#किसान पुत्र
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jansancharbharat · 4 days ago
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किसान के बेटे ने डुमराँव का नाम किया रोशन: सेल्फ स्टडी के बल पर प्रखंड कृषि पदाधिकारी बने आयुष तिवारी (Ayush Tiwari)
बक्सर, बिहार: बक्सर जिले के डुमराँव निवासी किसान तुलसी तिवारी के पुत्र आयुष तिवारी (Ayush Tiwari) ने बिहार लोक सेवा आयोग (BPSC) की परीक्षा में सफलता प्राप्त कर प्रखंड कृषि पदाधिकारी (बीएओ) पद हासिल किया है। उनकी इस उपलब्धि से परिवार, मोहल्ले और पूरे नगर में हर्ष का माहौल बना हुआ है। इस सफलता के पीछे उनकी कड़ी मेहनत और आत्म-अनुशासन की महत्वपूर्ण भूमिका रही। संघर्ष और सफलता की कहानी आयुष तिवारी…
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bikanerlive · 1 month ago
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*पूगल उपखंड में आकाशीय बिजली गिरने से किसान के खेत में नुकसान*
पूगल तहसील की ग्राम पंचायत पहलवान का बेरा के चक 3 RSM में किसान बलराम पुत्र पुरखाराम के खेत मे दिनांक। 22/12/2024 को आकाशीय बिजली गिरने से खेत में लगे 7.5 किलोवट सौरऊर्जा पैनल की मोटर व स्टार्टर जल गया । साथ ही किसान के खेत में बने घर के पास ही बिजली पो�� पर भी और बिजली गिरी जिसके कारण घर की पूरी बिजली फिटिंग व बिजली उपकरण जल गए जिससे किसन को लाखों रुपये का नुकसान हो गया।। चक में विद्युत सप्लाई…
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mediahousepress · 2 months ago
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चिंतन करना पड़ेगा-मैं खुद कृषक पुत्र हूं, मैं जानता हूं किसान क्या कुछ नहीं झेलता है, हमारा अन्नदाता है। उपराष्ट्रपति
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rightnewshindi · 2 months ago
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चंबा के किसान को डिजिटल अरेस्ट करके शातिरों ने उड़ाए 61 हजार रुपए, पुलिस ने दर्ज किया केस
Chamba News: मुबई से आई एक अज्ञात कॉल ने हिमाचल प्रदेश के चंबा के किसान को जहां पूरी रात वीडियो कॉल कर डिजिटल अरेस्ट किया। इसके बाद सुबह उसके खाते से 61,000 रुपये उड़ा लिए। ठगी का शिकार हुए किसान ने पुलिस चौकी तेलका में शिकायत दर्ज करवाई है। साथ ही पुलिस से गुहार लगाई है कि इस मामले में त्वरित कार्रवाई की जाए। ताकि उसकी राशि वापस आ सकें। पीड़ित दिनेश कुमार पुत्र ज्ञान चंद शर्मा, गांव अंद्राल,…
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arunpangarkar2 · 5 months ago
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आदर्श धन वितरण प्रणाली आंदोलन एवं गरिबी उन्मूलन आंदोलन
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jantanow · 5 months ago
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विद्युत पोल में 11000 वोल्टेज बिजली उतरने से दो लोगों की हुई मौत 
दुबौलिया – बस्ती ,सुबह खेत में कार्य करने गये दोनों किसानों की बिजली की चपेट में आने से हुई मौत एक किसान खेत में प्रवेश करते ही बिजली से झूलझा दूसरे किसान द्वारा पहले किसान को बचाने के चक्कर में दूसरे किसान की हुई मौत किशन लाल पुत्र राम दुलारे उम्र – 64 वर्ष , भलाई यादव पुत्र राम अचल – उम्र 42 वर्ष की हुई मौत 11/33 विद्युत उपकेन्द्र एकडेगवा के अन्तर्गत राजस्व गांव भिखरिया में हुई घटना पीड़ित…
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hindinewsmanch · 6 months ago
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Greater Noida News : ग्रेटर नोएडा के थाना कासना क्षेत्र के ग्राम सलेम��ुर गुर्जर में बीती रात घेर में सो रहे बुजुर्ग की गोली मारकर हत्या कर दी गई। परिजनों ने शुक्रवार की सुबह इस मामले की सूचना पुलिस को दी।
एडीसीपी ग्रेटर नोएडा अशोक कुमार ने बताया कि (73 वर्षीय) श्याम सिंह के पुत्र ने आज सुबह पुलिस को सूचना दी कि वह अपने पिता के साथ खेत के पास बने अपने घेर में सो रहे थे। रात में उसे तेज धमाके की आवाज सुनाई दी उसने उठकर देखा लेकिन कोई व्यक्ति दिखाई नहीं दिया। आज सुबह जब वह सोकर उठा तो उसके पिता चारपाई पर लहूलुहान हालत में मृत पड़े हुए थे।एडीसीपी ने बताया कि सूचना मिलने पर थाना कासना पुलिस मौके पर पहुंची और जांच पड़ताल की है। जांच में पता चला है की वृद्ध को एक गोली लगी है। परिजनों के बयानों में भी विरोधाभास है। सभी पहलुओं को ध्यान में रखकर जांच पड़ताल की जा रही है।
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dainiksamachar · 6 months ago
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पति थे MLA तो सब्जी बेचती थीं जोबा मांझी, 6 CM के साथ रहीं मंत्री, MP बनने के बाद अब भी बेटे के साथ करती हैं खेती
चाईबासाः झारखंड में से जेएमएम की जोबा मांझी पहली बार सांसद बनीं, लेकिन इससे पहले जोबा मांझी छह मुख्यमंत्रियों की सरकार में मंत्री रह चुकी हैं। लेकिन जोबा मांझी की सादगी की चर्चा अब भी पूरे इलाके में होती है। पांच बार विधायक रह चुकीं 60 वर्षीय जोबा मांझी अपने बेटे के साथ अब भी खेती करते देखी जा सकती हैं। लोकसभा के मॉनसून सत्र में शामिल होने के पहले भी इस बार भी जोबा मांझी अपने बेटे के साथ खेती का जायजा लेने पहुंची। शादी के बाद भी जोबा मांझी का जमीन से नहीं टूटा रिश्ता सरायकेला-खरसावां जिले के राजनगर ��्रखंड अंतर्गत रानीगंज गांव में जन्मी जोबा मांझी की पारिवारिक पृष्ठभूमि भी साधारण आदिवासी परिवारों की तरह रही। बचपन में वो अपनी मां और पिता के साथ खेतों पर जाती थीं। के साथ शादी होने के बाद भी जोबा मांझी का जमीन से नाता-रिश्ता टूटा नहीं। उनके पति देवेंद्र मांझी की गिनती 90 के दशक में झाखंड के प्रमुख आंदोलनकारी नेता के रूप में होती थी। ऐसे में जब देवेंद्र मांझी अलग झारखंड राज्य की लड़ाई में व्यस्त रहते थे। उस वक्त जोबा मांझी ही घर का सारा कामकाज के साथ खेती की जिम्मेदारी संभालती थीं। पति एमएलए थे, इतवारी बाजार में बेचती थीं सब्जी प्रारंभ से ही जोबा मांझी बेहद साधारण जीवन जीती हैं। जब उनके पति देवेंद्र मांझी विधायक थे, तब जोबा मांझी चक्रधरपुर के इतवारी बाजार में सब्ज़ी बेचती थीं। आज भी राजनीति में इतना ऊंचा मुकाम हासिल करने के बाद भी वह घर का काम खुद करती हैं। अपने खेतों में वह एक आम किसान की तरह काम करती नज़र आती हैं। उनकी सादगी और सरलता ही उनकी पहचान है। पति देवेंद्र मांझी की शहादत के बाद सक्रिय राजनीति में जोबा मांझी के पति देवेंद्र मांझी जल, जंगल और जमीन आंदोलन के प्रणेता थे। 1994 में देवेंद्र मांझी की हत्या कर दी गई। जिसके बाद जोबा मांझी सक्रिय राजनीति में आई हैं। उस समय कोई नहीं जानता था कि जोबा मांझी इतनी बड़ी नेता बनेंगी। जोबा मांझी 1995 में पहली बार विधायक बनीं। इसके बाद 2000, 2005, 2014 और 2019 में भी जोबा मांझी ने मनोहरपुर विधानसभा सीट से हासिल की। जबकि 2024 के लोकसभा चुनाव में भी सिंहभूम लोकसभा सीट से जोबा मांझी ने बड़ी जीत दर्ज की। उन्होंने बीजेपी की गीता कोड़ा को एक लाख 68 हज़ार से ज्यादा वोटों से हराया। यह जीत उनके लिए बहुत ख़ास है क्योंकि वह पहली बार सांसद बनी हैं। पति से सीखी सादगी, बनीं संघर्ष की प्रतिमूर्ति 1982 में जब स्वर्गीय देवेंद्र मांझी से जोबा मांझी की शादी हुई, तब से लेकर आज तक वो सादगी की शर्तों पर ही राजनीति करती हुई दिख रहीं हैं। ऐसे में जब कि मुखिया जैसे पद के नेता भी बड़ी-बड़ी लग्जरी गाड़ियों से चलने को स्टेटस सिंबल समझते हैं, वैसे दौर में जोबा मांझी की यह तस्वीर याद दिलाती है कि राजनीति में सादगी और संघर्ष जिंदा है। जोबा मांझी को अच्छी तरह से जानने वाले बड़े-बुजुर्गो का कहना है कि 90 के दशक में जब देवेंद्र मांझी मनोहरपुर के विधायक थे, तो जोबा मांझी हर रविवार को हाट में जाकर सब्जी बेचा करती थीं। राजनीति में ऐसी सादगी अब विलुप्त हो चुकी है। जोबा मांझी उन गिने-चुने नेताओं में हैं, जिन्होंने संघर्ष को ना सिर्फ जिया है, बल्कि जिंदा भी रखा है। छह मुख्यमंत्रियों के साथ 7 सरकारों में रहीं मंत्री जोबा मांझी के लिए सिंहभूम सीट से जीत उनके राजनीतिक सफ़र का एक अहम पड़ाव है। मनोहरपुर विधानसभा क्षेत्र से वे पांच बार विधायक रह चुकी हैं। इसके अलावा उन्हें 7 बार कैबिनेट मंत्री बनने का भी मौका मिला है। अब सांसद बनकर उन्होंने सिंहभूम की दूसरी महिला सांसद होने का गौरव भी हासिल किया है। उनका संघर्ष महिला सशक्तीकरण की एक मिसाल है। 1995 में पहली बार मनोहरपुर सीट से जीत हासिल करने के बाद उन्हें राबड़ी देवी की सरकार में उन्हें मंत्री बनाया गया। झारखंड बनने के बाद भी बाबूलाल मरांडी, अर्जुन मुंडा, मधु कोड़ा, शिबू सोरेन और हेमंत सोरेन की सरकारों में उन्हें मंत्री पद मिला। वह अपनी साफ़ छवि और ईमानदारी के लिए जानी जाती हैं। राजनीतिक विरासत संभालने के लिए पुत्र जगत मांझी तैयार जोबा मांझी ने इस बार झारखंड की सिंहभूम लोकसभा सीट से भारी अंतर से जीत हासिल की। इस जीत में उनके बेटे जगत मांझी का भी बहुत बड़ा योगदान है। जोबा मांझी सातवीं बार चुनाव जीती हैं लेकिन यह उनका पहला लोकसभा चुनाव था। जगत मांझी ने चुनाव प्रचार की पूरी ज़िम्मेदारी अपने कंधों पर उठा ली थी। उन्होंने बूथ मैनेजमेंट से लेकर स्टार प्रचारकों के कार्यक्रम तक, हर चीज़ का बखूबी ध्यान रखा। नामांकन के दौरान और रैलियों में भीड़ जुटाने में भी उनकी अहम भूमिका रही। उन्होंने कार्यकर्ताओं और समर्थकों का भी पूरा ख्याल रखा। जगत के इस काम से यह साफ़ है कि वह अपनी माँ के उत्तराधिकारी बनने के लिए तैयार हैं। जोबा के छोटे बेटे उदय मांझी और बबलू मांझी ने भी अलग-अलग… http://dlvr.it/TBNXKf
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uttamhindustan · 7 months ago
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खेत में पानी चलाने गए किसान की गला रेतकर हत्या, पुलिस ने शव को कब्जे लेकर पोस्टमार्टम के लिए भेजा*
  सहारनपुर के नागल में आधी रात को खेत में पानी देने गए गांव पहाड़पुर निवासी किसान संजय पुत्र दिलेराम की धारदार हथियारों से हमला कर हत्या की घटना को अंजाम दिया गया । सूचना के बाद पुलिस और फॉरेंसिक टीम ने घटनास्थल पर पहुंचकर जांच पड़ताल की। पुलिस ने शव को कब्जे लेकर पोस्टमार्टम के लिए भेजा। सहारनपुर के एसपी देहात सागर जैन ने बताया कि आज 24 जून को थाना नागल क्षेत्रान्तर्गत खेत पर सो रहे एक व्यक्ति को…
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mahadeosposts · 1 year ago
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*🌴सच्चे संत का मानव कल्याण के अद्भुत उद्देश्य और कठिन संघर्ष🌴*
दोस्तों हम बात कर रहे हैं, महान संत रामपाल जी महाराज जी की जिनका जन्म 8 सितंबर 1951 को गांव धनाना, जिला सोनीपत, हरियाणा में एक जाट किसान के घर हुआ। संत रामपाल जी महाराज जी की माता का नाम- इंद्रोदेवी, पिता का नाम- नंदराम है तथा संत रामपाल जी महाराज जी की चार संतान है दो पुत्र तथा दो पुत्री।
संत रामपाल जी महाराज जी पढ़ाई पूरी करके हरियाणा में सिंचाई विभाग में जूनियर इंजीनियर की पोस्ट पर 18 वर्ष तक कार्यरत रहे। 37 वर्ष की आयु में 17 फरवरी सन् 1988, फाल्गुन महिने की अमावस्या को रात्रि में परम संत रामदेवानंद जी से दीक्षा ली। जिसे संत भाषा में उपदेशी भक्त का आध्यात्मिक जन्मदिन माना जाता है।
और सक्रिय होकर भक्ति मार्ग पर चलकर परमात्मा का साक्षात्कार किया।
सन् 1993 में स्वामी रामदेवानंद जी महाराज ने संत रामपाल जी महाराज जी को सत्संग करने की आज्ञा दी और 1994 में नामदीक्षा देने की आज्ञा प्रदान की। भक्ति मार्ग में लीन होने के कारण संत रामपाल जी महाराज ने जे.ई की सरकारी नौकरी से त्यागपत्र दे दिया। और अपने परिवार को भगवान भरोसे छोड़कर मानव कल्याण के एक अद्भुत मिशन पर चल पड़े। जिसके बाद कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। सन् 1994 से 1998 तक संत रामपाल जी महाराज ने घर घर, शहर शहर जाकर सत्संग किए। शास्त्र प्रमाणित ज्ञान देखकर बहु संख्या में अनुयाई होते गए। और साथ ही साथ ज्ञानहीन नक़ली संतों का विरोध भी बढ़ता ही गया।
इसके बाद सन् 1999 में गांव करौंथा, जिला रोहतक (हरियाणा) में सतलोक आश्रम करौंथा की स्थापना की। और प्रत्येक पूर्णिमा को तीन दिवसीय सत्संग प्रारंभ किया। जिससे चंद ही दिनों में संत रामपाल जी महाराज के अनुयायियों की संख्या लाखों में पहुंच गई। जब ज्ञानहीन नकली संत-धर्मगुरुओं के अनुयाई संत रामपाल जी महाराज के शास्त्र प्रमाणित ज्ञान को आंखों देखकर संत रामपाल जी महाराज की शरण में आकर दीक्षा लेकर उनके अनुयाई बनने लगे। और उन नकली धर्मगुरुओं से प्रश्न करने लगे की आप सारा ज्ञान सदग्रंथों के विपरित बता रहे ���ो। तब उन नकली धर्मगुरुओं के अज्ञान का पर्दाफाश हुआ।
राष्ट्रीय तथा अंतर्राष्ट्रीय टीवी चैनलों पर भी उनके सत्संग चलने लगे, सत्य ज्ञान को आंखों देख कर लोग उनके ज्ञान को समझकर जुड़ रहे हैं। देशभर में गांव गांव, शहर शहर में उनके सत्संग होते हैं, जहां लोग शास्त्र प्रमाणित ज्ञान को देखते और सुनते हैं। और आज़ संत जी के सत्य ज्ञान का ही परिणाम है कि भारतवर्ष के अलावा पाकिस्तान, नेपाल, भूटान, आस्ट्रेलिया, अमेरिका जैसे देशों
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gagandeepkaur92 · 1 year ago
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*🌴सच्चे संत का मानव कल्याण के अद्भुत उद्देश्य और कठिन संघर्ष🌴*
दोस्तों हम बात कर रहे हैं, महान संत रामपाल जी महाराज जी की जिनका जन्म 8 सितंबर 1951 को गांव धनाना, जिला सोनीपत, हरियाणा में एक जाट किसान के घर हुआ। संत रामपाल जी महाराज जी की माता का नाम- इंद्रोदेवी, पिता का नाम- नंदराम है तथा संत रामपाल जी महाराज जी की चार संतान है दो पुत्र तथा दो पुत्री।
संत रामपाल जी महाराज जी पढ़ाई पूरी करके हरियाणा में सिंचाई विभाग में जूनियर इंजीनियर की पोस्ट पर 18 वर्ष तक कार्यरत रहे। 37 वर्ष की आयु में 17 फरवरी सन् 1988, फाल्गुन महिने की अमावस्या को रात्रि में परम संत रामदेवानंद जी से दीक्षा ली। जिसे संत भाषा में उपदेशी भक्त का आध्यात्मिक जन्मदिन माना जाता है।
और सक्रिय होकर भक्ति मार्ग पर चलकर परमात्मा का साक्षात्कार किया।
सन् 1993 में स्वामी रामदेवानंद जी महाराज ने संत रामपाल जी महाराज जी को सत्संग करने की आज्ञा दी और 1994 में नामदीक्षा देने की आज्ञा प्रदान की। भक्ति मार्ग में लीन होने के कारण संत रामपाल जी महाराज ने जे.ई की सरकारी नौकरी से त्यागपत्र दे दिया। और अपने परिवार को भगवान भरोसे छोड़कर मानव कल्याण के एक अद्भुत मिशन पर चल पड़े। जिसके बाद कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। सन् 1994 से 1998 तक संत रामपाल जी महाराज ने घर घर, शहर शहर जाकर सत्संग किए। शास्त्र प्रमाणित ज्ञान देखकर बहु संख्या में अनुयाई होते गए। और साथ ही साथ ज्ञानहीन नक़ली संतों का विरोध भी बढ़ता ही गया।
इसके बाद सन् 1999 में गांव करौंथा, जिला रोहतक (हरियाणा) में सतलोक आश्रम करौंथा की स्थापना की। और प्रत्येक पूर्णिमा को तीन दिवसीय सत्संग प्रारंभ किया। जिससे चंद ही दिनों में संत रामपाल जी महाराज के अनुयायियों की संख्या लाखों में पहुंच गई। जब ज्ञानहीन नकली संत-धर्मगुरुओं के अनुयाई संत रामपाल जी महाराज के शास्त्र प्रमाणित ज्ञान को आंखों देखकर संत रामपाल जी महाराज की शरण में आकर दीक्षा लेकर उनके अनुयाई बनने लगे। और उन नकली धर्मगुरुओं से प्रश्न करने लगे की आप सारा ज्ञान सदग्रंथों के विपरित बता रहे हो। तब उन नकली धर्मगुरुओं के अज्ञान का पर्दाफाश हुआ।
राष्ट्रीय तथा अंतर्राष्ट्रीय टीवी चैनलों पर भी उनके सत्संग चलने लगे, सत्य ज्ञान को आंखों देख कर लोग उनके ज्ञान को समझकर जुड़ रहे हैं। देशभर में गांव गांव, शहर शहर में उनके सत्संग होते हैं, जहां लोग शास्त्र प्रमाणित ज्ञान को देखते और सुनते हैं। और आज़ संत जी के सत्य ज्ञान का ही परिणाम है कि भारतवर्ष के अलावा पाकिस्तान, नेपाल, भूटान, आस्ट्रेलिया, अमेरिका जैसे देशों में भी श्रद्धालु नाम दीक्षा लेकर सतभक्ति कर रहे हैं। उनके द्वारा लिखी गई पुस्तकें मंगवा कर तथा ऑनलाइन भी पढ रहे हैं।
संत रामपाल जी महाराज ही वह पूर्ण संत है जिनका ज्ञान आज पूरे विश्व के हर कोने में अपनी ही एक आध्यात्मिक लहर से मानव जीवन को नई दिशा निर्देश दिखा रहे है। जिनका आध्यात्मिक ज्ञान शास्त्रों में प्रमाणित हैं। जिन्होंने आध्यात्मिक ज्ञान चर्चा में सभी धर्म गुरुओं को आमंत्रित भी किया और शास्त्रार्थ में सभी को पराजित भी किया। जिनके आध्यात्मिक ज्ञान से समाज में व्याप्त उन तमाम बुराइयों का अंत हो रहा है जैसे कि दहेज प्रथा, भ्रूण हत्या, भ्रष्टाचार, चोरी, बेईमानी, ठगी आदि आदि।
इतना ही नहीं संत रामपाल जी महाराज जी का उद्देश्य है कि विश्व के समस्त मानव पूर्ण परमात्मा कबीर जी को पहचान कर सतभक्ति करके अपना जीवन सफल बनाएं अर्थात मोक्ष प्राप्त करें। साथ ही समाज में फैली हुई कुरीतियों और पाखंडवाद जड़ से खत्म हो, इसके लिए वह दिन रात प्रयत्न कर रहे हैं। और इसी का परिणाम है कि आज़ उनसे जुड़े हुए करोड़ों लोग नशा, दहेज, अंधविश्वास, चोरी, बेईमानी आदि तमाम बुराईयों से दूर होकर सतभक्ति करते हुए मानव सेवा के लिए सदैव तत्पर रहते हैं। साथ ही रक्तदान तथा देहदान कर रहे हैं।
समस्त मानव समाज से प्रार्थना है कि, एक बार संत रामपाल जी महाराज जी के ज्ञान को जरूर सुनें। वह धरती पर अवतरित सच्चे संत हैं, मानव कल्याण के लिए उनके कठिन संघर्ष और बलिदान को व्यर्थ ना होने देना है।
#SantRampalJiBodhDiwas
#17Feb_SantRampalJi_BodhDiwas
#SantRampalJiMaharaj
#TheMission_Of_SantRampalJi
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dharmarajdas · 1 year ago
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*🌴सच्चे संत का मानव कल्याण के अद्भुत उद्देश्य और कठिन संघर्ष🌴*
दोस्तों हम बात कर रहे हैं, महान संत रामपाल जी महाराज जी की जिनका जन्म 8 सितंबर 1951 को गांव धनाना, जिला सोनीपत, हरियाणा में एक जाट किसान के घर हुआ। संत रामपाल जी महाराज जी की माता का नाम- इंद्रोदेवी, पिता का नाम- नंदराम है तथा संत रामपाल जी महाराज जी की चार संतान है दो पुत्र तथा दो पुत्री।
संत रामपाल जी महाराज जी पढ़ाई पूरी करके हरियाणा में सिंचाई विभाग में जूनियर इंजीनियर की पोस्ट पर 18 वर्ष तक कार्यरत रहे। 37 वर्ष की आयु में 17 फरवरी सन् 1988, फाल्गुन महिने की अमावस्या को रात्रि में परम संत रामदेवानंद जी से दीक्षा ली। जिसे संत भाषा में उपदेशी भक्त का आध्यात्मिक जन्मदिन माना जाता है।
और सक्रिय होकर भक्ति मार्ग पर चलकर परमात्मा का साक्षात्कार किया।
सन् 1993 में स्वामी रामदेवानंद जी महाराज ने संत रामपाल जी महाराज जी को सत्संग करने की आज्ञा दी और 1994 में नामदीक्षा देने की आज्ञा प्रदान की। भक्ति मार्ग में लीन होने के कारण संत रामपाल जी महाराज ने जे.ई की सरकारी नौकरी से त्यागपत्र दे दिया। और अपने परिवार को भगवान भरोसे छोड़कर मानव कल्याण के एक अद्भुत मिशन पर चल पड़े। जिसके बाद कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। सन् 1994 से 1998 तक संत रामपाल जी महाराज ने घर घर, शहर शहर जाकर सत्संग किए। शास्त्र प्रमाणित ज्ञान देखकर बहु संख्या में अनुयाई होते गए। और साथ ही साथ ज्ञानहीन नक़ली संतों का विरोध भी बढ़ता ही गया।
इसके बाद सन् 1999 में गांव करौंथा, जिला रोहतक (हरियाणा) में सतलोक आश्रम करौंथा की स्थापना की। और प्रत्येक पूर्णिमा को तीन दिवसीय सत्संग प्रारंभ किया। जिससे चंद ही दिनों में संत रामपाल जी महाराज के अनुयायियों की संख्या लाखों में पहुंच गई। जब ज्ञानहीन नकली संत-धर्मगुरुओं के अनुयाई संत रामपाल जी महाराज के शास्त्र प्रमाणित ज्ञान को आंखों देखकर संत रामपाल जी महाराज की शरण में आकर दीक्षा लेकर उनके अनुयाई बनने लगे। और उन नकली धर्मगुरुओं से प्रश्न करने लगे की आप सारा ज्ञान सदग्रंथों के विपरित बता रहे हो। तब उन नकली धर्मगुरुओं के अज्ञान का पर्दाफाश हुआ।
राष्ट्रीय तथा अंतर्राष्ट्रीय टीवी चैनलों पर भी उनके सत्संग चलने लगे, सत्य ज्ञान को आंखों देख कर लोग उनके ज्ञान को समझकर जुड़ रहे हैं। देशभर में गांव गांव, शहर शहर में उनके सत्संग होते हैं, जहां लोग शास्त्र प्रमाणित ज्ञान को देखते और सुनते हैं। और आज़ संत जी के सत्य ज्ञान का ही परिणाम है कि भारतवर्ष के अलावा पाकिस्तान, नेपाल, भूटान, आस्ट्रेलिया, अमेरिका जैसे देशों में भी श्रद्धालु नाम दीक्षा लेकर सतभक्ति कर रहे हैं। उनके द्वारा लिखी गई पुस्तकें मंगवा कर तथा ऑनलाइन भी पढ रहे हैं।
संत रामपाल जी महाराज ही वह पूर्ण संत है जिनका ज्ञान आज पूरे विश्व के हर कोने में अपनी ही एक आध्यात्मिक लहर से मानव जीवन को नई दिशा निर्देश दिखा रहे है। जिनका आध्यात्मिक ज्ञान शास्त्रों में प्रमाणित हैं। जिन्होंने आध्यात्मिक ज्ञान चर्चा में सभी धर्म गुरुओं को आमंत्रित भी किया और शास्त्रार्थ में सभी को पराजित भी किया। जिनके आध्यात्मिक ज्ञान से समाज में व्याप्त उन तमाम बुराइयों का अंत हो रहा है जैसे कि दहेज प्रथा, भ्रूण हत्या, भ्रष्टाचार, चोरी, बेईमानी, ठगी आदि आदि।
इतना ही नहीं संत रामपाल जी महाराज जी का उद्देश्य है कि विश्व के समस्त मानव पूर्ण परमात्मा कबीर जी को पहचान कर सतभक्ति करके अपना जीवन सफल बनाएं अर्थात मोक्ष प्राप्त करें। साथ ही समाज में फैली हुई कुरीतियों और पाखंडवाद जड़ से खत्म हो, इसके लिए वह दिन रात प्रयत्न कर रहे हैं। और इसी का परिणाम है कि आज़ उनसे जुड़े हुए करोड़ों लोग नशा, दहेज, अंधविश्वास, चोरी, बेईमानी आदि तमाम बुराईयों से दूर होकर सतभक्ति करते हुए मानव सेवा के लिए सदैव तत्पर रहते हैं। साथ ही रक्तदान तथा देहदान कर रहे हैं।
समस्त मानव समाज से प्रार्थना है कि, एक बार संत रामपाल जी महाराज जी के ज्ञान को जरूर सुनें। वह धरती पर अवतरित सच्चे संत हैं, मानव कल्याण के लिए उनके कठिन संघर्ष और बलिदान को व्यर्थ ना होने देना है।
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rightnewshindi · 5 months ago
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खेत से खनन वाहन निकालने को लेकर भिड़े दो पक्ष, वाहन सवार लोगों ने किसान को मारी गोली
Uttarakhand News: खेत को जाने वाले रास्ते से खनन वाहन को निकालने को लेकर दो पक्षों के बीच विवाद हो गया। विरोध करने पर वाहन सवार लोगों ने एक किसान को गोली मार दी। गोली किसान के टखने में लगी। घायल किसान को सरकारी अस्पताल में भर्ती कराया गया है।  मामले में चार आरोपियों पर केस दर्ज किया गया है। यूपी के ग्राम कुंदनपुर, मसवासी जिला रामपुर निवासी 33 वर्षीय देवराज पुत्र बाबूराम का उत्तराखंड की सीमा पर…
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alpeshsstuff · 1 year ago
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*🌴सच्चे संत का मानव कल्याण के अद्भुत उद्देश्य और कठिन संघर्ष🌴*
दोस्तों हम बात कर रहे हैं, महान संत रामपाल जी महाराज जी की जिनका जन्म 8 सितंबर 1951 को गांव धनाना, जिला सोनीपत, हरियाणा में एक जाट किसान के घर हुआ। संत रामपाल जी महाराज जी की माता का नाम- इंद्रोदेवी, पिता का नाम- नंदराम है तथा संत रामपाल जी महाराज जी की चार संतान है दो पुत्र तथा दो पुत्री।
संत रामपाल जी महाराज जी पढ़ाई पूरी करके हरियाणा में सिंचाई विभाग में जूनियर इंजीनियर की पोस्ट पर 18 वर्ष तक कार्यरत रहे। 37 वर्ष की आयु में 17 फरवरी सन् 1988, फाल्गुन महिने की अमावस्या को रात्रि में परम संत रामदेवानंद जी से दीक्षा ली। जिसे संत भाषा में उपदेशी भक्त का आध्यात्मिक जन्मदिन माना जाता है।
और सक्रिय होकर भक्ति मार्ग पर चलकर परमात्मा का साक्षात्कार किया।
सन् 1993 में स्वामी रामदेवानंद जी महाराज ने संत रामपाल जी महाराज जी को सत्संग करने की आज्ञा दी और 1994 में नामदीक्षा देने की आज्ञा प्रदान की। भक्ति मार्ग में लीन होने के कारण संत रामपाल जी महाराज ने जे.ई की सरकारी नौकरी से त्यागपत्र दे दिया। और अपने परिवार को भगवान भरोसे छोड़कर मानव कल्याण के एक अद्भुत मिशन पर चल पड़े। जिसके बाद कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। सन् 1994 से 1998 तक संत रामपाल जी महाराज ने घर घर, शहर शहर जाकर सत्संग किए। शास्त्र प्रमाणित ज्ञान देखकर बहु संख्या में अनुयाई होते गए। और साथ ही साथ ज्ञानहीन नक़ली संतों का विरोध भी बढ़ता ही गया।
इसके बाद सन् 1999 में गांव करौंथा, जिला रोहतक (हरियाणा) में सतलोक आश्रम करौंथा की स्थापना की। और प्रत्येक पूर्णिमा को तीन दिवसीय सत्संग प्रारंभ किया। जिससे चंद ही दिनों में संत रामपाल जी महाराज के अनुयायियों की संख्या लाखों में पहुंच गई। जब ज्ञानहीन नकली संत-धर्मगुरुओं के अनुयाई संत रामपाल जी महाराज के शास्त्र प्रमाणित ज्ञान को आंखों देखकर संत रामपाल जी महाराज की शरण में आकर दीक्षा लेकर उनके अनुयाई बनने लगे। और उन नकली धर्मगुरुओं से प्रश्न करने लगे की आप सारा ज्ञान सदग्रंथों के विपरित बता रहे हो। तब उन नकली धर्मगुरुओं के अज्ञान का पर्दाफाश हुआ।
राष्ट्रीय तथा अंतर्राष्ट्रीय टीवी चैनलों पर भी उनके सत्संग चलने लगे, सत्य ज्ञान को आंखों देख कर लोग उनके ज्ञान को समझकर जुड़ रहे हैं। देशभर में गांव गांव, शहर शहर में उनके सत्संग होते हैं, जहां लोग शास्त्र प्रमाणित ज्ञान को देखते और सुनते हैं। और आज़ संत जी के सत्य ज्ञान का ही परिणाम है कि भारतवर्ष के अलावा पाकिस्तान, नेपाल, भूटान, आस्ट्रेलिया, अमेरिका जैसे देशों में भी श्रद्धालु नाम दीक्षा लेकर सतभक्ति कर रहे हैं। उनके द्वारा लिखी ���ई पुस्तकें मंगवा कर तथा ऑनलाइन भी पढ रहे हैं।
संत रामपाल जी महाराज ही वह पूर्ण संत है जिनका ज्ञान आज पूरे विश्व के हर कोने में अपनी ही एक आध्यात्मिक लहर से मानव जीवन को नई दिशा निर्देश दिखा रहे है। जिनका आध्यात्मिक ज्ञान शास्त्रों में प्रमाणित हैं। जिन्होंने आध्यात्मिक ज्ञान चर्चा में सभी धर्म गुरुओं को आमंत्रित भी किया और शास्त्रार्थ में सभी को पराजित भी किया। जिनके आध्यात्मिक ज्ञान से समाज में व्याप्त उन तमाम बुराइयों का अंत हो रहा है जैसे कि दहेज प्रथा, भ्रूण हत्या, भ्रष्टाचार, चोरी, बेईमानी, ठगी आदि आदि।
इतना ही नहीं संत रामपाल जी महाराज जी का उद्देश्य है कि विश्व के समस्त मानव पूर्ण परमात्मा कबीर जी को पहचान कर सतभक्ति करके अपना जीवन सफल बनाएं अर्थात मोक्ष प्राप्त करें। साथ ही समाज में फैली हुई कुरीतियों और पाखंडवाद जड़ से खत्म हो, इसके लिए वह दिन रात प्रयत्न कर रहे हैं। और इसी का परिणाम है कि आज़ उनसे जुड़े हुए करोड़ों लोग नशा, दहेज, अंधविश्वास, चोरी, बेईमानी आदि तमाम बुराईयों से दूर होकर सतभक्ति करते हुए मानव सेवा के लिए सदैव तत्पर रहते हैं। साथ ही रक्तदान तथा देहदान कर रहे हैं।
समस्त मानव समाज से प्रार्थना है कि, एक बार संत रामपाल जी महाराज जी के ज्ञान को जरूर सुनें। वह धरती पर अवतरित सच्चे संत हैं, मानव कल्याण के लिए उनके कठिन संघर्ष और बलिदान को व्यर्थ ना होने देना है।
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jyotis-things · 1 year ago
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( #Muktibodh_part202 के आगे पढिए.....)
📖📖📖
#MuktiBodh_Part203
हम पढ़ रहे है पुस्तक "मुक्तिबोध"
पेज नंबर 386-387
प्रश्न : (बाबा जिन्दा रुप में भगवान जी का) हे धर्मदास जी! गीता शास्त्र आप के परमपिता भगवान कृष्ण उर्फ विष्णु जी का अनुभव तथा आपको आदेश है कि इस गीता शास्त्र में लिखे मेरे अनुभव को पढ़कर इसके अनुसार भक्ति क्रिया करोगे तो ��ोक्ष प्राप्त
करोगे। क्या आप जी गीता में लिखे श्री कृष्ण जी के आदेशानुसार भक्ति कर रहे हो? क्या गीता में वे मन्त्र जाप करने के लिए लिखा है जो आप जी के गुरुजी ने आप जी को जाप करने के लिए दिए हैं? (हरे राम-हरे राम, राम-राम हरे-हरे, हरे कृष्णा-हरे कृष्णा, कृष्ण-कृष्ण, हरे-हरे, ओम नमः शिवाय, ओम भगवते वासुदेवाय नमः, राधे-राधे श्याम मिलादे, गायत्री
मन्त्र तथा विष्णु सहंस्रनाम) क्या गीता जी में एकादशी का व्रत करने तथा श्राद्ध कर्म करने, पिण्डोदक क्रिया करने का आदेश है?
उत्तर :- (धर्मदास जी का) नहीं है।
प्रश्न :- (परमेश्वर जी का) फिर आप जी तो उस किसान के पुत्र वाला ही कार्य कर रहे हो जो पिता की आज्ञा की अवहेलना करके मनमानी विधि से गलत बीज गलत समय पर फसल बीजकर मूर्खता का प्रमाण दे रहा है। जिसे आपने मूर्ख कहा है। क्या आप जी उस किसान के मूर्ख पुत्र से कम हैं?
धर्मदास जी बोले : हे जिन्दा! आप मुसलमान फकीर हैं। इसलिए हमारे हिन्दू धर्म की भक्ति क्रिया व मन्त्रों में दोष निकाल रहे हो।
उत्तर : (कबीर जी का जिन्दा रुप में) हे स्वामी धर्मदास जी! मैं कुछ नहीं कह रहा, आपके धर्मग्रन्थ कह रहे हैं कि आपके धर्म के धर्मगुरु आप जी को शास्त्राविधि त्यागकर मनमाना आचरण करवा रहे हैं जो आपकी गीता के अध्याय 16 श्लोक 23-24 में भी कहा
है कि हे अर्जुन! जो साधक शास्त्र विधि को त्यागकर मनमाना आचरण कर रहा है अर्थात् मनमाने मन्त्र जाप कर रहा है, मनमाने श्राद्ध कर्म व पिण्डोदक कर्म व व्रत आदि कर रहा
है, उसको न तो कोई सिद्धि प्राप्त हो सकती, न सुख ही प्राप्त होगा और न गति अर्थात् मुक्ति मिलेगी, इसलिए व्यर्थ है। गीता अध्याय 16 श्लोक 24 में कहा है कि इससे तेरे लिए कर्त्तव्य अर्थात् जो भक्ति कर्म करने चाहिए तथा अकर्त्तव्य (जो भक्ति कर्म न करने चाहिए) की व्यवस्था में शास्त्र ही प्रमाण हैं। उन शास्त्रों में बताए भक्ति कर्म को करने से ही लाभ होगा।
धर्मदास जी : हे जिन्दा! तू अपनी जुबान बन्द कर ले, मुझसे और नहीं सुना जाता। जिन्दा रुप में प्रकट परमेश्वर ने कहा, हे वैष्णव महात्मा धर्मदास जी! सत्य इतनी कड़वी
होती है जितना नीम, परन्तु रोगी को कड़वी औषधि न चाहते हुए भी सेवन करनी चाहिए। उसी में उसका हित है। यदि आप नाराज होते हो तो मैं चला। इतना कहकर परमात्मा (जिन्दा रुप धारी) अन्तर्ध्यान हो गए। धर्मदास को बहुत आश्चर्य हुआ तथा सोचने लगा कि यह कोई सामान्य सन्त नहीं था। यह पूर्ण विद्वान लगता है। मुसलमान होकर हिन्दू शास्त्रों का पूर्ण ��्ञान है। यह कोई देव हो सकता है। धर्मदास जी अन्दर से मान रहे थे कि मैं गीता
शास्त्र के विरुद्ध साधना कर रहा हूँ। परन्तु अभिमानवश स्वीकार नहीं कर रहे थे। जब परमात्मा अन्तर्ध्यान हो गए तो पूर्ण रुप से टूट गए कि मेरी भक्ति गीता के विरुद्ध है। मैं भगवान की आज्ञा की अवहेलना कर रहा हूँ। मेरे गुरु श्री रुपदास जी को भी वास्तविक
भक्ति विधि का ज्ञान नहीं है। अब तो इस भक्ति को करना, न करना बराबर है, व्यर्थ है। बहुत दुखी मन से इधर-उधर देखने लगा तथा अन्दर से हृदय से पुकार करने लगा कि मैं
कैसा नासमझ हूँ। सर्व सत्य देखकर भी एक परमात्मा तुल्य महात्मा को अपनी नासमझी तथा हठ के कारण खो दिया। हे परमात्मा! एक बार वही सन्त फिर से मिले तो मैं अपना
हठ छोड़कर नम्र भाव से सर्वज्ञान समझूंगा। दिन में कई बार हृदय से पुकार करके रात्रि में सो गया। सारी रात्रि करवट लेता रहा। सोचता रहा हे परमात्मा! यह क्या हुआ। सर्व साधना शास्त्र विरुद्ध कर रहा हूँ। मेरी आँखें खोल दी उस फरिस्ते ने। मेरी आयु 60 वर्ष हो चुकी है। अब पता नहीं वह देव (जिन्दा रुपी) पुनः मिलेगा कि नहीं।
प्रातः काल वक्त से उठा। पहले खाना बनाने लगा। उस दिन भक्ति की कोई क्रिया नहीं की। पहले दिन जंगल से कुछ लकडि़याँ त��ड़कर रखी थी। उनको चूल्हे में जलाकर भोजन बनाने लगा। एक लकड़ी मोटी थी। वह बीचो-बीच थोथी थी। उसमें अनेकां चीटियाँ थीं। जब वह लकड़ी जलते-जलते छोटी रह गई तब उसका पिछला हिस्सा धर्मदास जी को
दिखाई दिया तो देखा उस लकड़ी के अन्तिम भाग में कुछ तरल पानी-सा जल रहा है। चीटियाँ निकलने की कोशिश कर रही थी, वे उस तरल पदार्थ में गिरकर जलकर मर रही
थी। कुछ अगले हिस्से में अग्नि से जलकर मर रही थी। धर्मदास जी ने विचार किया। यह लकड़ी बहुत जल चुकी है, इसमें अनेकों चीटियाँ जलकर भस्म हो गई है। उसी समय अग्नि
बुझा दी। विचार करने लगा कि इस पापयुक्त भोजन को मैं नहीं खाऊँगा। किसी साधु सन्त को खिलाकर मैं उपवास रखूँगा। इससे मेरे पाप कम हो जाएंगे। यह विचार करके सर्व भोजन एक थाल में रखकर साधु की खोज में चल पड़ा। परमेश्वर कबीर जी ने अन्य वेशभूषा बनाई जो हिन्दू सन्त की होती है। एक वृक्ष के नीचे बैठ गए। धर्मदास जी ने साधु को देखा। उनके सामने भोजन का थाल रखकर कहा कि हे महात्मा जी! भोजन खाओ। साधु रुप में परमात्मा ने कहा कि लाओ धर्मदास! भूख लगी है। अपने नाम से सम्बोधन सुनकर धर्मदास को आश्चर्य तो हुआ परंतु अधिक ध्यान नहीं दिया। साधु रुप में विराजमा�� परमात्मा ने
अपने लोटे से कुछ जल हाथ में लिया तथा कुछ वाणी अपने मुख से उच्चारण करके भोजन पर जल छिड़क दिया। सर्वभोजन की चींटियाँ बन गई। चींटियों से थाली काली हो गई। चींटियाँ अपने अण्डों को मुख में लेकर थाली से बाहर निकलने की कोशिश करने लगी।
परमात्मा भी उसी जिन्दा महात्मा के रुप में हो गए। तब कहा कि हे धर्मदास वैष्णव संत! आप बता रहे थे कि हम कोई जीव हिंसा नहीं करते, आपसे तो कसाई भी कम हिंसक है। आपने तो करोड़ों जीवों की हिंसा कर दी। धर्मदास जी उसी समय साधु के चरणों में गिर गया तथा पूर्व दिन हुई गलती की क्षमा माँगी तथा प्रार्थना की कि हे प्रभु! मुझ अज्ञानी को क्षमा करो। मैं कहीं का नहीं रहा क्योंकि पहले वाली साधना पूर्ण रुप से शास्त्र विरुद्ध है।
उसे करने का कोई लाभ नहीं, यह आप जी ने गीता से ही प्रमाणित कर दिया। शास्त्र अनुकूल साधना किस से मिले, यह आप ही बता सकते हैं। मैं आपसे पूर्ण आध्यात्मिक ज्ञान सुनने का इच्छुक हूँ। कृपया मुझ किंकर पर दया करके मुझे वह ज्ञान सुनाऐ जिससे मेरा मोक्ष हो सके।
क्रमशः__________)
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आध्यात्मिक जानकारी के लिए आप संत रामपाल जी महाराज जी के मंगलमय प्रवचन सुनिए। संत रामपाल जी महाराज YOUTUBE चैनल पर प्रतिदिन 7:30-8.30 बजे। संत रामपाल जी महाराज जी इस विश्व में एकमात्र पूर्ण संत हैं। आप सभी से विनम्र निवेदन है अविलंब संत रामपाल जी महाराज जी से नि:शुल्क नाम दीक्षा लें और अपना जीवन सफल बनाएं।
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pradeep-chauhan · 1 year ago
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#MuktiBodh_Part203
हम पढ़ रहे है पुस्तक "मुक्तिबोध"
पेज नंबर 386-387
प्रश्न : (बाबा जिन्दा रुप में भगवान जी का) हे धर्मदास जी! गीता शास्त्र आप के परमपिता भगवान कृष्ण उर्फ विष्णु जी का अनुभव तथा आपको आदेश है कि इस गीता शास्त्र में लिखे मेरे अनुभव को पढ़कर इसके अनुसार भक्ति क्रिया करोगे तो मोक्ष प्राप्त
करोगे। क्या आप जी गीता में लिखे श्री कृष्ण जी के आदेशानुसार भक्ति कर रहे हो? क्या गीता में वे मन्त्र जाप करने के लिए लिखा है जो आप जी के गुरुजी ने आप जी को जाप करने के लिए दिए हैं? (हरे राम-हरे राम, राम-राम हरे-हरे, हरे कृष्णा-हरे कृष्णा, कृष्ण-कृष्ण, हरे-हरे, ओम नमः शिवाय, ओम भगवते वासुदेवाय नमः, राधे-राधे श्याम मिलादे, गायत्री
मन्त्र तथा विष्णु सहंस्रनाम) क्या गीता जी में एकादशी का व्रत करने तथा श्राद्ध कर्म करने, पिण्डोदक क्रिया करने का आदेश है?
उत्तर :- (धर्मदास जी का) नहीं है।
प्रश्न :- (परमेश्वर जी का) फिर आप जी तो उस किसान के पुत्र वाला ही कार्य कर रहे हो जो पिता की आज्ञा की अवहेलना करके मनमानी विधि से गलत बीज गलत समय पर फसल बीजकर मूर्खता का प्रमाण दे रहा है। जिसे आपने मूर्ख कहा है। क्या आप जी उस किसान के मूर्ख पुत्र से कम हैं?
धर्मदास जी बोले : हे जिन्दा! आप मुसलमान फकीर हैं। इसलिए हमारे हिन्दू धर्म की भक्ति क्रिया व मन्त्रों में दोष निकाल रहे हो।
उत्तर : (कबीर जी का जिन्दा रुप में) हे स्वामी धर्मदास जी! मैं कुछ नहीं कह रहा, आपके धर्मग्रन्थ कह रहे हैं कि आपके धर्म के धर्मगुरु आप जी को शास्त्राविधि त्यागकर मनमाना आचरण करवा रहे हैं जो आपकी गीता के अध्याय 16 श्लोक 23-24 में भी कहा
है कि हे अर्जुन! जो साधक शास्त्र विधि को त्यागकर मनमाना आचरण कर रहा है अर्थात् मनमाने मन्त्र जाप कर रहा है, मनमाने श्राद्ध कर्म व पिण्डोदक कर्म व व्रत आदि कर रहा
है, उसको न तो कोई सिद्धि प्राप्त हो सकती, न सुख ही प्राप्त होगा और न गति अर्थात् मुक्ति मिलेगी, इसलिए व्यर्थ है। गीता अध्याय 16 श्लोक 24 में कहा है कि इससे तेरे लिए कर्त्तव्य अर्थात् जो भक्ति कर्म करने चाहिए तथा अकर्त्तव्य (जो भक्ति कर्म न करने चाहिए) की व्यवस्था में शास्त्र ही प्रमाण हैं। उन शास्त्रों में बताए भक्ति कर्म को करने से ही लाभ होगा।
धर्मदास जी : हे जिन्दा! तू अपनी जुबान बन्द कर ले, मुझसे और नहीं सुना जाता। जिन्दा रुप में प्रकट परमेश्वर ने कहा, हे वैष्णव महात्मा धर्मदास जी! सत्य इतनी कड़वी
होती है जितना नीम, परन्तु रोगी को कड़वी औषधि न चाहते हुए भी सेवन करनी चाहिए। उसी में उसका हित है। यदि आप नाराज होते हो तो मैं चला। इतना कहकर परमात्मा (जिन्दा रुप धारी) अन्तर्ध्यान हो गए। धर्मदास को बहुत आश्चर्य हुआ तथा सोचने लगा कि यह कोई सामान्य सन्त नहीं था। यह पूर्ण विद्वान लगता है। मुसलमान होकर हिन्दू शास्त्रों का पूर्ण ज्ञान है। यह कोई देव हो सकता है। धर्मदास जी अन्दर से मान रहे थे कि मैं गीता
शास्त्र के विरुद्ध साधना कर रहा हूँ। परन्तु अभिमानवश स्वीकार नहीं कर रहे थे। जब परमात्मा अन्तर्ध्यान हो गए तो पूर्ण रुप से टूट गए कि मेरी भक्ति गीता के विरुद्ध है। मैं भगवान की आज्ञा की अवहेलना कर रहा हूँ। मेरे गुरु श्री रुपदास जी को भी वास्तविक
भक्ति विधि का ज्ञान नहीं है। अब तो इस भक्ति को करना, न करना बराबर है, व्यर्थ है। बहुत दुखी मन से इधर-उधर देखने लगा तथा अन्दर से हृदय से पुकार करने लगा कि मैं
कैसा नासमझ हूँ। सर्व सत्य देखकर भी एक परमात्मा तुल्य महात्मा को अपनी नासमझी तथा हठ के कारण खो दिया। हे परमात्मा! एक बार वही सन्त फिर से मिले तो मैं अपना
हठ छोड़कर नम्र भाव से सर्वज्ञान समझूंगा। दिन में कई बार हृदय से पुकार करके रात्रि में सो गया। सारी रात्रि करवट लेता रहा। सोचता रहा हे परमात्मा! यह क्या हुआ। सर्व साधना शास्त्र विरुद्ध कर रहा हूँ। मेरी आँखें खोल दी उस फरिस्ते ने। मेरी आयु 60 वर्ष हो चुकी है। अब पता नहीं वह देव (जिन्दा रुपी) पुनः मिलेगा कि नहीं।
प्रातः काल वक्त से उठा। पहले खाना बनाने लगा। उस दिन भक्ति की कोई क्रिया नहीं की। पहले दिन जंगल से कुछ लकडि़याँ तोड़कर रखी थी। उनको चूल्हे में जलाकर भोजन बनाने लगा। एक लकड़ी मोटी थी। वह बीचो-बीच थोथी थी। उसमें अनेकां चीटियाँ थीं। जब वह लकड़ी जलते-जलते छोटी रह गई तब उसका पिछला हिस्सा धर्मदास जी को
दिखाई दिया तो देखा उस लकड़ी के अन्तिम भाग में कुछ तरल पानी-सा जल रहा है। चीटियाँ निकलने की कोशिश कर रही थी, वे उस तरल पदार्थ में गिरकर जलकर मर रही
थी। कुछ अगले हिस्से में अग्नि से जलकर मर रही थी। धर्मदास जी ने विचार किया। यह लकड़ी बहुत जल चुकी है, इसमें अनेकों चीटियाँ जलकर भस्म हो गई है। उसी समय अग्नि
बुझा दी। विचार करने लगा कि इस पापयुक्त भोजन को मैं नहीं खाऊँगा। किसी साधु सन्त को खिलाकर मैं उपवास रखूँगा। इससे मेरे पाप कम हो जाएंगे। यह विचार करके सर्व भोजन एक थाल में रखकर साधु की खोज में चल पड़ा। परमेश्वर कबीर जी ने अन्य वेशभूषा बनाई जो हिन्दू सन्त की होती है। एक वृक्ष के नीचे बैठ गए। धर्मदास जी ने साधु को देखा। उनके सामने भोजन का थाल रखकर कहा कि हे महात्मा जी! भोजन खाओ। साधु रुप में परमात्मा ने कहा कि लाओ धर्मदास! भूख लगी है। अपने नाम से सम्बोधन सुनकर धर्मदास को आश्चर्य तो हुआ परंतु अधिक ध्यान नहीं दिया। साधु रुप में विराजमान परमात्मा ने
अपने लोटे से कुछ जल हाथ में लिया तथा कुछ वाणी अपने मुख से उच्चारण करके भोजन पर जल छिड़क दिया। सर्वभोजन की चींटियाँ बन गई। चींटियों से थाली काली हो गई। चींटियाँ अपने अण्डों को मुख में लेकर थाली से बाहर निकलने की कोशिश करने लगी।
परमात्मा भी उसी जिन्दा महात्मा के रुप में हो गए। तब कहा कि हे धर्मदास वैष्णव संत! आप बता रहे थे कि हम कोई जीव हिंसा नहीं करते, आपसे तो कसाई भी कम हिंसक है। आपने तो करोड़ों जीवों की हिंसा कर दी। धर्मदास जी उसी समय साधु के चरणों में गिर गया तथा पूर्व दिन हुई गलती की क्षमा माँगी तथा प्रार्थना की कि हे प्रभु! मुझ अज्ञानी को क्षमा करो। मैं कहीं का नहीं रहा क्योंकि पहले वाली साधना पूर्ण रुप से शास्त्र विरुद्ध है।
उसे करने का कोई लाभ नहीं, यह आप जी ने गीता से ही प्रमाणित कर दिया। शास्त्र अनुकूल साधना किस से मिले, यह आप ही बता सकते हैं। मैं आपसे पूर्ण आध्यात्मिक ज्ञान सुनने का इच्छुक हूँ। कृपया मुझ किंकर पर दया करके मुझे वह ज्ञान सुनाऐ जिससे मेरा मोक्ष हो सके।
क्रमशः__________)
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