#muktibodh_part263
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harishjhalawar · 4 years ago
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( #Muktibodh_Part263 के आगे पढिए.....) 📖📖📖 #MuktiBodh_Part264 हम पढ़ रहे है पुस्तक "मुक्तिबोध" पेज नंबर 505-506 ◆◆ {एक सच्चे पंचायती का कर्त्तव्य बनता है कि वह सभा में सत्य का पक्ष ले। यदि कोई नहीं मानता है तो सभा छोड़कर चला जाए। विदुर जी ने कर्त्तव्य पूरा किया।} जब द्रोपदी ने देखा कि मैं जिनको अपना संरक्षक मानती थी। जिन बड़े बुजुर्गों पर विश्वास करती थी कि ये कभी अबला को नंगा नहीं होने देंगे। यह मेरी भूल थी। अपना तो परमात्मा है। द्रोपदी श्री कृष्ण को गुरू बनाए हुए थी। आपत्ति में गुरूजी को याद किया जाता है। गुरू में आध्यात्मिक इंटरनैट लग जाता है। उसके माध्यम से भक्त की पुकार परमात्मा के पास जाती है। परमात्मा उस कॉल (call) को धर्मराज के पास डाइवर्ट कर देता है। धर्मराज उस जीवात्मा का पुण्य देखता है। उस पुण्य को परमात्मा के पास तुरंत ई-मेल कर देता है। परमात्मा देखता है कि इसके कौन-से धर्म-कर्म या भक्ति के कारण साधक का संकट निवारण किया जा सकता है? उस आत्मा (द्रोपदी) के खाते में अंधे महात्मा को दिए लीर (छोटा-सा कपड़े का टुकड़ा) के प्रतिफल में सहायता करनी बनती है। उसी समय कबीर परमेश्वर जी सूक्ष्म रूप में द्रोपदी के सिर पर कमल के फूल पर विराजमान हो गए। उस समय श्री कृष्ण जी तो द्वारिका में अपनी पत्नी रूकमणी के साथ चौपड़ खेल रहे थे। श्री कृष्ण जी चौपड़ पासे डालकर अचानक बोले ‘‘अनंत’’ और ऊपर को हाथ उठा लिया। यह परमात्मा कबीर जी ने रिमोट से बुलवाया था। गुरू के माध्यम से परमात्मा की शक्ति संकट वाले साधक के पास जाती है। पासे डालकर बोलना तो चाहिए था कच्चे बारह या पक्के अठारह, परंतु बोलने लगे अनंत-अनंत। तब रूकमणी ने श्री कृष्ण जी का (कर) हाथ पकड़ा जो आशीर्वाद के लिए उठा हुआ था। पूछा कि यह अनंत किसलिए कहा? मुझे समझाओ। श्री कृष्ण की दिव्य दृष्टि परमात्मा ने खोल दी। कहा कि दुःशासन ने द्रोपदी को पकड़ रखा है। उसका चीर उतारना चाहता है। हमारी भक्ति तीन लोक में सबसे ऊँची (सकल में शिखरी) है। हमारे भक्त की हार हो गई तो हमारा नाम ना लेवे कोई। {यह सब कुछ परमात्मा कबीर जी कृष्ण जी से बुलवा रहे थे ताकि परमात्मा में आस्था मानव की बनी रहे। काल चाहता है कि मानव गलत साधना करे। उससे उसको कोई लाभ न हो। नास्तिक हो जाए। अंधा बाबा की भूमिका भी स्वयं परमात्मा कबीर जी ने की थी। जिस कारण से उस साड़ी के कपड़े के टुकड़े का इतना अधिक फल मिला। यदि कबीर परमात्मा द्रोपदी की सहायता न करता तो द्रोपदी नंगी हो जाती। परमात्मा कबीर जी ने परमात्मा में आस्था बनाए रखने के लिए यह अनहोनी करनी थी। द्रोपदी के चीर को ब (at Silehgarh Bus Stop) https://www.instagram.com/p/CObnvWplQHl/?igshid=1vdn203c4t0ay
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