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'मोहन कुमार फैंस' मलयालम सिनेमा के माध्यम से एक यात्रा है, निर्देशक जीस जॉय कहते हैं
‘मोहन कुमार फैंस’ मलयालम सिनेमा के माध्यम से एक यात्रा है, निर्देशक जीस जॉय कहते हैं
फिल्म निर्माता अपनी नई रिलीज और फिल्म उद्योग में महामारी के बाद के परिदृश्य के बारे में बात करता है Jis Joy की फ़िल्में फील-गुड फैक्टर की सवारी करती हैं। उनकी नई फिल्म, मोहन कुमार प्रशंसक, एक अपवाद नहीं है, निर्देशक कहते हैं। जीस कहते हैं, “हम चाहते हैं कि लोग मुस्कुराहट के साथ थिएटर छोड़ें। यह साल हम सभी के लिए कठिन रहा है और यह समय ढीला है।” जीस ने अपनी तीन पिछली फिल्मों की तरह पटकथा और संवाद…
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#&039;मोहन कुमार फैंस&039;#&039;विजय सुपरम पूरणमियम&039;#अनारकली नज��र#कुंचको बोबन#गीतकार#जीस जॉय#प्रिंस जॉर्ज#बॉबी संजय#भुला दिया गया तारा#मलयालम सिनेमा#विनय फोर्थ#सिद्दीकी
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सनीमा
सलीम: क्या ज़िल ए इलाही एक बाग़ी का क़ुसूर मुआफ़ करने आए हैं।
अकबर: ये बदनसीब बाप जिसे दुनिया शहंशाह कहती है, अपने रूठे हुए बेटे को मनाने आया है, उससे मोहब्बत माँगने आया है।
सलीम: बेटे की मोहब्बत बर्बाद करके मोहब्बत माँगने चाहते हैं आप, शहंशाह ��ाप का भेस बदल के आया है।
अकबर: (रोते हुए) शहंशाह रोया नहीं करते शेखू, बाप की आँखों में आँसू हैं। ये ग़रीब बाप शहंशाह अकबर के उसूलों से मजबूर है।
सलीम: और सलीम अपनी मोहब्बत से।
अकबर: शेखू ! (फफकते हुए ) मोहब्बत दिलों को फ़तह कर सकती है फ़ौजों को नहीं।तुम्हारे जज़्बात शहंशाह की बेपनाह ताक़त का मुक़ाबला नहीं कर सकते ।
सलीम: इसका फ़ैसला जंग करेगी।
अकबर: (सख़्त आवाज़ में) सलीम ।।।।। शहंशाह के फ़ैसले को जंग का इंतेज़ार नहीं। जंग के नक्कारे की पहली चोभ अनारकली की मौत का ऐलान कर देगी ।
सलीम ने ग़ुस्से में तलवार उठा ली
अकबर : (निहत्था) शेखू । इसी दिन के लिए हमने माँगा था तुम्हें ? बेटे की ज़िद अगर बाप के सिर से पूरी होती है तो बाप हाज़िर है। (गर्दन झुकाते हुए)
ये लेख थोड़ा नाटकीय शुरुआत लिए ज़रूर है लेकिन मेरे हिसाब से सामाजिक संरचना और पीढ़ी दर पीढ़ी बदलते युवा के अंतर्विरोध को समझने में सनीमा की भूमिका को शायद कुछ हद तक समझा पाए। यह ऊपर लिखी पंक्तियाँ मुग़ल ए आज़म फ़ीचर फ़िल्म के आख़िरी समय के अकबर और सलीम की बात चीत की हैं। अनारकली के प्रेम में सलीम अपने पिता से जंग करने पे आमादा थे। वे अपने तंबू में चहलक़दमी कर रहे थे और अकबर जंग के लिए तैय्यार हो रहे थे। जंग शुरू होने से पहले शहंशाह से ऊपर पिता को रख अकबर अपने रूठे हुए बेटे को मनाने गए जहाँ पर ये घटित हुआ।
यहाँ तक बात कॉंटेक्स्ट सेट्टिंग की थी। अब अगर आप क़रीब से देखें तो बग़ावत एक फ़ैशनबल चीज़ है करने के लिए, यह बात बॉलीवुड या सनीमा सन 1960 से ही प्रोपोगेट कर रहा है। अब तकलीफ़ यह है की इस पर सवाल कोई उठाए तो वो पिछड़ा या प्रगतिशील सोच ना रखने वाला कहा जाएगा। इसीलिए प्रसंग से भटके बिना और इंटोलेरेंस का रिस्क लिए बिना खुले दिमाग़ से इसका विश्लेषण करते हैं।
एक पिता बहुत ही अलग क़िस्म का किरदार होता है। मुझे ये भी लगता है की सिर्फ़ इस बात से की कोई एक पिता है, वो एक अलग स्थान पा जाता है। औलाद के दुनिया में आने के समय हर पिता भावनाओं से लिप्त रहता है। उसकी दुनिया बदल रही होती है, उसे ज़िम्मेदारी का और भी ज़्यादा एहसास हो रहा होता है। और वो अभी अपने बच्चे को पूरी नज़र देख भी नहीं पाया होता तब तक या तो ��िलने का समय ख़त्म हो जाता है या टी पी ए का फ़ॉर्म भरने जाना होता है या कोई समान लेने जाना होता है या मिलने वालों को अटेंड करना होता है । ऐसा कुछ भी होना ग़लत नहीं है ना हम इन घटनाओं को तोल रहे हैं ।पिता अंदर भावों से परिपूर्ण कई बार आँसू भी आने का प्रयास करते हैं लेकिन भीड़ या काम देख लौट जाते हैं या किसी को बिना पता चले वो पिता अपने रुमाल में उन्हें ठिकाना दे देता है।शायद आँसू उसकी इन मजबूरियों को समझते हैं । आँसुओं से या भावनाओं से उसका रिश्ता गहरा है, शायद तभी आँसू भी ये समझ के की शायद अभी इसे औरों को हिम्मत देनी हो, उसकी पलकों की आड़ में बैठ जाते हैं। छलकना तो दुशवारी हो जाएगी। अब ये जो जीवन का क्रम या घटना का क्रम है ना, वो आपका हमारा निजी है । भाव निजी हैं, उनके संप्रेषण का माध्यम या वो सम्प्रेषित करने ना करने का निर्णय भी निजी है । सनीमा या किसी और को ये हक़ नहीं की इस निजी व्यवस्था में अवरोध या एक अधकचरा सा विचार डाले । उसका निजी हो सकता है ।
सनीमा भी मजबूर मालूम पड़ता है, काहे से की, उसमें बौद्धिक बल इतना नहीं हुआ की वो सही संदेशों के बल पे पैसा कमा ले । जो अटपटा होता है वो झट से बिकता है। अटपटा होना शायद सही ग़लत से ऊपर समझा जाता है। समस्या इस लिए हो जाती है की सनीमा के उपभोग में अलग अलग क़िस्म के लोग अलग अलग क़िस्म के संदेश ���पने दिमाग़ में ले जाते हैं। प्रेम में होना कोई ग़लत बात नहीं। लेकिन स्वयं से सवाल ये भी हो की किस क़ीमत पे या किस क़ीमत के लिए या किस हद तक। सनीमा हदें नहीं बताता क्यूँकि वहाँ तो हीरो चाँद ले आने की बात करता है। और जबकि प्रेमियों का एक दूसरे का आकलन इस बात पे भी होना चाहिए की अगर प्यार को अंजाम मिला, शादी ब्याह हुआ तो नियम से लाने वाली चीज़ घर में दूध दही फल सब्ज़ी इत्यादि होंगी, उस लिस्ट में चाँद नहीं होता।
मुग़ल ए आज़म में वो पिता अपने रूठे बेटे को मनाने आया था और उसने कोई अपमानजनक या भड़काऊ बात नहीं कही, वो तो स्नेहिल हो अपने बेटे से बात करने आया था जो कि जंग लड़ने पे आमादा था। जवाब में शेखू तल्ख़ी से ये कहता है की मेरी मोहब्बत बर्बाद कर के मोहब्बत माँगना चाहते हैं आप। ये शर्त लेके तो शेखू भी नहीं पैदा हुए होंगे। अलग अलग सनीमा देखिए ज़्यादातर हर एक में संस्कृति, परम्परा, या बड़े बुज़ुर्गों को अलग ही तरीक़े से पेश किया गया है। ऐसा दिखाया गया है कि वो बिलकुल रूढ़िवादी, खण्डूस और खलनायक नुमा हैं।आपके हमारे घर में ऐसा नहीं है। और हो सकता है कहीं हो भी, पर अगर कोई चीज़ अनुसरणीय नहीं है तो काहे दिखाना । लेकिन अफ़सोस की बात है कि अव्वल सनीमा के पास इल्म कम है, दूसरा समाज में उपभोक्ता जो ख़रीद रहा है, बॉलीवुड वो बना रहा है। पिता के लिए त्याग भी कुछ करना हो तो हँसते खेलते कर दे कोई, उसमें शर्त नहीं होती।
बग़ावत का, हदों से गुज़र जाने का, कोई भी क़ीमत चुका देने का काम परदे पे ही ठीक लगता है और सनीमा के किरदारों की हमारे घरों में उपयोगिता कम है। जितने रुपए की टिकट लगे उसी अनुपात में अपने ज़हन में जगह दे आदमी तो ठीक रहता है। हम लोगों की तनख़्वाह शाह रूख खान जैसे हाथ पसारने या ढिंगा चिका करने से नहीं आती।
सनीमा का ये असर सिर्फ़ माता पिता बड़े बुज़ुर्ग परिवार जैसे आयामों पे ही नहीं बल्कि हर उस आयाम पे है जिससे राष्ट्रीय चरित्र या राष्ट्रीय बल का निर्माण होता है। शिक्षक हो नारी हो चाहे और कोई हो सब को हल्का ही आंकता है इनका विचार। देश को देश के काम आने वाले, घर परिवार को साथ में लेके चलने वाले कमासुत लोग ज़्यादा चाहिए सनीमा चार कम भी रिलीज़ होगा तो चलेगा।
सनीमा देखने पर कोई गाइडलाइन नहीं तय कर रहे, बस ये कह रहे हैं की सनीमा जो अब तक चीख़ चीख़ के शेखू और अनारकली पे हुए जुर्म की कहानियाँ सुनाता आ रहा है, बस ये देख लीजिए की वो आपके ज़हन में कहीं परिभाषाएँ तो नहीं बदल दे रहा। प्यार की, माँ बाप की, परिवार की, नारी की शिक्षक की या समाज के किसी भी घटक की क्यूँकि सनीमा लगेगा उतरेगा, माँ पिताजी,रिश्ते, जीवन की ज़रूरतें वहीं रहेंगी और सनीमा कहीं नहीं होगा,,,,,,,कोई दूसरा लग गया होगा।
सनीमा का आइ क्यू आपसे बहुत कम है इतना भरोसा मत कीजिए।
याद है ना ,,,,,,उस लिस्ट में चाँद नहीं होता ।
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जब सोनम कपूर ने पहनें अपने होने वाले पति के कपड़े! देखें PHOTOS खास बातेंआनंद आहूजा का फैशन लेबल BHANEसोनम की शादी आनंद आहूजा से हो रही हैसोनम ने कई बार पहनें BHANE के आउटफिट्सनई दिल्ली: सोनम कपूर और आनंद आहूजा की शादी 8 मई को है. मेहंदी और पार्टिज़ की तस्वीरें और वीडियोज़ सोशल मीडिया पर छा रही हैं. सोनम के लाइफ पार्टनर को जानने की एक्साइटमेंट सोनम के फैन्स के बीच फैली हुई है. इन दोनों की लव स्टोरी और शादी से पहले की तस्वीरें भी वायरल हो रही हैं. इसी बीच आनंद आहूजा के फैशन ब्रैंड की भी खूब चर्चा चल रही है, जिसमें सोनम क���ूर कई बार बार नज़र आईं. इंडियन ब्रैंड्स में बहुत कम नज़र आने वाली सोनम ने अपने होने वाले पति के फैशन लेबल BHANE में खूब देखी गईं. सोनम के पति के पास है 173 करोड़ का बंगला, वो भी दिल्ली के सबसे पॉश इलाके में आनंद आहूजा ने फैशन ब्रैंड BHANE की शुरुआत 2012 में की. यह एक कंटेम्पररी क्लोदिंग ब्रैंड है जहां लड़के और लड़कियों दोनों के कपड़े मौजूद हैं. इस ब्रैंड में सोनम कपूर भी काफी बार नज़र आ चुकी हैं. सोनम और आनंद दोनों को ही कूल कैज़ुअल अवतार काफी पसंद है. इसी वजह से सोनम कपूर का ये फेवरेट ब्रैंड है जिसके कपड़ों में वो कई बार दिखीं, एयरपोर्ट से लेकर विदेश टूर तक, सोनम को कई बार आनंद आहूजा के लेबल में देखा गया. सोनम कपूर और आनंद आहूजा हैं परफेक्ट कपल, मिलते हैं इतने गुण सोनम कपूर एकलौती ऐसी एक्ट्रेस हैं जो इंडियन ही नहीं इंटरनेशनल रैंप पर भी भारत का नाम रौशन कर चुकी हैं. राल्फ एंड रूसो (Ralph & Russo) हो या डियोर (DIOR) शायद ही ऐसा कोई इंटरनेशनल ब्रैंड हो जिसके कपड़े सोनम कपूर ने ना पहने हो. लेकिन बात जब पार्टी और शादी में पहने जाने वाले भारी-भरकम इंडियन वियर की हो तो सोनम हर बार डिज़ाइनर अनामिका खन्ना के ही आउटफिट्स में नज़र आई हैं. वहीं, अपनी मेहंदी सेरेमनी में वो डिज़ाइनर अनुराधा वाकिल (Anuradha Vakil) के शरारा में नज़र आईं. शाहिद कपूर के रिसेप्शन पर भी सोनम कपूर इसी डिज़ाइनर की बैंगनी और हरी रंग की अनारकली में दिखीं थीं. टिप्पणियां
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