#छत्तीसगढ़ में कोरोना को लेकर बड़े निर्देश
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kisansatta · 5 years ago
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सरकारो ने मजदूर के खून से लिख दी मजदूरो की तकदीर
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पं0 शेखर दीक्षित अत्यधिक जनसंख्या वाले भारत जैसे विशाल  देश में इन्हीं मजदूरों,नौकरी पेशा वालों के भेजे रूपयों से उनके घरों के चूल्हे जलते हैं और उन क्षेत्रों की अर्थ व्यवस्था “पोस्टल इकोनामी” कहलाती है। पूर्वी उत्तरप्रदेश, बिहार झारखण्ड, छत्तीसगढ़, उत्तराखंड आदि ऐसे ही क्षेत्र हैं, जहां के लाखों मजदूर रोजी रोटी के लिए दूसरे प्रदेशों में जाते हैं। सरकारों के बदलने से उनका भाग्य नहीं बदला। हर मुख्यमंत्री विदेशी निवेशकों की बैठकें (इन्वेस्टर्स मीट) करता है ,बड़े बड़े दावे किए जाते हैं, न��ीजा – वही ढाक के तीन पात। कौरोना जैसी महीमार�� के आगमन के बाद सरकार की ओर से  रोज़ नए नये निर्देश जारी होने तथा लाक डाउन होने के बाद , इन प्रवासी मजदूरों को वहीं रहने को कहा गया।उन्हें बहुत सब्जबाग दिखाए ग्ए कि उन्हें खाली बैठने की तनख्वाह मिलेगी,घर के किराए में छूट होगी, भोजन का प्रबन्ध सरकार, स्वयंसेवी संगठन करेंगे, शीध्र ही लाक डाउन समाप्त हो जायेगा आदि। जब तक वे तंद्रा से जगे, बहुत देर हो चुकी थी।घर वापसी के सारे रास्ते बंद हो चुके थे। समाचारपत्र, टीवी स्थिति को बद से बदतर बताने में स्पर्धा कर रहे थे। वे परिवार के लिए, परिवार उनके लिए बेचैन था। मोबाइल फोन ही डूबते का सहारा बना। वतन की मिट्टी की सोंधी खुशबू एवं परिवार के मिलन की अन्तिम इच्छा के कारण उनके धैर्य का बांध टूट गया। अपनी पत्नी,छोटे दुधमुंहे बच्चे तक को लेकर वे पैदल ही हजारों किमी दूर, रास्ते में खाना, पानी सवारी की परवाह न कर चिलचिलाती धूप, पानी में अपने देश के लिए चल दिए। रास्ते में पुलिस की लाठी, कोरेन्टाइन से बेखौफ यह काफिला अपनी मंजिल यथाशीघ्र पहुंचना चाहता था। भूखे पेट, सौ रुपये की एक रोटी, हजारों रुपयों में ट्रक पर लटकना भी स्वीकार किया। कितने भूख,बीमारी, दुर्घटना में मरे,इसका हिसाब किसी के पास नहीं है। वतन वापसी का यह अंतहीन सिलसिला बदस्तूर जारी है। परिवार के सदस्य उनकी सलामती हेतु सैकड़ों देवी, देवताओं,चौरा, मजार की मनौतियां मान रहा है, चैन से सो नहीं पा रहा है।जिसके अपने घर पहुंच गये वह निश्चिंत है जिसके अभी नहीं चले अथवा रास्ते में हैं, बह बेचैन है। सरकारें संक्रमण का रोना रोते हुए इन प्रवासियों की घर वापसी के लिए कोई ठोस योजना नहीं बनाई। रेल,बस रोक दी गई। आश्वासन पर आश्वासन दिए जाते रहे। मजदूर बिलखते रहे,कोरोना बढ़ता गया। हमने व्यवस्था के नाम पर मजदूरों का उत्पीड़न किया,उनका मानसिक शोषण किया।हम भूल गये कि सारी व्यवस्था मानव कल्याण के ही लिए है, व्यवस्था के लिए मानव नहीं है। यह महापलायन देश विभाजन के बाद का सबसे बड़ा पलायन है जिसमें करोड़ों जन का भाग्य दांव पर लगा है। अब जो ट्रेन, बस चलाई रही है, इसे लॉकडाउन के तुरन्त भी किया जा सकता था और तब पैदल, ट्रकों, टैंकरों, सायकिल, मोटरसाइकिल से लोग इतनी लम्बी यात्रा न करते, कितनों की जानें बच जाती। अब इस प्रक्रिया में तेजी लानी चाहिए जिससे सभी की शीध्र घर-वापसी हो सके। हम उनके खाने की व्यवस्था न भी कर पायें,उन्हें उनके घर तक तो सकुशल पहुंचा ही दें। कुछ प्रगतिशील राज्य इन मजदूरों की घर वापसी इसलिए नहीं चाहते कि इस वापसी से उनके उद्योग धंधों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा, वहीं कुछ गरीब राज्य अपने संसाधनों का रोना रो कर अपने ही आदमियों की घर वापसी का विरोध कर रहे हैं। ऐसे सभी राज्य आदमी को कच्चा माल समझने की भूल कर रहे हैं। आदमी धन कमाने का साधन नहीं है, सारे साधन आदमी के ही कल्याण हेतु हैं। यह पलायन केन्द्र तथा राज्य सरकारों को सोचने समझने का एक अवसर भी दिया है कि वे पिछड़े क्षेत्रों के विकास का एक ऐसा माडल तैयार करें जिससे इतनी बड़ी संख्या में मजदूरों को रोजी-रोटी हेतु अपना प्रदेश न छोड़ना पड़े।इस कोरोना से दूसरी सीख यह भी मिली कि हम अपने स्वदेशी आंदोलन को तिलांजलि देकर चीन से सस्ता माल आयात कर महंगे दाम पर बेच कर धन्नासेठ बन गये थे।अब देश को इस पर भी विचार करना चाहिए।
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realtimesmedia · 5 years ago
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कोरोना वायरस को लेकर छत्तीसगढ़ सरकार ने उठाए ये बड़े कदम
रायपुर (Realtimes)  देश में कोरोना वायरस के खतरों को देखते हुए छत्तीसगढ़ सरकार ने दिव्यांग महाविद्यालय, विशेष विद्यालय, आश्रय दत्त कर्मशाला, बहुसेवा केंद्रों को भी तत्काल प्रभाव से 31 मार्च तक बंद किये जाने के निर्देश दिए हैं.
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आंगनबाड़ी, स्कूल-कॉलेज भी बंद
बता दें कि प्रदेश भर में कोरोना वायरस की वजह से शासकीय कार्यक्रम आयोजन को टाल दिया गया है. इसके साथ ही राज्य के सभी स्कूल-कॉलेजों…
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