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🔸️काशी का अद्भुत विशाल भंडारा🔸️
600 वर्ष पूर्व परमेश्वर कबीर बंदीछोड़ जी द्वारा इस लोक में ऐसे कई चमत्कार किए गए हैं जो मात्र ईश्वर द्वारा किए जा सकते हैं। किसी मायावी अथवा साधारण व्यक्ति द्वारा यह संभव नहीं हैं जैसे भैंसे से वेद मंत्र बुलवाना, सिकंदर लोदी के जलन का रोग ठीक करना, मुर्दे को जीवित करना, यह शक्ति मात्र ईश्वर के पास होती है तथा इसके अतिरिक्त काशी में बहुत विशाल भंडारे का आयोजन करना।
शेखतकी ने काशी के सारे हिन्दू, मुसलमान, पीर ��ैगम्बर, मुल्ला काजी और पंडितो को इकट्ठा करके कबीर परमेश्वर के खिलाफ षडयंत्र रचा। सोचा कबीर निर्धन व्यक्ति है। इसके नाम से पत्र भेज दो की कबीर जी काशी में बहुत बड़े सेठ हैं। वह काशी शहर में तीन दिन का धर्म भोजन-भण्डारा करेंगे। सर्व साधु संत आमंत्रित हैं। पूरे हिंदुस्तान में झूठी चिट्ठियां भेजकर खूब प्रचार करवा दिया की प्रतिदिन प्रत्येक भोजन करने वाले को एक दोहर (कीमती कम्बल) और एक सोने की मोहर दक्षिणा में देगें। एक महीने पहले ही प्रचार शुरू कर दिया और देखते ही देखते पूरे हिंदुस्तान से 18 लाख भक्त तथा संत व अन्य व्यक्ति लंगर खाने काशी में चौपड़ के बाजार में आकर इकट्ठे हो गए। जब संत रविदास जी को यह खबर लगी तो कबीर जी से पूरा हाल बयां किया। परमात्मा कबीर जी तो जानीजान थे। फिर भी अभिनय कर रहे थे। रविदास जी से कहा कि रविदास जी झोपड़ी के भीतर आ जाओ और कुंडी लगा लो हम सुबह होते ही यहां से निकल लेंगें इस बार तो हमारे ऊपर बड़ा जुल्म कर दिया है इन लोगों ने।
एक तरफ तो परमेश्वर कबीर बंदीछोड़ जी अपनी झोपड़ी में बैठे थे और दूसरी तरफ परमेश्वर कबीर जी अपनी राजधानी सतलोक में पहुँचे। वहां से केशव नाम के बंजारे का रूप धारण करके कबीर परमात्मा 9 लाख बैलों के ऊपर बोरे (थैले) रखकर उनमें पका-पकाया भोजन (खीर, पूड़ी, हलुवा, लड्डू, जलेबी, कचौरी, पकोडी, समोसे, रोटी दाल, चावल, सब्जी आदि) भरकर सतलोक से काशी नगर की ओर चल पड़े। सतलोक की हंस आत्माएं ही 9 लाख बैल बनकर आए थे। केशव रूप में कबीर परमात्मा एक तंबू में डेरा देकर बैठ गए और भंडारा शुरू हुआ। बेईमान संत तो दिन में चार-चार बार भोजन करके चारों बार दोहर तथा मोहर ले रहे थे। कुछ सूखा सीधा (चावल, खाण्ड, घी, दाल, आटा) भी ले रहे थे।
इस भंडारे की खास बात यह थी कि परमेश्वर के भोग लगे पवित्र भंडारे प्रसाद को खाने से कोटि-कोटि पापनाश हो जाते हैं जिसका प्रमाण गीता अध्याय-3 श्लोक-13 में है।
धर्म यज्ञ बहुत श्रेष्ठ होती हैं भोजन भंडारा करवाना धर्म यज्ञ में आता है भंडारे से वर्षा होती है वर्षा से धन-धान्य की उपज होती है जिससे सभी जीवों का पेट भरता और पुण्य मिलता है।
ऐसे पुण्य के कार्य वर्तमान में जगतगुरु त��्वदर्शी संत रामपाल की महाराज जी द्वारा किए जा रहे हैं उनके सानिध्य में 10 जगहों पर तीन दिवसीय विशाल भंडारे का आयोजन किया जा रहा है इस भंडारे में शुद्ध देशी घी के पकवान जैसे रोटी, पूरी, सब्जी, लड्डू, जलेबी, हलवा, बूंदी आदि–आदि बनाए जाते हैं। जो पूर्ण परमेश्वर को भोग लगाने के पश्चात भंडारा करवाया जाता है। इस समागम में लाखों की संख्या में देश विदेश से आए श्रद्धालुों का तांता लगा रहा रहता है। परमेश्वर की अमर वाणी का अखंड पाठ, निःशुल्क नामदीक्षा चौबीसों घंटे चलती रहेगी। जिसमें आप सभी सादर आमंत्रित हैं।
#MiracleOfGodKabir_In_1513
#दिव्य_धर्म_यज्ञ_दिवस
26-27-28 नवंबर 2023
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संत रामपाल जी महाराज जी से निःशुल्क नाम उपदेश लेने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर जायें।
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Moong Dal Kachori. Moong Dal: Moong dal is high in protein and fiber, which promotes satiety and supports muscle repair and growth. Fiber aids in digestion and can help maintain stable blood sugar levels. Read Full Recipe
https://foodrecipesoffical.com/wp-admin/post.php?post=4492&action=edit
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राजस्थान कला एवं संस्कृति
राजस्थान की कला एवं संस्कृति
राजस्थान अपनी समृद्ध कला, संस्कृति, परंपराओं और रंगीन लोक जीवन के लिए प्रसिद्ध है। यह राज्य वीरता, स्थापत्य कला, संगीत, नृत्य और हस्तशिल्प की अनूठी विरासत को संजोए हुए है। Let us discuss about राजस्थान कला एवं संस्कृति
1. लोक कला एवं शिल्प
राजस्थान की कला और शिल्पकला इसकी सांस्कृतिक पहचान का महत्वपूर्ण हिस्सा हैं।
(i) पेंटिंग्स (चित्रकला)
राजस्थान की पारंपरिक चित्रकला पूरे विश्व में प्रसिद्ध है।
फड़ चित्रकला: यह एक प्रकार की धार्मिक चित्रकला है, जिसमें लोक देवताओं की गाथाओं को कपड़े पर उकेरा जाता है।
फresco (भित्ति चित्रकला): महलों, हवेलियों और मंदिरों में भित्ति चित्र बनाए जाते हैं।
मीनिएचर पेंटिंग्स (लघु चित्रकला): यह मुख्य रूप से मुगल एवं राजपूत काल में विकसित हुई और विभिन्न स्कूलों में बंटी हुई है –
मेवाड़ शैली
मारवाड़ शैली
किशनगढ़ शैली (राधा-कृष्ण प्रेम चित्रों के लिए प्रसिद्ध)
बीकानेर शैली
जयपुर शैली
(ii) हस्तशिल्प और लोक कला
ब्लू पॉटरी: जयपुर की प्रसिद्ध कारीगरी जिसमें नीले रंग के बर्तन बनाए जाते हैं।
मीनाकारी और कोफ्तगिरी: सोने-चांदी पर की जाने वाली जटिल नक्काशी।
चरण पादुका: ऊंट की खाल से बनी पारंपरिक जूतियां।
हथकरघा वस्त्र: बंधेज, लहरिया और दाबू प्रिंट की साड़ियां और कपड़े।
2. संगीत एवं नृत्य
(i) लोक संगीत
राजस्थान के लोक गीत वीरता, प्रेम और भक्ति को दर्शाते हैं। कुछ प्रमुख लोक संगीत रूप इस प्रकार हैं:
मांड: राजपूताना शासकों की प्रशंसा में गाया जाने वाला गीत।
पंछीरा: शादी और मांगलिक अवसरों पर गाया जाता है।
केसरिया बालम: मारवाड़ी लोकगीत, जिसमें घर वापसी का स्वागत किया जाता है।
बीडा गीत: युद्ध गाथाओं पर आधारित गीत।
सुपणी गीत: महिलाओं द्वारा गाया जाने वाला लोकगीत।
(ii) लोक नृत्य
राजस्थान के लोक नृत्य विविधता ��र उत्साह से भरे होते हैं।
गैर नृत्य: होली पर किया जाने वाला पुरुषों का नृत्य।
घूमर नृत्य: यह मुख्य रूप से राजपूत महिलाओं द्वारा किया जाता है और विवाह व त्योहारों पर इसका आयोजन होता है।
कालबेलिया नृत्य: इसे ‘सपेरों का नृत्य’ भी कहा जाता है और यह यूनेस्को की अमूर्त सांस्कृतिक धरोहर में शामिल है।
भवाई नृत्य: महिलाएं अपने सिर पर सात-आठ मटके रखकर संतुलन बनाकर नृत्य करती हैं।
चकरी नृत्य: इस नृत्य में महिलाएं घूमते हुए सुंदर मुद्रा बनाती हैं।
तेरा ताली: इसे कमार समुदाय की महिलाएं करताल (मंज़ीरे) बांधकर प्रस्तुत करती हैं।
3. मेले एवं त्योहार
राजस्थान में कई रंगीन मेले और त्योहार मनाए जाते हैं, जो इसकी सांस्कृतिक विरासत को जीवंत बनाए रखते हैं।
पुष्कर मेला: यह ऊंट और पशुओं का विश्व प्रसिद्ध मेला है।
मरु महोत्सव (जैसलमेर): रेगिस्तान में आयोजित यह महोत्सव लोक संस्कृति का अद्भुत प्रदर्शन करता है।
तीज उत्सव: यह महिलाओं का त्योहार है, जो सावन में मनाया जाता है।
गणगौर उत्सव: देवी पार्वती को समर्पित यह त्योहार विवाहित एवं अविवाहित महिलाओं के लिए महत्वपूर्ण होता है।
मकर संक्रांति: इस दिन पतंग उत्सव का आयोजन होता है।
नागौर मेला: यह राजस्थान का दूसरा सबसे बड़ा पशु मेला है।
डेजर्ट फेस्टिवल: थार रेगिस्तान में होने वाला यह उत्सव विदेशी पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र होता है।
4. स्थापत्य कला (वास्तुकला)
राजस्थान के किले, महल, मंदिर और हवेलियाँ इसकी समृद्ध वास्तुकला के प्रमाण हैं।
(i) प्रसिद्ध किले और महल
आमेर किला (जयपुर)
चित्तौड़गढ़ किला (राजस्थान का सबसे बड़ा किला)
कुंभलगढ़ किला (चीन की महान दीवार के बाद दूसरी सबसे लंबी दीवार)
मेहरानगढ़ किला (जोधपुर)
सिटी पैलेस (जयपुर और उदयपुर)
जैसलमेर किला (सोनार किला)
रणथंभौर किला
(ii) प्रसिद्ध मंदिर
रणकपुर जैन मंदिर (श्वेत संगमरमर से निर्मित अद्भुत स्थापत्य कला)
दिलवाड़ा जैन मंदिर (माउंट आबू)
गालटा जी मंदिर (जयपुर)
करणी माता मंदिर (बीकानेर, चूहों वाला मंदिर)
5. खान-पान
राजस्थानी व्यंजन अपने अनोखे स्वाद और मसालों के लिए प्रसिद्ध हैं।
दाल-बाटी-चूरमा: राजस्थान का सबसे लोकप्रिय व्यंजन।
गट्टे की सब्जी: बेसन से बनी एक पारंपरिक डिश।
��्याज की कचौरी: खासकर जयपुर और जोधपुर में प्रसिद्ध।
मिर्ची बड़ा: तीखे खाने के शौकीनों के लिए खास।
केर-सांगरी: शुष्क क्षेत्रों में मिलने वाली सब्जी।
मोहनथाल: एक पारंपरिक मिठाई।
घेवर: सावन और तीज के अवसर पर बनाई जाने वाली मिठाई।
निष्कर्ष
राजस्थान अपनी समृद्ध सांस्कृतिक विरासत, लोककला, स्थापत्य, संगीत, नृत्य और पारंपरिक त्योहारों के कारण भारत के सबसे रंगीन और सांस्कृतिक रूप से समृद्ध राज्यों में से एक है। यहां की अनूठी परंपराएं इसे भारत के अन्य हिस्सों से अलग बनाती हैं।
You can also watch पुरुषो के वस्त्र video in our channel
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Matar Kachori Recipe | क्रिस्पी मटर कचौरी | Perfect Breakfast Snack for ...
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Kachori Chaat || कचौरी चाट || Neelam Ki Cooking Diary #shorts #kachorich...
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इंदौरी कचौरी सेंटर में गंदगी, दुकान सील, गगन-मगन में थी मिठाई में मरी मक्खी
– एसडीएम के नेतृत्व में खानपान होटलों, रेस्टोरेंट में दिनभर चली जांच की कार्रवाई – कई जगह घरेलू गैस सिलेंडर का हो रहा था उपयोग, सिलेंडर जब्त किये गये – बिना फूड लायसेंस के चल रही थी इंदौरी कचोरी सेंटर, प्रशासन ने की सील इटारसी। दीवाली के पूर्व उपभोक्ताओं को त्योहार के मद्देनजर गुणवत्ता रहित खानपान सामग्री से बचाने फूड एंड सिक्योरिटी विभाग की टीम ने आज एसडीएम के नेतृत्व में दिनभर मैराथन…
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Watch On Youtube Here:गरीब की कचौरी की दुकान Poor Man's Kachori Shop via
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इमली की चटनी (Imli ki Chutney)
इमली की चटनी क्या है?
इमली की चटनी (Imli ki Chutney) जिसे इमली चटनी के नाम से जाना जाता है, एक लोकप्रिय (Popular) भारतीय इमली की चटनी है जिस��ा उपयोग चाट की तैयारी में किया जाता है और इसे अक्सर समोसा, कचौरी, गोलगप्पा, पानी पुरी और पकोड़े जैसे स्नैक्स (Snacks) के साथ भी परोसा (Served) जाता है। यह मीठी और तीखी इमली की चटनी बेहद स्वादिष्ट (Big Tasty) और स्वादिष्ट (Tasty) होती है। अच्छी तरह से तैयार की गई इमली की चटनी चाट और स्नैक्स के स्वाद को बढ़ा देती है।
मैं दो तरह से इमली (Tamarind) की चटनी बनता हू । पहली तरह से बनाई जाने वाले इमली की चटनी झट पट वाली इमली की चटनी
इमली की चटनी बनाने के लिए सामग्री (Material) :
एक बड़ा चम्मच - इमली का गूदा (Tamarind Pulp)
तीन बड़ा चम्मच - गुड या चीनी (Jaggery or Sugar) खट्टा - मीठा अपनी स्वाद अनुसार
काला नमक (Black Salt) स्वाद अनुसार
भुना जीरा (Roasted Cumin)
थोड़ी पिसी लाल मिर्च (Some Ground Red Pepper) कलर वाली और तीखी दोनों अंदाज से।
इमली की चटनी (Imli ki Chutney) तैयार करने की विधि (Method) :
इमली के गूदे को, एक घंटा (One Hour) हल्के से गर्म पानी में भिगो लिजिये ।
फिर उसे मसलकर (Chafe) छलनी से छाकर किसी बर्तन में (लोहे या पीतल का न हो) उबलने (Boil) रख लिजिये और गुड़ कूटकर (Crushed Jaggery) या चीनी (Sugar) भी साथ ही डाल लिजिये ।
फिर मंदी आंच (Recession Flame) पर, उबलने (Boil) के लिए छोड़ दीजिए ।
गाढ़ा या पतला (Thick or Thin) जैसा चाहिए, वैसा रखने के बाद उसमें काला नमक, भुना जीरा, लाल मिर्च मिला लिजिये ।
इमली की चटनी तैयार है।
दूसरी तरह से बनाई जाने वाले इमली की चटनी (Imli ki Chutney)
थोड़ी आराम से इमली की चटनी।
इमली की चटनी (Imli ki Chutney) बनाने के लिए सामग्री (Material) :
भीगा हुआ इमली का गूदा (Soaked Tamarind Pulp) जितनी बनानी हो ।
गुड या चीनी (Jaggery or Sugar) अपने स्वाद अनुसार
काला नमक (Black Salt) स्वाद अनुसार
सफेद नमक (White Salt) स्वाद अनुसार
पिसी लाल मिर्च (Ground Red Chilli) तीखी और कलर वाली दोनों
सूखे खजूर (Dried Dates) भीगे हुए, कटे हुए ।
चिरौंजी (Chironji) अंदाज से ।
किशमिश (Raisin) अंदाज से ।
कटी अदरक (Ginger)
इमली की चटनी (Imli ki Chutney) तैयार करने की विधि (Method) :
उपरोक्त विधि (Above Method) के अनुसार ही इमली की चटनी, मसाले डालकर तैयार कर लिजिये ।
फिर उसमें अदरक और सूखे मेवे डालकर थोड़ा उबाल (Boil) लिजिये ।
इमली की चटनी खट्टी मीठी चटनी (Sweet and Sour chutney) तैयार है।
उसके बाद सर्व करें (Serve Food)
इमली की चटनी (Imli ki Chutney)
https://annapurnaeat.blogspot.com/2024/06/emli-ki-chutni.html
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एक कप सुजी और एक कच्चे आलू का नाश्ता जिसके आगे समोसा कचौरी भी भूल जायेंग...
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अनंत और राधिका के वेडिंग सेरेमनी में मेहमान को परोसे जाएंगे बनारसी चाट, कचौरी और पान
मुंबई। अनंत और राधिका की शादी मुंबई के बांद्रा कुर्ला स्थित जियो वर्ल्ड सेंटर में होगी। आयोजन स्थल को पूरी तरह से ‘भारतीय थीम’ में सजाया गया है। 12 जुलाई 2024 को होने वाली इस ग्रैंड वेडिंग सेरेमनी में देश-विदेश के मेहमानों को भारतीयता के रंग में रंगा हुआ समारोह देखने को मिलेगा। इस आयोजन में भारतीयता की झलक डेकोरेशन, मेहमानों के ड्रेस कोड, संगीत, और पकवानों में नजर आएगी। विवाह समारोह स्थल पर काशी…
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जीवन शैली को संतुलित कर हार्ट अटैक से बचें- डॉ.साकेत
न्यूजवेव @कोटा सर्दी के मौसम में तापमान में गिरावट के साथ ही युवा उम्र के लोगों में आकस्मिक हार्ट अटैक की घटनायें तेजी से बढ़ रही है। जिसमें युवा चिकित्सक एवं नियमित व्यायाम करने वालों की भी हार्ट अटैक से मौत हो जाने से नागरिकों में डर पैदा हो गया है। कोटा में 40 वर्षीय कोचिंग शिक्षक सौरभ सक्सेना की गुरूवार को बाइक पर भी अचानक अटैक आ जाने से मौत हो गई है। एसएमएस अस्पताल, जयपुर के 48 वर्षीय चिकित्सक डॉ.नितिन पांडे की हार्ट अटैक से मौत हो जाने से चिकित्सक वर्ग भी चिंतित है।
वरिष्ठ हृदय रोग विशेषज्ञ डॉ.साकेत गोयल ने बताया कि इन घटनाओं को कोविड या वैक्सीन से जोडना भ्रांति है। नागरिकों को अचानक हार्ट अटैक से बचाव के लिए अपनी जीवन शैली को संतुलित करना होगा। उन्होंने सलाह दी कि इसके लिये हम अपनी गलतियों में कुछ सुधार करें - उम्र के साथ व्यायाम में करें बदलाव - उम्र बढने के साथ स्पोर्ट्स की तीव्रता और निरंतरता में कुछ बदलाव जरूरी है। आप कितने भी फिट हों, शरीर के सब अंगों की जैविक उम्र होती है। क्षमता के विपरीत व्यायाम नहीं करें। कई लोग 50 की उम्र के बाद भी मैराथन रनर या स्पोर्ट्स की प्रतिस्पर्धा के लिए तत्पर हो जाते हैं। जबकि उनकी शारीरिक प्रणाली इसके अनुकूल नहीं होती है। लक्षणों की उपेक्षा नहीं करें - बैचेनी, दर्द या सास लेने में तकलीफ जैसे लक्षण होने पर तुरंत चिकित्सक से मदद लें। साथियों के साथ खेल या व्यायाम जारी नहीं रखें। ये कुछ मिनट जीवन रक्षक हो सकते हैं। एक तिहाई लोगों में यह बीमारी मूक होती है और लक्षण उत्पन्न नहीं होते। अपने स्ट्रेस फैक्टर्स को अवश्य पहचान लें। अपना लेवल याद रखें - उम्र के अनुसार ब्लड प्रेशर, कोलेस्ट्रॉल, शुगर आदि का लेवल हमें पता हो��ी चाहिए। कभी-कभी डॉक्टर भी लिपोप्रोटीन (ए) या होमोसिस्टीन जैसे नए जोखिम वाले कारकों के लिए जांच की उपेक्षा करते हैं। इनसे टीएमटी या कोरोनरी कैल्शियम स्कोरिंग की जा सकती है। फिटनेस के लिये संयम बरतें- स्पोर्ट्स से सेहत को फायदे मिलते है लेकिन कई लोग रनिंग या जिम को अनावश्यक पीड़ा बना लेते हैं। कुछ लोग स्पोर्ट्स या रनिंग जल्दी कर काम पर जाने की तैयारी में होते हैं। यह मानसिक बेचैनी घातक हो सकती है। नींद की कमी से न केवल फिटनेस बिगड़ती है अपितु शरीर में स्ट्रेस हार्मोन्स भी ज्यादा निकलते हैं। आहार में करें बदलाव - सुबह की सैर के बाद कचौरी व जलेबी के लिये भीड़ उमडती है। अपने भोजन में शुगर और वसा की मात्रा को संतुलित रखना होगा। 28-30 की उम्र के बाद वजन बड रहा है तो वह अनावश्यक विस्सरल वसा है, जो गंभीर बीमारी का कारण है। Read the full article
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राजस्थान कला एवं संस्कृति
राजस्थान की कला एवं संस्कृति
राजस्थान अपनी समृद्ध कला, रंगीन परंपराओं, शाही इतिहास, और अनूठी संस्कृति के लिए जाना जाता है। यहाँ की संस्कृति में लोक संगीत, नृत्य, चित्रकला, हस्तशिल्प, वास्तुकला, वस्त्र, आभूषण, और खान-पान का विशेष महत्व है। Let us discuss about राजस्थान कला एवं संस्कृति
1. राजस्थान की कला
(1) लोक संगीत
राजस्थान का लोक संगीत अपनी विविधता और गहराई के लिए प्रसिद्ध है। प्रमुख लोक संगीत शैलियाँ हैं:
मांड – राजस्थानी शास्त्रीय संगीत, जिसे राजाओं के दरबार में गाया जाता था।
पंडवानी – महाभारत पर आधारित लोकगान।
गोरबंद – ऊँटों के साज पर गाया जाने वाला गीत।
पपिहा – विरह गीत, जिसे प्रेमी-प्रेमिका की जुदाई पर गाया जाता है।
(2) लोक नृत्य
गैर नृत्य – होली और दीपावली के अवसर पर किया जाने वाला नृत्य।
गूम्मर नृत्य – महिलाओं द्वारा किया जाने वाला पारंपरिक राजस्थानी नृत्य।
भवाई नृत्य – सिर पर घड़े रखकर संतुलन बनाते हुए किया जाने वाला नृत्य।
कच्छी घोड़ी नृत्य – घुड़सवारी की नकल करते हुए किया जाने वाला पारंपरिक नृत्य।
कालबेलिया नृत्य – यह साँपों के चलने की गति को दर्शाने वाला एक विशेष नृत्य है।
(3) चित्रकला और हस्तशिल्प
फड़ चित्रकला – भट समुदाय द्वारा बनाई जाने वाली पारंपरिक धार्मिक पेंटिंग।
पिछवई चित्रकला – श्रीनाथजी के मंदिरों में बनाई जाने वाली चित्रकला।
मिनीएचर पेंटिंग्स – राजस्थानी लघु चित्रकला, जो मुग़ल और राजपूत शैली का मिश्रण है।
ब्लॉक प्रिंटिंग – बगरू और सांगानेर की छपाई विश्व प्रसिद्ध है।
नीलकारी और कशीदाकारी – जयपुर और जोधपुर में विशेष रूप से की जाती है।
पत्थर पर नक्काशी – जयपुर, जोधपुर और उदयपुर के मंदिरों और हवेलियों में देखी जा सकती है।
2. राजस्थान की संस्कृति
(1) भाषा और साहित्य
राजस्थानी भाषा के प्रमुख रूप मारवाड़ी, मेवाड़ी, ढूंढाड़ी, हाड़ौती, और मेवाती हैं।
राजस्थान में वीर रस, भक्ति रस, और श्रृंगार रस से भरपूर साहित्य लिखा गया है।
प्रसिद्ध साहित्यकार:
कन्हैया लाल सेठिया (कविता – "पधारो म्हारे देश")
वीर दुर्गादास राठौड़ (लोकक��ाओं में प्रसिद्ध)
(2) लोककथाएँ और लोकनाट्य
पाबूजी की फड़ – एक गाथा गायन शैली, जिसमें वीर पाबूजी की कथा सुनाई जाती है।
देव नारायण की फड़ – लोकदेवता देव नारायण की कहानी को चित्रों के माध्यम से दर्शाया जाता है।
गवरी नृत्य नाट्य – भील जनजाति का पारंपरिक नृत्य नाटक।
(3) मेले और त्यौहार
राजस्थान में अनेक मेले और त्यौहार मनाए जाते हैं:
गणगौर उत्सव – महिलाओं द्वारा मनाया जाने वाला यह त्यौहार शिव-पार्वती की पूजा के लिए प्रसिद्ध है।
तीज महोत्सव – वर्षा ऋतु में महिलाओं द्वारा मनाया जाने वाला त्यौहार।
पुष्कर मेला – विश्व प्रसिद्ध ऊँट मेला।
मरु महोत्सव – जैसलमेर में मनाया जाने वाला रेगिस्तानी उत्सव।
(4) खान-पान
राजस्थानी व्यंजन अपने अद्वितीय स्वाद के लिए प्रसिद्ध हैं:
दाल-बाटी-चूरमा – राजस्थान की पहचान।
गट्टे की सब्जी – बेसन से बनी पारंपरिक सब्जी।
मिर्ची बड़ा और प्याज़ कचौरी – जोधपुर और जयपुर में प्रसिद्ध।
केर सांगरी – मरुस्थलीय क्षेत्र का प्रमुख व्यंजन।
घेवर और मालपुआ – प्रसिद्ध मिठाइयाँ।
(5) वस्त्र और आभूषण
पुरुष – धोती, कुर्ता, पगड़ी और साफा पहनते हैं।
महिलाएँ – घाघरा-चोली, ओढ़नी और कांच की कढ़ाई वाले वस्त्र पहनती हैं।
प्रमुख आभूषण – बोरला, बाजूबंद, कड़े, हंसली, पाजेब, तोड़ा आदि।
निष्कर्ष
राजस्थान की कला एवं संस्कृति इसकी शान, परंपरा, और समृद्ध इतिहास को दर्शाती है। यहाँ के संगीत, नृत्य, चित्रकला, हस्तशिल्प, त्यौहार, व्यंजन और वेशभूषा इसे अन्य राज्यों से अलग और अनूठा बनाते हैं। राजस्थान की यह विरासत आज भी जीवंत है और पूरी दुनिया को अपनी ओर आकर्षित करती है।
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गर्मियों की परफेक्ट चाट: राज कचौरी रेसिपी | Summer Special Raj Kachori C...
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🔸️काशी का अद्भुत विशाल भंडारा🔸️
600 वर्ष पूर्व परमेश्वर कबीर बंदीछोड़ जी द्वारा इस लोक में ऐसे कई चमत्कार किए गए हैं जो मात्र ईश्वर द्वारा किए जा सकते हैं। किसी मायावी अथवा साधारण व्यक्ति द्वारा यह संभव नहीं हैं जैसे भैंसे से वेद मंत्र बुलवाना, सिकंदर लोदी के जलन का रोग ठीक करना, मुर्दे को जीवित करना, यह शक्ति मात्र ईश्वर के पास होती है तथा इसके अतिरिक्त काशी में बहुत विशाल भंडारे का आयोजन करना।
शेखतकी ने काशी के सारे हिन्दू, मुसलमान, पीर पैगम्बर, मुल्ला काजी और पंडितो को इकट्ठा करके कबीर परमेश्वर के खिलाफ षडयंत्र रचा। सोचा कबीर निर्धन व्यक्ति है। इसके नाम से पत्र भेज दो की कबीर जी काशी में बहुत बड़े सेठ हैं। वह काशी शहर में तीन दिन का धर्म भोजन-भण्डारा करेंगे। सर्व साधु संत आमंत्रित हैं। पूरे हिंदुस्तान में झूठी चिट्ठियां भेजकर खूब प्रचार करवा दिया की प्रतिदिन प्रत्येक भोजन करने वाले को एक दोहर (कीमती कम्बल) और एक सोने की मोहर दक्षिणा में देगें। एक महीने पहले ही प्रचार शुरू कर दिया और देखते ही देखते पूरे हिंदुस्तान से 18 लाख भक्त तथा संत व अन्य व्यक्ति लंगर खाने काशी में चौपड़ के बाजार में आकर इकट्ठे हो गए। जब संत रविदास जी को यह खबर लगी तो कबीर जी से पूरा हाल बयां किया। परमात्मा कबीर जी तो जानीजान थे। फिर भी अभिनय कर रहे थे। रविदास जी से कहा कि रविदास जी झोपड़ी के भीतर आ जाओ और कुंडी लगा लो हम सुबह होते ही यहां से निकल लेंगें इस बार तो हमारे ऊपर बड़ा जुल्म कर दिया है इन लोगों ने।
एक तरफ तो परमेश्वर कबीर बंदीछोड़ जी अपनी झोपड़ी में बैठे थे और दूसरी तरफ परमेश्वर कबीर जी अपनी राजधानी सतलोक में पहुँचे। वहां से केशव नाम के बंजारे का रूप धारण करके कबीर परमात्मा 9 लाख बैलों के ऊपर बोरे (थैले) रखकर उनमें पका-पकाया भोजन (खीर, पूड़ी, हलुवा, लड्डू, जलेबी, कचौरी, पकोडी, समोसे, रोटी दाल, चावल, सब्जी आदि) भरकर सतलोक से काशी नगर की ओर चल पड़े। सतलोक की हंस आत्माएं ही 9 लाख बैल बनकर आए थे। केशव रूप में कबीर परमात्मा एक तंबू में डेरा देकर बैठ गए और भंडारा शुरू हुआ। बेईमान संत तो दिन में चार-चार बार भोजन करके चारों बार दोहर तथा मोहर ले रहे थे। कुछ सूखा सीधा (चावल, खाण्ड, घी, दाल, आटा) भी ले रहे थे।
इस भंडारे की खास बात यह थी कि परमेश्वर के भोग लगे पवित्र भंडारे प्रसाद को खाने से कोटि-कोटि पापनाश हो जाते हैं जिसका प्रमाण गीता अध्याय-3 श्लोक-13 में है।
धर्म यज्ञ बहुत श्रेष्ठ होती हैं भोजन भंडारा करवाना धर्म यज्ञ में आता है भंडारे से वर्षा होती है वर्षा से धन-धान्य की उपज होती है जिससे सभी जीवों का पेट भरता और पुण्य मिलता है।
ऐसे पुण्य के कार्य वर्तमान में जगतगुरु तत्वदर्शी संत रामपाल की महाराज जी द्वारा किए जा रहे हैं उनके सानिध्य में 10 जगहों पर तीन दिवसीय विशाल भंडारे का आयोजन किया जा रहा है इस भंडारे में शुद्ध देशी घी के पकवान जैसे रोटी, पूरी, सब्जी, लड्डू, जलेबी, हलवा, बूंदी आदि–आदि बनाए जाते हैं। जो पूर्ण परमेश्वर को भोग लगाने के पश्चात भंडारा करवाया जाता है। इस समागम में लाखों की संख्या में देश विदेश से आए श्रद्धालुों का तांता लगा रहा रहता है। परमेश्वर की अमर वाणी का अखंड पाठ, निःशुल्क नामदीक्षा चौबीसों घंटे चलती रहेगी। जिसमें आप सभी सादर आमंत्रित हैं।
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🔸️काशी का अद्भुत विशाल भंडारा🔸️
600 वर्ष पूर्व परमेश्वर कबीर बंदीछोड़ जी द्वारा इस लोक में ऐसे कई चमत्कार किए गए हैं जो मात्र ईश्वर द्वारा किए जा सकते हैं। किसी मायावी अथवा साधारण व्यक्ति द्वारा यह संभव नहीं हैं जैसे भैंसे से वेद मंत्र बुलवाना, सिकंदर लोदी के जलन का रोग ठीक करना, मुर्दे को जीवित करना, यह शक्ति मात्र ईश्वर के पास होती है तथा इसके अतिरिक्त काशी में बहुत विशाल भंडारे का आयोजन करना।
शेखतकी ने काशी के सारे हिन्दू, मुसलमान, पीर पैगम्बर, मुल्ला काजी और पंडितो को इकट्ठा करके कबीर परमेश्वर के खिलाफ षडयंत्र रचा। सोचा कबीर निर्धन व्यक्ति है। इसके नाम से पत्र भेज दो की कबीर जी काशी में बहुत बड़े सेठ हैं। वह काशी शहर में तीन दिन का धर्म भोजन-भण्डारा करेंगे। सर्व साधु संत आमंत्रित हैं। पूरे हिंदुस्तान में झूठी चिट्ठियां भेजकर खूब प्रचार करवा दिया की प्रतिदिन प्रत्येक भोजन करने वाले को एक दोहर (कीमती कम्बल) और एक सोने की मोहर दक्षिणा में देगें। एक महीने पहले ही प्रचार शुरू कर दिया और देखते ही देखते पूरे हिंदुस्तान से 18 लाख भक्त तथा संत व अन्य व्यक्ति लंगर खाने काशी में चौपड़ के बाजार में आकर इकट्ठे हो गए। जब संत रविदास जी को यह खबर लगी तो कबीर जी से पूरा हाल बयां किया। परमात्मा कबीर जी तो जानीजान थे। फिर भी अभिनय कर रहे थे। रविदास जी से कहा कि रविदास जी झोपड़ी के भीतर आ जाओ और कुंडी लगा लो हम सुबह होते ही यहां से निकल लेंगें इस बार तो हमारे ऊपर बड़ा जुल्म कर दिया है इन लोगों ने।
एक तरफ तो परमेश्वर कबीर बंदीछोड़ जी अपनी झोपड़ी में बैठे थे और दूसरी तरफ परमेश्वर कबीर जी अपनी राजधानी सतलोक में पहुँचे। वहां से केशव नाम के बंजारे का रूप धारण करके कबीर परमात्मा 9 लाख बैलों के ऊपर बोरे (थैले) रखकर उनमें पका-पकाया भोजन (खीर, पूड़ी, हलुवा, लड्डू, जलेबी, कचौरी, पकोडी, समोसे, रोटी दाल, चावल, सब्जी आदि) भरकर सतलोक से काशी नगर की ओर चल पड़े। सतलोक की हंस आत्माएं ही 9 लाख बैल बनकर आए थे। केशव रूप में कबीर परमात्मा एक तंबू में डेरा देकर बैठ गए और भंडारा शुरू हुआ। बेईमान संत तो दिन में चार-चार बार भोजन करके चारों बार दोहर तथा मोहर ले रहे थे। कुछ सूखा सीधा (चावल, खाण्ड, घी, दाल, आटा) भी ले रहे थे।
इस भंडारे की खास बात यह थी कि परमेश्वर के भोग लगे पवित्र भंडारे प्रसाद को खाने से कोटि-कोटि पापनाश हो जाते हैं जिसका प्रमाण गीता अध्याय-3 श्लोक-13 में है।
धर्म यज्ञ बहुत श्रेष्ठ होती हैं भोजन भंडारा करवाना धर्म यज्ञ में आता है भंडारे से वर्षा होती है वर्षा से धन-धान्य की उपज होती है जिससे सभी जीवों का पेट भरता और पुण्य मिलता है।
ऐसे पुण्य के कार्य वर्तमान में जगतगुरु तत्वदर्शी संत रामपाल की महाराज जी द्वारा किए जा रहे हैं उनके सानिध्य में 10 जगहों पर तीन दिवसीय विशाल भंडारे का आयोजन किया जा रहा है इस भंडारे में शुद्ध देशी घी के पकवान जैसे रोटी, पूरी, सब्जी, लड्डू, जलेबी, हलवा, बूंदी आदि–आदि बनाए जाते हैं। जो पूर्ण परमेश्वर को भोग लगाने के पश्चात भंडारा करवाया जाता है। इस समागम में लाखों की संख्या में देश विदेश से आए श्रद्धालुों का तांता लगा रहा रहता है। परमेश्वर की अमर वाणी का अखंड पाठ, निःशुल्क नामदीक्षा चौबीसों घंटे चलती रहेगी। जिसमें आप सभी सादर आमंत्रित हैं।
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26-27-28 नवंबर 2023
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