#उत्तर प्रदेश विधानसभा चुन��व 2022
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abhay121996-blog · 4 years ago
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RLD की कमान मिली पर आसान नहीं जयंत चौधरी की राह, यूपी चुनाव समेत जानें क्या हैं चुनौतियां Divya Sandesh
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RLD की कमान मिली पर आसान नहीं जयंत चौधरी की राह, यूपी चुनाव समेत जानें क्या हैं चुनौतियां
लखनऊराष्ट्रीय लोकदल की राष्ट्रीय कार्यकारिणी ने मंगलवार को जयंत चौधरी को पार्टी का राष्ट्रीय अध्यक्ष चुन लिया। पार्टी के 34 सदस्यों ने वर्चुअल बैठक में सर्वसम्मति से आरएलडी के नए मुखिया के तौर पर जयंत के नाम पर मोहर लगा दी। दादा पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह और पिता चौधरी अजित सिंह की तरह ही किसानों की राजनीति समझने वाले जयंत चौधरी ने राष्ट्रीय अध्यक्ष चुने जाने के बाद 26 को प्रस्तावित किसानों के आंदोलन को अपनी पार्टी के समर्थन का ऐलान किया।
नई दिल्ली में हुई बैठक में छह मई को पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष चौधरी अजित सिंह के आकस्मिक निधन पर गहरा दुःख व्यक्त किया गया। पार्टी महासचिव त्रिलोक त्यागी ने उपाध्यक्ष जयंत चौधरी नाम अध्यक्ष पद के लिए प्रस्तावित किया। दूसरे राष्ट्रीय महासचिव मुंशीराम पाल ने प्रस्ताव का अनुमोदन किया, जिसका राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सभी सदस्यों ने सर्वसम्मति से समर्थन किया।
चुनौतियों से भरी है जयंत की राह जयंत चौधरी पिता चौधरी अजित सिंह के निधन के बाद राष्ट्रीय लोकदल के मुखिया तो चुन लिए गए। लेकिन, उनकी यह राह चुनौतियों से भरी है। उनके आगे सबसे बड़ी चुनौती रालोद को पश्चिमी यूपी की राजनीति में धुरी बनाए रखने की है। आगामी 2022 का यूपी विधानसभा चुनाव उनके लिए बड़ी परीक्षा है। उनके लिए चुनाव में पार्टी के अच्छे प्रदर्शन की बड़ी चुनौती होगी। इस बदले दौर में दादा और पिता की विरासत को संभालते हुए संगठन को मजबूती देना आसान न होगा।
संगठन को मजबूती देने की चुनौती जयंत चौधरी के सामने सबसे बड़ी चुनौती कमजोर होती पार्टी को फिर से मजबूती से खड़ा करना है। 2014 के बाद या यूं कहें कि मोदी की सक्रियता के बाद रालोद का प्रतिनिधित्व न लोकसभा में है और न उत्तर प्रदेश की विधानसभा में। हालांकि, 2019 के विधान सभा चुनाव में रालोद छपरौली से एक विधानसभा सीट जीता था। लेकिन, वह विधा��क भी दल बदल कर भाजपा के साथ चला गया। और तो और मोदी लहर में अजित सिंह और जयंत चौधरी खुद लगातार दो चुनावों में विजयश्री के दर्शन नहीं कर सके। संभावना है कि संगठन की कमान संभालने के बाद जयंत अपनी राष्ट्रीय टीम का जल्द विस्तार करेंगे। साथ ही प्रदेश और क्षेत्रीय कमिटी व प्रकोष्ठों को कसा जा सकता है।
जाटों की राजनीति और आरएलडी पश्चिमी यूपी की राजनीति जाट, मुस्लिम और किसानों के आस-पास ही घुमती है। यह तीनों चौधरी चरण सिंह को अपना मसीहा मानते थे। चौधरी चरण सिंह के बाद यह गठबंधन लंबे समय तक चौधरी अजित सिंह के साथ रहा। लेकिन मुजफ्फरनगर दंगे के बाद यह समीकरण टूट गया। इस बीच भाजपा भी सतपाल सिंह और संजीव बालियान जैसे जाट नेताओं को स्थापित करने में सफल रही। इसका असर यह रहा कि मुजफ्फरनगर क्षेत्र में संजीव बालियान ने संयुक्त विपक्ष के प्रत्याशी बने अजित सिंह को हरा दिया था। जयंत को अब जहां अपने बाबा के इस वोट बैंक को फिर से एकजुट करना होगा। वहीं जाटों में पैठ बनाकर यह संदेश देना होगा कि उनके सर्वमान्य नेता दादा चौधरी चरण सिंह की तरह वह ही हैं।
किसान आंदोलन ने आसान की राह कृषि कानूनों के खिलाफ दिल्ली की सीमा पर चल रहा किसान आंदोलन रालोद के लिए किसी राजनैतिक संजीवनी से कम नहीं साबित हो रहा। किसान आंदोलन का समर्थन जयंत चौधरी की राह काफी हद तक आसान भी करेगा। 29 जनवरी को किसान नेता नरेश टिकैत द्वारा जयंत को मंच देना और मंच से यह कहना कि चौधरी अजित सिंह को हराना हमारी गलती थी। इसी घटनाक्रम से पश्चिमी यूपी में रालोद के लिए सियासी समीकरण बनते दिख रहे हैं। महापंचायतों में भाकियू और रालोद की दोस्ती का परिणाम हालिया पंचायत चुनावों में रालोद को मिली उत्साहजनक जीत के रूप में सामने है।
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