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chaitanyabharatnews · 4 years
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अनोखी प्रथा: लॉकडाउन में किसी कुंवारे ने मां पार्वती की मूर्ति चुराकर किया उन्हें होम क्वारंटाइन, इंतजार में अकेले बैठे हैं भोलेनाथ
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चैतन्य भारत न्यूज हिंडाैली. भारत में शादी को लेकर कई ऐसी परंपराएं हैं, जो चौंकाती हैं। ऐसी ही एक परंपरा बूंदी जिले के हिंडाैली कस्बे में निभाई जाती है जहां एक शिव मंदिर से मूर्ति चुराकर ले जाए जाती है और इसके लिए कोई पुलिस केस भी दर्ज नहीं कराया जाता। मंदिर से माता पार्वती की मूर्ति चुराने की परंपरा भी अनूठी है। यहां माना जाता है कि जिस भी युवक की शादी नहीं हो रही या उसकी शादी में दिक्कतें आ रही हैं तो यदि वह इस मंदिर से गुपचुप तरीके से माता पार्वती की मूर्ति चुरा ले जाए तो उसकी शादी जल्द हो जाती है। इसी चक्कर में एक बार फिर माता पार्वती की मूर्ति को कोई चुरा ले गया और मंदिर में अकेले बैठे महादेव उनका इंतजार कर रहे हैं। सावन से भोलेनाथ से बिछुड़ी हुई हैं माता पार्वती यहां रामसागर झील किनारे रघुनाथ घाट मंदिर में पार्वती माता की मूर्ति चुराने की परंपरा निभाई जाती है। शादी करने के चक्कर में कुंवारे युवक मंदिर से रात के अंधेरे में गुपचुप मां पार्वती की मूर्ति उठा ले जाते हैं और जब उनकी शादी हो जाती है तो वह मूर्ति को वापस मंदिर में रख जाते हैं। यहां ज्यादातर भगवान शिव अकेले ही नजर आते हैं। इस बार सावन के पहले से पार्वती जी महादेव से बिछुड़ी हुई हैं। चूंकि लॉकडाउन के चलते शादियां नहीं हो पा रही हैं, लिहाजा अब तक मूर्ति वापस मंदिर में नहीं आ सकी है। फिलहाल पार्वती माता किसी कुंवारे के घर होम क्वारंटाइन में हैं। एक या दो महीने ही मंदिर में रहती हैं पार्वती माता बता दें जुलाई महीने से चार महीने के लिए देव सो जाएंगे, ऐसे में कम ही उम्मीद है कि पार्वतीजी महादेव के पास जल्द लौट आएंगी। पिछले 35 साल से मंदिर के पुजारी के रूप में अपनी सेवा दे रहे रामबाबू पाराशर ने इस बारे में बताया कि, 'अब तक मंदिर से 15 से 20 बार पार्वती माता की मूर्ति चोरी हो चुकी है। मूर्ति चुराने वालों की शादियां भी हुई है। हमें मूर्ति चुराने वालों का पता भी चल जाता है लेकिन हम किसी को भी टोकते नहीं है।' पुजारी के मुताबिक, मंदिर में पार्वती माता की मूर्ति साल में बेहद मुश्किल से एक या दो महीने ही रहती है और फिर उसे कोई चुरा ले जाता है। ये भी पढ़े... यहां फल और पत्थरों से खेला जाता है युद्ध, उत्तराखंड के देवीधुरा स्थित मंदिर में अनूठी परंपरा परंपरा न टूटे इसलिए गयाधाम तीर्थ के पंडा खुद कर रहे पिंडदान, यदि एक दिन भी छूट गया तर्पण तो जाग जाएगा गयासुर होली 2020: राजस्थान के इस गांव में खेली जाती है पत्थरमार होली, सालों पुरानी है परंपरा  अनोखी परंपरा : यहां कांटों के बिस्तर पर सोते हैं लोग, खुद को बताते हैं पांडवो के वंशज Read the full article
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fuckyallbitches · 4 years
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Naturally Paranoid
Hey hey hey are all of the doors locked
Might as well check all the windows too
By your whole family always get mocked
You can’t help how you worry and panic too
Think it’s illogical but these feelings are real
All of them think you’re ugly and so retarded
With all this torturous shit you gotta just deal
You feel like a burden and ya wanna be dead
You think death is the only cure for your OCD
You feel just like you have absolutely no control
Used to be so precious, happy and so carefree
Dumbass seems to have taken over your soul
Wow you are just oh so naturally paranoid
You must be endlessly naturally paranoid
I’ve full control so you’re naturally paranoid
Need control you must be naturally paranoid
Naturally paranoid …
You’ve gotta live in this constant worrying
There’s so much anxiety you have always
Overwhelming sense that doom’s pending
Panic attacks and anxiety attacks all days
You need to be scared outta your own wits
You gotta feel so scared all the damn time
You suddenly just can’t breath oh it just hits
Not to perform the rituals would be a crime
You look like you’re crazy you know for what
You’ve gotten so bad you’ve gone so hella low
Into heads of others oh your head tends to butt
Talk about how bad you are you already know
Wow you are just oh so naturally paranoid
You must be endlessly naturally paranoid
I’ve full control so you’re naturally paranoid
Need control you must be naturally paranoid
Naturally paranoid …
They see how bad you are sometimes pissed
You’ve tried seeking out some professional help
It didn’t help out after they answered your yelp
But you also don’t want anything to be missed
You look inside, try and eventually heal yourself
You are doing better and you are also still alive
You managed to heal yourself and also survive
Sometimes it takes the person to heal themself
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chaitanyabharatnews · 4 years
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अनोखी प्रथा: लॉकडाउन में किसी कुंवारे ने मां पार्वती की मूर्ति चुराकर किया उन्हें होम क्वारंटाइन, इंतजार में अकेले बैठे हैं भोलेनाथ
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चैतन्य भारत न्यूज हिंडाैली. भारत में शादी को लेकर कई ऐसी परंपराएं हैं, जो चौंकाती हैं। ऐसी ही एक परंपरा बूंदी जिले के हिंडाैली कस्बे में निभाई जाती है जहां एक शिव मंदिर से मूर्ति चुराकर ले जाए जाती है और इसके लिए कोई पुलिस केस भी दर्ज नहीं कराया जाता। मंदिर से माता पार्वती की मूर्ति चुराने की परंपरा भी अनूठी है। यहां माना जाता है कि जिस भी युवक की शादी नहीं हो रही या उसकी शादी में दिक्कतें आ रही हैं तो यदि वह इस मंदिर से गुपचुप तरीके से माता पार्वती की मूर्ति चुरा ले जाए तो उसकी शादी जल्द हो जाती है। इसी चक्कर में एक बार फिर माता पार्वती की मूर्ति को कोई चुरा ले गया और मंदिर में अकेले बैठे महादेव उनका इंतजार कर रहे हैं। सावन से भोलेनाथ से बिछुड़ी हुई हैं माता पार्वती यहां रामसागर झील किनारे रघुनाथ घाट मंदिर में पार्वती माता की मूर्ति चुराने की परंपरा निभाई जाती है। शादी करने के चक्कर में कुंवारे युवक मंदिर से रात के अंधेरे में गुपचुप मां पार्वती की मूर्ति उठा ले जाते हैं और जब उनकी शादी हो जाती है तो वह मूर्ति को वापस मंदिर में रख जाते हैं। यहां ज्यादातर भगवान शिव अकेले ही नजर आते हैं। इस बार सावन के पहले से पार्वती जी महादेव से बिछुड़ी हुई हैं। चूंकि लॉकडाउन के चलते शादियां नहीं हो पा रही हैं, लिहाजा अब तक मूर्ति वापस मंदिर में नहीं आ सकी है। फिलहाल पार्वती माता किसी कुंवारे के घर होम क्वारंटाइन में हैं। एक या दो महीने ही मंदिर में रहती हैं पार्वती माता बता दें जुलाई महीने से चार महीने के लिए देव सो जाएंगे, ऐसे में कम ही उम्मीद है कि पार्वतीजी महादेव के पास जल्द लौट आएंगी। पिछले 35 साल से मंदिर के पुजारी के रूप में अपनी सेवा दे रहे रामबाबू पाराशर ने इस बारे में बताया कि, 'अब तक मंदिर से 15 से 20 बार पार्वती माता की मूर्ति चोरी हो चुकी है। मूर्ति चुराने वालों की शादियां भी हुई है। हमें मूर्ति चुराने वालों का पता भी चल जाता है लेकिन हम किसी को भी टोकते नहीं है।' पुजारी के मुताबिक, मंदिर में पार्वती माता की मूर्ति साल में बेहद मुश्किल से एक या दो महीने ही रहती है और फिर उसे कोई चुरा ले जाता है। ये भी पढ़े... यहां फल और पत्थरों से खेला जाता है युद्ध, उत्तराखंड के देवीधुरा स्थित मंदिर में अनूठी परंपरा परंपरा न टूटे इसलिए गयाधाम तीर्थ के पंडा खुद कर रहे पिंडदान, यदि एक दिन भी छूट गया तर्पण तो जाग जाएगा गयासुर होली 2020: राजस्थान के इस गांव में खेली जाती है पत्थरमार होली, सालों पुरानी है परंपरा  अनोखी परंपरा : यहां कांटों के बिस्तर पर सोते हैं लोग, खुद को बताते हैं पांडवो के वंशज Read the full article
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chaitanyabharatnews · 5 years
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बाइक से टकराकर हुई बछड़े की मौत, प्रायश्चित के लिए पंचायत ने सुनाया नाबालिग बेटी की शादी का फरमान
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चैतन्य भारत न्यूज विदिशा. मध्य प्रदेश के विदिशा जिले से एक हैरान कर देने वाला मामला सामने आया है। यहां पंचायत के फरमान पर एक शख्स अपनी नाबालिग बेटी की शादी करवाने जा रहा था। दरअसल, शख्स की एक गलती से बछड़े की जान चली गई थी, जिसके बाद पंचायत ने उसे प्रायश्चित करने के लिए यह फरमान सुनाया। (adsbygoogle = window.adsbygoogle || ).push({}); गलती से हो गई थी बछड़े की मौत जानकारी के मताबिक, कुछ महीने पहले एक शख्स अपने दोपहिया वाहन से कहीं जा रहा था। तभी अचानक एक बछड़ा बीच रोड़ में आ गया और शख्स की गाड़ी से टक्कर होकर उसकी मौत हो गई। इसके बाद उस शख्स ने गंगा स्नान किया और फिर ग्रामीणों दावत देने के लिए राजी हो गया। लेकिन ग्रामीणों ने इससे इनकार कर दिया और कहा कि उसे अपनी नाबालिग बेटी की शादी करनी होगी। आज भी प्रचलित है प्रथा दरअसल, मध्यप्रदेश के कुछ हिस्सों में यह प्रथा आम है कि यदि किसी शख्स से गलती से कोई गाय मारी जाती है तो उस पर सामाजिक प्रतिबंध लगा दिए जाते हैं। इन प्रतिबंधों में या तो उस शख्स को गंगा स्नान करके ग्रामीणों को दावत देनी होती है और या फिर कभी-कभी उसे अपनी नाबालिग बेटी की शादी करने को कहा जाता है। पंचायत फैसला लेते समय लड़की की उम्र नहीं देखती है। गलती से गाय की हत्या करने वाले शख्स को ग्रामीण अपराधी की नजर से देखते हैं। उनका कहना है कि इस पाप से छुटकारा पाने का एकमात्र उपाय कन्यादान ही है। प्रशासनिक टीम ने रूकवाई शादी ग्रामीणों के कहने पर वह शख्स भी अपनी नाबालिग बेटी की शादी करवाने को तैयार हो गया। जैसे ही राज्य महिला और बाल विकास (डब्ल्यूसीडी) विभाग और पुलिस टीम को यह सूचना मिली कि लड़की नाबालिग है तो वह शुक्रवार को तुरंत गांव पहुंच गई। फिर लड़की के परिवार ने प्रशासनिक कार्रवाई का विरोध किया और यह स्वीकार करने से इनकार कर दिया कि लड़की नाबालिग है। लड़की का जन्म वर्ष 2007 डब्ल्यूसीडी की पर्यवेक्षक अनीता मौर्य ने कहा कि, 'सब-डिविजनल मजिस्ट्रेट ने उनसे बाल विवाह के बारे में जांच करने के लिए गांव में जाने को कहा है। लड़की और उसके माता-पिता अनपढ़ हैं और अपने दावे का समर्थन करने के लिए दस्तावेज नहीं दे सके। आधार कार्ड में लड़की की जन्म तिथि 1 जनवरी, 2007 की है जिसके अनुसार वह नाबालिग है।' नाबालिग के परिवार से लिखित में लिया बयान मौर्य के मुताबिक, जब उनकी टीम गांव पहुंची तो वहां लड़की की शादी की तैयारियां हो रही थी। घर में बहुत सारे रिश्तेदार भी थे। दूल्हा आने ही वाला था। लेकिन ऐन वक्त पर पुलिस के पहुंचने से विवाह संपन्न नहीं हो सका। डब्ल्यूसीडी की टीम ने लड़की के परिवारवालों से लिखित में लिया कि, 18 वर्ष की होने तक लड़की की शादी नहीं होगी। टीम ने परिवार के खिलाफ कोई मामला दर्ज नहीं किया गया है। Read the full article
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chaitanyabharatnews · 5 years
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अंधविश्वास : दिवाली आते ही उल्लुओं की जान खतरे में पड़ी, बलि चढ़ाने के लिए लाखों खर्च कर इसे खरीद रहे लोग
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चैतन्य भारत न्यूज लखीमपुर खीरी. जल्द ही दिवाली आने वाली है और ऐसे में उल्लुओं की जान पर खतरा मंडरा रहा है। दरअसल दिवाली पर कुछ लोग तंत्र साधना और सिद्धि पाने के लिए उल्लुओं की बलि देने जैसे अंधविश्वास के चलते इस लुप्तप्राय पक्षी की जान ले लेते हैं। उत्तरप्रदेश के लखीमपुर खीरी के दुधवा टाइगर रिजर्व में भी उल्लुओं के दुश्मन एक बार फिर सक्रिय हो गए हैं। ऐसे में वन विभाग को अलर्ट पर रखा गया है। (adsbygoogle = window.adsbygoogle || ).push({}); दुधवा में पाए जाते 12 प्रजाति के उल्लू जानकारी के मुताबिक, भारत-नेपाल बॉर्डर से सटे हुए दुधवा टाइगर रिजर्व में करीब 12 प्रजाति के उल्लू पाए जाते हैं। इनमें से कुछ प्रजाति बेहद दुर्लभ हैं। दिवाली आते ही लोग उल्लुओं को पकड़ने निकल जाते हैं, इसलिए दुधवा पार्क प्रशासन ने उल्लुओं की सुरक्षा के लिए दुधवा पार्क को अलर्ट मोड पर रखा है। यहां गश्त के साथ ही नाईट पेट्रोलिंग भी की जाती है। इसके अलावा जंगल के जिन भी इलाकों में वाहन नहीं जा पाते हैं, वहां हाथी पर सवार होकर गश्त की जा रही है। उल्लुओं की कीमत 20 से 30 लाख रुपए उल्लू देवी लक्ष्मी का वाहन है। लेकिन कुछ अंधविश्वासी तांत्रिक और अघोरियों का मानना है कि अगर दिवाली की रात में विशेष नक्षत्र पर तंत्र-मंत्र क्रिया द्वारा उल्लू की बलि दी जाए तो सभी मनोकामना पूर्ण होती है। सूत्रों के मुताबिक, इसी अंधविश्वास के चलते दिल्ली, मुंबई समेत कई बड़े महानगरों में लोग एक उल्लू को 20 से 30 लाख रुपए में तस्करों से चोरी-छिपे खरीद रहे हैं। गाजियाबाद में पुलिस ने दो दिन पहले ही दो लोगों को दुर्लभ प्रजाति के उल्लू को पांच उल्लुओं के साथ गिरफ्तार किया था। जानकारी के मुताबिक, यह तस्कर किसी अघोरी के माध्यम से इन उल्लुओं को एक करोड़ से ज्यादा कीमत पर बेचने के लिए लाए थे, लेकिन समय रहते पुलिस ने दोनों तस्करों को गिरफ्तार कर लिया। उल्लू से जुड़ा ये है अंधविश्वास दुधवा बफर जोन के डीएफओ अनिल पटेल ने बताया कि, दिवाली पर उल्लुओं की बलि देने की भ्रामक प्रथा सदियों से चली आ रही है। मान्यता है कि उल्लुओं की बलि देने पर माता लक्ष्मी की प्राप्ति होती है। एक अन्य तांत्रिक के मुताबिक, दिवाली पर एक विशेष पूजा की जाती है। इस दिन सभी साधु और तांत्रिक तंत्र सिद्धि पाने के लिए 42 दिनों की विशेष पूजा करते हैं। इस पूजा के अंतिम दिन उल्लुओं की बलि दी जाती है। लेकिन लोगों को यह नहीं समझ आता कि, किसी जानवर की बलि देने से आखिर कैसे धन की प्राप्ति होती है। धन की प्राप्ति के लिए कड़ी मेहनत करनी पड़ती है। Read the full article
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chaitanyabharatnews · 5 years
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अनोखी प्रथा : भारत के इस राज्य में भाई-बहन आपस में करते हैं शादी, वरना लगता है जुर्माना
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चैतन्य भारत न्यूज हमारे देश के हर राज्य में शादी को लेकर कई तरह की प्रथाएं हैं। लेकिन कुछ जगहों पर ऐसी अजीबोगरीब प्रथाएं भी निभाई जाती हैं जिसके बारे में सुनकर हैरानी होने लगती है। हम आपको आज एक ऐसी ही अनोखी परंपरा के बारे में बता रहे हैं जिसमें भाई-बहन को आपस में शादी करनी पड़ती है। (adsbygoogle = window.adsbygoogle || ).push({}); यह प्रथा छत्तीसगढ़ जिले के आदिवासी इलाके में रहने वाले 'धुरवा' नामक एक जनजाति में पिछले कई सालों से निभाई जा रही है। इस जनजाति की एक अजीब बात यह है कि यहां के लोग खून के रिश्तों को नहीं मानते हैं। इसलिए ये लोग अपनी बहन की बेटी से ही अपने बेटे की शादी करवा देते हैं। शादी करने से पहले न तो लड़के और न लड़की से पूछा जाता है। बस उनके परिवार वालों से ही पूछा जाता हैं। यदि परिवार वाले ऐसा करने से इंकार कर देते हैं तो उन्हें भारी जुर्माना तक भरना पड़ जाता है।
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जी हां... हम यहां बात कर रहे हैं भारत के छत्तीसगढ़ जिले के आदिवासी इलाके की जहां रहने वाली 'धुरवा' नामक एक जनजाती है जो कि सालों से एक अजीबोगरीब प्रथा निभा रही है। इस जनजाति की सबसे अजीब बात ये हैं कि ये लोग खून के रिश्तों को नहीं मानते और इसी के चलते ये लोग अपनी बहन की बेटी से अपने बेटे की शादी करवा देते हैं।
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न सिर्फ भाई-बहन की शादी बल्कि इसके अलावा भी यहां एक और परंपरा निभाई जाती है जो कि बहुत अजीब है। यहां शादी के वक्त दूल्हा-दुल्हन अग्नि के बजाए पानी को साक्षी मानकर उसके चारो ओर घूमकर फेरे लेते हैं। शादी के समय पूरा गांव और धुरवा समुदाय वहां मौजूद रहता है और इस शादी का गवाह बनता है। धुरवा समुदाय के लोग किसी शुभ अवसर पर पानी और पेड़ की भी पूजा करते हैं। ये भी पढ़े... अनोखी परंपरा : अपनी ही शादी में शामिल नहीं हो सकता दूल्हा, बहन ले जाती है बार���त और लेती है सात फेरे सभी रस्मों-रिवाज से हुई कुत्ते-कुतिया की शादी, DJ की धुन पर निकली बारात, दहेज भी मिला मप्र : पहले कराई शादी, अब बारिश से परेशान लोगों ने करवाया मेंढक-मेंढकी का तलाक   Read the full article
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chaitanyabharatnews · 5 years
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अनोखी प्रथा : भारत के इस राज्य में भाई-बहन आपस में करते हैं शादी, वरना लगता है जुर्माना
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चैतन्य भारत न्यूज हमारे देश के हर राज्य में शादी को लेकर कई तरह की प्रथाएं हैं। लेकिन कुछ जगहों पर ऐसी अजीबोगरीब प्रथाएं भी निभाई जाती हैं जिसके बारे में सुनकर हैरानी होने लगती है। हम आपको आज एक ऐसी ही अनोखी परंपरा के बारे में बता रहे हैं जिसमें भाई-बहन को आपस में शादी करनी पड़ती है। (adsbygoogle = window.adsbygoogle || ).push({}); यह प्रथा छत्तीसगढ़ जिले के आदिवासी इलाके में रहने वाले 'धुरवा' नामक एक जनजाति में पिछले कई सालों से निभाई जा रही है। इस जनजाति की एक अजीब बात यह है कि यहां के लोग खून के रिश्तों को नहीं मानते हैं। इसलिए ये लोग अपनी बहन की बेटी से ही अपने बेटे की शादी करवा देते हैं। शादी करने से पहले न तो लड़के और न लड़की से पूछा जाता है। बस उनके परिवार वालों से ही पूछा जाता हैं। यदि परिवार वाले ऐसा करने से इंकार कर देते हैं तो उन्हें भारी जुर्माना तक भरना पड़ जाता है।
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जी हां... हम यहां बात कर रहे हैं भारत के छत्तीसगढ़ जिले के आदिवासी इलाके की जहां रहने वाली 'धुरवा' नामक एक जनजाती है जो कि सालों से एक अजीबोगरीब प्रथा निभा रही है। इस जनजाति की सबसे अजीब बात ये हैं कि ये लोग खून के रिश्तों को नहीं मानते और इसी के चलते ये लोग अपनी बहन की बेटी से अपने बेटे की शादी करवा देते हैं।
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न सिर्फ भाई-बहन की शादी बल्कि इसके अलावा भी यहां एक और परंपरा निभाई जाती है जो कि बहुत अजीब है। यहां शादी के वक्त दूल्हा-दुल्हन अग्नि के बजाए पानी को साक्षी मानकर उसके चारो ओर घूमकर फेरे लेते हैं। शादी के समय पूरा गांव और धुरवा समुदाय वहां मौजूद रहता है और इस शादी का गवाह बनता है। धुरवा समुदाय के लोग किसी शुभ अवसर पर पानी और पेड़ की भी पूजा करते हैं। ये भी पढ़े... अनोखी परंपरा : अपनी ही शादी में शामिल नहीं हो सकता दूल्हा, बहन ले जाती है बारात और लेती है सात फेरे सभी रस्मों-रिवाज से हुई कुत्ते-कुतिया की शादी, DJ की धुन पर निकली बारात, दहेज भी मिला मप्र : पहले कराई शादी, अब बारिश से परेशान लोगों ने करवाया मेंढक-मेंढकी का तलाक   Read the full article
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chaitanyabharatnews · 5 years
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प्रेम कहानी की याद में यहां दो गांव एक-दूसरे पर बरसाते हैं पत्थर, अब तक 13 लोगों की हुई मौत!
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चैतन्य भारत न्यूज छिंदवाड़ा. मध्य प्रदेश के छिंदवाड़ा जिले में सावरगांव और पांढुर्णा के बीच शनिवार को ऐसा युद्ध हुआ जिसमें दोनों तरफ से पत्थर ही पत्थर बरसे। पत्थरबाजी वाले इस युद्ध में खून-खराबा भी होता है। स्थानीय लोगोंं के लिए तो ये एक प्रथा है तो लेकिन अन्य लोग इसे कुप्रथा मानते हैंं।
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पांढुर्णा में हर साल पोला त्योहार के दूसरे दिन लगने वाले इस मेले का नाम 'गोटमार मेला' है। यह मेला जाम नदी के पास में लगता है। इस बार भी पुलिस और प्रशासन की तगड़ी सुरक्षा के बीच गोटमार मेला शुरू हुआ। इस मेले का आयोजन एक प्रेम कहानी की याद में किया जाता है। मेले में सावरगांव और पांढुर्���ा के लोग जमा होते हैं और फिर वे एक-दूसरे के ऊपर पत्थर बरसाना शुरू कर देते हैं। इसके पीछे एक कहानी प्रचलित है।
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कहा जाता है कि पांढुर्ना गांव का एक युवक सावरगांव की आदिवासी युवती से प्रेम विवाह करने के उद्देश्य से उसे अगवा कर ले गया था। इसके बाद दोनों गांवों के लोगों के बीच पत्थरबाजी शुरू हो गई थी, जिसमें प्रेमी युगलों की मौत हो गई थी। उसके बाद से ही इन शहीद युवक-युवती की याद में हर साल पोला के दूसरे दिन यह प्रथा दोहराई जाती है। जानकारी के मुताबिक, ग्रामीण चंडी माता को प्रसन्न करने के लिए जाम नदी के बीच में पलाश के पेड़ की टहनी और एक झंडा गाड़ा जाता है। इस झंडे को दोनों तरफ से चल रहे पत्थरों से उखाड़ना होता है। जिस भी गांव के लोग झंडा उखाड़ लेते हैं, वे जीत जाते हैं। फिर उस झंडे को चंडी माता को चढ़ा दिया जाता है।
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यह खेल सुबह से शुरू हो जाता है जो कि सूर्यास्त तक चलता है। इस पत्थरबाजी वाले खेल में हर साल सैंकड़ों लोग घायल होते हैं। इस खेल में पिछले साल एक व्यक्ति की मौत हो गई थी। रिपोर्ट्स के मुताबिक, 1955 से शुरू हुए इस खेल में अब तक कुल 13 लोगों की मौत हो चुकी है। पुलिस और जिला प्रशासन द्वारा घायलों के उपचार के लिए आयोजन स्थल पर अस्थाई उपचार केंद्र भी बनाए जाते हैं। इसके अलावा गंभीर रूप से घायल हुए लोगों को अस्पताल ले जाने के लिए विशेष एंबुलेंस की भी व्यवस्था की जाती है। खेल के दौरान बड़ी संख्या में पुलिस बल तैनात रहता है। ये भी पढ़े...  यहां फल और पत्थरों से खेला जाता है युद्ध, उत्तराखंड के देवीधुरा स्थित मंदिर में अनूठी परंपरा अनोखी परंपरा : अपनी ही शादी में शामिल नहीं हो सकता दूल्हा, बहन ले जाती है बारात और लेती है सात फेरे Read the full article
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chaitanyabharatnews · 5 years
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यहां फल और पत्थरों से खेला जाता है युद्ध, उत्तराखंड के देवीधुरा स्थित मंदिर में अनूठी परंपरा
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चैतन्य भारत न्यूज देहरादून. उत्तराखंड के चंपावत जिले में देवीधुरा स्थित मां बाराही देवी के मैदान में फल, फूल और पत्थरों से युद्ध लड़ने की अनूठी परंपरा है। हर साल रक्षाबंधन के दिन इसका आयोजन किया जाता है। इसे  'बग्वाल' कहा जाता है। गुरुवार को हुआ यह युद्ध करीब नौ मिनट चला। इसमें 122 योद्धा मामूली रूप से घायल हो गए।
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इसमें भक्त परंपरा के मुताबिक लोग आपस में पत्थरों से लड़ाई करते है। मान्यता है कि मंदिर में नर बलि की परंपरा थी जिसके बाद आधुनिक रूप में यह बग्वाल मेला बन गया। कहा जाता है कि एक आदमी के खून जितना रक्त बहता है तब यह पत्थरों का युद्ध रुकता है। बग्वाल मेला देवीधुरा इलाके में पड़ने वाले गांव के लोग ही खेलते हैं। इसमें वहां रहने वाली जातियां इस पूरे मेले में मिलकर काम करती हैं और इस मेले को सफल बनाती हैं। बग्वाल मेला खेलने वाले लोग ‘द्योका’ कहलाते हैं। इस युद्ध को खेलने के लिए अलग-अलग खाम होते हैं जो गांव की ही अलग-अलग जातियों के लोग होते हैं। इनकी टोलियां ढोल-नगाड़ों के साथ किरंगाल की बनी हुई छतरी जिसे छंतोली कहते हैं, सहित अपने पूरे समूह के साथ मंदिर परिसर में पहुंचते हैं। वहां सभी सर पर कपडा बंधे हाथों में सजा फर्र-छंतोली लेकर मंदिर के सामने परिक्रमा करते हैं।
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यहां चार मुख्य खाम हैं जो मैदान में चारों दिशाओं से पत्थर बरसाते हैं। ये चारों खाम गढ़वाल, वालिक, चम्याल तथा लमगड़िया हैं। मंदिर में रखा देवी विग्रह एक पेटी में बंद रहता है। उसी के समक्ष पूजन संपन्न होता है। मान्यता है कि पूजन की वजह से ही इसमें घायल लोग तुरंत ठीक हो जाते हैं। वर्तमान समय में अब पत्थरों के साथ फूल व फल भी फेंके जाते हैं। मां बाराही धाम, उत्तराखंड राज्य में लोहाघाट-हल्द्वानी मार्ग पर लोहाघाट से लगभग 45 किमी की दूरी पर स्थित है। यह स्थान सुमद्रतल से लगभग 6500 फीट ऊंचाई पर स्थित है। Read the full article
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chaitanyabharatnews · 5 years
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अनोखी परंपरा : अपनी ही शादी में शामिल नहीं हो सकता दूल्हा, बहन ले जाती है बारात और लेती है सात फेरे
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चैतन्य भारत न्यूज दूल्हे के बिना किसी भी शादी की कल्पना नहीं की जा सकती है। लेकिन हम आपको एक ऐसी अनोखी परंपरा के बारे में बता रहे हैं जिसमें दूल्हे के बिना ही शादी करवाई जाती है। जी हां... इस परंपरा के तहत विवाह दूल्हे की गैर-मौजूदगी में किया जाता है। परंपरा के मुताबिक, शादी में दूल्हे की जिम्मेदारी उसकी कोई अविवाहित बहन या उसके परिवार की कोई अविवाहित महिला निभाती है। ये अनोखी परंपरा गुजरात के छोटा उदयपुर के आदिवासी समुदाय में निभाई जाती है। इस परंपरा के तहत शादी के दिन दूल्हा घर पर अपनी मां के साथ ही रुकेगा। उसकी जगह बहन बारात लेकर जाएगी। फिर दूल्हे की बहन ही सात फेरे लेगी और दुल्हन को विदा करवाकर घर लाएगी। स्थाानीय निवासी कांजीभाई राठवा ने इस बारे में बताया कि, 'परंपरागत रूप से जिन रस्मों को दूल्हा निभाता है, उसकी जगह यह काम बहन को करना होता है। वह भाई की जगह दुल्हन के साथ 'मंगल फेरे' लेती है।' यह प्रथा तीन गांवों में निभाई जाती है। ये तीन गांव हैं सुरखेड़ा, सनाडा और अंबल। मान्यता है कि, यदि शादी में ऐसा नहीं किया तो कुछ अमंगल होगा। गांव के मुखिया रामसिंहभाई राथवा ने बताया, 'कई लोगों ने इस प्रथा को तोड़ने की कोशिश की और फिर उनके साथ बुरा हुआ। या तो उनकी शादी टूट गई या उनके घर में अलग तरह की परेशानियां आईं।' हैरानी की बात ये है कि शादी के दूल्हा शेरवानी पहन सकता है, साफा बांध सकता है और तलवार भी धारण कर सकता है, लेकिन वह अपनी शादी में शामिल नहीं हो सकता। गांव के लोगों का कहना है कि, ये परंपरा सदियों से निभाई जा रही है। यह अब आदिवासी संस्कृति का हिस्सा बन चुकी है। तीनों गांव में मान्यता है कि, यहां के पुरुष देवता कुंवारे हैं और उनके सम्मान में ही ग्रामीण दूल्हों को घर में ही रखते हैं। Read the full article
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chaitanyabharatnews · 4 years
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अनोखी प्रथा: लॉकडाउन में किसी कुंवारे ने मां पार्वती की मूर्ति चुराकर किया उन्हें होम क्वारंटाइन, इंतजार में अकेले बैठे हैं भोलेनाथ
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चैतन्य भारत न्यूज हिंडाैली. भारत में शादी को लेकर कई ऐसी परंपराएं हैं, जो चौंकाती हैं। ऐसी ही एक परंपरा बूंदी जिले के हिंडाैली कस्बे में निभाई जाती है जहां एक शिव मंदिर से मूर्ति चुराकर ले जाए जाती है और इसके लिए कोई पुलिस केस भी दर्ज नहीं कराया जाता। मंदिर से माता पार्वती की मूर्ति चुराने की परंपरा भी अनूठी है। यहां माना जाता है कि जिस भी युवक की शादी नहीं हो रही या उसकी शादी में दिक्कतें आ रही हैं तो यदि वह इस मंदिर से गुपचुप तरीके से माता पार्वती की मूर्ति चुरा ले जाए तो उसकी शादी जल्द हो जाती है। इसी चक्कर में एक बार फिर माता पार्वती की मूर्ति को कोई चुरा ले गया और मंदिर में अकेले बैठे महादेव उनका इंतजार कर रहे हैं। सावन से भोलेनाथ से बिछुड़ी हुई हैं माता पार्वती यहां रामसागर झील किनारे रघुनाथ घाट मंदिर में पार्वती माता की मूर्ति चुराने की परंपरा निभाई जाती है। शादी करने के चक्कर में कुंवारे युवक मंदिर से रात के अंधेरे में गुपचुप मां पार्वती की मूर्ति उठा ले जाते हैं और जब उनकी शादी हो जाती है तो वह मूर्ति को वापस मंदिर में रख जाते हैं। यहां ज्यादातर भगवान शिव अकेले ही नजर आते हैं। इस बार सावन के पहले से पार्वती जी महादेव से बिछुड़ी हुई हैं। चूंकि लॉकडाउन के चलते शादियां नहीं हो पा रही हैं, लिहाजा अब तक मूर्ति वापस मंदिर में नहीं आ सकी है। फिलहाल पार्वती माता किसी कुंवारे के घर होम क्वारंटाइन में हैं। एक या दो महीने ही मंदिर में रहती हैं पार्वती माता बता दें जुलाई महीने से चार महीने के लिए देव सो जाएंगे, ऐसे में कम ही उम्मीद है कि पार्वतीजी महादेव के पास जल्द लौट आएंगी। पिछले 35 साल से मंदिर के पुजारी के रूप में अपनी सेवा दे रहे रामबाबू पाराशर ने इस बारे में बताया कि, 'अब तक मंदिर से 15 से 20 बार पार्वती माता की मूर्ति चोरी हो चुकी है। मूर्ति चुराने वालों की शादियां भी हुई है। हमें मूर्ति चुराने वालों का पता भी चल जाता है लेकिन हम किसी को भी टोकते नहीं है।' पुजारी के मुताबिक, मंदिर में पार्वती माता की मूर्ति साल में बेहद मुश्किल से एक या दो महीने ही रहती है और फिर उसे कोई चुरा ले जाता है। ये भी पढ़े... यहां फल और पत्थरों से खेला जाता है युद्ध, उत्तराखंड के देवीधुरा स्थित मंदिर में अनूठी परंपरा परंपरा न टूटे इसलिए गयाधाम तीर्थ के पंडा खुद कर रहे पिंडदान, यदि एक दिन भी छूट गया तर्पण तो जाग जाएगा गयासुर होली 2020: राजस्थान के इस गांव में खेली जाती है पत्थरमार होली, सालों पुरानी है परंपरा  अनोखी परंपरा : यहां कांटों के बिस्तर पर सोते हैं लोग, खुद को बताते हैं पांडवो के वंशज Read the full article
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chaitanyabharatnews · 4 years
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चैतन्य भारत न्यूज हिंडाैली. भारत में शादी को ��ेकर कई ऐसी परंपराएं हैं, जो चौंकाती हैं। ऐसी ही एक परंपरा बूंदी जिले के हिंडाैली कस्बे में निभाई जाती है जहां एक शिव मंदिर से मूर्ति चुराकर ले जाए जाती है और इसके लिए कोई पुलिस केस भी दर्ज नहीं कराया जाता। मंदिर से माता पार्वती की मूर्ति चुराने की परंपरा भी अनूठी है। यहां माना जाता है कि जिस भी युवक की शादी नहीं हो रही या उसकी शादी में दिक्कतें आ रही हैं तो यदि वह इस मंदिर से गुपचुप तरीके से माता पार्वती की मूर्ति चुरा ले जाए तो उसकी शादी जल्द हो जाती है। इसी चक्कर में एक बार फिर माता पार्वती की मूर्ति को कोई चुरा ले गया और मंदिर में अकेले बैठे महादेव उनका इंतजार कर रहे हैं। सावन से भोलेनाथ से बिछुड़ी हुई हैं माता पार्वती यहां रामसागर झील किनारे रघुनाथ घाट मंदिर में पार्वती माता की मूर्ति चुराने की परंपरा निभाई जाती है। शादी करने के चक्कर में कुंवारे युवक मंदिर से रात के अंधेरे में गुपचुप मां पार्वती की मूर्ति उठा ले जाते हैं और जब उनकी शादी हो जाती है तो वह मूर्ति को वापस मंदिर में रख जाते हैं। यहां ज्यादातर भगवान शिव अकेले ही नजर आते हैं। इस बार सावन के पहले से पार्वती जी महादेव से बिछुड़ी हुई हैं। चूंकि लॉकडाउन के चलते शादियां नहीं हो पा रही हैं, लिहाजा अब तक मूर्ति वापस मंदिर में नहीं आ सकी है। फिलहाल पार्वती माता किसी कुंवारे के घर होम क्वारंटाइन में हैं। एक या दो महीने ही मंदिर में रहती हैं पार्वती माता बता दें जुलाई महीने से चार महीने के लिए देव सो जाएंगे, ऐसे में कम ही उम्मीद है कि पार्वतीजी महादेव के पास जल्द लौट आएंगी। पिछले 35 साल से मंदिर के पुजारी के रूप में अपनी सेवा दे रहे रामबाबू पाराशर ने इस बारे में बताया कि, 'अब तक मंदिर से 15 से 20 बार पार्वती माता की मूर्ति चोरी हो चुकी है। मूर्ति चुराने वालों की शादियां भी हुई है। हमें मूर्ति चुराने वालों का पता भी चल जाता है लेकिन हम किसी को भी टोकते नहीं है।' पुजारी के मुताबिक, मंदिर में पार्वती माता की मूर्ति साल में बेहद मुश्किल से एक या दो महीने ही रहती है और फिर उसे कोई चुरा ले जाता है। ये भी पढ़े... यहां फल और पत्थरों से खेला जाता है युद्ध, उत्तराखंड के देवीधुरा स्थित मंदिर में अनूठी परंपरा परंपरा न टूटे इसलिए गयाधाम तीर्थ के पंडा खुद कर रहे पिंडदान, यदि एक दिन भी छूट गया तर्पण तो जाग जाएगा गयासुर होली 2020: राजस्थान के इस गांव में खेली जाती है पत्थरमार होली, सालों पुरानी है परंपरा  अनोखी परंपरा : यहां कांटों के बिस्तर पर सोते हैं लोग, खुद को बताते हैं पांडवो के वंशज Read the full article
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