके सर्व भोजन एक थाल में रखकर साधु की खोज में चल पड़ा। परमेश्वर कबीर जी ने अन्य वेशभूषा बनाई जो हिन्दू सन्त की होती है। एक वृक्ष के नीचे बैठ गए। धर्मदास जी ने साधु को देखा।
उनके सामने भोजन का थाल रखकर कहा कि हे महात्मा जी! भोजन खाओ। साधु रुप में परमात्मा ने कहा कि लाओ धर्मदास! भूख लगी है। अपने नाम से सम्बोधन सुनकर धर्मदास को आश्चर्य तो हुआ परंतु अधिक ध्यान नहीं दिया। साधु रुप में विराजमान परमात्मा ने अपने लोटे से कुछ जल हाथ में लिया तथा कुछ वाणी अपने मुख से उच्चारण करके भोजन पर जल छिड़क दिया। सर्वभोजन की चींटियाँ बन गई। चींटियों से थाली काली हो गई।
चींटियाँ अपने अण्डों को मुख में लेकर थाली से बाहर निकलने की कोशिश करने लगी।
परमात्मा भी उसी जिन्दा महात्मा के रुप में हो गए। तब कहा कि हे धर्मदास वैष्णव संत! आप बता रहे थे कि हम कोई जीव हिंसा नहीं करते, आप तो कसाई से भी अधिक हिंसक हैं। आपने तो करोड़ों जीवों की हिंसा कर दी। धर्मदास जी उसी समय साधु के चरणों में गिर गया तथा पूर्व दिन हुई गलती की क्षमा माँगी तथा प्रार्थना की कि हे प्रभु! मुझ अज्ञानी को क्षमा करो। मैं कहीं का नहीं रहा क्योंकि पहले वाली साधना पूर्ण रुप से शास्त्र विरुद्ध है। उसे करने का कोई लाभ नहीं, यह आप जी ने गीता से ही प्रमाणित कर दिया। शास्त्र अनुकूल साधना किस से मिले, यह आप ही बता सकते हैं। मैं आपसे पूर्ण आध्यात्मिक ज्ञान सुनने का इच्छुक हूँ। कृपया मुझ किंकर पर दया करके मुझे वह ज्ञान सुनायें जिससे मेरा मोक्ष हो सके।
कबीर परमेश्वर ने कहा कि और सुन। तुम कितनी जीव हिंसा करते हो?
◆पारख के अंग की वाणी नं. 1026-1036 :-
शब्द स्वरूपी रूप हमारा, क्या दिखलावै अचार बिचारा।
सतरि ब्राह्मण की है हत्या, जो चौका तुम देहौ नित्या।।1026।।
ब्राह्मण सहंस हत्या जो होई, जल स्नान करत हो सोई।
चौके करम कीट मर जांही, सूक्ष्म जीव जो दरसैं नाहीं।।1027।।
हरी भांति पृथ्वी के रंगा, अंनत कोटि जीव उड़ैं पतंगा।
तारक मंत्र कोटि जपाहीं, वाह जीव हत्या उतरै नाहीं।।1028।।
पृथ्वी ऊपर पग जो धारै, कोटि जीव एक दिन में मारै।
करै आरती संजम सेवा, या अपराध न उतरै देवा।।1029।।
ठाकुर घंटा पौंन झकोरैं, कोटि जीव सूक्ष्म शिर तोरैं।
ताल मृदंग अरू झालर बाजैं, कोटि जीव सूक्ष्म तहां साजैं।।1030।।
धूप, दीप और अर्पण अंगा, अनंत कोटि जीव जरैं बिहंगा।
एती हिंसा करत हो सारे कैसे दीदार करो करतारे।।1031।।
स्वामी सेवक बूडत बेरा, मार परै दरगह जम जेरा।
ऐसा ज्ञान अचंभ सुनाऊं, पूजा अर्पण सबै छुडाऊं।।1032।।
झाड़ी लंघी करत हमेशा, सूक्ष्म जीव होत हैं नेशा।
खान पान में दमन पिरानी, कैसैं पावैं मुक्ति निशानी।।1033।।
कोटि जीव जल अचमन प्रानी, यामैं शंकि सुबह नहीं जानी।
कहौ कैसैं बिधि करौ अचारं, त्रिलोकी का तुम शिर भारं।।1034।।
रापति सूक्ष्म एकही अंगा, अल्प जीव जूंनी जत संगा।
योह जतसंग अभंगा होई, कहौ अचार सधै कहां लोई।।1035।।
आत्म जीव हतै जो प्राणी, जो कहां पावै मुक्ति निशानी।
उरध पींघ जो झूलै भेषा, जिनका कदे न सुलझै लेखा।।1036।।
◆ पारख के अंग की वाणी नं. 1026-1036 का सरलार्थ :- कबीर जी ने बताया कि हे धर्मदास! जो खाना बनाने के स्थान पर यानि चूल्हे तथा आसपास के क्षेत्रा को प्रतिदिन लीपते
हो तथा पोंचा लगाते हो। पूजा के स्थान पर लीपते हो (डनक च्सेंजमत करते हो)। उसमें सत्तर ब्राह्मणों की हत्या के समान पाप लगता है। इतनी जीव हिंसा होती है। जो आप तीर्थ वाले तालाब में स्नान करते हो, उसके जल में असँख्यों जीव होते हैं।
जो आप मल-मलकर स्नान करते हो, असँख्यों जीवों की मृत्यु हो जाती है। वह पाप एक हजार ब्राह्मणों की हत्या के समान लगता है। पृथ्वी के ऊपर घास के अंदर भी जीव हैं। कुछ तो पृथ्वी के रंग जैसे हैं, कुछ घास के रंग जैसे हैं। कुछ सूक्ष्म हैं जो दिखाई भी नहीं देते।
एक दिन में करोड़ों जीव पृथ्वी के ऊपर चलने से मर जाते हैं। जो आप आरती करते हो, उस समय ज्योति जलाते हो। उसमें जीव मरते हैं। घंटी बजाते हो, झालर बजाते हो, ताल मृदंग बजाते हो, उनमें करोड़ों जीव मर जाते हैं। (धूप) अगरबत्ती के धुँऐ में करोड़ों जीव
वायु वाले मरते हैं। इतने पाप करते हो तो आपको परमात्मा के दर्शन कैसे होंगे? और सुन! (झाड़ी लंघी) टट्टी-पेशाब करते हो, उसमें जीव मरते हैं। खाना खाते हो, पानी पीते हो,
उसमें भी जीव हिंसा होती है। कैसे मुक्ति पाओगे? आप बताओ कि इतना पाप करते हो तो आपका आचार-विचार यानि क्रियाकर्म भक्ति की शुद्धता कैसे रहेगी? आपने कहा था कि जो जीव हिंसा करते हैं, उनका मोक्ष कभी नहीं हो सकता। आपका मोक्ष भी कभी नहीं हो सकता।
मैं ऐसा अद्भुत ज्ञान सुनाऊँगा जिससे सब शास्त्रविरूद्ध साधना बंद हो जाएगी तथा ऐसा नाम जाप करने की दीक्षा दूँगा कि सब पाप कट जाएँगे। प्रतिदिन होने वाला उपरोक्त पाप
नाम के जाप से नाश हो जाएगा। (कबीर परमेश्वर जी ने आगे और बताया।)
क्रमशः_______________
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आध्यात्मिक जानकारी के लिए आप संत रामपाल जी महाराज जी के मंगलमय प्रवचन सुनिए। संत रामपाल जी महाराज YOUTUBE चैनल पर प्रतिदिन 7:30-8.30 बजे। संत रामपाल जी महाराज जी इस विश्व में एकमात्र पूर्ण संत हैं। आप सभी से विनम्र निवेदन है अविलंब संत रामपाल जी महाराज जी से नि:शुल्क नाम दीक्षा लें और अपना जीवन सफल बनाएं।
https://online.jagatgururampalji.org/naam-diksha-inquiry
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jyotis-things · 9 months
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( #Muktibodh_part159 के आगे पढिए.....)
📖📖📖
#MuktiBodh_Part160
हम पढ़ रहे है पुस्तक "मुक्तिबोध"
पेज नंबर 307-308
’’सब पंथों के हिन्दुओं को भक्ति-शक्ति में कबीर जी द्वारा पराजित करना‘‘
◆ पारख के अंग की वाणी नं. 649-702 :-
पंडित सिमटे पुरीके, काजी करी फिलादी।
गरीबदास दहूँ दीन की, जुलहै खोई दादि।।649।।
च्यारि बेद षटशास्त्र, काढे अठारा पुराण।
गरीबदास चर्चा करैं, आ जुलहै सैतान।।650।।
तूं जुलहा सैतान है, मोमन ल्याया सीत।
गरीबदास इस पुरी में, कौन तुम्हारा मीत।।651।।
तूं एकलखोर एकला रहै, दूजा नहीं सुहाय।
गरीबदास काजी पंडित, मारैं तुझै हराय।652।।
सुनि ब्रह्मा के बेद, तूं नीच जाति कुल हीन।
गरीबदास काजी पंडित, सिमटैं दोनौं दीन।।653।।
च्यारि बेद षटशास्त्र, अठारा पुराण की प्रीति।
गरीबदास पंडित कहैं, सुन जुलहे मेरे मीत।।654।।
ज्ञान ध्यान असनान करि, सेवौ सालिग्राम।
गरीबदास पंडित कहैं, सुनि जुलहे बरियाम।।655।।
बोलै जुलहा अगम गति, सुन पंडित प्रबीन।
गरीबदास पत्थर पटकि, हौंना पद ल्यौ लीन।।656।।
अनंत कोटि ब्रह्मा गये, अनंत कोटि गये बेद।
गरीबदास गति अगम है, कोई न जानैं भेद।।657।।
अनंत कोटि सालिग गये, साथै सेवनहार।
गरीबदास वह अगम पंथ, जुलहे कूं दीदार।।658।।
काजी पंडित सब गये, शाह सिकंदर पास।
गरीबदास उस सरे में, सबकी बुद्धि का नाश।।659।।
कबीर और रैदास ने, भक्ति बिगारी समूल।
गरीबदास द्वै नीच हैं, करते भक्ति अदूल।।660।।
हिंदूसैं नहीं राम राम, मुसलमान सलाम।
गरीबदास दहूँ दीन बिच, ये दोनों बे काम।।661।।
उमटी काशी सब गई, षट दर्शन खलील।
गरीबदास द्वै नीच हैं, इन मारत क्या ढील।।662।।
दंडी सन्यासी तहां, सिमटे हैं बैराग। गरीबदास तहां कनफटा, भई सबन सें लाग।।663।।
एक उदासी बनखंडी, फूल पान फल भोग।
गरीबदास मारन चले, सब काशी के लोग।।664।।
बीतराग बहरूपीया, जटा मुकुट महिमंत।
गरीबदास दश दश पुरुष, भेडौं के से जन्त।।665।।
भस्म रमायें भुस भरैं, भद्र मुंड कचकोल।
गरीबदास ऐसे सजे, हाथौं मुगदर गोल।।666।।
छोटी गर्दन पेट बडे़, नाक मुख शिर ढाल।
गरीबदास ऐसे सजे, काशी उमटी काल।।667।।
काले मुहडे जिनौं के, पग सांकल संकेत।
गरीबदास गलरी बौहत, कूदैं जांनि प्रेत।।668।।
गाल बजावैं बंब बंब, मस्तक तिलक सिंदूर।
गरीबदास कोई भंग भख, कोई उडावैं धूर।।669।।
रत्नाले माथे करैं, जैसैं रापति फील। गरीबदास अंधे बहुत, फेरैं चिसम्यौं लील।।670।।
लीले चिसम्यौं अंधले, मुख बांवै खंजूस।
गरीबदास मारन चले, हाथौं कूंचैं फूस।।671।।
जुलहे और चमार परि, हुई चढाई जोर। गरीबदास पत्थर लिये, मारैं जुलहे तोर।।672।।
तिलक तिलंगी बैल जूं, सौ सौ सालिगराम।
गरीबदास चौकी बौहत, उस काशी के धाम।।673।।
घर घर चौकी पथरपट, काली शिला सुपेद।
गरीबदास उस सौंज पर, धरि दिये चारौं बेद।।674।।
ताल मंजीरे बजत हैं, कूदै दागड़ दुम। गरीबदास खर पीठ हैं, नाक जिन्हौं के सुम।।675।।
पंडित और बैराग सब, हुवा इकठा आंनि।
गरीबदास एक गुल भया, चौकी धरी पषांन।।676।।
एक पत्थर भूरी शिला, एक काली कुलीन।
गरीबदास एक गोल गिरद, एक लाम्बी लम्बीन।।677।।
एक पीतल की मूरती, एक चांदी का चौक।
गरीबदास एक नाम बिन, सूना है त्रिलोक।।678।।
एक सौने का सालिगं, जरीबाब पहिरांन।
गरीबदास इस मनुष्य सैं, अकल बडी अक श्वान।।679।।
काशीपुरी के सालिगं, सबै समटे आय। गरीबदास कुत्ता तहां, मूतैं टांग उठाय।।680।।
कुत्ता मुख में मूति है, कैसै सालिगराम। गरीबदास जुलहा कहै, गई अकल किस गाम।।681।।
धोय धाय नीके किये, फिरि आय मारी धार।
गरीबदास उस पुरी में, हंसें जुलाहा और चमार।।682।।
तीन बार मुख मूतिया, सालिग भये अशुद्ध।
गरीबदास चहूँ बेद में, ना मूर्ति की बुद्धि।।683।।
भृष्ट हुई काशी सबै, ठाकुर कुत्ता मूंति। गरीबदास पतथर चलैं, नागा मिसरी सूंति।।684।।
किलकारैं दुदकारहीं, कूदैं कुतक फिराय।
गरीबदास दरगह तमाम, काशी उमटी आय।।685।।
होम धूप और दीप करि, भेख रह्या शिर पीटि।
गरीबदास बिधि साधि करि, फूकैं बौहत अंगीठ।।686।।
काशीके पंडित लगे, कीना होम हजूंम। गरीबदास उस पुरी में, परी अधिकसी धूम।।687।।
चौकी सालिगराम की, मसकी एक न तिल।
गरीबदास कहै पातशाह, षटदर्शन कि गल।।688।।
धूप दीप मंदे परे, होम सिराये भेख। दास गरीब कबीर ने, राखी भक्ति की टेक।।689।।
सत कबीर रैदासतूं, कहै सिकंदर शाह। गरीबदास तो भक्ति सच, लीजै सौंज बुलाय।।690।।
कहै कबीर सुनि पातशाह, सुनि हमरी अरदास।
गरीबदास कुल नीचकै, क्यौं आवैं हरि पास।।691।।
दीन बचन आधीनवन्त, बोलत मधुरे बैन।
गरीबदास कुण्डल हिरद, चढे गगन गिरद गैंन।।692।।
लीला की पुरूष कबीर ने, सत्यनाम उचार।
गरीबदास गावन लगे, जुलहा और चमार।।693।।
दहनैं तौ रैदास है, बामी भुजा कबीर। गरीबदास सुर बांधि करि, मिल्या राग तसमीर।694।।
रागरंग साहिब गाया लीला कीन्ही ततकाल।
गरीबदास काशीपुरी, सौंज पगौं बिन चाल।।695।।
सौंज चली बिन पगौंसैं, जुलहै लीन्ही गोद।
गरीबदास पंडित पटकि, चले अठारा बोध।।696।।
जुलहे और चमारकै, भक्ति गई किस हेत।
गरीबदास इन पंडितौंका, रहि गया खाली खेत।।697।।
खाली खेत कुहेतसैं, बीज बिना क्या होय।
गरीबदास एक नाम बिन, पैज पिछौड़ी तोय।।698।।
तत्वज्ञान हीन श्वान ज्यों, ह्ना ह्ना करै हमेश।
दासगरीब कबीर हरि का दुर्लभ है वह देश।।699।।
दुर्लभ देश कबीर का, राई ना ठहराय। गरीबदास पत्थर शिला, ब्राह्मण रहे उठाय।।700।।
पत्थर शिलासैं ना भला, मिसर कसर तुझ मांहि।
गरीबदास निज नाम बिन, सब नरक कूं जांहि।।701।।
जटाजूट और भद्र भेख, पैज पिछौड़ी हीन।
गरीबदास जुलहा सिरै, और रैदास कुलीन।।702।।
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uday-yadav · 1 year
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यम किंकर कर जोर, चलैं तिस देख रे ।
धर्मराय के अंक, मिटावै लेख रे ।।
जीव जूनी नहीं जाहीं, बांह ठाढै गही ।
दरगह मंझ हिजूर, पकड़ छेकी बही ।।
सप्त सुन्न पर बास, अगमपुर धाम है ।
धन्य बंदी छोड़ कबीर, तुम्हारा नाम है ।।🌹🙏🏻🙇‍♂️
@sanewschannel
@santrampalji
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अथ राग काफी | Ath Raag Kafi | Amargranth Sahib
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"Sant Rampal Ji Maharaj" ऐप्प🙏
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➜ श्रद्धा चैनल 📺 दोपहर - 2:00 से 3:00
#SaintRampalJi
Visit- "Satlok Ashram" on YouTube.
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friedturtlepeanut · 1 year
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#मुहर्रम_पर_अल्लाह_को_जानें
ऐसे खाना खाइए जिससे माता को (गाय को) दर्द न हो। ऐसा पाप करने वाले को परमात्मा के (दरगह) दरबार में जंजीरों से बाँधकर यातनाएं दी जाऐंगी।
Baakhabar Sant Rampal Ji
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lavkusdasrajpt · 1 year
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#मुहर्रम_पर_अल्लाह_को_जानें
ऐसे खाना खाइए जिससे माता को (गाय को) दर्द न हो। ऐसा पाप करने वाले को परमात्मा के (दरगह) दरबार में जंजीरों से बाँधकर यातनाएं दी जाऐंगी।
Baakhabar Sant Rampal Ji
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veeresh99 · 7 months
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पारख के अंग की वाणी नं. 569-572:-
सुन काजी राजी नहीं, आपै अलह खुदाय। गरीबदास किस हुकम से, पकरि पछारी गाय।।569।।
गऊ हमारी मात है, पीवत जिसका दूध। गरीबदास काजी कुटिल, कतल किया औजूद।।570।। गऊ आपनी अमां है, ता पर छुरी न बाहि। गरीबदास घृत दूध कूं, सबही आत्म खांहि।।571।।
ऐसा खाना खाईये, माता कै नहीं पीर। गरीबदास दरगह सरैं, गल में पडै़ जंजीर।।572।।
सरलार्थ:- परमेश्वर कबीर जी ने काजियों व मुल्लाओं से कहा कि गऊ माता के समान है जिसका सब दूध पीते हैं। हे काजी! तूने गाय को काट डाला।
गाय आपकी तथा अन्य सबकी (अमां) माता है क्योंकि जिसका दूध पीया, वह माता के समान आदरणीय है। इसको मत मार। इसके घी तथा दूध को सब धर्मों के व्यक्ति खाते-पीते हैं।
ऐसे खाना खाइए जिससे माता को (गाय को) दर्द न हो। ऐसा पाप करने वाले को परमात्मा के (दरगह) दरबार में जंजीरों से बाँधकर यातनाएँ दी जाएँगी।
परमात्मा कबीर जी के हितकारी वचन सुनकर काजी तथा मुल्ला कहते हैं कि हाय! हाय! कैसा अपराधी है? माँस खाने वालों को पापी बताता है। सिर पीटकर यानि नाराज होकर चले गए। फिर वाद-विवाद करने के लिए आए तो परमात्मा कबीर जी ने कहा कि हे काजी तथा मुल्ला! सुनो, आप मुर्गे को मारते हो तो पाप है। आगे किसी जन्म में मुर्गा तो काजी बनेगा, काजी मुर्गा बनेगा, तब वह मुर्गे वाली आत्मा मारेगी। स्वर्ग नहीं मिलेगा, नरक में जाओगे।
काजी कलमा पढ़त है यानि पशु-पक्षी को मारता है। फिर पवित्र पुस्तक कुरआन को पढ़ता है। संत गरीबदास जी बता रहे हैं कि कबीर परमात्मा ने कहा कि इस (जुल्म) अपराध से दोनों जिहांन बूडे़ंगे यानि पृथ्वी लोक पर भी कर्म का कष्ट आएगा। ऊपर नरक में डाले जाओगे।(576)
कबीर परमात्मा ने कहा कि दोनों (हिन्दू तथा मुसलमान) धर्म, दया भाव रखो। मेरा वचन मानो कि सूअर तथा गाय में एक ही बोलनहार है यानि एक ही जीव है। न गाय खाओ, न सूअर खाओ।
आज कोई पंडित के घर जन्मा है तो अगले जन्म में मुल्ला के घर जन्म ले सकता है। इसलिए आपस में प्रेम से रहो। हिन्दू झटके से जीव हिंसा करते हैं। मुसलमान धीरे-धीरे जीव मारते हैं। उसे हलाल किया कहते हैं। यह पाप है। दोनों का बुरा हाल होगा।
बकरी, मुर्गी (कुकड़ी), गाय, गधा, सूअर को खाते हैं। भक्ति की (रीस) नकल भी करते हैं। ऐसे पाप करने वालों से परमात्मा (अल्लाह) दूर है यानि कभी परमात्मा नहीं मिलेगा। नरक के भागी हो जाओगे। पाप ना करो।
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pradeepdasblog · 9 months
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#MuktiBodh_Part160
हम पढ़ रहे है पुस्तक "मुक्तिबोध"
पेज नंबर 307-308
’’सब पंथों के हिन्दुओं को भक्ति-शक्ति में कबीर जी द्वारा पराजित करना‘‘
◆ पारख के अंग की वाणी नं. 649-702 :-
पंडित सिमटे पुरीके, काजी करी फिलादी।
गरीबदास दहूँ दीन की, जुलहै ��ोई दादि।।649।।
च्यारि बेद षटशास्त्र, काढे अठारा पुराण।
गरीबदास चर्चा करैं, आ जुलहै सैतान।।650।।
तूं जुलहा सैतान है, मोमन ल्याया सीत।
गरीबदास इस पुरी में, कौन तुम्हारा मीत।।651।।
तूं एकलखोर एकला रहै, दूजा नहीं सुहाय।
गरीबदास काजी पंडित, मारैं तुझै हराय।652।।
सुनि ब्रह्मा के बेद, तूं नीच जाति कुल हीन।
गरीबदास काजी पंडित, सिमटैं दोनौं दीन।।653।।
च्यारि बेद षटशास्त्र, अठारा पुराण की प्रीति।
गरीबदास पंडित कहैं, सुन जुलहे मेरे मीत।।654।।
ज्ञान ध्यान असनान करि, सेवौ सालिग्राम।
गरीबदास पंडित कहैं, सुनि जुलहे बरियाम।।655।।
बोलै जुलहा अगम गति, सुन पंडित प्रबीन।
गरीबदास पत्थर पटकि, हौंना पद ल्यौ लीन।।656।।
अनंत कोटि ब्रह्मा गये, अनंत कोटि गये बेद।
गरीबदास गति अगम है, कोई न जानैं भेद।।657।।
अनंत कोटि सालिग गये, साथै सेवनहार।
गरीबदास वह अगम पंथ, जुलहे कूं दीदार।।658।।
काजी पंडित सब गये, शाह सिकंदर पास।
गरीबदास उस सरे में, सबकी बुद्धि का नाश।।659।।
कबीर और रैदास ने, भक्ति बिगारी समूल।
गरीबदास द्वै नीच हैं, करते भक्ति अदूल।।660।।
हिंदूसैं नहीं राम राम, मुसलमान सलाम।
गरीबदास दहूँ दीन बिच, ये दोनों बे काम।।661।।
उमटी काशी सब गई, षट दर्शन खलील।
गरीबदास द्वै नीच हैं, इन मारत क्या ढील।।662।।
दंडी सन्यासी तहां, सिमटे हैं बैराग। गरीबदास तहां कनफटा, भई सबन सें लाग।।663।।
एक उदासी बनखंडी, फूल पान फल भोग।
गरीबदास मारन चले, सब काशी के लोग।।664।।
बीतराग बहरूपीया, जटा मुकुट महिमंत।
गरीबदास दश दश पुरुष, भेडौं के से जन्त।।665।।
भस्म रमायें भुस भरैं, भद्र मुंड कचकोल।
गरीबदास ऐसे सजे, हाथौं मुगदर गोल।।666।।
छोटी गर्दन पेट बडे़, नाक मुख शिर ढाल।
गरीबदास ऐसे सजे, काशी उमटी काल।।667।।
काले मुहडे जिनौं के, पग सांकल संकेत।
गरीबदास गलरी बौहत, कूदैं जांनि प्रेत।।668।।
गाल बजावैं बंब बंब, मस्तक तिलक सिंदूर।
गरीबदास कोई भंग भख, कोई उडावैं धूर।।669।।
रत्नाले माथे करैं, जैसैं रापति फील। गरीबदास अंधे बहुत, फेरैं चिसम्यौं लील।।670।।
लीले चिसम्यौं अंधले, मुख बांवै खंजूस।
गरीबदास मारन चले, हाथौं कूंचैं फूस।।671।।
जुलहे और चमार परि, हुई चढाई जोर। गरीबदास पत्थर लिये, मारैं जुलहे तोर।।672।।
तिलक तिलंगी बैल जूं, सौ सौ सालिगराम।
गरीबदास चौकी बौहत, उस काशी के धाम।।673।।
घर घर चौकी पथरपट, काली शिला सुपेद।
गरीबदास उस सौंज पर, धरि दिये चारौं बेद।।674।।
ताल मंजीरे बजत हैं, कूदै दागड़ दुम। गरीबदास खर पीठ हैं, नाक जिन्हौं के सुम।।675।।
पंडित और बैराग सब, हुवा इकठा आंनि।
गरीबदास एक गुल भया, चौकी धरी पषांन।।676।।
एक पत्थर भूरी शिला, एक काली कुलीन।
गरीबदास एक गोल गिरद, एक लाम्बी लम्बीन।।677।।
एक पीतल की मूरती, एक चांदी का चौक।
गरीबदास एक नाम बिन, सूना है त्रिलोक।।678।।
एक सौने का सालिगं, जरीबाब पहिरांन।
गरीबदास इस मनुष्य सैं, अकल बडी अक श्वान।।679।।
काशीपुरी के सालिगं, सबै समटे आय। गरीबदास कुत्ता तहां, मूतैं टांग उठाय।।680।।
कुत्ता मुख में मूति है, कैसै सालिगराम। गरीबदास जुलहा कहै, गई अकल किस गाम।।681।।
धोय धाय नीके किये, फिरि आय मारी धार।
गरीबदास उस पुरी में, हंसें जुलाहा और चमार।।682।।
तीन बार मुख मूतिया, सालिग भये अशुद्ध।
गरीबदास चहूँ बेद में, ना मूर्ति की बुद्धि।।683।।
भृष्ट हुई काशी सबै, ठाकुर कुत्ता मूंति। गरीबदास पतथर चलैं, नागा मिसरी सूंति।।684।।
किलकारैं दुदकारहीं, कूदैं कुतक फिराय।
गरीबदास दरगह तमाम, काशी उमटी आय।।685।।
होम धूप और दीप करि, भेख रह्या शिर पीटि।
गरीबदास बिधि साधि करि, फूकैं बौहत अंगीठ।।686।।
काशीके पंडित लगे, कीना होम हजूंम। गरीबदास उस पुरी में, परी अधिकसी धूम।।687।।
चौकी सालिगराम की, मसकी एक न तिल।
गरीबदास कहै पातशाह, षटदर्शन कि गल।।688।।
धूप दीप मंदे परे, होम सिराये भेख। दास गरीब कबीर ने, राखी भक्ति की टेक।।689।।
सत कबीर रैदासतूं, कहै सिकंदर शाह। गरीबदास तो भक्ति सच, लीजै सौंज बुलाय।।690।।
कहै कबीर सुनि पातशाह, सुनि हमरी अरदास।
गरीबदास कुल नीचकै, क्यौं आवैं हरि पास।।691।।
दीन बचन आधीनवन्त, बोलत मधुरे बैन।
गरीबदास कुण्डल हिरद, चढे गगन गिरद गैंन।।692।।
लीला की पुरूष कबीर ने, सत्यनाम उचार।
गरीबदास गावन लगे, जुलहा और चमार।।693।।
दहनैं तौ रैदास है, बामी भुजा कबीर। गरीबदास सुर बांधि करि, मिल्या राग तसमीर।694।।
रागरंग साहिब गाया लीला कीन्ही ततकाल।
गरीबदास काशीपुरी, सौंज पगौं बिन चाल।।695।।
सौंज चली बिन पगौंसैं, जुलहै लीन्ही गोद।
गरीबदास पंडित पटकि, चले अठारा बोध।।696।।
जुलहे और चमारकै, भक्ति गई किस हेत।
गरीबदास इन पंडितौंका, रहि गया खाली खेत।।697।।
खाली खेत कुहेतसैं, बीज बिना क्या होय।
गरीबदास एक नाम बिन, पैज पिछौड़ी तोय।।698।।
तत्वज्ञान हीन श्वान ज्यों, ह्ना ह्ना करै हमेश।
दासगरीब कबीर हरि का दुर्लभ है वह देश।।699।।
दुर्लभ देश कबीर का, राई ना ठहराय। गरीबदास पत्थर शिला, ब्राह्मण रहे उठाय।।700।।
पत्थर शिलासैं ना भला, मिसर कसर तुझ मांहि।
गरीबदास निज नाम बिन, सब नरक कूं जांहि।।701।।
जटाजूट और भद्र भेख, पैज पिछौड़ी हीन।
गरीबदास जुलहा सिरै, और रैदास कुलीन।।702।।
क्रमशः______________
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jyotis-things · 9 months
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’’सब पंथों के हिन्दुओं को भक्ति-शक्ति में कबीर जी द्वारा पराजित करना‘‘
◆ पारख के अंग की वाणी नं. 649-702 :-
पंडित सिमटे पुरीके, काजी करी फिलादी।
गरीबदास दहूँ दीन की, जुलहै खोई दादि।।649।।
च्यारि बेद षटशास्त्र, काढे अठारा पुराण।
गरीबदास चर्चा करैं, आ जुलहै सैतान।।650।।
तूं जुलहा सैतान है, मोमन ल्याया सीत।
गरीबदास इस पुरी में, कौन तुम्हारा मीत।।651।।
तूं एकलखोर एकला रहै, दूजा नहीं सुहाय।
गरीबदास काजी पंडित, मारैं तुझै हराय।652।।
सुनि ब्रह्मा के बेद, तूं नीच जाति कुल हीन।
गरीबदास काजी पंडित, सिमटैं दोनौं दीन।।653।।
च्यारि बेद षटशास्त्र, अठारा पुराण की प्रीति।
गरीबदास पंडित कहैं, सुन जुलहे मेरे मीत।।654।।
ज्ञान ध्यान असनान करि, सेवौ सालिग्राम।
गरीबदास पंडित कहैं, सुनि जुलहे बरियाम।।655।।
बोलै जुलहा अगम गति, सुन पंडित प्रबीन।
गरीबदास पत्थर पटकि, हौंना पद ल्यौ लीन।।656।।
अनंत कोटि ब्रह्मा गये, अनंत कोटि गये बेद।
गरीबदास गति अगम है, कोई न जानैं भेद।।657।।
अनंत कोटि सालिग गये, साथै सेवनहार।
गरीबदास वह अगम पंथ, जुलहे कूं दीदार।।658।।
काजी पंडित सब गये, शाह सिकंदर पास।
गरीबदास उस सरे में, सबकी बुद्धि का नाश।।659।।
कबीर और रैदास ने, भक्ति बिगारी समूल।
गरीबदास द्वै नीच हैं, करते भक्ति अदूल।।660।।
हिंदूसैं नहीं राम राम, मुसलमान सलाम।
गरीबदास दहूँ दीन बिच, ये दोनों बे काम।।661।।
उमटी काशी सब गई, षट दर्शन खलील।
गरीबदास द्वै नीच हैं, इन मारत क्या ढील।।662।।
दंडी सन्यासी तहां, सिमटे हैं बैराग। गरीबदास तहां कनफटा, भई सबन सें लाग।।663।।
एक उदासी बनखंडी, फूल पान फल भोग।
गरीबदास मारन चले, सब काशी के लोग।।664।।
बीतराग बहरूपीया, जटा मुकुट महिमंत।
गरीबदास दश दश पुरुष, भेडौं के से जन्त।।665।।
भस्म रमायें भुस भरैं, भद्र मुंड कचकोल।
गरीबदास ऐसे सजे, हाथौं मुगदर गोल।।666।।
छोटी गर्दन पेट बडे़, नाक मुख शिर ढाल।
गरीबदास ऐसे सजे, काशी उमटी काल।।667।।
काले मुहडे जिनौं के, पग सांकल संकेत।
गरीबदास गलरी बौहत, कूदैं जांनि प्रेत।।668।।
गाल बजावैं बंब बंब, मस्तक तिलक सिंदूर।
गरीबदास कोई भंग भख, कोई उडावैं धूर।।669।।
रत्नाले माथे करैं, जैसैं रापति फील। गरीबदास अंधे बहुत, फेरैं चिसम्यौं लील।।670।।
लीले चिसम्यौं अंधले, मुख बांवै खंजूस।
गरीबदास मारन चले, हाथौं कूंचैं फूस।।671।।
जुलहे और चमार परि, हुई चढाई जोर। गरीबदास पत्थर लिये, मारैं जुलहे तोर।।672।।
तिलक तिलंगी बैल जूं, सौ सौ सालिगराम।
गरीबदास चौकी बौहत, उस काशी के धाम।।673।।
घर घर चौकी पथरपट, काली शिला सुपेद।
गरीबदास उस सौंज पर, धरि दिये चारौं बेद।।674।।
ताल मंजीरे बजत हैं, कूदै दागड़ दुम। गरीबदास खर पीठ हैं, नाक जिन्हौं के सुम।।675।।
पंडित और बैराग सब, हुवा इकठा आंनि।
गरीबदास एक गुल भया, चौकी धरी पषांन।।676।।
एक पत्थर भूरी शिला, एक काली कुलीन।
गरीबदास एक गोल गिरद, एक लाम्बी लम्बीन।।677।।
एक पीतल की मूरती, एक चांदी का चौक।
गरीबदास एक नाम बिन, सूना है त्रिलोक।।678।।
एक सौने का सालिगं, जरीबाब पहिरांन।
गरीबदास इस मनुष्य सैं, अकल बडी अक श्वान।।679।।
काशीपुरी के सालिगं, सबै समटे आय। गरीबदास कुत्ता तहां, मूतैं टांग उठाय।।680।।
कुत्ता मुख में मूति है, कैसै सालिगराम। गरीबदास जुलहा कहै, गई अकल किस गाम।।681।।
धोय धाय नीके किये, फिरि आय मारी धार।
गरीबदास उस पुरी में, हंसें जुलाहा और चमार।।682।।
तीन बार मुख मूतिया, सालिग भये अशुद्ध।
गरीबदास चहूँ बेद में, ना मूर्ति की बुद्धि।।683।।
भृष्ट हुई काशी सबै, ठाकुर कुत्ता मूंति। गरीबदास पतथर चलैं, नागा मिसरी सूंति।।684।।
किलकारैं दुदकारहीं, कूदैं कुतक फिराय।
गरीबदास दरगह तमाम, काशी उमटी आय।।685।।
होम धूप और दीप करि, भेख रह्या शिर पीटि।
गरीबदास बिधि साधि करि, फूकैं बौहत अंगीठ।।686।।
काशीके पंडित लगे, कीना होम हजूंम। गरीबदास उस पुरी में, परी अधिकसी धूम।।687।।
चौकी सालिगराम की, मसकी एक न तिल।
गरीबदास कहै पातशाह, षटदर्शन कि गल।।688।।
धूप दीप मंदे परे, होम सिराये भेख। दास गरीब कबीर ने, राखी भक्ति की टेक।।689।।
सत कबीर रैदासतूं, कहै सिकंदर शाह। गरीबदास तो भक्ति सच, लीजै सौंज बुलाय।।690।।
कहै कबीर सुनि पातशाह, सुनि हमरी अरदास।
गरीबदास कुल नीचकै, क्यौं आवैं हरि पास।।691।।
दीन बचन आधीनवन्त, बोलत मधुरे बैन।
गरीबदास कुण्डल हिरद, चढे गगन गिरद गैंन।।692।।
लीला की पुरूष कबीर ने, सत्यनाम उचार।
गरीबदास गावन लगे, जुलहा और चमार।।693।।
दहनैं तौ रैदास है, बामी भुजा कबीर। गरीबदास सुर बांधि करि, मिल्या राग तसमीर।694।।
रागरंग साहिब गाया लीला कीन्ही ततकाल।
गरीबदास काशीपुरी, सौंज पगौं बिन चाल।।695।।
सौंज चली बिन पगौंसैं, जुलहै लीन्ही गोद।
गरीबदास पंडित पटकि, चले अठारा बोध।।696।।
जुलहे और चमारकै, भक्ति गई किस हेत।
गरीबदास इन पंडितौंका, रहि गया खाली खेत।।697।।
खाली खेत कुहेतसैं, बीज बिना क्या होय।
गरीबदास एक नाम बिन, पैज पिछौड़ी तोय।।698।।
तत्वज्ञान हीन श्वान ज्यों, ह्ना ह्ना करै हमेश।
दासगरीब कबीर हरि का दुर्लभ है वह देश।।699।।
दुर्लभ देश कबीर का, राई ना ठहराय। गरीबदास पत्थर शिला, ब्राह्मण रहे उठाय।।700।।
पत्थर शिलासैं ना भला, मिसर कसर तुझ मांहि।
गरीबदास निज नाम बिन, सब नरक कूं जांहि।।701।।
जटाजूट और भद्र भेख, पैज पिछौड़ी हीन।
गरीबदास जुलहा सिरै, और रैदास कुलीन।।702।।
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आध्यात्मिक जानकारी के लिए आप संत रामपाल जी महाराज जी के मंगलमय प्रवचन सुनिए। साधना चैनल पर प्रतिदिन 7:30-8.30 बजे। संत रामपाल जी महाराज जी इस विश्व में एकमात्र पूर्ण संत हैं। आप सभी से विनम्र निवेदन है अविलंब संत रामपाल जी महाराज जी से नि:शुल्क नाम दीक्षा लें और अपना जीवन सफल बनाएं।
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uday-yadav · 1 year
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यम किंकर कर जोर, चलैं तिस देख रे ।
धर्मराय के अंक, मिटावै लेख रे ।।
जीव जूनी नहीं जाहीं, बांह ठाढै गही ।
दरगह मंझ हिजूर, पकड़ छेकी बही ।।
सप्त सुन्न पर बास, अगमपुर धाम है ।
धन्य बंदी छोड़ कबीर, तुम्हारा नाम है ।।
@satlokashram
@sanewschannel
@saintrampaljimaharaj
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cyberchopshopblaze · 1 year
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#मांस_खाना_हराम
🐐"रोजे रखें और खूनि करें, फिर तसबी ले हाथ।
गरीबदास दरगह सरै, बौहत करी तै घात।।"
अल्लाह की इबादत करने के उद्देश्य से (रोजे) व्रत रखते हो, (तरुबी) माला से जाप भी करते हो। फिर खून करते हो यानि गाय, मुर्गी मुर्गा, बकरा-बकरी मारते हो। यह अल्लाह के साथ धोखा करने जैसा
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friedturtlepeanut · 1 year
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#मुहर्रम_पर_अल्लाह_को_जानें
ऐसे खाना खाइए जिससे माता को (गाय को) दर्द न हो। ऐसा पाप करने वाले को परमात्मा के (दरगह) दरबार में जंजीरों से बाँधकर यातनाएं दी जाऐंगी।
Baakhabar Sant Rampal Ji
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