#कम्बल
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🔸️काशी का अद्भुत विशाल भंडारा🔸️
600 वर्ष पूर्व परमेश्वर कबीर बंदीछोड़ जी द्वारा इस लोक में ऐसे कई चमत्कार किए गए हैं जो मात्र ईश्वर द्वारा किए जा सकते हैं। किसी मायावी अथवा साधारण व्यक्ति द्वारा यह संभव नहीं हैं जैसे भैंसे से वेद मंत्र बुलवाना, सिकंदर लोदी के जलन का रोग ठीक करना, मुर्दे को जीवित करना, ��ह शक्ति मात्र ईश्वर के पास होती है तथा इसके अतिरिक्त काशी में बहुत विशाल भंडारे का आयोजन करना।
शेखतकी ने काशी के सारे हिन्दू, मुसलमान, पीर पैगम्बर, मुल्ला काजी और पंडितो को इकट्ठा करके कबीर परमेश्वर के खिलाफ षडयंत्र रचा। सोचा कबीर निर्धन व्यक्ति है। इसके नाम से पत्र भेज दो की कबीर जी काशी में बहुत बड़े सेठ हैं। वह काशी शहर में तीन दिन का धर्म भोजन-भण्डारा करेंगे। सर्व साधु संत आमंत्रित हैं। पूरे हिंदुस्तान में झूठी चिट्ठियां भेजकर खूब प्रचार करवा दिया की प्रतिदिन प्रत्येक भोजन करने वाले को एक दोहर (कीमती कम्बल) और एक सोने की मोहर दक्षिणा में देगें। एक महीने पहले ही प्रचार शुरू कर दिया और देखते ही देखते पूरे हिंदुस्तान से 18 लाख भक्त तथा संत व अन्य व्यक्ति लंगर खाने काशी में चौपड़ के बाजार में आकर इकट्ठे हो गए। जब संत रविदास जी को यह खबर लगी तो कबीर जी से पूरा हाल बयां किया। परमात्मा कबीर जी तो जानीजान थे। फिर भी अभिनय कर रहे थे। रविदास जी से कहा कि रविदास जी झोपड़ी के भीतर आ जाओ और कुंडी लगा लो हम सुबह होते ही यहां से निकल लेंगें इस बार तो हमारे ऊपर बड़ा जुल्म कर दिया है इन लोगों ने।
एक तरफ तो परमेश्वर कबीर बंदीछोड़ जी अपनी झोपड़ी में बैठे थे और दूसरी तरफ परमेश्वर कबीर जी अपनी राजधानी सतलोक में पहुँचे। वहां से केशव नाम के बंजारे का रूप धारण करके कबीर परमात्मा 9 लाख बैलों के ऊपर बोरे (थैले) रखकर उनमें पका-पकाया भोजन (खीर, पूड़ी, हलुवा, लड्डू, जलेबी, कचौरी, पकोडी, समोसे, रोटी दाल, चावल, सब्जी आदि) भरकर सतलोक से काशी नगर की ओर चल पड़े। सतलोक की हंस आत्माएं ही 9 लाख बैल बनकर आए थे। केशव रूप में कबीर परमात्मा एक तंबू में डेरा देकर बैठ गए और भंडारा शुरू हुआ। बेईमान संत तो दिन में चार-चार बार भोजन करके चारों बार दोहर तथा मोहर ले रहे थे। कुछ सूखा सीधा (चावल, खाण्ड, घी, दाल, आटा) भी ले रहे थे।
इस भंडारे की खास बात यह थी कि परमेश्वर के भोग लगे पवित्र भंडारे प्रसाद को खाने से कोटि-कोटि पापनाश हो जाते हैं जिसका प्रमाण गीता अध्याय-3 श्लोक-13 में है।
धर्म यज्ञ बहुत श्रेष्ठ होती हैं ��ोजन भंडारा करवाना धर्म यज्ञ में आता है भंडारे से वर्षा होती है वर्षा से धन-धान्य की ��पज होती है जिससे सभी जीवों का पेट भरता और पुण्य मिलता है।
ऐसे पुण्य के कार्य वर्तमान में जगतगुरु तत्वदर्शी संत रामपाल की महाराज जी द्वारा किए जा रहे हैं उनके सानिध्य में 10 जगहों पर तीन दिवसीय विशाल भंडारे का आयोजन किया जा रहा है इस भंडारे में शुद्ध देशी घी के पकवान जैसे रोटी, पूरी, सब्जी, लड्डू, जलेबी, हलवा, बूंदी आदि–आदि बनाए जाते हैं। जो पूर्ण परमेश्वर को भोग लगाने के पश्चात भंडारा करवाया जाता है। इस समागम में लाखों की संख्या में देश विदेश से आए श्रद्धालुों का तांता लगा रहा रहता है। परमेश्वर की अमर वाणी का अखंड पाठ, निःशुल्क नामदीक्षा चौबीसों घंटे चलती रहेगी। जिसमें आप सभी सादर आमंत्रित हैं।
#MiracleOfGodKabir_In_1513
#दिव्य_धर्म_यज्ञ_दिवस
26-27-28 नवंबर 2023
#SantRampalJiMaharaj
#trending
#viralpost
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संत रामपाल जी महाराज जी से निःशुल्क नाम उपदेश लेने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर जायें।
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मेरा एक घर था तुम्हारे अन्दर तुम्हारा एक घर था मेरे अन्दर
समय बीता खून-पसीने-मूत्र के बहाव में जंगज़दा ईंटों ने ढ़हना शुरू कर द��या
हम व्याकुल होकर हाथ मारते रहे मलबे में
खोजते ठौर, कुछ रातें गुजारने को
खम्भे, टिकाने को अपने शोर भरे सर और उम्मीदें
एक उल्कापिंड हमारे अस्त-व्यस्त ग्रह से टकराने वाला है कुछ दशकों में हम चाहते हैं उससे पहले मुहब्बत के आशियानों में जी भर नींद ले लें अंगड़ाई लेने में भी बर्बाद न हो समय
समय और मृत्यु अपनी पटरियों पर भड़भड़ाते हुए आ रहें हैं शायद पर उससे बहुत पहले हमारे घरों का गलना हमारे प्रेम का अपघटन भुला देगा कि था इस दलदल में कोई महल पहाड़ की कोख में एक गुफा इतिहास में कहीं इंसान
पहाड़ का मर्म भू-स्खलन के धीमे, क्रूर बहाव में बाहर आता है उल्कापिंड टकराता है ढ़लान से कई किलोमीटर तक विश्व ढक जाता है न��ी में
पुराने पहाड़ गिरेंगे नए पहाड़ उठेंगे तुम नहीं रोक सकते बहना
तुम्हारे स्पर्श से जहर फैला तुम्हारे कुरेदने से हुए नासूर विखंडन की प्रलयंकारी शक्ति का स्रोत तुम थे ढहती इमारतों की नींव से दरकती मिटटी तुम्हारी थी
चित्रगुप्त ने पूछा तुमसे तुम्हारी ग़लतियों के बारे में तुमने बवंडर की तरह सर हिलाया और कहा “नहीं, नहीं, नहीं!”
रेडक्लिफ रेख खेंच दी गयी एक बार फिर एक कलाई पर धरती की कोख से उफ़नकर लावा रेंगा सब ओर जलते माँस को देखकर हमें प्यार करने वाले भर गए घिन्न से
विभाजन गोदा प्यार के सर में हमने मिलकर थक्कों के कीचड़ से लथपथ घर-बाज़ार, माल-असबाब, ताले-चाबियाँ; जीवन के पुलिंदे मृत्यु सिर्फ़ तुम्हारे हिस्से ही क्यों आई?
स्वप्नों में गुदे फंतांसी परिदृश्य के समक्ष ये गुफाएँ, जैसे कोकेन के समक्ष ख़ुशी
स्टेलेक्टाइट के खम्भों के विन्यास को हमने समझ लिया किसी प्रासाद का खंडहर झींगुर के हाथ मलने की आवाज़ों को मान लिया रात की लटों में उमड़ता नाद आंख-नाक-कान के रस्ते आये उद्दीपनों को मनमाने तरीकों से जमा कर ढूंढ लिया अपना अपना सत्य
विचारों से प्रेम किया और बना लिए हाड़-मांस के पुतले उनके चारों ओर
यहाँ नीरव अन्धकार के कम्बल में ढके हम और कर भी क्या सकते थे बोरियत के मारे
हम जानते थे कि कोई रास्ता नहीं था तो हमने नाखूनों से हमारे पैरों तले की जमीन खुरच ली हमने खोदीं अपनी ही कब्रें ताकि कोई और न कर पाता हमें नेस्तनाबूद
या कि हम नहीं जानते थे कि क्या होता है प्रेम क्या होता है जीवित रहना मृतकों की प्रतिमाओं से भरी इस दुनिया में
क्या होता है होना
न होने के बीहड़ों में
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गुदड़ी कथरी शब्द याद आए। साथ ही पैबन्द पैबंद और रफूगिरी भी। 70 के दशक में सर्दियों में गर्म कपडों के नाम पर ऊन से बुने स्वेटर शाल आदि होते थे कम्बल खेस लोई लुईया? आदी देखे थे। पर कुछ मोटे कपड़ों की परत दार सिले हुए कोट सदरी कोटी आदि भी देखे थे। But in present times tried to search those images I found few, sharing here. Amazed surprised that many such things that were ridiculed earlier are now trending #fashion #clothing #designerwear everywhere! Few these simple #stitch are sold as #kantha #embroidery that was famous in Bengal. Earlier not many wore such cloths as not considered as upto status or respectable wears! Clubbed with देहात. Incidentally many of our traditional #craft #Arts #handicrafts were ridiculed earlier owing to influence of Westernization. अब समय चक्र फिर बदल रहा है। पहले फटे पुराने कपड़ों की परत को हाथ से सिल कर कथरी बन जाती थी, चद्दर साड़ी आदी काम में आ जाती थी now same can be termed as #Recycle #Reuse #reduce the 3Rs. But dont know sheher my son will wear it? https://www.instagram.com/p/CnrX9oNSMM8/?igshid=NGJjMDIxMWI=
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jamshedpur rural warm clothes distribution- अग्रवाल सम्मेलन ने घाटशिला के 150 ग्रामीणों के बीच बांटे गर्म कपड़े
जमशेदपुर: पूर्वी सिंहभूम जिला अग्रवाल सम्मेलन के द्वारा घाटशिला से 20 किमी दूर सुदूर गांव में जरूरतमंद 150 से अधिक ग्रामीणों के बीच गर्म कपड़े कम्बल और स्वेटर का वितरण किया गया. यह कार्यक्रम अग्रवाल सम्मेलन के जिलाध्यक्ष सुशील अग्रवाल एवं महामंत्री राजेश रिंगसिया के संयुक्त नेतृत्व में संपन्न हुआ. (नीचे भी पढ़े) इसमें गांव के मुखिया सहित कई ग्रामवासियों का पुरा सहयोग मिला. इसे सफल बनाने में आनंद…
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कभी कभी
ज़िंदगी में बस थकान होती है
दो पल की खुशियां और फिर
उनके जाने की थकान
ना उठने का मन करता है
ना कुछ करने का
आज अपना कम्बल ही सबसे प्यारा लग रहा है
कम से कम छलता नहीं है
अब जो मैं इतना थक गई हूं
मुझे बुला लोगे क्या
अब हिम्मत नहीं रही सरकार
अब बुला लो।
- दीप
#feelings#thoughts#daily diary#spilled thoughts#diary#wisdom#words#tired#tumblr diary#random thoughts
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*पुण्यार्थम ट्रस्ट हुआ उद्योग संघ की आर्ट गैलरी से रूबरू* *युवा उद्यमी पिंटू राठी ने बंटवाए कम्बल*
बीकानेर पुण्यार्थम ट्रस्ट की शिक्षिकाओं, भाग प्रभारियों व प्रभारियों की मासिक बैठक का आयोजन राजस्थान प्रभारी बृजकिशोर की अध्यक्षता में बीकानेर जिला उद्योग संघ के सभागार में हुआ । प्रभारी बृजकिशोर द्वारा शिक्षा से वंचित छात्र छात्राओं को शिक्षित बनाने तथा शिक्षित बनाकर समाज की मुख्य धारा से जोड़ने के तरीके सिखाए गए । बीकानेर जिला उद्योग संघ अध्यक्ष द्वारकाप्रसाद पचीसिया ने बताया कि पुण्यार्थम…
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माहेश्वरी समाज ने आदिवासी इलाकों में पहुंचकर गर्म कपड़ों का वितरण किया
सिवनी मालवा। माहेश्वरी समाज द्वारा आदिवासी इलाके नर्री गोटा, वर्री घोघरा, भावन्दा, डोडरामऊ, बारहशैल पहुंच कर जरूरतमंदों बच्चों बुजुर्गों को कम्बल, स्वेटर, पेन, कॉपी, बिस्किट, टॉफी, पेंसिल, रबर, साड़ी, पैंट, शर्ट, फ्रॉक का वितरण किया। बारहशैल के मोहल्ले हर्रापुरा के नागरिकों भेदा सिकदार, रामविलास कलमे, रामकिशन मुंशी ने अपनी भावना को व्यक्त करते हुए बताया कि हमारी 40 साल की उम्र में हमारे मोहल्ले…
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फील्ड विज़िट के अनुभव
सार्थक फाउंडेशन में आजकल लखनऊ में Yellow Rooms शुरू करने के लिए स्लम सर्वे चल रहे हैं। रोज़ अलग अलग टीमें लखनऊ के अलग अलग हिस्सों में ऐसे समुदायों को ढूंढने जाती हैं जहाँ के बच्चों को शिक्षा और सोशल-इमोशनल लर्निंग (SEL) से जुडी सहायता की ज़रुरत है।
आज मैं और मेरे चार सहकर्मी हमारे ऑफिस से तक़रीबन पच्चीस किलोमीटर दूर एक गाँव/बस्ती को देखने और उसका सर्वे करने गए थे। गाँव के बीच में एक छोटा तालाब है जिसमें सारे घरों का कचरा और गन्दा पानी जाता है। लेकिन दिखने में वो तालाब थोड़ा सुन्दर है। कुछ बतख के बच्चे, या शायद छोटे अकार की बतख की किसी प्रजाति की बतखें, उसमे यहाँ-वहां बेफिक्र घूम रही थीं। ठंडियाँ आ ही गयी हैं और स्कूल उन्हें जाना नहीं इसलिए वो झुण्ड बना कर पानी में आवारागर्दी का काम कर रहीं थीं। मद्धम धुप के मज़े लेतीं बतखों को देख कर मुझमें भी अंदरूनी संतुष्टि की चाह सी उठी, इसलिए वहां बैठ कर गप्पें मारतीं कुछ वृद्ध महिलाओं से मैंने पूछ लिया - "अम्मा इस तलइया में मछलियां हैं क्या?"
उस गैंग की एक अम्मा ने जवाब दिया - "अभी बस छोटी छोटी सी डाली हैं, लेकिन अभी वो बड़ी नहीं हुई हैं"।
मुझे लगा शायद इसी वजह से बतखें लम्बाई में छोटी रह गई हैं।
ख़ैर हम लोग आगे बढे। रास्ते में मिट्टी के घरों पे लदी बेलें देख कर मेरी सहकर्मी ने मुझे बताया "ये लौकी है, क्यूंकि इसके फूल सफ़ेद हैं। अगर फूल पीले होते तो ये कद्दू की बेल होती।"
आगे पीले फूल वाली बेल देख कर मैं अनायास पूछ उठा - "कद्दू?"
वो बोली - "नहीं, तोरई।"
उसने इसके आगे बताया नहीं और मैंने पूछा नहीं। कद्दू हो या तोरई, जिस गली जाना नहीं उसके रास्ते को धोने पोछने का क्या फायदा?
एक ऐतिहासिक से दिखते, घांस की कम्बल से आवृत टूटे-फूटे पुराने घर के पास से गुज़रते समय मैंने देखा की अंदर चार-पाँच पुरुष ताश खेलने में व्यस्त थे। वैसे तो हाथ में कॉपी किताब लिए, सीने पे पीली नाम-पट्टियां लगाए हम लोगों को सामने पा कर गांव का हर व्यक्ति हमें कौतुहल भरी निगाहों से देखता था, मगर मजाल है जो ताश के एक भी कसरती ने हमारी तरफ आँख उठा कर भी देखा हो। जब येलो रूम्स खुलेंगे तो बच्चों को ध्यान लगाने की शिक्षा देने इन्हे ही बुलाएंगे।
हम लोगों को लगा की आए हैं तो अपने येलो रूम्स शुरू करने के लिए किराये के ��मरे भी क्यों ना ढूंढ लिए जाएँ। पूछते पूछते एक घर मिला जो बिलकुल हमारे काम के लिए उपयुक्त था - दो कमरे थे, बाथरूम था और कोई दूसरा किराएदार भी नहीं था जिसे बच्चों की आवाज़ों से परेशानी हो। हम लोगों ने मकान मालिक को बताया की बच्चे आएँगे रोज़, थोड़ा शोरग़ुल भी होगा, और बच्चे गाँव के सभी टोलों से आएँगे। उन्हें कोई आपत्ति नहीं थी, जिसे सुन कर हम लोग खुश हुए। मकान मालिक की खुद का एक दो साल का बच्चा था जिसे “ना भूलने” की बीमारी थी। उन्होंने बताया की दो-तीन दिन पहले बताई गई बातें भी उनका बच्चा याद रखता है। उन्होंने बच्चे का नाम भी बताया पर वो हम में से किसी को अभी याद नहीं।
एक गली में एक ट्रैक्टर-नुमा गाड़ी पे एक छोटे कमरे के अकार की मशीन डुग-डुग कर रही थी। मेरी जानकर सहकर्मी ने बताया - "ये पोर्टेबल चक्की है और घर घर जा कर धान की छंटाई कर रही है।"
मुझे इस तरह से सेवाओं की होम डिलीवरी देख कर और चक्की की आवाज़ सुन कर आनंद की अनुभूति हुई।
मेरी सहकर्मी ने मुझे बताया - "इस म��ीन से धान अलग और उसकी भूसी अलग हो जाती है। बज्जर गावों में तो धान की भूसी को गद्दों में भी भर लेते हैं।"
'बज्जर' शब्द मैंने पहली बार ही सुना था। इसलिए मुझे फिर से आनंद की अनुभूति हुई।
मैंने इधर उधर देखा और अपने सहकर्मियों से कहा - "आप ने नोटिस किया, यहाँ कोई भी अपने फ़ोन पे व्यस्त नहीं है?" मेरे सहकर्मियों ने भी इधर उधर देख कर हाँ में सर हिलाया। वाकई गाँव का एक भी व्यक्ति सर झुकाये, अपनी स्क्रीन को ताकते नहीं बैठा था। सब या तो एक दूसरे से गपिया रहे थे, या कुछ काम कर रहे थे, या शुन्य में टकटकी लगाए गूढ़ चिंतन में व्यस्त थे।
मैंने कहा - "ये होते हैं संस्कार। पूरा गाँव फ़ोन के दुष्प्रभाव से बचा हुआ है। मानो सबने तय किया हो कि सोशल मीडिया और Instagram जैसी व्यर्थ चीज़ों में कोई भी समय नहीं बर्बाद करेगा, भले ही कहीं बैठ के जुआ क्यों न खेलना पड़े।"
मेरे एक युवा सहकर्मी ने कहा - "गाँव के गली टोलों की महिलाऐं भी रोज़ शाम को इकठ्ठा होती हैं।"
मैंने पूछा - "जुआ खेलने?"
वो सकपका के बोला - "अरे नहीं नहीं। बस बैठ के बातचीत करने।"
उसकी सकपकाहट से मुझे लगा कि अभी ऑफिस के युवा सहकर्मियों को gender पे थोड़ी और ट्रेनिंग की आवश्यकता है।
हम लोग सर्वे कर के वापस आ गए। अब भरे गए फॉर्म्स और इकठ्ठा किये डाटा के आधार पे ��िर्णय किया जाएगा की ये गाँव येलो रूम्स खोलने के लिए मुनासिब है या नहीं। ज़रुरत तो बड़ी है। अभिभावक चाहते भी है की उनके बच्चे पढ़ें और आगे बढ़ें। लेकिन कहीं भी येलो रूम्स खोलना तभी viable होता है जब एक निश्चित संख्या के बच्चे उस समुदाय में हों। जो शायद यहाँ नहीं हैं। हमें पता है कि हर किसी की मदद नहीं की जा सकती है, लेकिन फिर भी अच्छा तो नहीं लगेगा। किसी के रोज़ाना जीवन के कुछ पल साझा करने से एक धागा सा बंध जाता है। ये अनायास लगाव सा जो हो जाता है, शायद यही हमें मनुष्य बनाता है।
- अचिन्त्य
4-Dec-2024, Lucknow
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वीरगञ्जमा कम्बल वाले बाबालाई लिएर तनाव
वीरगंज, ४ चैत । वीरगंजमा केही दिनदेखि सबै रोगको उपचार गर्ने दाबी गर्दै आएका भारतीय काली कम्बल वाले बाबालाई लिएर तनाव उत्पन भएको छ। वीरगञ्जको चिनिमिल परिसरमा फागुन ३० गतेदेखि चैत १० गतेसम्म धार्मिक शिविर सञ्चालन गर्न आएका काली कम्बल वाले बाबा लिएर चिनिमिल क्षेत्रमा प्रहरि र सर्वसाधारण जनताबीच तनाव भएको हो। अपाहिज, लकवा, पोलियो, लुडो, लंगडोलाई निःशुल्कमा उपचार गर्दै आएका कम्बल बाबालाई पर्सा…
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आज दिनांक - 26 जनवरी 2024 का वैदिक हिन्दू पंचांग और माघ मास व्रत
दिन - शुक्रवार
विक्रम संवत् - 2080
अयन - उत्तरायण
ऋतु - शिशिर
मास - माघ
पक्ष - कृष्ण
तिथि - प्रतिपदा रात्रि 01:19 तक तत्पश्चात द्वितीया
नक्षत्र - पुष्य सुबह 10:28 तक तत्पश्चात अश्लेषा
योग - प्रीति सुबह 07:42 तक तत्पश्चात आयुष्मान्
राहु काल - सुबह 11:30 से 12:52 तक
सूर्योदय - 07:22
सूर्यास्त - 06:23
दिशा शूल - पश्चिम
ब्राह्ममुहूर्त - प्रातः 05:38 से 06:30 तक
निशिता मुहूर्त - रात्रि 12:26 से 01:18 तक
व्रत पर्व विवरण - गणतंत्र दिवस*
विशेष -प्रतिपदा को कूष्माण्ड (कुम्हड़ा, पेठा) न खाये, क्योंकि यह धन का नाश करने वाला है । (ब्रह्मवैवर्त पुराण, ब्रह्म खंडः 27.29-34)
माघ मास व्रत : 25 जनवरी से 24 फरवरी
माघ मा��� में सभी जल गंगाजल और सभी दिन पर्व के माने गये है । इस मास में सूर्योदय से पहले स्नान कर लें तो पित्त व ह्रदय संबंधी बीमारियों को विदाई मिल सकती है, आध्यात्मिक लाभ और लौकिक लाभ भी हो सकते है ।
ब्रह्मर्षि भृगुजी ने कहा है :
कृते तप: परं ज्ञानं त्रेतायां यजनं तथा ।
द्वापरे च कलौ दानं माघ: सर्वयुगेषु च ।।
‘सतयुग में तप��्या को, त्रेता में ज्ञान को, द्वापर में भगवान के पूजन को और कलियुग में दान को उत्तम माना गया है परंतु माघ का स्नान सभी युगों में श्रेष्ठ समझा गया है ।’ (पद्म पुराण, उत्तरखंड २२१.८०)
पद्म पुराण में महर्षि वसिष्ठजी ने कहा है : ‘वैशाख में जलदान, अन्नदान उत्तम है, कार्तिक मास में तपस्या, पूजा उत्तम है लेकिन माघ में जप, होम, दान, स्नान अति उत्तम हैं ।’
माघ मास के स्नान का फायदा लेना चाहिए । और हो सके तो दान आदि करें, नहीं तो उबटन लगा के प्रात:स्नान करें, तर्पण व हवन करें । भोजन में ऐसी चीजों का उपयोग करें जिनसे पुण्यलाभ हो । मांस-मदिरा अथवा लहसुन-प्याज का त्याग करें ।पृथ्वी पर (चटाई, कम्बल आदि बिछाकर) शयन करें ।
यत्नपूर्वक प्रात: (सूर्योदय से पूर्व) स्नान करने से विद्या, निर्मलता, कीर्ति, आयु, आरोग्य, पुष्टि, अक्षय धन की प्राप्ति होती है । कांति बढ़ती है । किये हुए दोषों व समस्त पापों से मुक्ति मिलती है । माघ-स्नान से नरक का डर दूर हो जाता है, दरिद्रता पास में फटक नहीं सकती है । पाप और दुर्भाग्य का सदा के लिए नाश हो जाता है और मनुष्य यशस्वी हो जाता है । जैसे उद्योगी, उपयोगी, सहयोगी व्यक्ति सबको हितकारी लगता है, ऐसे ही माघ मास सब प्रकार से हमारा हित करता है ।
माघ मास में स्नान करते समय अगर सकाम भाव से स्नान करते हो तो वह मनोकामना पूरी होगी और निष्काम भाव से, ईश्वरप्रीति के लिए स्नान करते ही...’मै कौन हूँ?’ इस जिज्ञासा से अपने-आपको जानने के लिए प्रातः स्नान करते हो तो आपको अपने दृष्टा-स्वभाव का, साक्षी-स्वभाव का, ब्रह्म-स्वभाव का प्रसाद भी मिल सकता है ।
बच्चों के लिए है बहुत जरूरी
जो बच्चे सदाचरण के मार्ग से हट गये हैं उनको भी पुचकार के, ईनाम देकर भी प्रात:स्नान कराओ तो उन्हें समझाने से मारने-पीटाने से या और कुछ करने से वे उतना नहीं सुधर सकते हैं, घर से निकाल देने से भी इतना नहीं सुधरेंगे जितना माघ मास में सुबह का स्नान करने से वे सुधरेंगे ।
पुरे माघ मास का फल
पूरा मास जल्दी स्नान कर सकें तो ठीक है, नहीं तो एक सप्ताह तो अवश्य करें । माघ मास की शुक्ल त्रयोदशी से माघी पूर्णिमा तक अंतिम ३ दिन प्रात:स्नान करने से भी महीनेभर के स्नान का प्रभाव, पुण्य प्राप्त होता है । जो वृद्ध या बीमार है, जिन्हें सर्दी-जुकाम आदि है वे सूर्यंनाड़ी अर्थात दायें नथुने से श्वास चलाकर स्नान करें तो सर्दी-जुकाम से रक्षा हो जायेगी ���
#motivational motivational jyotishwithakshayg#tumblr milestone#akshayjamdagni#mahakal#panchang#hanumanji#ram mandir
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(दिलीप चौकीकर संवाददाता आमला) *लायंस इंटरनेशनल, आमला सार्थक के अध्यक्ष लायन अनिल सोनी पटेल के नेतृत्व में आज सभी सदस्य आमला के ग्राम रोझड़ा पहुंचे, कड़कड़ाती ठंड से जहां…
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jamshedpur blanket distribution- विधायक सरयू राय के निर्देश पर कदमा और उलीडीह में किया गया कम्बल वितरण
जमशेदपुर: जमशेदपुर पश्चिमी के विधायक सरयू राय के निर्देश पर रविवार को जरूरतमंदों के बीच सैकड़ों कंबलों का वितरण किया गया. कंबल वितरण का यह आयोजन प्रतिमानगर नगरकोट (कदमा) में किया गया. इस मौके पर सुबोध श्रीवास्तव, शेषनाथ पाठक, नीरज सिंह, लक्ष्मण, उत्तम कुमार दास, निमाई कुमार अग्रवाल, धनंजय कुमार आदि मौजूद रहे.(नीचे भी पढे) उधर,उलीडीह के सिद्धु कान्हू बस्ती में भी सैकड़ों जरूरतमंद लोगों के बीच कंबल…
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#UP- अमेठी में कांग्रेस कार्यकर्ताओं ने जरूरतमंदों को वितरित किए कंबल
#INCIndia #CongressParty #Amethi #BharatJodoNyayYatra #RahulGandhi
#Election2024 #CongressParty
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माहेश्वरी भवन ट्रस्ट की ओर शांति निवास वृद्धाश्रम के वृद्धजनों के लिए कम्बल भेंट
बीकानेर, 24 दिसम्बर। माहेश्वरी भवन ट्रस्ट की ओर से सामाजिक सरोकार के तहत रविवार को माहेश्वरी भवन में व्यवस्थापक ट्रस्टी श्रीकिशन राठी, उप व्यवस्थापक राम किशन राठी ने मंगलवार को शांति निवास वृद्ध आश्रम की सिस्टर को 30 कम्बलें प्रदान की । माहेश्वरी भवन ट्रस्ट की ओर से चलाया जा रहा असहाय, जरूरतमंदों को गर्म कम्बल वितरण अभियान कुछ दिन जारी रहेगा। माहेश्वरी भवन ट्रस्ट के मंत्री कोलकाता प्रवासी बीकानेर…
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