#कचौरी
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🔸️काशी का अद्भुत विशाल भंडारा🔸️
600 वर्ष पूर्व परमेश्वर कबीर बंदीछोड़ जी द्वारा इस लोक में ऐसे कई चमत्कार किए गए हैं जो मात्र ईश्वर द्वारा किए जा सकते हैं। किसी मायावी अथवा साधारण व्यक्ति द्वारा यह संभव नहीं हैं जैसे भैंसे से वेद मंत्र बुलवाना, सिकंदर लोदी के जलन का रोग ठीक करना, मुर्दे को जीवित करना, यह शक्ति मात्र ईश्वर के पास होती है तथा इसके अतिरिक्त काशी में बहुत विशाल भंडारे का आयोजन करना।
शेखतकी ने काशी के सारे हिन्दू, मुसलमान, पीर पैगम्बर, मुल्ला काजी और पंडितो को इकट्ठा करके कबीर परमेश्वर के खिलाफ षडयंत्र रचा। सोचा कबीर निर्धन व्यक्ति है। इसके नाम से पत्र भेज दो की कबीर जी काशी में बहुत बड़े सेठ हैं। वह काशी शहर में तीन दिन का धर्म भोजन-भण्डारा करेंगे। सर्व साधु संत आमंत्रित हैं। पूरे हिंदुस्तान में झूठी चिट्ठियां भेजकर खूब प्रचार करवा दिया की प्रतिदिन प्रत्येक भोजन करने वाले को एक दोहर (कीमती कम्बल) और एक सोने की मोहर दक्षिणा में देगें। एक महीने पहले ही प्रचार शुरू कर दिया और देखते ही देखते पूरे हिंदुस्तान से 18 लाख भक्त तथा संत व अन्य व्यक्ति लंगर खाने काशी में चौपड़ के बाजार में आकर इकट्ठे हो गए। जब संत रविदास जी को यह खबर लगी तो कबीर जी से पूरा हाल बयां किया। परमात्मा कबीर जी तो जानीजान थे। फिर भी अभिनय कर रहे थे। रविदास जी से कहा कि रविदास जी झोपड़ी के भीतर आ जाओ और कुंडी लगा लो हम सुबह होते ही यहां से निकल लेंगें इस बार तो हमारे ऊपर बड़ा जुल्म कर दिया है इन लोगों ने।
एक तरफ तो परमेश्वर कबीर बंदीछोड़ जी अपनी झोपड़ी में बैठे थे और दूसरी तरफ परमेश्वर कबीर जी अपनी राजधानी सतलोक में पहुँचे। वहां से केशव नाम के बंजारे का रूप धारण करके कबीर परमात्मा 9 लाख बैलों के ऊपर बोरे (थैले) रखकर उनमें पका-पकाया भोजन (खीर, पूड़ी, हलुवा, लड्डू, जलेबी, कचौरी, पकोडी, समोसे, रोटी दाल, चावल, सब्जी आदि) भरकर सतलोक से काशी नगर की ओर चल पड़े। सतलोक की हंस आत्माएं ही 9 लाख बैल बनकर आए थे। केशव रूप में कबीर परमात्मा एक तंबू में डेरा देकर बैठ गए और भंडारा शुरू हुआ। बेईमान संत तो दिन में चार-चार बार भोजन करके चारों बार दोहर तथा मोहर ले रहे थे। कुछ सूखा सीधा (चावल, खाण्ड, घी, दाल, आटा) भी ले रहे थे।
इस भंडारे की खास बात यह थी कि परमेश्वर के भोग लगे पवित्र भंडारे प्रसाद को खाने से कोटि-कोटि पापनाश हो जाते हैं जिसका प्रमाण गीता अध्याय-3 श्लोक-13 में है।
धर्म यज्ञ बहुत श्रेष्ठ होती हैं भोजन भंडारा करवाना धर्म यज्ञ में आता है भंडारे से वर्षा होती है वर्षा से धन-धान्य की उपज होती है जिससे सभी जीवों का पेट भरता और पुण्य मिलता है।
ऐसे पुण्य के कार्य वर्तमान में जगतगुरु तत्वदर्शी संत रामपाल की महाराज जी द्वारा किए जा रहे हैं उनके सानिध्य में 10 जगहों पर तीन दिवसीय विशाल भंडारे का आयोजन किया जा रहा है इस भंडारे में शुद्ध देशी घी के पकवान जैसे रोटी, पूरी, सब्जी, लड्डू, जलेबी, हलवा, बूंदी आदि–आदि बनाए जाते हैं। जो पूर्ण परमेश्वर को भोग लगाने के पश्चात भंडारा करवाया जाता है। इस समागम में लाखों की संख्या में देश विदेश से आए श्रद्धालुों का तांता लगा रहा रहता है। परमेश्वर की अमर वाणी का अखंड पाठ, निःशुल्क नामदीक्षा चौबीसों घंटे चलती रहेगी। जिसमें आप सभी सादर आमंत्रित हैं।
#MiracleOfGodKabir_In_1513
#दिव्य_धर्म_यज्ञ_दिवस
26-27-28 नवंबर 2023
#SantRampalJiMaharaj
#trending
#viralpost
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संत रामपाल जी महाराज जी से निःशुल्क नाम उपदेश लेने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर जायें।
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https://online.jagatgururampalji.org/naam-diksha-inquiry
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Moong Dal Kachori. Moong Dal: Moong dal is high in protein and fiber, which promotes satiety and supports muscle repair and growth. Fiber aids in digestion and can help maintain stable blood sugar levels. Read Full Recipe
https://foodrecipesoffical.com/wp-admin/post.php?post=4492&action=edit
#MoongDalKachori#IndianSnacks#Vegetarian#HighProtein#NorthIndianCuisine#StreetFood#SpicySnacks#FriedSnacks#PartySnacks#TeaTimeSnacks#ComfortFood#FestivalFood#HomemadeKachori#PlantBasedProtein#HealthyTwist (for baked/air-fried versions)
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Matar Kachori Recipe | क्रिस्पी मटर कचौरी | Perfect Breakfast Snack for ...
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कहीं आप नकली टमाटर सॉस तो नहीं खा रहे… असली या नकली, ऐसे करें चेक
असली टमाटर की चटनी: टमाटर की चटनी को सैंडविच, आलू के परांठे, पकौड़े, कचौरी आदि के साथ खाया जाता है. बच्चे और वयस्क दोनों इसे पसंद करते हैं। आजकल बाजार में इसकी मांग काफी बढ़ गई है, लेकिन क्या आप जानते हैं कि अलग-अलग ब्रांड में मिलने वाली यह टमाटर सॉस नकली भी पाई जाती है। जिसे खाने के बाद आपकी तबीयत खराब हो सकती है. आजकल बाज़ारों में बहुत सारे मिलावटी टमाटर सॉस उपलब्ध हैं। हम इसे खरीदकर घर ले आते…
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Kachori Chaat || कचौरी चाट || Neelam Ki Cooking Diary #shorts #kachorich...
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इंदौरी कचौरी सेंटर में गंदगी, दुकान सील, गगन-मगन में थी मिठाई में मरी मक्खी
– एसडीएम के नेतृत्व में खानपान होटलों, रेस्टोरेंट में दिनभर चली जांच की कार्रवाई – कई जगह घरेलू गैस सिलेंडर का हो रहा था उपयोग, सिलेंडर जब्त किये गये – बिना फूड लायसेंस के चल रही थी इंदौरी कचोरी सेंटर, प्रशासन ने की सील इटारसी। दीवाली के पूर्व उपभोक्ताओं को त्योहार के मद्देनजर गुणवत्ता रहित खानपान सामग्री से बचाने फूड एंड सिक्योरिटी विभाग की टीम ने आज एसडीएम के नेतृत्व में दिनभर मैराथन…
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Watch On Youtube Here:गरीब की कचौरी की दुकान Poor Man's Kachori Shop via
#hindikahaniya#storiesinhindi#3danimated#funnycomedy#comedyvideo#funnyvideo#hindicomedy#funnystories#comedystories#Youtube
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इमली की चटनी (Imli ki Chutney)
इमली की चटनी क्या है?
इमली की चटनी (Imli ki Chutney) जिसे इमली चटनी के नाम से जाना जाता है, एक लोकप्रिय (Popular) भारतीय इमली की चटनी है जिसका उपयोग चाट की तैयारी में किया जाता है और इसे अक्सर समोसा, कचौरी, गोलगप्पा, पानी पुरी और पकोड़े जैसे स्नैक्स (Snacks) के साथ भी परोसा (Served) जाता है। यह मीठी और तीखी इमली की चटनी बेहद स्वादिष्ट (Big Tasty) और स्वादिष्ट (Tasty) होती है। अच्छी तरह से तैयार की गई इमली की चटनी चाट और स्नैक्स के स्वाद को बढ़ा देती है।
मैं दो तरह से इमली (Tamarind) की चटनी बनता हू । पहली तरह से बनाई जाने वाले इमली की चटनी झट पट वाली इमली की चटनी
इमली की चटनी बनाने के लिए सामग्री (Material) :
एक बड़ा चम्मच - इमली का गूदा (Tamarind Pulp)
तीन बड़ा चम्मच - गुड या चीनी (Jaggery or Sugar) खट्टा - मीठा अपनी स्वाद अनुसार
काला नमक (Black Salt) स्वाद अनुसार
भुना जीरा (Roasted Cumin)
थोड़ी पिसी लाल मिर्च (Some Ground Red Pepper) कलर वाली और तीखी दोनों अंदाज से।
इमली की चटनी (Imli ki Chutney) तैयार करने की विधि (Method) :
इमली के गूदे को, एक घंटा (One Hour) हल्के से गर्म पानी में भिगो लिजिये ।
फिर उसे मसलकर (Chafe) छलनी से छाकर किसी बर्तन में (लोहे या पीतल का न हो) उबलने (Boil) रख लिजिये और गुड़ कूटकर (Crushed Jaggery) या चीनी (Sugar) भी साथ ही डाल लिजिये ।
फिर मंदी आंच (Recession Flame) पर, उबलने (Boil) के लिए छोड़ दीजिए ।
गाढ़ा या पतला (Thick or Thin) जैसा चाहिए, वैसा रखने के बाद उसमें काला नमक, भुना जीरा, लाल मिर्च मिला लिजिये ।
इमली की चटनी तैयार है।
दूसरी तरह से बनाई जाने वाले इमली की चटनी (Imli ki Chutney)
थोड़ी आराम से इमली की चटनी।
इमली की चटनी (Imli ki Chutney) बनाने के लिए सामग्री (Material) :
भीगा हुआ इमली का गूदा (Soaked Tamarind Pulp) जितनी बनानी हो ।
गुड या चीनी (Jaggery or Sugar) अपने स्वाद ��नुसार
काला नमक (Black Salt) स्वाद अनुसार
सफेद नमक (White Salt) स्वाद अनुसार
पिसी लाल मिर्च (Ground Red Chilli) तीखी और कलर वाली दोनों
सूखे खजूर (Dried Dates) भीगे हुए, कटे हुए ।
चिरौंजी (Chironji) अंदाज से ।
किशमिश (Raisin) अंदाज से ।
कटी अदरक (Ginger)
इमली की चटनी (Imli ki Chutney) तैयार करने की विधि (Method) :
उपरोक्त विधि (Above Method) के अनुसार ही इमली की चटनी, मसाले डालकर तैयार कर लिजिये ।
फिर उसमें अदरक और सूखे मेवे डालकर थोड़ा उबाल (Boil) लिजिये ।
इमली की चटनी खट्टी मीठी चटनी (Sweet and Sour chutney) तैयार है।
उसके बाद सर्व करें (Serve Food)
इमली की चटनी (Imli ki Chutney)
https://annapurnaeat.blogspot.com/2024/06/emli-ki-chutni.html
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एक कप सुजी और एक कच्चे आलू का नाश्ता जिसके आगे समोसा कचौरी भी भूल जायेंग...
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अनंत और राधिका के वेडिंग सेरेमनी में मेहमान को परोसे जाएंगे बनारसी चाट, कचौरी और पान
मुंबई। अनंत और राधिका की शादी मुंबई के बांद्रा कुर्ला स्थित जियो वर्ल्ड सेंटर में होगी। आयोजन स्थल को पूरी तरह से ‘भारतीय थीम’ में सजाया गया है। 12 जुलाई 2024 को होने वाली इस ग्र��ंड वेडिंग सेरेमनी में देश-विदेश के मेहमानों को भारतीयता के रंग में रंगा हुआ समारोह देखने को मिलेगा। इस आयोजन में भारतीयता की झलक डेकोरेशन, मेहमानों के ड्रेस कोड, संगीत, और पकवानों में नजर आएगी। विवाह समारोह स्थल पर काशी…
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जीवन शैली को संतुलित कर हार्ट अटैक से बचें- डॉ.साकेत
न्यूजवेव @कोटा सर्दी के मौसम में तापमान में गिरावट के साथ ही युवा उम्र के लोगों में आकस्मिक हार्ट अटैक की घटनायें तेजी से बढ़ रही है। जिसमें युवा चिकित्सक एवं नियमित व्यायाम करने वालों की भी हार्ट अटैक से मौत हो जाने से नागरिकों में डर पैदा हो गया है। कोटा में 40 वर्षीय कोचिंग शिक्षक सौरभ सक्सेना की गुरूवार को बाइक पर भी अचानक अटैक आ जाने से मौत हो गई है। एसएमएस अस्पताल, जयपुर के 48 वर्षीय चिकित्सक डॉ.नितिन पांडे की हार्ट अटैक से मौत हो जाने से चिकित्सक वर्ग भी चिंतित है।
वरिष्ठ हृदय रोग विशेषज्ञ डॉ.साकेत गोयल ने बताया कि इन घटनाओं को कोविड या वैक्सीन से जोडना भ्रांति है। नागरिकों को अचानक हार्ट अटैक से बचाव के लिए अपनी जीवन शैली को संतुलित करना होगा। उन्होंने सलाह दी कि इसके लिये हम अपनी गलतियों में कुछ सुधार करें - उम्र के साथ व्यायाम में करें बदलाव - उम्र बढने के साथ स्पोर्ट्स की तीव्रता और निरंतरता में कुछ बदलाव जरूरी है। आप कितने भी फिट हों, शरीर के सब अंगों की जैविक उम्र होती है। क्षमता के विपरीत व्यायाम नहीं करें। कई लोग 50 की उम्र के बाद भी मैराथन रनर या स्पोर्ट्स की प्रतिस्पर्धा के लिए तत्पर हो जाते हैं। जबकि उनकी शारीरिक प्रणाली इसके ��नुकूल नहीं होती है। लक्षणों की उपेक्षा नहीं करें - बैचेनी, दर्द या सास लेने में तकलीफ जैसे लक्षण होने पर तुरंत चिकित्सक से मदद लें। साथियों के साथ खेल या व्यायाम जारी नहीं रखें। ये कुछ मिनट जीवन रक्षक हो सकते हैं। एक तिहाई लोगों में यह बीमारी मूक होती है और लक्षण उत्पन्न नहीं होते। अपने स्ट्रेस फैक्टर्स को अवश्य पहचान लें। अपना लेवल याद रखें - उम्र के अनुसार ब्लड प्रेशर, कोलेस्ट्रॉल, शुगर आदि का लेवल हमें पता होनी चाहिए। कभी-कभी डॉक्टर भी लिपोप्रोटीन (ए) या होमोसिस्टीन जैसे नए जोखिम वाले कारकों के लिए जांच की उपेक्षा करते हैं। इनसे टीएमटी या कोरोनरी कैल्शियम स्कोरिंग की जा सकती है। फिटनेस के लिये संयम बरतें- स्पोर्ट्स से सेहत को फायदे मिलते है लेकिन कई लोग रनिंग या जिम को अनावश्यक पीड़ा बना लेते हैं। कुछ लोग स्पोर्ट्स या रनिंग जल्दी कर काम पर जाने की तैयारी में होते हैं। यह मानसिक बेचैनी घातक हो सकती है। नींद की कमी से न केवल फिटनेस बिगड़ती है अपितु शरीर में स्ट्रेस हार्मोन्स भी ज्यादा निकलते हैं। आहार में करें बदलाव - सुबह की सैर के बाद कचौरी व जलेबी के लिये भीड़ उमडती है। अपने भोजन में शुगर और वसा की मात्रा को संतुलित रखना होगा। 28-30 की उम्र के बाद वजन बड रहा है तो वह अनावश्यक विस्सरल वसा है, जो गंभीर बीमारी का कारण है। Read the full article
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गर्मियों की परफेक्ट चाट: राज कचौरी रेसिपी | Summer Special Raj Kachori C...
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🔸️काशी का अद्भुत विशाल भंडारा🔸️
600 वर्ष पूर्व परमेश्वर कबीर बंदीछोड़ जी द्वारा इस लोक में ऐसे कई चमत्कार किए गए हैं जो मात्र ईश्वर द्वारा किए जा सकते हैं। किसी मायावी अथवा साधारण व्यक्ति द्वारा यह संभव नहीं हैं जैसे भैंसे से वेद मंत्र बुलवाना, सिकंदर लोदी के जलन का रोग ठीक करना, मुर्दे को जीवित करना, यह शक्ति मात्र ईश्वर के पास होती है तथा इसके अतिरिक्त काशी में बहुत विशाल भंडारे का आयोजन करना।
शेखतकी ने काशी के सारे हिन्दू, मुसलमान, पीर पैगम्बर, मुल्ला काजी और पंडितो को इकट्ठा करके कबीर परमेश्वर के खिलाफ षडयंत्र रचा। सोचा कबीर निर्धन व्यक्ति है। इसके नाम से पत्र भेज दो की कबीर जी काशी में बहुत बड़े सेठ हैं। वह काशी शहर में तीन दिन का धर्म भोजन-भण्डारा करेंगे। सर्व साधु संत आमंत्रित हैं। पूरे हिंदुस्तान में झूठी चिट्ठियां भेजकर खूब प्रचार करवा दिया की प्रतिदिन प्रत्येक भोजन करने वाले को एक दोहर (कीमती कम्बल) और एक सोने की मोहर दक्षिणा में देगें। एक महीने पहले ही प्रचार शुरू कर दिया और देखते ही देखते पूरे हिंदुस्तान से 18 लाख भक्त तथा संत व अन्य व्यक्ति लंगर खाने काशी में चौपड़ के बाजार में आकर इकट्ठे हो गए। जब संत रविदास जी को यह खबर लगी तो कबीर जी से पूरा हाल बयां किया। परमात्मा कबीर जी तो जानीजान थे। फिर भी अभिनय कर रहे थे। रविदास जी से कहा कि रविदास जी झोपड़ी के भीतर आ जाओ और कुंडी लगा लो हम सुबह होते ही यहां से निकल लेंगें इस बार तो हमारे ऊपर बड़ा जुल्म कर दिया है इन लोगों ने।
एक तरफ तो परमेश्वर कबीर बंदीछोड़ जी अपनी झोपड़ी में बैठे थे और दूसरी तरफ परमेश्वर कबीर जी अपनी राजधानी सतलोक में पहुँचे। वहां से केशव नाम के बंजारे का रूप धारण करके कबीर परमात्मा 9 लाख बैलों के ऊपर बोरे (थैले) रखकर उनमें पका-पकाया भोजन (खीर, पूड़ी, हलुवा, लड्डू, जलेबी, कचौरी, पकोडी, समोसे, रोटी दाल, चावल, सब्जी आदि) भरकर सतलोक से काशी नगर की ओर चल पड़े। सतलोक की हंस आत्माएं ही 9 लाख बैल बनकर आए थे। केशव रूप में कबीर परमात्मा एक तंबू में डेरा देकर बैठ गए और भंडारा शुरू हुआ। बेईमान संत तो दिन में चार-चार बार भोजन करके चारों बार दोहर तथा मोहर ले रहे थे। कुछ सूखा सीधा (चावल, खाण्ड, घी, दाल, आटा) भी ले रहे थे।
इस भंडारे की खास बात यह थी कि परमेश्वर के भोग लगे पवित्र भंडारे प्रसाद को खाने से कोटि-कोटि पापनाश हो जाते हैं जिसका प्रमाण गीता अध्याय-3 श्लोक-13 में है।
धर्म यज्ञ बहुत श्रेष्ठ होती हैं भोजन भंडारा करवाना धर्म यज्ञ में आता है भंडारे से वर्षा होती है वर्षा से धन-धान्य की उपज होती है जिससे सभी जीवों का पेट भरता और पुण्य मिलता है।
ऐसे पुण्य के कार्य वर्तमान में जगतगुरु तत्वदर्शी संत रामपाल की महाराज जी द्वारा किए जा रहे हैं उनके सानिध्य में 10 जगहों पर तीन दिवसीय विशाल भंडारे का आयोजन किया जा रहा है इस भंडारे में शुद्ध देशी घी के पकवान जैसे रोटी, पूरी, सब्जी, लड्डू, जलेबी, हलवा, बूंदी आदि–आदि बनाए जाते हैं। जो पूर्ण परमेश्वर को भोग लगाने के पश्चात भंडारा करवाया जाता है। इस समागम में लाखों की संख्या में देश विदेश से आए श्रद्धालुों का तांता लगा रहा रहता है। परमेश्वर की अमर वाणी का अखंड पाठ, निःशुल्क नामदीक्षा चौबीसों घंटे चलती रहेगी। जिसमें आप सभी सादर आमंत्रित हैं।
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🔸️काशी का अद्भुत विशाल भंडारा🔸️
600 वर्ष पूर्व परमेश्वर कबीर बंदीछोड़ जी द्वारा इस लोक में ऐसे कई चमत्कार किए गए हैं जो मात्र ईश्वर द्वारा किए जा सकते हैं। किसी मायावी अथवा साधारण व्यक्ति द्वारा यह संभव नहीं हैं जैसे भैंसे से वेद मंत्र बुलवाना, सिकंदर लोदी के जलन का रोग ठीक करना, मुर्दे को जीवित करना, यह शक्ति मात्र ईश्वर के पास होती है तथा इसके अतिरिक्त काशी में बहुत विशाल भंडारे का आयोजन करना।
शेखतकी ने काशी के सारे हिन्दू, मुसलमान, पीर पैगम्बर, मुल्ला काजी और पंडितो को इकट्ठा करके कबीर परमेश्वर के खिलाफ षडयंत्र रचा। सोचा कबीर निर्धन व्यक्ति है। इसके नाम से पत्र भेज दो की कबीर जी काशी में बहुत बड़े सेठ हैं। वह काशी शहर में तीन दिन का धर्म भोजन-भण्डारा करेंगे। सर्व साधु संत आमंत्रित हैं। पूरे हिंदुस्तान में झूठी चिट्ठियां भेजकर खूब प्रचार करवा दिया की प्रतिदिन प्रत्येक भोजन करने वाले को एक दोहर (कीमती कम्बल) और एक सोने की मोहर दक्षिणा में देगें। एक महीने पहले ही प्रचार शुरू कर दिया और देखते ही देखते पूरे हिंदुस्तान से 18 लाख भक्त तथा संत व अन्य व्यक्ति लंगर खाने काशी में चौपड़ के बाजार में आकर इकट्ठे हो गए। जब संत रविदास जी को यह खबर लगी तो कबीर जी से पूरा हाल बयां किया। परमात्मा कबीर जी तो जानीजान थे। फिर भी अभिनय कर रहे थे। रविदास जी से कहा कि रविदास जी झोपड़ी के भीतर आ जाओ और कुंडी लगा लो हम सुबह होते ही यहां से निकल लेंगें इस बार तो हमारे ऊपर बड़ा जुल्म कर दिया है इन लोगों ने।
एक तरफ तो परमेश्वर कबीर बंदीछोड़ जी अपनी झोपड़ी में बैठे थे और दूसरी तरफ परमेश्वर कबीर जी अपनी राजधानी सतलोक में पहुँचे। वहां से केशव नाम के बंजारे का रूप धारण करके कबीर परमात्मा 9 लाख बैलों के ऊपर बोरे (थैले) रखकर उनमें पका-पकाया भोजन (खीर, पूड़ी, हलुवा, लड्डू, जलेबी, कचौरी, पकोडी, समोसे, रोटी दाल, चावल, सब्जी आदि) भरकर सतलोक से काशी नगर की ओर चल पड़े। सतलोक की हंस आत्माएं ही 9 लाख बैल बनकर आए थे। केशव रूप में कबीर परमात्मा एक तंबू में डेरा देकर बैठ गए और भंडारा शुरू हुआ। बेईमान संत तो दिन में चार-चार बार भोजन करके चारों बार दोहर तथा मोहर ले रहे थे। कुछ सूखा सीधा (चावल, खाण्ड, घी, दाल, आटा) भी ले रहे थे।
इस भंडारे की खास बात यह थी कि परमेश्वर के भोग लगे पवित्र भंडारे प्रसाद को खाने से कोटि-कोटि पापनाश हो जाते हैं जिसका प्रमाण गीता अध्याय-3 श्लोक-13 में है।
धर्म यज्ञ बहुत श्रेष्ठ होती हैं भोजन भंडारा करवाना धर्म यज्ञ में आता है भंडारे से वर्षा होती है वर्षा से धन-धान्य की उपज होती है जिससे सभी जीवों का पेट भरता और पुण्य मिलता है।
ऐसे पुण्य के कार्य वर्तमान में जगतगुरु तत्वदर्शी संत रामपाल की महाराज जी द्वारा किए जा रहे हैं उनके सानिध्य में 10 जगहों पर तीन दिवसीय विशाल भंडारे का आयोजन किया जा रहा है इस भंडारे में शुद्ध देशी घी के पकवान जैसे रोटी, पूरी, सब्जी, लड्डू, जलेबी, हलवा, बूंदी आदि–आदि बनाए जाते हैं। जो पूर्ण परमेश्वर को भोग लगाने के पश्चात भंडारा करवाया जाता है। इस समागम में लाखों की संख्या में देश विदेश से आए श्रद्धालुों का तांता लगा रहा रहता है। परमेश्वर की अमर वाणी का अखंड पाठ, निःशुल्क नामदीक्षा चौबीसों घंटे चलती रहेगी। जिसमें आप सभी सादर आमंत्रित हैं।
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[11/21, 7:03 AM] Arun Das Patil: 🔸️काशी का अद्भुत विशाल भंडारा🔸️
600 वर्ष पूर्व परमेश्वर कबीर बंदीछोड़ जी द्वारा इस लोक में ऐसे कई चमत्कार किए गए हैं जो मात्र ईश्वर द्वारा किए जा सकते हैं। किसी मायावी अथवा साधारण व्यक्ति द्वारा यह संभव नहीं हैं जैसे भैंसे से वेद मंत्र बुलवाना, सिकंदर लोदी के जलन का रोग ठीक करना, मुर्दे को जीवित करना, यह शक्ति मात्र ईश्वर के पास होती है तथा इसके अतिरिक्त काशी में बहुत विशाल भंडारे का आयोजन करना।
शेखतकी ने काशी के सारे हिन्दू, मुसलमान, पीर पैगम्बर, मुल्ला काजी और पंडितो को इकट्ठा करके कबीर परमेश्वर के खिलाफ षडयंत्र रचा। सोचा कबीर निर्धन व्यक्ति है। इसके नाम से पत्र भेज दो की कबीर जी काशी में बहुत बड़े सेठ हैं। वह काशी शहर में तीन दिन का धर्म भोजन-भण्डारा करेंगे। सर्व साधु संत आमंत्रित हैं। पूरे हिंदुस्तान में झूठी चिट्ठियां भेजकर खूब प्रचार करवा दिया की प्रतिदिन प्रत्येक भोजन करने वाले को एक दोहर (कीमती कम्बल) और एक सोने की मोहर दक्षिणा में देगें। एक महीने पहले ही प्रचार शुरू कर दिया और देखते ही देखते पूरे हिंदुस्तान से 18 लाख भक्त तथा संत व अन्य व्यक्ति लंगर खाने काशी में चौपड़ के बाजार में आकर इकट्ठे हो गए। जब संत रविदास जी को यह खबर लगी तो कबीर जी से पूरा हाल बयां किया। परमात्मा कबीर जी तो जानीजान थे। फिर भी अभिनय कर रहे थे। रविदास जी से कहा कि रविदास जी झोपड़ी के भीतर आ जाओ और कुंडी लगा लो हम सुबह होते ही यहां से निकल लेंगें इस बार तो हमारे ऊपर बड़ा जुल्म कर दिया है इन लोगों ने।
एक तरफ तो परमेश्वर कबीर बंदीछोड़ जी अपनी झोपड़ी में बैठे थे और दूसरी तरफ परमेश्वर कबीर जी अपनी राजधानी सतलोक में पहुँचे। वहां से केशव नाम के बंजारे का रूप धारण करके कबीर परमात्मा 9 लाख बैलों के ऊपर बोरे (थैले) रखकर उनमें पका-पकाया भोजन (खीर, पूड़ी, हलुवा, लड्डू, जलेबी, कचौरी, पकोडी, समोसे, रोटी दाल, चावल, सब्जी आदि) भरकर सतलोक से काशी नगर की ओर चल पड़े। सतलोक की हंस आत्माएं ही 9 लाख बैल बनकर आए थे। केशव रूप में कबीर परमात्मा एक तंबू में डेरा देकर बैठ गए और भंडारा शुरू हुआ। बेईमान संत तो दिन में चार-चार बार भोजन करके चारों बार दोहर तथा मोहर ले रहे थे। कुछ सूखा सीधा (चावल, खाण्ड, घी, दाल, आटा) भी ले रहे थे।
इस भंडारे की खास बात यह थी कि परमेश्वर के भोग लगे पवित्र भंडारे प्रसाद को खाने से कोटि-कोटि पापनाश हो जाते हैं जिसका प्रमाण गीता अध्याय-3 श्लोक-13 में है।
धर्म यज्ञ बहुत श्रेष्ठ होती हैं भोजन भंडारा करवाना धर्म यज्ञ में आता है भंडारे से वर्षा होती है वर्षा से धन-धान्य की उपज होती है जिससे सभी जीवों का पेट भरता और पुण्य मिलता है।
ऐसे पुण्य के कार्य वर्तमान में जगतगुरु तत्वदर्शी संत रामपाल की महाराज जी द्वारा किए जा रहे हैं उनके सानिध्य में 10 जगहों पर तीन दिवसीय विशाल भंडारे का आयोजन किया जा रहा है इस भंडारे में शुद्ध देशी घी के पकवान जैसे रोटी, पूरी, सब्जी, लड्डू, जलेबी, हलवा, बूंदी आदि–आदि बनाए जाते हैं। जो पूर्ण परमेश्वर को भोग लगाने के पश्चात भंडारा करवाया जाता है। इस समागम में लाखों की संख्या में देश विदेश से आए श्रद्धालुों का तांता लगा रहा रहता है। परमेश्वर की अमर वाणी का अखंड पाठ, निःशुल्क नामदीक्षा चौबीसों घंटे चलती रहेगी। जिसमें आप सभी सादर आमंत्रित हैं।
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[11/21, 7:03 AM] Arun Das Patil: 🦋परमेश्वर कबीर बंदीछोड़ जी का काशी का दिव्य भंडारा🦋
परमेश्वर कबीर बंदीछोड़ जी, जिन्हें आम समाज एक कवि, संत मानता है, कलयुग में भारत के काशी शहर के लहरतारा तालाब में ज्येष्ठ मास शुक्ल पूर्णमासी विक्रम संवत 1455 (सन् 1398) सुबह ब्रह्म मुहूर्त में कमल के फूल पर शिशु रूप में प्रकट हुए थे, वे 120 वर्ष तक रहे और अंत समय मगहर से सशरीर सतलोक गमन किया।
“गरीब, अनंत कोटि ब्रह्मांड में, बन्दी छोड़ कहाय।
सो तौ एक कबीर हैं, जननी जन्या न माय।।”
परमेश्वर कबीर बंदीछोड़ जी, अज्ञान में सोए मानव समाज को जगाने के लिए और पूर्ण मोक्ष प्रदान करने के लिए, हर युग में लीला करने आते हैं और अपनी महिमा का ज्ञान स्वयं ही कराते हैं। परमेश्वर कबीर बंदीछोड़ जी की बढ़ती महिमा को देखकर उस समय के धर्मगुरु उनसे ईर्ष्या करने लगते हैं।
परमेश्वर कबीर बंदीछोड़ जी के आशीर्वा�� मात्र से दिल्ली के बादशाह सिकंदर लोधी का जलन का रोग ठीक हो गया था और सिकंदर लोधी कबीर परमेश्वर के शिष्य बन गए थे जिससे मुस्लिम पीर शेखतकी आग बबूला हो गया।
“झूठा प्रचार किया किसी मूरख ने, कबीर करे भंडारा। दो रोटी का साधन ना था, वहां भेख जुड़ा अति भारा।।
बण आया केशो बणजारा, ये होता हिमाती है।”
परमेश्वर कबीर बंदीछोड़ जी को बदनाम करने के उद्देश्य से पाखण्डी पंडितों, काजी, मौलवियों ने शेखतकी के नेतृत्व में षड्यंत्र करके कबीर परमात्मा के नाम से झूठी चिट्ठी बंटवा दी कि कबीर जी विशाल भंडारा कर रहे हैं, साथ में सोने का सिक्का तथा रियासती कम्बल भी बांटेंगे।
कबीर गोसांई, रसोई दीन्हीं, आपै केशो बनि करि आये।
परानंदनी जा कै द्वारै, बहु बिधि भेष छिकाये।।
परमेश्वर कबीर बंदीछोड़ जी ने दो रूप में अभिनय किया था, एक रूप में तो गरीब जुलाहे के रूप में अपनी कुटिया में बैठे रहे व दूसरे रूप में अपने सतलोक से 9 लाख बैलों पर थैले रखकर पका-पकाया सामान तथा सूखा सामान तथा दोहर-मोहर भरकर ले आए। तीन दिन तक लगभग 18 लाख व्यक्तियों को सदाव्रत भंडारे से नवाज़ा, तथा 8 पहर (24 घंटे) तक सत्संग कर सतज्ञान समझाया, जिसे सुनकर कई लाख साधु, संतो ने नाम दीक्षा ली व अपना कल्याण करवाया।
सकल संप्रदा त्रिपती, तीन दिन जौंनार।
गरीबदास षट दर्शनं, सीधे गंज अपार।।
नौलख बोडी भरी विश्म्भर, दिया कबीर भण्डारा।
धरती उपर तम्बू ताने, चौपड़ के बैजारा।।
परमेश्वर कबीर बंदीछोड़ जी ने काशी में तीन दिन का विशाल भंडारा किया (जग जौनार)। नौ लाख बैलों पर बोरे रखकर सतलोक से भण्डारे की सामग्री आयी।
केशव और कबीर जित, मिलत भये तहां एक।
दास गरीब कबीर हरी, धरते नाना भेख।।
बनजारे और बैल सब, लाए थे भर म��ल।
गरीबदास सत्यलोक कूं, चले गये ततकाल।।
भण्डारे के बाद केशव जी कबीर साहेब में समा गये। सर्व सेवादार बंजारे और बैल सतलोक चले गये। परमेश्वर कबीर बंदीछोड़ जी अनेकों लीलाएं करते हैं।
जब भंडारे को देखकर परमेश्वर कबीर बंदीछोड़ जी की जय-जयकार होने लगी तो शेख तकी ने उसे महौछा कहा।
संत गरीबदास जी ने उस भण्डारे के विषय में जिसकी जैसी विचारधारा थी, वह बताई-
गरीब, कोई कहे जग जौनार करी है, कोई कहे महौछा। बड़े बड़ाई कर्या करें, गाली काढ़ै औछा।।
भावार्थ है कि जो भले पुरूष थे, वे तो बड़ाई कर रहे थे कि जग जौनार करी है। जो विरोधी थे, ईर्ष्यावश कह रहे थे कि क्या खाक भण्डारा किया है, यह तो महौछा-सा किया है। जब शेखतकी ने ये वचन कहे तो गूंगा तथा बहरा हो गया, शेष जीवन पशु की तरह जीया। अन्य के लिए उदाहरण बना कि अपनी ताकत का दुरूपयोग करना अपराध होता है, उसका भयंकर फल भोगना पड़ता है।
केशव आन भया बनजारा षट्दल किन्ही हाँस है।
परमेश्वर कबीर बंदीछोड़ जी स्वयं आकर (आन) केशव बनजारा बने। षट्दल कहते हैं गिरी-पुरी, नागा-नाथ, वैष्णों, सन्यासी, शैव आदि छः पंथों के व्यक्तियों को जिन्होंने हँसी-मजाक करके चिट्ठी डाली थी।
परमात्मा ने यह सिद्ध किया है कि भक्त सच्चे दिल से मेरे पर विश्वास करके चलता है तो मैं उसकी ऐसे सहायता करता हूँ।
जब परमेश्वर कबीर बंदीछोड़ जी कुटिया से बाहर हाथी पर बैठने के लिए आए तो आकाश से फूल बरसने लगे और कबीर परमात्मा के सिर के ऊपर अपने आप मनोहर मुकुट आकर सुशोभित हो गया और केशो बंजारा के टेन्ट में आकर विराजमान हो गए। जहाँ अठारह लाख व्यक्ति ठहरे थे। भंडारे वाले स्थान पर सभी परमेश्वर कबीर बंदीछोड़ जी की जय बोल रहे थे और कह रहे थे जय हो कबीर सेठ की, जैसा लिखा था वैसा ही भंडारा कराया है। ऐसी व्यवस्था कहीं देखी ना सुनी। ऐसा कार्य सिर्फ पूर्ण परमेश्वर ही कर सकते हैं। भोजन खाने का स्थान लंबा-चौड़ा था।
परमेश्वर कबीर बंदीछोड़ जी को देखने के लिए सब साधु-संत आकर चारों ओर बैठ गए । परमात्मा कबीर जी ने अपने केशव रूप के साथ (आठ पहर) चौबीस घंटे लगातार आध्यात्मिक गोष्ठी की, तत्वज्ञान सुनाया। लगभग दस लाख उन भ्रमित साधुओं के शिष्यों ने कबीर जी से दीक्षा ली और जीवन सफल किया।
‘‘एक अन्य करिश्मा जो उस भण्डारे में हुआ’’ वह जीमनवार (लंगर) तीन दिन तक चला था। दिन में प्रत्येक व्यक्ति कम से कम दो बार भोजन खाता था। कुछ तो तीन-चार बार भी खाते थे क्योंकि प्रत्येक भोजन के पश्चात् दक्षिणा में एक मोहर (10 ग्राम सोना) और एक दोहर (कीमती सूती शाॅल) दिया जा रहा था। इस लालच में बार-बार भोजन खाते थे। तीन दिन तक 18 लाख व्यक्ति शौच तथा पेशाब करके काशी के चारों ओर ढे़र लगा देते। काशी को सड़ा देते। काशी निवासियों तथा उन 18 लाख अतिथियों तथा एक लाख सेवादार जो सतलोक से आए थे। उस गंद का ढ़ेर लग जाता, श्वांस लेना दूभर हो जाता, परंतु ऐसा महसूस ही नहीं हुआ। सब दिन में दो-तीन बार भोजन खा रहे थे, परंतु शौच एक बार भी नहीं जा रहे थे, न पेशाब कर रहे थे।
सतलोक से आए सेवकों को समस्या बताई तो उन्होंने कहा कि यह भोजन ऐसी जड़ी-बूटियां डालकर बन��या है जिनसे यह शरीर में ही समा जाएगा। हम तो प्रतिदिन यही भोजन अपने लंगर में बनाते हैं, यही खाते हैं। हम कभी शौच नहीं जाते तथा न पेशाब करते हैं। आप निश्चिंत रहो।
वर्तमान में जगतगुरु तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज के सानिध्य में ऐसे अनेक धार्मिक भंडारों का आयोजन किया जाता रहा है। आगामी 26-28 नवंबर को "दिव्य धर्म भंडारे" का आयोजन किया जा रहा है। 10 आश्रमों में तीन दिवसीय भण्डारे के साथ आदरणीय गरीबदास जी महाराज की वाणी का अखंड पाठ, सत्संग, दहेजमुक्त विवाह, रक्तदान, देहदान शिविर का भी आयोजन होगा। इसके अतिरिक्त उनके सभी आश्रमों में वर्षभर (365 दिन) सदाव्रत भंडारा भी चलता है।
धर्म यज्ञ बहुत श्रेष्ठ होती है। भोजन भंडारा करवाना धर्म यज्ञ में आता है। भंडारे से वर्षा होती है। पर्यावरण-वातावरण में भी बड़े बदलाव लाता है, वर्षा से धन-धान्य की उपज होती है जिससे सभी जीवों का पेट भरता है और पुण्य मिलता है।धर्म भंडारा करोड़ों पापों और रोगों को नष्ट करने में सक्षम है।
सर्वप्रथम पूर्ण परमात्मा को हलवा, बूंदी, जलेबी, रोटी, पूरी, सब्जी आदि-आदि पकवान का भोग लगाकर, जिससे भोजन पवित्र प्रसाद बन जाता है, भंडारा करवाया जाता है।
परमेश्वर के भोग लगे पवित्र भंडारे प्रसाद को खाने से कोटि-कोटि पाप नाश हो जाते हैं (गीता अ-3, श्लोक-13) क्योंकि सत्पुरुष पूर्ण परमात्मा को भोग लगाकर संगत में वितरित किया जाता है।
पूर्ण संत को दिए दान, धर्म भंडारे से करोडों पाप व दुःख नाश होते हैं। बहुत पुण्य मिलता है तथा पितरों की भी मुक्ति हो जाती है।
भंडारा सभी देशवासियों के लिए पूर्णतया निःशुल्क है और सभी के लिए सार्वजनिक खुला भंडारा है। आप भी इस भंडारे में अवश्य आइए और अपना कल्याण करवाइए।
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26-27-28 नवंबर 2023
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[11/21, 7:03 AM] Arun Das Patil: 🌈काशी का अद्भुत भंडारा🌈
परमेश्वर कबीर बंदीछोड़ जी बहुत सी लीलाएं करके चले गए। कबीर साहेब की लीलाओं का जिक्र कबीर सागर में भी मिलता है। परमेश्वर कबीर बंदीछोड़ जी के 64 लाख शिष्य थे।
शेखतकी सब मुसलमानों का मुख्य पीर (गुरू) था जो परमात्मा कबीर जी से पहले से ईर्ष्या रखता था। सर्व ब्राह्मणों तथा मुल्ला-काजियों व शेखतकी ने षड़यंत्र के तहत एक योजना बनाई कि कबीर निर्धन व्यक्ति है। इसके नाम से एक झूठा पत्र भेज दो कि कबीर जी काशी में बहुत बड़े सेठ हैं। उनका पूरा पता है कबीर पुत्र नूरअली अंसारी, जुलाहों वाली कॉलोनी, काशी शहर। कबीर जी तीन दिन का धर्म भोजन-भण्डारा करेंगे। सर्व साधु संत आमंत्रित हैं। और परमेश्वर कबीर बंदीछोड़ जी के नाम पर झूठी चिठ्ठी मानव समाज में भेज दी।
और इसी के चलते प्रतिदिन प्रत्येक भोजन करने वाले को एक दोहर (जो उस समय का सबसे कीमती कम्बल के स्थान पर माना जाता था), एक मोहर (10 ग्राम स्वर्ण से बनी गोलाकार की मोहर) दक्षिणा में देगें। प्रतिदिन जो जितनी बार भी भोजन करेगा, कबीर जी उसको उतनी बार ही दोहर तथा मोहर दान करेगे। भोजन में लड्डू, जलेबी, हलवा, खीर, दही बड़े, माल पूडे़, रसगुल्ले आदि-2 सब मिष्ठान खाने को मिलेंगे। सुखा सीधा (आटा, चावल, दाल आदि सूखे जो बिना पकाए हुए, घी-बूरा) भी ��िया जाएगा।
परमात्मा कबीर साहेब जी अपना दूसरा रूप बनाकर सतलोक पहुँचे वहा से पका पकाया भोजन नौ लाख बेलो पर रखकर काशी उस पावन धरती पर उतरे जहाँ विशाल भंडारा शुरू किया जा रहा था कबीर साहेब जी अपना दूसरा रूप बनाकर केशो नाम रखकर एक टेन्ट में विराजमान हो गए और भंडारा शुरू कर दिया एक दिन के 18 लाख व्यक्तियों को वह मोहन भोजन करव���या (जिसमे भोजन में लड्डू, जलेबी, हलवा, खीर, दही बड़े, माल पूडे़, रसगुल्ले आदि-2)और प्रतिदिन प्रत्येक भोजन करने वाले को एक दोहर (जो उस समय का सबसे कीमती कम्बल के स्थान पर माना जाता था), एक मोहर (10 ग्राम स्वर्ण से बनी गोलाकार की मोहर) दक्षिणा में दी जा रही थी।
ऐसे भण्डारे करने से पाँचों यज्ञ पूरी होती है। जिसे
प्राकृतिक संतुलन बना रहता है। और समय-समय पर बारिश होती है पृथ्वी पर हाहाकार समाप्त होती है। प्रत्येक व्यक्ति सुखी जीवन जीता है।
धर्म यज्ञ बहुत श्रेष्ठ होती है। भोजन भंडारा करवाना धर्म यज्ञ में आता है। भंडारे से वर्षा होती है। वर्षा से धन-धान्य की उपज होती है जिससे सभी जीवों का पेट भरता है और पुण्य मिलता है।
सर्वप्रथम पूर्ण परमात्मा को भोग लगाकर भोजन भंडारा करवाया जाना जिससे भोजन पवित्र प्रसाद बन जाता है।
परमेश्वर के भोग लगे पवित्र भंडारे प्रसाद को खाने से कोटि-कोटि पाप नाश हो जाते है।प्रमाण:- (गीता अ-3, श्लोक-13)।
आज वर्तमान समय में जगतगुरु तत्वदर्शी संत रामपाल की महाराज ऐसे विशाल भंडारे का आयोजन कर रहे हैं जिसमें सभी धार्मिक अनुष्ठान पांचों यज्ञ का भी प्रावधान किया जाएगा।
अमूमन देखा गया है कि अन्य संतो के भंडारों में पूडी, सब्जी खिला कर आने वाले श्रद्धालुओं को फारिग किया जाता है वहीं संत रामपाल जी महाराज जो विशाल भंडारे आयोजित करते है उसमें देशी घी से निर्मित लड्डू जलेबी व अन्य पकवान खिलाये जाते है जिसके लिए कोई पर्ची नहीं काटी जाती साथ ही जाते समय प्रसाद घर के लिए दिया जाता है यह कोई आम बात नहीं क्योंकि उनके प्रत्येक भंडारे में आने वाले श्रद्धालुओं की संख्या लाखों में होती है और यह सिर्फ एक जगह ही नहीं की जगहों पर एकसाथ आयोजित होता है ।
आगामी 26-28 नवम्बर को जगतगुरु तत्वदर्शी संत रामपाल की महाराज जी के सानिध्य में विशाल भंडारे का आयोजन किया जा रहा है। यह समागम 10 जगहों पर आयोजित किया है जिसमें पूरे विश्व को सादर निमंत्रण है।
यह सिर्फ पूर्ण संत ही कर सकता है।
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26-27-28 नवंबर 2023
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[11/21, 7:03 AM] Arun Das Patil: *🔮काशी का विशाल और अद्भुत निशुल्क भंडारा🔮*
वह परमेश्वर कबीर बंदीछोड़ जी जो पूर्ण परमात्मा है। आज से 626 वर्ष पहले भारत की इस पवित्र धरती काशी नगरी में आये और अनेकों आश्चर्यजनक तथा अद्भुत लीलाएं करके वापस अपने लोक को चले गए। उस समय कबीर परमेश्वर के 64 लाख शिष्य थे।
उस समय मुसलमानों का धार्मिक गुरु शेखतकी पीर था। जो परमेश्वर कबीर बंदीछोड़ जी के सत्य ज्ञान और उनकी बढ़ती महिमा के कारण कबीर परमेश्वर से बहुत ईष्या करता था। और ईर्ष्यावश शेखतकी ने परमेश्वर कबीर बंदीछोड़ जी को नीचा दिखाने तथा जान से मारने के उद्देश्य से बहुत कोशिश की थी। जिसे 52 बदमाशी कहते हैं। एक बार शेखतकी ने सर्व ब्राह्मणों तथा मुल्ला-काजीयों, मुसलमानों को साथ लेकर एक षड्यंत्र रचा। कबीर परमेश्वर कपड़ा बुनने का कार्य करते थे। जिसमें ज्यादा आमदनी नहीं होती थी। इसलिए शेखतकी ने सोचा कि कबीर साहेब निर्धन व्यक्ति हैं। इसके नाम से चारों तरफ दूर दूर तक एक झूठी चिठ्ठी भेज दो कि, कबीर जी काशी में बहुत बड़ा भंडारा कर रहे हैं। जिसमें सात प्रकार की मिठाई (हलवा, खीर, पूरी, लड्डू, जलेबी, दहीबड़े, मालपूडे आदि बनेगी। और
प्रत्येक बार भोजन करने पर भोजन के बाद एक दोहर (उस समय का सबसे किमती कंबल) और एक मोहर (10 ग्राम का सोने का सिक्का) दक्षिणा में देगा। साथ ही जो व्यक्ति भंडारे में नहीं आ सकते उनके लिए सूखा सीधा (सूखा सामान आटा, चावल, दाल, घी- बूरा)आदि दिया जाएगा। उनका पूरा पता है - कबीर पुत्र नूरअली अंसारी, जुलाहों वाली कॉलोनी, काशी शहर। भंडारे में सर्व साधु संत आमंत्रित हैं।
पत्र में दी गई तिथि के दिन निश्चित समय पर काशी में 18 लाख लोग एकत्रित हो गए। साधु, संत, नगरवासी आदि। उसी समय कबीर परमेश्वर ने अपना दुसरा रुप बनाकर सतलोक पहुंचे और वहां से पका- पकाया भोजन नौ लाख बेलो पर रखकर स्वयं केशो रुप बनाकर एक पलक में काशी में उतरे। काशी में तंबू (टेंट) लगाए और पांच रंग के झंडे लगाए। और तीन दिन तक भंडारा किया। प्रत्येक दिन 18 लाख लोग भोजन कर रहे थे। भंडारे में कोई भी खाना खाओ, चिठ्ठी वाले भी और बिना चिठ्ठी वाले भी। दिन में जब चाहे तब भोजन खाओ। कोई रोक टोक नहीं थी। उसी भंडारे में कबीर परमेश्वर और उनके दुसरे रुप केशव बंजारे ने आपस में सत्संग के दौरान ज्ञान चर्चा करके लोगों को शास्त्र अनुसार सत्य ज्ञान से परिचित कराया। हज़ारों लोगों ने कबीर परमेश्वर से दीक्षा ली।
"भंडारे में एक करिश्मा"
तीन दिन के भंडारे में प्रत्येक दिन 18 लाख लोग भोजन कर रहे थे। दिन में प्रत्येक व्यक्ति कम से कम दो बार और कुछ तीन से चार बार भी भोजन खा रहे थे, क्योंकि प्रत्येक भोजन के बाद एक कंबल और सोने का सिक्का दिया जा रहा था, इस लालच में। तीन दिन तक 18 लाख लोग शौच और पेशाब करके काशी के चारों ओर गंदगी का ढेर लगा देते। श्वास लेना दूभर हो जाता। परंतु ऐसा नहीं हुआ। भोजन इतना स्वादिष्ट था कि लोग पहले से दुगना भोजन खा रहे थे। लेकिन पेशाब और शौच एक बार भी नहीं जा रहे थे। तब उन्हें शंका हुई कि, न तो पेट भारी है और भूख भी लग रही है। सतलोक से आए सेवकों को जब समस्या बताई तो सेवकों ने कहा कि यह भोजन जड़ी बूटीयां डाल कर बनाया है। जिससे यह शरीर में ही समा जाएगा। लोग लैट्रिन के लिए जंगल में गए और बैठे तो गुदा से वायु निकली। वायु से ऐसी सुगंध निकली जैसे केवडे का जल छिड़का हो। यह करिश्मा देखकर लोगों को सेवकों की बातों पर विश्वास हुआ।
ऐसी धर्म यज्ञ भंडारे करने से पांचों यज्ञ पूरी होती है, जिससे प्राकृतिक संतुलन बना रहता है। समय पर वर्षा होती है। धन- धान्य की अच्छी उपज होती है।
जिससे प्रत्येक व्यक्ति सुखी जीवन व्यतीत करता है। सभी जीवों का पेट भरता है। ऐसी धर्म यज्ञ में सर्व प्रथम पूर्ण परमात्मा को भोग लगाया जाता है, जिससे भोजन पवित्र प्रसाद बन जाता है। इसके बाद भोजन कराया जाता है। गीता अध्याय 3 श्लोक 13 के अनुसार परमेश्वर के भोग लगे भोजन प्रसाद को खाने से करोड़ों पाप नाश होते हैं।
वर्तमान में जगतगुरु तत्वदर्शी संत रामपाल की महाराज जी ऐसे ही विशाल भंडारे कर रहे हैं। जिसमें सभी धार्मिक अनुष्ठान, पांचों यज्ञ आदि भी पूरे विधि विधान के साथ शास्त्र अनूकूल किया जाता है।
अक्सर देखा जाता है कि अन्य संतों के भंडारे में सब्जी, पूरी खिलाया जाता है। वो भी ��मय पर नहीं मिलता और भंडारे में टूट पड जाती है। भोजन तक खत्म हो जाता है। और भंडारे से कई दिनों पहले पर्चीयां काटी जाती है। वहीं दूसरी ओर परम पूज्य संत रामपाल जी महाराज द्वारा आयोजित किए जाने वाले विशाल भंडारे में भंडारा पूर्णतया निशुल्क और सभी देशवासियों के लिए आमंत्रित होता है। सभी के लिए सार्वजनिक ख��ला भंडारा होता है। वहीं भंडारे में देशी घी के लड्डू, जलेबी, हलवा, पूरी के साथ अन्य पकवान खिलाये जाते हैं। जिसके लिए किसी तरह की पर्ची नहीं काटी जाती। और विशेष बात भंडारे में भोजन करने के बाद घर जाते समय भोजन प्रसाद भी अतिरिक्त दिया जाता है। भंडारे में आने वाले श्रद्धालुओं की संख्या हजारों में नहीं बल्कि लाखों में होती है। देश भर में अनेकों जगह पर एक साथ ऐसे विशाल भंडारे का आयोजन किया जाता है।
ऐसा ही विशाल भंडारा एक बार फिर से आगामी 26-28 नवंबर को संत रामपाल जी महाराज जी के सानिध्य में होने जा रहा है। जो नेपाल समेत 10 स्थानों पर आयोजित किया जाएगा। जिसमें देश ही नहीं बल्कि पूरे विश्व को सादर निमंत्रण है। सभी इस ऐतिहासिक भंडारे में जरुर पधारें।
ऐसा अद्भुत भंडारा सिर्फ पूर्ण संत ही कर सकता है।
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[11/21, 7:03 AM] Arun Das Patil: 🎨परमेश्वर कबीर साहेब जी का काशी का दिव्य भंडारा🎨
हमारे सभी धार्मिक ग्रन्थों व शास्त्रों में उस एक प्रभु/मालिक/रब/खुदा/अल्लाह/ राम/साहेब/गोड/परमेश्वर की प्रत्यक्ष नाम लिख कर महिमा गाई है। वह एक मालिक/प्रभु कबीर साहेब हैं जो सतलोक में मानव सदृश स्वरूप में आकार में रहता है।
परमेश्वर कबीर बंदीछोड़ जी जिन्हें जन समुदाय एक जुलाहा कवि,संत मात्र मानता है वे वास्तव में अनंत ब्रह्मांडों के स्वामी, सबके परम पिता हैं।
परमेश्वर कबीर बंदीछोड़ जी चारों युगों में अपने तत्वज्ञान की अलख जगाने, हम तुच्छ जीवों को सत भक्ति प्रदान कर पूर्ण मोक्ष दिलाने के लिए, पृथ्वी पर प्रकट होते रहते हैं।
कविर्देव (कबीर परमेश्वर) तत्वज्ञान लेकर संसार में आते हैं वह सर्वशक्तिमान हैं तथा काल (ब्रह्म) के कर्म रूपी किले को तोड़ने वाले हैं वह सर्व सुखदाता है तथा सर्व के पूजा करने योग्य हैं।
जिस समय पूर्ण परमात्मा प्रकट होते हैं उस समय सर्व ऋषि व सन्त जन शास्त्र विधि त्याग कर मनमाना आचरण अर्थात् पूजा द्वारा सर्व भक्त समाज को मार्ग दर्शन कर रहे होते हैं। तब अपने तत्वज्ञान अर्थात् स्वस्थ ज्ञान का संदेशवाहक बन कर स्वयं ही कविर्देव अर्थात् कबीर प्रभु ही आते हैं।
वर्तमान कलयुग में 626 वर्ष पूर्व परमेश्वर कबीर बंदीछोड़ जी जब लीला करने आए तो उनके तत्वज्ञान का डंका हर और बजने लगा जिससे उस समय के धर्मगुरु और पीर उनसे जलने लगे और उन को नीचा दिखाने के लिए साजिश रचने लगे।
जब सब षड़यंत्र फैल हो गए तो सब काशी के पंडित, काजी-मुल्लाओं ने सभा करके निर्णय लिया कि कबीर एक निर्धन जुलाहा है। हम इसके नाम से पूरे हिन्दुस्तान में चिट्ठी भिजवा देते हैं कि कबीर ��ेठ, पुत्र नीरू, जुलाहा कालोनी, बनारस वाला तीन दिन का भोजन-भण्डारा (धर्म यज्ञ) करने जा रहा है। सब अखाड़े वाले बाबा, साधु-संत आमंत्रित हैं। साथ में अपने सर्व शिष्यों को अवश्य लाएं। तीनों दिन प्रत्येक भोजन के पश्चात् प्रत्येक साधु-संत, ब्राह्मण, काजी-मुल्ला, पीर-पैगम्बर, औलिया को एक दोहर, एक मोहर तथा जो कोई सूखा-सीधा (आटा, मिठाई, घी, दाल, चावल) भी लेना चाहे तो वह भी दिया जाएगा।
सर्वसम्मति से यह निर्णय लेकर पत्र भिजवा दिए, दिन निश्चित कर दिए। निश्चित दिन को 18 लाख साधु, संत, ब्राह्मण, मंडलेश्वर अपने-अपने सब शिष्यों सहित पहुंच गए।
परमेश्वर कबीर बंदीछोड़ जी ने दो रूप में अभिनय किया एक रूप में अपनी कुटिया में बैठे रहे दूसरे रूप में अपने सतलोक से 9 लाख बैलों पर रखकर पका- पकाया सामान तथा सूखा सामान तथा दोहर व मोहर भरकर ले आए ।
काशी के बाजार में टैंट लगाकर सारा सामान टैंटों में रख दिया और कुछ सेवादार भी सतलोक से साथ लाए थे जो सब व्यवस्था संभाल रहे थे, भंडारा शुरू कर दिया 3 दिन तक चिट्ठी में लिखे अनुसार सब दक्षिणा दी गई। भोजन भंडारे में दिल्ली का राजा सिकंदर लोदी भी आया था तथा उसका निजी पीर शेखतकी भी आया था।
उसका अनुमान था कि अबकी बार कबीर काशी से भाग जाएगा और भंडारे में पहुंचे साधु कबीर को गालियां दे रहे होंगे। राजा भी कबीर जी का प्रशंसक नहीं रहेगा परंतु जब भंडारे के स्थान पर पहुंचे तो देखा लंगर चल रहा था, सब दक्षिणा दी जा रही थी, सब कबीर सेठ की जय-जयकार कर रहे थे ।
शेख तकी चाहता था परमेश्वर कबीर बंदीछोड़ जी सिकंदर लोदी के दिल से उतरे और मेरी पूर्ण महिमा बने। विरोधियों ने तो परमेश्वर का बुरा करना चाहा था परंतु परमात्मा को भक्त मिल गए अपना ज्ञान सुनाने के लिए, भक्तों को सतलोक से आया हुआ उत्तम भोजन कराया जिसके खाने से अच्छे विचार उत्पन्न हुए उन्होंने परमेश्वर का तत्वज्ञान समझा तथा कबीर जी ने उनको वर्षों का खर्चा भी दक्षिणा रूप में दे दिया।
सब भंडारा पूरा करके सामान समेत जिन बैलों पर रख कर आए थे, वे सब चल पड़े। जब वापस गए तो देखा कि वे पृथ्वी से ऊपर चल रहे थे पृथ्वी पर पैर नहीं रख रहे थे और कुछ देर बाद देखा तो आस-पास तथा दूर तक न बैल दिखाई दिये ना बंजारे सेवक। इस पर सिकंदर लोदी ने कबीर परमेश्वर से पूछा बंजारे और बैल दिखाई नहीं दे रहे, कहां गए ? कबीर परमेश्वर ने उत्तर दिया जिस परमात्मा के लोक से आए थे उसी में चले गए और केशव वाला स्वरूप देखते-देखते कबीर जी में समा गया यह सब देखकर शेख तकी जल-भुन रहा था।
वर्तमान में जगतगुरु तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज के सानिध्य में ऐसे अनेक धार्मिक भंडारों का आयोजन किया जाता रहा है। आगामी 26-28 नवंबर को "दिव्य धर्म भंडारे " का आयोजन किया जा रहा है। नेपाल समेत 10 आश्रमों में तीन दिवसीय भंडारा होगा व उनके सभी आश्रमों में वर्षभर (365 दिन) सदाव्रत भंडारे चलते रहते हैं।
धर्म यज्ञ करने से वर्षा होती है, धन-धान्य की उपज होती है जिससे सभी जीवों का पेट भरता है, पर्यावरण-वातावरण में भी बड़े बदलाव लाता है, धर्म यज्ञ से पुण्य मिलता है, धर्म भंडारा करोड़ों पापों और रोगों को नष्ट करने में सक्षम है।
परमेश्वर के ��ोग लगे पवित्र भंडारे प्रसाद को खाने से कोटि-कोटि पाप नाश हो जाते हैं (गीता अ-3, श्लोक-13) क्योंकि सत्पुरुष पूर्ण परमात्मा को भोग लगाकर संगत में वितरित किया जाता है।
पूर्ण संत को दिए दान, धर्म भंडारे से करोडों पाप व दुःख नाश होते हैं व बहुत पुण्य मिलता है तथा पितरों की भी मुक्ति हो जाती है।
भंडारा सभी देशवासियों के लिए पूर्णतया निःशुल्क है और सभी के लिए सार्वजनिक खुला भंडारा है। आप भी इस भंडारे में अवश्य आइए और अपना कल्याण करवाइए।
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#दिव्य_धर्म_यज्ञ_दिवस
26-27-28 नवंबर 2023
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[11/21, 7:03 AM] Arun Das Patil: *🪁काशी का अद्भुत, अकल्पनीय, दिव्य भंडारा🪁*
परमेश्वर कबीर बंदीछोड़ जी लगभग आज से 626 वर्ष पहले इस धरती पर आये और बहुत सी लीलाएं करके चले गए। कबीर साहेब की लीलाओं का जिक्र कबीर सागर में भी मिलता है। परमेश्वर कबीर बंदीछोड़ जी के 64 लाख शिष्य थे, यह अपने आप में एक बहुत बड़ी बात है।
परमेश्वर कबीर बंदीछोड़ जी ने यथार्थ भक्ति मार्ग बताया, जिसको अपनाकर भक्तों को अविश्वसनीय लाभ प्राप्त हुए । कबीर साहेब ने एक साधारण जुलाहे की भूमिका की और जो भी पैसा बचता तो उसको धर्म भंडारे में लगा दिया करते । भोजन भंडारा धर्म यज्ञ में आता है।
एक बार शेखतकी जो कि कबीर साहेब से ईर्ष्या करता था। वह परमात्मा को स्वीकार नहीं करना चाहता था साथ ही अलग अलग प्रकार से नीचा दिखाने की योजनाएं बनाता रहता था। इस बात का फायदा काशी के नकली पंडितों ने भी उठाना चाहा क्योंकि कबीर साहेब के सत्य ज्ञान से उनकी ढोंग की दुकान बंद हो रही थी। सबने मिलकर झूठे पत्र लिखे और सिकन्दर लोदी समेत 18 लाख लोगों को भंडारे में आमंत्रित किया, चिट्ठी में यह भी लिखा कि प्रत्येक भोजन करने वाले को एक दोहर और एक स्वर्ण मोहर भी मिलेगी। ऐसा उन्होंने यह सोचकर किया कि एक जुलाहा इतने लोगों को कैसे भंडार कराएगा। किन्तु जुलाहे की भूमिका करते हुए पूर्ण परमात्मा कबीर साहेब जी ने 18 लाख साधु संतों लोगों को भोजन कराया। सारा भोजन भंडारा सतलोक से लाये तथा प्रत्येक भोजन करने वाले को एक दोहर और एक मोहर दी एवं सूखा सीधा भी दिया। वह अलौकिक भंडारा लगातार तीन दिनों तक चलता रहा।
उन्होंने अपनी जुलाहे की भूमिका करते हुए यह बताया कि अगर आप भी इस तरह से परमात्मा पर विश्वास करके भक्ति करोगे तो परमात्मा आपके लिए कुछ भी कर सकता है।
कबीर, कल्पे कारण कौन है, कर सेवा निष्काम।
मन इच्छा फल देऊंगा, जब पड़े मेरे से काम।।
आज हमारे बीच परमेश्वर कबीर बंदीछोड़ जी के अवतार जगतगुरु तत्वदर्शी संत रामपाल की महाराज आये हुए हैं जो वही चमत्कार करके सुख दे रहे हैं जैसे परमेश्वर कबीर देते थे। पूर्ण तत्वदर्शी संत से नामदीक्षा शारीरिक, मानसिक और आर्थिक लाभ तो देती ही है साथ ही पूर्ण मोक्ष भी देती है।
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[11/21, 7:03 AM] Arun Das Patil: *🥥अद्वितीय अद्भुत दिव्य धर्म यज्ञ🥥*
जब जब धर्म की हानि होती है तथा अधर्म की वृद्धि होती है तब तब परमात्मा स्वयं आते है या अपने कृपापात्र संत को भेजते है। तथा पुनः धर्म की स्थापना करते है।
मांझी मर्द कबीर है, जगत करै उपहास।
कैसौ बनजारा भया, भक्त बढ़ाया दास।।
626 वर्ष पूर्ण जातिवाद, हिन्दू मुस्लिम विवाद तथा पाखण्डवाद चरम पर था। कबीर साहेब ने तत्वज्ञान आधार पर सबको समझाया। शास्त्रों का ज्ञान भी सुनाया।
किंतु जगत यह कहकर मजाक करता कि जुलाहा अशिक्षित है। बात करता है वेदों, गीता और पुराणों की, यह क���या जाने भक्ति के बारे में? अन्य संतों के ज्ञान को परमेश्वर कबीर जी ने गलत सिद्ध कर दिया था, परंतु आँखों देखकर भी अपनी रोजी-रोटी को बनाए रखने के उद्देश्य से परमेश्वर कबीर जी को रास्ते से हटाने के लिए
बदनाम तथा शर्मसार करने के उद्देश्य से भिन्न-भिन्न हथकण्डे अपनाते थे।
शेखतकी सब मुसलमानों का मुख्य पीर (गुरू) था जो कबीर जी से बहुत ईर्ष्या करता था। ज्ञान चर्चा में निरुत्तर सर्व ब्राह्मणों तथा मुल्ला-काजियों व शेखतकी ने मीटिंग करके षड़यंत्र के तहत योजना बनाई कि कबीर निर्धन व्यक्ति है। इसके नाम से पत्र भेज दो कि कबीर जी काशी में बहुत बड़े सेठ हैं। कबीर जी तीन दिन का धर्म भोजन-भण्डारा करेंगे। सर्व साधु-संत आमंत्रित हैं। प्रतिदिन प्रत्येक भोजन करने वाले को एक दोहर (जो उस समय का सबसे कीमती कम्बल के स्थान पर माना जाता था), एक मोहर (10 ग्राम स्वर्ण से बनी मोहर) दक्षिणा में देगें। भोजन में लड्डू, जलेबी, हलवा, खीर, दही बड़े, माल पूडे़, रसगुल्ले आदि-2 सब मिष्ठान खाने को मिलेंगे। सुखा सीधा (आटा, चावल, दाल आदि सूखे जो बिना पकाए हुए, घी-बूरा) भी दिया जाएगा।
एक पत्र शेखतकी ने अपने नाम तथा दिल्ली के बादशाह सिकंदर लोधी के नाम भी भिजवाया। निश्चित दिन से पहले वाली रात्रि को ही साधु-संत भक्त एकत्रित होने लगे। अगले दिन भण्डारा (लंगर) प्रारम्भ होना था। परमेश्वर कबीर जी को संत रविदास दास जी ने बताया कि आपके नाम के पत्र लेकर लगभग 18 लाख साधु-संत व भक्त काशी शहर में आए हैं। कबीर जी अब तो अपने को काशी त्यागकर कहीं और जाना पड़ेगा। कबीर जी तो जानीजान थे। फिर भी अभिनय कर रहे थे, बोले रविदास जी झोंपड़ी के अंदर बैठ जा, सांकल लगा ले।
परमेश्वर कबीर जी अन्य वेश में अपनी राजधानी सत्यलोक में पहुँचे। वहाँ से नौ लाख बैलों के ऊपर गधों जैसा बौरा (थैला) रखकर उनमें पका-पकाया सर्व सामान भरकर तथा सूखा सामान (चावल, आटा, खाण्ड, बूरा, दाल, घी आदि) भरकर पृथ्वी पर उतरे। सत्यलोक से ही सेवादार आए। परमेश्वर कबीर जी ने स्वयं बनजारे का रूप बनाया और अपना नाम केशव बताया।
दिल्ली के सम्राट सिकंदर तथा उसका धार्मिक पीर शेखतकी भी आया। काशी में भोजन-भण्डारा चल रहा था। सबको प्रत्येक भोजन के पश्चात् एक दोहर तथा एक मोहर दक्षिणा दी जा रही थी।
चारों ओर कबीर साहेब की जय जयकार हो रही थी।
खुल्या भंडारा गैबका, बिन चिटठी बिन नाम।
गरीबदास मुक्ता तुलैं, धन्य केशौ बलि जांव।।
बिना पकाया पकि रह्या, उतरे अरस खमीर।
गरीबदास मेला सरू, जय जय होत कबीर।।
यह सब देखकर शेखतकी ने तो रोने जैसी शक्ल बना ली और जांच करने लगा। राजा के साथ उस टैंट में गया जिसमें केशव नाम से स्वयं कबीर जी वेश बदलकर बनजारे (उस समय के व्यापारियों को बनजारे कहते थे) के रूप में बैठे थे। सिकंदर लोधी राजा ने पूछा आप कौन हैं? क्या नाम है? आप जी का कबीर जी से क्या संबंध है? केशव रूप में बैठे परमात्मा जी ने कहा कि मेरा नाम केशव है, मैं बनजारा हूँ।
कबीर जी मेरे पगड़ी बदल मित्र हैं। मेरे पास उनका पत्र गया था कि एक छोटा-सा भण्डारा यानि लंगर करना है, कुछ सामान लेते आइएगा। उनके आदेश का पालन करते हुए सेवक हाजिर है। भण्डारा चल रहा है। शेखतकी तो क��ेजा पकड़कर जमीन पर बैठ गया जब यह सुना कि एक छोटा-सा भण्डारा करना है यहाँ पर 18 लाख व्यक्ति भोजन करने आए हैं।
सिकंदर लोधी हाथी पर बैठकर अंगरक्षकों के साथ कबीर जी की झोंपड़ी पर गए। वहाँ से उनको तथा रविदास जी को साथ लेकर भण्डारा स्थल पर आए। सबसे कबीर सेठ का परिचय कराया। केशव रूप में स्वयं कबीर जी ने डबल रोल करके उपस्थित संतों-भक्तों को प्रश्न-उत्तर करके सत्संग सुनाया जो 24 घण्टे तक चला। कई लाख सन्तों ने अपनी गलत भक्ति त्यागकर कबीर जी से दीक्षा ली, अपना कल्याण कराया।
केशव और कबीर जित, मिलत भये तहां एक।
दासगरीब कबीर हरी, धरते नाना भेख।।
बनजारे और बैल सब, लाए थे भर माल।
गरीबदास सत्यलोक कूं, चले गये ततकाल।।
भण्डारे के बाद सर्व सेवादार बंजारे और बैल गंगा पार करके अन्तर्ध्यान हो गये। सिकन्दर लोधी ने देखा तो कोई भी नहीं था। आश्चर्यचकित होकर राजा ने पूछा कबीर जी! वे बैल तथा बनजारे इतनी शीघ्र कहाँ चले गए? उसी समय देखते-देखते केशव भी परमेश्वर कबीर जी के शरीर में समा गए। अकेले कबीर जी खड़े थे।
सब माजरा (रहस्य) समझकर सिकंदर लोधी राजा ने कहा कि कबीर जी! यह सब लीला आपकी ही थी। आप स्वयं परमात्मा हो।
कबीर जी ने भक्तों को उदाहरण दिया है कि यदि आप मेरी तरह सच्चे मन से भक्ति करोगे तथा ईमानदारी से निर्वाह करोगे तो परमात्मा आपकी ऐसे सहायता करता है। भक्त ही वास्तव में सेठ अर्थात् धनवंता हैं। भक्त के पास दोनों धन हैं, संसार में जो चाहिए वह धन भी भक्त के पास होता है तथा सत्य साधना रूपी धन भी भक्त के पास होता है।
सतगुरु संत रामपाल जी महाराज के सानिध्य में सभी 9 सतलोक आश्रमों में दिनांक 26-28 नवम्बर 2023 को विशाल दिव्य धर्म यज्ञ का आयोजन किया जा है। जिसमें लड्डू, जलेबी, पूड़ी, सब्जी इत्यादि बनाने में केवल देशी घी का ही प्रयोग किया जाता है।
ऐसा समागम केवल परमात्मा ही कर सकता है जिसमें पूरे विश्व को आमंत्रित किया जाता है।
पूर्ण ब्रह्म कबीर साहेब के अवतार संत गरीबदास जी महाराज के अमर ग्रथ का अखण्ड पाठ किया जाता है। साथ ही लगातार तीन दिवसीय भण्डारे का आयोजन होता है। ग्रंथ साहिब की वाणी से वातावरण शुद्ध होता, वर्षा होती है, आध्यात्मिक वातावरण तथा मानसिक शांति होती है। तथा दान धर्म एवं भंडारे के प्रसाद से करोड़ो पाप नाश होते हैं।
सर्वप्रथम परमात्मा को भोग लगाकर भोजन भंडारा कराया जाता है जिससे भोजन प्रसाद बन जाता है जिसे खाने से कोटि कोटि पाप नाश होते हैं।
भंडारा पूर्णतया निःशुल्क होता है।
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[11/21, 7:03 AM] Arun Das Patil: 🎈काशी का विशाल और अद्भुत भंडारा🎈
परमेश्वर कबीर बंदीछोड़ जी आज से 626 साल पहले काशी बनारस में लहरतारा नामक तालाब में कमल के फूल पर शिशु रूप में प्रकट हुए थे और नीरू नीमा को मिले थे l
उस समय परमेश्वर परमेश्वर कबीर बंदीछोड़ जी ने अनेक लीलाएं की थी जिसमें से एक लीला विशाल भंडारे की हैl
परमेश्वर कबीर बंदीछोड़ जी को काशी शहर से भगाने के उद्देश्य से हिन्दू तथा मुसलमानों के धर्मगुरूओं तथा धर्म के प्रचारकों ने षड़यंत्र के तहत झूठी चिट्ठी में निमंत्रण भेजा कि कबीर जुलाहा तीन दिन का भोजन-भंडारा (लंगर) करेगा। प्रत्येक बार भोजन खाने के पश्चात् दस ग्राम स्वर्ण की मोहर (सोने का सिक्का) तथा एक दोहर (खद्दर की दोहरी सिली चद्दर जो कंबल के स्थान पर सर्दियों में ओढ़ी जाती थी) दक्षिणा में देगा।
भोजन में अनेक प्रकार की मिठाई, हलवा, खीर, पूरी, मांडे, रायता, दही बड़े आदि मिलेंगे। सूखा-सीधा (एक व्यक्ति का आहार, जो भंडारे में नहीं आ सका, उसके लिए) दिया जाएगा। यह सूचना पाकर दूर-दूर के संत अपने शिष्यों समेत निश्चित तिथि को पहुँच गए। काजी तथा पंडित भी उनके बीच में पहुँच गए।
संत रविदास जी सुबह जंगल फिरने के लिए गए तो इतने सारे साधु-संतों को देखकर आश्चर्य किया तथा प्रश्न किया कि किस उपलक्ष्य में आए हो? उन्होंने बताया कि इस शहर के सेठ कबीर जुलाहा यज्ञ कर रहे हैं। हमारे पास पत्र गया था, हम आ गए हैं। तीन दिन का भोजन-भंडारा है। देखो पत्र साथ लाए हैं। रविदास जी को समझते देर नहीं लगी। परमेश्वर कबीर जी के पास घर पर गए। बताया कि हे प्रभु! अबकी बार तो काशी त्यागकर कहीं अन्य शहर में चलना होगा। सब बात बताई। परमात्मा कबीर जी संत रविदास जी की बात सुनकर चिंतित नहीं हुए। हँसे तथा बोले कि हे रविदास! बात सुन! बैठ जा भक्ति कर। परमात्मा आप संभालेगा। कबीर परमात्मा एक रूप में तो वहाँ कुटिया में बैठे भजन करने का अभिनय कर रहे थे। अन्य रूप में सतलोक में गए। उनको पहले ही सतर्क कर रखा था। सतलोकवासियों ने असँख्यों बनजारे तथा बौड़ी (बैलों के ऊपर बोरे रखकर भोजन सामग्री भर रखी थी। एक बैल को बोरे समेत बंजारे लोग बोडी कहते थे) तैयार कर रखी थी।
दूसरे रूप में कबीर जी सतलोक से नौ लाख बौडी तथा कुछ बनजारे वाले वेश में भक्त सेवादार साथ लिए तथा स्वयं केशव बंजारे का रूप धारण किया। एक पलक (क्षण) में पृथ्वी के ऊपर आ गए। काशी शहर में तंबू
लगाकर भंडारा चालू कर दिया ।
भंडारे में कोई खाना खाओ, कोई रोक-टोक नहीं थी। यह नहीं था कि जिनके नाम निमंत्रण पत्र गया है, वे अपनी चिट्ठी तथा नाम-पता दिखाओ और खाना खाओ जैसा कि इस पृथ्वी लोक वाले साधु किया करते थे। सूखा सीधा के लिए आटा, खांड, चावल, घी, दाल सब दी जा रही थी। मिठाई, लड्डू, जलेबी, चंगेर (बर्फी) सब खिलाई जा रही थी। जैसे कुबेर भंडारी ही पृथ्वी पर आया हो। बिना पकाया पक रहा था। टैंटों-तंबुओं में ढ़ेर के ढ़ेर मिठाईयों के लगे थे। कड़ाहे चावल, खीर, हलवा के भरे थे। सब खा रहे थे। दक्षिणा दी जा रही थी। कबीर परमेश्वर की जय-जयकार हो रही थी। बैल बिना सींगों वाले थे। बैल पृथ्वी से छः इंच ऊपर-ऊपर चल रहे थे। पृथ्वी के ऊपर पैर नहीं रख रहे थे क्योंकि यह पृथ्वी किटाणुओं से भरी है। पैरों के नीचे जीव मरने से पाप लगता है। सभी सम्प्रदायों के व्यक्ति भोजन कर रहे थे l
उन षड़यंत्रकारियों ने सुनियोजित सोची-समझी चाल के तहत दिल्ली के बादशाह सिकंदर लोधी को भी भंडारे का निमंत्रण भेजा था। सोचा था कि सिकंदर राजा आएगा। यहाँ कोई भंडारा नहीं मिलेगा। जनता कबीर को गा���ियाँ दे रही होगी। अराजकता का माहौल होगा। कबीर भाग जाएगा। राजा के मन से उसकी महिमा समाप्त हो जाएगी। शेखतकी जो राजा सिकंदर का धार्मिक पीर (गुरू) था तथा मंत्री भी था, वह इस षड़यंत्र का मुखिया था। जब राजा व शेखतकी भंडारा स्थल पर आए तो देखा लंगर लग रहा है। मोहन भोजन परोसे जा रहे हैं। दक्षिणा भी दी जा रही है। कबीर जी सेठ की जय बुलाई जा रही है। राजा ने उपस्थित व्यक्तियों से पूछा कि भंडारा कौन कर रहा है? उत्तर मिला कि कबीर सेठ जुलाहा कर रहा है। वह तो अभी आए नहीं हैं। उनका नौकर सामने तंबू में बैठा है। वह सब व्यवस्था कर रहा है। राजा सिंकदर तथा शेखतकी तंबू के पास गए। उस व्यक्ति का परिचय पूछा तो बताया कि मेरा नाम केशव बनजारा है। कबीर मेरा पगड़ी-बदल मित्र है। उनका पत्र मेरे पास गया था कि आप कुछ सामान भंडारे का लेते आना। छोटा-सा भंडारा करना है। मैं हाजिर हो गया। कबीर जी कहाँ है? राजा ने पूछा। वे किस कारण से नहीं आए? केशव ने कहा कि वे मालिक हैं। मर्जी है कभी आएँ। उनका नौकर जो बैठा है। यह व्यवस्था वे स्वयं ही कुटिया में बैठे संभाल रहे हैं। वे परमात्मा हैं। राजा सिकंदर हाथी पर सवार होकर कबीर जी की कुटिया पर पहुँचा। दरवाजा बंद था। निवेदन करके खुलवाया तथा कहा कि आप मेरा दिल का निवेदन स्वीकार करके मेरे साथ मेले में भंडारे पर चलो तो परमात्मा ने कहा कि हे राजन! मेरे साथ अभद्र मजाक किया गया है। मैं निर्धन व्यक्ति कपड़ा बुनकर परिवार का पोषण कर रहा हूँ। अठारह लाख साधु भोजन-भंडारा छकने आए हैं। तीन दिन का भंडारा पत्र में लिखा है। मैं कहाँ से खिलाऊँगा? मैं तो घर से बाहर नहीं निकल सकता। रात्रि में परिवार सहित भाग जाऊँगा। हे राजा! इन भेषों वालों ने काम बिगाड़ा है। झूठी चिट्ठी मेरे नाम से भेज रखी है। मेरा उदर भी नहीं भरता। मेरी माता तथा पिता (मुह बोले माता-पिता) मेरे पर क्रोध करेंगे। कोई काशी नगर में सेठ (शाह) भी मुझे उधार नहीं देता क्योंकि मेरी आमदनी कम है, निर्धन हूँ। मैं कैसे आपके साथ भंडारे के स्थान पर चलूँ। राजा सिकंदर जो दिल्ली का सम्राट था, उसने हाथ जोड़कर कहा कि हे कबीर! आप परमात्मा (अल्लाह) हो। नर रूप बनाकर आए हो। तुम दयाल (दरवेश) संत हो।
परमेश्वर कबीर बंदीछोड़ जी ने (करम) रहम किया। चलने के लिए उठे तो आकाश से फूल बरसने लगे। सिकंदर राजा ने परमेश्वर कबीर बंदीछोड़ जी को हाथी पर बैठाया। साथ में रविदास जी कबीर जी के सिर के ऊपर चंवर करते हुए कबीर जी के आदेश अनुसार उनके साथ हाथी पर बैठ गए। राजा भी हाथी पर उनके साथ बैठा। फिर रविदास जी से निवेदन करके राजा सिकंदर ने चंवर ले लिया और परमेश्वर कबीर बंदीछोड़ जी के ऊपर चंवर करने लगे। कबीर परमात्मा के सिर के ऊपर अपने आप मनोहर मुकुट आकर सुशोभित हो गया। काशी पुरी के व्यक्ति बेचैनी से कबीर परमेश्वर के दर्शन करने का इंतजार कर रहे थे। भंडारा स्थल पर आए तो केशव रूप उनके ��ाथी के पास आया तथा कहा कि हे कबीर प्रभु! आपने यहाँ आने का कष्ट क्यों किया? आपका दास जो सेवा में हाजिर है। उसकी बात को अनसुना करके तीनों हाथी को आगे मेले में ले गए जहाँ अठारह लाख व्यक्ति ठहरे थे। वह तो बहुत बड़ा मेला था। चौपड़ के बाजार में घूम-फिरकर केशव के पास आ गए। जब परमेश्वर कबीर बंदीछोड़ जी हाथी से उत्तरे तथा केशव वाले तंबू में गए तो अपने आप सुंदर तख्त आ गया तथा उसके ऊपर सुंदर बिछौनी बिछ गई। बिछौनी के चारों ओर हीरे, लाल लग गए। महाराजा जैसा आसन लग गया। दूसरी ओर ऐसा ही केशव के लिए लगा था। कबीर जी को देखने के लिए सब साधु-संत आकर चारों ओर आकर बैठ गए l
परमेश्वर कबीर बंदीछोड़ जी ने केशव के साथ (आठ पहर) चौबीस घंटे लगातार आध्यात्मिक गोष्ठी की, तत्त्वज्ञान सुनाया। लगभग दस लाख उन भ्रमित साधुओं के शिष्यों ने कबीर जी से दीक्षा ली और जीवन सफल किया।
ll शब्द ll
केशो आया है बनजारा, काशी लाया माल अपारा।।टेक।।
नौलख बोडी भरी विश्म्भर, दिया कबीर भण्डारा।
धरती उपर तम्बू ताने, चौपड़ के बैजारा।।1।।
कौन देश तैं बालद आई, ना कहीं बंध्या निवारा। अपरम्पार पार गति तेरी, कित उतरी जल धारा।।2।।
शाहुकार नहीं कोई जाकै, काशी नगर मंझारा।
दास गरीब कल्प से उतरे, आप अलख करतारा।।3।।
धर्म यज्ञ बहुत श्रेष्ठ होती है भोजन भंडारा करवाना भी धर्म यज्ञ में आता है ऐसे धर्म भंडारे से वर्षा होती है और
वर्षा से धन धान्य की उपज होती है जिससे सभी जीवो का पेट भरता है और पुण्य मिलता है l
सर्वप्रथम पूर्ण परमात्मा को भोग लगाया जाता है जिससे भोजन पवित्र प्रसाद बन जाता है l
परमात्मा के भोग लगे उस पवित्र भंडारे को खाने से कोटि-कोटि पाप नष्ट हो जाते हैं जिसका प्रमाण पवित्र गीता जी अध्याय 3 के श्लोक 13 में है।
पूर्ण संत को दिए दान धर्म भंडारे से करोड़ों पाप और रोग नष्ट हो जाते हैं।
बहुत पुण्य मिलता है और पितरों की भी मुक्ति हो जाती है l
आज वर्तमान समय में विशाल भंडारे का आयोजन संत रामपाल जी महाराज कर रहे हैं l
परम संत रामपाल जी महाराज के सानिध्य में सभी 10 सतलोक आश्रम में दिनांक 26-27-28 नवंबर 2023 को विशाल भंडारे का आयोजन किया जा रहा है जिसमे लड्डू जलेबी पूड़ी सब्जी आदि देसी घी में बनाई जाती हैं l
इस भंडारे में सभी देशवासियों को सादर आमंत्रित किया जा रहा है और यह भंडारा पूर्णतया निशुल्क है ऐसे भंडारे में जरूर आएं और पुण्य के भागी बनें l
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[11/21, 7:03 AM] Arun Das Patil: 🛎कबीर परमेश्वर द्वारा काशी का सदाव्रत भंडारा🛎
कबीर जी को सर्व मानव समाज एक महान संत तथा कवि के रूप में जनता है। लेकिन वास्तविकता में वे पूर्ण परमात्मा है। कबीर जी हर युग में आते रहे हैं जिसकी गवाही हमारे धर्म ग्रंथ भी देते हैं।
कबीर साहेब जी कलयुग में भारत के काशी शहर के लहरतारा तालाब में ज्येष्ठ मास शुक्ल पूर्णमासी विक्रम संवत 1455 (सन् 1398) सुबह ब्रह्म मुहूर्त में कमल के फूल पर शिशु रूप में प्रकट हुए थे।
कबीर साहेब लगभग आज से 626 वर्ष पहले इस धरती पर आये और बहुत सी लीलाएं करके चले गए। उस समय कबीर साहेब के 64 लाख शिष्य थे, यह आपने आप में एक बहुत बड़ी बात है।
कबीर साहेब ने आजीवन अनेकों लीलाएं करी जिसमे से एक थी काशी में लाखों लोगों को भंडारा करवाना, देखी जाये ऐसा करना किसी भी निर्धन जुलाहे के बस की बात नहीं थी, लेकिन कबीर साहेब वास्तव में पूर्ण परमेश्वर थे जिनके लिए कुछ भी करना असंभव नहीं था।
दिल्ली के राजा ��िकंदर लोधी का पीर शेखतकी कबीर जी से ईर्ष्या करता था। वह कबीर जी को अल्लाह/परमात्मा स्वीकार नहीं करना चाहता था, साथ ही अलग अलग प्रकार से नीचा दिखाने की योजनाएं बनाता रहता था। इस बात का फायदा काशी के नकली पंडितों ने भी उठाना चाहा क्योंकि कबीर साहेब के सत्य ज्ञान से उनकी ढोंग की दुकान बंद हो रही थी। सबने मिलकर झूठे पत्र लिखे और सिकन्दर लोधी समेत अठारह लाख लोगों को भंडारे में आमंत्रित किया, चिट्ठी में यह भी लिखा कि प्रत्येक भोजन करने वाले को एक दोहर और एक स्वर्ण मोहर भी मिलेगी। ऐसा उन्होंने यह सोचकर किया कि एक जुलाहा इतने लोगों को कैसे भंडार कराएगा।
किन्तु जुलाहे की भूमिका करते हुए पूर्ण परमात्मा कबीर साहेब जी ने सभी अठारह लाख साधु संतों लोगों को भोजन कराया। सारा भोजन भंडारा सतलोक (अमर लोक) से लाये तथा प्रत्येक भोजन करने वाले को एक दोहर और एक मोहर दी एवं सूखा सीधा भी दिया। वह अलौकिक भंडारा लगातार तीन दिनों तक चलता रहा।
कबीर गोसांई, रसोई दीन्हीं, आपै केशो बनि करि आये।
परानंदनी जा कै द्वारै, बहु बिधि भेष छिकाये।।
कबीर परमेश्वर ने उस समय दो रूप में अभिनय किया था, एक रूप में तो गरीब जुलाहे के रूप में अपनी कुटिया में बैठे रहे व दूसरे केशो रूप में अपने सतलोक से 9 लाख बैलों पर थैले रखकर पका-पकाया सामान तथा सूखा सामान तथा दोहर-मोहर भरकर ले आए। तीन दिन तक लगभग 18 लाख व्यक्तियों को सदाव्रत भंडारे से नवाज़ा, तथा 8 पहर (24 घंट���) तक सत्संग कर सतज्ञान समझाया, जिसे सुनकर कई लाख साधु, संतो ने नाम दीक्षा ली व अपना कल्याण करवाया।
कबीर परमात्मा आज भी उपस्थित हैं। वे सदैव ही तत्वदर्शी संत के रूप में विद्यमान रहते हैं। आज वे हमारे समक्ष जगतगुरु तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज के रूप में आये हैं। संत रामपालजी महाराज के सानिध्य में भी ऐसे अनमोल भंडारे आयोजित किए जाते है। जिसमे आदरणीय गरीब दास जी महाराज की वाणी का अखंड पाठ, सत्संग, दहेजमुक्त विवाह, रक्तदान, देहदान शिविर का भी आयोजन किया जाता है। इसके अतिरिक्त उनके सभी आश्रमों में वर्षभर सदाव्रत भंडारा चलता है।
पूर्ण संत द्वारा दिए गए ऐसे धर्म भंडारों में जाने से करोडों पाप व दुःखों का नाश होता हैं। पुण्य मिलता है तथा पितरों की भी मुक्ति हो जाती है।
आगामी 26-27-28 नवंबर 2023 को ऐसे ही दिव्य धर्म भंडारे का आयोजन किया जा रहा है। देश भर में संत रामपालजी महाराज के 9 आश्रमों में तीन दिवसीय निशुल्क भण्डारे का आयोजन किया जायेगा, जिसमे सभी देशवासी सादर आमंत्रित हैं, आप भी इस भंडारे में अवश्य आइए और अपना कल्याण करवाइए।
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