पर्यावरण दिवस
धरती आज रही है जल
कह रही है वो हर पल
न बहाओ व्यर्थ ही जल
बहुत कीमती तेरा कल
टपकने न दो अपना नल
ग्लेशियर रहा बहुत पिघल
जल की हरेक बूॅंद बचाओ
छोटे-छोटे पेड़ लगाओ
जब रहेंगे पेड़ और जल
तो ही तु खुश रहेगा कल।
-शैलबाला कुमारी, गृहिणी, विकास नगर, नयीदिल्ली
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Himalaya Mein Gleshiyar Baadh ke lie chetaavani System
हिमालय की करीब 200 ग्लेशियल झीलों में अत्याधुनिक चेतावनी सिस्टम लगाए जा रहे हैं क्योंकि जलवायु परिवर्तन के कारण इन झीलों में बाढ़ का खतरा बहुत ज्यादा है। भारत हिमालय के करीब 200 ग्लेशियर झीलों में अत्याधुनिक चेतावनी सिस्टम लगा रहा है क्योंकि जलवायु परिवर्तन के कारण इन झीलों में बाढ़ का खतरा और भी बढ़ गया है। आपदा प्रबंधन अधिकारियों ने मंगलवार को बताया कि ये चेतावनी सिस्टम बाढ़ के खतरे को कम करने के लिए बेहद जरूरी हैं।
Read More: https://www.deshbandhu.co.in/vichar/warning-system-for-glacial-floods-in-the-himalayas-490471-2
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जानिए भारत के सबसे बड़े और सबसे पुराने ग्लेशियर के बारे में
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कुंडलिनी योग की सहायक हरित ऊर्जा
दोस्तों, जीवाश्म ईंधन के अंधाधुंध इस्तेमाल से धरती का जीवन संकट में आ गया है। ग्लोबल वार्मिंग बढ़ रही है। धरती लगातार गर्म हो रही है। ग्लेशियर पिघल रहे हैं। सुंदर समुद्रतटीय प्रदेशों के निकट भविष्य में पूरी तरह से जलमग्न होने के आसार बन गए हैं। वातावरण में कार्बनडाइऑक्साइड जैसी ग्रीन हाउस गैसों की मात्रा बहुत बढ़ गई है और लगातार बढ़ ही रही है। इससे मौसम भी बदल गया है। बारिश के मौसम में सूखा पड़…
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प्रकृति के इस श्वेतवर्णी वरदान को बचाए रखनेविजय गर्ग
पिछले वर्ष जब यूरोप के ज्यादातर हिस्सों में सर्दियां बिना बर्फ के गुजर रही थीं तो लगा कि बेलगाम कार्बन उत्सर्जन करने और जीवाश्म ईंधन के बेइंतहा इस्तेमाल से जलवायु परिवर्तन की समस्या पैदा करने वाले विकसित देश अपने कर्मों का नतीजा देख रहे हैं। बर्फ नहीं पड़ी, तो यूरोप के बहुतेरे पर्यटन स्थल वीरान हो गए, ग्लेशियर पिघलने लगे और नदियों का जलस्तर कम होने लगा। मगर, हमें अहसास नहीं था कि ऐसा ही कुछ एक…
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गंगोत्री: पवित्र गंगा और चार धाम यात्रा
प्रसिद्ध चार धाम तीर्थयात्राओं में उत्तरकाशी में स्थित गंगोत्री उन प्रमुख स्थानों में से एक है जहाँ से पवित्र नदी गंगा का उद्गम होता है। ऐसा माना जाता है कि अपने पूर्वजों के पापों को धोने के लिए, देवी गंगा ने खुद को एक नदी में बदल लिया था, लेकिन उनके प्रभाव को कम करने के लिए, भगवान शिव ने उन्हें अपने तालों में समेट लिया। गंगा नदी गंगोत्री ग्लेशियर से निकलती है और भागीरथी के नाम से जानी जाती है। जब यह देवप्रयाग पहुंचती है और अलकनंदा से मिलती है, तो इसे गंगा या पवित्र गंगा कहा जाता है।
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मध्य क्षेत्रीय परिषद बैठक: सीएम धामी ने वैज्ञानिक आधार पर बरसाती नदियों को ग्लेशियर आधारित नदियों से जोड़ने के अभिनव प्रयासों पर दिया बल
मध्य क्षेत्रीय परिषद की नरेंद्र नगर में आयोजित बैठक में केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह सहित प्रतिभाग कर रहे अन्य महानुभावों का स्वागत करते हुए मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने इस महत्वपूर्ण बैठक को उत्तराखण्ड में आयोजित किये जाने के लिये केंद्रीय गृह मंत्री का आभार व्यक्त किया। उन्होंने कहा कि मध्य क्षेत्रीय परिषद केंद्र तथा राज्यों के मध्य आपसी सहयोग एवं समान प्रकार के मामलों में सेतु के समान है।…
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केदारनाथ सुमेरु पर्वत में हिमस्खलन आज सुबह 7:00 की घटना घोड़ा खच्चर संचालकों ने बनाए वीडियो
केदारनाथ
ब्रेकिंग
https://www.lokjantoday.com/wp-content/uploads/2023/09/VID-20230903-WA0005.mp4
केदारनाथ मंदिर के पीछे बर्फीली चोटियों से फिर आया एवलांच,
आज सुबह 7:25 बजे के करीब केदारनाथ मंदिर के पीछे सुमेरु पर्वत श्रृंखला के नीचे चौराबाड़ी की ओर पर्वत श्रृंखलाओं के बीच ग्लेशियर टूटता हुआ दिखा.स्थानीय लोगों ने बताया कि पर्वत श्रृंखलाओं में बर्फ का बड़ा टुकड़ा नीचे आये.. फिलहाल सभी सुरक्षित…
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वैज्ञानिकों का बड़ा कारनामा, दुनिया के सबसे पुराने ग्लेशियर की दक्षिण अफ्रीका में खोज की
वैज्ञानिकों ने दक्षिण अफ्रीका में दुनिया के सबसे पुराने ग्लेशियरों के निशान खोजे हैं। यह ग्लेशियर 2.9 अरब साल पुराने हैं और सोने के भंडार के नीचे मौजूद चट्टानों में पाए गए हैं। खोज से पता चलता है कि अतीत में महाद्वीप में बर्फ की चोटियां मौजूद थीं। वैज्ञानिकों का कहना है कि यह क्षेत्र या तो धरती के पोल के करीब था या फिर पृथ्वी के कुछ हिस्से बेहद ठंडी ‘स्नोबॉल अर्थ’ में जमे हुए थे।
जर्नल…
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भारत से लेकर अफ्रीका तक जानलेवा हुआ मौसम, 2 करोड़ लोग भुखमरी के शिकार, 80 लाख बेघर
सीमा जावेद, लंदन: द स्टेट ऑफ द ग्लोबल क्लाइमेट 2022 नाम की विश्व मौसम विज्ञान संगठन (डब्ल्यूएमओ) की वार्षिक रिपोर्ट के अनुसार पूरी दुनिया में जलवायु परिवर्तन का कहर थम नहीं रहा है। चाहे वह पहाड़ की ऊंची ऊंची चोटियां हो या समुद्र की गहराइयां, कुछ भी इससे अनछुआ नहीं बचा है। अफ्रीका में इसकी वजह से भूखमरी की स्थिति है तो वहीं कई लोग बेघर तक हो गए हैं। पाकिस्तान में भी विनाशकारी बाढ़ ने देश के अस्तित्व पर संकट पैदा कर दिया है। भारत से लेकर यूरोप और अमेरिका तक अब ग्लोबल वॉर्मिंग और जलवायु परिवर्तन का व्यापक असर देखने को मिल रहा है। ऐसे में विशेषज्ञों की तरफ से अब कई तरह की चिंताएं तो जताई जा ही रहीं हैं साथ ही साथ चेतावनी भी दी गई है। भुखमरी के हालात सूखे ने पूर्वी अफ्रीका को पिछले पांच सालों से जकड़ लिया है। इसके चलते वहां के 20 मिलियन से ज्यादा लोग खाद्य असुरक्षा का सामना कर रहे हैं। पिछले साल जुलाई और अगस्त में रिकॉर्ड तोड़ बारिश ने पाकिस्तान में बाढ़ ला दी और 1,700 से अधिक मौतें हुईं। इसके चलते आठ मिलियन लोग बेघर हो गए। जून के मध्य से अगस्त के अंत तक चीन में रिकॉर्ड तोड़ सबसे व्यापक और लंबे समय तक चलने वाली हीटवेव रही। वहीं गर्मियों के दौरान रिकॉर्ड तोड़ लू ने यूरोप को प्रभावित किया। यूरोप में 15000 से ज्यादा लोग गर्मी से की वजह से मारे गए। इनमें स्पेन, जर्मनी, ब्रिटेन, फ्रांस और पुर्तगाल के लोग शामिल थे। इसकी वजह से भारत में फिलहाल हीटवेव अपनी आवृत्ति, तीव्रता, और घातकता में बढ़ रही है जो हमारे सार्वजनिक स्वास्थ्य, कृषि, और सामाजिक-आर्थिक प्रणालियों पर बोझ डाल रही है। भारत पर भी असर डालेगी गर्मी पीएलओएस क्लाइमेट में प्रकाशित, कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय के रमित देबनाथ और उनके सहयोगियों द्वारा किए एक अध्ययन से पता चलता है कि जलवायु परिवर्तन की वजह से गंभीर होती यह हीट वेव भारत के ससटेनेबल डेव्लपमेंट गोल्स (SDG) को हासिल करने की दिशा में भारत की प्रगति को बाधित कर सकती हैं। गौरतलब है कि भारत सत्रह संयुक्त राष्ट्र सतत विकास लक्ष्यों (SDG) को प्राप्त करने के लिए प्रतिबद्ध है, जिसमें गरीबी उन्मूलन, अच्छा स्वास्थ्य और कल्याण, बेहतर जलवायु, और आर्थिक विकास आदि शामिल हैं। शोधकर्ताओं ने पाया कि हीटवेव ने एसडीजी प्रगति को पहले के अनुमान से अधिक कमजोर कर दिया है।पिघलने लगे ग्लेशियर साल 2022 में वैश्विक औसत तापमान 1850-1900 के औसत से 1.15 [1.02 से 1.28] डिग्री सेल्सियस अधिक रहा। सन् 1850 के बाद से अब तक साल 2015 से 2022 तक रिकॉर्ड में आठ सबसे गर्म साल रहे हैं। तीन मुख्य ग्रीनहाउस गैसों - कार्बन डाइऑक्साइड, मीथेन और नाइट्रस ऑक्साइड की सांद्रता 2021 में रिकॉर्ड उच्च स्तर पर पहुंच गई, नवीनतम वर्ष जिसके लिए समेकित वैश्विक मूल्य उपलब्ध हैं (1984-2021)। साल 2020 से 2021 तक मीथेन सांद्रता में वार्षिक वृद्धि रिकॉर्ड पर सबसे अधिक थी।यूरोपीय आल्प्स ग्लेशियर ने मार्च 2022 में पिघलने के रिकॉर्ड को तोड़ दिया। IPCC की रिपोर्ट के मुताबिक़ वैश्विक स्तर पर ग्लेशियरों ने 1993-2019 की अवधि में 6000 गिगा टन (Gt) से अधिक बर्फ खो दी। अंटार्कटिका में समुद्री बर्फ 25 फरवरी, 2022 को 1.92 मिलियन किमी2 तक गिर गई, जो रिकॉर्ड पर सबसे निचला स्तर है और दीर्घावधि (1991-2020) औसत से लगभग 1 मिलियन वर्ग किमी नीचे है।गायब होते समुद्री संसाधन ग्रीनहाउस गैसों द्वारा पृथ्वी के ऊपरी सतह में फंसी ऊर्जा ( ग्लोबल वार्मिंग) का लगभग 90% समुद्र अपने में सोख लेता है। इसके चलते समुद्र की सतह के 58% हिस्से ने 2022 के दौरान कम से कम एक समुद्री हीटवेव का अनुभव किया। वहीं ग्लोबल मीन सी लेवल यानी समुद्र एसटीआर का बढ़ना (GMSL) 2022 में बढ़ना जारी रहा, सैटेलाइट अल्टीमीटर रिकॉर्ड (1993-2022) के लिए एक उच्च स्तर पर पहुंच गया। उपग्रह रिकॉर्ड के अनुसार 1993-2002 के बीच में 2.27 मिमी प्रति वर्ष और 2013-2022 के बीच में 4.62 मिमी प्रति वर्ष के हिसाब से ग्लोबल औसत समुद्र स्तर वृद्धि दर दोगुनी हो गई है।CO2 समुद्री जल के साथ प्रतिक्रिया करता है जिसके परिणामस्वरूप pH में कमी आती है जिसे 'समुद्र अम्लीकरण' कहा जाता है। आईपीसीसी की छठी आकलन रिपोर्ट के अनुसार समुद्र की सतह का पीएच अब पिछले कम से कम 26 हजार साल में सबसे कम है। जिससे साफ जाहिर है की इसका कितना ख़तरनाक असर समुद्री जीव जनतुओं पर होगा। वैसे भी अब अधिकांश समुद्र तटों की रेत से सीपियां, शंख आदि ग़ायब हो चुके हैं।लेखिका वरिष्ठ स्तंभकार हैं और पर्यावरण से जुड़े मुद्दे पर लिखती रहती हैं। http://dlvr.it/SnNrRJ
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Pithoragarh : गलेशियर खिसकने से माइग्रेशन पर जा रहे ग्रामीणों की बढ़ी मुश्किलें, आगे भी जारी रहेगा हिमपात
उत्तराखंड में इस समय मौसम की दोहरी मार झेल रहे माइग्रेशन पर जाने वाले लोगों के सामने एक और समस्या सामने आ खड़ी हुई है। दरअसल मुनस्यारी के अधिक ऊंचाई वाले बर्फिले क्षेत्रों में रहने वाले वाले लोग भारी बर्फबारी के चलते निकले इलाकों की तरफ चले जाते हैं। ऐसे में मल्ला जोहार की तरफ माइग्रेशन करने वाले लोगों को धापा मिलम मार्ग पर ग्लेशियर खिसक जाने के कारण बड़ी समस्या आन पड़ी है। क्योंकि गलेशियर खिसक कर बीच मार्ग पर ही आ गया है। जिसकी वजह से मार्ग को ही बंद करना पड़ा। सोमवार यानी की आज बंद मार्ग को साफ करके आवाजाही के लिए खोल दिया गया है। हालांकि इस दौरान लगातार हिमपात होने के कारण उच्च हिमालयी क्षेत्र से फिर ग्लेशियरों के खिसकने का खतरा बना हुआ है। वहीं, माइग्रेशन पर जाने वाले लोगों को इसे लेकर खासा परेशानी का समाना करना पड़ रहा है।
भारी बर्फबारी से बन रहे अस्थाई ग्लेशियर
क्योंकि इस समय मौसम अपनी करवटे बदल रहा है। जहां पहाड़ी क्षेत्रों में भारी बर्फबारी लोगों को कंपा रही है। तो वहीं मैदानी इलाकों में भी इसका असर भारी बारीश से देखा जा सकता है। इन दिनों उच्च हिमालय वाले क्षेत्रों में बर्फबारी के कारण अस्थाई ग्लेशियर चुनौती बना हुआ है। छिरकानी के पास ग्लेशियर टूटने से मार्ग भी काफी प्रभावित रहा। लोगों को आगे जाने के लिए पैदल मार्ग को ही चुनना पड़। घोड़े और खच्चरों को भी काफी समस्या का सामना करना पड़ रहा है। बीआरओ ने सड़क खोलने के लिए डोजर को लगा दिया है। फिलहाल यात्रियों को समस्या न हो उसके लिए पैदल मार्ग को खोल दिया गया है।
हिमपात के जरिए हर वर्ष होता है माइग्रेशन
हर साल की तरह हिमालय वाले क्षेत्रों में भारी बर्फबारी के कारण जोहार के 13 गांवों में रहने वाले लोगों को अप्रैल के मध्य में माइग्रेशन करना पड़ता है। जहां वह निचले इलाकों में अपनी खेतीबाड़ी करके अक्तूबर तक वापस लौटते हैं। क्योंकि इस साल हिमपात लगातार देखने को मिल रहा है। ऐसे में ग्लेशियर खिसकने से समस्या और भी ज्यादा बन गई है। तो खतरा भी बढ़ता जा रहा है। फिलहाल सेना और पुलिसकर्मियों द्वारा राहत बचाव कार्य को भी लगातार जारी किया जा रहा है।
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भारत की नदियाँ
भारत की नदियाँ
भारत का अपवाह तंत्र (भारत की नदियाँ)
अपवाह तंत्र एक ऐसा नेटवर्क है जिसमें नदियां एक दूसरे से मिलकर जल के एक दिशीय प्रवाह का मार्ग बनाती हैं। किसी नदी में मिलने वाली सारी सहायक नदियां और उस नदी बेसिन के अन्य लक्षण मिलकर उस नदी का अपवाह तंत्र बनाते हैं।
भारत का भूगोल :भारत का परिचय (Introduction to India)
भारत के पर्वत व पहाड़िया (Indian Mountains and Hills)
भारत के दर्रे (Important Maountain Passes of India)
भारत की अपवाह तंत्र को मुख्यतः २ भागो में बांटा जा सकता है -
1) हिमालय का अपवाह तंत्र (नदी प्रणाली)
2) प्रायद्वीपीय का अपवाह तंत्र (नदी प्रणाली)
Image Source: NCERT
हिमालय का अपवाह तंत्र (नदी प्रणाली)-
सिंधु नदी तंत्र
-सिंधु नदी का उद्गम तिब्बत के मानसरोवर झील (बोखार चाऊ ग्लेशियर) से हुआ है।
-इसकी कुल लम्बाई 2880 km है।
-इस नदी के दाये ओर प्रसिद्ध पर्यटक स्थल लेह स्थित है।
-इसकी 5 प्रमुख सहायक नदियाँ है -
1.चेनाब नदी
2.झेलम नदी
3.रावी नदी
4.सतलुज नदी
5.व्यास नदी
चेनाब नदी
-चेनाब सिंधु नदी के सबसे बड़ी सहायक नदी है।
-इस नदी का उद्गम हिमांचल प्रदेश के ख१२ लारा दर्रा (लाहुल में बाड़ालाचा ला दर्रे) से होता है।
-इस नदी को हिमांचल प्रदेश में चंद्रभागा के नाम से भी जाना जाता है क्योकि यह हिमांचल प्रदेश की दो नदियों (चंद्रा नदी और भागा नदी ) से मिलकर बानी है।
झेलम नदी
-इसका उद्गम वेरीनाग झील से होता है।
- इसके किनारे श्रीनगर शहर स्थित है।
रावी नदी
-रावी नदी का उद्गम हिमांचल प्रदेश के रोहतांग दर्रे से होता है।
सतलुज नदी
-इसका उद्गम तिब्बत के राक्षस ताल से होता है।
व्यास नदी
-इस नदी का उद्गम स्थान भी हिमांचल प्रदेश का रोहतांग दर्रा है।
-व्यास नदी सतलुज नदी से हरिके (पंजाब ) नामक स्थान पर मिलती है। हरिके से ही भारत की सबसे लम्बी नहर -इंदिरा गाँधी नहर की शुरुआत होती है।
गंगा नदी तंत्र
-गंगा नदी उद्गम उत्तराखंड के उत्तरकाशी में स्थित गोमुख के गंगोत्री ग्लेशियर से हुआ है।
-गंगा नदी भारत की सबसे लम्बी नदी है जिसकी लम्बाई 2525 km है।
-गंगा को राष्ट्रीय नदी का दर्जा 2008 में मिला।
-गंगा को बांग्लादेश में पद्मा के नाम से जाना जाता है।
कानपुर शहर इस नदी के किनारे स्थित सबसे बड़ा शहर है।
-इसकी प्रमुख सहायक नदी है -
यमुना नदी
कोसी नदी
गोमती नदी
दामोदर नदी
घाघरा नदी
गंडक नदी
रामगंगा
यमुना नदी
-यमुना नदी गंगा नदी की सबसे बड़ी सहायक नदी है।
-इसका उद्गम उत्तराखंड के बंदरपूछ में स्थित यमनोत्री ग्लेशियर से होता है।
-इसका प्राचीन नाम कालिंदी था।
-दिल्ली शहर यमुना नदी के किनारे स्थित है।
-इसकी प्रमुख सहायक नदी है -
चम्बल नदी - इसका उद्गम जानपाव पर्वत (इंदौर ) से होता है। चम्बल यमुना से इटावा में मिलती है।
बेतवा नदी - इसका उद्गम भोपाल से होता है। साँची शहर इसी नदी के किनारे स्थित है। बेतवा यमुना से हमीरपुर में मिलती है।
केन नदी -
कोसी नदी
- यह नदी मुख्य रूप से बिहार में बहती है।
- इसे बिहार का शोक कहा जाता है।
दामोदर नदी
- यह नदी मुख्य रूप से पश्चिम बंगाल में बहती है।
- इसे बंगाल का शोक कहा भी जाता है।
- इसका उद्गम स्थान छोटा नागपुर का पठार है।
-इसे जैविक मरुस्थल भी कहा जाता है।
- यह आगे चलकर हुगली नदी से मिलती है।
गोमती नदी
-इसका उद्गम पीलीभीत में फुलहर झील (गोमत ताल ) से होता है।
सोन नदी
-इसका उद्गम मध्य प्रदेश में अमरकंटक की पहाड़ियों से होता है।
ब्रह्मपुत्र नदी तंत्र
-ब्रह्मपुत्र नदी का उद्गम तिब्बत के मानसरोवर झील ( चेमायुंगडुंग ग्लेशियर ) से होता है।
-ब्रह्मपुत्र को विभिन्न नामो से जाना जाता है-
चीन में सांगपो
अरुणाचल प्रदेश में दिहांग
असम में ब्रह्मपुत्र
बांग्लादेश में जमुना
-विश्व का सबसे बड़ा नदीय द्वीप - मञ्जुली द्वीप ब्रह्मपुत्र नदी में असम में स्थित है।
- इस नदी पर स्थित प्रमुख शहर है - डिब्रूगढ़ (असम ) व गुवाहाटी (असम )
-ब्रह्मपुत्र नदी की महत्वपूर्ण सहायक नदियाँ है -
देबांग
सनकोसी
सनसूरी
मानस
विश्व के सबसे बड़े डेल्टा - सुंदरवन डेल्टा का निर्माण गंगा व ब्रह्मपुत्र नदियों द्वारा किया जाता है। इसे सुंदरवन डेल्टा इसमें पाए जाने वाले सुंदरी वृक्ष के कारण कहा जाता है।
प्रायद्वीपीय का अपवाह तंत्र (नदी प्रणाली)-
नर्मदा नदी
-नर्मदा का उद्गम मध्य प्रदेश में अमरकंटक की पहाड़ियों से होता है।
-यह भ्रंश घाटी से होकर बहने वाली नदी है (विंध्य और सतपुड़ा के बीच)
-यह मध्य प्रदेश (सबसे अधिक ),महाराष्ट्र ,गुजरात से होते हुए अरब सागर में जाकर गिरती है। अरब सागर में गिरने वाली सबसे बड़ी नदी है।
-इसका प्रवाह पूर्व से पश्चिम की ओर है अर्थात यह पश्चिम की ओर बहने वाली नदी है।
-जबलपुर शहर इस नदी के किनारे बसा एक प्रमुख शहर है।
तापी नदी
-तापी का उद्गम मध्य प्रदेश के बैतूल जिले में मुल्ताई की पहाड़ियों से होता है।
-यह भ्रंश घाटी से होकर बहने वाली नदी है ( सतपुड़ा और अजंता के बीच)
-यह मध्य प्रदेश ,महाराष्ट्र (सबसे अधिक ) ,गुजरात से होते हुए अरब सागर में जाकर गिरती है।
-इसका प्रवाह पूर्व से पश्चिम की ओर है अर्थात यह भी पश्चिम की ओर बहने वाली नदी है।
-सूरत शहर इस नदी के किनारे बसा एक प्रमुख शहर है।
गोदावरी नदी
-गोदावरी नदी का उद्गम नासिक के त्रियम्बक पहाड़ी से होता है।
-यह महाराष्ट्र (सबसे अधिक ) ,तेलंगाना , छत्तीसगढ़ ,आंध्र प्रदेश से होते हुए बंगाल की खाड़ी में जाकर गिरती है।
-यह दक्षिण भारत / प्रायद्वीप भारत की सबसे लम्बी नदी है।
-इसे अन्य नामो से भी जाना जाता है - दक्षिण गंगा और बूढ़ी गंगा
-इसकी प्रमुख सहायक नदियाँ है -
पेनगंगा - गोदावरी की सबसे बड़ी सहायक नदी
वर्धा नदी
इंद्रावती नदी
मंजरा नदी
कृष्णा नदी
-कृष्णा नदी का उद्गम महाराष्ट्र में महाबलेश्वर पहाड़ी से होता है।
-यह महाराष्ट्र,कर्नाटक (सबसे अधिक ) ,तेलंगाना,आंध्र प्रदेश से होते हुए बंगाल की खाड़ी में जाकर गिरती है।
-श्रीरंगपटनम (कर्नाटक ) शहर इसी नदी के किनारे स्थित है।
-इसकी प्रमुख सहायक नदियाँ है -
तुंगभद्रा नदी - कृष्णा नदी की सबसे बड़ी सहायक नदी है। हम्पी शहर इसी नदी के किनारे है।
डॉन
भीमा
पंचगंगा
दूधगंगा
मालप्रभा
घाटप्रभा
कावेरी नदी
-कावेरी नदी का उद्गम कर्नाटक में ब्रह्मगिरि पहाड़ी से होता है।
-यह कर्नाटक (सबसे अधिक ) और तमिलनाडु से होते हुए बंगाल की खाड़ी में जाकर गिरती है।
-कावेरी को दक्षिण की गंगा भी कहा जाता है।
महानदी
-महानदी का उद्गम छत्तीसगढ़ में रामपुर जिले के सिहाबा पहाड़ी से होता है।
-यह छत्तीसगढ़ (सबसे अधिक ), मध्य प्रदेश और ओडिशा से होते हुए बंगाल की खाड़ी में जाकर गिरती है।
-कटक शहर इसी नदी के किनारे स्थित है।
माही नदी
-यह नदी कर्क रेखा (२२ १/२ ०) को दो बार कटती है।
लूनी नदी
- राजस्थान में बहती है।
स्वर्णरेखा नदी
-इसका उद्गम झारखण्ड के छोटा नागपुर के पठार से होता है।
-यह झारखण्ड ,पश्चिम बंगाल ,ओडिशा में बहती है।
-जमशेदपुर शहर इसी नदी के किनारे स्थित है।
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जानिए भारत के सबसे बड़े और सबसे पुराने ग्लेशियर के बारे में
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जलवायु परिवर्तन के खिलाफ त्वरित कार्रवाई की जरूरत: संयुक्त राष्ट्र पैनल | UN Panel: Urgent Climate Change Action Is Required;
पारिस्थितिक तंत्रों पर अपरिवर्तनीय प्रभाव
आईपीसीसी की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि ग्लोबल वार्मिंग को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित करने में विफल रहने से कुछ पारिस्थितिक तंत्रों पर अपरिवर्तनीय प्रभाव पड़ेगा; 'तेजी से बंद होने वाले अवसर की खिड़की' की चेतावनी दी।
जलवायु परिवर्तन पर अंतर सरकारी पैनल (आईपीसीसी) ने सोमवार को एक रिपोर्ट में कहा कि जलवायु परिवर्तन मानव कल्याण और ग्रहों के स्वास्थ्य के लिए एक खतरा है और सभी के लिए रहने योग्य और टिकाऊ भविष्य को सुरक्षित करने के अवसर की तेजी से समाप्ति खिड़की है।
IPCC की भविष्य की रिपोर्ट
संयुक्त राष्ट्र का पैनल स्वयं वैज्ञानिक मूल्यांकन नहीं करता है बल्कि जलवायु परिवर्तन के विभिन्न पहलुओं पर वैज्ञानिक साक्ष्य की स्थिति का मूल्यांकन करता है। वर्तमान रिपोर्ट में नए वैज्ञानिक प्रमाणों पर ध्यान नहीं दिया गया है, लेकिन तीन कार्य समूहों के निष्कर्षों का संश्लेषण किया गया है। यह छठे मूल्यांकन चक्र के दौरान तीन विशेष रिपोर्टों के साक्ष्य को भी एकीकृत करता है।
IPCC की भविष्य की रिपोर्ट 2030 तक अपेक्षित नहीं हैं और इसे पहले से ही एक सीमा बिंदु वर्ष के रूप में चिह्नित किया गया है - यदि उत्सर्जन में कटौती करने के लिए महत्वपूर्ण कार्रवाई नहीं की जाती है - तो पृथ्वी को 1. 5 डिग्री सेल्सियस ऊपर गर्म होने से रोकना असंभव होगा पूर्व-औद्योगिक स्तर।
"1.5 डिग्री सेल्सियस से अधिक तापमान कम लचीलेपन के साथ कुछ पारिस्थितिक तंत्रों पर अपरिवर्तनीय प्रतिकूल प्रभाव का परिणाम होगा, जैसे कि ध्रुवीय, पर्वतीय और तटीय पारिस्थितिक तंत्र, बर्फ की चादर, ग्लेशियर के पिघलने, या तेजी से और उच्च प्रतिबद्ध समुद्र स्तर की वृद्धि से प्रभावित," आईपीसीसी ने रिपोर्ट में कहा।
अपरिहार्य और/या अपरिवर्तनीय
इसमें कहा गया है कि भविष्य में होने वाले कुछ परिवर्तन "अपरिहार्य और/या अपरिवर्तनीय" हैं, लेकिन गहन, तीव्र और निरंतर वैश्विक ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में कमी से इसे सीमित किया जा सकता है।
आईपीसीसी के अध्यक्ष होसुंग ली ने एक बयान में कहा, "प्रभावी और न्यायसंगत जलवायु कार्रवाई को मुख्यधारा में लाने से न केवल प्रकृति और लोगों के लिए नुकसान और क्षति कम होगी, बल्कि यह व्यापक लाभ भी प्रदान करेगी.......
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Himalayan Yeti Kya Hai?
Himalayan Yeti : पहाड़ कई रहस्यों का घर हैं और उनके बारे में पन्नों के बाद पन्ने लिखे जा सकते हैं, चाहे वह पहाड़ पर घूमने वाली आत्माएं हों या विचित्र रीति-रिवाज हों, जो किसी पहाड़ की चोटी पर देखे जा सकते हैं। और फिर भी, यकीनन हिमालय से सबसे बड़ा मिथक यति का है। उत्तर अमेरिकी लोककथाओं में बिगफुट या सास्क्वाच है, रूस में जंगल मैन है और चीनी संस्करण भी है। इस बीच, दुनिया के हमारे हिस्से की ऊंची चोटियां यति की लंबी दास्तां बयां कर रही हैं।
हिमालयन येति क्या है? (Himalayan Yeti Kya Hai)
तो, येति क्या है? एक muscular जीव, यानी, जो दो पैरों पर चलता है, उसके बाल लाल-भूरे या भूरे रंग के होते हैं और इसकी ऊंचाई लगभग 6 फीट होती है। हिमालय की वायु में सदियों से इसकी आभा व्याप्त है। यहां तक कि सिकंदर महान ने सिंधु घाटी क्षेत्र पर विजय प्राप्त करने के बाद 326 ईसा पूर्व में एक यति दिखाने की मांग की थी। लेकिन मूल निवासी उनके अनुरोध को इस तथ्य के कारण पूरा करने में असमर्थ थे कि अधिक ऊंचाई वाले निवासी कम तापमान में जीवित नहीं रह सकते। लोककथाएँ यति की अपनी विभिन्न प्रस्तुतियों से पूरी किताबें भर सकती थीं। उनमें से एक में शेरपा शराब पीते हैं और एक-दूसरे से लड़ते हैं ताकि किसी तरह यति को लड़ने और एक-दूसरे को नष्ट करने के लिए प्रोत्साहित किया जा सके, फिर एक अन्य में एक लड़की के साथ येति के बलात्कार की एक भयानक घटना का उल्लेख है, और यह भी कि एक यति बढ़ती जा रही है और अधिक से अधिक होती जा रही है। उगते सूरज के साथ शक्तिशाली! समानताएं एक “ग्लेशियर बीइंग” के साथ भी खींची गई हैं, जो एक विशाल वानर जैसे प्राणी जैसा दिखता है और कहा जाता है कि पर्वतीय क्षेत्रों में रहने वाले स्वदेशी समुदायों द्वारा सम्मानित किया जाता है। यह केवल एक ऊपरी हिस्सा है।
आज यति एक सितारा बन गया है! फिल्मों, कॉमिक्स और वीडियो गेम में दिखावे के साथ, इसे किसी स्टार से कम कुछ भी कहना “नॉट फेयर!” कहा जाएगा। ? हालांकि, यह कोई आश्चर्य की बात नहीं है क्योंकि स्वाभाविक रूप से सिकंदर के बाद यति को अकेला नहीं छोड़ा गया था। कई लोग इसका पीछा करते रहे और ऐसा करना जारी रखा, भले ही कई लोगों ने इसकी वास्तविकता पर बहस की हो। पत्रकार हेनरी न्यूमैन ने 1921 में पर्वतारोहियों के एक समूह का साक्षात्कार लिया जो माउंट एवरेस्ट पर चढ़कर लौट रहे थे। आपको लगता होगा कि दुनिया की सबसे ऊंची चोटी पर चढ़ना ही समाचार के योग्य होगा, हालांकि, इन लोगों ने खबर को और भी ऊंचा लिया क्योंकि उन्होंने अपने ट्रेक के दौरान बड़े आकार के पैरों के निशान देखे थे। स्थानीय गाइडों ने इन पैरों के निशानों को “मेतोह-कांगमी” का श्रेय दिया, जिसका अर्थ है “मानव-भालू स्नोमैन”।
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यमुना नदी का उद्गम स्थल : यमुनोत्री
उत्तरकाशी जिले के गढ़वाल हिमालय में, यमुनोत्री, चार धाम के बीच एक पवित्र स्थान स्थित है। यमुनोत्री से यमुना नदी का उद्गम होता है। यमुनोत्री ग्लेशियर 3293 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है और चारों ओर से हरे भरे जंगलों और वनस्पतियों और बर्फ से ढके पहाड़ों से घिरा हुआ है। यह कालिंद चोटी के ठीक नीचे स्थित है। इसलिए कालिंद पर्वत से निकलकर यमुना को कालिंदी के नाम से भी जाना जाता है।
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