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#किस_किस_को_मिले_भगवान
कबीर परमात्मा के दर्शन गरुड़ जी को हुए थे, कबीर सागर में 11वां अध्याय ‘‘गरूड़ बोध‘‘ पृष्ठ 65 (625) पर प्रमाण है कि परमेश्वर कबीर जी ने धर्मदास जी को बताया कि मैंने विष्णु जी के वाहन पक्षीराज गरूड़ जी को उपदेश दिया, उनको सृष्टि रचना सुनाई।
परमेश्वर कबीर जी ने गरुड़ जी को भी सत्य ज्ञान का उपदेश देकर शरण में लिया था।
22 June God Kabir Prakat Diwas
🫴🏻 अब संत रामपाल जी महाराज जी के मंगल प्रवचन प्रतिदिन सुनिए...
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🏵️ श्रद्धा MH ONE टी. वी. पर दोपहर 2:00 से 3:00 तक
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#sant rampal ji maharaj#saintrampalji#kabir is god#godkabir#chennai#delhi#bengaluru#my post#किन किन को मिले भगवान
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#sant rampal ji maharaj#kabir is real god#कलयुग में किन-किन को मिले परमात्मा ?देखिए हमारे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर शाम 7:30 बजे...SaintRampalJi youtubechanne
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बदलते मौसम में सर्दी और जुकाम के बढ़ते खतरे
बदलते मौसम में सर्दी और जुकाम के बढ़ते खतरे अनुक्रम विषय 1 प्रस्तावना 2 बदलता मौसम 3 सर्दी और जुकाम 4 सर्दी और जुकाम से बचाव के उपाय 5 स्वस्थ जीवन के लिए उपयुक्त आहार 6 प्रतिदिन व्यायाम और नियमित रूप से दिनचर्या 7 मानसिक स्वास्थ्य का महत्व 8 Conclusion 9 FAQs (Frequently Asked Questions) प्रस्तावना आजकल, मौसम के बदलाव के साथ सर्दी और जुकाम की समस्या लगातार बढ़ रही है। हम इस लेख में…
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#changing weather diseases#changing weather diseases prevantion tips#changing weather problems#changing weather side effects#Cold Cough#health#Health Tips#बदलते मौसम की समस्याएं#बदलते मौसम में किन बातों का ध्यान रखें#बदलते मौसम में कैसे रहें स्वस्थ#बदलते मौसम में बीमारियों से कैसे बचें#बदलते मौसम में सर्दी और जुकाम के बढ़ते खतरे#हेल्थ टिप्स
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चारों युगों में परमात्मा किन-किन को मिले? | Sant Rampal Ji Satsang | SAT...
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चारों युगों में परमात्मा किन-किन को मिले? | Sant Rampal Ji Satsang | SAT...
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#चारों युगों में परमात्मा किन-किन को मिले? | Sant Rampal Ji Satsang |🥀 आध्यात्मिक जानकारी के लिए𝖯𝗅𝖺𝗒𝖲𝗍𝗈𝗋𝖾 स#Youtube
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#सत भक्ति संदेश#परमात्मा सतलोक से आकर किन-किन आत्माओं को मिले जानकारी के लिए देखें आज शाम 7:30 बजे साधना चैनल पर।
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राति अचानक निद्रा खुल्ने, खलखली पसिना आउने किन हुन्छ ? के छ त समाधान ? हेर्नुस्
मुटुरोग विशेषज्ञ, मनोचिकित्सक र प्रसूति तथा स्त्रीरोग विशेषज्ञ डा. माधव विष्ट सँग गरिएको कुराकानी हो। मानिसको जीवनमा हुने दैनिक समस्याहरु कहिलेकाहीं राति अचानक निद्रा खुल्छ । खलखली पसिना आउँछ । मुटुको धड्कन बढ्छ । के कारणले होला ? कतिले भन्छन्, यो मुटुरोगको लक्षण हो । कतिले भन्छन्, मानसिक समस्याले यस्त�� हुनसक्छ । कतिले भन्छन्, महिलाहरुको महिनावारी सुकेपछि यस्तै हुन्छ । हृदयघातको संकेत पनि…
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पेंच टाइगर रिजर्व के बारे में रोचक तथ्य | Amazing Fact About Pench Tiger Reserve in Hindi
पेंच टाइगर रिजर्व के बारे में रोचक तथ्य | Amazing Fact About Pench Tiger Reserve in Hindi पेंच टाइगर रिजर्व के बारे में रोचक तथ्य, पेंच टाइगर रिजर्व कहां स्थित है, पेंच टाइगर रिजर्व के कितने बाघ है, Interesting Facts About Pench Tiger Reserve, pens tiger reserve collarwali, Collarwali Pench Tiger Reserve, Pench tiger reserve Nagpur पेंच टाइगर रिजर्व भारत के मध्य प्रदेश राज्य के छिंदवाड़ा और…
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42 वर्ष की आयु में श्री मलूक दास साहेब जी को प���र्ण परमात्मा कबीर जी मिले तथा 2 दिन तक श्री मलूक दास जी अचेत रहे, फिर निम्न वाणी उच्चारित की:-
चार दाग से सतगुरु न्यारा, अजरो अमर शरीर।
दास मलूक सलूक कहत है, खोजो खसम कबीर।।
जपो रे मन सतगुरु नाम कबीर।
जपो रे मन परमेश्वर नाम कबीर।।
#किस_किस_को_मिले_भगवान
#KabirParmatma_Prakat Diwas
#KabirPrakatDiwas #KabirisGod #kabir #god #incarnation
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विदेश यात्रा के समय किन नियमो का ध्यान रखना चाहिए
विदेश यात्रा के समय किन नियमो का ध्यान रखना चाहिए जैसा कि हम जानते है विदेश में घूमना कितना अच्छा लगता है सभी को और यदि यह आपकी पहली अंतरराष्ट्रीय ट्रिप है तो आपकी उत्सुकता और भी ज्यादा होती है ,पर उससे भी ज्यादा टेंशन हो जाती है इसलिए हमे बहुत सी बातों का ध्यान रखना चाहिए ताकि हमारी यात्रा सफल रहे ।हमारा उत्साह बरकरार रहे और हमारी यात्रा अच्छी रहेगी । हमे बहुत सी बातों का ध्यान रखना पड़ता है…
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#international travel#mku nerws#top news#videsh me ghumte samay kin bati ka dhyan rakhna chahiye#विदेश यात्रा के समय किन नियमो का ध्यान रखना चाहिए
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फीफा वर्ल्ड कप कतर 2022 शेड्यूल: कब है क्रोएशिया बनाम मोरक्को, कहां देखें तीसरे स्थान का मैच? समय, दिनांक, लाइव स्ट्रीमिंग विवरण
फीफा वर्ल्ड कप कतर 2022 शेड्यूल: कब है क्रोएशिया बनाम मोरक्को, कहां देखें तीसरे स्थान का मैच? समय, दिनांक, लाइव स्ट्रीमि��ग विवरण
क्रोएशिया शनिवार को चल रहे फीफा विश्व कप के तीसरे स्थान के प्लेऑफ में खलीफा इंटरनेशनल स्टेडियम में मोरक्को से भिड़ेगा। लियोनेल मेस्सी के स्ट्राइक और जूलियन अल्वारेज़ ब्रेस के रूप में क्रोएट्स पहले सेमीफ़ाइनल में अर्जेंटीना से हार गए और 3-0 का स्कोर सुनिश्चित किया ला एल्बिसेलेस्टे. इस बीच, फ्रांस के खिलाफ दूसरे सेमीफाइनल में मोरक्को नेट के पीछे खोजने में विफल रहा। दिनांक फिक्स्चर समय…
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#कतर 2022 अद्यतन#कतर 2022 खबर#कतर विश्व कप तीसरे स्थान का मैच#किन टीमों ने तीसरे स्थान के मैच के लिए क्वालीफाई किया है#क्रोएशिया बनाम मोरक्को का समय#क्रोएशिया बनाम मोरक्को लाइव स्ट्रीमिंग#फीफा वर्ल्ड कप कब और कहां देखना है#फीफा विश्व कप अद्यतन#फीफा विश्व कप कार्यक्रम#फीफा विश्व कप खबर#फीफा विश्व कप तीसरे स्थान का मैच#फीफा विश्व कप फाइनल शेड्यूल#बांग्लादेश में विश्व कप के तीसरे स्थान का मैच कहाँ देखना है#ब्रिटेन में विश्व कप के तीसरे स्थान का मैच कहाँ देखें#भारत में तीसरे स्थान का मैच कहां देखें#यूएसए में विश्व कप ��ीसरे स्थान का मैच कहां देखें#विश्व कप तीसरे स्थान का मैच कहां देखें#विश्व कप तीसरे स्थान के मैच लाइव स्ट्रीमिंग की जानकारी
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ll श्रीराम चालीसा ll
श्री रघुबीर भक्त हितकारी।
सुन लीजै प्रभु अरज हमारी॥
निशिदिन ध्यान धरै जो कोई।
ता सम भक्त और नहीं होई॥
ध्यान धरे शिवजी मन मांही।
ब्रह्मा, इन्द्र पार नहीं पाहीं॥
दूत तुम्हार वीर हनुमाना।
जासु प्रभाव तिहुं पुर जाना॥
जय, जय, जय रघुनाथ कृपाला।
सदा करो संतन प्रतिपाला॥
तव भुजदण्ड प्रचण्ड कृपाला।
रावण मारि सुरन प्रतिपाला॥
तुम अनाथ के नाथ गोसाईं।
दीनन के हो सदा सहाई॥
ब्रह्मादिक तव पार न पावैं।
सदा ईश तुम्हरो यश गावैं॥
चारिउ भेद भरत हैं साखी।
तुम भक्तन की लज्जा राखी॥
गुण गावत शारद मन माहीं।
सुरपति ताको पार न पाहिं॥
नाम तुम्हार लेत जो कोई।
ता सम धन्य और नहीं होई॥
राम नाम है अपरम्पारा।
चारिहु वेदन जाहि पुकारा॥
गणपति नाम तुम्हारो लीन्ह���।
तिनको प्रथम पूज्य तुम कीन्हो॥
शेष रटत नित नाम तुम्हारा।
महि को भार शीश पर धारा॥
फूल समान रहत सो भारा।
पावत कोऊ न तुम्हरो पारा॥
भरत नाम तुम्हरो उर धारो।
तासों कबहूं न रण में हारो॥
नाम शत्रुहन हृदय प्रकाशा।
सुमिरत होत शत्रु कर नाशा॥
लखन तुम्हारे आज्ञाकारी।
सदा करत सन्तन रखवारी॥
ताते रण जीते नहिं कोई।
युद्ध जुरे यमहूं किन होई॥
महालक्ष्मी धर अवतारा।
सब विधि करत पाप को छारा॥
सीता राम पुनीता गायो।
भुवनेश्वरी प्रभाव दिखायो॥
घट सों प्रकट भई सो आई।
जाको देखत चन्द्र लजाई॥
जो तुम्हरे नित पांव पलोटत।
नवो निद्धि चरणन में लोटत॥
सिद्धि अठारह मंगलकारी।
सो तुम पर जावै बलिहारी॥
औरहु जो अनेक प्रभुताई।
सो सीतापति तुमहिं बनाई॥
इच्छा ते कोटिन संसारा।
रचत न लागत पल की बारा॥
जो तुम्हरे चरणन चित लावै।
ताकी मुक्ति अवसि हो जावै॥
सुनहु राम तुम तात हमारे।
तुमहिं भरत कुल पूज्य प्रचारे॥
तुमहिं देव कुल देव हमारे।
तुम गुरु देव प्राण के प्यारे॥
जो कुछ हो सो तुमहिं राजा।
जय जय जय प्रभु राखो लाजा॥
राम आत्मा पोषण हारे।
जय जय जय दशरथ के प्यारे॥
जय जय जय प्रभु ज्योति स्वरुपा।
नर्गुण ब्रहृ अखण्ड अनूपा॥
सत्य सत्य जय सत्यव्रत स्वामी।
सत्य सनातन अन्तर्यामी॥
सत्य भजन तुम्हरो जो गावै।
सो निश्चय चारों फल पावै॥
सत्य शपथ गौरीपति कीन्हीं।
तुमने भक्तिहिं सब सिधि दीन्हीं॥
ज्ञान हृदय दो ज्ञान स्वरुपा।
नमो नमो जय जगपति भूपा॥
धन्य धन्य तुम धन्य प्रतापा।
नाम तुम्हार हरत संतापा॥
सत्य शुद्ध देवन मुख गाया।
बजी दुन्दुभी शंख बजाया॥
सत्य सत्य तुम सत्य सनातन।
तुम ही हो हमरे तन-मन धन॥
याको पाठ करे जो कोई।
ज्ञान प्रकट ताके उर होई॥
आवागमन मिटै तिहि केरा।
सत्य वचन माने शिव मेरा॥
और आस मन में जो होई।
मनवांछित फल पावे सोई॥
तीनहुं काल ध्यान जो ल्यावै।
तुलसी दल अरु फूल चढ़ावै॥
साग पत्र सो भोग लगावै।
सो नर सकल सिद्धता पावै॥
अन्त समय रघुबर पुर जाई।
जहां जन्म हरि भक्त कहाई॥
श्री हरिदास कहै अरु गावै।
सो बैकुण्ठ धाम को पावै॥
॥ दोहा ॥
सात दिवस जो नेम कर,
पाठ करे चित लाय।
हरिदास हरि कृपा से,
अवसि भक्ति को पाय॥
राम चालीसा जो पढ़े,
राम चरण चित लाय।
जो इच्छा मन में करै,
सकल सिद्ध हो जाय॥
🙏जय श्री राम🙏
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यह ज्ञान अजीब सुनायो। तुम को यह किन कहाँ से बोलत हो ऐसी बाता। जानो तुम आप बतायो ।। विधाता ।। विधाता तो निराकार बताया। तुम को कैसे मानु राया ।। तुम जो लोक मोहे बतायो। संष्टि की रचना सुनायो ।। आँखों देखूं मन धरै धीरा। देखूं कहा रहत प्रभु अमर शरीरा ।। (तब हम गु��्त पुनै छिपाई। धर्मदास को मूर्छा आई ।।)
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पहिचान के हो ? म महिला हुँ, मेरो शरीर जे छ, सोही स्वरुप हुँ वा म चेतना हुँ ? के पहिचान स्थिर, अव्ययकारी छ या यो परिवर्तनशील छ ? अमेरिकामा समकालिन विश्व साहित्य पढिराख्दा पहिचानका अनेक आयामका पहलुहरु पढ्न पाएँ । तर यो विस्तीर्ण दार्शनिक परिधि छिचोल्दा पनि मलाई उपनिषदहरुमा व्यक्त गरिएको स्वको कल्पना ज्यादै रोमञ्चक लाग्यो । गणितमा गोडेलको असम्पूर्णताको प्रमेय वा सिद्धान्त छ, जसले भन्छ, हामीसँग भएका साधनले सत्यलाई ��िद्ध गर्न सक्तैन । सत्य कहिलेकहीँ असाध्य हुन्छ । यिनै परिधिमा रहेर कान्तिपुर दैनिकका लागि मैले एउटा कथा लेखेकी छुँ । यो धारमा मीमांसा गर्न इच्छुक पाठकहरुले तल कथा पढ्न सक्नुहुनेछ ।
आठ बजेको बुलेटिन
उद्यान प्रकरण
गर्मी उखपात थियो । अलकत्रा पग्लिएर घाममा टट्टाएका अजिंगरजस्ता भएका थिए सडक । संग्रहालयको भित्री प्रकोष्ठ शीतलै थियो । तर, मलाई फर्किएर जाने आँट आएन । मैले त्यो किताब किन चोरें, मलाई पनि थाहा छैन ।
तर, त्यत्रो सुरक्षाको यत्न गरिएको प्रदर्शनीबाट दिनदहाडै त्यस्तो पुरातात्त्विक महत्त्वको भनिएको किताब हातैमा लिएर हिँड्दा पनि कसैले नरोकेकाले म निर्विचार उत्तेजनाको दशामा बाहिर निस्किएँ ।
घाम आँखै खाने थियो, काँच र टिन टल्किएर घरहरू हेरिनसक्नुभएका थिए । अलि पर, बूढो तमालको रुख चामरझैं सहरलाई हम्किरहेको देखिन्थ्यो । म हतार–हतार त्यो रुखतिर लागें । तर, नजिक पुगेपछि थाहा भयो, त्यहाँ त ठूलो उद्यानै रहेछ । अचम्म ! कैयन् पटक म यो संग्रहालयको बाटो भएर हिँडेकी थिएँ, तर त्यो उद्यान कहिल्यै देखेकी थिइनँ । ठूला–ठूला तमाल, कदम्ब, साल इत्यादिका बोटले घेरिएको त्यो बाटिकामा न कुनै पर्खाल थियो, न त प्रवेशद्वार नै । गर्मी खपिनसक्नु थियो, गुजुमुज्ज गुजुल्टिएको अपराजिताको बेलीलाई दुई हातले लुछेर छिर्न मिल्ने प्वाल बनाएँ । लुछ्दा लुछ्दै किताबको जिल्द च्यातियो, टिप्न खोज्दा हावा आएर उडाएर लग्यो । शरदकाल थियो । आकाश नीर पोखेझैं निख्खर थियो । जिल्द उड्दा उड्दै संग्रहालयको धुरीमा पुग्यो । एकैछिनमा, एक थान चंगा आएर आकाश गिजोले । मेरो गाता बिलायो ।
‘के किताब थियो ?,’ म झसंग भएँ । उसले सरक्क मेरो हातबाट किताब लियो र तास फिटेझैं पाना पल्टायो ।
निर्जन कुञ्जमा अपरिचित लोग्नेमान्छेसँग डर लाग्नुपर्ने हो, तर मलाई लागेन । बरु, किनकिन टीठ लागेर आयो । जिङरिङ्ग कपाल, कुपोषित कृश काया, वर्षौंको अनिँदोजस्ता देखिने आँखा ।
‘आरुणीको आत्मकथा रहेछ ।’
‘को आरुणी ?,’ त्यसरी पाना फिटेर, एक आखर नपढी, किताबबारे ठोकुवा गरेकाले मलाई त्यो मान्छेको कुराको भर त थिएन, तर बेवास्ता कसरी गर्ने ?
‘धेरै पुरानो पो पुस्तक रहेछ । आरुणीको आत्मकथा छ भनेर त मलाई थाहा पनि थिएन,’ उसले फेरि पाना फिट्यो, ‘पढ्न मन थियो, तर आजै मेरो कुकुर हराएको छ । ल त, म खोज्न गएँ ।’
ऊ गएपछि, एउटा बडेमानको वटवृक्षमुनि पल्टिएर किताब पढ्न सुरु गरेँ :
कथा त्यति पुरानो पनि होइन । सृष्टिको सन्ध्याकालमा धरा र आकाशबीचको अदृश्य तुल अझै टाँगिएको थिएन । साँझपख, नभमा मसिना जुहीका मुनाजस्ता तारा उदाउँदा, तिनका कलरवले पृथ्वी पनि अनुगुञ्जित हुन्थ्यो । दिउँसो घाम रापिएर उत्तप्त हुँदा, आकाशै केवरा र बेलीका मत्मत्याउने सुवासले रंगमंगाउँथ्यो । त्यहीबेला, एक रात जून पहेंलिएर पाकेकी बेला, उनको शरीरबाट केशर समान दूध पोखिएर पृथ्वीमा खस्यो । भन्नेहरूले त्यो दूधबाट निस्किएको मसिना, सेता फूलका हारमा बेरिएको वनस्पतिलाई सोम भने । त्यसैको दुधिलो चोप पिएर मान्छेले पहिलोपल्ट हजार भुजा भएकी देवीको दर्शन गर्यो, अप्रतिम आनन्दको वर्षामा रुझ्यो । त्यो बेला देउताहरू प्नि यो सहरमा फूल चोर्न आउँथे । तर, हिजोआज यो सहरमा उद्यान छैनन् । छ त, चौपट्टै पुरानो तुवाँलो, जो सालैपिच्छे मैलिँदै गएको छ ।
तमालका झ्याम्म परेका बुटानबाट घामका किरण पोखिएर रुखको छाया मेरो शरीरमा पातलो जालिदार ओढ्नेजस्तै लपक्क टाँसिएको थियो । वटपत्रको त्यो शीतल शय्यामा म पल्टिएर किताब पढ्दै थिएँ । कथा आरुणीकै रहेछ । सुरुमा आरुणी स्वास्नीमान्छेजस्तो लागेको थियो । जसै मेरो मनमा सो विचार आयो, पढ्दा पढ्दैको अनुच्छेद सर्लक्कै फेरियो ।
‘एक रातको कुरो हो । सपनामा म बूढो रुख भएको रहेछु । मेरो शरीर शुष्क र जर्जर भएको थियो, यद्यपि आँतमा कामनाको अग्नि दन्किएकै थियो । एक साँझ वनमा एक्लै विचरण गरिरहेकी युवती देखेर मेरो मनमा कुपित विचार उत्पन्न भयो । त्यो बेला वात्सायन ऋषि मेरै रुखको टोड्कामा साधनारत थिए । मेरो दशा देखेर उनको मनमा करुणा जागेछ । उनले बिस्तारै मलाई सुम्सुम्याउँदै भने, ‘आरुणी, उठ ।’
म निद्राबाट तत्काल ब्युँझिएँ । उठेर आफैंलाई छामें । म रुख थिइनँ, म आरुणी थिएँ । ऋषि धौम्यका शिष्य, श्वेतकेतुका पिता । बिहान हुनै लागेको थियो, मैले सन्ध्याका लागि अम्खोरा तयार पारें र अस्ताउँदो इन्दुको प्रकाशमा नदीतर्फ लागें । आफ्नो कुल, आफ्नो गोत्र, आफू हुर्किएको ज्ञानको परम्परा सम्झिएर बडो गौरवबोध भयो । रुख नभई मनुष्य हुनु, मनुष्यमा पनि उच्च कुलीन ब्राह्मण हुनु, अहो म कति शौभाग्यशाली थिएँ । त्यत्तिकैमा कतैबाट फेरि आवाज आयो, ‘आरुणी, उठ ।’
म ब्युँझिएँ । यो पनि सपनै रहेछ । हरेक पटक ब्युँझदा, म बेग्लाबेग्लै जन्तु हुँदै गएँ । कहिले म ब्राह्मण भएको सपना देख्दै गरेको शुद्र थिएँ, कहिले ऋषिका बनेको सपना देख्ने कुकुर थिएँ, कहिले कुकुर भएको सपना देख्ने ऋषिका । म को हुँ, म तिमीलाई के भनौं ! मेरो सपनाको जुन सोपानमा तिमीले मलाई भेट्छ्यौ, म त्यही हुँ ।’
कसैको छाया खसेर मेरो पिठ्युँको घाम खोसिदिन्छ । म किताब बन्द गरेर छायातिर फर्किन्छु ।
‘भेटिएन,’ ऊ मलिन छ । खासमा भन्ने हो भने मलाई पहिल्यै शंका लागेको थियो, त्यो उद्यानमा कुनै कुकुर छँदै थिएन । तर, जसै बातचितको इन्द्रजाल तुनिँदै गयो मेरो शंका अझ सुदृढ हुँदै गयो ।
‘कुकुरको नाम के हो ?,’ म सोध्छु ।
‘यो उद्यानमा ऊ एक्लो कुकुर हो, दुइटा भए पो नाम राख्नु ! उसको नामै कुकुर हो,’ ऊ भन्छ ।
मलाई उदेक लाग्छ, उसको आत्मीय भंगीमा देखेर । उसले मेरो नाम सोध्नुपर्ने होइन ? कसरी एक अपरिचितासँग त्यति विवश हुन सकेको !
‘मेरो नाम श्वेतभानु हो,’ म भन्छु ।
‘अहो, श्वेतकेतुझैं,’ ऊ पुलकित हुन्छ ।
‘को श्वेतकेतु ?’
‘आरुणीका छोरा ।’
‘कुकुर कस्तो ��ंगको थियो ?,’ म सोध्छु ।
‘गोधूलिजस्तो, गेरुवा रातो ।’
हामीहरू सँगै कुकुर खोज्न निस्किन्छौं ।
उद्यान नपत्याउने किसिमले ठूलो थियो । कतै घना मसला र दालचिनीका पोथ्रा, कतै सिमाली र मालतीका ओडार, कतै चुवाका लहर, कतै टाँकीका बुटा । यत्रो वनमा त्यो नामै नभएको कुकुर कहाँ भेट्ने ?
‘पहिले पनि हराउँथ्यो ?,’ म सोध्छु ।
‘ऊ अचानक एक दिन भेटिएको थियो, तिमीजस्तै ?,’ ऊ भन्छ, ‘भेटिनुभन्दा अघि त हराएकै थियो, कमसेकम मेरा लागि ।’
‘तर, म त हराएकी थिइनँ’, मैले प्रतिवाद गरें ।
‘आफू हराएको कहाँ थाहा पाइन्छ र ? हुन सक्छ, अहिले तिमी तिम्रा परिवारका लागि हराएकी होलिऊ, मेरा लागि भेट्टिएकी होलिऊ, तर आफूबाट तिमी न हिजो हराएकी थियौ न आज ! भेटिनु, छुट्टिनु त सब अरूका लागि हो । आफू हराएको आफूलाई कहाँ थाहा हुन्छ र ?’
म अलि चिसिन्छु, ‘कतै म हराएकी त छैन ?’
‘कतै हराएरै यता भेटिएकी हौ । तिमीलाई पनि तिम्रा अभिजन खोज्दै होलान् ।’
म झसंग हुन्छु । मलाई अभिजनको याद आउँछ । घर, खेत, चौतारा, नाला, सखीसंगिनी, आमा, बुबा, सबै–सबैको याद आउँछ । तर, कति अनन्य हुँदा पनि ती सबै अन्य नै रहेछन् । आफ्ना सबैभन्दा नजिकका पनि आफू रहेनछन् । सबैलाई गुमाउनुको पीडाले म एकछिन मलिन हुन्छु र फेरि सर्वस्व हराउँदा पनि आफू आफैंसँग रहेको सम्झेर आनन्दित हुन्छु । हराएका सबै–सबैलाई सम्झिँदा मेरो हृदय द्रवित भएर आउँछ । अब हराएका मान्छेहरू मेरा स्मृतिमा मात्रै बाँकी छन् । यो स्मृति म कसरी सम्हालौं ?
‘के यो सपना हुन सक्छ ?,’ म सोध्छु ।
‘हुन सक्छ’, ऊ भन्छ ।
‘मलाई छोएर हेर त !,’ म उसको नजिक सर्छु । ऊ मेरो हात समाउँछ । उसको हात न्यानो छ । म उसको अँगालोमा लुटपुटिन्छु । उसको छातीको आयतन मलाई नौलो लाग्दैन । यस्तो लाग्छ, मानौं यो आयतन नै सधैं मेरो आश्रय थियो । यो सपनै होला, तर किनकिन मलाई ब्युँझिन मन लाग्दैन ।
‘कुनै कथा भन न !,’ म उसको छातीमा घुसि्रँदै भन्छु । ऊ मेरो कपाल सुम्सुम्याउँदै सोध्छ, ‘तिमीले श्वेतकेतुको कथा सुनेकी छ्यौ ?’
श्वेतकेतु प्रकरण
धौम्य ऋषिका शिष्य आरुणी उद्दालकका पुत्र श्वेतकेतु गुरुकुलबाट शिक्षा लिएर घर फर्किएका थिए । पिता आरुणी उद्दालकले श्वेतकेतुलाई सोधे, ‘श्वेतकेतु, अरू वेदाभ्यास गर्ने इच्छा छ या विवाह गर्ने ?’
पिताको कुरा सुनेर श्वेतकेतुले भने, ‘एक पटक राजा जनकको सभा जित्न दिनुहोस्, त्यसपछि जस्तो तपाईं उचित सम्झनुहुन्छ ।’
आफ्ना पुत्रका मुखबाट यस्तो अहंकारयुक्त वचन सुनेर ऋषि उद्दालक चिन्तित भए । उनले आफ्नी पत्नीलाई भने, ‘श्वेतकेतुको राजा जनकको सभा जित्न चाह���े इच्छाले बताउँछ कि उसले वेदहरूको मर्म बुझ्न सकेको छैन । सारा शास्त्र पढेर पनि उसमा तत्त्वबोध छैन ।’
त्यस साँझ विशारद् बनेर घर फर्किएका श्वेतकेतुलाई पिता आरुणी प्रश्न गर्छन्, ‘के तिमीले त्यो तत्त्वलाई जान्यौ, जसलाई जान्नाले सुन्न नसकिने विषय सुनिन थाल्छ, जो चिन्तनभन्दा पर छ, त्यो त्यो चिन्तनीय बन्छ र जो अज्ञात छ, सो ज्ञात हुन्छ ?’
पिताको प्रश्नले श्वेतकेतु चकित हुन्छन् । उनले पढ्न बाँकी जगमा केही थिएन । यद्यपि, वेद पढ्नु र त्यसको मर्म बुझ्नु एउटै कुरो होइ�� । अक्षर भनेको लिपि मात्रै होइन, सो लिपिभित्र कहिल्यै क्षय नहुने जो सत्य छ, त्यसको नाम हो । अर्बौं अक्षर पढेर पनि जसले कूटस्थ स्वलाई बुझ्दैन, उसलाई साक्षर भन्न सकिन्छ, ज्ञानी होइन । आरुणीका कुरा सुनेर श्वेतकेतु लज्जित हुन्छन् र आफूलाई मर्मज्ञ तुल्याउन याचना गर्छन् ।
आरुणीले विविध दृष्टान्त दिएर श्वेतकेतुलाई तत्त्वज्ञानतर्फ उन्मुख गराउँछन् र अन्ततोगत्वा आँगनको वटवृक्षतर्फ इंगित गर्दै त्यसको फल लिएर आउन आज्ञा दिन्छन् । श्वेतकेतु फल लिएर आउँछन्, आचार्य आरुणीले सो फल देखाएर सोध्छन्, ‘यसमा के छ ?’
श्वेतकेतु फल फुटाएर हेर्छन् र भन्छन्, ‘यसमा अझ साना बियाँहरू छन् ।’
आरुणीले ती बियाँहरूलाई पनि फुटाउन लगाउँछन् र सोध्छन्, ‘अब के छ ?’
श्वेतकेतु नियालेर हेर्छन् र भन्छन्, ‘अब जे छ, त्यो यति सूक्ष्म छ कि जुन दृष्टिगोचर छैन ।’
आचार्य आरुणी प्रसन्न हुँदै भन्छन्, ‘यही शून्यताको गर्भबाट यो विशाल वटवृक्ष बनेको छ । यही शून्यताबाट तिमी, हामी बनेका छौं । आफूभित्रको शून्यता बुझ्नु नै सारा ब्रह्माण्डलाई बुझ्नु हो । तत् त्वं असि । साधक नै साध्य हो । उपासक नै आराध्य हो । तिमी त्यही हौ, जसको खोजीमा तिमी छौ । यही नै सारा ज्ञानको मर्म हो ।’
उपसंहार
‘तिमीलाई थाहा छ ?’, ऊ भन्छ, ‘उहिले यो सहरैभरि सोम फुल्थ्यो र त्यसको मधुपर्कले सारा माटो रसाउँथ्यो । त्यसैले हाम्रा चोक, रछ्यान, कुवा जताततैका देउता सबै मान्छेले देख्थे रे ! आमा पछिसम्म पनि देउतासँग बात मार्नुहुन्थ्यो । कहिलेकाहीँ झ्वाँकिनुहुन्थ्यो । आमालाई पहिलोपल्ट अस्पतालको शय्यामा सिक्रीले बाँधेको देख्दा, मेरो मुटु गाँठो परेको थियो । मैले पीर मानेको देखेर आमाले भन्नुभएको थियो– के भो त ? यो सहरमा देउतालाई पनि त बाँधेरै राखेका छन् नि !
ती अदृश्य साङ्लाको भारले मलाई गलाउँछ । म उसलाई अझ स्नेहले आफ्नो आलिङ्गनमा समेट्छु, ‘अनि के भयो ?’
ऊ सुस्केरा हाल्छ । म उसको उच्छवासको न्यानोले पुलकित हुन्छु ।
‘बिस्तारै यो सहरबाट उद्यान हराए, देउता फूल चोर्न आउन छाडे, सोमले सिँचेको माटो युरियाले भरियो । यो सहरमा देउतासँग बोल्नेहरू सबै–सबैलाई अस्पताल पुर्याए । आमा हुन्ज्याल मलाई देउताको नियास्रो लागेन । आमा बितेको साल, शरदकाल मलिन थियो । एक इन्दुमय रात, म अनायास ब्युँझिएँ । आकाशको मैलो च्यादर च्यात्तिएको थियो, पारिजातका धवलकुसुम आकाशका सिताराझैं झलमल्ल बलेका थिए ।
‘तँलाई थाहा छ ?,’ आमाले भन्नुभयो, ‘देउताले आँखा बनाए, अनि त्यसलाई प्रकाशित गर्न सूर्य बनाए, त्यसपछि, देउताले हृदय बनाए, अनि त्यसलाई प्रकाशित गर्न चन्द्रमा बनाए ।’ मैले नजिक बसेर आमाले मेखलाभरि पारिजात टिपेको हेरिरहें । ‘कसलाई यो फूल आमा ?,’ मैले सोधें ।
‘आफैंलाई,’ आमाले भन्नुभयो, ‘पूजा गर्नु छ ।’
सुदूर क्षितिजमा सूर्य प्रगल्भ–तापले उदीप्त भएको थियो ।
‘यौटा कुरा,’ म लाडिँदै सोध्छु, ‘आज तिमीले कसरी मलाई भेट्टायौ ? के मैले पनि तिमीलाई नै खोजिरहेकी थिएँ ? कतै शताब्दीऔंदेखि त्यो शून्यता खोजिरहेको आरुणी तिमी नै त होइनौ ?’
ऊ मुस्कुरायो ।
बिस्तारै आकाशमा चन्द्रोदय भयो । पारिजातका हाँगाका ग्रन्थिहरू खुल्दै गए र ती सितारा समान धवलकुसुमले उद्यान फेरि सुवासित हुन थाल्यो । नभमा मसिना जुहीका मुनाजस्ता तारा उदाए र तिनका कलरवले पृथ्वी फेरि अनुगुन्जित भयो । त्यही रात जून पहेँलिएर पाकेकी थिइन् । धरा र आकाशबीचको अदृश्य तुल हराएको थियो । सारा वायुमण्डल एक अलौकिक विद्युतीय ऊर्जाले तरंगित थियो । तिनै विद्युत्का तरंगमा कतै राति आठ बजेको बुलेटिनका तरंग पनि प्रवाहमान् थिए ।
कुनै अर्को लोकमा टीभीमा आठ बजेको बुलेटिनको समय भएको रहेछ । टीभीमा प्रसारण सफा छ । आठ बजेको बुलेटिन अघि नै मानिस हराएको सूचना प्रसारण हुँदै रहेछ ।
मानिस हराएको सूचना
वर्ष २१ की, गहुँगोरो वर्णकी, एक हातमा महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ बोकेर ललितपुरस्थित संग्रहालयबाट एक युवती बेपत्ता भएकी हुँदा, भेट्टाउनु हुने महानुभावले नजिकैको प्रहरी कार्यालय वा मोबाइल नम्बर ९७०७८२५४०६ मा सम्पर्क राखिदिनुहुन हार्दिक अनुरोध गर्दछौं ।
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