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chaitanyabharatnews · 5 years
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प्रेम कहानी की याद में यहां दो गांव एक-दूसरे पर बरसाते हैं पत्थर, अब तक 13 लोगों की हुई मौत!
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चैतन्य भारत न्यूज छिंदवाड़ा. मध्य प्रदेश के छिंदवाड़ा जिले में सावरगांव और पांढुर्णा के बीच शनिवार को ऐसा युद्ध हुआ जिसमें दोनों तरफ से पत्थर ही पत्थर बरसे। पत्थरबाजी वाले इस युद्ध में खून-खराबा भी होता है। स्थानीय लोगोंं के लिए तो ये एक प्रथा है तो लेकिन अन्य लोग इसे कुप्रथा मानते हैंं।
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पांढुर्णा में हर साल पोला त्योहार के दूसरे दिन लगने वाले इस मेले का नाम 'गोटमार मेला' है। यह मेला जाम नदी के पास में लगता है। इस बार भी पुलिस और प्रशासन की तगड़ी सुरक्षा के बीच गोटमार मेला शुरू हुआ। इस मेले का आयोजन एक प्रेम कहानी की याद में किया जाता है। मेले में सावरगांव और पांढुर्ना के लोग जमा होते हैं और फिर वे एक-दूसरे के ऊपर पत्थर बरसाना शुरू कर देते हैं। इसके पीछे एक कहानी प्रचलित है।
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कहा जाता है कि पांढुर्ना गांव का एक युवक सावरगांव की आदिवासी युवती से प्रेम विवाह करने के उद्देश्य से उसे अगवा कर ले गया था। इसके बाद दोनों गांवों के लोगों के बीच पत्थरबाजी शुरू हो गई थी, जिसमें प्रेमी युगलों की मौत हो गई थी। उसके बाद से ही इन शहीद युवक-युवती की याद में हर साल पोला के दूसरे दिन यह प्रथा दोहराई जाती है। जानकारी के मुताबिक, ग्रामीण चंडी माता को प्रसन्न करने के लिए जाम नदी के बीच में पलाश के पेड़ की टहनी और एक झंडा गाड़ा जाता है। इस झंडे को दोनों तरफ से चल रहे पत्थरों से उखाड़ना होता है। जिस भी गांव के लोग झंडा उखाड़ लेते हैं, वे जीत जाते हैं। फिर उस झंडे को चंडी माता को चढ़ा दिया जाता है।
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यह खेल सुबह से शुरू हो जाता है जो कि सूर्यास्त तक चलता है। इस पत्थरबाजी वाले खेल में हर साल सैंकड़ों लोग घायल होते हैं। इस खेल में पिछले साल एक व्यक्ति की मौत हो गई थी। रिपोर्ट्स के मुताबिक, 1955 से शुरू हुए इस खेल में अब तक कुल 13 लोगों की मौत हो चुकी है। पुलिस और जिला प्रशासन द्वारा घायलों के उपचार के लिए आयोजन स्थल पर अस्थाई उपचार केंद्र भी बनाए जाते हैं। इसके अलावा गंभीर रूप से घायल हुए लोगों को अस्पताल ले जाने के लिए विशेष एंबुलेंस की भी व्यवस्था की जाती है। खेल के दौरान बड़ी संख्या में पुलिस बल तैनात रहता है। ये भी पढ़े...  यहां फल और पत्थरों से खेला जाता है युद्ध, उत्तराखंड के देवीधुरा स्थित मंदिर म��ं अनूठी परंपरा अनोखी परंपरा : अपनी ही शादी में शामिल नहीं हो सकता दूल्हा, बहन ले जाती है बारात और लेती है सात फेरे Read the full article
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