#कृष्णा की क्रिया
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( #Muktibodh_part202 के आगे पढिए.....)
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#MuktiBodh_Part203
हम पढ़ रहे है पुस्तक "मुक्तिबोध"
पेज नंबर 386-387
प्रश्न : (बाबा जिन्दा रुप में भगवान जी का) हे धर्मदास जी! गीता शास्त्र आप के परमपिता भगवान कृष्ण उर्फ विष्णु जी का अनुभव तथा आपको आदेश है कि इस गीता शास्त्र में लिखे मेरे अनुभव को पढ़कर इसके अनुसार भक्ति क्रिया करोगे तो मोक्ष प्राप्त
करोगे। क्या आप जी गीता में लिखे श्री कृष्ण जी के आदेशानुसार भक्ति कर रहे हो? क्या गीता में वे मन्त्र जाप करने के लिए लिखा है जो आप जी के गुरुजी ने आप जी को जाप करने के लिए दिए हैं? (हरे राम-हरे राम, राम-राम हरे-हरे, हरे कृष्णा-हरे कृष्णा, कृष्ण-कृष्ण, हरे-हरे, ओम नमः शिवाय, ओम भगवते वासुदेवाय नमः, राधे-राधे श्याम मिलादे, गायत्री
मन्त्र तथा विष्णु सहंस्रनाम) क्या गीता जी में एकादशी का व्रत करने तथा श्राद्ध कर्म करने, पिण्डोदक क्रिया करने का आदेश है?
उत्तर :- (धर्मदास जी का) नहीं है।
प्रश्न :- (परमेश्वर जी का) फिर आप जी तो उस किसान के पुत्र वाला ही कार्य कर रहे हो जो पिता की आज्ञा की अवहेलना करके मनमानी विधि से गलत बीज गलत समय पर फसल बीजकर मूर्खता का प्रमाण दे रहा है। जिसे आपने ��ूर्ख कहा है। क्या आप जी उस किसान के मूर्ख पुत्र से कम हैं?
धर्मदास जी बोले : हे जिन्दा! आप मु��लमान फकीर हैं। इसलिए हमारे हिन्दू धर्म की भक्ति क्रिया व मन्त्रों में दोष निकाल रहे हो।
उत्तर : (कबीर जी का जिन्दा रुप में) हे स्वामी धर्मदास जी! मैं कुछ नहीं कह रहा, आपके धर्मग्रन्थ कह रहे हैं कि आपके धर्म के धर्मगुरु आप जी को शास्त्राविधि त्यागकर मनमाना आचरण करवा रहे हैं जो आपकी गीता के अध्याय 16 श्लोक 23-24 में भी कहा
है कि हे अर्जुन! जो साधक शास्त्र विधि को त्यागकर मनमाना आचरण कर रहा है अर्थात् मनमाने मन्त्र जाप कर रहा है, मनमाने श्राद्ध कर्म व पिण्डोदक कर्म व व्रत आदि कर रहा
है, उसको न तो कोई सिद्धि प्राप्त हो सकती, न सुख ही प्राप्त होगा और न गति अर्थात् मुक्ति मिलेगी, इसलिए व्यर्थ है। गीता अध्याय 16 श्लोक 24 में कहा है कि इससे तेरे लिए कर्त्तव्य अर्थात् जो भक्ति कर्म करने चाहिए तथा अकर्त्तव्य (जो भक्ति कर्म न करने चाहिए) की व्यवस्था में शास्त्र ही प्रमाण हैं। उन शास्त्रों में बताए भक्ति कर्म को करने से ही लाभ होगा।
धर्मदास जी : हे जिन्दा! तू अपनी जुबान बन्द कर ले, मुझसे और नहीं सुना जाता। जिन्दा रुप में प्रकट परमेश्वर ने कहा, हे वैष्णव महात्मा धर्मदास जी! सत्य इतनी कड़वी
होती है जितना नीम, परन्तु रोगी को कड़वी औषधि न चाहते हुए भी सेवन करनी चाहिए। उसी में उसका हित है। यदि आप नाराज होते हो तो मैं चला। इतना कहकर परमात्मा (जिन्दा रुप धारी) अन्तर्ध्यान हो गए। धर्मदास को बहुत आश्चर्य हुआ तथा सोचने लगा कि यह कोई सामान्य सन्त नहीं था। यह पूर्ण विद्वान लगता है। मुसलमान होकर हिन्दू शास्त्रों का पूर्ण ज्ञान है। यह कोई देव हो सकता है। धर्मदास जी अन्दर से मान रहे थे कि मैं गीता
शास्त्र के विरुद्ध साधना कर रहा हूँ। परन्तु अभिमानवश स्वीकार नहीं कर रहे थे। जब परमात्मा अन्तर्ध्यान हो गए तो पूर्ण रुप से टूट गए कि मेरी भक्ति गीता के विरुद्ध है। मैं भगवान की आज्ञा की अवहेलना कर रहा हूँ। मेरे गुरु श्री रुपदास जी को भी वास्तविक
भक्ति विधि का ज्ञान नहीं है। अब तो इस भक्ति को करना, न करना बराबर है, व्यर्थ है। बहुत दुखी मन से इधर-उधर देखने लगा तथा अन्दर से हृदय से पुकार करने लगा कि मैं
कैसा नासमझ हूँ। सर्व सत्य देखकर भी एक परमात्मा तुल्य महात्मा को अपनी नासमझी तथा हठ के कारण खो दिया। हे परमात्मा! एक बार वही सन्त फिर से मिले तो मैं अपना
हठ छोड़कर नम्र भाव से सर्वज्ञान समझूंगा। दिन में कई बार हृदय से पुकार करके रात्रि में सो गया। सारी रात्रि करवट लेता रहा। सोचता रहा हे परमात्मा! यह क्या हुआ। सर्व साधना शास्त्र विरुद्ध कर रहा हूँ। मेरी आँखें खोल दी उस फरिस्ते ने। मेरी आयु 60 वर्ष हो चुकी है। अब पता नहीं वह देव (जिन्दा रुपी) पुनः मिलेगा कि नहीं।
प्रातः काल वक्त से उठा। पहले खाना बनाने लगा। उस दिन भक्ति की कोई क्रिया नहीं की। पहले दिन जंगल से कुछ लकडि़याँ तोड़कर रखी थी। उनको चूल्हे में जलाकर भोजन बनाने लगा। एक लकड़ी मोटी थी। वह बीचो-बीच थोथी थी। उसमें अनेकां चीटियाँ थीं। जब वह लकड़ी जलते-जलते छोटी रह गई तब उसका पिछला हिस्सा धर्मदास जी को
दिखाई दिया तो देखा उस लकड़ी के अन्तिम भाग में कुछ तरल पानी-सा जल रहा है। चीटियाँ निकलने की कोशिश कर रही थी, वे उस तरल पदार्थ में गिरकर जलकर मर रही
थी। कुछ अगले हिस्से में अग्नि से जलकर मर रही थी। धर्मदास जी ने विचार किया। यह लकड़ी बहुत जल चुकी है, इसमें अनेकों चीटियाँ जलकर भस्म हो गई है। उसी समय अग्नि
बुझा दी। विचार करने लगा कि इस पापयुक्त भोजन को मैं नहीं खाऊँगा। किसी साधु सन्त को खिलाकर मैं उपवास रखूँगा। इससे मेरे पाप कम हो जाएंगे। यह विचार करके सर्व भोजन एक थाल में रखकर साधु की खोज में चल पड़ा। परमेश्वर कबीर जी ने अन्य वेशभूषा बनाई जो हिन्दू सन्त की होती है। एक वृक्ष के नीचे बैठ गए। धर्मदास जी ने साधु को देखा। उनके सामने भोजन का थाल रखकर कहा कि हे महात्मा जी! भोजन खाओ। साधु रुप में परमात्मा ने कहा कि लाओ धर्मदास! भूख लगी है। अपने नाम से सम्बोधन सुनकर धर्मदास को आश्चर्य तो हुआ परंतु अधिक ध्यान नहीं दिया। साधु रुप में विराजमान परमात्मा ने
अपने लोटे से कुछ जल हाथ में लिया तथा कुछ वाणी अपने मुख से उच्चारण करके भोजन पर जल छिड़क दिया। सर्वभोजन की चींटियाँ बन गई। चींटियों से थाली काली हो गई। चींटियाँ अपने अण्डों को मुख में लेकर थाली से बाहर निकलने की कोशिश करने लगी।
परमात्मा भी उसी जिन्दा महात्मा के रुप में हो गए। तब कहा कि हे धर्मदास वैष्णव संत! आप बता रहे थे कि हम कोई जीव हिंसा नहीं करते, आपसे तो कसाई भी कम हिंसक है। आपने तो करोड़ों जीवों की हिंसा कर दी। धर्मदास जी उसी समय साधु के चरणों में गिर गया तथा पूर्व दिन हुई गलती की क्षमा माँगी तथा प्रार्थना की कि हे प्रभु! मुझ अज्ञानी को क्षमा करो। मैं कहीं का नहीं रहा क्योंकि पहले वाली साधना पूर्ण रुप से शास्त्र विरुद्ध है।
उसे करने का कोई लाभ नहीं, यह आप जी ने गीता से ही प्रमाणित कर दिया। शास्त्र अनुकूल साधना किस से मिले, यह आप ही बता सकते हैं। मैं आपसे पूर्ण आध्यात्मिक ज्ञान सुनने का इच्छुक हूँ। कृपया मुझ किंकर पर दया करके मुझे वह ज्ञान सुनाऐ जिससे मेरा मोक्ष हो सके।
क्रमशः__________)
••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••
आध्यात्मिक जानकारी के लिए आप संत रामपाल जी महाराज जी के मंगलमय प्रवचन सुनिए। संत रामपाल जी महाराज YOUTUBE चैनल पर प्रतिदिन 7:30-8.30 बजे। संत र���मपाल जी महाराज जी इस विश्व में एकमात्र पूर्ण संत हैं। आप सभी से विनम्र निवेदन है अविलंब संत रामपाल जी महाराज जी से नि:शुल्क नाम दीक्षा लें और अपना जीवन सफल बनाएं।
https://online.jagatgururampalji.org/naam-diksha-inquiry
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प्रश्न : (बाबा जिन्दा रुप में भगवान जी का) हे धर्मदास जी! गीता शास्त्र आप के परमपिता भगवान कृष्ण उर्फ विष्णु जी का अनुभव तथा आपको आदेश है कि इस गीता शास्त्र में लिखे मेरे अनुभव को पढ़कर इसके अनुसार भक्ति क्रिया करोगे तो मोक्ष प्राप्त
करोगे। क्या आप जी गीता में लिखे श्री कृष्ण जी के आदेशानुसार भक्ति कर रहे हो? क्या गीता में वे मन्त्र जाप करने के लिए लिखा है जो आप जी के गुरुजी ने आप जी को जाप करने के लिए दिए हैं? (हरे राम-हरे राम, राम-राम हरे-हरे, हरे कृष्णा-हरे कृष्णा, कृष्ण-कृष्ण, हरे-हरे, ओम नमः शिवाय, ओम भगवते वासुदेवाय नमः, राधे-राधे श्याम मिलादे, गायत्री
मन्त्र तथा विष्णु सहंस्रनाम) क्या गीता जी में एकादशी का व्रत करने तथा श्राद्ध कर्म करने, पिण्डोदक क्रिया करने का आदेश है?
उत्तर :- (धर्मदास जी का) नहीं है।
प्रश्न :- (परमेश्वर जी का) फिर आप जी तो उस किसान के पुत्र वाला ही कार्य कर रहे हो जो पिता की आज्ञा की अवहेलना करके मनमानी विधि से गलत बीज गलत समय पर फसल बीजकर मूर्खता का प्रमाण दे रहा है। जिसे आपने मूर्ख कहा है। क्या आप जी उस किसान के मूर्ख पुत्र से कम हैं?
धर्मदास जी बोले : हे जिन्दा! आप मुसलमान फकीर हैं। इसलिए हमारे हिन्दू धर्म की भक्ति क्रिया व मन्त्रों में दोष निकाल रहे हो।
उत्तर : (कबीर जी का जिन्दा रुप में) हे स्वामी धर्मदास जी! मैं कुछ नहीं कह रहा, आपके धर्मग्रन्थ कह रहे हैं कि आपके धर्म के धर्मगुरु आप जी को शास्त्राविधि त्यागकर मनमाना आचरण करवा रहे हैं जो आपकी गीता के अध्याय 16 श्लोक 23-24 में भी कहा
है कि हे अर्जुन! जो साधक शास्त्र विधि को त्यागकर मनमाना आचरण कर रहा है अर्थात् मनमाने मन्त्र जाप कर रहा है, मनमाने श्राद्ध कर्म व पिण्डोदक कर्म व व्रत आदि कर रहा
है, उसको न तो कोई सिद्धि प्राप्त हो सकती, न सुख ही प्राप्त होगा और न गति अर्थात् मुक्ति मिलेगी, इसलिए व्यर्थ है। गीता अध्याय 16 श्लोक 24 में कहा है कि इससे तेरे लिए कर्त्तव्य अर्थात् जो भक्ति कर्म करने चाहिए तथा अकर्त्तव्य (जो भक्ति कर्म न करने चाहिए) की व्यवस्था में शास्त्र ही प्रमाण हैं। उन शास्त्रों में बताए भक्ति कर्म को करने से ही लाभ होगा।
धर्मदास जी : हे जिन्दा! तू अपनी जुबान बन्द कर ले, मुझसे और नहीं सुना जाता। जिन्दा रुप में प्रकट परमेश्वर ने कहा, हे वैष्णव महात्मा धर्मदास जी! सत्य इतनी कड़वी
होती है जितना नीम, परन्तु रोगी को कड़वी औषधि न चाहते हुए भी सेवन करनी चाहिए। उसी में उसका हित है। यदि आप नाराज होते हो तो मैं चला। इतना कहकर परमात्मा (जिन्दा रुप धारी) अन्तर्ध्यान हो गए। धर्मदास को बहुत आश्चर्य हुआ तथा सोचने लगा कि यह कोई सामान्य सन्त नहीं था। यह पूर्ण विद्वान लगता है। मुसलमान होकर हिन्दू शास्त्रों का पूर्ण ज्ञान है। यह कोई देव हो सकता है। धर्मदास जी अन्दर से मान रहे थे कि मैं गीता
शास्त्र के विरुद्ध साधना कर रहा हूँ। परन्तु अभिमानवश स्वीकार नहीं कर रहे थे। जब परमात्मा अन्तर्ध्यान हो गए तो पूर्ण रुप से टूट गए कि मेरी भक्ति गीता के विरुद्ध है। मैं भगवान की आज्ञा की अवहेलना कर रहा हूँ। मेरे गुरु श्री रुपदास जी को भी वास्तविक
भक्ति विधि का ज्ञान नहीं है। अब तो इस भक्ति को करना, न करना बराबर है, व्यर्थ है। बहुत दुखी मन से इधर-उधर देखने लगा तथा अन्दर से हृदय से पुकार करने लगा कि मैं
कैसा नासमझ हूँ। सर्व सत्य देखकर भी एक परमात्मा तुल्य महात्मा को अपनी नासमझी तथा हठ के कारण खो दिया। हे परमात्मा! एक बार वही सन्त फिर से मिले तो मैं अपना
हठ छोड़कर नम्र भाव से सर्वज्ञान समझूंगा। दिन में कई बार हृदय से पुकार करके रात्रि में सो गया। सारी रात्रि करवट लेता रहा। सोचता रहा हे परमात्मा! यह क्या हुआ। सर्व साधना शास्त्र विरुद्ध कर रहा हूँ। मेरी आँखें खोल दी उस फरिस्ते ने। मेरी आयु 60 वर्ष हो चुकी है। अब पता नहीं वह देव (जिन्दा रुपी) पुनः मिलेगा कि नहीं।
प्रातः काल वक्त से उठा। पहले खाना बनाने लगा। उस दिन भक्ति की कोई क्रिया नहीं की। पहले दिन जंगल से कुछ लकडि़याँ तोड़कर रखी थी। उनको चूल्हे में जलाकर भोजन बनाने लगा। एक लकड़ी मोटी थी। वह बीचो-बीच थोथी थी। उसमें अनेकां चीटियाँ थीं। जब वह लकड़ी जलते-जलते छोटी रह गई तब उसका पिछला हिस्सा धर्मदास जी को
दिखाई दिया तो देखा उस लकड़ी के अन्तिम भाग में कुछ तरल पानी-सा जल रहा है। चीटियाँ निकलने की कोशिश कर रही थी, वे उस तरल पदार्थ में गिरकर जलकर मर रही
थी। कुछ अगले हिस्से में अग्नि से जलकर मर रही थी। धर्मदास जी ने विचार किया। यह लकड़ी बहुत जल चुकी है, इसमें अनेकों चीटियाँ जलकर भस्म हो गई है। उसी समय अग्नि
बुझा दी। विचार करने लगा कि इस पापयुक्त भोजन को मैं नहीं खाऊँगा। किसी साधु सन्त को खिलाकर मैं उपवास रखूँगा। इससे मेरे पाप कम हो जाएंगे। यह विचार करके सर्व भोजन एक थाल में रखकर साधु की खोज में चल पड़ा। परमेश्वर कबीर जी ने अन्य वेशभूषा बनाई जो हिन्दू सन्त की होती है। एक वृक्ष के नीचे बैठ गए। धर्मदास जी ने साधु को देखा। उनके सामने भोजन का थाल रखकर कहा कि हे महात्मा जी! भोजन खाओ। साधु रुप में परमात्मा ने कहा कि लाओ धर्मदास! भूख लगी है। अपने नाम से सम्बोधन सुनकर धर्मदास को आश्चर्य तो हुआ परंतु अधिक ध्यान नहीं दिया। साधु रुप में विराजमान परमात्मा ने
अपने लोटे से कुछ जल हाथ में लिया तथा कुछ वाणी अपने मुख से उच्चारण करके भोजन पर जल छिड़क दिया। सर्वभोजन की चींटियाँ बन गई। चींटियों से थाली काली हो गई। चींटियाँ अपने अण्डों को मुख में लेकर थाली से बाहर निकलने की कोशिश करने लगी।
परमात्मा भी उसी जिन्दा महात्मा के रुप में हो गए। तब कहा कि हे धर्मदास वैष्णव संत! आप बता रहे थे कि हम कोई जीव हिंसा नहीं करते, आपसे तो कसाई भी कम हिंसक है। आपने तो करोड़ों जीवों की हिंसा कर दी। धर्मदास जी उसी समय साधु के चरणों में गिर गया तथा पूर्व दिन हुई गलती की क्षमा माँगी तथा प्रार्थना की कि हे प्रभु! मुझ अज्ञानी को क्षमा करो। मैं कहीं का नहीं रहा क्योंकि पहले वाली साधना पूर्ण रुप से शास्त्र विरुद्ध है।
उसे करने का कोई लाभ नहीं, यह आप जी ने गीता से ही प्रमाणित कर दिया। शास्त्र अनुकूल साधना किस से मिले, यह आप ही बता सकते हैं। मैं आपसे पूर्ण आध्यात्मिक ज्ञान सुनने का इच्छुक हूँ। कृपया मुझ किंकर पर दया करके मुझे वह ज्ञान सुनाऐ जिससे मेरा मोक्ष हो सके।
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पानी हमारी नैपासर्गिक जरुरत -
पानी एक शब्द ही नहीं हमारी नैसर्गिक जरुरत है और इसलिए जब विज्ञानं के माध्यम से हम किसी ग्रह को खोजने निकलते है तो सबसे पहले उस ग्रह पे पानी खोजते है |हमने इस समय कई प्रगति की हम मंगल गए हम चन्द्रमा को भी छुआ लेकिन वहाँ भी हम पानी ही खोजते रहे है | आखिर हो भी क्यों ना पानी एक रासायनिक संगठन से मिलकर बना है जिसका अणु दो हाइड्रोजन परमाणु और ऑक्सीजन परमाणु से बना है और ऑक्सीजन तो मनुष्य की जीने के लिए ही सहायक है | इसीलिए लोगों का कहना है 'जल है तो जीवन है '|वैसे तो हर जीव जीवन का आधार है | आम तौर में लोग जल शब्द का प्रयोग द्रव्य अवस्��ा के लिए करते है लेकिन ये ठोस और गैसीय अवस्था में भी पाया जाता है |
जल का रासायनिक और भौतिक गुण-
जल को अच्छे से समझने के लिए उसके भीतर के विज्ञानं को समझना बहुत ही आवश्यक है | यहाँ आपको हम उसके हर गुण से अवगत कराएँगे | आये समझते है की रसायन विज्ञानं के माध्यम से जल कैसे बना है | जल एक रासायनिक पदार्थ है और उसका रासायनिक सूत्र -H2O है जल के एक अणु में दो हाइड्रोजन के परमाणु सहसंयोजक बंध के द्वारा एक ऑक्सीजन के परमाणु से जुडे़ रहते हैं।जल समान्य ताप में और दबाव में एक फीका और बिना गंध वाला तरल है|जल पारदर्शीय होता है और इसलिए जलीय पौधे इसमें जीवित रहते है क्योंकि उन्हे सूर्य की रोशनी मिलती रहती है। केवल शक्तिशाली पराबैंगनी किरणों का ही कुछ हद तक यह अवशोषण कर पाता है।
बर्फ जल के ऊपर तैरता क्यों है -
जल एक बहुत प्रबल विलायक(घुलने वाला ) है, जिसे सर्व-विलायक भी कहा जाता है। वो पदार्थ जो जल में भलि भाँति घुल जाते है जैसे लवण, शर्करा, अम्ल, क्षार और कुछ गैसें विशेष रूप से ऑक्सीजन, कार्बन डाइऑक्साइड उन्हे हाइड्रोफिलिक (जल को प्यार करने वाले) कहा जाता है, जबकि दूसरी ओर जो पदार्थ अच्छी तरह से जल के साथ मिश्रण नहीं बना पाते है जैसे वसा और तेल, हाइड्रोफोबिक (जल से डरने वाले) कहलाते हैं|जल का घनत्व अधिकतम 3.98 °C पर होता है। जमने पर जल का घनत्व कम हो जाता है और यह इसका आयतन 9% बढ़ जाता है। यह गुण एक असामान्य घटना को जन्म देता जिसके कारण बर्फ जल के ऊपर तैरती है और जल में रहने वाले जीव आंशिक रूप से जमे हुए एक तालाब के अंदर रह सकते हैं |
क्योंकि तालाब के तल पर जल का तापमान 4 °C के आसपास होता है।शुद्ध जल की विद्युत चालकता कम होती है, लेकिन जब इसमे आयनिक पदार्थ सोडियम क्लोराइड मिला देते है तब यह आश्चर्यजनक रूप से बढ़ जाती है|जल का जो वाष्प बनने की प्रक्रिया में वायुमंडलीय दबाव बहुत करक है जहा वायुमंडलीय दबाव कम होता है वहाँ जल कमसेंटीग्रेट पे ही उबाल जाता है जबकि जहा वायुमंडलीय दबाव ज्यादा होता है वहाँ सैकड़ों सेंटीग्रेट पे भी द्रव्य ही बना रहता है |जल का ये गुण भी बहुत ही अजीब है |लेकिन जल को समझना जरुरी होता है |
जल की उत्पति -
अमेरिकी वैज्ञानिकों के अनुसार पानी, पृथ्वी के जन्म के समय से ही मौजूद है। उनका कहना है कि जब सौर मण्डलीय धूल कणों से पृथ्वी का निर्माण हो रहा था, उस समय, धूल कणों पर पहले से ही पानी मौजूद था। यह परिकल्पना, उसी स्थिति में ग्राह्य ह�� जब यह प्रमाणित किया जा सके कि ग्रहों के निर्माण के समय की कठिन परिस्थितियों में सौर मण्डल के धूल कण, पानी की बूँदों को सहजने में समर्थ थे। लेकिन कुछ वैज्ञानिक ये नहीं मानते उनका कहना है की पृथ्वी के जन्म के समय के कुछ दिन बाद पानी से सन्तृप्त करोड़ों धूमकेतुओं तथा उल्का पिंडों की वर्षा हुई। धूमकेतुओं तथा उल्का पिंडों का पानी धरती पर जमा हुआ और उसी से महासागरों का जन्म हुआ| खगोलीय वैज्ञानिक का मानना है की पृथ्वी पर पानी का आगमन ४०० करोड़ साल पहले ही हुआ होगा | वो ऊपर दी हुई दोनों सोच को लेकर चलते है और आधुनिक खोज के साथ ये बताता है की पृथ्वी के जन्म के समय पानी मौजूद होगा लेकिन कम मात्रा में और फिर कुछ समय बाद पानी से सन्तृप्त करोड़ों धूमकेतुओं तथा उल्का पिंडों की वर्षा हुई जिससे महासागरों का जन्म हुआ |हाड्रोजन और ऑक्सीजन के संयोग से पानी का जन्म हुआ इसका साफ़ मतलब है की ये प्रक्रिया धरती के ठन्डे होने के बाद ही हुई होगी | ढेर सारी जानकारियों के बावजूद अभी भी आधुनिक विज्ञानं पानी की उत्पति के सही जगह सही समय के लिए उधेड़बून में ही है |
पानी की समस्या और उसका प्रभाव
दुनिया के भू वैज्ञानिक पहले से सबको सचेत करते आ रहे है जल का अत्यधिक दोहन से बचे |नहीं तो जिस रफ़्तार से आबादी बढ़ रही है और अद्योगीकरण के कारण पानी की समस्या विकराल रूप ले लेगी |कहा तो ये भी जाता है की अगला विश्व युद्ध पानी को लेकर होगा लेकिन कभी -कभी ये भी कहा जाता है की अगला विश्व युद्ध तेल को लेकर होगा | पानी की समस्या तो पुरे विश्व में है लेकिन भारत में ये समस्या तीव्र गति से बढ़ रही है | वैसे तो कहा जाता है की पृथ्वी 71 % पानी से घिरी है |उसमे महासागरों का जल भी शामिल है |
भारत में जल के दो माध्यम है -
१-नदिया २- भूमिगत जल इन दोनों में इनदिनों भरी गिरावट आयी है |कई अनुमान पे आकड़े दिए गए है जिस प्रकार लोग पानी का दोहन कर रहे है और आबादी बढ़ रही है भारत में तो पानी की जो मांग है 2025 पहुंचते -पहुंचते 735 बी. सी. ऍम .(बिलियन क्यूबिक मीटर) तक पहुंच जाएगी और ये स्थिर नहीं क्योकि कभी डिमांड ज्यादा भी हो जाती है तो ये 795 बी. सी. ऍम .(बिलियन क्यूबिक मीटर)तक भी पहुंच सकती है जो 90 से पहले कम थी और हमारे देश की आबादी भी कम थी | इधर हम चीन को होड देने में लगे है की हम कब जनसंख्या में उसके ऊपर हो जाये | अब देखते है हमारे जल ससंसाधनो में कितना बिलियन क्यूबिक मीटर पानी है जो हमे हमारी नदियों से मिलता है | गंगा ,सिंधु ,ब्रह्मपुत्र ,गोदावरी ,कृष्णा ,कावेरी , महानदी ,स्वर्णरेखा ,नर्मदा ,ताप्ती ,साबरमती ,इन सबके पिने योग्य पानी अगर मिला दिया जाये तो हमारे पास 1100 बिलियन क्यूबिक मीटर पानी मौजूद है | ये इससे बढ़ेगा नहीं ��टेगा ही | इसलिय विचार हमे करना है न की कोई और करेगा |
भारत एक कृषि प्रधान देश है यहाँ की आधी आबादी कृषि पे निर्भर है और कृषि का कम् सिचाई दवरा होता है और भारतीय किसान भूमिगत जल का प्रयोग इसमें लाते है | भूमिगत जल का आकलन करना थोड़ा कठिन है क्योकि ये पानी जो सतह का है उससे रिस -रिस के ही नीचे पहुँचता है |ये पानी भी नदियों के सामान नीचे बहता है | अगर नीचे इसका मार्ग रुकता है तो ये खारा हो जाता है और पीने योग्य नहीं होता है |भूमिगत पानी का उपयोग समान्यता जनता करती है और इधर बीच इसका जलस्तर घटता ही जा रहा है और तो और पानी की गुणवत्ता में कमी आ रही है |
इधर भारत में वाटर प्योरिफायर और Ro बढ़ता प्रयोग -
लोगों अपने घरों में ऑरो लगा रहे है |पानी को शुद्ध करके पीने के लिए |वाटर प्योरिफायर बनाने वाली कंपनी कई तरह के वाटर प्योरिफायर बना रही है कोई अल्ट्रा वाटर प्योरिफायर बना रहा है | ये भी पानी को शुद्ध करने का तरीका है |रिवर्स ओसमोसिस प्रक्रिया ( REVERSE OSMOSIS ) इसको शार्ट में RO कहा जाता है ये ही क्रिया सबसे ज्यादा प्रचलित है |इसमें जल को एक प्रेशर के तहत एक झिल्ली से आर -पार भेजा जाता है और जल में उपस्थित अधिक सांद्रता वाले पदार्थ झिल्ली में ही रह जाते है |और शुद्ध जल झिल्ली के पार चला जाता है |एक RO का प्रयोग में 5 वर्षों तक कर सकते है |इस पूरी प्रक्रिया में RO जल से हर तरह के गंदलापन , अकार्बनिक आयनों को जल से अलग कर देता है |इस तकनीक में बहुत पैसा लगता है और पानी की बर्बादी भी होती है |लेकिन पानी अगर शुद्ध नहीं है तो लोग उसे पीने योग्य बनाने के लिए विवश है |
भारत के बड़े शहरों पानी की बिकरालता की दस्तक -
इसलिए भारत के लोगों और यहाँ की सरकारों को इस बारे में सोचना ही होगा नहीं तो ये बिकराल समस्या कब आके आपके बगल में खड़ी हो जाएगी आपको पता भी नहीं चलेगा |भारत के कई बड़े शहरों में ये समस्या आम हो चुकी है उनका यहाँ का जलस्तर बहुत ही नीचे जा चूका है कई लोग अपने घरों समरसेबल लगा के काम चला रहे है तो जिसके पास ये व्यवस्था नहीं है वो पूरी तरह से सरकार के पानी के टैंक पे निर्भर है |ऐसा ही महारष्ट्र के शहरों का हाल है लॉक डाउन में भी कई जगह से ट्रेनों में पानी भरकर उन जिलों और राज्यों में पहुंचाया गया |
स्लोगन -'जल है तो कल है '- पे गौर फरमाए -
और इसलिए अगर समस्या दर पे खड़ी है तो उसको नज़रअंदाज़ नहीं करना चाहिए |सबसे पहले हमे अरब देशों से सीखना चाहिए की पानी को कैसे बचाये |और कम से पानी की बर्बादी करे | नहीं तो आबादी बढ़ने से वातारण भी अनियंत्रित हो रहा है और उसका हमारे एको-सिस्टम पे बहुत ही बुरा प्रभाव पड़ रहा है |हम पेड़ों को काट कर रहने के लिए जगह बना रहे है लेकिन अगर पानी ही न हुआ तो उस जगह का आप क्या करेंगे |इसलिए मेरा कहना है -'जल है तो कल है ' इस स्लोगन का आप ध्यान रखे और दूसरों को भी ध्यान दिलाये|
#हाइड्रोजन परमाणु#परमाणुसहसंयोजक बंध#पराबैंगनीकिरणों#पानी#स्वर्णरेखा#समस्यातीव्रगति#समरसेबल#वायुमंडलीयदबाव#वाटरप्योरिफायर#रासायनिकसूत्र H2O#महारष्ट्रकेशहरों#भूमिगतपानी#भूमिगतजल#ब्रह्मपुत्र#बिलियनक्यूबिकमीटर#बिनागंधवालातरल#प्रबलविलायक#पृथ्वीकेजन्मकेसमय#पृथ्वी71 %पानीसेघिरी है#पानीकेकमीकाप्रभाव#पानीकाजन्म#४००करोड़साल#h2o#REVERSEOSMOSIS#Roबढ़ताप्रयोग#water#watercrisis#watercrisisindiabook#अल्ट्रावाटरप्योरिफायर#आयतन9%बढ़जाता
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राधा
राधा शब्द को भागवत पुराण में सिद्ध करने की अशास्त्रीय चेष्टाओं की बहुत चर्चा हुई है। अंग्रेजी शासन के बाद यह परम्परा हो गयी है ��ि किसी शास्त्र का जो विषय नहीं है, वैसा शब्द उसमें खोजते हैं, तथा नहीं मिलने पर यह सिद्ध कर देते हैं कि यह भारत में नहीं था। सांख्य दर्शन की पुस्तक में चावल का वर्णन नहीं है, अतः यह सिद्ध हो गया कि भारत में चावल नहीं होता था। ऐसे तर्कों के अनुसार भारत में करोड़ों व्यक्ति कई हजार वर्षों तक बिना भोजन जीवित रहे। सांख्य दर्शन यान्त्रिक विश्व का वर्णन करता है जिसमें पुरुष के ब्रह्म-जीव भेद की चर्चा नहीं है। अतः कुछ लोगों ने सेश्वर तथा निरीश्वर सांख्य की कल्पना की है।
परम पुरुष रूप भगवान् श्रीकृष्ण की व्याख्या के लिए भागवत पुराण लिखा गया है। इस अर्थ में वह वेद की व्याख्या तथा भूमिका है। उसमें प्रकृति तत्त्व की आवश्यकता नहीं थी, अतः इसमें प्रकृति रूपिणी राधा का वर्णन नहीं है।
ब्रह्म का विवर्त्त यह विश्व है। विश्व रचना प्रकृति द्वारा होती है, अतः ब्रह्म वैवर्त्त पुराण में राधा का वर्णन है।
केवल राधा के वर्णन के लिए देवी भागवत पुराण लिखा गया है, उसमें मूल प्रकृति रूप राधा तथा उनसे उत्पन्न अन्य प्रकृति रूपों का विस्तार से वर्णन है।
कृष्ण की तरह राधा के भी २ रूप हैं। भगवान् कृष्ण परब्रह्म भी हैं तथा उनके मनुष्य अवतार भी। राधा परम प्रकृति भी हैं, उनका मनुष्य अवतार भी।
परम प्रकृति रूप में राधा का वर्णन वेदों में भी है, उसे मनुष्य वर्णन के साथ जोड़ना उचित नहीं है। ऋग्वेद के कुछ उद्धरण हैं-
गवामप व्रजं वृधि कृणुष्व राधो अद्रिव: । (१/१०/७)
दासपत्नीरहिगोपा अतिष्ठन् । (१/३२/११)
त्वं नृचक्षा वृषभानु पूर्वी: कृष्णास्वग्ने अरुषो वि भाहि । (३/१५/३)
तमेतदधारय: कृष्णासु रोहिणीषु । (८/९३/१३)
कृष्णा रुपाणि अर्जुना वि वो मदे।(१०/२१/३)
ब्राह्मणादिन्द्रराधस: पिबा सोमं ।१/१५/५)
कथं राधाम सखाय: । (१/४२/७)
अपामिव प्रवणे यस्य दुर्धरं राधो विश्वायु । (१/१७/१)
इन्द्रावरुण वामहं हूवे चित्राय राधसे ।। (१/१७/७)
मादयस्व शवसे शूर राधसे । (१/८/१८)
तुभ्यं पयो यत् पितरावनीतां राध: । (१/१२१/५)
ऋक् (१/६२/८, १/१४१/७,८; १/१४०/३; १/२२/७, १/१३४/४) भी देख सकते हैं। इनमें प्रकृति के विभिन्न रूपों तथा कर्मों आ वर्णन है।
मनुष्यों की रासलीला एक नृत्य है जिसमें एक व्यक्ति केन्द्र में रहता है, बाकी उसकी परिक्रमा करते हैं। विश्व के विभिन्न स्तरों पर सृष्टि इसी प्रकार की क्रिया से होती है। ब्रह्माण्ड के सभी पिण्ड उसके केन्द्र में स्थित कृष्ण विवर के आकर्षण में बन्ध कर घूम रहे हैं-
आकृष्णेन रजसा व��्तमानो निवेशयन् अमृतं मर्त्यं च॥ (यजुष्, ३३/४३, ऋक्, १/३५/२)
पिण्डों के अतिरिक्त वह केन्द्र प्रकाश का भी आकर्षण करता है, अतः कृष्ण का अर्थ आकर्षण तथा कृष्ण रंग (प्रकाश का अभाव) भी है। पूरा ब्रह्माण्ड अपेक्षाकृत स्थायी है जिसमें सूर्य जैसे ताराओं का जन्म मरण होता रहता है। अतः ब्रह्माण्ड को अमृत और सौरमण्डल को मर्त्य कहा गया है। विष्णु पुराण अध्याय (२/७) में इनको अकृतक और कृतक कहा गया है।
सौर मण्डल में भी सूर्य केन्द्र के आकर्षण में ग्रह घूम रहे हैं। आकर्षण बल से ग्रहों को कक्षा में बान्ध रखना विष्णु रूप है। सूर्य से तेज निकल कर शून्य में भी भर जाता है, वह इन्द्र है। दोनों के कारण पृथ्वी पर जीवन चल रहा है, वह विष्णु का जाग्रत रूप जगन्नाथ है (चण्डी पाठ, अध्याय १)। इसमें सूर्य कृष्ण है, ग्रह गोपियां हैं, जो गो या किरण का पान करती हैं। जीवन का आधार या पद पृथ्वी ही राधा है।
चन्द्र तथा कुछ १/४ भाग सूर्य आकर्षण के कारण पृथ्वी का अक्ष २६,००० वर्ष में एक परिक्रमा करता है जिसे ब्रह्माण्ड पुराण (१/२/२९/१९) में मन्वन्तर कहा गया है। यह ऐतिहासिक मन्वन्तर है। ज्योतिषीय मन्वन्तर ३०.६८ करोड़ वर्ष का है जो ब्रह्माण्ड का अक्ष भ्रमण काल है। ऐतिहासिक मन्वन्तर में जल प्रलय का चक्र होता है जो इतिहास का बृहत् रास है। इसका आरम्भ विन्दु कृत्तिका को माना गया है-
तन्नो देवासो अनुजानन्तु कामम् .... दूरमस्मच्छत्रवो यन्तु भीताः।
तदिन्द्राग्नी कृणुतां तद्विशाखे, तन्नो देवा अनुमदन्तु यज्ञम्।
नक्षत्राणां अधिपत्नी विशाखे, श्रेष्ठाविन्द्राग्नी भुवनस्य गोपौ॥११॥
पूर्णा पश्चादुत पूर्णा पुरस्तात्, उन्मध्यतः पौर्णमासी जिगाय।
तस्यां देवा अधिसंवसन्तः, उत्तमे नाक इह मादयन्ताम्॥१२॥ (तैत्तिरीय ब्राह्मण, ३/१/१)
= देव कामना पूर्ण करते हैं, इन्द्राग्नि (कृत्तिका) से विशाखा (नक्षत्रों की पत्नी) तक बढ़ते हैं। तब वे पूर्ण होते हैं, जो पूर्णमासी है। तब विपरीत गति आरम्भ होती है। यह गति नाक (पृथ्वी कक्षा का ध्रुव) के चारो तरफ है।
शासन या हर व्यवस्था में एक केन्द्रीय व्यक्ति सञ्चालन करता है, बाकी उसके चारों तरफ घूमते हैं-सांकेतिक रूप से।
मनुष्य के सेल (कोषिका) तथा परमाणु में भी एक केन्द्रीय नाभि होती है। मनुष्य शरीर में तथा हर मशीन में एक केन्द्रीय हृदय रहता है जो सञ्चालन करता है।
एषः प्रजापतिर्यद् हृदयमेतद् ब्रह्मैतत् सर्वम्। तदेतत् त्र्यक्षरं हृदयमिति हृ इत्येकमक्षरमभिहरन्त्यस्मै स्वाश्चान्ये च य एवं वेद। द इत्येकमक्षरं ददन्त्यस्मै स्वाश्चान्ये च य एवं वेद। यमित्येकमक्षरमेति स्वर्गं लोकं य एवं वेद॥ (शतपथ ब्राह्मण १४/८४/१, बृहदारण्यक उपनिषद् ५/३/१) = यह हृदय ही प्रजापति है, तथा ब्रह्म और सर्व है । इसमें ३ अक्षर हैं। एक हृ है जिसमें अपना और अन्य का आहरण होता है। एक ’द’ है जो अपना और अन्य का देता है । एक ’यम्’ है जिसे जानने से स्वर्ग लोक को जाता है।
हृदय = हृ + द + यम्; हृ = आहरण , ग्रहण; द = दान, देना।
यम् = यमन्, नियमन्-यम नियम अष्टाङ्ग योग के प्रथम २ पाद। यम = नियन्त्रण। यम-निषेध। नियम = पालन। यह क्रियात्मक विश्व है, जिसका नियन्त्रक प्रजापति हर हृदय में रहता है-ईश्वरः सर्वभूतानां हृद्देशेऽर्जुन तिष्ठति। (गीता १८/६१)
अर्थात्, हृदय वह क्षेत्र (देश) है जिसमें ३ क्रिया हो रही हैं-हृ = लेना, द = देना, यम् = नियम के अनुसार काम करना। नियम का बार बार पालन होता है अतः यह चक्र में होता है। उत्पादक कर्म यज्ञ भी चक्र में होता है।
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देखिए..जन्माष्टमी स्पैशल सत्संग 18.8.2022 बुधवार रात 9:00 बजे से लाइव⤵️
🔸श्रीमद भगवत गीता जी में भगवान को पाने का कौन सा मंत्र लिखा है ?
🔸पांडवों की यज्ञ में श्री कृष्ण जी ने एक संत के चरण धोकर चरणामृत क्यों लिया ?
🔸जो लीला श्री सुदामा जी के साथ द्वापर युग में हुई थी, कलयुग में वही लीला किस राजा के साथ हुई ?
🔸जन्माष्टमी के अवसर पर जाने कि गीता जी के अनुसार ऐसी कौन सी क्रिया है जो हमें मोक्ष प्रदान कर सकती है ?
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Pune
15 August 2021
आज पेपर झाला म्हणून निवांत होत.तरिही मला काल सारखीच लवकर जाग आली.उठुन सुदर्शन क्रिया केली.आनी तसच बसलो.सगळे झोपीतच होते.म्हणून मी तसच झोपलो.मोबाइल बघत बघत झोपलो होतो.आज फिरायला जायचे होते ते म्हणजे कोंढाना किल्ला वर.खुप ऐकल होत त्याबद्दल म्हणून जायचंच होत.माऊन कृष्णा ला बोलाउन घेतले.म��,काका,मामा,कृष्णा व राम असे सगळेच निघालाव.खुप लांबवर गेलो.पण तिथ गेल्यावर समजल की आज 15 आगस्ट मुळ सगळं बंद आहे.तिथुनच वापस याव लागल.
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जय श्री कृष्णा।। मित्रों आपको राज़कुमार देशमुख का स्नेह वंदन। आज कथा सेवा में हनुमान जी कौन है और उनकी पूंछ का क्या रहस्य इसको प्रकट करता आज का कथा पुष्प अर्पित है। 🌹🌹पार्वती जी ने शंकर जी से कहा - भगवन अपने इस भक्त को कैलाश आने से रोक दीजिए, वरना किसी दिन मैं इसे अग्नि में भस्म कर दूंगी। यह जब भी आता है, मैं बहुत असहज हो जाती हूँ। यह बात मुझे बिल्कुल भी पसंद नहीं है। आप इसे समझा दीजिए, यह कैलाश में प्रवेश न करें। शिव जी जानते थे कि पार्वती सिर्फ उनके वरदान की मर्यादा रखने के लिए रावण को कुछ नहीं कहती हैं। वह चुपचाप उठकर बाहर आकर देखते हैं। रावण नंदी को परेशान कर रहा है। शिव जी को देखते ही वह हाथ जोड़कर प्रणाम करता है। प्रणाम महादेव। आओ दशानन कैसे आना हुआ ?? मैं तो बस आप के दर्शन करने के लिए आ गया था महादेव। अखिर महादेव ने उसे समझाना शुरू किया। देखो रावण तुम्हारा यहां आना पार्वती को बिल्कुल भी पसंद नहीं है। इसलिए तुम यहां मत आया करो। महादेव यह आप कह रहे हैं। आप ही ने तो मुझे किसी भी समय आप के दर्शन के लिए कैलाश पर्वत पर आने का वरदान दिया है। और अब आप ही अपने वरदान को वापस ले रहे हैं। ऐसी बात नहीं है रावण। लेकिन तुम्हारे क्रिया कलापों से पार्वती ��रेशान रहती है और किसी दिन उसने तुम्हें श्राप दे दिया तो मैं भी कुछ नहीं कर पाऊंगा। इसलिए बेहतर यही है कि तुम यहां पर न आओ। फिर आप का वरदान तो मिथ्या हो गया महादेव। मैं तुम्हें आज एक और वरदान देता हूं। तुम जब भी मुझे याद करोगे। मैं स्वयं ही तुम्हारे पास आ जाऊंगा। लेकिन तुम अब किसी भी परिस्थिति में कैलाश पर्वत पर मत आना। अब तुम यहां से जाओ, पार्वती तुमसे बहुत रुष्ट है। रावण चला जाता है। समय बदलता है हनुमानजी रावण की स्वर्ण नगरी लंका को जला कर राख करके चले जाते हैं। और रावण उनका कुछ नहीं कर सकता है। वह सोचते-सोचते परेशान हो जाता है कि आखिर उस हनुमान में इतनी शक्ति आई कहां से। परेशान हो कर वह महल में ही स्थित शिव मंदिर में जाकर शिवजी की प्रार्थना आरम्भ करता है। जटाटवीगलज्जल प्रवाहपावितस्थले। गलेऽवलम्ब्य लम्बितां भुजंगतुंगमालिकाम्।। उसकी प्रार्थना से शिव प्रसन्न होकर प्रकट होते हैं। रावण अभिभूत हो कर उनके चरणों में गिर पड़ता है। कहो दशानन कैसे हो ? शिवजी पूछते हैं। आप अंतर्यामी हैं महादेव। सब कुछ जानते हैं प्रभु। एक अकेले बंदर ने मेरी लंका को और मेरे दर्प को भी जला कर राख कर दिया। मैं जानना चाहता हूं कि यह बंदर जिसका नाम हनुमान है आखिर कौन है ? और प्रभु उसकी पूंछ तो और भी ज्यादा शक्तिशाली https://www.instagram.com/p/CQkUF-6hOvN/?utm_medium=tumblr
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जय श्री कृष्णा।। मित्रों आपको *राजकुमार देशमुख* का स्नेह वंदन। आज कथा सेवा में हनुमान जी कौन है और उनकी पूंछ का क्या रहस्य इसको प्रकट करता आज का कथा पुष्प अर्पित है।
🌹🌹पार्वती जी ने शंकर जी से कहा - भगवन अपने इस भक्त को कैलाश आने से रोक दीजिए, वरना किसी दिन मैं इसे अग्नि में भस्म कर दूंगी।
यह जब भी आता है, मैं बहुत असहज हो जाती हूँ। यह बात मुझे बिल्कुल भी पसंद नहीं है। आप इसे समझा दीजिए, यह कैलाश में प्रवेश न करें।
शिव जी जानते थे कि पार्वती सिर्फ उनके वरदान की मर्यादा रखने के लिए रावण को कुछ नहीं कहती हैं।
वह चुपचाप उठकर बाहर आकर देखते हैं। रावण नंदी को परेशान कर रहा है।
शिव जी को देखते ही वह हाथ जोड़कर प्रणाम करता है। प्रणाम महादेव।
आओ दशानन कैसे आना हुआ ?
मैं तो बस आप के दर्शन करने के लिए आ गया था महादेव।
अखिर महादेव ने उसे समझाना शुरू किया। देखो रावण तुम्हारा यहां आना पार्वती को बिल्कुल भी पसंद नहीं है। इसलिए तुम यहां मत आया करो।
महादेव यह आप कह रहे हैं। आप ही ने तो मुझे किसी भी समय आप के दर्शन के लिए कैलाश पर्वत पर आने का वरदान दिया है।
और अब आप ही अपने वरदान को वापस ले रहे हैं। ऐसी बात नहीं है रावण।
लेकिन तुम्हारे क्रिया कलापों से पार्वती परेशान रहती है और किसी दिन उसने तुम्हें श्राप दे दिया तो मैं भी कुछ नहीं कर पाऊंगा। इसलिए बेहतर यही है कि तुम यहां पर न आओ।
फिर आप का वरदान तो मिथ्या हो गया महादेव।
मैं तुम्हें आज एक और वरदान देता हूं। तुम जब भी मुझे याद करोगे। मैं स्वयं ही तुम्हारे पास आ जाऊंगा। लेकिन तुम अब किसी भी परिस्थिति में कैलाश पर्वत पर मत आना।
अब तुम यहां से जाओ, पार्वती तुमसे बहुत रुष्ट है। रावण चला जाता है।
समय बदलता है हनुमानजी रावण की स्वर्ण नगरी लंका को जला कर राख करके चले जाते हैं। और रावण उनका कुछ नहीं कर सकता है।
वह सोचते-सोचते परेशान हो जाता है कि आखिर उस हनुमान में इतनी शक्ति आई कहां से।
परेशान हो कर वह महल में ही स्थित शिव मंदिर में जाकर शिवजी की प्रार्थना आरम्भ करता है।
*जटाटवीगलज्जल प्रवाहपावितस्थले।*
*गलेऽवलम्ब्य लम्बितां भुजंगतुंगमालिकाम्।।*
उसकी प्रार्थना से शिव प्रसन्न होकर प्रकट होते हैं। रावण अभिभूत हो कर उनके चरणों में गिर पड़ता है।
कहो दशानन कैसे हो ? शिवजी पूछते हैं।
आप अंतर्यामी हैं महादेव। सब कुछ जानते हैं प्रभु।
*एक अकेले बंदर ने मेरी लंका को और मेरे दर्प को भी जला कर राख कर दिया।*
मैं जानना चाहता हूं कि यह बंदर *जिसका नाम हनुमान है आखिर कौन है ?*
और प्रभु उसकी पूंछ तो और भी ज्यादा शक्तिशाली थी। किस तरह सहजता से मेरी लंका को जला दिया। मुझे बताइए कि यह हनुमान कौन है ?
शिव जी मुस्���ुराते हुए रावण की बात सुनते रहते हैं। और फिर बताते हैं कि रावण *यह हनुमान और कोई नहीं मेरा ही रूद्र अवतार है।*
विष्णु ने जब यह निश्चय किया कि वे पृथ्वी पर अवतार लेंगे और माता लक्ष्मी भी साथ ही अवतरित होंगी। तो मेरी इच्छा हुई कि मैं भी उनकी लीलाओं का साक्षी बनूं।
और जब मैंने अपना यह निश्चय पार्वती को बताया तो वह हठ कर बैठी कि मैं भी साथ ही रहूंगी। लेकिन यह समझ नहीं आया कि उसे इस लीला में किस तरह भागीदार बनाया जाए।
तब सभी देवताओं ने मिलकर मुझे यह मार्ग बताया। आप तो बंदर बन जाइये और शक्ति स्वरूपा पार्वती देवी आपकी पूंछ के रूप में आपके साथ रहे, तभी आप दोनों साथ रह सकते हैं।
और उसी अनुरूप मैंने हनुमान के रूप में जन्म लेकर राम जी की सेवा का व्रत रख लिया और शक्ति रूपा पार्वती ने पूंछ के रूप में और उसी सेवा के फल स्वरूप तुम्हारी लंका का दहन किया।
अब सुनो रावण! तुम्हारे उद्धार का समय आ गया है। अतः श्री राम के हाथों तुम्हारा उद्धार होगा। मेरा परामर्श है कि तुम युद्ध के लिए सबसे अंत में प्रस्तुत होना। जिससे कि तुम्हारा समस्त राक्षस परिवार भगवान श्री राम के हाथों से मोक्ष ��ो प्राप्त करें और तुम सभी का उद्धार हो जाए।
रावण को सारी परिस्थिति का ज्ञान होता है और उस अनुरूप वह युद्ध की तैयारी करता है और अपने पूरे परिवार को राम जी के समक्ष युद्ध के लिए पहले भेजता है और सबसे अंत में स्वयं मोक्ष को प्राप्त होता हैं।
अंत में आपसे पुनः निवेदन है कि आप कोराॆना काल में मानवीय दूरी का पालन करें मास्क, सेनेटाइजर का प्रयोग करें &चीन के सामान का बहिष्कार करें और स्वदेशी सामान अपनाए ताकि आने वाले आर्थिक संकट का सामना हम कर सके। *संकलन कर्ता 🙏🙏राजकुमार देशमुख🙏🙏*
हमारा ऑफिशियल फेसबुक पेज अवश्य देखें *श्री भक्ति ग्रुप मंदिर* https://facebook.com/bhaktigroupofficial
*🦚🌈[भक्ति🛕ग्रुप🛕मंदिर™]🦚🌈*
*🙏🌹🙏जय श्री राधे कृष्ण🙏🌹🙏*
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पीरियड्स महावारी रजस्वला आखिर क्या है ये बला ?
तुम जो अपनी मर्दानगी पर इतना इतराते हो दरअसल बाप तुम इस क्रिया से ही बन पाते हो। कुछ मर्दो को नहीं है जरा सी तमीजउनके लिए है ये बस उपहास की चीज। हम 21 वी सदी जी रहे है चाँद का नूर पी रहे है पर विस्पर आज भी पैक करके दिया जाता है। जीवनसाथी हो ऐसा राधा कृष्णा के प्यार जैसा जैसे हमे कोई छूत की बीमारी है ऐसे हमे सबसे अलग कर दिया जाता है चुपचाप दर्द पीना सीखा देते है किसी को पता न चले घर में ये भी समझा देते है। भाई पूछता है की पूजा क्यों नहीं की तो उसे सर झुकाकर समझाना पड़ता है चाहे दर्द में रोती रहू पर पापा को देखकर मुस्कुराना पड़ता है। दिल से दिल तक का सफर पेट के निचले हिस्से को जैसे कोई निचोड़ देता है कमर और जांघ की हड्डिया जैसे कोई तोड़ देता है खून की रिस्ति बून्द के साथ तड़पती हूँ मैं और जिसे तुमने नाम दिया "क्रेम्प्स" का उसमे सोफे पर निढाल होकर सिसकती हु मैं। अब पुरुष कहोगे इसमें हमारी क्या गलती है हमारा क्या दोष है ?तो सुनो तुमसे हमारी न कोई शिकयत न कोई रोष है। माँ मेरा अभिमान है माँ मेरा स्वाभिमान है बस जब तड़पे हम दर्द से तो "मैं हूँ ना" ��े एहसास करवा देना गर्म पानी की बोतल लाकर तुम दर्द मिटा देना जो लगे चाय की तलब तो एक कप चाय पीला देना पैड खतम हो जाये तो बिना झुँझलाये ला देना। "तो मैं क्या करुँ" बोल कर मुँह मोड़ कर जाना मत "रेड अलर्ट" "लाल बत्ती" जैसे शब्दों से चिढ़ाना मत बालो में तेल लगाकर पीठ को सहलाकर बस जरा सा प्यार जता देना। हम जो धर्म निभाते है महीने के 27 दिन तुम बस 3 दिन निभा देना।
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श्रेष्ठ पुरुष जो-जो आचरण करता है, अन्य पुरुष भी वैसा-वैसा ही आचरण करते हैं। वह जो कुछ प्रमाण कर देता है, समस्त मनुष्य-समुदाय उसी के अनुसार बरतने लग जाता है (यहाँ क्रिया में एकवचन है, परन्तु ‘लोक’ शब्द समुदायवाचक होने से भाषा में बहुवचन की क्रिया लिखी गई है।) 💙💙💛💚💚❤️❤️💚💚💛💙💙 _❇️__꧁ || जय श्री कृष्णा || ꧂__❇️_ Double tap & Share Must Follow ➔ @___jai___shri___krishna___ ♦️ ➔ @___jai___shri___krishna___ ♦️ ➔ @___jai___shri___krishna___ ♦️ ➔ @___jai___shri___krishna___ ♦️ Dailyknowledge_of_bhagavad_gita. ▶️ If You Repost Please Tag📍This Page. 👉 Turn on Post 🔔 Notification.🤗 🙌 Don't Forget to Share with Your 👬 Friends. 🌄 हर सुबह ☀ श्री कृष्णा दर्शन के साथ दिन की शुरुआत कीजिए। हमेशा बोलिए श्री राधे राधे।.."🎵°🎶"♫♪¸¸🙏 ☆........★........☆.......★........☆........★ #bhagavadgita #bhagwadgita #bhagwatgita #harekrishna #mahadev #ramayan #ramayana #bhakti #gyan #mahabharat #radhe #krishna #god #lord #lordkrishna #krishn #dwarka #vrindavan #mathura #jaishrikrishna #jaishreekrishna #murlidhar #hanuman #iskcon #radhekrishna #yaduvanshi #yadav #radhakrishna #ganesha #radheradhe ______*💛*💛*________*💛*💛*_____ ___*💛* ___*💛*___ _*💛*___*💛*___ _*💛* _______*💛*_*💛*_______*💛* _*💚* __________*💚*__________*💚* _*💚* ________________________*💚* __*💚*_______________________*💚*_ ___*💙* ______हरे_कृष्णा______*💙*__ ____*💙* _________________*💙*____ ______*💙* _____________*💙*______ ________*💜* _________ *💜*________ __________*💜*______*💜*__________ _____________*💛*_*💛*____________ ________________*💛________________ (at वृन्दावन - राधा कृष्णा की नगरी) https://www.instagram.com/p/CGNL8kdgMKy/?igshid=r8ymlyf1ds3p
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हरे कृष्णा💧 हरे रामा 💧💧 उस सर्वव्यापी शक्ति की एक किरण, एक झलक पाने के लिए प्रार्थना को आधार बनाती है। ध्यान योगी ऐसा नहीं करते। वे अपने इष्ट की मूर्ति का निर्माण अपने मनस तत्वों से करते हैं जो बाद में प्राणमय होकर प्रकट होती है। प्रार्थना एक उच्च साधना की क्रिया तो है ही किंतु साथ-साथ प्रार्थना का मनोवैज्ञानिक महत्व भी है। जिस तरह ध्यान क्रिया मानसिक तनावों को शांत करने की प्रणाली के रूप में स्वीकृत होती है। नित्य भाव से प्रार्थना करने से मानसिक श्रम तथा सुख-दुख, असफलता, निराशा और द्वंद्व इत्यादि से उत्पन्न आघातों के प्रभाव दूर होते हैं और स्नायुओं में फिर से शक्ति भर जाती है। प्रार्थना करने के बाद फलाफल की इच्छा त्याग देनी चाहिए। फलित हो तो भी ठीक, न हो तो भी ठीक। यह स्थिति भी उतनी ही ठीक है जितनी फलित होने पर ठीक होती। यही भाव लेकर प्रार्थना होनी चाहिए। यदि मनोनुकूल फल न भी हो तो समझना चाहिए कि इसमें भी कुछ रहस्य है और तुम्हारे कुछ कल्याण के लिए देव ने ऐसा नहीं होने दिया और अनुभवों से ऐसा ही पता चलता है। बाद की घटनाएं और जीवन का मोड़ यही सिद्ध करता है। जय जय श्री राधे राधे🙏🌺🙏 सभी भक्त हमारे Youtube चैनल से भी जुड़ जाएं | जय श्री राधे कृष्णा https://www.youtube.com/c/RadheRadheje #radheradheje #jaishreeradheradheje #kirshna #spirituality #inspiration #devotional #prem #bhakti #devichitralekhaji #motivation #LadduGopal #RADHEKRISHNA https://www.instagram.com/p/CD1i-R5gWVt/?igshid=1mgnuul49je3d
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प्रश्न - पुराण किसने लिखे और पुराणों में क्या लिखा है ? :
उत्तर - पुराण हजारों वर्ष पहिले लिखे गए ग्रंथ हैं
जिनकी संख्या 18 हैं ।
सबसे छोटा पुराण 7 हज़ार श्लोकों वाला विष्णु पुराण तथा सबसे बड़ा 81000 श्लोक वाला स्कन्द पुराण है ।
पुराणों को भारतीय ज्ञान कोष कहा जा सकता है जिनमें अनन्त ज्ञान व दर्शन का भण्डार है।
पुराणों में पाँच प्रकार के विषयों का वर्णन आता है-सर्ग (cosmogony), प्रतिसर्ग (secondary creations), मन्वंतर ,वंश तथा चरित-चित्रण।
महाभारत में आया है कि पुराणों में जो नहीं वह इस पृथ्वी में नहीं।
ये मानवता के मूल्यों की स्थापना से जुड़े भारतीय साहित्य, मनीषियों के चिंतन, मानव के उत्कर्ष व अपकर्ष की गाथाओं की निधि हैं।
पुराणों को धर्म , अर्थ, काम , मोक्ष प्रदान करने वाला बताया है।
पुराणों में वैदिक ज्ञान को सहज तथा रोचक बनाने हेतु अद्भत कथाओं के माध्यम जनसामान्य तक पहुचाने का प्रयास हुआ है।
इनका लक्ष्य मूल्यों की स्थापना भी है। पुराण वेदों पर आधारित हैं लेकिन वेदों में जहां ब्रह्म के निर्गुण निराकार पहलू पर बल है वहीं पुराणों में सगुन साकार पर।
पुराणों में पंच देव पूजा तथा अवतारों पर ध्यान दिया है।
वस्तुतः आज का हिन्दू धर्म पुराणों के अधिक पास है।
पुराणों की विषयवस्तु इतिहास, राजनीति, संस्कृति, कला, श्रृंगार, प्रेम , काव्य, हास्य , सृष्टि ,पाप- पुण्य ,तीर्थ , भक्ति , मोक्ष्य,स्वर्ग नरक , भूगोल, खगोल, विज्ञान आदि अनेक दैवीय एवं सांसारिक जीवन से जुड़े हैं।
इनमें देवताओं, राजाओ और ऋषि-मुनियों के साथ साथ जन साधारण की कथायें भी प्रचुर मात्रा में हैं जहां अनेक पहलूओं का चित्रण मिलता है।
पुराण सार्वभौमिक तथा सर्व कल्याण की भावना लिए हैं।
कुछ पुराणों की एक से अधिक पांडुलिपियां भी मिली हैं जिनकी विषयवस्तु में कुछ अंतर भी मिलता है। कुछ पुराणों में थोड़ी मिलावट भी हुई है जिसमें कुछ श्लोक बाद में जोड़ दिए गए हैं जो स्त्री , जाति जैसे सामाजिक विषय���ं से जुड़े हैं, वस्तुतः ये मध्यकाल के समाज मे आये कतिपय पतन का द्योतक हैं क्योंकि ये श्लोक वेद विमुख हैं, यह रोचक है कि पुराणों में उनके श्रुति अनुकूल होने की बात दोहराही गयी है।
पुराणों में दिए कुछ कथानक रहस्यमयी व लाक्षणिक हैं जिन्हें डीकोड करना होगा।
स्मरणीय है कि पुराणों में पुरुष, पुत्र जैसे शब्द नारी व पुत्री को भी इंगित करते हैं, ये मानव व संतति के अर्थ में उपयुक्त हुए हैं।
अधिकतर पुराण त्रिमूर्ति को समर्पित हैं लेकिन मत्स्य पुराण, कालिका पुराण, देवी पुराण, देवी भागवत, मार्कण्डेय पुराण जैसे महापुराण और उपपुराणों में भगवती दुर्गा का माहात्म्य व पूजा पद्धति आती है।
प्रायः ब्रह्मा व शक्ति की उपासना वाले पुराणों को राजस, विष्णु वाले सात्विक तथा शिव भक्ति वाले पुराणों को तामस वर्ग का माना जाता है।
सभी पुराणों में सृष्टि की उत्पत्ति 'ब्रह्म' से मानी है तथा जड को भी जीवन का अंश मानकर जड़-चेतन में परस्पर समन्वय स्थापित किया है जो वैदिक दृष्टि रही है।
प्रायः सभी पुराणों की कथा कुछ इस प्रकार प्रारम्भ होती है:
"एक बार नैमिषारण्य तीर्थ में, व्यास जी के प्रमुख शिष्य ऋषि सूत जी ,जो बारह वर्ष चलने वाले सत्र में आये थे, से ऋषि शौनक तथा अन्य साठि हजार ऋषियों ने ज्ञान व भक्ति वर्धन हेतु कथा सुनाने का आग्रह किया।
सूत जी ने व्यास से सुनी यह कथा ऋषियों को सुनाई ।
" सभी पुराणों के अंत में श्रुति फल दिया है।
सहज संस्कृत श्लोकों में रचित इन पुराणों के अनुवाद अनेक भाषाओं में उपलब्ध हैं।
पुराणों का पठन परम कल्याणकारी है और इन्हें शुद्ध हृदय व श्रद्धा से पढ़ा ही जाए।
पुराणों में अनगिनत धारायें चलती हैं जिनमें अनेक आख्यान , सत्य कथायें , मिथक, कहानियों ,स्तुतियों के माध्यम से धर्म व सांसारिक बातें भी प्रस्तुत की गई हैं।
पुराणों में कथाओं के माध्यम से धर्मोपदेश प्रस्तुत किए गए हैं।
इनकी विषयवस्तु को केवल एक मोटे रूप में ही इंगित किया जा सकता है, जो इस प्रकार है:
1. ब्रह्म पुराण – इस पुराण में 'ब्रह्म' ��ी सर्वोपरिता पर बल दिया है इसीलिए इसे पुराणों में प्रथम स्थान प्राप्त है।
यह कथात्मक ग्रँथ है।
ब्रह्म पुराण में कथा वाचक ब्रह्माजी एवं श्रोता मरीचि ऋषि हैं।
इस ग्रंथ में ब्रह्म, सृष्टि की उत्पत्ति, पृथु का पावन चरित्र, सूर्य एवं चन्द्रवंश का वर्णन, राम और कृष्ण रूप में ब्रह्म के अवतार की कथायें , देव- दानव , मनुष्य, जलादि की उत्पत्ति, सूर्य की उपासना का महत्व, भारत का वर्णन, गंगा अवतरण, परहित का महत्व आदि का उल्लेख है।
2. भागवत पुराण – भागवत पुराण बहुत विशेष है क्योंकि इसके ग्यारहवें स्कन्ध में गीता की तरह श्रीकृष्ण द्वारा दिये उपदेश संकलित हैं, इसीलिए इसे श्रीमद्भागवत भी कहते हैं।
भगवान् कृष्ण की लीलाओं का विशद विवरण प्रस्तुत करनेवाला दशम स्कंध भागवत का हृदय कहलाता है।
यह प्रेम व भक्ति रस प्रधान है तथा काव्यात्मक दृष्टि से यह अलौलिक है। भागवत पुराण में 18000 श्र्लोक हैं और अनेक विद्वानों ने इसकी टीकाएँ लिखी हैं।
यह कथा वाचकों में सर्वाधिक लोकप्रिय ग्रंथ भी है ।
कर्म, भक्ति , साधना, मर्यादा, द्वैत-अद्वैत, निर्गुण-सगुण, ज्ञान, वैराग्य , कृष्णावतार की कथाओं तथा महाभारत काल से पूर्व के राजाओं, ऋषि मुनियों , सामान्य जन, सुर-असुरों की कथाओं, महाभारत युद्ध के पश्चात श्रीकृष्ण का देहत्याग, द्वारिका नगरी का जलमग्न होना, समुद्र, पर्वत, नदी, पाताल, नरक आदि की स्थिति, देवता, मनुष्य, पशु, पक्षी आदि की उत्पत्ति की कथा, कलियुग एवं कल्कि अवतार तथा पुनः सतयुग की स्थापना का इसमें वर्णन है।
भागवत न पढ़ सकने वालों के लिए भगवान ने चार ऐसे श्लोक बताये हैं जिनके पाठ से पूरे भागवत पाठ का ज्ञान प्राप्त हो जाता है , इन्हें चतुश्लोकी भागवत कहते हैं।
3. मार्कण्डेय पुराण –अन्य पुराणों की अपेक्षा यह छोटा लेकिन अति लोकप्रिय है।
इस पुराण में ही 'दुर्गासप्तशती' जैसी अलौकिक कथा एवं शक्ति का माहात्म्य बताने वाला ग्रंथ 'देवी चरित' निहित है।
ये ग्रंथ नारी रूप में ब्रह्म का निरूपण करते हैं तथा मानव कल्याण का लक्ष्य लिए हैं।
इसमें मदालसा की कथा , अत्रि, अनुसूया , दत्तात्रेय , हरिश्चन्द्र की मार्मिक व करुणामयी कथा , पिता और पुत्र का आख्यान, नौ प्रकार की सृष्टि , वैवस्त मनु के वंश का वर्णन, नल, पुरुरुवा, कुश, श्री राम आदि अनेकानेक कथाओं का संकलन है। इसमें श्रीकृष्ण की बाल लीला, उनकी मथुरा द्वारका की लीलाएं, तीर्थो में स्नान का महत्व, पवित्र वस्तुओं व लोगों का वर्णन तथा सत्पुरुषों को सुनने का महत्व तथा अन्य अनेक सुन्दर कथाओं का वर्णन है।
इस ग्रंथ में सामाजिक, प्राकृतिक, वैज्ञानिक, भौतिक अनेक विषयों में विवेचन है तथा न्याय और योग के विषय में ऋषि मार्कण्डेय तथा ऋषि जैमिनि के मध्य वार्तालाप है।
इस के अतिरिक्त भगवती दुर्गा तथा श्रीक़ृष्ण से जुड़ी हुयी कथायें भी संकलित हैं।
इसमें भारतवर्ष का सुंदर वर्णन आया है। इस पुराण में संन्यास के बजाय गृहस्थ-धर्म की उपयोगिता पर बल दिया है। इसमें राष्ट्रभक्ति, त्याग , धनोपार्जन, पुरुषार्थ, पितरों और अतिथियों के प्रति कर्त्तव्यों का वर्णन है। इसमे करुणा से प्रेरित कर्म को पूजा-पाठ और जप-तप से श्रेष्ठ बताया गया है।
पुराण में आया है कि जो राजा या शासक अपनी प्रजा की रक्षा नहीं कर सकता, वह नरक जाएगा । इसमें योग साधना, इंद्रिय संयम , नशा, क्रोध व अहंकार के दुष्परिणाम आदि भी बताए हैं।
4.विष्णु पुराण - यह पुराणों में सबसे छोटा किन्तु अत्यन्त महत्त्वपूर्ण तथा प्राचीन पुराण है जिसकी विशेषता इसकी तर्कपूर्णता है।
इसमें भारत देश , भूमण्डल का स्वरूप, जम्बू द्वीप, पृथ्वी , ग्रह नक्षत्र,आकाश ,समुद्र, सूर्य आदि का परिमाण, पर्वत, देवतादि की उत्पत्ति, मन्वन्तर, कल्प, गृहस्थ धर्म, श्राद्ध-विधि, धर्म,ज्योतिष, देवर्षि के साथ ही कृषि , चौदह विद्याओं , सप्त सागरों , अनेकों वँशों, वर्ण व्यवस्था, आश्रम व्यवस्था ,श्री कृष्णा भक्ति का वर्णन है।
इसमें संक्षेप में राम कथा का उल्लेख भी प्राप्त होता है।
इसमें सम्राट पृथु की कथा भी आयी है जिस के नामपर हमारी धरती का नाम पृथ्वी पडा ।
इस पुराण में भूगोल के अतिरिक्त सू्र्यवँशी तथा चन्द्रवँशी राजाओं का इतिहास भी है।
5. गरुड़ पुराण – गरुड़ पुराण सात्विक वर्ग का विष्णु पुराण है।
इस पुराण में ऋषि सूत जी कहते हैं कि यह प्रसंग गरुड़ के प्रश्नों का जो उत्तर श्री विष्णु ने दिया उस पर आधारित है।
यह संसार की एकमात्र पुस्तक है जो मृत्यु के पश्चात क्या होता है इसपर पर आलोक डालती है।
इसमें दाह संस्कार विधि ,प्रेत लोक, पाप, महापाप,पापिओं को नरक व यम लोक की यातनाएं, विविध नरक, 84 लाख योनियों में कर्मानुसार शरीर उत्पत्ति, कर्मफल, पुनर्जन्म, दान, पाप पुण्य, धर्म-कर्म, परलोक, भयावह वैतरणी नदी, गोदान ,पिंडदान, गया श्राद्ध, श्राद्ध, भव्य धर्मराज सभा, धर्मात्मा ,माया तृष्णा, प्रज्ञा ,मोक्ष्य आदि का वर्णन है।
इस पुराण का वाचन प्रायः मृत्यु उपरांत होता है।
पुराण का प्रारंभ जहां यममार्ग के वर्णन से होता है वहीं इसका अंत आत्मा, परमात्मा, मोक्ष्य जैसे गूढ़ दर्शन से।
6. अग्नि पुराण – अग्नि पुराण को भारतीय संस्कृति का ज्ञानकोष (इनसाईक्लोपीडिया) कहा जाता है। इसमें परा-अपरा विद्याओं के विविध विषयों का व्यापक वर्णन है।
इसमें कई विषयों पर वार्तालाप है जिन में धनुर्वेद, गान्धर्व वेद , आयुर्वेद मुख्य हैं। अग्नि पुराण में दीक्षा-विधि, वास्तु-पूजा, भौतिक शास्त्र,औषधि समूह,तिथि , व्रत , नक्षत्र निर्णय , ज्योतिष, मन्वन्तर, धर्म, दान का माहात्म्य ,संध्या , गायत्री , स्तुतियाँ, स्नान, पूजा विधि, होम विधि, मुद्राओं के लक्षण, वैष्णव, शिव, शक्��ि के नाना पूजा विधान ,
मूर्तियों का परिमाण, मंदिर के निर्माण व शिलान्यास की विधि, देवता की प्रतिष्ठा विधान तथा उपासना ,
तीर्थ, मंत्रशास्त्र, वास्तुशास्त्र ,राज्याभिषेक के मंत्र, राजाओं के धार्मिक कृत्य व कर्तव्य , गज, गौ , अश्व , मानव आदि की चिकित्सा , रोगों की शान्ति, स्वप्न सम्बन्धी विचार , शकुन -अपशकुन आदि का निरूपण, देवासुर संग्राम कथा, अस्त्र-शस्त्र निर्माण तथा सैनिक शिक्षा पद्धति ,प्रलय, योगशास्त्र, ब्रह्मज्ञान , काव्य , छंद, अलंकार, वशीकरण विद्या ,व्यवहार कुशलता, रस-अलंकार , ब्रह्मज्ञान, स्वर्ग-नरक , अर्थ शास्त्र, न्याय, मीमांसा, सूर्य वंश तथा सोम वंश, इक्ष्याकु वंश, प्रायश्चित,पुरुषों और स्त्रियों के शरीर के लक्षण, रत्नपरीक्षा ,वास्तुलक्षण, न्याय, व्याकरण, आयुर्वेद हेतु शरीर के अंगों का निरूपण ,योगशास्त्र , वेदान्तज्ञान, गीतासार , यमगीता, भागवत गीता, महाभारत, रामायण , मत्स्य, कूर्म आदि अवतार , सृष्टि, देवताओं के मन्त्र,अग्निपुराण का महात्म्य आदि विषयों का विवरण है।
7.पद्म पुराण - पद्म पुराण विशाल ग्रंथ है जो पाँच खण्डों में विभाजित है जिन के नाम सृष्टि, भूमि ,स्वर्ग, ब्रह्म , पाताल ,क्रिया योग तथा उत्तरखण्ड हैं। इस ग्रंथ में वर्णित पृथ्वी, आकाश, नक्षत्रों, चार प्रकार के जीवों( उदिभज, स्वेदज, अंडज तथा जरायुज) का वर्णन पूर्णतया वैज्ञानिक है।
चौरासी लाख योनियां कौन सी हैं, तुलसी , शालिग्राम व शंख को घर में रखने का वर्णन है, भीष्म द्वार�� सृष्टि के विषय में पुलस्त्य से पूछे गए प्रश्न , व्रतों, पुष्कर आदि तीर्थ , कुआँ, सरोवर , भारत के पर्वतों तथा नदियों के बारे में भी विस्तृत वर्णन है। योग और भक्ति , साकार की उपासना, मंदिर में निषिद्ध कर्म, सत्संग, वृक्ष्य रोपण विधि का भी वर्णन इसमे आया है।
इस पुराण में शकुन्तला दुष्यन्त से ले कर भगवान राम तक के पूर्वजों का इतिहास है।भारत का नाम जिस भरत के नाम से पड़ा उनका इतिहास भी इसमें मिलता है।
इसमें सृष्टि-रचयिता ब्रह्माजी का भगवान् नारायण की नाभि-कमल से उत्पन्न होकर सृष्टि-रचना संबंधी विवरण भी दिया है जिसके कारण इसका नाम पद्म पड़ा।
इस ग्रंथ में ब्रह्मा जी की उपासना का वर्णन है।
इसमें समुद्र मंथन , माता सती का देह त्याग जैसे संदर्भ भी आये हैं।
इस पुराण की एक विशेषता है कि कई प्रसंगों व आख्यानों को अन्य ग्रंथों से कुछ भिन्न रूप में प्रस्तुत किया गया है। कैसे कर्मफल भगवान को भी भोगना पड़ा उससे जुड़ी जालंधर राक्षस की कथा इसमें आई है।
8. शिव पुराण – शिव पुराण श��व मत का प्रतिपादन करता है जिसके अंदर आठ पवित्र संहिताएं आती हैं।
इसमें भगवान शिव की महिमा, लीला, ज्ञानपूर्ण कथाएं, पूजा-पद्धति दी गयी है।
इस ग्रंथ को वायु पुराण भी कहते हैं। इसमें शिव के ऐश्वर्य , करुणा, अनुपम कल्याणकारी रूपों, शिव के 'निर्गुण' और 'सगुण' रूप , अवतारों, अर्द्धनारीश्वर रूप तथा अष्टमूर्ति रूप का वर्णन है।
इसमें शिव कथा सुनने हेतु उपवास आदि अनावश्यक माना है साथ ही गरिष्ठ भोजन न करने को कहा है । ज्योतिर्लिंगों , कैलास, शिवलिंग, रुद्राक्ष , भस्म आदि का वर्णन और महत्व दर्शाया है। शिवरात्रि व्रत, पंचकृत्य, ओंकार , योग ,हवन, दान , मोक्ष्य, माता पार्वती, श्री गणेश , कार्तिकेय ,देवी पार्वती की अद्भुत लीलाओं, श्री हनुमान तथा इसमें वेदों के बाईस महावाक्यों के अर्थ भी समझाए गए हैं।
इसमें ओंकार , गायत्री, योग , शिवोपासना, नान्दी श्राद्ध और ब्रह्मयज्ञ, जप का महत्व , शिव पुराण का महात्म्य आदि भी आया है। इसमें आया है कि व्यक्ति अपने अर्जित धन के तीन भाग करके एक भाग पुनः धन वृद्धि में, एक भाग उपभोग में और एक भाग धर्म-कर्म में लगाए।
9. नारद पुराण - यह पुराण विष्णु के परम भक्त तथा अलौकिक प्रतिभाओं के धनी नारद मुनि के मुख से कहा गया एक वैष्णव पुराण है।
नारद वेदज्ञ, योगनिष्ठ, संगीतज्ञ, वैद्य, आचार्य व महाज्ञानी हैं।
नारद पुराण के दो भाग हैं तथा इस ग्रंथ में सभी 18 पुराणों का नाम दिया गया है।
इसमें ऋषि सूत और शौनक का संवाद है जिसमें ब्रह्मांड की उत्पत्ति, विलय, मंत्रोच्चार , पूजा के कर्मकांड, बारह महीनों में पड़ने वाले विभिन्न व्रतों की कथाएँ , अनुष्ठानों की विधि और फल दिए गए हैं।
प्रथम भाग में मन्त्र तथा मृत्यु पश्चात के क्रम आदि के विधान, गंगा अवतरण, एकादशी व्रत, ब्रह्मा के मानस पुत्रों -सनक, सनन्दन, सनातन, सनत्कुमार -का नारद से संवाद का अलौकिक वर्णन है।
इसमें कलयुग का वर्णन,श्री विष्णु के विविध अवतारों की कथाएँ भी हैं। दूसरे भाग में वेदों के छह अंगों (शिक्षा, कल्प, व्याकरण, निरूक्त, छंद और ज्योतिष) का वर्णन है।
इसमें दण्ड-विधान व गणित भी है। सूत जी से ऋषियों के पांच प्रश्न भी उत्तर सहित दिए हैं जो भक्ति, मोक्ष्य , अतिथि सत्कार कैसे हो , वर्णाश्रम आदि पर हैं।
यह पुराण विशेषतया संगीत के सातों स्वर, सप्तक के मन्द्र, मध्य तथा तार स्थानों, मूर्छनाओं, शुद्ध एवं कूट तानो और स्वरमण्डल के विषद वर्णन के लिए जाना जाता है।
संगीत पद्धति का यह ज्ञान अपने में सम्पूर्ण है और अनुपम है तथा यह आज भी भारतीय संगीत का आधार है।
पाश्चात्य संगीत में बहुत बाद तक ��ांच स्वर होते थे जबकि नारद पुराण में हज़ारों वर्ष पहिले सात स्वर दिए हैं। ज्ञातव्य है कि उपरोक्त मूर्छनाओं के आधार पर ही पाश्चात्य संगीत के स्केल बने हैं।
10. भविष्य पुराण – भविष्य में होने वाली घटनाओं की सटीक भविष्यवाणियों के कारण इसका नाम भविष्य पुराण पड़ा है।
सूर्य की महिमा, स्वरूप, पूजा का विस्तृत वर्णन के चलते इसे ‘सौर-पुराण’ भी कहते हैं।
वर्ष के 12 महीने, सामाजिक, धार्मिक तथा शैक्षिक विधान , गर्भादान से लेकर उपनयन तक के संस्कार, विविध व्रत-उपवास, पंच महायज्ञ, वास्तु शिल्प, शिक्षा-प्रणाली , काल-गणना, युगों का विभाजन, सोलह-संस्कार, गायत्री जाप का महत्व, गुरूमहिमा,मन्दिरों के निर्माण , यज्ञ कुण्डों का वर्णन,
पंच महायज्ञ, औषधियां, तथा अनेक अन्य विषयों पर वार्तालाप है। इस पुराण में साँपों की पहचान, विष तथा विषदंश का वर्णन भी है ।
इसी में प्रसिद्ध विक्रम-वेताल कथा आयी है। जिसमें राजवँशों के अतिरिक्त भविष्य में आने वाले नन्द , मौर्य , मुग़ल , छत्रपति शिवाजी तक का वृतान्त तथा इसमें जीसस क्राइस्ट के जन्म, उनकी भारत यात्रा, मुहम्मद साहब का आविर्भाव, महारानी विक्टोरिया का राज्यारोहण का वर्णन हजारों वर्ष पहिले ही कर दिया गया है। इसमें चतुर युग के राजवंशों का वर्णन, त्रेता युग के सूर्यवंशी और चन्द्रवंशी राजाओं का वर्णन , द्वापर युग के चन्द्रवंशी राजाओं का वर्णन, कलि युग के म्लेच्छ राजा, जीमूतवाहन और शंखचूड़ की प्रसिद्ध कथा आयी है।
इस पुराण की रचना में ईरान से भारत आये मग ब्राह्मण पुरोहितों की भूमिका रही है।
इसमें जाति को जन्म आधारित नहीं माना है।
यह पुराण राखी की कथा, सपनों का रहस्य जैसे अद्भुत एवं विलक्षण घटनाओं से भरा है ।
विषय-वस्तु तथा काव्य-रचना शैली की दृष्टि से यह पुराण उच्चकोटि का है। लोकप्रिय सत्य नारायण की कथा भी इसी पुराण से ली गयी है।
यह पुराण भारतीय इतिहास का महत्वपूर्ण स्त्रोत्र भी रहा है।
इसमें हिन्दूकुश में प्रसिद्ध शिव मंदिर का वर्णन है।
माना जाता है कि इस पुराण का आधा भाग अभी मिल नहीं पाया है।
11. ब्रह्मवैवर्त पुराण –इस पुराण में श्री कृष्ण को परब्रह्म माना है । भक्तिपरक आख्यानों एवं स्तुतियों से भरपूर इस ग्रंथ में ब्रह्मा, गणेश, तुलसी, सावित्री, लक्ष्मी, सरस्वती तथा क़ृष्ण की महानता को दर्शाया गया है तथा उन से जुड़ी हुयी कथायें संकलित हैं और उनकी पूजा का विधान दिया गया है।
इसमें राधा के जन्म का वर्णन है।
पुराण बताता है कि सृष्टि में असंख्य ब्रह्माण्ड विद्यमान हैं।
इस पुराण में आयुर्वेद सम्बन्धी ज्ञान भी संकलित है।
इस पुराण में सृष्टि का मूल श्रीकृष्ण को बताया गया है लेकिन इस पुराण में श्री कृष्ण का चित्रण भागवत पुराण के सात्विक से भिन्न श्र��ंगारिकता प्रधान है। इस पुराण में बताया है कि देवताओं की मूर्तियों को तोड़ने वाले व्यक्ति घोर नर्क में जाते हैं और इनको देखना या इनसे नाता रखने वाले भी नरकगामी होते हैं।
12. लिंग पुराण – यह शैव भक्ति का ग्रंथ है लेकिन इसमें ब्रह्म की एकरूपता का गंभीर विवेचन है।
लिंग अर्थात शिवलिंग भगवान शंकर की ज्योति रूप चिन्मय शक्ति का चिन्ह अर्थात चैतन्य का प्रतीक ।
ब्रह्म का प्रतीक चिह्न है लिंग।
शिव के तीन रूप हैं :अलिंग (अव्यक्त), लिंग ( व्यक्त) और लिगांलिंग (व्यक्ताव्यक्त) ।
पुराण में सृष्टि की उत्पत्ति पंचभूतों से बताई है।
���समें युग, कल्प आदि की तालिका दी है।
इस पुराण में राजा अम्बरीष की कथा, उमा स्वयंवर, दक्ष-यज्ञ विध्वंस, त्रिपुर वध, शिव तांडव,अघोर विद्या व मंत्र , खगोल विद्या , सप्त द्वीप एवं भारत , पांच योग, पंच यज्ञ विधान, भस्म और स्नान विधि, ज्योतिष चक्र, सूर्य और चन्द्र वंश वर्णन, काशी माहात्म्य, उपमन्यु चरित्र आदि अनेक आख्यान आये हैं।
13. वराह पुराण – अधर्म के चलते धरती का रसातल में डूबने एवं श्री विष्णु द्वारा वराह अवतार लेकर उसे उबारने की कथा इस पुराण में आती है। इसके अतिरिक्त , मत्स्य और कूर्मावतारों की कथा, गीता महात्म्य, त्रिशक्ति माहात्म्य, दुर्गा, गणपति, सूर्य, शिव कार्तिकेय, रुद्र, , ब्रह्मा,अग्निदेव, अश्विनीकुमार, गौरी, नाग, कुबेर, रुद्र, पितृगण, श्रीकृष्ण लीला क्षेत्र मथुरा और व्रज के तीर्थों की महिमा , व्रत, यज्ञ, दान, श्राद्ध, गोदान , धर्म, कर्म फलों का वर्णन,श्री हरि का पूजा विधान,मूर्ति स्थापना के नियम तथा पूजा करते समय किन बातों का ध्यान रखा जाए, श्राद्ध कर्म एवं प्रायश्चित, शिव-पार्वती की कथाएँ, मोक्षदायिनी नदियों की उत्पत्ति, जीव जंतु, त्रिदेवों की महिमा, चन्द्र की उत्पत्ति, देवी-देवताओं की तिथिवार उपासना , अगस्त्य गीता , रुद्रगीता, सृष्टि का विकास, स्वर्ग, पाताल तथा अन्य लोक, उत्तरायण तथा दक्षिणायण, अमावस्या और पूर्णमासी का महत्व, राक्षसों का संहार आदि।
इस पुराण में अनेक ऐसे तथ्य आये हैं जो पश्चिमी वैज्ञानिकों को पंद्रहवी शताब्दी के बाद ही ज्ञात हो सके। दुर्भाग्य से इस ग्रंथ का बड़ा भाग खो चुका है।
यह वैष्णव पुराण है लेकिन इसमें शिव व शक्ति की उपासना भी हुई है।
14. स्कन्द पुराण - कार्तिकेय का नाम स्कन्द है। इस विशाल पुराण में छः खण्ड हैं।
इसमें शिवतत्व के वर्णन के साथ विष्णु व राम की महिमा दी है जिसे तुलसीदास ने मानस में स्थान दिया । इसमें विष्णु को शिव का ही रूप बताया गया है।
इसमें सत्यनारायण कथा सहित अनगिनत प्रेरक कथाएं आ��ी हैं जो ज्ञान वर्धक हैं तथा सत चरित्र उभारती हैं।
स्कन्द पुराण में 27 नक्षत्रों, 18 नदियों, अरुणाचल का सौंदर्य, सह्याद्रि पर्वत, कन्या कुमारी , लिंग प्रतिष्ठा वर्णन, 12 ज्योतिर्लिंग सहित भारत का भूगोल, शैव और वैष्णव आदि मत , मोक्षयदायी तीर्थों के माहात्म्य, तीर्थराज प्रयाग,उज्जैन, पुरी, अयोध्या, मथुरा, कुरुक्षेत्र, सेतुबंध तथा रामेश्वर, गंगा, यमुना , नर्मदा,विविध सरोवर, सदाचरण व दुराचरण आदि अनगिनत विषयों का विवरण मिलता है।
आज के हिंदुओं में प्रचलित वृत, त्यौहार, तिथियों , श्रावण मास आदि का महत्व, यात्रा वृतांत, भक्ति आदि में इस पुराण का भारी प्रभाव है।
इसमें गौतम बुद्ध का विस्तृत वर्णन है और उन्हें विष्णु का अवतार माना गया है।
इसमें आता है कि ये 8 बातें हर किसी के लिए अनिर्वाय हैं: सत्य, क्षमा, सरलता, ध्यान, क्रूरता का अभाव, हिंसा का त्याग, मन और इन्द्रियों पर संयम, सदैव प्रसन्न रहना, मधुर व्यवहार करना और सबके लिए अच्छा भाव रखना।
15. वामन पुराण - इस पुराण का केवल प्रथम खण्ड ही उपलबद्ध है। इस पुराण में श्री विष्णु के वामन अवतार की कथा आयी है लेकिन वस्तुतः यह शिव कथा पर आख्यान है तथा इसमें भगवती को भी समान महत्व मिला है ।
इस ग्रंथ में भगवती दुर्गा के विविध स्वरूपों, ब्रह्मा जी की कथा,लक्ष्मी-चरित्र, कूर्म अवतार, गणेश, कार्तिकेयन, शिवपार्वती विवाह , शिव लीला एवं चरित्र, दक्ष-यज्ञ,भक्त प्रह्लाद तथा श्रीदामा से जुड़े मनोरम आख्यान, कामदेव-दहन, जीवमूत वाहन आख्यान, सृष्टि, सात द्वीपों की उत्पत्ति, पृथ्वी एवं भारत की भूगौलिक स्थिति, पर्वत, नदी ,व्रत व स्तोत्र भी आये हैं।
16. कूर्म पुराण - कूर्म पुराण में चारों वेदों का संक्षिप्त सार दिया है।
इसमें कूर्म अवतार से सम्बन्धित सागर मंथन की कथा विस्तार पूर्वक दी गयी है।
इसमें ईश्वर गीता, व्यास गीता, शिव के अवतारों का वर्णन ,श्रीकृष्ण ,ब्रह्मा, पृथ्वी, गंगा की उत्पत्ति, चारों युगों, काशी व प्रयाग क्षेत्र का महात्म्य, अनुसूया की संतति वर्णन, योगशास्त्र ,चारों युगों का स्वभाव, सृष्टि के प्रकार व युगधर्म , मोक्ष के साधन, वैवस्तव मन्वतर के २८ द्वापर युगों के २८ व्यासों का उल्लेख, ग्रह-नक्षत्रों की स्थिति आदि आते हैं।
इसमें वैष्णव, शैव, एवं शाक्त में एक्य दिखाया है।
मानव जीवन के चार आश्रम धर्मों तथा चन्द्रवँशी राजाओं के बारे में भी वर्णन है।
इसमें नटराज शिव के विश्व रूप का वर्णन, नृसिंह अवतार, गायत्री,निष्काम कर्म योग , नौ प्रकार की सृष्टियां , भगवान के रूपों तथा नामों की महिमा, पंच विकार , सभी के प्रति समदृष्टि, सगुन और निर्गुण ब्रह्म की उपासना, स्थूल शरीर से सूक्ष्म शरीर में जाने का वर्णन, सांख्य योग के चौबीस तत्त्व, सामाजिक नियम, पितृकर्म, श्राद्ध, पिण्डदान विधियां, चारों आश्रमों के आचार-विचार , सदाचार ,विविध संस्कार आदि वर्णित हैं।
दुर्भाग्य से पुराण का कुछ भाग आज उपलब्ध नहीं है।
17. मत्स्य पुराण – इसमें मत्स्य अवतार की कथा , एक छोटी मछली की कथा, मत्स्य व मनु के बीच संवाद, ब्रह्माण्ड का वर्णन , सृष्टि की उत्पत्ति, जल प्रलय, सौर मण्डल के सभी ग्रहों, चारों युगों ,लोकों का वर्णन, ब्रह्मा की उत्पत्ति, नृसिंह वर्णन, असुरों की उत्पत्ति, अंधकासुर वध, चन्द्रवँशी राजाओं का वर्णन, राजधर्म,सुशासन, कच, देवयानी, शर्मिष्ठा, सावित्री कथा तथा राजा ययाति की रोचक कथायें , मूर्ति निर्माण माहात्म्य,मन्दिर व भवन निर्माण, शिल्पशास्त्र, चित्र कला, गृह निर्माण, शकुनशास्त्र, पुरुषार्थ , कृष्णाष्टमी, गौरी तृतीया, अक्षय तृतीया आदि व्रतों का वर्णन,संक्रांति स्नान ,नित्य, नैमित्तिक व काम्य तीन प्रकार के श्राद्ध, दान,तीर्थयात्रा,काशी, नर्मदा, कैलास वर्णन, प्रयाग महात्म्य, शिव-गौरी प्रसंग, सपनों का विश्लेषण, प्रलय, योग ,यज्ञ, वृक्ष्या रोपण का महत्व आदि ।
इस पुराण में आया है कि श्री गणेश का जन्म हाथी की गरदन के साथ हुआ था अर्थात शिव द्वारा सिर बदलने का वृतांत नहीं है।
18. ब्रह्माण्ड पुराण - यह ब्रह्माण्ड की स्थित , ग्रहों नक्षेत्रों की गति, सप्तऋषि ,आकाशीय पिण्डों, पृथ्वी , भारत का भूगोल आदि विवरण के चलते इस पुराण को विश्व का प्रथम खगोल शास्त्र भी कहते हैं।
इसमें भारत को कर्मभूमि कहकर संबोधित किया गया है।
यह उच्च कोटि का ग्रंथ है।
सृष्टि की उत्पत्ति के समय से ले कर अभी तक के सात मनोवन्तरों का वर्णन इस ग्रंथ में किया गया है।
यह भविष्य में होने वाले मनुओं की कथा,अनेकों ऋषि मुनियों, देवताओं, सामान्य जनों ,परशुराम ,सूर्यवँशी तथा चन्द्रवँशी राजाओं के इतिहास व गाथाओं से भरा है।
इसमें राजा सगर का वंश , भगीरथ द्वारा गंगा की उपासना, त्रिपुर सुन्दरी ( ललितोपाख्यान) ,भंडासुर विनाश आदि अनगिनत आख्यान निहित हैं।
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Hira Ballabh
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पानी हमारी नैपासर्गिक जरुरत -
पानी एक शब्द ही नहीं हमारी नैसर्गिक जरुरत है और इसलिए जब विज्ञानं के माध्यम से हम किसी ग्रह को खोजने निकलते है तो सबसे पहले उस ग्रह पे पानी खोजते है |हमने इस समय कई प्रगति की हम मंगल गए हम चन्द्रमा को भी छुआ लेकिन वहाँ भी हम पानी ही खोजते रहे है | आखिर हो भी क्यों ना पानी एक रासायनिक संगठन से मिलकर बना है जिसका अणु दो हाइड्रोजन परमाणु और ऑक्सीजन परमाणु से बना है और ऑक्सीजन तो मनुष्य की जीने के लिए ही सहायक है | इसीलिए लोगों का कहना है 'जल है तो जीवन है '|वैसे तो हर जीव जीवन का आधार है | आम तौर में लोग जल शब्द का प्रयोग द्रव्य अवस्था के लिए करते है लेकिन ये ठोस और गैसीय अवस्था में भी पाया जाता है |
जल का रासायनिक और भौतिक गुण-
जल को अच्छे से समझने के लिए उसके भीतर के विज्ञानं को समझना बहुत ही आवश्यक है | यहाँ आपको हम उसके हर गुण से अवगत कराएँगे | आये समझते है की रसायन विज्ञानं के माध्यम से जल कैसे बना है | जल एक रासायनिक पदार्थ है और उसका रासायनिक सूत्र -H2O है जल के एक अणु में दो हाइड्रोजन के परमाणु सहसंयोजक बंध के द्वारा एक ऑक्सीजन के परमाणु से जुडे़ रहते हैं।जल समान्य ताप में और दबाव में एक फीका और बिना गंध वाला तरल है|जल पारदर्शीय होता है और इसलिए जलीय पौधे इसमें जीवित रहते है क्योंकि उन्हे सूर्य की रोशनी मिलती रहती है। केवल शक्तिशाली पराबैंगनी किरणों का ही कुछ हद तक यह अवशोषण कर पाता है।
बर्फ जल के ऊपर तैरता क्यों है -
जल एक बहुत प्रबल विलायक(घुलने वाला ) है, जिसे सर्व-विलायक भी कहा जाता है। वो पदार्थ जो जल में भलि भाँति घुल जाते है जैसे लवण, शर्करा, अम्ल, क्षार और कुछ गैसें विशेष रूप से ऑक्सीजन, कार्बन डाइऑक्साइड उन्हे हाइड्रोफिलिक (जल को प्यार करने वाले) कहा जाता है, जबकि दूसरी ओर जो पदार्थ अच्छी तरह से जल के साथ मिश्रण नहीं बना पाते है जैसे वसा और तेल, हाइड्रोफोबिक (जल से डरने वाले) कहलाते हैं|जल का घनत्व अधिकतम 3.98 °C पर होता है। जमने पर जल का घनत्व कम हो जाता है और यह इसका आयतन 9% बढ़ जाता है। यह गुण एक असामान्य घटना को जन्म देता जिसके कारण बर्फ जल के ऊपर तैरती है और जल में रहने वाले जीव आंशिक रूप से जमे हुए एक तालाब के अंदर रह सकते हैं |
क्योंकि तालाब के तल पर जल का तापमान 4 °C के आसपास होता है।शुद्ध जल की विद्युत चालकता कम होती है, लेकिन जब इसमे आयनिक पदार्थ सोडियम क्लोराइड मिला देते है तब यह आश्चर्यजनक रूप से बढ़ जाती है|जल का जो वाष्प बनने की प्रक्रिया में वायुमंडलीय दबाव बहुत करक है जहा वायुमंडलीय दबाव कम होता है वहाँ जल कमसेंटीग्रेट पे ही उबाल जाता है जबकि जहा वायुमंडलीय दबाव ज्यादा होता है वहाँ सैकड़ों सेंटीग्रेट पे भी द्रव्य ही बना रहता है |जल का ये गुण भी बहुत ही अजीब है |लेकिन जल को समझना जरुरी होता है |
जल की उत्पति -
अमेरिकी वैज्ञानिकों के अनुसार पानी, पृथ्वी के जन्म के समय से ही मौजूद है। उनका कहना है कि जब सौर मण्डलीय धूल कणों से पृथ्वी का निर्माण हो रहा था, उस समय, धूल कणों पर पहले से ही पानी मौजूद था। यह परिकल्पना, उसी स्थिति में ग्राह्य है जब यह प्रमाणित किया जा सके कि ग्रहों के निर्माण के समय की कठिन परिस्थितियों में सौर मण्डल के धूल कण, पानी की बूँदों को सहजने में समर्थ थे। लेकिन कुछ वैज्ञानिक ये नहीं मानते उनका कहना है की पृथ्वी के जन्म के समय के कुछ दिन बाद पानी से सन्तृप्त करोड़ों धूमकेतुओं तथा उल्का पिंडों की वर्षा हुई। धूमकेतुओं तथा उल्का पिंडों का पानी धरती पर जमा हुआ और उसी से महासागरों का जन्म हुआ| खगोलीय वैज्ञानिक का मानना है की पृथ्वी पर पानी का आगमन ४०० करोड़ साल पहले ही हुआ होगा | वो ऊपर दी हुई दोनों सोच को लेकर चलते है और आधुनिक खोज के साथ ये बताता है की पृथ्वी के जन्म के समय पानी मौजूद होगा लेकिन कम मात्रा में और फिर कुछ समय बाद पानी से सन्तृप्त करोड़ों धूमकेतुओं तथा उल्का पिंडों की वर्षा हुई जिससे महासागरों का जन्म हुआ |हाड्रोजन और ऑक्सीजन के संयोग से पानी का जन्म हुआ इसका साफ़ मतलब है की ये प्रक्रिया धरती के ठन्डे होने के बाद ही हुई होगी | ढेर सारी जानकारियों के बावजूद अभी भी आधुनिक विज्ञानं पानी की उत्पति के सही जगह सही समय के लिए उधेड़बून में ही है |
पानी की समस्या और उसका प्रभाव
दुनिया के भू वैज्ञानिक पहले से सबको सचेत करते आ रहे है जल का अत्यधिक दोहन से बचे |नहीं तो जिस रफ़्तार से आबादी बढ़ रही है और अद्योगीकरण के कारण पानी की समस्या विकराल रूप ले लेगी |कहा तो ये भी जाता है की अगला विश्व युद्ध पानी को लेकर होगा लेकिन कभी -कभी ये भी कहा जाता है की अगला विश्व युद्ध तेल को लेकर होगा | पानी की समस्या तो पुरे विश्व में है लेकिन भारत में ये समस्या तीव्र गति से बढ़ रही है | वैसे तो कहा जाता है की पृथ्वी 71 % पानी से घिरी है |उसमे महासागरों का जल भी शामिल है |
भारत में जल के दो माध्यम है -
१-नदिया २- भूमिगत जल इन दोनों में इनदिनों भरी गिरावट आयी है |कई अनुमान पे आकड़े दिए गए है जिस प्रकार लोग पानी का दोहन कर रहे है और आबादी बढ़ रही है भारत में तो पानी की जो मांग है 2025 पहुंचते -पहुंचते 735 बी. सी. ऍम .(बिलियन क्यूबिक मीटर) तक पहुंच जाएगी और ये स्थिर नहीं क्योकि कभी डिमांड ज्यादा भी हो जाती है तो ये 795 बी. सी. ऍम .(बिलियन क्यूबिक मीटर)तक भी पहुंच सकती है जो 90 से पहले कम थी और हमारे देश की आबादी भी कम थी | इधर हम चीन को होड देने में लगे है की हम कब जनसंख्या में उसके ऊपर हो जाये | अब देखते है हमारे जल ससंसाधनो में कितना बिलियन क्यूबिक मीटर पानी है जो हमे हमारी नदियों से मिलता है | गंगा ,सिंधु ,ब्रह्मपुत्र ,गोदावरी ,कृष्णा ,कावेरी , महानदी ,स्वर्णरेखा ,नर्मदा ,ताप्ती ,साबरमती ,इन सबके पिने योग्य पानी अगर मिला दिया जाये तो हमारे पास 1100 बिलियन क्यूबिक मीटर पानी मौजूद है | ये इससे बढ़ेगा नहीं घटेगा ही | इसलिय विचार हमे करना है न की कोई और करेगा |
भारत एक कृषि प्रधान देश है यहाँ की आधी आबादी कृषि पे निर्भर है और कृषि का कम् सिचाई दवरा होता है और भारतीय किसान भूमिगत जल का प्रयोग इसमें लाते है | भूमिगत जल का आकलन करना थोड़ा कठिन है क्योकि ये पानी जो सतह का है उससे रिस -रिस के ही नीचे पहुँचता है |ये पानी भी नदियों के सामान नीचे बहता है | अगर नीचे इसका मार्ग रुकता है तो ये खारा हो जाता है और पीने योग्य नहीं होता है |भूमिगत पानी का उपयोग समान्यता जनता करती है और इधर बीच इसका जलस्तर घटता ही जा रहा है और तो और पानी की गुणवत्ता में कमी आ रही है |
इधर भारत में वाटर प्योरिफायर और Ro बढ़ता प्रयोग -
लोगों अपने घरों में ऑरो लगा रहे है |पानी को शुद्ध करके पीने के लिए |वाटर प्योरिफायर बनाने वाली कंपनी कई तरह के वाटर प्योरिफायर बना रही है कोई अल्ट्रा वाटर प्योरिफायर बना रहा है | ये भी पानी को शुद्ध करने का तरीका है |रिवर्स ओसमोसिस प्रक्रिया ( REVERSE OSMOSIS ) इसको शार्ट में RO कहा जाता है ये ही क्रिया सबसे ज्यादा प्रचलित है |इसमें जल को एक प्रेशर के तहत एक झिल्ली से आर -पार भेजा जाता है और जल में उपस्थित अधिक सांद्रता वाले पदार्थ झिल्ली में ही रह जाते है |और शुद्ध जल झिल्ली के पार चला जाता है |एक RO का प्रयोग में 5 वर्षों तक कर सकते है |इस पूरी प्रक्रिया में RO जल से हर तरह के गंदलापन , अकार्बनिक आयनों को जल से अलग कर देता है |इस तकनीक में बहुत पैसा लगता है और पानी की बर्बादी भी होती है |लेकिन पानी अगर शुद्ध नहीं है तो लोग उसे पीने योग्य बनाने के लिए विवश है |
भारत के बड़े शहरों पानी की बिकरालता की दस्तक -
इसलिए भारत के लोगों और यहाँ की सरकारों को इस बारे में सोचना ही होगा नहीं तो ये बिकराल समस्या कब आके आपके बगल में खड़ी हो जाएगी आपको पता भी नहीं चलेगा |भारत के कई बड़े शहरों में ये समस्या आम हो चुकी है उनका यहाँ का जलस्तर बहुत ही नीचे जा चूका है कई लोग अपने घरों समरसेबल लगा के काम चला रहे है तो जिसके पास ये व्यवस्था नहीं है वो पूरी तरह से सरकार के पानी के टैंक पे निर्भर है |ऐसा ही महारष्ट्र के शहरों का हाल है लॉक डाउन में भी कई जगह से ट्रेनों में पानी भरकर उन जिलों और राज्यों में पहुंचाया गया |
स्लोगन -'जल है तो कल है '- पे गौर फरमाए -
और इसलिए अगर समस्या दर पे खड़ी है तो उसको नज़रअंदाज़ नहीं करना चाहिए |सबसे पहले हमे अरब देशों से सीखना चाहिए की पानी को कैसे बचाये |और कम से पानी की बर्बादी करे | नहीं तो आबादी बढ़ने से वातारण भी अनियंत्रित हो रहा है और उसका हमारे एको-सिस्टम पे बहुत ही बुरा प्रभाव पड़ रहा है |हम पेड़ों को काट कर रहने के लिए जगह बना रहे है लेकिन अगर पानी ही न हुआ तो उस जगह का आप क्या करेंगे |इसलिए मेरा कहना है -'जल है तो कल है ' इस स्लोगन का आप ध्यान रखे और दूसरों को भी ध्यान दिलाये|
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गर्भवती के कर्त्तव्य: गर्भ संस्कार के परिपेक्ष में
गर्भवती स्त्री के लिए हिन्दू महार्षियो और संतो ने अनेक नियम व कर्त्तव्य बताते है उन��े से कुछ मुख्य नियम महर्षि पतंजलि ने विस्तार पूर्वक समझाए है. इन नियमों का पालन करने से गर्भवती को उत्तम संतान की प्राप्ति होती है. भारत में जो महान व्यक्तिव हुए है. उनके व्यक्तिव्य का निर्माण उनकी माता गर्भ में ही कर देती है. महान मानवों में उनकी महानता के बीज उनकी माता द्वारा गर्भ में ही डाल दिया जाता है, जिससे समय आने पर वही बीज एक महान वृक्ष की भाती अपने स्वरुप का दर्शन देता है. गर्भावस्था में माता का आचार विचार ही शिशु के स्वाभाव का निर्माण करता है. यही वह स्वभाविक और अति- आवश्यक क्रिया है जिसे सावधानी पूर्वक अनुभव और क्रियान्वत करना चाहिए. यहाँ गर्भवती के कर्तव्यों के कुछ मुख्य नियम विस्तार पूर्वक बताये जा रहे है.
यह नियम निम्नलिखित है.
अहिंसा सत्यास्तेय ब्रम्हाचर्या परिग्रहा यमाः . ( योगदर्शन २\३०)
गर्भवती को चाहिए की वह सभी प्रकार की हिंसा का त्याग करे. किसी भी प्राणी को किसी भी प्रकार का कष्ट न प्रदान करे.
गर्भवती को अपने मन का भाव जैसे का तैसा ही प्रकट करना चाहिए, हितकारक प्रिय शब्दों में न अधिक न कम, निष्कपटता पूर्वक अपने भाव कहना चाहिए.
किसी अन्य का अधिकार या वस्तु नहीं छीननी चाहिए और न ही चुराना चाहिए.
गर्भवती को सभी प्रकार के मैथुन ( मानसिक और शारीरिक) का त्याग करना चाहिए, यही ब्रम्हचर्य है इससे शिशु में भी ब्रम्हचारी का गुण आता है.
जितना शरीर के लिए आवश्यक हो उतना ही ले. पदार्थो का संग्रह न करे इससे शिशु में संतुष्टता के स्वाभाव का निर्माण होता है जो उसके भावी जीवन में उसे बड़ा सहायक होता है. यह शिशु के लालची और कपटी होने से उसकी रक्षा करता है.
इन महान व्रतों का पालन करने से गर्भवती स्त्र��� महान संतान को जन्म देती है जो देश ,समाज और परिवार की प्रतिष्ठा को बढ़ता है.
शौच संतोष तपः स्वध्यायेश्वर प्रणिधानानि नियमाः . ( योगदर्शन २\३२)
गर्भवती को चाहिए की वह सभी प्रकार अंदर ( मानसिक और शारीरक ) और बाहर ( त्वजा, वस्त्र, वातावरण) की स्वछता और पवित्रता का ध्यान रखे.
जो भी भगवन इच्छा से प्राप्त हो फिर चाहे वह दुःख हो या सुख उनमे संतुष्ट रहे अर्थात यदि परिस्थिति ठीक नहीं है फिर भी धैर्य का त्याग न करे.
मन और इन्द्रियों को संयम पूर्वक रखे, धर्म का पालन करे यही तप है इससे भावी संतान में तपोगुन की वृद्धि होगी जिससे शिशु में कर्मठता के बीज का निर्माण होगा और परिश्रम उसके स्वभाव में होगा.
ईश्वर के नाम और गुणों का वाचन और पठन करना चाहिए. सात्विक और प्रेरणादायक और शुभ पुस्तकों का पाठ करना चाहिए.
सभी कुछ ईश्वर पर छोड़ कर उनका ध्यान करना चाहिए अपने सभी कर्मो को ईश्वर को समर्पित कर देना चाहिए इससे शिशु में भक्ति का बीज पड़ता है और जिस मानव में भक्ति है वह कभी अधर्म में नहीं जा सकता. भक्ति उसे अंत में सद्गति भी दिला देती है.
इस तरह माता अपने भावी शिशु के पूर्ण जीवन का रेखा चित्र गर्भ अवस्था में ही बना देती है.
धृतिः क्षमा दमोअस्तेयं शौचमिन्द्रियनिग्रहः
धीर्विद्या सत्यमक्रोधो दशकं धर्म लक्षणं . ( मनु. ६/९२)
गर्भवती को सावधानी पूर्वक अपने विचारो का ध्यान व निरक्षण रखना चाहिए. भारी दुःख होने पर भी बुद्धि को विचलित नहीं होने देना चाहिए इससे शिशु में धृति का निर्माण होता है. यही बीज आगे चल कर शिशु के स्वाभाव में स्थिरता लाता है और उसके आत्मसम्मान को ऊचा बनाता है.
गर्भवती को किसी से भी द्वेष नहीं रखना चाहिए उसे सभी को क्षमा कर देना चाहिए इससे उसके शिशु में उदारता का गुण आता है.
बहुत ही सावधानी पूर्वक गर्भवती को अपनी बुद्धि सात्विक रखनी चाहिए. यही आचरण शिशु में “धी “ नामक शक्ति का बीज निर्माण करता है. इससे शिशु जीवन पर्यंत सात्विक आचरण का पालन करता है.
गर्भवती को सत्य और असत्य में भेद करना चाहिए, सत्य और असत्य के पदार्थ का ज्ञान ही विद्या है. माता के इसी आचरण से शिशु में विवेक के बीज का निर्माण होता है. जो जीवन पर्यंत उसको लाभ देता है .
गर्भवती को इन्द्रियो को वश में रखना चाहिए इसी को इन्द्रिय निग्रह कहा जाता है. इस तरह करने से शिशु में संयम के बीज का निर्माण होता है और वह भविष्य में लोभ और लालच से बचा रहता है जिससे वह जीवन पर्यंत सुख का अनुभव करता है.
यतः प्रव्रतिर्भुतानां येन सर्वमिदं ततम्
स्वकर्मणा तमभ्यचर्य सिद्धिं विन्दति मानवः ( गीता १८/४६)
यह श्लोक गीता ���ा है जिसमे श्री कृष्णा अर्जुन से कहते है की हे अर्जुन ! जिस परमात्मा से सर्वभूतो की उत्पत्ति हुई है और जिससे सर्वजगत व्याप्त है उसी परमेश्वर ( श्री कृष्णा/ नारायण / शिव/ गायत्री ) को अपने स्वभाविक कर्मो द्वारा पूजकर मनुष्य परम सिद्धि को प्राप्त करता है.
इस श्लोक में गर्भवती के लिए निर्देश है की वह स्वार्थ का त्याग करके उत्तम कर्मो का आचरण निष्काम भाव से करे. इस तरह निष्काम भाव से सदाचार का पालन करने पर शिशु में सदाचार का बीज का निर्माण होता है जिससे भविष्य में वह अहंकार से मुक्त रहता है. अहंकार ही जीवन को नष्ट करने के लिए पर्याप्त है, माता द्वारा सदाचार का बीज गर्भावस्था में ही मिल जाने पर बालक सदेव अहंकार से मुक्त रहता है और जीवन में सफलता अर्जित करता है.
इस तरह गर्भ संस्कार के नियमों का पालन करते हुए माता न सिर्फ अपना बल्कि अपने शिशु का भी आत्मा का उद्धार कर देती है.
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अंतिम संस्कार के लिए दीवार पर चिपकाए 500 के नोट, दो बच्चों का गला घोंटकर 8वीं मंजिल से कूदे दंपती और महिला
चैतन्य भारत न्यूज नई दिल्ली. दिल्ली से सटे गाजियाबाद के इंदिरापुरम से एक दर्दनाक खबर सामने आई है। वैभव खंड स्थित कृष्णा आपरा सफायर अपार्टमेंट में तीन लोगों ने 8वीं मंजिल से कूदकर आत्महत्या कर ली, जबकि दो बच्चों की गला रेतकर हत्या कर दी गई है। यह घटना मंगलवार सुबह करीब 5 बजे की है। बताया जा रहा है कि गुलशन वासुदेव को बिजनेस में दो करोड़ का नुकसान हुआ था। (adsbygoogle = window.adsbygoogle || ).push({});
पहले बच्चों को मारा फिर छलांग लगा ली जानकारी के मुताबिक, गुलशन वासुदेव (45) अपनी पत्नी परवीन वासुदेव और दो बच्चों कृतिका (18) और रितिक (13) और संजना नाम की एक अन्य महिला के साथ कृष्णा अपरा सोसाइटी के फ्लैट संख्या 806 में रहते थे। मंगलवार सुबह सोसाइटी के गार्ड को कुछ गिरने की आवाज आई, जिसके बाद उन्होंने जाकर देखा तो वहां दो महिलाएं और एक पुरुष जमीन पर पड़े हुए थे। घटना की सूचना मिलते ही मौके पर पहुंची पुलिस ने तीनों को अस्पताल पहुंचाया, जहां डॉक्टरों ने एक महिला और एक पुरुष को मृत घोषित कर दिया। एक और महिला ने इलाज के दौरान दम तोड़ दिया। फिर पुलिस गुलशन के फ्लैट में पहुंची, जहां दोनों बच्चे बिस्तर पर मृत मिले। इतना ही नहीं बल्कि परिवार ने अपने पालतू खरगोश को भी मौत के घाट उतार दिया है। आशंका है कि गुलशन ने बच्चों की हत्या करने के बाद अपनी पत्नी और एक अन्य महिला के साथ 8वीं मंजिल से छलांग लगा दी है।
राकेश वर्मा है मौत का जिम्मेदार जानकारी के मुताबिक, पुलिस को फ्लैट के अंदर दीवार पर लिखा हुआ सुसाइड नोट भी मिला है। इसमें गुलशन ने अपने परिवार का अंतिम संस्कार एक साथ करने की बात कही। फ्लैट की दीवारों पर सुसाइड नोट के साथ ही 500 रुपए के नोट भी चिपकाए गए थे और लिखा था कि, 'जो 500 रुपए नोट के साथ हैं वह हम सबके अंतिम क्रिया-कर्म के हैं।' इसके साथ ही दीवारों पर कुछ बाउंस चेक भी चिपके हुए थे। साथ ही राकेश वर्मा नामक शख्स को भी इस घटना का जिम्मेदार बताया। पुलिस के मुताबिक, राकेश वर्मा गुलशन का साढू है। पुलिस अब राकेश वर्मा की तलाश में जुट गई है। गुलशन के भाई ने पुलिस को बताया कि, 'गुलशन और उनके साढू राकेश वर्मा के बीच दो करोड़ का विवाद चल रहा था।' साथ ही भाई ने यह आरोप लगाया कि, इस विवाद के कारण ही गुलशन ने ये कदम उठाया। ये भी पढ़े... काम न मिलने से निराश इस एक्ट्रेस ने बिल्डिंग की छत से कूदकर की आत्महत्या 14 साल में एक ही परिवार के 6 लोगों की मौत, पुलिस ने कब्र खोदकर निकालीं 5 लाशें, बहू गिरफ्तार वायुसेना के पूर्व कर्मचारी ने की आत्महत्या, पी. चिदंबरम को ठहराया मौत का जिम्मेदार Read the full article
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एकवेणी जपाकर्णपूरा नग्ना खरास्थिता। लम्बोष्ठी कर्णिकाकर्णी तैलाभ्यक्तशरीरिणी॥ वामपादोल्लसल्लोहलताकण्टक भूषणा। वर्धन्मूर्धध्वजा कृष्णा कालरात्रिर्भयंकरी॥ सप्तमी दिन – कालरात्रि की पूजा विधि : देवी का यह रूप ऋद्धि सिद्धि प्रदान करने वाला है. दुर्गा पूजा का सातवां दिन तांत्रिक क्रिया की साधना करने वाले भक्तों के लिए अति महत्वपूर्ण होता है (Seventh day of Durga Puja is most important day for Tantrik.). सप्तमी पूजा के दिन तंत्र साधना करने वाले साधक मध्य रात्रि में देवी की तांत्रिक विधि से पूजा करते हैं. इस दिन मां की आंखें खुलती हैं. षष्ठी पूजा के दिन जिस विल्व को आमंत्रित किया जाता है उसे आज तोड़कर लाया जाता है और उससे मां की आँखें बनती हैं. दुर्गा पूजा में सप्तमी तिथि का काफी महत्व बताया गया है. इस दिन से भक्त जनों के लिए देवी मां का दरवाज़ा खुल जाता है और भक्तगण पूजा स्थलों पर देवी के दर्शन हेतु पूजा स्थल पर जुटने लगते हैं. सप्तमी की पूजा सुबह में अन्य दिनों की तरह ही होती परंतु रात्रि में विशेष विधान के साथ देवी की पूजा की जाती है. इस दिन अनेक प्रकार के मिष्टान एवं कहीं कहीं तांत्रिक विधि से पूजा होने पर मदिरा भी देवी को अर्पित कि जाती है. सप्तमी की रात्रि ‘सिद्धियों’ की रात भी कही जाती है. कुण्डलिनी जागरण हेतु जो साधक साधना में लगे होते हैं आज सहस्त्रसार चक्र का भेदन करते हैं.पूजा विधान में शास्त्रों में जैसा वर्णित हैं उसके अनुसार पहलेकलश की पूजा करनी चाहिए फिर नवग्रह, दशदिक्पाल, देवी के परिवार में उपस्थित देवी देवता की पूजा करनी चाहिए फिर मां कालरात्रि की पूजा करनी चाहिए. देवी की पूजा से पहले उनका ध्यान करना चाहिए ” देव्या यया ततमिदं जगदात्मशक्तया, निश्शेषदेवगणशक्तिसमूहमूर्त्या तामम्बिकामखिलदेवमहर्षिपूज्यां, भक्त नता: स्म विदाधातु शुभानि सा न:.. #मंत्र : 1- या देवी सर्वभूतेषु माँ कालरात्रि रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।। 2- एक वेधी जपाकर्णपूरा नग्ना खरास्थिता। लम्बोष्ठी कर्णिकाकणी तैलाभ्यक्तशरीरिणी।। वामपदोल्लसल्लोहलताकण्टक भूषणा। वर्धनमूर्धध्वजा कृष्णा कालरात्रिर्भयंकरी।। #ध्यान : करालवंदना धोरां मुक्तकेशी चतुर्भुजाम्। कालरात्रिं करालिंका दिव्यां विद्युतमाला विभूषिताम॥ दिव्यं लौहवज्र खड्ग वामोघोर्ध्व कराम्बुजाम्। अभयं वरदां चैव दक्षिणोध्वाघः पार्णिकाम् मम॥ महामेघ प्रभां श्यामां तक्षा चैव गर्दभारूढ़ा। घोरदंश कारालास्यां पीनोन्नत पयोधराम्॥ (at New Delhi) https://www.instagram.com/p/B3N_6REDKQA/?igshid=1p0z2hcwdalj
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