#संचार और संचार
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बच्चा हो सकता है ऑटिज्म का शिकार, अगर चलाता है ज्यादा मोबाइल, साइंस के पास नहीं है इलाज
बच्चों में मोबाइल के अत्यधिक उपयोग स�� ऑटिज्म का खतरा बढ़ रहा है। जानें कैसे रोकें इस समस्या को और क्यों वैज्ञानिक अभी तक पूर्ण इलाज नहीं खोज पाए हैं।आधुनिक युग में मोबाइल फोन हमारी दिनचर्या का अभिन्न अंग बन गए हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि बच्चों द्वारा मोबाइल का अत्यधिक उपयोग उनके स्वास्थ्य पर गंभीर प्रभाव डाल रहा है? हाल के अध्ययनों से पता चला है कि छोटी उम्र में मोबाइल के ज्यादा इस्तेमाल से…
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#अभिभावकीय#ऑटिज्म जागरूकता#डिजिटल संतुलन#तकनीक और स्वास्थ्य#न्यूरो डेवलपमेंट#प्रारंभिक हस्तक्षेप#बच्चों का स्वास्थ्य#बाल विकास#मानसिक स्वास्थ्य#मोबाइल उपयोग#वैज्ञानिक शोध#संचार विकास#समावेशी शिक्षा#सामाजिक कौशल#स्क्रीन टाइम
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एट्यूटर एलएमएस डेमो की खोज करें और वेबमिन के साथ उबंटू पर इसकी स्थापना में महारत हासिल करें
एट्यूटर एलएमएस क्या है ? स्कूल, गैर-लाभकारी और व्यवसाय समा�� रूप से एक सीखने की प्रबंधन प्रणाली से लाभान्वित हो सकते हैं जो स्टाफ के सदस्यों को सलाह दे सकते हैं, छात्रों को उनके गृह कार्य के माध्यम से मार्गदर्शन कर सकते हैं, सभी के लिए प्रगति और सफलता का ट्रैक रख सकते हैं। ATutor [...] https://is.gd/h9tJTO
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#अनुकूलनशीलता#अभिगम्यता#उबंटू#एलएमएस#ऑनलाइन पाठ्यक्रम#ओपन सोर्स और फ्री सॉफ्टवेयर#ओपन सोर्स सॉफ्टवेयर#ओपन सोर्स सॉफ्टवेयर के लाभ#ओपन सोर्स सॉफ्टवेयर परिभाषा#वीपीएस सर्वर#वेबमिन#शिक्षण प्रणाली प्रबंधन#ट्यूटोरियल#सूचना और संचार प्रौद्योगिकी (आईसीटी)
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लखनऊ, 02.11.2024 | 'गोवर्धन पूजा' के पावन अवसर पर हेल्प यू एजुकेशनल एंड चैरिटेबल ट्रस्ट द्वारा ट्रस्ट के इंदिरा नगर स्थित कार्यालय में “पुष्प अर्पण” कार्यक्रम का आयोजन किया गया । कार्यक्रम के अंतर्गत हेल्प यू एजुकेशनल एंड चैरिटेबल ट्रस्ट के प्रबंध न्यासी श्री हर्ष वर्धन अग्रवाल, न्यासी डॉ0 रूपल अग्रवाल व ट्रस्ट के स्वयंसेवकों ने गोवर्धनधारी भगवान श्री कृष्ण के चित्र पर पुष्पांजलि अर्पित कर, भगवान कृष्ण से सभी देशवासियों के ऊपर अपनी कृपा बरसाने हेतु प्रार्थना की |
इस अवसर पर हेल्प यू एजुकेशनल एंड चैरिटेबल ट्रस्ट के प्रबंध न्यासी श्री हर्ष वर्धन अग्रवाल ने कहा कि, “भगवान श्री कृष्ण द्वारा गोवर्धन पर्वत को उठाकर समस्त गांव वासियों की रक्षा करने की पावन कथा से यह पर्व जुड़ा हुआ है । इस दिन हम भगवान श्री कृष्ण की महिमा और उनके अद्भुत साहस को स्मरण करते हैं, जिन्होंने प्राकृतिक आपदाओं से अपने भक्तों को सुरक्षित रखा । गोवर्धन पूजा हमें यह संदेश देती है कि हमें प्रकृति का आदर करना चाहिए और उसे सुरक्षित रखने का संकल्प लेना चाहिए । यह पर्व हमें सिखाता है कि किसी भी कठिनाई में साहस और एकता का होना कितना आवश्यक है । गोवर्धन पर्वत को प्रतीक मानकर हम सभी को यह याद दिलाया जाता है कि हम भी अपने पर्यावरण और संस्कृति की सुरक्षा के लिए कटिबद्ध रहें । आज के दिन हम भगवान श्रीकृष्ण का आशीर्वाद प्राप्त करें और उनके दिखाए गए मार्ग पर चलें । इस अवसर पर हम सभी के लिए सुख, शांति और समृद्धि की कामना करते हैं । आइए, इस पर्व पर हम प्रण लें कि समाज में प्रेम, सहयोग और एकता का संचार करेंगे तथा भारत देश को विकसित एवं समृद्ध शील देश बनाने में अपना संपूर्ण योगदान प्रदान करेंगे ।"
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चक्रासन के चामत्कारिक लाभ
चक्रासन, जिसे व्हील पोज (Wheel Pose) भी कहा जाता है!
चक्रासन के फायदे
1. पीठ के दर्द में राहत
यह आसन पीठ के निचले हिस्से के दर्द को कम करने में सहायक होता है और शरीर के पोश्चर को सुधारता है, जिससे लंबे समय तक बैठने से होने वाले दर्द में राहत मिलती है।
2. पेट की मांसपेशियों को मजबूत करना
चक्रासन में पेट की मांसपेशियों पर दबाव पड़ता है, जिससे पेट के मसल्स टोन होते हैं और यह पाचन तंत्र को भी उत्तेजित करता है। इससे कब्ज और अन्य पाचन समस्याएं भी दूर हो सकती हैं।
3. थकान और तनाव कम करना
यह आसन शरीर में ताजगी और ऊर्जा का संचार करता है और मस्तिष्क को शांत करता है। इससे मानसिक तनाव, थकान और अवसाद में राहत मिलती है।
4. कंधों और भुजाओं की ताकत बढ़ाना
चक्रासन के दौरान, कंधों और भुजाओं को सहारा देना पड़ता है, जिससे इन हिस्सों की मांसपेशियां मजबूत होती हैं।
5. शरीर का रक्त परिसंचरण सुधारना
इस आसन के दौरान शरीर का रक्त प्रवाह बेहतर होता है, जो त्वचा को स्वस्थ और चमकदार बनाए रखने में सहायक होता हैं!
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सियावर रामचंद्र की जय !
सत्य, सदाचार और सनातन मूल्यों की शाश्वत विजय के प्रतीक पर्व 'विजयादशमी' दशहरा की सनातन समाज को हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं !
इस पावन पर्व पर आप सभी को सुख, शांति, और समृद्धि की मंगलकामनाएं । विजयादशमी का यह दिन हमें अच्छाई की बुराई पर जीत की प्रेरणा देता है । भगवान श्रीराम की कृपा से आपके जीवन में सदैव सफलता और खुशियों का संचार हो ।
आपका जीवन सत्य और धर्म के मार्ग पर अग्रसर रहे ।
जय श्री राम !
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#आदिगणेश_सर्व_देवों_का_स्वामी
गणेश चतुर्थी पर नई सोच!
गणेश चतुर्थी पर पढ़ें ज्ञान गंगा पुस्तक और जानें गणेश जी को प्रसन्न करने का वास्तविक मंत्र। नई सोच का संचार होगा।
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झोटवाड़ा के विकास के लिए जनता ने जताया कर्नल राज्यवर्धन राठौड़ का आभार
कर्नल राज्यवर्धन राठौड़ का संक्षिप्त परिचय
झोटवाड़ा का सामाजिक और आर्थिक विकास
झोटवाड़ा, राजस्थान के पश्चिमी भाग में स्थित एक प्रमुख जिला है, जहां कर्नल राज्यवर्धन राठौड़ ने अपनी भूमिका से समाज को समृद्धि और विकास की दिशा में अग्रसर किया है। उनकी प्रमुख पहल है सामाजिक जागरूकता और शिक्षा के प्रति उनकी महान संकल्पना। राठौड़ जी के कार्यकाल में झोटवाड़ा में विभिन्न शिक्षा संस्थानों की स्थापना हुई है, जिससे क्षेत्र के युवाओं को उच्च शैक्षिक स्तर तक पहुँचने का मौका मिला है।
कर्नल राज्यवर्धन राठौड़ के योगदान
राठौड़ जी ने झोटवाड़ा में स्वास्थ्य व्यवस्था को भी मजबूत करने के लिए प्रयास किये हैं। उन्होंने नई स्वास्थ्य केंद्रों की स्थापना कर महिलाओं और बच्चों के लिए समृद्ध स्वास्थ्य सेवाएं प्रदान की हैं। इसके अतिरिक्त, उन्होंने कृषि और ग्रामीण विकास को भी प्राथमिकता दी है, जिससे कि जिले के किसानों को नए-नए तकनीकी और व्यावसायिक अवसरों से लाभ मिल सके।
समाज में प्रेरणा और साझेदारी का महत्व
कर्नल राज्यवर्धन राठौड़ का सपना है एक समृद्ध और समाजसेवी समाज का निर्माण करना, जिसमें सभी वर्गों के लोग अपनी सांझेदारी और प्रेरणा से विकास में योगदान दें। उनके उत्साही और स��ारात्मक सोच ने लोगों में सामाजिक जागरूकता को बढ़ावा दिया है और एक समृद्ध समाज की दिशा में एक नई राह दिखाई है।
समाप्ति
इस प्रकार, कर्नल राज्यवर्धन राठौड़ जी ने झोटवाड़ा के विकास में अपने अद्वितीय और सकारात्मक योगदान के माध्यम से एक नया मानचित्र बनाया है। उनके कार्यों ने समाज में जागरूकता और सामाजिक समृद्धि के प्रति लोगों में एक नई ऊर्जा का संचार किया है। इस प्रकार, राठौड़ जी का योगदान अनमोल है और हमें इसे सराहनीय तरीके से स्थायी करना चाहिए।
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सूर्य लग्न के 11 में बुध गुरु कितना धन हो सकता हैं?
सूर्य लग्न के 11वें भाव में बुध और गुरु की उपस्थिति का संबंध ज्योतिष और राशिफल से है। यह प्रश्न कुंडली और वैदिक ज्योतिष के संदर्भ में है, जहां 11वां भाव सामान्यतः आय, धन, लाभ, और आकस्मिक अवसरों को दर्शाता है। बुध और गुरु की उपस्थिति इस भाव में कई चीजों को इंगित कर सकती है:
बुध (मर्करी): बुध संचार, व्यापार, और तर्कशीलता का प्रतीक है। यह संकेत करता है कि आप संवाद और नेटवर्किंग के माध्यम से धन अर्जित कर सकते हैं। बुध के 11वें भाव में होने से आपके लिए व्यापार, टेक्नोलॉजी, मीडिया, या संचार के अन्य क्षेत्र में सफलता की संभावना बढ़ जाती है।
गुरु (बृहस्पति): गुरु ज्ञान, शिक्षा, और वृद्धि का प्रतीक है। 11वें भाव में गुरु का होना संकेत करता है कि आपके पास बड़े अवसर आ सकते हैं, और आपके लाभ के स्रोत बढ़ सकते हैं। यह शिक्षा, धर्म, या उच्च विचारों से संबंधित कार्यों से भी धन की प्राप्ति का संकेत देता है।
11वें भाव में बुध और गुरु दोनों के होने से, यह संभावना होती है कि आप विभिन्न स्रोतों से धन अर्जित करेंगे। यह एक प्रकार से सौभाग्य का संकेत हो सकता है, जहां आप नेटवर्किंग और ज्ञान के माध्यम से वित्तीय लाभ प्राप्त करते हैं।
इस बात को ध्यान में रखें कि ज्योतिष में अन्य ग्रहों की स्थिति, उनके आपसी संबंध, और दशाओं का भी प्रभाव होता है। इसलिए, किसी विशेष कुंडली के विश्लेषण के लिए कुंडली चक्र २०२२ प्रोफेशनल सॉफ्टवेयर का प्रयोग कर सकते है. जो आपको एक बेहतर जानकारी दे सकता है।
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उन्नति पूरी है तबहिं जब घर उन्नति होय।
निज शरीर उन्नति किये, रहत मूढ़ सब कोय।।
अपनी लेखनी से अंग्रेजी हुकूमत के विरुद्ध जनचेतना का संचार करने तथा हिन्दी की अपार सेवा कर संस्कृति, समाज और साहित्य को नई दिशा व आयाम प्रदान करने वाले, समाजोत्थान को समर्पित हिंदी नाटकों के महान नाटककार, आधुनिक हिंदी साहित्य के पितामह भारतेन्दु हरिश्चन्द्रजी की पुण्यतिथि पर उन्हें विनम्र श्रद्धांजलि ।
आधुनिक हिंदी साहित्य को और अधिक समृद्ध करने में ��पके अतुलनीय योगदान को सदैव स्मरण किया जायेगा ।
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उन्नति पूरी है तबहिं जब घर उन्नति होय।
निज शरीर उन्नति किये, रहत मूढ़ सब कोय।।
अपनी लेखनी से अंग्रेजी हुकूमत के विरुद्ध जनचेतना का संचार करने तथा हिन्दी की अपार सेवा कर संस्कृति, समाज और साहित्य को नई दिशा व आयाम प्रदान करने वाले, समाजोत्थान को समर्पित हिंदी नाटकों के महान नाटककार, आधुनिक हिंदी साहित्य के पितामह भारतेन्दु हरिश्चन्द्रजी की पुण्यतिथि पर उन्हें विनम्र श्रद्धांजलि ।
आधुनिक हिंदी साहित्य को और अधिक समृद्ध करने में आपके अतुलनीय योगदान को सदैव स्मरण किया जायेगा ।
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बच्चा हो सकता है ऑटिज्म का शिकार, अगर चलाता है ज्यादा मोबाइल, साइंस के पास नहीं है इलाज
बच्चों में मोबाइल के अत्यधिक उपयोग से ऑटिज्म का खतरा बढ़ रहा है। जानें कैसे रोकें इस समस्या को और क्यों वैज्ञानिक अभी तक पूर्ण इलाज नहीं खोज पाए हैं।आधुनिक युग में मोबाइल फोन हमारी दिनचर्या का अभिन्न अंग बन गए हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि बच्चों द्वारा मोबाइल का अत्यधिक उपयोग उनके स्वास्थ्य पर गंभीर प्रभाव डाल रहा है? हाल के अध्ययनों से पता चला है कि छोटी उम्र में मोबाइल के ज्यादा इस्तेमाल से…
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उन्नति पूरी है तबहिं जब घर उन्नति होय।
निज शरीर उन्नति किये, रहत मूढ़ सब कोय।।
अपनी लेखनी से अंग्रेजी हुकूमत के विरुद्ध जनचेतना का संचार करने तथा हिन्दी की अपार सेवा कर संस्कृति, समाज और साहित्य को नई दिशा व आयाम प्रदान करने वाले, समाजोत्थान को समर्पित हिंदी नाटकों के महान नाटककार, आधुनिक हिंदी साहित्य के पितामह भारतेन्दु हरिश्चन्द्रजी की पुण्यतिथि पर उन्हें विनम्र श्रद्धांजलि ।
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31 अक्टूबर, 2024 लखनऊ | हेल्प यू एजुकेशनल एंड चैरिटेबल ट्रस्ट के परिसर में दीपावली पूजन का भव्य आयोजन पारंपरिक विधि-विधान और श्रद्धा से संपन्न हुआ ।यह आयोजन न केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक था, बल्कि संस्था के उद्देश्यों और मूल्यों का भी सजीव चित्रण था । ट्रस्ट के प्रबंध न्यासी, श्री हर्ष वर्धन अग्रवाल, ने इस पावन अवसर पर संस्था के समस्त सदस्यों, लाभार्थियों और सभी देशवासियों को दीपावली की शुभकामनाएं दीं और भगवान श्रीराम से सबके जीवन में सुख, शांति और समृद्धि की कामना की । श्री हर्ष वर्धन अग्रवाल ने प्रदेश सरकार द्वारा अयोध्या में आयोजित "ग्रैंड दीपोत्सव" की सराहना की । उन्होंने कहा कि आदरणीय मुख्यमंत्री श्री योगी आदित्यनाथ जी के नेतृत्व में अयोध्या दीपोत्सव त्रेता युग की स्मृतियों को व्यक्त करता है और यह सभी धर्मों के लोगों के लिए गर्व का विषय है ।
पूजन और आरती के समय पूरा परिसर भक्तिमय वातावरण में सराबोर हो गया । सभी ने मिलकर दीपावली के महत्व को समझते हुए प्रभु श्रीराम के आशीर्वाद से अपने जीवन में सकारात्मकता और नई ऊर्जा का संचार किया । श्री हर्ष वर्धन अग्रवाल ने अपने संदेश में कहा कि दीपावली हमें अंधकार से प्रकाश की ओर, असत्य से सत्य की ओर, और स्वार्थ से परमार्थ की ओर अग्रसर करने का मार्ग दिखाती है । यह पर्व हमें सच्चाई, भाईचारे, और सहयोग का संदेश देता है, जो हमारे समाज की एकता और उन्नति के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है । उन्होंने बताया कि हेल्प यू एजुकेशनल एंड चैरिटेबल ट्रस्ट सदैव समाजसेवा के इस पथ पर आगे बढ़ता रहा है और आने वाले समय में भी जरूरतमंदों के कल्याण हेतु अपने प्रयासों को निरंतर जारी रखेगा । संस्था का उद्देश्य समाज के कमजोर वर्गों को हर संभव सहायता प्रदान करना है, जिससे वे एक बेहतर और आत्मनिर्भर जीवन जी सकें ।
पूजन कार्यक्रम के अंत में, श्री हर्ष वर्धन अग्रवाल ने सभी से पर्यावरण के प्रति जागरूक रहते हुए एक स्वच्छ, सुरक्षित और सौहार्दपूर्ण ��ीपावली मनाने की अपील की । उन्होंने कहा कि हमें अपने उत्सवों में अपने कर्तव्यों का भी ध्यान रखना चाहिए, जिससे समाज और प्रकृति दोनों का संरक्षण हो सके ।
पूजन कार्यक्रम में हेल्प यू एजुकेशनल एंड चैरिटेबल ट्रस्ट के प्रबंध न्यासी श्री हर्ष वर्धन अग्रवाल, न्यासी डॉ. रूपल अग्रवाल एवं स्वयंसेवकों की उपस्थिति रही ।
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INDIAN YOUTH
जब बात अपने भविष्य की आती है तो भारत में नाबालिगों को, हर जगह के नाबालिगों की तरह, विभिन्न चुनौतियों और अनिश्चितताओं का सामना करना पड़ सकता है। सकारात्मक दृष्टिकोण बनाए रखने और बेहतर भविष्य की दिशा में काम करने के लिए, वे यहां कुछ महत्वपूर्ण कदम उठा सकते हैं: शिक्षा: अपनी शिक्षा पर ध्यान दें। शिक्षा को अक्सर उज्जवल भविष्य की कुंजी के रूप में देखा जाता है। नियमित रूप से स्कूल जाएँ, अपनी पढ़ाई में व्यस्त रहें, और यदि आप किसी भी विषय में संघर्ष कर रहे हैं तो मदद लें। लक्ष्य निर्धारित करें: स्पष्ट लक्ष्य और आकांक्षाएँ रखें। लक्ष्य निर्धारित करने से आपको उद्देश्य और दिशा का एहसास हो सकता है। चाहे वह शैक्षणिक, करियर, या व्यक्तिगत लक्ष्य हों, किसी चीज़ की दिशा में काम करना प्रेरक हो सकता है। मार्गदर्शन लें: अपनी महत्वाकांक्षाओं और चिंताओं के बारे में अपने माता-पिता, शिक्षकों या गुरुओं से बात करें। वे मार्गदर्शन और सहायता प्रदान कर सकते हैं, जिससे आपको अपने भविष्य के बारे में सूचित निर्णय लेने में मदद मिल सकती है। स्वस्थ रहें: शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य महत्वपूर्ण है। सुनिश्चित करें कि आप अच्छा खाएं, नियमित व्यायाम करें और पर्याप्त नींद लें। माइंडफुलनेस और तनाव प्रबंधन तकनीकों का अभ्यास करने से आपको अच्छे मानसिक स्वास्थ्य को बनाए रखने में भी मदद मिल सकती है। सूचित रहें: कैरियर के अवसरों और शैक्षिक विकल्पों के बारे में स्वयं को सूचित रखें। अपनी रुचियों का पता लगाने के लिए किताबें पढ़ें, इंटरनेट ब्राउज़ करें और करियर परामर्श सत्र में भाग लें। कौशल का निर्माण करें: उन कौशलों की पहचान करें जिनकी न��करी बाजार में मांग है और उन्हें हासिल करने पर काम करें। इसमें ��कनीकी कौशल, संचार कौशल, या टीम वर्क और समस्या-समाधान जैसे सॉफ्ट कौशल शामिल हो सकते हैं। नेटवर्क: अपने चुने हुए क्षेत्र में साथियों, सलाहकारों और पेशेवरों का एक नेटवर्क बनाएं। नेटवर्किंग आपको बहुमूल्य अंतर्दृष्टि, सलाह और अवसर प्रदान कर सकती है। सकारात्मक रहें: सकारात्मक मानसिकता विकसित करें। समझें कि असफलताएँ और चुनौतियाँ जीवन का हिस्सा हैं। अपनी असफलताओं से सीखें और उन्हें सफलता की सीढ़ी के रूप में उपयोग करें। वित्तीय साक्षरता: वित्तीय प्रबंधन और बजट के बारे में जानें। पैसे का प्रबंधन कैसे करें, यह समझने से आपको अपने भविष्य की योजना बनाने और अपने लक्ष्य हासिल करने में मदद मिल सकती है। पाठ्येतर गतिविधियों में भाग लें: खेल, कला या सामुदायिक सेवा जैसी पाठ्येतर गतिविधियों में संलग्न हों। ये गतिविधियाँ आपको एक सर्वांगीण व्यक्तित्व और नेतृत्व कौशल विकसित करने में मदद कर सकती हैं। समय प्रबंधन: जानें कि अपना समय प्रभावी ढंग से कैसे प्रबंधित करें। अपने शैक्षणिक और व्यक्तिगत जीवन को संतुलित करने से तनाव कम हो सकता है और अपने लक्ष्यों की दिशा में काम करना आसान हो सकता है।
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🍃 *ज्ञान गंगा* 🍃
*(Part - 15)*
*विष्णु का अपने पिता की प्राप्ति के लिए प्रस्थान व माता का आशीर्वाद पाना*
📜इसके बाद विष्णु से प्रकृति ने कहा कि पुत्र तू भी अपने पिता का पता लगा ले। तब विष्णु अपने पिता जी काल (ब्रह्म) का पता करते-करते पाताल लोक में चले गए, जहाँ शेषनाग था। उसने विष्णु को अपनी सीमा में प्रविष्ट होते देख कर क्रोधित हो कर जहर भरा फुंकारा मारा। उसके विष के प्रभाव से विष्णु जी का रंग सांवला हो गया, जैसे स्प्रे पेंट हो जाता है। तब विष्णु ने चाहा कि इस नाग को मजा चखाना चाहिए। तब ज्योति निरंजन (काल) ने देखा कि अब विष्णु को शांत करना चाहिए। तब आकाशवाणी हुई कि विष्णु अब तू अपनी माता जी के पास जा और सत्य-सत्य सारा विवरण बता देना तथा जो कष्ट आपको शेषनाग से हुआ है, इसका प्रतिशोध द्वापर युग में लेना। द्वापर युग में आप (विष्णु) तो कृष्ण अवतार धारण करोगे और कालीदह में कालिन्द्री नामक नाग, शेष नाग का अवतार होगा।
ऊँच होई के नीच सतावै, ताकर ओएल (बदला) मोही सों पावै।
जो जीव देई पीर पुनी काँहु, हम पुनि ओएल दिवावें ताहूँ।।
तब विष्णु जी माता जी के पास आए तथा सत्य-सत्य कह दिया कि मुझे पिता के दर्शन नहीं हुए। इस बात से माता (प्रकृति) बहुत प्रसन्न हुई और कहा कि पुत्र तू सत्यवादी है। अब मैं अपनी शक्ति से पिता से मिलाती हूँ तथा तेरे मन का संशय खत्म करती हूँ।
कबीर, देख पुत्र तोहि पिता भीटाऊँ, तौरे मन का धोखा मिटाऊँ। मन स्वरूप कर्ता कह जानों, मन ते दूजा और न मानो। स्वर्ग पाताल दौर मन केरा, मन अस्थीर मन अहै अनेरा। निंरकार मन ही को कहिए, मन की आस निश दिन रहिए। देख हूँ पलटि सुन्य मह ज्योति, जहाँ पर झिलमिल झालर होती।।
��स प्रकार माता (अष्टंगी, प्रकृति) ने विष्णु से कहा कि मन ही जग का कर्ता है, यही ज्योति निरंजन है। ध्यान में जो एक हजार ज्योतियाँ नजर आती हैं वही उसका रूप है। जो शंख, घण्टा आदि का बाजा सुना, यह महास्वर्ग में निरंजन का ही बज रहा है। तब माता (अष्टंगी, प्रकृति) ने कहा कि हे पुत्र तुम सब देवों के सरताज हो और तेरी हर कामना व कार्य मैं पूर्ण करूंगी। तेरी पूजा सर्व जग में होगी। आपने मुझे सच-सच बताया है। काल के इक्कीस ब्रह्माण्ड़ों के प्राणियों की विशेष आदत है कि अपनी व्यर्थ महिमा बनाता है। जैसे दुर्गा जी श्री विष्णु जी को कह रही है कि तेरी पूजा जग में होगी। मैंने तुझे तेरे पिता के दर्शन करा दिए। दुर्गा ने केवल प्रकाश दिखा कर श्री विष्णु जी को बहका दिया। श्री विष्णु जी भी प्रभु की यही स्थिति अपने अनुयाइयों को समझाने लगे कि परमात्मा का केवल प्रकाश दिखाई देता है। परमात्मा निराकार है। इसके बाद आदि भवानी रूद्र(महेश जी) के पास गई तथा कहा कि महेश तू भी कर ले अपने पिता की खोज तेरे दोनों भाइयों को तो तुम्हारे पिता के दर्शन नहीं हुए उनको जो देना था वह प्रदान कर दिया है अब आप माँगो जो माँगना है। तब महेश ने कहा कि हे जननी ! मेरे दोनों बड़े भाईयों को पिता के दर्शन नहीं हुए फिर प्रयत्न करना व्यर्थ है। कृपा मुझे ऐसा वर दो कि मैं अमर (मृत्युंजय) हो जाऊँ। तब माता ने कहा कि यह मैं नहीं कर सकती। हाँ युक्ति बता सकती हूँ, जिससे तेरी आयु सबसे लम्बी बनी रहेगी। विधि योग समाधि है (इसलिए महादेव जी ज्यादातर समाधि में ही रहते हैं)। इस प्रकार माता (अष्टंगी, प्रकृति) ने तीनों पुत्रों को विभाग बांट दिए: --
भगवान ब्रह्मा जी को काल लोक में लख चौरासी के चोले (शरीर) रचने (बनाने) का अर्थात् रजोगुण प्रभावित करके संतान उत्पत्ति के लिए विवश करके जीव उत्पत्ति कराने का विभाग प्रदान किया। भगवान विष्णु जी को इन जीवों के पालन पोषण (कर्मानुसार) करने, तथा मोह-ममता उत्पन्न करके स्थिति बनाए रखने का विभाग दिया। भगवान शिव शंकर (महादेव) को संहार करने का विभाग प्रदान किया क्योंकि इनके पिता निरंजन को एक लाख मानव शरीर धारी जीव प्रतिदिन खाने पड़ते हैं।
यहां पर मन में एक प्रश्न उत्पन्न होगा कि ब्रह्मा, विष्णु तथा शंकर जी से उत्पत्ति, स्थिति और संहार कैसे होता है। ये तीनों अपने-2 लोक में रहते हैं। जैसे आजकल संचार प्रणाली को चलाने के लिए उपग्रहों को ऊपर आसमान में छोड़ा जाता है और वे नीचे पृथ्वी पर संचार प्रणाली को चलाते हैं। ठीक इसी प्रकार ये तीनों देव जहां भी रहते हैं इनके शरीर से निकलने वाले सूक्ष��म गुण की तरंगें तीनों लोकों में अपने आप हर प्राणी पर प्रभाव बनाए रहती है।
उपरोक्त विवरण एक ब्रह्माण्ड में ब्रह्म (काल) की रचना का है। ऐसे-ऐसे क्षर पुरुष (काल) के इक्कीस ब्रह्माण्ड हैं।
परन्तु क्षर पुरूष (काल) स्वयं व्यक्त अर्थात् वास्तविक शरीर रूप में सबके सामने नहीं आता। उसी को प्राप्त करने के लिए तीनों देवों (ब्रह्मा जी, विष्णु जी, शिव जी) को वेदों में वर्णित विधि अनुसार भरसक साधना करने पर भी ब्रह्म (काल) के दर्शन नहीं हुए। बाद में ऋषियों ने वेदों को पढ़ा। उसमें लिखा है कि ‘अग्नेः तनूर् असि‘ (पवित्र यजुर्वेद अ. 1 मंत्र 15) परमेश्वर सशरीर है तथा पवित्र यजुर्वेद अध्याय 5 मंत्र 1 में लिखा है कि ‘अग्नेः तनूर् असि विष्णवे त्वा सोमस्य तनूर् असि‘।
इस मंत्र में दो बार वेद गवाही दे रहा है कि सर्वव्यापक, सर्वपालन कर्ता सतपुरुष सशरीर है। पवित्र यजुर्वेद अध्याय 40 मंत्र 8 में कहा है कि (कविर् मनिषी) जिस परमेश्वर की सर्व प्राणियों को चाह है, वह कविर् अर्थात् कबीर है। उसका शरीर बिना नाड़ी (अस्नाविरम्) का है, (शुक्रम्) वीर्य से बनी पाँच तत्व से बनी भौतिक (अकायम्) काया रहित है। वह सर्व का मालिक सर्वोपरि सत्यलोक में विराजमान है, उस परमेश्वर का तेजपुंज का (स्वज्र्योति) स्वयं प्रकाशित शरीर है जो शब्द रूप अर्थात् अविनाशी है। वही कविर्देव (कबीर परमेश्वर) है जो सर्व ब्रह्माण्डों की रचना करने वाला (व्यदधाता) सर्व ब्रह्माण्डों का रचनहार (स्वयम्भूः) स्वयं प्रकट होने वाला (यथा तथ्य अर्थान्) वास्तव में (शाश्वत्) अविनाशी है (गीता अध्याय 15 श्लोक 17 में भी प्रमाण है।) भावार्थ है कि पूर्ण ब्रह्म का शरीर का नाम कबीर (कविर देव) है। उस परमेश्वर का शरीर नूर तत्व से बना है। परमात्मा का शरीर अति सूक्ष्म है जो उस साधक को दिखाई देता है जिसकी दिव्य दृष्टि खुल चुकी है। इस प्रकार जीव का भी सुक्ष्म शरीर है जिसके ऊपर पाँच तत्व का खोल (कवर) अर्थात् पाँच तत्व की काया चढ़ी होती है जो माता-पिता के संयोग से (शुक्रम) वीर्य से बनी है। शरीर त्यागने के पश्चात् भी जीव का सुक्ष्म शरीर साथ रहता है। वह शरीर उसी साधक को दिखाई देता है जिसकी दिव्य दृष्टि खुल चुकी है। इस प्रकार परमात्मा व जीव की स्थिति को समझें। वेदों में ओ3म् नाम के स्मरण का प्रमाण है जो केवल ब्रह्म साधना है। इस उद्देश्य से ओ3म् नाम के जाप को पूर्ण ब्रह्म का मान कर ऋषियों ने भी हजारों वर्ष हठयोग (समाधि लगा कर) करके प्रभु प्राप्ति की चेष्टा की, परन्तु प्रभु दर्शन नहीं हुए, सिद्धियाँ प्राप्त हो गई। उन्हीं सिद्धी रूपी खिलौनों से खेल कर ऋषि भी जन्म-मृत्यु के चक्र में ही रह गए तथा अपने अनुभव के शास्त्रों में परमात्मा को निराकार लिख दिया। ब्रह्म (काल) ने कसम खाई है कि मैं अपने वास्तविक रूप में किसी को दर्शन नहीं दू��गा। मुझे अव्यक्त जाना करेंगे (अव्यक्त का भावार्थ है कि कोई आकार में है परन्तु व्यक्तिगत रूप से स्थूल रूप में दर्शन नहीं देता। जैसे आकाश में बादल छा जाने पर दिन के समय सूर्य अदृश हो जाता है। वह दृश्यमान नहीं है, परन्तु वास्तव में बादलों के पार ज्यों का त्यों है, इस अवस्था को अव्यक्त कहते हैं।)। (प्रमाण के लिए गीता अध्याय 7 श्लोक 24-25, अध्याय 11 श्लोक 48 तथा 32)
पवित्र गीता जी बोलने वाला ब्रह्म (काल) श्री कृष्ण जी के शरीर में प्रेतवत प्रवेश करके कह रहा है कि अर्जुन मैं बढ़ा हुआ काल हूँ और सर्व को खाने के लिए आया हूँ। (गीता अध्याय 11 का श्लोक नं. 32) यह मेरा वास्तविक रूप है, इसको तेरे अतिरिक्त न तो कोई पहले देख सका तथा न कोई आगे देख सकता है अर्थात् वेदों में वर्णित यज्ञ-जप-तप तथा ओ3म् नाम आदि की विधि से मेरे इस वास्तविक स्वरूप के दर्शन नहीं हो सकते। (गीता अध्याय 11 श्लोक नं 48) मैं कृष्ण नहीं हूँ, ये मूर्ख लोग कृष्ण रूप में मुझ अव्यक्त को व्यक्त (मनुष्य रूप) मान रहे हैं। क्योंकि ये मेरे घटिया नियम से अपरिचित हैं कि मैं कभी वास्तविक इस काल रूप में सबके सामने नहीं आता। अपनी योग माया से छुपा रहता हूँ (गीता अध्याय 7 श्लोक नं 24-25)
विचार करें:- अपने छुपे रहने वाले विधान को स्वयं अश्रेष्ठ (अनुत्तम) क्यों कह रहे हैं?
यदि पिता अपनी सन्तान को भी दर्शन नहीं देता तो उसमें कोई त्रुटि है जिस कारण से छुपा है तथा सुविधाएं भी प्रदान कर रहा है। काल (ब्रह्म) को शापवश एक लाख मानव शरीर धारी प्राणियों का आहार करना पड़ता है तथा 25 प्रतिशत प्रतिदिन जो ज्यादा उत्पन्न होते हैं उन्हें ठिकाने लगाने के लिए तथा कर्म भोग का दण्ड देने के लिए चौरासी लाख योनियों की रचना की हुई है। यदि सबके सामने बैठकर किसी की पुत्री, किसी की पत्नी, किसी के पुत्र, माता-पिता को खा गए तो सर्व को ब्रह्म से घृणा हो जाए तथा जब भी कभी पूर्ण परमात्मा कविरग्नि (कबीर परमेश्वर) स्वयं आए या अपना कोई संदेशवाहक (दूत) भेंजे तो सर्व प्राणी सत्यभक्ति करके काल के जाल से निकल जाएं।
इसलिए धोखा देकर रखता है तथा पवित्र गीता अध्याय 7 श्लोक 18, 24, 25 में अपनी साधना से होने वाली मुक्ति (गति) को भी (अनुत्तमाम्) अति अश्रेष्ठ कहा है तथा अपने विधान (नियम)को भी (अनुत्तम) अश्रेष्ठ कहा है।
प्रत्येक ब्रह्माण्ड में बने ब्रह्मलोक में एक महास्वर्ग बनाया है। महास्वर्ग में एक स्थान पर नकली सतलोक - नकली अलख लोक - नकली अगम लोक तथा नकली अनामी लोक की रचना प्राणियों को धोखा देने के लिए प्रकृति (दुर्गा/आदि माया) द्वारा करवा रखी है। कबीर साहेब का एक शब्द है ‘कर नैनों दीदार महल में प्यारा है‘ में वाणी है कि ‘काया भेद किया निरवारा, यह स�� रचना पिण्ड मंझारा है। माया अविगत जाल पसारा, सो कारीगर भारा है। आदि माया किन्ही चतुराई, झूठी बाजी पिण्ड दिखाई, अविगत रचना रचि अण्ड माहि वाका प्रतिबिम्ब डारा है।‘
एक ब्रह्माण्ड में अन्य लोकों की भी रचना है, जैसे श्री ब्रह्मा जी का लोक, श्री विष्णु जी का लोक, श्री शिव जी का लोक। जहाँ पर बैठकर तीनों प्रभु नीचे के तीन लोकों (स्वर्गलोक अर्थात् इन्द्र का लोक - पृथ्वी लोक तथा पाताल लोक) पर एक- एक विभाग के मालिक बन कर प्रभुता करते हैं तथा अपने पिता काल के खाने के लिए प्राणियों की उत्पत्ति, स्थिति तथा संहार का कार्यभार संभालते हैं। तीनों प्रभुओं की भी जन्म व मृत्यु होती है। तब काल इन्हें भी खाता है। इसी ब्रह्माण्ड {इसे अण्ड भी कहते हैं क्योंकि ब्रह्माण्ड की बनावट अण्डाकार है, इसे पिण्ड भी कहते हैं क्योंकि शरीर (पिण्ड) में एक ब्रह्माण्ड की रचना कमलों में टी.वी. की तरह देखी जाती है} में एक मानसरोवर तथा धर्मराय (न्यायधीश) का भी लोक है तथा एक गुप्त स्थान पर पूर्ण परमात्मा अन्य रूप धारण करके रहता है जैसे प्रत्येक देश का राजदूत भवन होता है। वहाँ पर कोई नहीं जा सकता। वहाँ पर वे आत्माऐं रहती हैं जिनकी सत्यलोक की भक्ति अधूरी रहती है। जब भक्ति युग आता है तो उस समय परमेश्वर कबीर जी अपना प्रतिनिधी पूर्ण संत सतगुरु भेजते हैं। इन पुण्यात्माओं को पृथ्वी पर उस समय मानव शरीर प्राप्त होता है तथा ये शीघ्र ही सत भक्ति पर लग जाते हैं तथा सतगुरु से दीक्षा प्राप्त करके पूर्ण मोक्ष प्राप्त कर जाते हैं। उस स्थान पर रहने वाले हंस आत्माओं की निजी भक्ति कमाई खर्च नहीं होती। परमात्मा के भण्डार से सर्व सुविधाऐं उपलब्ध होती हैं। ब्रह्म (काल) के उपासकों की भक्ति कमाई स्वर्ग-महा स्वर्ग में समाप्त हो जाती है क्योंकि इस काल लोक (ब्रह्म लोक) तथा परब्रह्म लोक में प्राणियों को अपना किया कर्मफल ही मिलता है।
क्षर पुरुष (ब्रह्म) ने अपने 20 ब्रह्माण्डों को चार महाब्रह्माण्डों में विभाजित किया है। एक महाब्रह्माण्ड में पाँच ब्रह्माण्डों का समूह बनाया है तथा चारों ओर से अण्डाकार गोलाई (परिधि) में रोका है तथा चारों महाब्रह्माण्डों को भी फिर अण्डाकार गोलाई (परिधि) में रोका है। इक्कीसवें ब्रह्माण्ड की रचना एक महाब्रह्माण्ड जितना स्थान लेकर की है�� इक्कीसवें ब्रह्माण्ड में प्रवेश होते ही तीन रास्ते बनाए हैं। इक्कीसवें ब्रह्माण्ड में भी बांई तरफ नकली सतलोक, नकली अलख लोक, नकली अगम लोक, नकली अनामी लोक की रचना प्राणियों को धोखे में रखने के लिए आदि माया (दुर्गा) से करवाई है तथा दांई तरफ बारह सर्व श्रेष्ठ ब्रह्म साधकों (भक्तों) को रखता है। फिर प्रत्येक युग में उन्हें अपने संदेश वाहक (सन्त सतगुरू) बनाकर पृथ्वी पर भेजता है, जो शास्त्रा विधि रहित साधना व ज्ञान बताते हैं तथा स्वयं भी भक्तिहीन हो जाते हैं तथा अनुयाइयों को भी काल जाल में फंसा जाते हैं। फिर ��े गुरु जी तथा अनुयाई दोनों ही नरक में जाते हैं। फिर सामने एक ताला (कुलुफ) लगा रखा है। वह रास्ता काल (ब्रह्म) के निज लोक में जाता है। जहाँ पर यह ब्रह्म (काल) अपने वास्तविक मानव सदृश काल रूप में रहता है। इसी स्थान पर एक पत्थर की टुकड़ी तवे के आकार की (चपाती पकाने की लोहे की गोल प्लेट सी होती है) स्वतः गर्म रहती है। जिस पर एक लाख मानव शरीर धारी प्राणियों के सूक्ष्म शरीर को भूनकर उनमें से गंदगी निकाल कर खाता है। उस समय सर्व प्राणी बहुत पीड़ा अनुभव करते हैं तथा हाहाकार मच जाती है। फिर कुछ समय उपरान्त वे बेहोश हो जाते हैं। जीव मरता नहीं। फिर धर्मराय के लोक में जाकर कर्माधार से अन्य जन्म प्राप्त करते हैं तथा जन्म-मृत्यु का चक्कर बना रहता है। उपरोक्त सामने लगा ताला ब्रह्म (काल) केवल अपने आहार वाले प्राणियों के लिए कुछ क्षण के लिए खोलता है। पूर्ण परमात्मा के सत्यनाम व सारनाम से यह ताला स्वयं खुल जाता है। ऐसे काल का जाल पूर्ण परमात्मा कविर्देव (कबीर साहेब) ने स्वयं ही अपने निजी भक्त धर्मदास जी को समझाया।
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जग के पथ पर जो न रुकेगा,
जो न झुकेगा, जो न मुड़ेगा,
उसका जीवन, उसकी जीत ।
चल मरदाने, सीना ताने,
हाथ हिलाते, पांव बढ़ाते,
मन मुस्काते, गाते गीत ।
अपनी कालजयी कविताओं एवं रचनाओं के माध्यम से आम जनमानस के जीवन में उत्साह और ऊर्जा का संचार करने वाले हिन्दी कविता के उत्तर छायावाद काल के महान कवि, प्रसिद्ध साहित्यकार व लेखक तथा पद्मभूषण से सम्मानित हरिवंश राय बच्चन जी की पुण्यतिथि पर उन्हें विनम्र श्रद्धांजलि ।
मधुशाला, मधुबाला, मधुकलश, सतरंगीनी, एकांत संगीत जैसी आपकी कालजयी रचनाएँ सदैव हिंदी साहित्य का मानवर्धन करती रहेंगी ।
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