#जब हम मिले
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helputrust · 4 months ago
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लखनऊ, 09.07.2024 । माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी की मुहिम आत्मनिर्भर भारत को साकार करने तथा महिला सशक्तिकरण हेतु गो कैंपेन (अमेरिकन संस्था) के सहयोग से हेल्प यू एजुकेशनल एंड चैरिटेबल ट्रस्ट तथा रेड ब्रिगेड ट्रस्ट के संयुक्त तत्वावधान में करामत हुसैन मुस्लिम गर्ल्स इंटर कॉलेज, लखनऊ में आत्मरक्षा कार्यशाला आयोजित की गई जिसमे 84 छात्राओं ने मेरी सुरक्षा, मेरी ज़िम्मेदारी मंत्र को अपनाते हुए आत्मरक्षा के गुर सीखे तथा वर्तमान परिवेश में आत्मरक्षा प्रशिक्षण के महत्व को जाना ।  
करामत हुसैन मुस्लिम गर्ल्स इंटर कॉलेज की शगुफ्ता हाशमी जी (स्पोर्ट्स टीचर) ने हेल्प यू एजुकेशनल एंड चैरिटेबल ट्रस्ट का धन्यवाद करते हुए कहा कि, “आत्मरक्षा हर लड़की के जीवन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा होना चाहिए । यह न केवल हमारी सुरक्षा के लिए आवश्यक है, बल्कि यह हमारे आत्मविश्वास और आत्मसम्मान को भी बढ़ाता है । लड़कियों के लिए आत्मरक्षा का महत्व अत्यंत बड़ा है । यह आपको सशक्त बनाता है और विपरीत परिस्थितियों का सामना करने के लिए तैयार करता है । आत्मरक्षा का ज्ञान हमें निडर बनाता है और हमें यह विश्वास दिलाता है कि हम अपनी सुरक्षा खुद कर सकते हैं । महिलाओं को अपने जीवन में सुरक्षा और सम्मान मिलना चाहिए । उन्हें आत्मरक्षा के तरीके सीखने चाहिए ताकि वे समाज में सुरक्षित महसूस कर सकें । इसके साथ ही हमें यह सुनिश्चित करना चाहिए कि उन्हें समाज में सम्मान और समानता मिले । महिलाओं का सशक्तिकरण तब ही संभव है जब वे सुरक्षित और सम्मानित महसूस करें और अपने अधिकारों को पूरी तरह से जानें और समझें ।“
कार्यशाला ��ें रेड ब्रिगेड ट्रस्ट के प्रमुख श्री अजय पटेल ने बालिकाओं को आत्मरक्षा प्रशिक्षण के महत्व को बताते हुए कहा कि, "किसी पर भी अन्याय तथा अत्याचार किसी सभ्य समाज की निशानी नहीं हो सकती हैं, फिर समाज के एक बहुत बड़े भाग यानि स्त्रियों के साथ ऐसा करना प्रकृति के विरुद्ध हैं | महिलाओं एवं बालिकाओं के खिलाफ देश में हो रहे अत्याचारों को रोकने के लिए भारत सरकार द्वारा अनेक कदम उठाए गए हैं तथा सरकार निरंतर महिलाओं को आत्मनिर्भर एवं सशक्त बनाने के लिए कई योजनाएं चला रही है लेकिन यह अत्यंत दुख की बात है कि हमारा समाज 21वीं सदी में जी रहा है लेकिन कन्या भ्रूण हत्या व लैंगिक भेदभाव के कुचक्र से छूट नहीं पाया है | आज भी देश के तमाम हिस्सों में बेटी के पैदा होते ही उसे मार दिया जाता है या बेटी और बेटे में भेदभाव किया जाता है | महिलाओं के साथ घरेलू हिंसा होती है तथा उनको एक स्त्री होने की बहुत बड़ी कीमत चुकानी पड़ती है | आत्मरक्षा प्रशिक्षण समय की जरूरत बन चुका है क्योंकि यदि महिला अपनी रक्षा खुद करना नहीं सीखेगी तो वह अपनी बेटी को भी अपने आत्म सम्मान के लिए लड़ना नहीं सिखा पाएगी | आज किसी भी क्षेत्र में नजर उठाकर देखियें, नारियां पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर प्रगति में समान की भागीदार हैं | फिर उन्हें कमतर क्यों समझा जाता है यह विचारणीय हैं | हमें उनका आत्मविश्वास बढाकर, उनका सहयोग करके समाज की उन्नति के लिए उन्हें साहस और हुनर का सही दिशा में उपयोग करना सिखाना चाहिए तभी हमारा समाज प्रगति कर पाएगा | आत्मरक्षा प्रशिक्षण कार्यशाला आयोजित करने का हमारा यही मकसद है कि हम ज्यादा से ज्यादा बालिकाओं और महिलाओं को आत्मरक्षा के गुर सिखा सके तथा समाज में उन्हें आत्म सम्मान के साथ जीना सिखा सके |"
आत्मरक्षा प्रशिक्षण की प्रशिक्षिका तंजीम अख्तर, यास्मीन बानो ने लड़कियों को आत्मरक्षा के गुर सिखाते हुए लड़कों की मानसिकता के बारे में अवगत कराया तथा उन्हें हाथ छुड़ाने, बाल पकड़ने, दुपट्टा खींचने से लेकर यौन हिंसा एवं बलात्कार से किस तरह बचा जा सकता है यह अभ्यास के माध्यम से बताया |
कार्यशाला के अंत में सभी प्रतिभागियों को सहभागिता प्रमाण पत्र वितरित किये गये ।
कार्यशाला में करामत हुसैन मुस्लिम गर्ल्स इंटर कॉलेज की शगुफ्ता हाशमी जी (स्पोर्ट्स टीचर), छात्राओं, रेड ब्रिगेड ट्रस्ट से श्री अजय पटेल, तंजीम अख्तर, यास्मीन बानो तथा हेल्प यू एजुकेशनल एंड चैरिटेबल ट्रस्ट के स्वयंसेवकों की गरिमामयी उपस्थिति रही l
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swayamsesatyatak · 5 days ago
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पूर्ण आत्मज्ञान कब प्राप्त होता है?
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अचिंत्य - हम में से बहुत सारे लोगों के मन में आत्मज्ञान के संबंध में कई तरह के भ्रम हैं, कई तरह की गलत धारणाएं हमने बना ली हैं। जैसे बहुत सारे लोगों को लगता है कि आत्मज्ञान में आपको किसी दिन किसी दिव्य ज्योति के दर्शन होते है, किसी परमात्मा के दर्शन होते है औ��� फिर जैसे आपका चेहरा चमकने लगता है जैसे कोई ओरा आपको घेर लेता है। आत्मज्ञान को लेकर यह भ्रम है लोगों का।
इसी के साथ बहुत सारे लोगों को आत्मज्ञान के संबंध में ऐसा भी भ्रम रहता है कि आत्मज्ञान मिलने पर हमको कोई दिव्य ज्ञान, बहुत सारा ��्ञान एकदम से प्राप्त हो जाता है और फिर बुद्ध की तरह हमसे ज्ञान बरसने लगता है तो आत्मज्ञान मतलब कोई अदभुत ज्ञान हमें मिल जायेगा फिर हम वो बांटेंगे और वो परेशान हो जाते हैं उनको ऐसा कोई ज्ञान नहीं मिलता है तो कि इतने दिन से साधना कर रहे है लेकिन अभी तक मिला क्यो नहीं।
इसी के साथ बहुत सारे लोगों के मन में ये भी धारणा होती है आत्मज्ञान के संबंध में कि आत्मज्ञान किसी तरह की कोई उपलब्धि है, कोई अचीवमेंट है जो किसी दिन जाकर समाप्त हो जाती है। माने एक दिन ऐसा आता है जब हमें आत्मज्ञान हो जाता हैं और फिर हो गया काम पूरा और ये बाते उन लोगों के मन में आती है जो आत्मज्ञान के नाम पर बहुत सारी विधियां या कुछ करते हैं तो उनको लगता है कि अच्छा इतने दिन तक करना पड़ेगी और जब मिल जायेगा फिर इनसे छुटकारा मिलेगा तो विधियां अपनाते है विधियां ही उनके लिए बोझ जाती है बंधन बन जाती है फिर परेशान होते रहते हैं कब होगा, कब होगा ताकि इस मुक्ति मिले।
तो क्या यही आत्मज्ञान है ? नहीं। आत्मज्ञान वो नहीं है जो आप सोच रहे है। जो इस तरह की कल्पना की जा रही है। इन सब से आत्मज्ञान का कोई संबंध नहीं है।
सबसे पहले तो आत्मज्ञान किसी तरह की कोई उपलब्धि, कोई अचीवमेंट नहीं है। आत्मज्ञान कोई ऐसी चीज नहीं है जो किसी दिन किसी स्थिति में पहुंच कर प्राप्त होगी और आत्मज्ञान का कभी कोई अंत नहीं होता है। किसी तरह का निष्कर्ष निकाल लेना आत्मज्ञान नहीं है क्योंकि जो मन कुछ निष्कर्ष निकाल कर वहीं पर रुक जाता है। जो मन सीखना, जानना बंद कर देता है वह मन तो मुर्दा है। तो ना तो आत्मज्ञान कोई उपलब्धि है, ना ही ये कभी खत्म होता है और ना ही इस में किसी निष्कर्ष पर रुक जाना होता है बल्कि आत्मज्ञान तो स्वयं को जानते रहने की एक सतत प्रक्रिया है। क्यो? क्योंकि आप अपने आप को स्वयं को जो जानते है, जो मानते है। जिसे आप कहते है ये “मैं” वो लगातार बदल रहा है और बाहर पूरा अस्तित्व जो है वह भी बदल रहा है तो अस्तित्व में कुछ भी स्थायी नहीं है हर क्षण सतत स्वयं को जानते रहना होता है क्योंकि अस्तित्व में हर क्षण आपके लिए नया है। प्रत्येक अनुभव आपके लिए नया है और जितना अधिक आप स्वयं को जानते जाते है उतनी अधिक स्पष्टता आपको आती जाती है जैसे जैसे आप जानते जाते है स्पष्टता आती जाती है तो आत्मज्ञान कोई उपलब्धि नहीं, उसका कोई अंत नहीं बल्कि आत्मज्ञान हर क्षण स्वयं के प्रति सजग रहने की, अवेयर रहने की एक सतत प्रक्रिया है जो जीवन पर्यन्त चलती रहती है। सीखते रहने की सतत जानते रहने की प्रक्रिया को ही तो ध्यान कहते है। यह सजगता ही तो वो ध्यान है। स्वयं के प्रति सजग रहने का मतलब अपने कर्मों के प्रति सजग रहना, अपने वचनों के प्रति सजग रहना, अपने चुनावों के प्रति सजग रहना क्या चुन रहे हो, किसे चुन रहे हो, क्यों चुन रहे हो उनके प्रति सजग रहना। अपने विचारों के प्रति सजग रहना क्या विचार है, कहा से आ रहे है, क्यों उठ रहे है। अपनी वृत्तियों के प्रति सजग रहना। इन सबके प्रति सजग रहना ध्यान का ही हिस्सा है इससे अलग ध्यान और कुछ नहीं होता है। और ये जो ��जगता होती है अवेयरनेस, अवलोकन होता है कर्मों के प्रति, चुनावों के प्रति, विचारों के प्रति, वृत्तियों के प्रति, अहंकार के प्रति इसी के माध्यम से स्वयं को लगातार जानते है और हमने कहां की जितना अधिक आप स्वयं को जानते जायेंगे उतनी अधिक स्पष्टता बढ़ती जाएगी।
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deepjams4 · 1 year ago
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अटखेलियाँ!
हमने कहा अल्फ़ाज़ काफ़ी नहीं हैं हुज़ूर ज़िन्दगी बिताने के लिए
इनायत होगी ग़र कोई ज़हमत खुद भी उठायें घर चलाने के लिए!
शरीक-ए-हयात शरीक-ए-राह हम-नफ़्स कहते जब वो मुख़ातिब हुए
मिज़ाज में आशिक़ाना अंदाज था जनाब का तब हमें लुभाने के लिए!
हमने कहा अल्फ़ाज़ से खेलने से ग़र फ़ुरसत मिले तो खबर ले लेना
कब से डेरा जमाए बैठे हैं ग़ुस्साए कई लेनदार क़र्ज़ा उगाहने के लिए!
जेब ख़ाली है और आमद की सूरत कहीं से नज़र नहीं आती कोई
कहाँ मिलता है अब खुशामद से भी कहीं उधार घर चलाने के लिए!
घर में फाँको की नौबत आ गयी उधर आपकी ये मदमस्त अटखेलियाँ
आप ही तरकीब बता दीजिए कोई हमें इन में तआवुन बिठाने के लिए!
ग़रीब की आबरू शरीफों की आँख में खटकती है ये तो देखा ही होगा
ग़र हया बाक़ी है तो कुछ काम कीजिए घर का चूल्हा जलाने के लिए!
अल्फ़ाज़ पर महारत है आपको ज़ुबान भी तो शहद टपकाना जानती है
हाथ पाँव भी तो थोड़ा चलाना शुरू कीजिए ज़िम्मेदारियाँ बटाने के लिए!
मगर उस बे-हिस के दिल पे कहाँ असर हुआ है किसी भी बात का कभी
कहा नज़रअंदाज़ कर वो जाम में डूब गया कोई और ग़म भुलाने के लिए!
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kisturdas · 10 months ago
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( #Muktibodh_part189 के आगे पढिए.....)
📖📖📖
#MuktiBodh_Part190
हम पढ़ रहे है पुस्तक "मुक्तिबोध"
पेज नंबर 363-364
कबीर परमेश्वर जी ने धर्मदास जी को गीता से ही प्रश्न तथा उत्त�� देकर सत्य ज्ञान समझाया। उपरोक्त वाणी सँख्या 1 में गीता अध्याय 4 श्लोक 5, अध्याय 2 श्लोक 12 वाला वर्णन बताया जिसमें गीता ज्ञान दाता ने कहा है कि अर्जुन! तेरे और मेरे बहुत जन्म हो चुके हैं। तू नहीं जानता, मैं जानता हूँ। वाणी सँख्या 2 में गीता अध्याय 15 श्लोक 17 वाला वर्णन बताया है। वाणी सँख्या 3 में गीता अध्याय 4 श्लोक 34 वाला ज्ञान बताया है। वाणी सँख्या 4 में गीता अध्याय 18 श्लोक 62ए 66 तथा अध्याय 15 श्लोक 4 वाला वर्णन बताया है। वाणी सँख्या 5 में गीता अध्याय 18 श्लोक 64 का वर्णन है जिसमें काल कहता है कि मेरा ईष्ट देव भी वही है। वाणी सँख्या 6 में गीता अध्याय 8 श्लोक 13 तथा अध्याय 17 श्लोक 23 वाला ज्ञान है। आगे की वाणियों में कबीर परमेश्वर जी ने अपने आपको छुपाकर अपने ही
विषय में बताया है।
◆ धर्मदास वचन
विष्णु पूर्ण परमात्मा हम जाना।
जिन्द निन्दा कर हो नादाना।।
पाप शीश तोहे लागे भारी।
देवी देवतन को देत हो गारि।।
◆ जिन्दा (कबीर जी) वचन
जे यह निन्दा है भाई।
यह तो तोर गीता बतलाई।।
गीता लिखा तुम मानो साचा।
अमर विष्णु है कहा लिख राखा।।
तुम पत्थर को राम बताओ।
लडूवन का भोग लगाओ।।
कबहु लड्डू खाया पत्थर देवा।
या काजू किशमिश पिस्ता मेवा।।
पत्थर पूज पत्थर हो गए भाई।
आखें देख भी मानत नाहीं।।
ऐसे गुरू मिले अन्याई।
जिन मूर्ति पूजा रीत चलाई।।
इतना कह जिन्द हुए अदेखा।
धर्मदास मन किया विवेका।।
◆ धर्मदास वचन
यह क्या चेटक बिता भगवन।
कैसे मिटे आवा गमन।।
गीता फिर देखन लागा।
वही वृतान्त आगे आगा।।
एक एक श्लोक पढ़ै और रौवै।
सिर चक्रावै जागै न सोवै।।
रात पड़ी तब न आरती कीन्हा।
झूठी भक्ति में मन दीन्हा।।
ना मारा ना जीवित छोड़ा।
अधपका बना जस फोड़ा।।
यह साधु जे फिर मिल जावै।
सब मानू जो कछु बतावै।।
भूल के विवाद करूं नहीं कोई। आधीनी से सब जानु सोई।।
उठ सवेरे भोजन लगा बनाने।
लकड़ी चुल्हा बीच जलाने।।
जब लकड़ी जलकर छोटी होई। पाछलो भाग में देखा अनर्थ जोई।।
चटक-चटक कर चींटी मरि हैं।
अण्डन सहित अग्न में जर हैं।।
तुरंत आग बुझाई धर्मदासा।
पाप देख भए उदासा।।
ना अन्न खाऊँ न पानी पीऊँ।
इतना पाप कर कैसे जीऊँ।।
कराऊँ भोजन संत कोई पावै।
अपना पाप उतर सब जावै।।
लेकर थार चले धर्म��ि नागर।
वृक्ष त��े बैठे सुख सागर।।
साधु भेष कोई और बनाया।
धर्मदास साधु नेड़े आया।।
रूप और पहचान न पाया।
थाल रखकर अर्ज लगाया।।
भोजन करो संत भोग लगाओ।
मेरी इच्छा पूर्ण कराओ।।
संत कह आओ धर्मदासा।
भूख लगी है मोहे खासा।।
जल का छींटा भोजन पे मारा।
चींटी जीवित हुई थाली कारा।।
तब ही रूप बनाया वाही।
धर्मदास देखत लज्जाई।।
कहै जिन्दा तुम महा अपराधी।
मारे चीटी भोजन में रांधी।।
चरण पकड़ धर्मनि रोया।
भूल में जीवन जिन्दा मैं खोया।।
जो तुम कहो मैं मानूं सबही।
वाद विवाद अब नहीं करही।।
और कुछ ज्ञान अगम सुनाओ।
कहां वह संत वाका भेद बताओ।।
◆ जिन्द (कबीर) वचन
तुम पिण्ड भरो और श्राद्ध कराओ। गीता पाठ सदा चित लाओ।।
भूत पूजो बनोगे भूता।
पितर पूजै पितर हुता।।
देव पूज देव लोक जाओ।
मम पूजा से मोकूं पाओ।।
यह गीता में काल बतावै।
जाकूं तुम आपन इष्ट बतावै।।
(गीता अ. 9 व 25)
इष्ट कह करै नहीं जैसे।
सेठ जी मुक्ति पाओ कैसे।।
◆ धर्मदास वचन
हम हैं भक्ति के भूखे।
गुरू बताए मार्ग कभी नहीं चुके।।
हम का जाने गलत और ठीका।
अब वह ज्ञान लगत है फीका।।
तोरा ज्ञान महा बल जोरा।
अज्ञान अंधेरा मिटै है मोरा।।
हे जिन्दा तुम मोरे राम समाना।
और विचार कुछ सुनाओ ज्ञाना।।
क्रमशः_______________
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आध्यात्मिक जानकारी के लिए आप संत रामपाल जी महाराज जी के मंगलमय प्रवचन सुनिए। संत रामपाल जी महाराज YOUTUBE चैनल पर प्रतिदिन 7:30-8.30 बजे। संत रामपाल जी महाराज जी इस विश्व में एकमात्र पूर्ण संत हैं। आप सभी से विनम्र निवेदन है अविलंब संत रामपाल जी महाराज जी से नि:शुल्क नाम दीक्षा लें और अपना जीवन सफल बनाएं।
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shayariforest · 1 year ago
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Love Shayari
There are a whole lot of renowned writers who wrote shayari for us. We in shayariforest.in share these shayaris for you. 
List of all the renowned famous shayari writer :
1. Mirza Ghalib
2. Faiz Ahmad Faiz
3. Ahmad Faraz
4. Wasim Barelvi
5. Daagh Dehlvi
6. Firaq Gorakhpuri
7. Nida Fazli
8. Meeraji
9. Sahir Ludhianvi
10. Jigar Moradabadi
11. Dr Muhammad Iqbal
12. Bashir Badr
13. Jaun Elia
14. Mir Taqi Mir
15. Qateel Shifai
16. Akhlaq Mohammed Khan
17. Dushyant Kumar
18. Gulzar
19. Akbar Allahabadi
20. Munawwar Rana
21. Rahat Indori
22. Javed Akhtar
Shayari is for revealing the feeling of love. That is why they wrote love shayari, sad shayari for us. 
Love Shayari
वो मोहब्बत भी तुम्हारी थी नफरत भी तुम्हारी थी,
हम अपनी वफ़ा का इंसाफ किससे माँगते..
वो शहर भी तुम्हारा था वो अदालत भी तुम्हारी थी.
यूँ भी इक बार तो होता कि समुंदर बहता
कोई एहसास तो दरिया की अना का होता
बेशूमार मोहब्बत होगी उस बारिश  की बूँद को इस ज़मीन से, यूँ ही नहीं कोई मोहब्बत मे इतना गिर जाता है!
आप के बाद हर घड़ी हम ने
आप के साथ ही गुज़ारी है
तुमको ग़म के ज़ज़्बातों से उभरेगा कौन,  
ग़र हम भी मुक़र गए तो तुम्हें संभालेगा कौन!
दिन कुछ ऐसे गुज़ारता है कोई
जैसे एहसान उतारता है कोई
तुम्हे जो याद करता हुँ, मै दुनिया भूल जाता हूँ । तेरी चाहत में अक्सर, सभँलना भूल जाता हूँ ।
इश्क़ की तलाश में क्यों निकलते हो तुम, इश्क़ खुद तलाश लेता है जिसे बर्बाद करना होता है।
तुझ से बिछड़ कर कब ये हुआ कि मर गए, तेरे दिन भी गुजर गए और मेरे दिन भी गुजर गए.
आऊं तो सुबह, जाऊं तो मेरा नाम शबा लिखना, बर्फ पड़े तो बर्फ पे मेरा नाम दुआ लिखना
वो शख़्स जो कभी मेरा था ही नही, उसने मुझे किसी और का भी नही होने दिया.
सालों बाद मिले वो गले लगाकर रोने लगे, जाते वक्त जिसने कहा था तुम्हारे जैसे हज़ार मिलेंगे.
जब भी आंखों में अश्क भर आए लोग कुछ डूबते नजर आए चांद जितने भी गुम हुए शब के सब के इल्ज़ाम मेरे सर आए
जिन दिनों आप रहते थे, आंख में धूप रहती थी अब तो जाले ही जाले हैं, ये भी जाने ही वाले हैं.
जबसे तुम्हारे नाम की मिसरी होंठ लगाई है मीठा सा गम है, और मीठी सी तन्हाई है.
वक्त कटता भी नही वक्त रुकता भी नही दिल है सजदे में मगर इश्क झुकता भी नही
एक बार जब तुमको बरसते पानियों के पार देखा था यूँ लगा था जैसे गुनगुनाता एक आबशार देखा था तब से मेरी नींद में बसती रहती हो बोलती बहुत हो और हँसती रहती हो.
होती नही ये मगर हो जाये ऐसा अगर तू ही नज़र आए तू जब भी उ���े ये नज़र
मेरा ख्याल है अभी, झुकी हुई निगाह में खिली हुई हँसी भी है, दबी हुई सी चाह में मैं जानता हूं, मेरा नाम गुनगुना रही है वो यही ख्याल है मुझे, के साथ आ रही है वो
तुम्हें जिंदगी के उजाले मुबारक अंधेरे हमें आज रास आ गए हैं तुम्हें पा के हम खुद से दूर हो गए थे तुम्हें छोड़कर अपने पास आ गए हैं
उतर रही हो या चढ़ रही हो ? क्या मेरी मुश्किलों को पढ़ रही हो ?
सुरमे से लिखे तेरे वादे आँखों की जबानी आते हैं मेरे रुमालों पे लब तेरे बाँध के निशानी जाते हैं
तेरे इश्क़ में तू क्या जाने कितने ख्वाब पिरोता हूं एक सदी तक जागता हूं मैं एक सदी तक सोता हूं
गुल पोश कभी इतराये कहीं महके तो नज़र आ जाये कहीं तावीज़ बनाके पहनूं उसे आयत की तरह मिल जाये कहीं
पता चल गया है के मंज़िल कहां है चलो दिल के लंबे सफ़र पे चलेंगे सफ़र ख़त्म कर देंगे हम तो वहीं पर जहाँ तक तुम्हारे कदम ले चलेंगे
उम्मीद तो नही फिर भी उम्मीद हो कोई तो इस तरह आशिक़ शहीद हो
कोई आहट नही बदन की कहीं फिर भी लगता है तू यहीं है कहीं वक्त जाता सुनाई देता है तेरा साया दिखाई देता है
तू समझता क्यूं नही है दिल बड़ा गहरा कुआँ है आग जलती है हमेशा हर तरफ धुआँ धुआँ है
टकरा के सर को जान न दे दूं तो क्या करूं कब तक फ़िराक-ए-यार के सदमे सहा करूं मै तो हज़ार चाहूँ की बोलूँ न यार से काबू में अपने दिल को न पाऊं तो क्या करूं
एक बीते हुए रिश्ते की एक बीती घड़ी से लगते हो तुम भी अब अजनबी से लगते हो
प्यार में अज़ीब ये रिवाज़ है, रोग भी वही है जो इलाज है.
जाने कैसे बीतेंगी ये बरसातें माँगें हुए दिन हैं, माँगी हुई रातें.
ऐसा कोई ज़िंदगी से वादा तो नही था तेरे बिना जीने का इरादा तो नही था.
वो बेपनाह प्यार करता था मुझे गया तो मेरी जान साथ ले गया
झुकी हुई निगाह में, कहीं मेरा ख्याल था दबी दबी हँसी में इक, हसीन सा गुलाल था मै सोचता था, मेरा नाम गुनगुना रही है वो न जाने क्यूं लगा मुझे, के मुस्कुरा रही है वो
इस दिल में बस कर देखो तो ये शहर बड़ा पुराना है हर साँस में कहानी है हर साँस में अफ़साना है
कोई वादा नही किया लेकिन क्यों तेरा इंतज़ार रहता है बेवजह जब क़रार मिल जाए दिल बड़ा बेकरार रहता है
धीरे-धीरे ज़रा दम लेना प्यार से जो मिले गम लेना दिल पे ज़रा वो कम लेना
दबी-दबी साँसों में सुना था मैं��े बोले बिना मेरा ��ाम आया पलकें झुकी और उठने लगीं तो हौले से उसका ��लाम आया
खून निकले तो ज़ख्म लगती है वरना हर चोट नज़्म लगती है.
उड़ते पैरों के तले जब बहती है जमीं मुड़के हमने कोई मंज़िल देखी तो नही रात दिन हम राहों पर शामो सहर करते हैं राह पे रहते हैं यादों पे बसर करते हैं
इतना लंबा कश लो यारो, दम निकल जाए जिंदगी सुलगाओ यारों, गम निकल जाए
शाम से आँख में नमी सी है आज फिर आपकी कमी सी है
ख़ामोश रहने में दम घुटता है और बोलने से ज़बान छिलती है डर लगता है नंगे पांव मुझे कोई कब्र पांव तले हिलती है
Sad Shayari
तन्हाई अच्छी लगती है
 सवाल तो बहुत करती पर,. जवाब के लिए ज़िद नहीं करती..
तुम्हारी ख़ुश्क सी आँखें भली नहीं लगतीं वो सारी चीज़ें जो तुम को रुलाएँ, भेजी हैं
"खता उनकी भी नहीं यारो वो भी क्या करते, बहुत चाहने वाले थे किस किस से वफ़ा करते !"
हाथ छूटें भी तो रिश्ते नहीं छोड़ा करते वक़्त की शाख़ से लम्हे नहीं तोड़ा करते
मैं हर रात सारी ख्वाहिशों को खुद से पहले सुला देता,
हूँ मगर रोज़ सुबह ये मुझसे पहले जाग जाती है।
टूटी फूटी शायरी में लिख दिया है डायरी में आख़िरी ख्वाहिश हो तुम लास्ट फरमाइश हो तुम
मुस्कुराना, सहते जाना, चाहने की रस्म है ना लहू ना कोई आँसू इश्क़ ऐसा ज़ख्म है
हमने देखी है उन आँखों की खुशबू हाथ से छूके इसे रिश्तों का इल्ज़ाम न दो सिर्फ़ एहसास है ये रूह से महसूस करो प्यार को प्यार ही रहने दो कोई नाम न दो
ख्वाबी ख्वाबी सी लगती है दुनिया आँखों में ये क्या भर रहा है मरने की आदत लगी थी क्यूं जीने को जी कर रहा है
कहीं किसी रोज यूं भी होता हमारी हालत तुम्हारी होती जो रातें हमने गुजारी मरके वो रातें तुमने गुजारी होती
उम्मीद भी अजनबी लगती है और दर्द पराया लगता है आईने में जिसको देखा था बिछड़ा हुआ साया लगता है
कोई तो करता होगा हमसे भी खामोश मोहब्बत.. किसी का हम भी अधूरा इश्क रहे होंगे…
आखिरी नुकसान था तू जिंदगी में, तेरे बाद मैंने कुछ खोया ही नहीं..
सब खफा हैं मेरे लहजे से, पर मेरे हालात से वाकिफ कोई नहीं..
तन्हाइयां कहती हैं कोई महबूब बनाया जाए, जिम्मेदारियां कहती हैं वक़्त बर्बाद बहुत होगा..
मेरे कंधे पर कुछ यूं गिरे उनके आंसू , कि सस्ती सी कमीज़ अनमोल हो गई..
जर्रा जर्रा समेट कर खुद को बनाया है मैंने, मुझसे ये ना कहना बहुत मिलेंगे तुम जैसे..
बहुत करीब से अनजान बनके गुजरा है ��ो शख्स, जो कभी बहुत दूर से पहचान लिया करता था..
उतार कर फेंक दी उसने तोहफे में मिली पायल, उसे डर था छनकेगी तो याद जरूर आऊंगा मै..
सब तारीफ कर रहे थे अपने अपने महबूब का, हम नीद का बहाना बना कर महफ़िल छोड़ आए..
वो हमे भूल ही गए होंगे भला इतने दिनों तक कौन खफा रहता है..
आज थोड़ी बिगड़ी है कल फिर सवांर लेंगे जिंदगी है जो भी होगा संभाल लेंगे…
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[8/28, 12:27 PM] +91 94092 36803: #SantRampalJiEternalKnowledge
संत रामपाल जी महाराज ने ही कुरान से प्रमाणित करके बताया कि कबीर साहेब ही अल्लाहु अकबर जो हजर�� मुहम्मद जी को जिंदा महात्मा के रूप में आकर मिले थे, उनको सतलोक दिखाया था।
✰संत रामपाल जी महाराज का 73वा अवतरण दिवस✰
इस पावन शुभ अवसर पर दिनांक *6, 7, 8 सितंबर 2023* पर होने वाले विश्व के सबसे बड़े नि:शुल्क खुले भंडारे में आप सभी परिवार सहित सतलोक आश्रम सोजत, पाली, राजस्थान में सादर आमंत्रित है।
अधिक जानकारी के लिए संपर्क करें: 𝟴𝟴𝟴𝟮𝟵𝟭𝟰𝟵𝟰𝟲, 𝟴𝟴𝟴𝟮𝟵𝟭𝟰𝟵𝟰𝟳
[8/28, 12:27 PM] +91 94092 36803: #SantRampalJiEternalKnowledge
केवल संत रामपाल जी महाराज जी ने ही बताया है कि आत्माएं काल के जाल में कैसे फंसी।
उन्होंने बताया कि सतलोक में जब ज्योति निरंजन तप कर रहा था, तब हम सभी आत्माएं, जो आज ज्योति निरंजन के इक्कीस ब्रह्मांडों में रहते हैं इसकी साधना पर आसक्त हो गए। जिस कारण से सत्य पुरुष से विमुख होकर पतिव्रता पद से गिर गए। प्रभु के बार-बार समझाने पर भी हमारी आसक्ति काल ब्रह्म से नहीं हटी।
✰संत रामपाल जी महाराज का 73वा अवतरण दिवस✰
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shayariwalii · 1 year ago
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पति पत्नी के लिए कोट्स जो आपके रिश्ते में और ज़्यादा प्यार भर देंगे
अपने वैवाहिक जीवन को और भी ज़्यादा मज़बूत बनाएं कुछ प्यार भरे कोट्स के ज़रिये जो ख़ास पति और पत्नी के लिए लिखे गए हैं। हस्बैंड और वाइफ दोनों की यह कोशिश होनी चाहिए की वह अपने रिश्ते को और भी ज़्यादा मज़बूत बनाने में निरंतर प्रयास करते रहें। ऐसा करने से न सिर्फ उनका रिश्ता मज़बूत बना रहेगा, बल्कि आने वाली पीढ़ी भी उनसे बढ़िया सीख लेगी। आज हम पति पत्नी के लिए कुछ ऐसे ख़ास लव कोट्स लेकर आये हैं जो इस काम में आपकी काफी मदद करेंगे। तो चलिए शुरू करते हैं।
पति पत्नी के लिए प्यार भरे कोट्स
जिन्��गी भर तुम्हारे पास रहूँगा, तुम्हारा साथ दूँगा, तुम्हारे मुस्कान के लिए सब कुछ कुर्बान कर दूंगा
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दिल में को चाह नही जब से तुम मिले हो, जन्नत की ख्वाहिश नहीं जब से तुम मिले हो, हर ख्वाब मुक्कमल हो गया जब से तुम मिले हो, जैसे मेरा ख़ुदा मिल गया है जब से तुम मिले हो।
वो ख्वाब ही क्या जिसमें तुम न हो, वो बात ही क्या जिसमें तुम न हो, वो रात ही क्या जिसमें तुम न हो, वो जिंदगी ही क्या जिसमें तुम न हो।
तुझ पर सब कुछ लुटा कर, मैं बड़ी अमीर हो जाती हूँ।
जब से तुम मेरे जिन्दगी में आयें हो, मुहब्बत बनकर मेरे रूह में समायें हो।
तुम्हारें दिल में, मैं इतनी मुहब्बत भर दूंगा, नफरत के लिए वजह ढूंढते-ढूंढते थक जाओगी।
वाइफ के लिए रोमांटिक कोट्स
मेरे इश्क की जान तुम हो, मेरे इश्क की पहचान तुम हो, मेरे इश्क की भाषा तुम हो, मेरे इश्क मेरी जिन्दगी की परिभाषा तुम हो।
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मुझपर गुस्सा करने का हक है तुम्हारा पर कभी ये मत भूल जाना कि मैं तुमसे बहुत प्यार करता हूँ।
प्यार करो तो ऐतबार भी करों, वरना शक तो सब कुछ बर्बाद कर देता है।
प्यार और दिलदार हमेशा साथ हो, और कुछ भी नहीं चाहिए मुझे जिन्दगी में।
मैं तुमसे प्यार करता हूँ, ये जब-जब कहता हूँ तब-तब तुम्हें याद दिलाता हूँ, तुम ही मेरी जिन्दगी मेरी जान हो।
हम कहें तुम जान जाओ, ये भी कोई मुहब्बत है जिस दिन सच्ची मुहब्बत होगी बिना कहे मेरे दिल का हाल जान लोगी।
हस्बैंड के लिए लव कोट्स
जब-जब तेरी याद आई है, तब-तब ख़ुशी का एहसास लाई है।
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तुमसे मुहब्बत इतनी है कि कभी मेरा ख्याल नहीं बदलेगा, ये मौसम, साल बदलेंगे मगर मेरे दिल का हाल नहीं बदलेगा।
मेरी जिन्दगी में रौनक तेरे आने से है, कभी तुझे सताने में तो कभी तुझे मनाने में।
तुमसे लड़ते-झगड़ते है और नाराजगी भी रखते हैं, पर तुम्हारे बिना जीने का ख्याल नहीं रखते हैं।
इक-दूजे में इक-दूजे की मुस्कान छिपी है, इक-दूजे में इक-दूजे की जान छिपी है।
वो लोग बहुत ख़ुशनसीब होते है, जिन्हें कोई प्यार करता है, और ऐसे प्यारे लोगों को अपने दिल में सम्भाल कर रखना चाहिए।
आप चाहें तो पति पत्नी के लिए शायरी भी देख सकते हैं जहाँ आपको ढेर सारी शायरियाँ और स्टेटस प्राप्त होंगे।
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omprakashs-stuff · 1 year ago
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कबीर जी ने गरीब दास जी को सतज्ञान दिया था
भगवान कबीर जी समय समय पर आकर अपनी प्यारी आत्माओं से मिलते हैं उन्हें सच्चा ज्ञान देते हैं। भगवान कबीर जी संत गरीबदास जी से मिले। कबीर परमेश्वर जी ने संत गरीबदास जी से कहा,
मैं रोवत हूं सृष्टि को, ये सृष्टि रोवे मोहे |
गरीबदास इस वियोग को, समझ न सकता कोये ||
इस वाणी में संत गरीबदास जी कह रहे हैं कि कबीर परमेश्वर जी ने कहा- हे गरीब दास! मैं दुनिया के लिए रोता हूं कि तुम सब मेरे बच्चे हो। मैं तुम्हारा बाप हूँ। आप यहाँ इस बुरे काल लोक में अपनी गलती के कारण आए हैं। काल तुम्हारा दुरुपयोग कर रहा है। आप यहाँ पीड़ित हैं। आप मेरे कहे अनुसार पूजा करें और अपने मूल स्थान सतलोक में चले जाएं, जहां कोई दुख नहीं है।
और, यह दुनिया मेरे लिए रोती है कि हे भगवान! आप सर्वशक्तिमान, निर्माता, सभी के पालनहार हैं। कृपया हमें खुशी दें। कृपया हमारे कष्टों को दूर करें। हम आपकी भक्ति, पूजा करते हैं।आप हमें दर्शन क्यों नहीं दे रहे हैं?
लेकिन, जब मैं उनके पास जाता हूं और उन्हें बताता हूं कि मैं भगवान हूं। फिर ईश्वर निराकार होने के इस निराधार विश्वास पर दृढ़ होकर मुझ पर विश्वास नहीं करते। इस काल ने हमारे बीच अज्ञानता की दीवार खींच दी है। इस अलगाव को कोई नहीं समझ सकता।
इस अलगाव को समझने के लिए एक तीसरी इकाई की जरूरत थी। वह तीसरी इकाई है सतगुरु, जो ईश्वर को अपनी आत्माओं से ��ोड़ता है। संत रामपाल जी महाराज जी आज एकमात्र सतगुरु हैं। वे स्वयं कबीर जी के अवतार हैं। वह वही आध्यात्मिक ज्ञान बताते हैं और उसी तरह पूजा का उपदेश देते हैं जैसे कबीर परमात्मा। इसका प्रमाण वह पवित्र कबीर सागर से भी देते हैं।
कबीर परमेश्वर जी की आराधना सभी प्रकार के कष्टों को दूर करती है। संत रामपाल जी कबीर जी की शास्त्र आधारित उपासना का तरीका बताते हैं। नतीजतन, उनके हजारों भक्त अंतिम चरण में भी कैंसर और एड्स जैसी घातक बीमारियों से ठीक हो चुके हैं। भूत और पितृ उनके भक्तों को नुकसान नहीं पहुंचा सकते। उनके हर प्रकार के कष्ट समाप्त हो जाते हैं। संत रामपाल जी से दीक्षा लेने से व्यक्ति की अकाल मृत्यु नहीं होती है। बस, भक्ति मर्यादाओं को निभाना अत्यधिक महत्वपूर्ण है।
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saathi · 1 year ago
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Tumblr को नेविगेट करने का एक नया तरीका
अगर आप वेब ब्राउज़र पर Tumblr का इस्तेमाल करते हैं, तो शायद पिछले महीने आपने देखा होगा कि हम आपके डैशबोर्ड पर एक बिल्कुल नए नेविगेशन को टेस्ट कर रहे हैं. बहुत सारे बड़े-बड़े बदलाव करने के बाद अब हमने वेब ब्राउज़र का इस्तेमाल करने वाले सभी लोगों के लिए इस नए डैशबोर्ड नेविगेशन को पेश करना शुरू कर दिया है. इस नई दुनिया में आपका स्वागत है. ये बहुत कुछ पुरानी दुनिया ज���सा ही है, बस एक अलग लेआउट में है.
हम ये क्यों कर रहे हैं? हम चाहते हैं कि सभी के लिए—नए और अनुभवी मुसाफ़िर दोनों के लिए—ये समझना और एक्सप्लोर करना आसान हो जाए कि Tumblr पर क्या चल रहा है.
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आइकन पर लेबल: पहले जब हम Tumblr पर कुछ नया जोड़ते थे, तो हम बस थोड़े से और स्पष्टीकरण के साथ अपने नेविगेशन में एक नया आइकन जोड़ देते थे. अब पता चला है कि कोई भी ऐसा बटन दबाना पसंद नहीं करता जिसके बारे में उसे पता ना हो कि वो क्या करता है. इसलिए अब जहाँ जगह होती है वहाँ नेविगेशन में टेक्स्ट लेबल शामिल कर दिए जाते हैं. इन्हें जोड़ने के बाद से हमने देखा है कि पहले के मुकाबले अब आप में से ज़्यादा लोग Tumblr के अनजान कोनों में जाने का जोखिम उठा रहे हैं. दिलेरी इसे कहते हैं!
किन चीज़ों को पहले से ही सुधार दिया गया है? टेस्टिंग दौर के दौरान लोगों से मिले फ़ीडबैक की मदद से हम शुरू में ही कुछ सुधार करने में कामयाब हो गए हैं. इनमें सेटिंग सबपेज (अकाउंट, डैशबोर्ड, वगैरह) को सेटिंग पेज की बाईं तरफ़ नेविगेशन में बड़ा हो सकने वाले आइटम में रखने के बजाय दाईं तरफ़ वापस लाना शामिल है; साथ ही, छोटे स्क्रीन पर मेसेजिंग विंडो से जुड़ी कुछ समस्याएँ सुलझाना; और आपके ब्लॉग तक जाना आसान बनाने के लिए अकाउंट सेक्शन को सुव्यवस्थित करना भी शामिल है.
इसके बाद क्या होने वाला है? हम इस नेविगेशन का एक सिमटने वाला वर्शन बनाने और आप में से जिन लोगों के पास बहुत बड़े स्क्रीन हैं उनके लिए स्क्रीन स्पेस के इस्तेमाल में सुधार करने पर गौर कर रहे हैं. हम आपके अकाउंट और साइडब्लॉग की पहुँच में सुधार करने पर भी काम कर रहे हैं.दोस्तों, अभी के लिए बस इतना ही. सवालों और सुझावों के लिए "फ़ीडबैक" श्रेणी का इस्तेमाल करके सहायता (सिर्फ़ EN) से संपर्क करें. कृपया तकनीकी समस्याओं के लिए सहायता फ़ॉर्म पर "बग या क्रैश की रिपोर्ट करें" श्रेणी चुनें. और, ज़्यादा अपडेट के लिए यहाँ @changes (EN) और हमारे स्थानीय ब्लॉग पर अपनी नज़र बनाए रखें.
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helputrust · 5 months ago
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लखनऊ, 27.06.2024 | हेल्प यू एजुकेशनल एंड चैरिटेबल ट्रस्ट और एमिटी इंस्टीट्यूट ऑफ एजुकेशन के संयुक्त तत्वावधान में बनेश्वर महादेव मंदिर, सेक्टर 21, इंदिरा नगर, लखनऊ में Unity in Diversity : Cultural Fest थीम के अंतर्गत सांस्कृतिक कार्यक्रम "संगम" का आयोजन किया गया, जिसमें प्रतिभागियों द्वारा विभिन्न सांस्कृतिक एवं जागरूकता कार्यक्रम, गायत्री मंत्र, डांस, सॉन्ग, नृत्य प्रतियोगिता, डुएट सोलो डांस, रोल प्ले, नुक्कड़ नाटक, गेम वर्ड असेंबल प्रस्तुत किए गए । "संगम" कार्यक्रम के सभी विजेता प्रतिभागियों तथा विश्व पर्यावरण दिवस पर हेल्प यू एजुकेशनल एंड चैरिटेबल ट्रस्ट द्वारा आयोजित “चित्रकला प्रतियोगिता” के विजेता प्रतिभागियों को कार्यक्रम में उपस्थित श्री ए. के. जायसवाल, सदस्य, आंतरिक सलाहकार समिति, हेल्प यू एजुकेशनल एंड चैरिटेबल ट्रस्ट द्वारा प्रतीक चिन्ह से सम्मानित किया गया |
कार्यक्रम का शुभारंभ बनेश्वर महादेव मंदिर से पंडित श्री बल्लू मिश्रा, एमिटी इंस्टीट्यूट ऑफ एजुकेशन की छात्राओं सुश्री दीक्षा, सुश्री शिवानी तथा प्रतिभागियों वानी, सृष्टि, मिताली, आयुषी, निशा और लवली द्वारा दीप प्रज्वलित कर किया गया ।
इस अवसर पर श्री ए. के. जायसवाल ने कहा कि, "आज का यह कार्यक्रम हमारे समाज के विकास और बच्चों के उज्ज्वल भविष्य के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है । हेल्प यू एजुकेशनल एंड चैरिटेबल ट्रस्ट और एमिटी यूनिवर्सिटी की दो छात्राएं, जिन्होंने अपने सामुदायिक कार्यक्रम के तहत यहां के बच्चों को नित्य नयी और ज्ञानवर्धक बातें सिखाईं, उनके प्रति हम अत्यंत आभारी हैं । इस प्रकार के कार्यक्रम बहुत उपयोगी हो सकते हैं और इन्हें बढ़ावा देने की अत्यंत आवश्यकता है । उन्होंने आगे कहा, "हम इन छात्राओं की सराहना करते हैं जिन्होंने बहुत मेहनत की है । हम उनसे अपेक्षा करते हैं कि वे समय-समय पर यहां आएं और जिन बच्चों को उन्होंने सिखाया है, उनकी प्रगति पर नजर रखें । हेल्प यू एजुकेशनल एंड चैरिटेबल ट्रस्ट की ओर से हम सभी का आभार प्रकट करते हैं  तथा यह आश्वासन देते हैं कि जब भी आप सभी को मार्गदर्शन या सहायता की आवश्यकता होगी, ट्रस्ट सदैव आपकी मदद करेगा । जितनी भी महिलाएं और बच्चे यहां आए हैं हम सभी का आभार व्यक्त करते हैं और उम्मीद करते हैं कि आप सभी ट्रस्ट के कार्यक्रमों में भाग लें और ऐसे कार्यों में बच्चों को शामिल करें । हमारे इन प्रयासों से ही हम अपने समाज को बेहतर बना सकते हैं और अपने बच्चों का भविष्य उज्ज्वल कर सकते हैं ।"
कार्यक्रम में वानी, सृष्टि, राज, अजीत, माही, काजल, कुहू, महिमा (लाडो), आस्था, श्रद्धा, राशि, कृष्णा, और वैभवी ने भाग लिया और अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन किया । कार्यक्रम में स्वच्छता एवं स्वास्थ्य पर आधारित एक नुक्कड़ नाटक का भी मंचन किया गया जिसमें प्रतिभागियों ने सभी से अपने चारों तरफ स्वच्छता बनाए रखने की अपील की जिससे उनका स्वास्थ्य बेहतर हो सके | कार्यक्रम में विजेता प्रतिभागियों का विवरण इस प्रकार है:
युगल नृत्य प्रदर्शन - गीत:  राधा कैसे न जले
1st पुरस्कार - राशि, कुहु तथा 2nd पुरस्कार – माही, काजल
एकल नृत्य प्रदर्शन - गीत:  मैंने पायल हैं छनकाई
1st पुरस्कार – वानी,
गीत: दिल से बंधी एक डोर
2nd पुरस्कार – वैभवी
गीत:  राधा रानी क्या लोगे
3rd पुरस्कार - महिमा (लाडो)
गायन प्रतियोगिता - गीत: कोई ना मिले तू मुझे मेरा ना कोई होके लागे (अपना बना ले पिया)
1st पुरस्कार – वानी
गीत: बमा बम बम लहरी
2nd पुरस्कार - राज
खेल (Word Assemble)
1st पुरस्कार - श्रद्धा, 2nd पुरस्कार - अजीत
विश्व पर्यावरण दिवस की ट्रॉफी
1st पुरस्कार - श्रद्धा, 2nd पुरस्कार - वाणी, 3rd पुरस्कार - आस्था, 4th पुरस्कार - सृष्टि तथा 5th पुरस्कार – वैभवी
इस अवसर पर अभिभावकगण एवं हेल्प यू एजुकेशनल एण्ड चैरिटेबल ट्रस्ट के स्वयंसेवक उपस्थित थे ।  
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somnathpall · 1 year ago
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प्रशन :- ओशो, क्या कुछ आत्माएं शरीर छोड़ने के बाद भटकती रह जाती हैं?
कुछ आत्माएं निश्चित ही शरीर छोड़ने के बाद एकदम से दूसरा शरीर ग्रहण नहीं कर पाती हैं। उसका कारण ? उसका कारण है। और उसका कारण शायद आपने कभी न सोचा होगा कि यह कारण हो सकता है।
दुनिया में अगर हम सारी आत्माओं को विभाजित करें, सारे व्यक्तित्वों को, तो वे तीन तरह के मालूम पड़ेंगे। एक तो अत्यंत निकृष्ट, अत्यंत हीन चित्त के लोग; एक अत्यंत उच्च, अत्यंत श्रेष्ठ, अत्यंत पवित्र किस्म के लोग; और फिर बीच की एक भीड़ जो दोनों का तालमेल है, जो बुरे और भले को मेल-मिलाकर चलती है।
जैसे कि अगर डमरू हम देखें, तो डमरू दोनों तरफ चौड़ा है और बीच में पतला होता है। डमरू को उलटा कर लें। दोनों तरफ पतला और बीच में चौड़ा हो जाए, तो हम दुनिया की स्थिति समझ लेंगे। दोनों तरफ छोर और बीच में मोटा - डमरू उलटा । इन छोरों पर थोड़ी-सी आत्माएं हैं। निकृष्टतम आत्माओं को भी मुश्किल हो जाती है नया शरीर खोजने में और श्रेष्ठ आत्माओं को भी मुश्किल हो जाती है नया शरीर खोजने में। बीच की आत्माओं को जरा भी देर नहीं लगती। यहां मरे नहीं, वहां नई यात्रा शुरू हो गई। उसके कारण हैं। उसका कारण यह है कि साधारण, मीडियाकर, मध्य की जो आत्माएं हैं, उनके योग्य गर्भ सदा उपलब्ध रहते हैं।
मैं आपको कहना चाहूंगा कि जैसे ही आदमी मरता है, मरते ही उसके सामने सैकड़ों लोग संभोग करते हुए, सैकड़ों जोड़े दिखाई पड़ते हैं, मरते ही । और जिस जोड़े के प्रति वह आकर्षित हो जाता है, वहां गर्भ में प्रवेश कर जाता है। लेकिन बहुत श्रेष्ठ आत्माएं साधारण गर्भ में प्रवेश नहीं कर सकतीं। उनके लिए असाधारण गर्भ की जरूरत है, जहां असाधारण संभावनाएं व्यक्तित्व की मिल सकें। तो श्रेष्ठ आत्माओं को रुक जाना पड़ता है। निकृष्ट आत्माओं को भी रुक जाना पड़ता है, क्योंकि उनके योग्य भी गर्भ नहीं मिलता। क्योंकि उनके योग्य मतलब अत्यंत अयोग्य गर्भ मिलना चाहिए, वह भी साधारण नहीं है। तो श्रेष्ठ और निकृष्ट, दोनों को रुक जाना पड़ता है। साधारण जन एकदम जन्म ले लेता है, उसके लिए कोई कठिनाई नहीं है। उसके लिए निरंतर बाजार में गर्भ उपलब्ध हैं। वह तत्काल किसी गर्भ के प्रति आकर्षित हो जाता है।
सुबह मैंने बारदो की बात की थी। बारदो की प्रक्रिया में मरते हुए आदमी को यह भी कहा जाता है कि अभी तुझे सैकड़ों जोड़े भोग करते हुए, संभोग करते हुए दिखाई पड़ेंगे। तू जरा सोचकर, जरा रुककर, जरा ठहरकर गर्भ में प्रवेश करना। जल्दी मत करना, ठहर, थोड़ा ठहर ! थोड़ा ठहरकर किसी गर्भ में जाना। एकदम मत चले जाना।
जैसे कोई आदमी बाजार में खरीदने गया है सामान। पहली दुकान पर ही प्रवेश कर जाता है। शो रूम में जो भी लटका हुआ दिखाई पड़ जाता है, वही आकर्षित कर लेता है। लेकिन बुद्धिमान ग्राहक दस दुकान भी देखता है उलट-पलट करता है, भाव-ताव करता है, खोजबीन करता है, , फिर निर्णय करता है। नासमझ जल्दी से पहले ही जो उसकी आंख में पड़ जाती है चीज, वहीं चला जाता है।
तो बारदो की प्रक्रिया में मरते हुए आदमी से कहा जाता है कि सावधान! जल्दी मत करना। जल्दी मत करना। खोजना, सोचना, विचारना, जल्दी मत करना। क्योंकि सैकड़ों लोग निरंतर संभोग में हैं। सैकड़ों जोड़े उसे स्पष्ट दिखाई पड़ते हैं। और जो जोड़ा उसे आकर्षित कर लेता है - और वह जोड़ा उसे आकर्षित करता है जो उसके योग्य गर्भ देने के लिए क्षमतावान होता है।
तो श्रेष्ठ और निकृष्ट आत्माएं रुक जाती हैं। उनके लिए प्रतीक्षा करनी पड़ती है कि जब उनके योग्य गर्भ मिले। निकृष्ट आत्माओं को उतना निकृष्ट गर्भ दिखाई नहीं पड़ता, जहां वे अपनी संभावनाएं पूरी कर सकें। श्रेष्ठ आत्मा को भी नहीं दिखाई पड़ता !
निकृष्ट आत्माएं जो रुक जाती हैं, उनको हम प्रेत कहते हैं। और श्रेष्ठ आत्माएं जो रुक जाती हैं, उनको हम देवता कहते हैं। देवता का अर्थ है, वे श्रेष्ठ आत्माएं जो रुक गई। और प्रेत का अर्थ, भूत का अर्थ है, वे आत्माएं जो निकृष्ट होने के कारण रुक गई। साधारण जन के लिए निरंतर गर्भ उपलब्ध है। वह तत्काल मरा और प्रवेश कर जाता है। क्षण भर की भी देरी नहीं लगती। यहां समाप्त नहीं हुआ, और वहां वह प्रवेश करने लगता है।
जो आत्माएं रुक जाती हैं, क्या वे किसी के शरीर में प्रवेश करके उसे परेशान कर सकती हैं?
इसकी भी संभावना है। क्योंकि वे आत्माएं, जिनको शरीर नहीं मिलता, शरीर के बिना बहुत पीड़ित होने लगती हैं । निकृष्ट आत्माएं शरीर के बिना बहुत पीड़ित होने लगती हैं। श्रेष्ठ आत्माएं शरीर के बिना अत्यंत प्रफुल्लित हो जाती हैं। यह फर्क ध्यान में रखना चाहिए। क्योंकि श्रेष्ठ आत्मा शरीर को निरंतर ही किसी न किसी रूप में बंधन अनुभव करती है और चाहती है कि इतनी हलकी हो जाए कि शरीर का बोझ भी न रह जाए। अंततः वह शरीर से भी मुक्त हो जाना चाहती है, क्योंकि शरीर भी एक कारागृह मालूम होता है। अंततः उसे लगता है कि शरीर भी कुछ ऐसे काम करवा लेता है, जो न करने योग्य हैं। इसलिए वह शरीर के लिए बहुत मोहग्रस्त नहीं होता। निकृष्ट आत्मा शरीर के बिना एक क्षण नहीं जी सकती है। क्योंकि उसका सारा रस, सारा सुख शरीर से ही बंधा होता है।
शरीर के बिना कुछ आनंद लिए जा सकते हैं। जैसे समझें, एक विचारक है। तो विचारक का जो आनंद है, वह शरीर के बिना भी उपलब्ध हो जाता है। क्योंकि विचार का शरीर से कोई संबंध नहीं है। तो अगर एक विचारक की आत्मा भटक जाए, शरीर न मिले, तो उस आत्मा को शरीर लेने की कोई तीव्रता नहीं होती, क्योंकि विचार का आनंद तब भी लिया जा सकता है। लेकिन समझो कि एक भोजन करने में रस लेने वाला आदमी है, तो शरीर के बिना भोजन करने का रस असंभव है। तो उसके प्राण बड़े छटपटाने लगते हैं कि वह कैसे प्रवेश कर जाए। और उसके योग्य गर्भ न मिलता हो, तो वह किसी कमजोर आत्मा में— कमजोर आत्मा से मतलब है ऐसी आत्मा, जो अपने शरीर की मालिक नहीं है—उस शरीर में वह प्रवेश कर सकता है, किसी कमजोर आत्मा की भय की स्थिति में।
और ध्यान रहे, भय का एक बहुत गहरा अर्थ है। भय का अर्थ है जो सिकोड़ दे। जब आप भयभीत होते हैं, तो आप सिकुड़ जाते हैं। जब आप प्रफुल्लित होते हैं, तो आप फैल जाते हैं। जब कोई व्यक्ति भयभीत होता है, तो उसकी आत्मा सिकुड़ जाती है और उसके शरीर में बहुत जगह छूट जाती है, जहां कोई दूसरी आत्मा प्रवेश कर सकती है। एक नहीं बहुत आत्माएं भी एकदम से प्रवेश कर सकती हैं। इसलिए भय की स्थिति में कोई आत्मा किसी शरीर में प्रवेश कर सकती है। और करने का कुल कारण इतना होता है कि उसके जो रस हैं, वे शरीर से बंधे हैं। वे दूसरे के शरीर मैं प्रवेश करके लेने की वह कोशिश करती है। इसकी पूरी संभावना है, इसके पूरे तथ्य हैं, इसकी पूरी वास्तविकता है। इसका यह मतलब हुआ कि एक तो भयभीत व्यक्ति हमेशा खतरे में है। जो भयभीत है, उसे खतरा हो सकता है। क्योंकि वह सिकुड़ी हुई हालत में होता है। वह अपने मकान में, अपने घर के एक कमरे में रहता है, बाकी कमरे उसके खाली पड़े रहते हैं। बाकी कमरों में दूसरे लोग मेहमान बन सकते हैं।
कभी-कभी श्रेष्ठ आत्माएं भी शरीर में प्रवेश करती हैं, कभी-कभी। लेकिन उनका प्रवेश बहुत दूसरे कारणों से होता है। कुछ कृत्य हैं करुणा के, जो शरीर के बिना नहीं किए जा सकते। जैसे समझें, एक घर में आग लगी है, एक घर में आग लग गई है। और कोई उस घर में आग को बचाने को नहीं जा रहा है। भीड़ बाहर घिरी खड़ी है, लेकिन किसी की हिम्मत नहीं होती कि आग में बढ़ जाए। और तब अचानक एक आदमी बढ़ जाता है। और वह आदमी बाद में बताता है कि मुझे समझ में नहीं आया कि मैं किस ताकत के प्रभाव में बढ़ गया। मेरी तो हिम्मत न थी और वह बढ़ जाता है, और आग बुझाने लगता है, और आग बुझा लेता है, और किसी को बचाकर बाहर निकल आता है। और वह आदमी खुद कहता है कि ऐसा लगता है कि मेरे हाथ की बात नहीं है यह, कुछ किसी और ने मुझसे करवा लिया है। ऐसी किसी घड़ी में ��हां कि किसी शुभ कार्य के लिए आदमी हिम्मत न जुटा पाता हो, कोई श्रेष्ठ आत्मा भी प्रवेश कर सकती है। लेकिन ये घटनाएं कम होती हैं।
निकृष्ट आत्मा निरंतर शरीर के लिए आतुर रहती है। उसके सारे रस उनसे बंधे हैं और यह बात भी ध्यान में रख लेनी चाहिए कि मध्य की आत्माओं के लिए कोई बाधा नहीं है, उनके लिए निरंतर गर्भ उपलब्ध हैं।
इसीलिए श्रेष्ठ आत्माएं कभी-कभी सैकड़ों वर्षों के बाद ही पैदा हो पाती हैं। और यह भी जानकर हैरानी होगी कि जब श्रेष्ठ आत्माएं पैदा होती हैं, तो करीब-करीब पूरी पृथ्वी पर श्रेष्ठ आत्माएं एक साथ पैदा हो जाती हैं। जैसे कि बुद्ध और महावीर भारत में पैदा हुए आज से पच्चीस सौ वर्ष पहले। बुद्ध, महावीर दोनों बिहार में पैदा हुए। और उसी समय बिहार में छह और अदभुत विचारक थे। उनका नाम शेष नहीं रह सका, क्योंकि उन्होंने कोई अनुयायी नहीं बनाए और कोई कारण न था, वे बुद्ध और महावीर की ही हैसियत के लोग थे। लेकिन उन्होंने बड़े हिम्मत का प्रयोग किया। उन्होंने कोई अनुयायी नहीं बनाए। उनमें एक आदमी था प्रबुद्ध कात्यायन, एक आदमी था अजित सकंबल, एक था संजय वेलट्ठीपुत्त, एक था मक्खली गोशाल, और लोग थे। उस समय ठीक बिहार में एक साथ आठ आदमी एक ही प्रतिभा के, एक ही क्षमता के पैदा हो गए। और सिर्फ बिहार में, एक छोटे-से इलाके में सारी दुनिया के। ये आठों आत्माएं बहुत देर से प्रतीक्षारत थीं और मौका मिल सका तो एकदम से भी मिल गया।
और अक्सर ऐसा होता है कि एक श्रृंखला होती है अच्छे की भी और बुरे की भी उसी समय यूनान में सुकरात पैदा हुआ थोड़े समय के बाद, अरस्तू पैदा हुआ, प्लेटो पैदा हुआ। उसी समय चीन में कनफ्यूशियस पैदा हुआ, लाओत्से पैदा हुआ, मेन्शियस पैदा हुआ, च्वांगत्से पैदा उसी समय सारी दुनिया के कोने-कोने में कुछ अद्भुत लोग एकदम से पैदा हुए। सारा पृथ्वी कुछ अदभुत लोगों से भर गई। ऐसा प्रतीत होता है कि ये सारे लोग प्रतीक्षारत थे, प्रतीक्षारत थीं उनकी आत्माएं: और एक मौका आया और गर्भ उपलब्ध हो सक���, और जब गर्भ उपलब्ध होने का मौका आता है, तो बहुत से गर्भ एक साथ उपलब्ध हो जाते हैं। जैसे कि फूल खिलता है एक फूल का मौसम आया है, एक फूल खिला; और आप पाते हैं कि दूसरा खिला और तीसरा खिला फूल प्रतीक्षा कर रहे थे और खिल गए। सुबह हुई, सूरज निकलने की प्रतीक्षा थी और कुछ फूल खिलने शुरू हुए, कलियां टूटी, इधर फूल खिला, उधर फूल खिला । रात भर से फूल प्रतीक्षा कर रहे थे, सूरज निकला और फूल खिल गए।
ठीक ऐसा ही निकृष्ट आत्माओं के लिए भी होता है। जब पृथ्वी पर उनके लिए योग्य वातावरण मिलता है, तो एक साथ एक श्रृंखला में वे पैदा हो जाते हैं। जैसे हमारे इस युग ने भी हिटलर और स्टेलिन और माओ जैसे लोग एकदम से पैदा किए। एकदम से ऐसे खतरनाक लोग पैदा हुए, जिनको हजारों साल तक प्रतीक्षा करनी पड़ी होगी। क्योंकि स्टैलिन या हिटलर या माओ जैसे आदमियों को भी जल्दी पैदा नहीं किया जा सकता.....
अकेले स्टैलिन ने रूस में कोई साठ लाख लोगों की हत्या की अकेले एक आदमी ने और हिटलर ने अकेले एक आदमी ने कोई एक करोड़ लोगों की हत्या की हिटलर ने हत्या के ऐसे साधन ईजाद किए, जैसे पृथ्वी पर कभी किसी ने नहीं किए थे। हिटलर ने इतनी सामूहिक हत्या की, जैसी कभी किसी आदमी ने नहीं की थी। तैमूरलंग और चंगीजखान सब बचकाने सिद्ध हो गए।
हिटलर ने गैस चेंबर्स बनाए उसने कहा, एक-एक आदमी को मारना तो बहुत महंगा है। एक-एक आदमी को मारो, तो गोली बहुत महंगी पड़ती है। एक-एक आदमी को मारना महंगा है, एक-एक आदमी को कब्र में दफनाना महंगा है। एक-एक आदमी की लाश को उठाकर गांव के बाहर फेंकना बहुत महंगा है। तो कलेक्टिव मर्डर, सामूहिक हत्या कैसे की जाए!
लेकिन सामूहिक हत्या भी करने के उपाय हैं। अभी अहमदाबाद में कर दी या कहीं और की, लेकिन ये बहुत महंगे उपाय हैं। एक-एक आदमी को मारो, बहुत तकलीफ होती है, बहुत परेशानी होती है, और बहुत देर भी लगती है। ऐसे एक-एक को मारोगे, तो काम ही नहीं चल सकता। इधर एक मारो, उधर एक पैदा हो जाता है। ऐसे मारने से कोई फायदा नहीं होता।
तो हिटलर ने गैस चैंबर बनाए। एक-एक चैंबर में पांच-पांच हजार लोगों को इकट्ठा खड़ा करके बिजली का बटन दबाकर एकदम वाष्पीभूत किया जा सकता है। बस पांच हजार लोग खड़े किए, बटन दवा, वे गए। एकदम गए, इसके बाद हॉल खाली। वे गैस बन गए। इतनी तेज चारों तरफ से बिजली गई कि वे गैस हो गए न उनकी कब्र बनानी पड़ी, न उनको कहीं मारकर खून गिराना पड़ा। खून-वून गिराने का जुर्म हिटलर पर कोई नहीं लगा सकता ! अगर पुरानी किताबों से भगवान चलता होगा, तो हिटलर को बिलकुल निर्दोष पाएगा। उसने खून किसी का गिराया नहीं, किसी की छाती में छुरा मारा नहीं, उसने ऐसी तरकीब निकाली जिसका कहीं वर्णन ही नहीं था। उसने बिलकुल नई तरकीब निकाली, गैस चैंबर जिसमें आदमी को खड़ा करो, बिजली की गर्मी तेज करो, एकदम वाष्पीभूत हो जाए, एकदम हवा हो जाए, बात खतम हो गई। उस आदमी का फिर नामोल्लेख भी खोजना मुश्किल है, हड्डी खोजना मुश्किल है, उस आदमी की चमड़ी खोजना मुश्किल है। वह गया। , पहली दफा हिटलर ने इस तरह आदमी उड़ाए जैसे पानी को गर्म करके भाप बनाया जाता है। पानी कहां गया, पता लगाना मुश्किल है। ऐसा खो गया आदमी। ऐसे गैस चैंबर बनाकर उसने अंदाजन एक करोड़ आदमियों को गैस चेंबर में उड़ा दिया।
ऐसे आदमी को जल्दी जन्म मिलना बड़ा मुश्किल है। और अच्छा ही है कि नहीं मिलता। नहीं तो बहुत कठिनाई हो जाए। अब हिटलर को बहुत प्रतीक्षा करनी पड़ेगी फिर बहुत समय लग सकता है अब हिटलर को दोबारा वापस लौटने के लिए। बहुत कठिन मामला है। क्योंकि इतना निकृष्ट गर्भ अब फिर से उपलब्ध हो। और गर्भ उपलब्ध होने का मतलब क्या है? गर्भ उपलब्ध होने का मतलब है उस मां और पिता की लंबी श्रृंखला दुष्टता का पोषण कर रही है-लंबी श्रृंखला । एकाध जीवन में कोई आदमी इतनी दुष्टता पैदा नहीं कर सकता कि उसका गर्भ हिटलर के योग्य हो जाए। एक आदमी कितनी दुष्टता करेगा? एक आदमी कितनी हत्याएं करेगा ? हिटलर जैसा बेटा पैदा करने के लिए, हिटलर जैसा बेटा किसी को अपना मां-बाप चुने इसके लिए सैकड़ों, हजारों, लाखों वर्षों की लंबी कठोरता की परंपरा ही कारगर हो सकती है। यानी सैकड़ों, हजारों वर्ष तक कोई आदमी बूचड़खाने में काम करते ही रहे हों, तब नस्ल इस योग्य हो पाएगी, बीजाणु इस योग्य हो पाएगा कि हिटलर जैसा बेटा उसको पसंद करे और उसमें प्रवेश करे।
ठीक वैसा ही भली आत्मा के लिए भी है। लेकिन सामान्य आत्मा के लिए कोई कठिनाई नहीं है। उसके लिए रोज गर्भ उपलब्ध है। क्योंकि उसकी इतनी भीड़ है और इतने गर्भ चारों तरफ उसके लिए तैयार हैं; और उसकी कोई विशेष, कोई विशेष उसकी मांगें नहीं हैं। उसकी मांगें बड़ी साधारण हैं। वही खाने की, पीने की, पैसा कमाने की, काम-भोग की, इज्जत की, आदर की, पद की, मिनिस्टर हो जाने की, इस तरह की सामान्य इच्छाएं हैं। इस तरह की इच्छाओं वाला गर्भ कहीं भी मिल सकता है, क्योंकि इतनी साधारण कामनाएं हैं कि सभी की हैं। हर मां-बाप ऐसे बेटे को चुनाव के लिए अवसर दे सकता है।
लेकिन अब किसी आदमी को एक करोड़ आदमी मारने हैं, तो ऐसी आत्माओं को प्रतीक्षा करनी पड़ेगी ! और यदि किसी आदमी को ऐसी पवित्रता से जीना है कि उसके पैर का दबाव भी पृथ्वी पर न पड़े, इतने प्रेम से जीना है कि उसका प्रेम भी किसी को कष्ट न दे पाए, उसका प्रेम भी किसी के लिए बोझिल न हो जाए, तो फिर ऐसी आत्माओं को भी प्रतीक्षा करनी पड़ सकती है।
(मैं मृत्यु सिखाता हूं )
||osho||
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mera-mann-kehne-laga · 2 years ago
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भरी भीड़ में सहसा मेरी आंखे तुम्हारी आंखों से मिली
और हमारे दर्मियाँ कुछ अनकहा, अनसुना गुज़रा।
मैंने तुम्हारी आंखों में कुछ आश्चर्य देखा,
फिर ना जाने क्यों मैंने अपनी निगाहें फेर लीं।
तुम्हारी ओर देखा तो तुम अपने बालों में
अपना हाथ फेर रहे थे,
नीचे देखकर मुस्कुराए।
तुम्हें इस क़दर मुस्कुराते देख मेरे भीतर
कोई बरसों से बंधी गांठ खुल गई,
ऐसा महसूस हुआ कि मेरे मन के
पिंजरे में कैद कोई पंछी मुक्त हो गया हो,
नीले आकाश में उड़ान भरने लगा हो।
मेरी धड़कनें बढ़ने लगीं जब मैंने तुम्ह��� अचानक मेरी ओर बढ़ता देखा।
तुम मेरे सामने आके खड़े हो गए।
तुम्हारी आंखें...........
तुम्हारी आंखें कुछ सवाल कर रही थीं,
मेरी आंखों में कुछ ढूंढने की चेष्टा कर रही थीं।
लेकिन मैंने इस प्रयत्न को अनदेखा कर दिया,
मैं तो तुम्हारी भूरी निगाहों में बेसुध डूब चुकी थी।
खो चुकी थी।
मुझे उस सम्मोहन से उभरना नहीं था। कभी नहीं।
लेकिन वो इसका ना ही सही समय था, ना ही सही स्थान।
मैं किसी तरह उस गहराई से ऊपर तैरकर सतह तक पहुंची, अपने होश संभाले,
और तुमसे नज़रें चुरा लीं।
तुम्हे भी कुछ होश आया, और तुमने अपने बालों को फिर सहलाया।
मुझे अपनी जिंदगी पुकार रही थी और तुम्हें अपनी।
मैं और तुम बिना कुछ कहे अपने रास्ते चल दिए।
घंटे दिनो में बदल गए, दिन हफ्तो में, हफ्ते महीनो में और महीने सालों में,
फिर कभी हमारी मुलाकात नहीं हुई,
हमारे रास्ते नहीं मिले।
हम अजनबी तो थे,
मगर तुम्हारे वो नैन
मुझे अपनी आत्मा से भी ज़्यादा अपने लगते हैं। उन्हें मैं खुद से ज़्यादा पहचानती हूं, चाहती हूं, जानती‌ हूं।
हम जुदा होने को ही मिले थे।
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prince-kumar · 1 year ago
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🎋कबीर परमेश्वर चारों युगों में आते हैं।🎋
सतयुग में सतसुकृत कह टेरा, त्रेता नाम मुनिंन्द्र मेरा। द्वापर में करुणामय कहाया कलयुग नाम कबीर धराया।।
इस वाणी में कबीर परमेश्वर ने कहा है कि, में चारों युगों में पृथ्वी पर आता हूं, सतयुग में सतसुकृत नाम से, त्रेतायुग में मुनिनंद्र, द्वापरयुग में करुणामय तथा कलयुग में कबीर नाम से आता हूं।
जिस परमात्मा को हम निराकार मान रहे थे वह परमात्मा साकार है तथा उसका नाम कबीर है। जिसका प्रमाण सद्ग्रंथों के इन मंत्रों में है 👇👇
यजुर्वेद अध्याय 1 मंत्र 15 तथा अध्याय 5 मंत्र 1 में लिखा है कि
"अग्ने: तनूर अ��ि"विष्णवे त्वा सोमस्य तनूर असि" इस मंत्र में दो बार वेद गवाही दे रहा है कि वह सर्वव्यापक, सर्व का पालनहार परमात्मा सशरीर है, साकार है।
तथा
यजुर्वेद अध्याय 5 मंत्र 32 में प्रमाण है कि
"कविरंघारि: असि, बम्भारी: असि स्वज्योति ऋतधामा असि" अर्थात कबीर परमेश्वर पापों का शत्रु यानि सर्व पापों से मुक्त करवाकर, सर्व बंधनों से छुड़वाता है। वह स्वप्रकाशित सशरीर है और सतलोक में रहता है।
ऋग्वेद मंडल 9 सूक्त 93 मंत्र 2,
ऋग्वेद मंडल 10 सूक्त 4 मंत्र 3,
यजुर्वेद अध्याय 40 मंत्र 8 में प्रमाण है कि, पूर्ण परमात्मा कभी माता के गर्भ से जन्म नहीं लेता।
ऋग्वेद मंडल 9 सूक्त 1 मंत्र 9 में प्रमाण है कि,
जब पूर्ण परमात्मा पृथ्वी पर शिशु रुप धारण करके पृथ्वी पर प्रकट होता है,उस समय उसकी परवरिश की लीला कुंवारी गाय के दूध से होती है।
ऋग्वेद मण्डल 9 सूक्त 96
मंत्र 17 में कहा है कि कविर्देव शिशु रूप धारण कर लेता है। लीला करता हुआ बड़ा होता है। कवियों की तरह आचरण करता हुआ कविताओं द्वारा तत्वज्ञान वर्णन करने के कारण कवि की पदवी प्राप्त करता है अर्थात् उसे ऋषि, संत व कवि कहने लग जाते हैं, वास्तव में वह पूर्ण परमात्मा कविर् ही है। उसके द्वारा रची अमृतवाणी कबीर वाणी (कविर्वाणी) कही जाती है, जो भक्तों के लिए सुखदाई होती है। 
पूर्ण परमात्मा कविर्देव (कबीर) चारों युगों में पृथ्वी पर कभी भी कहीं भी प्रकट हो जाते हैं। अच्छी आत्माओं को मिलते हैं।
अपना तत्वज्ञान दोहों, शब्दों तथा कविताओं द्वारा बोलकर सुनाते हैं।
ऐसे ही कुछ महापुरुषों को कलयुग में मिले। जो इस प्रकार है,👇👇👇
आदरणीय संत गरीब दास जी महाराज को सन् 1727 में 10 वर्ष की आयु में गांव छुड़ानी के नला नामक स्थान पर कबीर परमेश्वर जिंदा महात्मा के वेश में मिले। तत्वज्ञान से परिचित कराकर सतलोक दर्शन करवाकर साक्षी बनाया।
अजब नगर में ले गए, हमको सतगुरु आन। झिलके बिम्ब अगाध गति, सूते चादर तान।।
"अनंत कोटि ब्रह्माण्ड का एक रति नहीं भार।
सतगुरु पुरुष कबीर है कुल के सिरजन हार।।
आदरणीय धर्मदास जी को बांधवगढ़ मध्यप्रदेश वाले को पूर्ण परमात्मा कबीर जी मथुरा में जिंदा महात्मा के रूप में मिले, सत्य ज्ञान से परिचित कराया, सतलोक दिखाकर साक्षी बनाया।
धर्मदास जी ने कहा है कि,
आज मोहे दर्शन दियो जी कबीर, सतलोक से चलकर आए, काटन जम की जंजीर।।
रामानंद जी को कबीर परमेश्वर काशी में 104 वर्ष की आयु में मिले। सत्य ज्ञान समझाकर, सतलोक दिखाया।
रामानंद जी ने अपनी अमरवाणी में बताया है कि,
दोहूं ठौर है एक तू, भया एक से दोय।
गरीबदास हम कारने, आए हो मग जोय।।
तुम साहेब तुम संत हो, तुम सतगुरु तुम हंस।
गरीबदास तव रुप बिन और न दूजा अंश।।
बोलत रामानंद जी सुनो कबीर करतार,
गरीबदास सब रुप में,तुम ही बोलनहार।।
मलूक दास जी को 42 वर्ष की आयु में कबीर परमेश्वर मिले। सत्य ज्ञान समझाया, तब मलूक दास जी ने अपनी अमरवाणी में कहा था कि,
जपो रे मन परमेश्वर नाम कबीर।
चार दाग से सतगुरु न्यारा, अजरो अमर शरीर ।
दास मलूक सलूक कहत हैं, खोजो खसम कबीर।।
नानक देव जी को कबीर परमेश्वर बेई नदी के तट पर जिंदा महात्मा के वेश में मिले। सत्य ज्ञान और सतलोक दिखाया तब नानक देव जी ने कहा था कि,
फाई सुरत मलुकि वेश ऐ ठगवाड़ा ठगी देश।
खरा सियाणा बहुता भार, धाणक रुप रहा करतार।।
दादू साहेब जी को कबीर परमेश्वर मिले, तत्वज्ञान कराया। सत्य ज्ञान से परिचित होकर दादू साहेब ने कहा है कि,
अनंत कोटि ब्रह्माण्ड का एक रति नहीं भार।
सतगुरु पुरुष कबीर हैं, कुल के सिरजन हार।।
इसके अलावा मीरा बाई, अब्राहिम अधम सुल्तान, सिकंदर लोधी, रविदास जी, रंका बंका, नल नील, सेउ समन जैसी अनेकों आत्माओं को मिले।
सर्व बुद्धिजीवी समाज से निवेदन है कि, जिसे हम एक कवि और संत मान रहे थे, वह तो पूर्ण परमात्मा है। उपरोक्त वाणीयों तथा प्रमाणों से भी यहीं सिद्ध होता है। हमारे सदग्रंथो में ऐसे एक नहीं कई प्रमाण है। अपनी शंका दूर करने के लिए आप जगतगुरु तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज जी के आध्यात्मिक सत्संग अवश्य देखें, संत रामपाल जी महाराज जी सर्व धर्मों के पवित्र सदग्रंथो में कबीर साहेब के पूर्ण परमात्मा होने के अनेकों प्रमाण दिखा कर सतभक्ति प्रदान कर रहे हैं।
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dasmp89 · 1 year ago
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🧩गुरु-शिष्य परंपरा बनाए रखने के लिए कबीर साहेब ने रामानन्द जी को गुरू धारण किया
ऋषि रामानंद जी का जीव सतयुग में विद्याधर ब्राह्मण था जिसे परमेश्वर सतसुकृत नाम से मिले थे। त्रेता युग में रामानन्द जी का जीव वेदविज्ञ नामक ऋषि था जिसको परमेश्वर मुनींद्र ऋषि के रूप में मिले थे। दोनों जन्मों में यह नि:संतान थे। परमात्मा इनको शिशु रूप में मिले, उस समय इन्होंने परमेश्वर को पुत्रवत पाला तथा प्यार किया था। उसी पुण्य के कारण यह आत्मा परमात्मा को चाहने वाली थी।
कलयुग में भी इनका परमेश्वर के प्रति अटूट विश्वास था।
स्वामी रामानंद जी अपने समय के सुप्रसिद्ध की विद्वान कहे जाते थे। वह द्रविड़ से काशी नगर में वेद व गीता ज्ञान के प्रचार हेतु आए थे।
स्वामी रामानंद जी ने 1400 ऋषि शिष्य बना रखे थे। परमेश्वर कबीर जी ने अपने नियमानुसार रामानंद स्वामी को शरण में लेना था।
गरीब- जो जन हमरी शरण है, उसका हूँ मैं दास।
गेल-गेल लाग्या फिरू, जब तक धरती आकाश।।
गोता मारू स्वर्ग में, जा बैठू पाताल।
गरीबदास ढूंढत फिरु अपने ��ीरे मोती लाल।।
रामानन्द जी प्रतिदिन सूर्योदय से पूर्व गंगा नदी के तट पर बने पंचगंगा घाट पर स्नान करने जाते थे। 5 वर्षीय कबीर परमेश्वर ने ढाई वर्ष के बच्चे का रूप धारण किया व लीला करके रामानन्द को गुरू बनाकर उनका उद्धार किया।
गरीब- ज्यों बच्छा गऊ की नजर में, यूं साई कूं संत।
भक्तों के पीछे फिरे, भक्त वच्छल भगवंत।।
जब कबीर परमेश्वर ने स्वामी रामानंद जी को सतलोक के दर्शन कराए थे तब स्वामी रामानंद की आत्मा को आंखों देखकर दृढ़ विश्वास हुआ कि कबीर ही परमात्मा है। जिसका चित्रार्थ गरीब दास जी महाराज जी ने अपनी वाणी किया है–
बोलत रामानंद जी सुन कबीर करतार।
गरीबदास सब रूप में, तुमही बोलनहार॥
दोहु ठोर है एक तू, भया एक से दोय।
गरीबदास हम कारणें, उतरे हो मग जोय॥
तुम साहेब तुम संत हो, तुम सतगुरु तुम हंस। गरीबदास तुम रूप बिन और न दूजा अंस॥
तुम स्वामी मैं बाल बुद्धि, भर्म-कर्म किये नाश। गरीबदास निज ब्रह्म तुम, हमरे दृढ़ विश्वास॥
कबीर परमेश्वर ने स्वामी रामानंद जी को गुरु बना कर न केवल उनका उद्धार किया बल्कि उनकी जातिवादी सोच का भी नाश किया क्योंकि किसी भी प्रकार के जाति धर्म, ऊंच नीच का भेदभाव रखने वाला व्यक्ति सतलोक नहीं जा सकता।
साथ ही कबीर साहेब ने गुरु शिष्य परम्परा का निर्वाह इसलिए किया कि कलयुग कोई पाखण्डी गुरु यह नहीं कह सके कि गुरु बनाने की कोई आवश्यकता नहीं, कबीर साहेब ने कौनसा गुरु बनाया था।
इसलिए कबीर साहेब ने गुरु बनाया तथा यह बताया कि:-
गुरु बिन माला फेरते, गुरु बिन देते दान। गुरु बिन दोनों निष्फल है, चाहे पूछो वेद पुराण।।
राम कृष्ण से कौन बड़ा, उन्हों भी गुरु कीन्ह। तीन लोक के वे धणी, गुरु आगे आधीन।।
गुरु बड़े गोविंद से, मन में देख विचार। हरि सुमरे सो रह गए, गुरु सुमरे होय पार।।
वर्तमान में संत रामपाल जी महाराज पूर्ण गुरु/तत्वदर्शी संत हैं तथा कबीर साहेब के अवतार हैं। उनसे नाम दीक्षा लेकर अपने जीव का कल्याण कराये।
#KabirPrakatDiwas
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rush2crush · 2 years ago
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पिंजरे का परिंदा
मेरे घर बचपन में एक पंछी आया था जिसे घर के सभी लोग प्यार से मिठ्ठू तोता कहकर बुलाते थे। मेरी दीदी को तोता देते हुए पिता जी उससे बोले "देखो बेटा! काफ़ी मोल भाव करने के बाद बाज़ार से यह तोता खरीद कर लाया हूं। इस बार अगर यह तोता पिंजरे से उड़ा तो मैं फिर कभी भी नहीं लाऊंगा। भला गुड़िया दीदी को इन सब बातों से क्या लेना देना था । वह तो सिर्फ मिठ्ठू के साथ खेलने में व्यस्त थी,लेकिन मां और घर के सभी सदस्य पिता जी की बातों को समझ रहे थे इसलिए इस बार एक नया पिंजरा भी मंगवा कर रख लिया गया था। तोता का पिंजरा इतना प्यारा और अनोखा लग रहा था जिसे देखकर मेरी आंखें भी खुशी से चमक रही थी। घर के सभी लोग उसे स्नेह से पालने लगे और उसका ख्याल भी रखा जाने लगा । मिठ्ठू को समय पर पानी,फल,मिर्च और खाना देना घर के सभी लोगों की जिम्मेवारी बन गई थी। गुड़िया दीदी हर रोज मिठ्ठू को देखकर सोती थी और उसे जागने के बाद दिन भर निहारा करती थी। ऐसा इसलिए क्योंकि मिठ्ठू तोता अब गुड़िया कटोरे कटोरे बोलने लगा था। हर रोज मिठ्ठू तोता को पिंजरा में खाना मिलता और उसे खाकर दिन भर वो गुड़िया कटोरे कटोरे बोलता रहता था। कुछ सालों तक यह सिलसिला चलता रहा,लेकिन एक दिन अचानक सुबह सुबह गुड़िया दीदी जोर जोर से रोने लगी उसकी आवाज़ को सुनकर घर के सभी लोग बाहर आंगन में आकर देखा तो वे सब लोग हतप्रभ रह गए। गुड़िया उस पिंजरे को अपने सीने से लगाकर जोर जोर से रो रही थी। उसकी आवाज़ में इतनी करुणा और ममता भरी हुई थी कि आस पास के लोग भी कारण जानने के लिए मेरे आंगन में पहुंच गए। अब घर व बाहर के लोग यह जान गए थे कि बात उस पिंजरे वाले तोते की है जो कल रात पिंजरे को तोड़कर कहीं उड़ गया। सब लोग मेरी दीदी को समझा रहे थे तभी पिता जी को आंगन में आता हुआ देखकर उनके पास जाकर मै लिपट कर रोते हुए कहा "पापा यह तोता हर बार क्यूं भाग जाता है, तब उन्होंने हम दोनों भाई बहन को गोद में बैठकर एक कविता सुनाया: हम पंछी उन्मुक्त गगन के पिंजरबद्ध न गा पाएँगे, कनक-तीलियों से टकराकर पुलकित पंख टूट जाएंगे।
नीड़ न दो चाहे टहनी का, आश्रय छिन्न-भिन्न कर डालो, लेकिन पंख दिए हैं तो, आकुल उड़ान में विघ्न न डालो।”
शिव मंगल सिंह सुमन द्वारा रचित उस कविता का अर्थ उस वक्त नहीं बल्कि ज्ञान होने पर समझ में आया लेकिन साथ ही साथ मेरे हृदय में एक भाव भी जागा कि आख़िर क्यूं? कोई पंछी गुलामी के पिंजरों में बंधकर नहीं रहना चाहता है। इस भाव को सार्थकता प्रदान करने के लिए मैंने भी एक तोता पाला। जिसकी तस्वीर आज देखकर मुझे मेरे बचपन के तोते की कहानी याद आ गई।संभवतः इस तोते से एक ऐसा लगाओ बन गया था जो मेरी कदमों की आहट सुनकर जोर जोर से मेरा नाम पुकारने लगता था। लोगों को आश्चर्य तब होता था जब वह पूरे आसमान को छूने के बाद भी मेरे छत पर आकर बैठ जाता और मैं खुशी से फूलते हुए पिता जी से कहता था "देखिए मेरा तोता कहीं नहीं भागता है", लेकिन एक दिन ऐसा आया जब वह पिंजरा से बाहर तो निकल जाता था लेकिन उसके उड़ने की जिज्ञासा शांत हो गई थी,कारण जानने के बाद मालूम चला एक दिन मिठ्ठू घायल होकर आसमान से मेरे ही छत पर आ गिरा था। यह सुनकर उस वक्त अपनी पीड़ा से मैं खुद मुक्त नहीं हो पा रहा था ऐसा लग रहा था मानो मेरी जिद्द ने एक आजाद परिंदे को गुलाम बना लिए हों। मेरे लाख कोशिशों के बाद भी वह तोता आसमान की ओर फिर कभी नहीं देखा और अंततः उसने उसी पिंजरे में अपना दम तोड दिया जिसमें उसे कैद करके कई बरसों तक मैंने रखा था। ये सोचकर कि अगर प्यार और स्नेह मिले तो गुलामी की जंजीरें से बंधकर भी पंछी और आदमी जी सकता है,लेकिन शायद मैं गलत था बिल्कुल गलत था।
@अ��जान मुसाफ़िर
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siddharthsaket · 2 years ago
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🕋 *मुसलमान नहीं समझे ज्ञान कुरआन* 🕋
*(Part - 94)*
के आगे पढिए.....)
📖📖📖
*(Part - 95)*
हम पढ़ रहे है पुस्तक *"मुसलमान नहीं समझे ज्ञान कुरआन"*
पेज नंबर 238-240
*‘‘राजा बड़ा है या भक्त राज‘‘*
📜एक बार सुल्तान अधम अपने बलख शहर के बाहर एक तालाब पर जाकर बैठ गया। उसका पुत्र राजा था। पता चला तो हाथी पर चढ़कर बैंड-बाजे के साथ तालाब पर पहुँचा। पिता जी से घर चलने को कहा। सुल्तान ने साफ शब्दों में मना कर दिया। लड़के ने कहा कि आपने यह क्या हुलिया बना रखा है? आप यहाँ ठाठ से रहो। आप भिखारी बनकर कष्ट उठा रहे हो। मेरी आज्ञा से आज सब कुछ हो जाता है। सुल्तान ने कहा कि जो परमात्मा कर सकता है, वह राजा नहीं कर सकता। लड़के ने कहा कि आप आज्ञा दो, वही कर दूँगा।आपको हमारे पास रहना
होगा। सुल्तानी ने कहा कि ठीक है, स्वीकार है। मैं हाथ से कपड़े सीने की एक सूई इस तालाब में डालता हूँ। यह सूई जल से निकालकर मेरे को लौटा दे।राजा ने सिपाहियों, गोताखोरों तथा जाल डालने वालों को बुलाया। सब
प्रयत्न किया, परंतुव्यर्थ। लड़के ने कहा, पिताजी! एक सूई के बदले हजार सूईयाँ ला देता हूँ। क्या आपका
अल्लाह यह सूई निकाल देगा? तब सुल्तान ने कहा कि हे पुत्र! यदि मेरा अल्लाह यही सूईनिकाल देगा तो क्या तुम भक्ति करोगे? क्या सन्यास ले लोगे? लड़के ने कहा कि आप पहले यह सूई अपने प्रभु से निकलवाओ, फिर सोचूँगा। इब्राहिम ने कहा कि परमात्मा की बेटी मछलियों! मुझ दास की एक सूई आपके तालाब में गिर गई है। मेरी सूई निकालकर मुझे देने की कृपा करें। कुछ ही क्षणों के उपरांत एक मछली मुख में सूई लिए इब्राहिम के पास किनारे पर आई। इब्राहिम ने सूई पकड़ ली और मछलियों का हाथ जोड़कर धन्यवाद किया। तब सुल्तानी ने कहा, बेटा! देख परमात्मा जो कर सकता है, वह मानव चाहे राजा भी क्यों न हो, नहीं कर सकता। अब क्या भक्ति करेगा? पुत्रा ने कहा कि भगवान ने आपको सूई ही तो दी है, मैं तो आपको हीरे-मोती दे सकता हूँ। भक्ति तो वृद्धावस्था में करूंगा। भक्त इब्राहिम उठकर चल पड़ा। अपनी गुफा में चला गया।
‘‘विकार जैसे काम, मोह, क्रोध, वासना नष्ट नहीं होते, शांत हो जाते हैं‘‘
विकार मरे ना जानियो, ज्यों भूभल में आग। जब करेल्लै धधकही, सतगुरू शरणा लाग।।
एक समय इब्राहिम सुल्तान मक्का शहर में गया हुआ था। उसका उद्देश्य था कि भ्रमित मुसलमान श्रद्धालु मक्का में हज के लिए या वैसे भी आते रहते हैं। उनको समझाना था। उनको समझाने के लिए वहाँ कुछ दिन रहे। कुछ शिष्य भी बने। किसी हज यात्री ने बलख शहर में जाकर बताया कि सुल्तान इब्राहिम मक्का में रहता है। छोटे लड़के ने पिता जी के दर्शन की जिद की तो उसकी माता-लड़का तथा नगर के कुछ स्त्री-पुरूष भी साथ चले और
मक्का में जाकर इब्राहिम से मिले। इब्राहिम अपने शिष्यों को शिक्षा देता था कि बिना दाढ़ी-मूछ वाले लड़के तथा परस्त्री की ओर अधिक देर नहीं देखना चाहिए। ऐसा करने से उनके प्रति मोह बन जाता है। अपने लड़के को देखकर इब्राहिम से रहा नहीं गया, एकटक बच्चे को देखता रहा। लड़के की आयु लगभग 13 वर्ष थी। शिष्यों ने कहा कि गुरूदेव आप हमें तो शिक्षा देते हो कि बिना दाढ़ी-मूछ वाले बच्चे की ओर ज्यादा देर नहीं देखना चाहिए,
स्वयं देख रहे हो। इब्राहिम ने कहा, पता नहीं मेरा आकर्षण इसकी ओर क्यों हो रहा है? उसी समय एक वृद्ध ने कहा, राजा जी! यह आपकी (बेगम) पत्नी है और यह आपका पुत्र है। आप राज्य त्यागकर आए, उस समय यह गर्भ में था। आपसे मिलने आए हैं। उसी समय लड़का पिता के चरणों को छूकर गोदी में बैठ गया। इब्राहिम की आँखों में ममता के आँसूं छलक आए। परमेश्वर की ओर से आकाशवाणी हुई कि हे सुल्तानी! तेरे को मेरे से प्रेम नहीं रहा।
अपने परिवार से प्रेम है। अपने घर चला जा। उसी समय इब्राहिम को झटका लगा तथा आँखें बंद करके प्रार्थना की कि हे परमात्मा! मेरे वश से बाहर की बात है, या तो मेरी मृत्यु कर दो या इस लड़के की। उसी समय लड़के की मृत्यु हो गई। इब्राहिम उठकर चल पड़ा। बलख से आए व्यक्ति लड़के के अंतिम संस्कार करने की तैयारी करने लगे। परमात्मा पाने के लिए भक्त को प्रत्येक कसौटी पर ��रा उतरना पड़ता है। तब सफलता मिलती है। उस लड़के के जीव को परमात्मा ने तुरंत मानव जीवन दिया और अपने भक्त के घर में लड़के को उत्पन्न किया। बचपन से ही उस आत्मा को परमात्मा का मार्ग मिला। एक बार सब भक्त बाबा जिन्दा के आश्रम में सत्संग में इकट्ठे हुए। वह लड़का उस समय 4 वर्ष की आयु का था। परमेश्वर की कृपा से उसका बिस्तर तथा इब्राहिम का बिस्तर साथ-साथ लगा था।
इब्राहिम को देखकर लड़का बोला, पिताजी! आप मुझे मक्का में क्यों छोड़ आए थे? मैं अब भक्त के घर जन्मा हूँ।देख न अल्लाह ने मुझे आप से फिर मिला दिया। यह बात गुरू जी जिन्दा बाबा (परमेश्वर कबीर जी) के पास गई तो जिन्दा बाबा ने बताया कि यह इब्राहिम का लड़का है जो मक्का में मर गया था। अब परमात्मा ने इस जीव को भक्त के घर जन्म दिया है। इब्राहिम को लड़के के मरने का दुःख बहुत था, परंतु किसी को साझा नहीं करता था। उस दिन उसने कहा, कृपासागर! तू अन्तर्यामी है। आज मेरा कलेजा (दिल) हल्का हो गया। मेरे मन में रह-रहकर आ रहा था कि परमात्मा ने यह क्या किया? इसकी माँ घर पर किस मुँह से जाएगी? आज मेरी आत्मा पूर्ण रूप से शांत है।
जिन्दा बाबा ने उस लड़की पूर्व वाली माता यानि इब्राहिम की पत्नी को संदेश भिजवाया कि वह आश्रम आए। लड़के तथा उसके नए माता-पिता तथा इब्राहिम को भी बुलाया। उस लड़के को पहले वाली माता से मिलाया। लड़का देखते ही बोला, अम्मा जान! आप मेरे को मक्का छोड़कर चली गई। वहाँ पर अल्लाह आए, देखो ये बैठे (जिन्दा बाबा की ओर हाथ करके बोला) और मेरे को साथ लेकर इनके घर छोड़ गए। मैं इस माई के पेट में चला गया। फिर मेरा जन्म हुआ। अब मैं दीक्षा ले चुका हूँ। प्रथम मंत्र का जाप करता हूँ। हे माता जी! आप भी गुरू जी से दीक्षा ले लो, कल्याण हो जाएगा। इब्राहिम की पत्नी ने दीक्षा ली और कहा कि इस लड़के को मेरे साथ भेज दो। परमेश्वर कबीर जी (जिन्दा बाबा) ने कहा कि यदि उस नरक में (राज की चकाचौंध में) रखना होता तो इसकी मृत्यु क्यों होती? अब तो आप आश्रम आया करो और महीने में सत्संग में बच्चे के दर्शन कर जाया करो। इब्राहिम को उस लड़के में अपनापन नहीं लगा क्योंकि वह किसी अन्य के शरीर से जन्मा था। परंतु उसके भ्रम, मन की मूर्खता का नाश हो गया। जो वह मन-मन में कहा करता कि अल्लाह ने यह नहीं करना चाहिए था। अब उसे पता चला कि परमात्मा जो करता है, अच्छा ही करता है। भले ही उस समय अपने को अच्छा न लगे। अल्लाह के सब जीव हैं, वह सबके हित की सोचता है। हम अपने-अपने हित की सोचते हैं। रानी को भी उस लड़के में वह भाव नहीं था, परंतु आत्मा वही थी। इसलिए माता वाली ममता दिल में जाग्रत थी। इसलिए उसको देखकर शांति मिलती थी। यह कारण बनाकर परमेश्वर जी ने उस रानी का भी उद्धार किया और बालक का भी।
( शेष भाग कल )
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