#rdow 2018
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sadharan · 6 years ago
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इंतज़ार करना होगा
झूठ तुरंत जीत जाता है और सच छिप जाता है जब समय बित जाता है तो सच बाहर आता है
अगर आप सही हो तो कुछ गलत नहीं होगा लेकिन इंतज़ार करना होगा उस दिन का जब सब सही होगा
~ राहुल सिंह 
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sadharan · 6 years ago
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अचानक
कई लोग रोज़ टकराते हैं आँखों के सामने से निकल जाते हैं पर कोई एक ही होता है जिस पर नज़र ठहर जाती है
न यह भूत में होती है न यह भविष्य में होती है यह अभी इसी क्षण में होती है मोहब्बत अचानक ही होती है
~ राहुल सिंह 
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sadharan · 6 years ago
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हार नहीं मान पाता हूँ
कुछ भी करता हूँ कार्य नहीं बनता है बार बार प्रयत्न करता हूँ क्योंकि खाली नहीं बैठ पाता हूँ ना
हमेशा सच का साथ देता हूँ फिर भी हार जाता हूँ क्या करूँ मैं भी अपनी नज़रों में गिर नहीं पाता हूँ ना
मेरी वफ़ा का कोई ईनाम नहीं मिला मुझको अलबत्ता मुझे गद्दार कहा गया फिर भी मेरी वफ़ा डगमगाई नही क्योंकि धोखा नहीं दे पाता हूँ ना
आसान नही है कुछ भी मेरे लिए इसलिए हर बार करता हूँ वक़्त का सामना मेरी जिंदगी बहुत कठिन है क्योंकि हार नहीं मान पाता हूँ ना
~ राहुल सिंह 
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sadharan · 6 years ago
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पत्थर भी सितारे बन जाते हैं
अगर तू ग़ुलाम है तो इसमे तेरी मर्ज़ी शामिल है अगर तू लाचार है तो इसमे तेरी मर्ज़ी  शामिल है अगर तू बेबस है तो इसमे तेरी मर्ज़ी शामिल है अगर तू कमज़ोर है तो इसमे तेरी मर्ज़ी शामिल है
किसी ने रोका नहीं है तुझे इन पहाड़ों की चोटीयों पर जाने से किसी ने रोका नहीं है तुझे यह कहने को की, मैं जीवित हूँ किसी ने रोका नहीं है तुझे इन पर्वतों की ऊंचाइयां से ये कहने को कि, मैं  आज़ाद हूँ, मैं  आज़ाद हूँ, मैं  आज़ाद हूँ
गू��जती है यहाँ आवाज़ जरा दहाड़ कर तो देख पत्थर भी सितारे बन जाते हैं ज़रा पत्थर को आसमां में उछाल कर तो देख
~ राहुल सिंह 
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sadharan · 6 years ago
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हार कर जाने वालों में मैं नही
कई लोग मुझे धक्का दे रहे थे यह लोग मुझे गिराना चाहते थे बड़ी पीड़ा झेल रहा था मैं मेरे एक-एक रोम छिद्र सभी दिशाओं में लड़ाई लड़ रहे थे
जीवन में ऐसा समय कभी कभी आता है जब सब साथ छोड़ जाते हैं और लड़ना पड़ता है अकेला पर सवाल उठता है किसने मुझे इस धरती पर है धकेला
कुछ और समझ आये या न आये समझ आता है गलत और सही अब आ गया हूँ तो लडूगा तो ज़रूर क्योंकि हार कर जाने वालों में मैं नही
~ राहुल सिंह 
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sadharan · 6 years ago
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मानव का मुकद्दर
जब पानी बर्फ बन जम सकता है और लोहा पिघल सकता है जब धूल से अंतरिक्ष में सितारा बन सकता है जब जमीं में दबा पत्थर भी हीरा बन सकता है तो फिर मानव का मुकद्दर कैसे नहीं बदल सकता है
~ राहुल सिंह
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sadharan · 6 years ago
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इत्तेफाक
कल मैं ख़ुद अपनी मर्जी से उससे मिलने गया था उसे लगा मैं यूँ ही मिलने चला आया आज जब सड़क पर पड़े फूलों को मैंने उठा लिया तभी इत्तेफाक से बाज़ार में वह मिल गई, उसे लगा मैं ये फ़ूल उसके लिए लाया
~ राहुल सिंह 
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sadharan · 6 years ago
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पुराने हिसाब
महकने की बात चली तो उन गुलाबों की याद आई दर्द की बात चली तो उन काँटों की याद आई मुझे न ग़ुलाब चाहिए न काटें पर उपर वाले ने पुराने हिसाब के पर्चे हमेशा हैं बाटें
कर्म की गति कभी नहीं रूकती बंद कमरों में बैठने पर भी सांसे है चलती सांस लेने और छोड़ने में ही कर्म का बंधन लग जाता है लगता है इसकी कोई और तरकीब है जो बंधन छुड़ाता है
जो खुद को बड़ा माने वह बंधता जाता है जो स्वयं को कुछ न समझे वह छूटता जाता है और जब श्रीहरि का साथ मिल जाए तो फिर वह तर जाता है
~ राहुल सिंह 
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sadharan · 7 years ago
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पहला कदम
मजबूरियां जो मेरे बस में नहीं   उस पर क्या कहूँ लेकिन इतना तो कर सकू कि दुनिया में इज़्ज़त से रह सकू
दुःख को गले लगा ले वह सुख को आगे कर देगा कहेगा गले लगना मेरा काम नहीं पीछे पड़ना मेरा काम है
जो अपना नहीं है उसे छीन कर लेने में शान नही और जो मेरा है उसे छोड़ देना मेरी पहचान नही
मदद मांगना बुरा नहीं भीख़ मांगना बुरा है कोशिश न करने में है एक अधूरापन और प्रयत्न करना पूरा है
तू बस चल पड़ समय की चिंता मत कर ज्यादा से ज्यादा गिर पड़ेगा तो फिर से शुरू कर
सफर में कई बार गिरते हैं और बार बार शुरू करते हैं वो पहला कदम जमीन पर ही रखते है जो हिमालय के शिखर पर पहुँचते हैं
~ राहुल सिंह
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sadharan · 7 years ago
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मेरी हर सांस में भारत है मौजूद
बड़ी तकलीफ़ होती है जब अकेला रहना पड़ता है बड़ी तकलीफ़ होती है जब माँ बाप से दूर रहना पड़ता है क्यों जिंदगी ऐसी है जो मुझे अपनों से दूर ले जाती है क्यों जिंदगी एक पहेली है जो सवालों को जवाबों से दूर ले जाती है
मैं मेहनत करने को तैयार हूँ लेकिन जिंदगी नहीं मानती मैं काटों पर चलने को तैयार हूँ लेकिन ये फिर भी नहीं मानती चाहे लग जाएँ साल हज़ार मेरी मंजिल है कहीं न कहीं मुझे भी सब कुछ चाहिए या फिर कुछ भी नहीं
अंगारों पर मैं चलूँगा, पाप अपने सारे भस्म करूँगा अगर गणित पुण्य पाप का है क्या जमीं क्या आसमां, अंतरिक्ष पर छा जाऊँगा अगर गणित माँ बाप का है
मेरा गांव मेरा देश, मेरी मट्टी मेरा शेष मैं भारत का सपूत, मैं हूँ विशेष गायों का दूध और मेरा वज़ूद मेरी हर सांस में भारत है मौजूद
~ राहुल सिंह 
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sadharan · 7 years ago
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इसे अभी संवरना है
धूल के ग़ुबार उड़ रहे थे हज़ारों अश्व दौड़ रहे थे लगता है आक्रमणकारी आया है पश्चिम से एक बार फिर अपनी सेना लाया है
यह आक्रमणकारी बार बार क्यों आता है ये पश्चिम से ही क्यों आता है रेगिस्तान को ही क्यों भुगतना पड़ता है मेरे इन रेत के कणों को ही क्यों तपना पड़ता है
राजपूत किलों में बैठ कर दुश्मन का इंतजार नहीं करता था निकल पड़ता था अपने रणबांकुरों के साथ भीड़ जाता था इन विदेशियों से हर बार ऐसा करते करते निकल गये साल हज़ार
मेरी धरती मेरी रेत का एक एक कण पवित्र है, सोना है पूरी चमक के साथ जीती है मैंने हर जंग देश की   और हर बार दुश्मन आया है मेरे हाथ
न देखना ख़्वाब में भी इसे, जल जाएगी तेरी आंखें रेगिस्तान का एक एक कण मेरा अपना है मेरी धरती के श्रृंगार का रंग लाल है न आना इस ओर, इसे अभी संवरना है
~ राहुल सिंह 
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sadharan · 7 years ago
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तुम्हारा सपना
जो ईमानदार है कर्मठ है लोकप्रिय है उसी का विरोध है, उसी पर आक्रमण है क्योंकि समाज बटा हुआ है, लोग बटें हुयें हैं मन संकुचित है और झूठ का संक्रमण है
चुनना उसी को जो कहे मेहनत करो चुनना उसी को जो खुद मेहनती हो झूठे नेता लालच देंगे, मुफ़्त का अनाज देंगे तुम्हे खरीदेंगे, न बिकना, क्योंकि तुम बेबाक हो
झूठ में बड़ी एकता होती है लेकिन उम्र उसकी नही ज्यादा होती है झूठ के लालच में आ गए तो समझों बट गए अगर बट गए तो समझो गल गए
कल जो बीज बोया था आज वह पोधा है धैर्य के साथ इंतजार करोंगे तो कल वही विशाल वृक्ष है पौधे को वृक्ष बनने में वक़्त लगता है सच को जमीं से अस्मां होने में वक़्त लगता है
जिस झूठ ने कई वर्षों तक राज़ किया उन्ही की देन है यह देश आज मौका अभी और देना होगा सत्य को देने होंगे कई वर्ष और, यही है वक़्त की आवाज़
नही जरूरत है देश को निष्क्रय लोगो की नहीं जरूरत है देश को विदेशी दलालों की जो आप जैसा है, जो अपना है, उसे ही चुनना फिर बेनागा वैसा भारत जैसा है तुम्हारा सपना
~ राहुल सिंह 
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sadharan · 7 years ago
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शेर का हर बच्चा
बंद  दरवाज़े को बंद  किस्मत भी कहते हैं अगर हौसला हो तो ये दरवाज़े ख़ुद-ब-ख़ुद खुल जाते हैं संसाधन कम हो सकते हैं लेकिन मनोबल बढ़ जाए तो फिर नहीं घटता और एक बार ठान लिया तो फिर मैं पीछे नहीं हटता
हाँ मैं अकेला हूँ इस दुनिया में लेकिन किसी ने तो मुझे है भेजा एक दिन वापस भी जाऊँगा तब तक जिंदगी का यही सच मैंने है सहेजा
मेहनत करो तो यह शरीर भी बन जाता है लोहा कोई मुझे क्या दबाएगा आसमां की तरफ मुँह करके जब दहाडूंगा तो शेर का हर बच्चा बाहर निकल आएगा
~ राहुल सिंह 
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sadharan · 7 years ago
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टाइगर हिल
मौजो की रवानी है दिल आज तूफ़ानी है पहाड़ों पर चढ़ना क्या शुरू किया आसमां बरसा रहा आग का पानी है
लेकिन हम भी कहा रुकने वाले  हैं हर चोट पर चिंगारीयां  निकलती हैं ठंडे पहाड़ों पर भी गर्मी लगती है भूलो मत आग ऊपर की और ही बढ़ती है
कुछ चोर हमारी छत पर आ गए थे सुबह सुबह उन्हें हटाने हम गए थे निकल घंटे पुरे छत्तीस लगे और मुर्दा थे चोर, करगिल   बुलंद है तिरंगा जहाँ पर, कहते है इसे टाइगर हिल
~ राहुल सिंह
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sadharan · 7 years ago
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पृष्ठवंश
जो ऊपर है वह नीचे आयेगा जो नीचे है वह ऊपर जायेगा जो मध्य में है और खुश है वह कहीं नही जायेगा
जिसे सर पर बैठाया है वह नीचे गिर सकता है जिसे पैरों तले दबाया है वह ऊपर उठ सकता है जो रीढ़ की हड्डी के समान साथ खड़ा हो वह किसी से भी नहीं टूट सकता है
जिसकी कोई शुरुआत नहीं जिसका कोई अंत नहीं जो सबके साथ है, सब उसके साथ हैं हर मनुष्य के आँख में अंतरिक्ष के सत्य का अंश है जो हर पल समान है शक्तिमान है वही पृष्ठवंश है
~ राहुल सिंह 
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sadharan · 7 years ago
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जुगलबंदी
जिस ज़मीन पर आप पैदा होते हो वह ज़मीन आपका देश होती है जिस ज़मीन पर आप अपनी रोटी कमाते हो   वह ज़मीन आपका देश होती है
जो आपको जन्म देती है वह आपकी माँ होती है जो आपको पल कर बड़ा करती है वह आपकी माँ होती है
क्या पानी पर लकीर खींची जा सकती है क्या आसमान को बाँटा  जा सकता है अगर इनका जवाब ना है तो जमीं पर लकीरें क्यों खींची जाती हैं ?
जब तू ताली बजता है, जब मैं ताली बजता हूँ तो क्या आवाज़ अलग होती है तो फिर कठिनाइयों से भरी इस दुनिया में मैं तेरे लिए और तू मेरे लिए ताली क्यों नहीं बजाते हैं ?
जो अंतरिक्ष से दीखता भी नहीं उस पर हम झगड़तें हैं जब हम कुछ हैं ही नहीं तो फिर क्यों हम अकड़ते हैं
यही सब सोचता मैं इस मिट्टी को मस्तक पर लगता हूँ अपनों से बड़ों के चरणों का स्पर्श करता हूँ फिर आगे बढ़ अपने साथियों को गले लगता हूँ और इसी तरह हर दिन जिंदगी से जुगलबंदी करता हूँ
~ राहुल सिंह 
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