#आज ही खुलवाएं खा��ा
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अमानवीय है दो रूपये का स्नैक बिना पूछे उठाकर खाने पर, मासूम बच्चों को गंजा व निर्वस्त्र कर जूतों की माला पहनाकर घूमाना, पीएम व सीएम जिलाधिकारियों के माध्यम से खुलवाएं रोटी बैंक
भाजपा शासित प्रदेश महाराष्ट्र के ठाणे के उल्लासनगर शहर के प्रेम नगर इलाके में चकली (स्नैक्स ) बिना पूछे उठाकर खा जाने पर कोई दो ढाई रूपये की कीमत की इस खाद्य सामग्री को लेकर दुकान मालिक महमूद पठान द्वारा अपने बेटों इरफान व सलीम के साथ मिलकर 24 साल के युवकांे ने पांच साल के दो मासूम बच्चांे के साथ जो बर्बरता की घटना को अंजाम दिया गया। वो सरकार के लिये तो सोचनीय है ही मानवता के लिये शर्मानाक कहीं जा सकती है। इससे भी ज्यादा शर्मनाक बात यह है कि कुछ लोग वीडियो तो बनाते रहे मगर बच्चों को बचाने की कोशिश उनके द्वारा नहीं की गई। मुझे लगता है कि दोषियों को सजा दिलाने के लिये वीडियो बनाना भी ठीक था मगर साथ ही बच्चों की मदद करना उससे भी ज्यादा जरूरी था। ऐसी सोच भी हमें विकसित करनी होगी। विवरण अनुसार उपर दिये गए इलाके के अलग अलग परिवार के दो बच्चों के द्वारा भूख से प्रभावित होकर महमूद पठान की दुकान से स्नैक्स उठाकर खा लिया गया। मैं इस घटना के या किसी भी प्रकार की चोरी चाहे वो छोटी हो या बड़ी का समर्थन तो नहीं करता हूं लेकिन जिस प्रकार की अमानव्यता इन बच्चों के साथ दिखाते हुए तीनों आरोपियों ने बच्चों को पीटा फिर उन्हे गंजा कर चप्पलों की माला पहनाई और फिर निर्वस्त्र कर घूमाया गया। उसकी जितनी भी आलोचना हो सकती है वो कम कहीं जा सकती है। पुलिस द्वारा इस अपमानजनक घटना के विरूद्ध बच्चों के मां बापों द्वारा ��र्ज करायी गई रिपोर्ट के आधार पर आईपीसी की धाराओं 355, 500, 323, तथा यौन अपराधों से संबंध धाराओं मे गिरफ्तार कर दोषियों को जेल भेजे जाने की खबर है। आज से लगभग 3 दशक पूर्व अंतराष्टीय स्तर के कथावचक रमेश भाई औझा साहब जब यूपी के इतिहासिक शहर मेरठ आए थे। और मोदीपुरम स्थित मोदी फैक्टरी के मालिक वीके मोदी साहब के गेस्ट हाउस में ठहरे थे तब उस समय व्यापारी नेता विनोद जायसवाल और दैनिक प्रभात समाचार पत्र के संपादक रहे स्वर्गीय सुबोध कुमार विनोद आदि के साथ ओझा जी के दर्शन करने जाने का मौका मिला। और परिचय उपरांत देश में फैले भ्रष्टाचार व भाई भतीजावाद तथा अपराधों को रोकने के संबंध में चर्चा चली तो मैंने अपनी पूर्व पृष्ठ भूमि जब मेैं 50 पैसे महीना पर चाय के प्याले धोता था और बाद में 3 रूपये महीने पर एक परचून की दुकान पर मजदूरी करता था उस समय की परिस्थतियों में कई दिनों के फांके करने पड़ते थे। उसको ध्यान में रखते हुए औझा जी से एक सवाल मेरे द्वारा पूछे गए कि भाई जी एक व्यक्ति अपने कुत्तों को घी चुपड़ी रोटी खिलाने की कोशिश कर रहा है ओर वो पेट भरा होने की वजह से खा नहीं रहे हैं। इस दौरान एक भूखा बच्चा वो रोटी छीनकर भाग जाता है तो इसे किस श्रेणी में रखा जाएगा। यह डकैती कहलाएगी या लूट। अथवा कुछ ओर। तब रमेश भाई औझा जी ने कहा था कि इस सवाल का क्या जवाब दिया जाए लेकिन अगर देश में कहीं कुछ ऐसा हो रहा है तो वो समाज मानव और सरकार तीनों के लिये सोचने का विषय है। क्योंकि अगर किसी समाज मेें अपनी भूख मिटाने के लिये कुत्ते की रोटी छीनकर भागते हैं तो उसको समाज की तरक्की पसंद या प्रगति शील हम नहीं कह सकतें। आज ठाणे के उल्लासनगर इलाके की उक्त घटना को पढ़कर बड़ा मानसिक उत्पीडन सा हुआ। और यह सोचने पर मजबूर होना पड़ा कि चारो ओर विकास खुशहाली की बात चल रही है और केंद्र व प्रदेशों की सरकारें हर व्यक्ति को मकान, रोटी व रोजगार देने की दावे कर रही है। अगर उसके चलते भी ऐसी र्मािर्भक घटनाएं हो रही है तो पीएम मोदी जी आप सब जगह तो नहीं जा सकते लेकिन महाराष्ट्र प्रदेश में जहां यह घटना घटी वहां भाजपा की सरकार है और जिस इलाके उल्लासनगर में यह सब हुआ वहां भाजपा के कार्यकर्ता भी जरूर होंगे उसके बाद भी अगर दो मासूम बच्चों के साथ यह सब हुआ तो फिर यही कहा जा सकता है कि कोई भूखा �� सोये जैसी घोषणाएं और दावें सिर्फ कागजों व बयानों तक सिमित लगते हैं। वरना अगर सबको रोटी देने की व्यवस्था सरकार करा रही है स्कूलों में माध्यका भोजन दे रही है और ऐसे में मासूम बच्चे भूख मिटाने के लिये यह करने के लिये मजबूर हों और उसके बाद दुकानदार द्वारा बेटों के साथ मिलकर इस प्रकार की दरिंगदगी की जाए तो उससे तो यह लगता है कि अभी हम जो सपने देख और दिखा रहे हैं वो मात्र हसीन ख्वाब से ज्यादा कुछ नहीं है। पीएम मोदी जी और महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फर्नाडीस बच्चों का जो मानसिक व शारीरिक उत्पीड़न होना था वो हो चुका है दुकानदार को सजा मिलेगा वो एक अलग बात है लेकिन इस तरह की घटना की पुनरावृत्ति कहीं न हों अगर हम ऐसी व्यवस्था हम आगे करने में सफल हो जाए तो इसे एक बड़ी उपलब्धता शासन समाज की कहीं जा सकती है। मेरा मानना है कि अपने देश में आदिकाल से अगर भेड़ की खाल में छिपे भेडिये पैदा होते रहे तो समाजसेवक दानदाता और दूसरे के दुख को महसूस करने वाले भी जन्म लेते रहे और ऐसे ही कितने महापुरूष और दानवीर हुए जिन्होंने औरों के भले के लिये अपना सबकुछ दांव पर लगा दिया। आज भी दानवीरों की कमी नहीं। अनाथों की शादी होती है तो आयोजनकर्ता लडकी को उन्हे इतना घरेलू सामान देते हैं कि मध्यम दर्जें के लोग नहीं दे सकते। अनेकों स्थानों पर अन्नपूर्णा आदि के नाम पर गरीबों को स्वादिष्ट भोजन पकवान व मिठाईयों के साथ कराने वालों की कमी नहीं है। दानियों का भी देश में आभाव नहीं कहा जा सकता। कहने का मतलब सिर्फ इतना है कि सबकुछ है उसे सिर्फ व्यवस्थित करने की आवश्यकता है। देश में अनेकों स्थानों पर जरूरतमंदों की भूख मिटाने के लिये रोटी बैंक खुल गए हैं जहां आम आदमी आकर रोटी व अन्य पकवान व मिठाईयां देकर जाते हैं। और उनसे सैकडो लोगों का पेट रोज भरता है। मैं समझता हूं कि ऐसे कार्याें को और बढ़ावा हेतु केंद्र व प्रदेशों की सरकारें अपने जिलाधिकारियों के माध्यम से ऐसे कार्याें में लगे मानवीय भावना से ओत प्रोत व्यक्तियों को कुछ सम्मान दिलाकर उनकी देखरेख में जहां रोटी बैंक चल रहे हैं । उसके अलावा अन्य शहर व कस्बों सहित गांव देहातों में इस प्रकार के खाद्य सामग्री संग्रह केंद्र खुलवाए जा सकते हैं। और जनहित तथा गरीबों के हित में और उल्लास नगर जैसी घटना कहीं न हों इस बात को दृष्टिगत रख इस संदर्भ में जल्द से जल्द निर्णय लेकर कार्रवाई करायी जाए क्योंकि कही मनसे से तो कहीं अच्छी सोच को लेकर तो कहीं दिखावें तो कुछ स्थानों पर मान सम्मान पाने के लिये दान देने व सेवा करने वालों की कमी कहीं नहीं है। ��गर ध्यान से देखा जाए तो इसमे बुराई भी कुछ नहीं है। सम्मान पाना और करना एक मानवीय सोच कहा जा सकता है। इन तथ्यों को दृष्टिगत रख सभी प्रदेशों के मुख्यमंत्री भी अपने अपने यहां जिलाधिकारियों को निर्देश देेकर ऐसे खाद्यान व केंद्र रोटी बैंक खुलवाने की पहल करने में अब देर न करें तो वो समाज हित में है।
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