#उच्चतम न��यायालय
Explore tagged Tumblr posts
Text
'हलफनामे में सब नहीं बता सकते', पेगासस मामले पर बोला केंद्र, SC ने नोटिस देकर 10 दिन में मांगा जवाब Divya Sandesh
#Divyasandesh
'हलफनामे में सब नहीं बता सकते', पेगासस मामले पर बोला केंद्र, SC ने नोटिस देकर 10 दिन में मांगा जवाब
नई दिल्ली उच्चतम न्यायालय ने पेगासस के कथित इस्तेमाल की अदालत की निगरानी में जांच की मांग करने वाली जनहित याचिकाओं पर केंद्र को नोटिस जारी किया है। न्यायालय ने केंद्र से 10 दिन के अंदर जवाब देने को कहा है। अदालत ने कहा कि मामले में आगे के एक्शन के बारे में विस्तार से चर्चा करेंगे। मामले की सुनवाई 10 दिन के लिए टाली गई।
‘हलफनामे में सब नहीं बता सकते’सुनवाई के दौरान, केंद्र सरकार ने कहा कि ये मामला नैशनल सिक्युरिटी का है, हम हलफनामे में सबकुछ नहीं दे सकते। इसपर अदालत ने कहा कि हलफनामे में लिमिटेड बातें हैं… हम चाहते थे कि इस मामले में विस्तार से जवाब आए लेकिन ऐसा नहीं हुआ। याचिकाकर्ताओं की ओर से कपिल सिब्बल ने कहा कि हम नैशनल सिक्युरिटी से जुड़ी जानकारी नहीं चाहते। हम सिर्फ ये जवाब चाहते हैं कि सरकार ये बताए कि क्या पेगासस का इस्तेमाल सरकार ने किया था या नहीं।
‘कोर्ट से कुछ छिपा नहीं सकते, पब्लिक में बात न हो’सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि ये सॉफ्टवेयर हर देश खरीदता है और याचिकाकर्ता इस बात का खुलासा चाहते हैं कि सॉफ्टवेयर इस्तेमाल हुआ है या नहीं। अगर हम इसका खुलासा करते हैं आतंकी बचने के लिए कदम उठा सकते हैं। यह राष्ट्रीय सुरक्षा के मामले हैं और हम कोर्ट से कुछ छिपा नहीं सकते। इस मामले को एक समिति के सामने रखा जाना चाहिए, जनता के बीच चर्चा का विषय नहीं है। कुछ वेब पोर्टल्स ऐसा नरेटिव तैयार कर रहे हैं कि सॉफ्टवेयर का इस्तेमाल किया गया।
एफिडेविट देने में क्या समस्या है? कोर्ट ने पूछाकेंद्र ने कहा कि हम मांगी गई जानकारी एक विशेषज्ञ समिति को दे सकते हैं और यह एक निष्पक्ष संस्था होगी। क्या आप एक संवैधानिक न्यायालय के तौर पर उम्मीद करते हैं कि ऐसे मुद्दों को अदालत के सामने खोला जाए और जनता में बहस हो? समिति अपनी रिपोर्ट कोर्ट के सामने रखेगी ��ेकिन हम मामले को सनसनीखेज कैसे बना सकते हैं।
अदालत ने केंद्र के सबमिशन पर कहा कि ‘एक अदालत के तौर पर हम और एसजी के तौर पर आप और सभी वकील, कोई नहीं चाहेगा कि देश की सुरक्षा से समझौता हो। कोर्ट ने कहा कि देश की रक्षा के लिए हम कुछ भी खुलासा नहीं करने जा रहे। कुछ नामी हस्तियां फोन जासूसी का आरोप लगा रही हैं, ऐसा हो तो सकता है मगर किसी सक्षम अथॉरिटी की इजाजत से ही। अगर वह अथॉरिटी हमारे सामने एफिडेविट लगाती है तो समस्या क्या है?
0 notes
Text
सर्वोच्च न्यायालय सहित सभी न्यायलयों में हिंदी अन्य भाषाओं के प्रयोग पर अनुमति मिले : राम विलास पासवान
लोक जनशक्ति पार्टी के अध्यक्ष और केन्द्रीय उपभोक्ता मामले, खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण मंत्री रामविलास पासवान जी ने हिन्दी दिवस के अवसर पर शनिवार को कहा कि लोक जनशक्ति पार्टी सरकार से मांग करती है कि सरकार संविधान में संशोधन कर उच्चतम न्यायालय, उच्च न्यायालयों सहित सभी न्यायालयों में हिन्दी एवं अन्य क्षेत्रीय भाषाओं के प्रयोग की अनुमति दे। अंग्रेजी की अनिवार्यता को खत्म करे। साथ ही हिन्दी को राजभाषा का दर्जा देने का काम करे। संविधान सभा ने 14 सितम्बर, 1949 को हिन्दी को संघ की राजभाषा स्वीकार करते हुए संविधान के भाग 5 एवं 6 के क्रमश: अनुच्छेद 120 तथा 210 में तथा भाग 17 के अनुच्छेद 343, 344, 345, 346, 347, 348, 349, 350 तथा 351 में राजभाषा हिन्दी के प्रावधान किए। और भारत की 22 भाषाओं को संविधान की अनुसूची-8 में मान्यता दी गई है । ये भाषाएं इस प्रकार हैं- हिन्दी, पंजाबी, उर्दू, कश्मीरी, संस्कृत असमिया, ओड़िया, बांग्ला, गुजराती, मराठी, सिंधी, तमिल, तेलुगु, मलयालम, कन्नड़, मणिपुरी, कोंकणी, नेपाली, संथाली, मैथिली, बोडो और डोगरी। सन् 1967 में 21वें संविधान संशोधन द्वारा सिंधी भाषा 8वीं अनुसूचीमें जोड़ी गई थी। सन् 1992 में 71वें संविधान संशोधन द्वारा कोंकणी, नेपाली तथा मणिपुरी भाषाएं 8वीं अनुसूची में जोड़ी गई थीं। सन् 2003 में 92वें संविधान संशोधन द्वारा संथाली, मैथिली, बोडो तथा डोगरी भाषाएं 8वीं अनुसूची में जोड़ी गई थीं। अनुच्छेद 120 के खंड (1) के अंतर्गत प्रावधान किया गया है कि संविधान के अनुच्छेद 348 संसद में कार्य हिन्दी में या अंग्रेजी में किया जायेगा, परंतु लोक सभा का अध्यक्ष या राज्य सभा का सभापति अथवा उस रूप में कार्य करने वाला व्यक्ति सदन में किसी सदस्य को, जो हिन्दी में या अंग्रेजी में अपनी पर्याप्त अभिव्यक्ति नहीं कर सकता है, तो उसे अपनी मातृभाषा में सदन को संबोधित करने ��ी अनुमति दे सकता है। अनुच्छेद 343 के खंड (1) के अनुसार देवनागरी लिपि में लिखित हिन्दी ��ंघ की राजभाषा है। संघ के शासकीय प्रयोजनों के लिए प्रयोग होने वाले अंकों का रूप भारतीय अंकों का अंतर्राष्ट्रीय रूप होगा। तथापि संविधान के इसी अनुच्छेद 343 के खंड(2) के अनुसार किसी बात के होते हुए भी इस संविधान के लागू होने के समय से पन्द्रह वर्ष की अवधि (अथार्त 26 जनवरी, 1965) तक संघ के उन सभी राजकीय प्रयोजनों के लिए वह संविधान के लागू होने के समय से ठीक पहले प्रयोग की जाती थी। (अर्थात 26 जनवरी, 1965 तक अंग्रेजी के उन सभी प्रयोजनों के लिए प्रयोग की जाती रहेगी, जिनके लिए वह संविधान के लागू होने के समय से पूर्व प्रयोग की जाती थी।) अनुच्छेद 343 के खंड (2) के अंतर्गत यह भी प्रावधान किया गया है कि उक्त पन्द्रह वर्ष की अवधि में भी अर्थात् 26 जनवरी, 1965 से पूर्व भी राष्ट्रपति आदेश द्वारा किसी भी राजकीय प्रयोजन के लिए अंग्रेजी के साथ-साथ देवनागरी के प्रयोग की अनुमति दे सकते हैं। लेकिन देश के लिए शर्म की बात है कि आजादी के 72 साल के बाद भी अंग्रेजी का विस्तार दिनों-दिन बढ़ता जा रहा है। हिन्दी एवं भारतीय भाषा की स्थिति दयनीय होती जा रही है। आज अंग्रेजी का स्थान महारानी जैसा है तथा हिन्दी एवं अन्य भाषाओं का स्थान नौकरानी जैसा। संविधान की धारा 348 के अनुसार जब तक संसद विधि द्वारा संशोधन न करे, तब तक उच्चतम न्यायालय और सभी उच्च न्यायालयों में सभी कार्यवाहियां अंग्रेजी भाषा में होगी। संसद या राज्य के विधान मंडल द्वारा बनाए गए सभी आदेशों, नियमों, विनियमों और उप विधियों के प्राधिकृत पाठ अंग्रेजी भाषा में होंगे। संविधान के अनुच्छेद 348(2) खंड(1) के उपखंड (क) में किसी राज्य का राज्यपाल, राष्ट्रपति की पूर्व अनुमति से उस उच्च न्यायालय के कार्यवाहियों में हिन्दी भाषा या उस राज्य के शासकीय प्रयोजनों के लिए प्रयोग होने वाली किसी अन्य भाषा का प्रयोग प्राधिकृत कर सकेगा। किन्तु इस खंड की कोई बात उच्च न्यायालय द्वारा दिए गए आदेश पर लागू नहीं होगी। आज की तारीख में देश के सारे कामकाज अंग्रेजी में चल रहे हैं, हिन्दी का प्रयोग नाममात्र का है। उच्चतम न्यायालय की सभी कार्यवाहियां अंग्रेजी में हैं। हिन्दी या अन्य भारतीय भाषाओं के उपयोग की अनुमति नहीं है। इसी तरीके से 4 उच्च न्यायालय बिहार, उत्तर प्रदेश, राजस्थान और मध्य प्रदेश को छोड़कर अन्य किसी भी उच्च न्यायालय में अंग्रेजी को छोड़कर हिन्दी या स्थानीय भाषा का प्रयोग नहीं किया जा सकता। किसी भी आजाद देश की अपनी भाषा होती है जापान, सारे यूरोपीय देश, जर्मनी, चीन आदि की अपनी भाषा है और अपनी भाषा में कामकाज करके विकसित राष्ट्र बने हैं। भाषा का संबंध पेट से होता है इस देश में अंग्रेजी भाषा, अंग्रेजों के आने के बाद शुरू हुई। इसके पहले उर्दू और फारसी भाषा थी। हिन्दी, संस्कृत, देवनागरी भारत की सर्वाधिक पुरानी भाषा है, लेकिन अंग्रेजी के विस्तार का मुख्य कारण यह है कि भाषा का संबंध पेट से होता है। जब लोगों को लगा कि नौकरियां और खासक�� बड़ी-बड़ी नौकरियां अंग्रेजी माध्यम से मिलती है तो उन्होंने जबरदस्ती अंग्रेजी को सीखना शुरू कर दिया। अंग्रेजी को जबरदस्ती राजभाषा के रूप में देश पर थोपा। अपनी हिन्दी भाषा के संबंध में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने 1918 में कहा था कि “भाषा माता के समान है और माता पर जो प्रेम होना चाहिए वह हम लोगों में नहीं है। हम अंग्रेजी के मोह में फंसे हैं। हमारी प्रजा अज्ञान में डुबी है। हमें ऐसा उद्योग करना चाहिए कि एक वर्ष में राजकीय भाषाओं में, कांग्रेस में, प्रांतीय सभाओं में तथा अन्य सभा समाज में व सम्मेलनों में अंग्रेजी का एक भी शब्द सुनाई न पड़े। हम अंग्रेजी का व्यवहार बिलकुल त्याग दें। Read the full article
0 notes