#विवेक जौहरी
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आत्मा चित्तम भाग 6
आत्मा चित्तम भाग 6
आत्मा चित्तम भाग 6‘अविवेक माया है।’ अविवेक का अर्थ है: भेद न कर पाना, डिसक्रिमिनेशन का अभाव, यह तय न कर पाना कि क्या हीरा है और क्या पत्थर है। जीवन के जौहरी बनना होगा। जीवन के जौहरी बनने से ही विवेक पैदा होता है। तुम्हारे पास जीवन है। और तुम खोजो। और इसको मैं खोज की कसौटी कहता हूं कि जो अपने आप चल रहा है, उसे तुम व्यर्थ जानना; और जो तुम्हारे चलाने से भी नहीं चलता है, उसे तुम सार्थक जानना। यह…
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कानपुर में फर्जी चालान, फर्जी क्रेडिट के मामले में जांच जारी : विवेक जौहरी | समाचार - टाइम्स ऑफ इंडिया वीडियो
कानपुर में फर्जी चालान, फर्जी क्रेडिट के मामले में जांच जारी : विवेक जौहरी | समाचार – टाइम्स ऑफ इंडिया वीडियो
दिसंबर 24, 2021, 05:00 PM ISTस्रोत: TOI.in केंद्रीय अप्रत्यक्ष कर बोर्ड और सीमा शुल्क अध्यक्ष विवेक जौहरी ने 24 दिसंबर को कहा कि कानपुर में फर्जी चालान और फर्जी क्रेडिट के संबंध में जांच चल रही है. एएनआई से बात करते हुए उन्होंने कहा, “फर्जी चालान और फर्जी क्रेडिट का मामला दर्ज किया गया। इसमें शामिल लोग बिना किसी चालान और ई-वे बिल के सामग्री भेज रहे थे। इसमें 2-3 पार्टियां शामिल हैं। हमें जो भी…
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मध्यप्रदेश: डीजीपी की नोटशीट के बाद भी नहीं सुधरे 70 प्रतिशत अधिकारी
मध्यप्रदेश: डीजीपी की नोटशीट के बाद भी नहीं सुधरे 70 प्रतिशत अधिकारी
न्यूज डेस्क, अमर उजाला, भोपाल Updated Tue, 09 Jun 2020 09:53 AM IST
मध्यप्रदेश के डीजीपी विवेक जौहरी (फाइल फोटो) – फोटो : Amar Ujala
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मध्यप्रदेश के पुलिस मुख्यालय में कार्यरत 29 अधिकारियों की कार्यप्रणाली को लेकर डीजीपी विवेक जौहरी ने एक दिन पहले अल्टीमेटम दिया। इसका अधिकारियों पर कोई फर्क पड़ता नहीं दिखाई दिया क्योंकि 70 प्रतिशत अधिकारी लेट आए। ज्यादातर पहले…
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श्री सुधीर कुमार सक्सैना आईपीएस ने पुलिस महानिदेशक का कार्यभार संभाला
श्री सुधीर कुमार सक्सैना आईपीएस ने पुलिस महानिदेशक का कार्यभार संभाला
भोपाल (अब्दुल रहीम खत्री) भारतीय पुलिस सेवा के वर्ष-1987 बैच के वरिष्ठ अधिकारी सुधीर कुमार सक्सैना ने शुक्रवार को सायंकाल में मध्यप्रदेश के पुलिस महानिदेशक का कार्यभार ग्रहण किया। पुलिस महानिदेशक का कार्यभार संभालने के लिए पुलिस मुख्यालय पहुँचने पर श्री सक्सैना को गार्ड ऑफ ऑनर दिया गया। पुलिस महानिदेशक विवेक जौहरी ने उन्हें कार्यभार सौंपा। सुधीर कुमार सक्सैना इससे पहले सचिव (सुरक्षा)…
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MP News: पुलिस की गलत विवेचना से न्यायालय से दोषमुक्त हो गए नाबालिग बच्ची से रेप के आरोपी
सनसनीखेज अपराधों में पुलिस और वकीलों की कमजोर कार्यवाहियों से आरोपियों के दोषमुक्त होंने पर अब सरकार सख्त
Bhopal: प्रदेश में चिन्हित और सनसनीखेज अपराधों में पुलिस और वकीलों की कमजोर कार्यवाहियों से आरोपियों के दोषमुक्त होंने पर अब सरकार सख्त हो गई है। बालाघाट जिले के कोतवाली थानांतर्गत दो छोटी बच्चियों के साथ रेप के आरोपी पुलिस की गलत विवेचना के कारण न्यायालय से दोषमुक्त हो गए।
आरोपियों को बचाने के लिए पी��िता के जप्त किए गए वस्त्र भी बदल दिए गए। पेटलावद विस्फोट के मामले में भी आरोपियों के दोषमुक्त होंने में पुलिस की लापरवाही सामने आई है। राज्य सरकार ने पुलिस की इस लापरवाही को गंभीरता से लिया है।
अपर मुख्य सचिव गृह राजेश राजौरा ने पुलिस महानिदेशक विवेक जौहरी और संचालक लोक अभियोजन को पत्र लिखकर दोषी पुलिस अधिकारियों पर सख्त कार्यवाही करने को कहा है।
अपर मुख्य सचिव गृह राजेश राजौरा ने हर माह सनसनीखेज और चिन्हित अपराधों में दोषमुक्ति के दस मामलों की हर माह समीक्षा करने की शुरुआत की है। दो मामलों में आरोपियों के दोषमुक्त होंने में पुलिस की लापरवाही सामने आने पर अपर मुख्य सचिव गृह राजेश राजौरा ने डीजीपी से कहा है कि इन मामलों की गंभीरता से जांच की जाए और दोषी अधिकारियों ,कर्मचारियों पर युक्तियुक्त अनुशासनात्मक कार्यवाही कर उन्हें पंद्रह दिन में अवगत कराए।
पुलिस की लापरवाही से इस तरह बच गए आरोपी- केस एक- बालाघाट जिले के कोतवाली थानातंर्गत पुलिस की गलत विवेचना की वजह से चार साल की नाबालिग बच्ची के साथ दुष्कृत्य करने के आरोपी न्यायालय से दोषमुक्त हो गए। न्यायालय ने पाया है कि बच्ची न्यायालय में और धारा 164 के कथन के समय मजिस्ट���रेट के समक्ष बयान नहीं दे पा रही है। ऐसे में पुलिस ने उसका कथन कैसे दर्ज कर लिया। इसके अलावा प्रकरण में जब्ती भी बदला जाना प्रगट हुआ है।
केस दो- झाबुआ के पेटलावद थाने में 12 सितंबर 2015 को दर्ज मामले में राजेन्द्र कासवा नाम के व्यक्ति के गोदाम में अवैध रुप से रखी गई विस्फोटक सामग्री में विस्फोट हो जाने से 78 व्यक्तियों की मौत हो गईथी। लगभग 80 घायल हुए थे। इस प्रकरण में अतरिक्त पुलिस अधीक्षक झाबुआ सीमा अलावा की अगुवाई में एसआईटी गठित हुई। प्रकरण में आरोपी धमेन्द्र सिंह राठौर के विरुद्ध चालान पेश नहीं हो पाया। जबकि मुख्य आरोपी यह है कि इन्होंने अवैध रुप से कासवा को विस्फोटक आपूर्ति की।
केस तीन- थाना भीकनगांव जिला खरगौन में मृत्क की हत्या और उसके पुत्र सुरेश ने की थी। मृतक शराब पीकर गाली गलौच करता था जिस पर क्रोध ममें आकर आरोपी ने अपने पिता की हत्या कर दी। प्रकरण में सभी साक्ष्य पक्षविरोधी हो गए। न्यायालय के अनुसार एफएसएल को भेजा गया ड्रॉफट दोषपूर्ण था प्रकरण में स्वतंत्र वैज्ञानिक साक्ष्य संग्रह नहीं किया गया।
केस चार- शाहपुर थाना रीवा के मामले मं चार आरोपियों में से दो फरार आरोपी जो आपस में रिश्ते दार है। उनके घर तलाशी लेने गई पुलिस टीम में शामिल दो ��ीएसपी, दो इंस्पेक्टर और अन्य स्टाफ के साथ मारपीट की गई और आरोपी फरार हो गए। न्यायालय ने विचेचना में खामियों को बताते हुएसभी आरोपियों को बरी कर दिया।
न्यायालय ने यह भी कहा जब एक आरोपी से कट्टा का परीक्षण नहीं करया तथ दो आरोपी कैसे घायल हुए इसका भी कोई रिकार्ड नहीं है। दो आरोपी आज तक फरार है। आरोपी स्वयं अस्पताल कैसे पहुुचे इसका भी कोई रिकार्ड नहीं है। कई पुलिस साक्षी ये नहीं बता पाए कि घटनाक्रम क्या था । इस प्रकार से वे एक प्रकार से पक्ष विरोधी कथन दिए गए।
https://mediawala.in/mp-news-accused-of-raping-minor-girl-acquitted-from-court-due-to-wrong/
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केंद्रीय बजट 2022 लाइव अपडेट: वित्त मंत्री सीतारमण आज संसद में मोदी सरकार का 10वां केंद्रीय बजट पेश करेंगी
केंद्रीय बजट 2022 लाइव अपडेट: वित्त मंत्री सीतारमण आज संसद में मोदी सरकार का 10वां केंद्रीय बजट पेश करेंगी
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण कनिष्ठ मंत्रियों पंकज चौधरी (बाएं) और भागवत कराड और बजट अभ्यास में शामिल अधिकारियों की कोर टीम के साथ। (स्थायी एलआर): सीबीआईसी के अध्यक्ष विवेक जौहरी, सीबीडीटी के अध्यक्ष जेबी महापात्र, वित्तीय सेवा सचिव देबाशीष पांडा, दीपम सचिव तुहिन पांडे, राजस्व सचिव तरुण बजाज, सीईए वी अनंत नागेश्वरन, वित्त सचिव टीवी सोमनाथन, आर्थिक मामलों के सचिव अजय सेठ, संयुक्त सचिव बजट आशीष…
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आत्मा चित्तम भाग 6
‘अविवेक माया है।’ अविवेक का अर्थ है: भेद न कर पाना, डिसक्रिमिनेशन का अभाव, यह तय न कर पाना कि क्या हीरा है और क्या पत्थर है। जीवन के जौहरी बनना होगा। जीवन के जौहरी बनने से ही विवेक पैदा होता है। तुम्हारे पास जीवन है। और तुम खोजो। और इसको मैं खोज की कसौटी कहता हूं कि जो अपने आप चल रहा है, उसे तुम व्यर्थ जानना; और जो तुम्हारे चलाने से भी नहीं चलता है, उसे तुम सार्थक जानना। यह कसौटी है। और जिस दिन तुम्हारे जीवन में वह चलने लगे, जिसे तुम चलाना चाहते थे और जिसका चलना मुश्किल था, उस दिन समझना कि फूल आएंगे। और जिस दिन उसका उगना बंद हो जाए, जो अपने आप उगता था, समझना माया समाप्त हुई। ‘मोह आवरण से युक्त योगी को सिद्धियां तो फलित हो जाती हैं, लेकिन आत्मज्ञान नहीं होता।’ और यह व्यर्थ इतना महत्वपूर्ण हो गया है जीवन में कि जब तुम सार्थक को भी साधने जाते हो, तब भी सार्थक नहीं सधता, व्यर्थ ही सधता है। लोग ध्यान करने आते हैं, तो भी उनकी आकांक्षा को समझने की कोशिश करो तो बड़ी हैरानी होती है। ध्यान से भी वे व्यर्थ को ही मांगते हैं। मे���े पास वे आते हैं, वे कहते हैं कि ध्यान करना चाहता हूं, क्योंकि शारीरिक बीमारियां हैं। क्या आप आश्वासन देते हैं कि ध्यान करने से वे दूर हो जाएंगी? अच्छा होता, वे चिकित्सक के पास गए होते। अच्छा होता कि उन्होंने आदमी खोजा होता, जो शरीर की चिकित्सा करता। वे आत्मा के वैद्य के पास भी आते हैं तो भी शरीर के इलाज के लिए ही। वे ध्यान भी करने को तैयार हैं, तो भी ध्यान उनके लिए औषधि से ज्यादा नहीं है; और वह औषधि भी शरीर के लिए। मेरे पास लोग आते हैं, वे कहते हैं कि बड़ी कठिनाई में जीवन जा रहा है, धन की असुविधा है; क्या ध्यान करने से सब ठीक हो जाएगा? यह मोह का आवरण इतना घना है कि तुम अगर अमृत को भी खोजते हो तो जहर के लिए। बड़ी हैरानी की बात है! तुम चाहते तो अमृत हो; लेकिन उससे आत्महत्या करना चाहते हो। और अमृत से कोई आत्महत्या नहीं होती। अमृत पीया कि तुम अमर हो जाओगे। लेकिन तुम अमृत की तलाश में आते हो तो भी तुम्हारा लक्ष्य आत्महत्या का है। धन या देह, संसार का कोई न कोई अंग, वही तुम धर्म से भी पूरा करना चाहते हो। सुनो लोगों की प्रार्थनाएं, मंदिरों में जाकर वे क्या मांग रहे हैं? और तुम पाओगे कि वे मंदिर में भी संसार मांग रहे हैं। किसी के बेटे की शादी नहीं हु��� है; किसी के बेटे को नौकरी नहीं मिली है; किसी के घर में कलह है। मंदिर में भी तुम संसार को ही मांगने जाते हो? तुम्हारा मंदिर सुपर मार्केट होगा, बड़ी दुकान होगा, जहां ये चीजें भी बिकती हैं, जहां सभी कुछ बिकता है। लेकिन तुम्हें अभी मंदिर की कोई पहचान नहीं। इसलिए तुम्हारे मंदिरों में जो पुजारी बैठे हैं, वे दुकानदार हैं; क्योंकि वहां जो लोग आते हैं, वे संसार के ही ग्राहक हैं। असली मंदिर से तो तुम बचोगे। मेरे एक मित्र हैं, दांत के डॉक्टर हैं। उनके घर मैं मेहमान था। बैठा था उनके बैठकखाने में एक दिन सुबह, एक छोटा सा बच्चा डरा-डरा भीतर प्रविष्ट हुआ। चारों तरफ उसने चौंक कर देखा। फिर मुझसे पूछा कि क्या मैं पूछ सकता हूं--बड़े फुसफुसा कर--कि डॉक्टर साहब भीतर हैं या नहीं? तो मैंने कहा, वे अभी बाहर गए हैं। प्रसन्न हो गया वह बच्चा। उसने कहा, मेरी मां ने भेजा था दांत दिखाने। क्या मैं आपसे पूछ सकता हूं कि वे फिर कब बाहर जाएंगे? बस, ऐसी तुम्हारी हालत है। अगर मंदिर तुम्हें मिल जाए तो तुम बचोगे। दांत का दर्द तुम सह सकते हो; लेकिन दांत का डॉक्टर तुम्हें जो दर्द देगा, वह तुम सहने को तैयार नहीं हो। तुम छोटे बच्चों की भांति हो। तुम संसार की पीड़ा सह सकते हो; लेकिन धर्म की पीड़ा सहने की तुम्हारी तैयारी नहीं है। और निश्चित ही धर्म भी पीड़ा देगा। वह धर्म पीड़ा नहीं देता; वह तुम्हारे संसार के दांत इतने सड़ गए हैं, उनको निकालने में पीड़ा होगी। धर्म पीड़ा नहीं देता; धर्म तो परम आनंद है। लेकिन तुम दुख में ही जीए हो और तुमने दुख ही अर्जित किया है। तुम्हारे सब दांत पीड़ा से भर गए हैं; उनको खींचने में कष्ट होगा। तुम इतने डरते हो उनको खींचे जाने से कि तुम राजी हो उनकी पीड़ा और जहर को झेलने को। उससे तुम विषाक्त हुए जा रहे हो; तुम्हारा सारा जीवन गलित हुआ जा रहा है। लेकिन तुम इस दुख से परिचित हो। आदमी परिचित दुख को झेलने को राजी होता है; अपरिचित सुख से भी भय लगता है! ये दांत भी तुम्हारे हैं। यह दर्द भी तुम्हारा है। इससे तुम जन्मों-जन्मों से परिचित हो। लेकिन तुम्हें पता नहीं कि अगर ये दांत निकल जाएं, यह पीड़ा खो जाए, तो तुम्हारे जीवन में पहली दफा आनंद का द्वार खुलेगा। तुम मंदिर भी जाते हो तो तुम पूछते हो पुजारी से, परमात्मा फिर कब बाहर होंगे, तब मैं आऊं। तुम जाते भी हो, तुम जाना भी नहीं चाहते हो। तुम कैसी चाल अपने साथ खेलते हो, इसका हिसाब लगाना बहुत मुश्किल है। निरंतर तुम्हें देख कर, तुम्हारी समस्याओं को देख कर, मैं इस नतीजे
पर पहुंचा हूं कि तुम्हारी एक ही मात्र समस्या है कि तुम ठीक से यही नहीं समझ पा रहे हो कि तुम क्या करना चाहते हो। ध्यान करना चाहते हो? यह भी पक्का नहीं है। फिर ध्यान नहीं होता तो तुम परेशान होते हो। लेकिन जो करने का तुम्हारा पक्का ही नहीं है, वह तुम पूरे-पूरे भाव से कर��गे नहीं, आधे-आधे भाव से करोगे। और आधे-आधे भाव से जीवन में कुछ भी नहीं होता। व्यर्थ तो बिना भाव के भी चलता है। उसमें तुम्हें कुछ भी लगाने की जरूरत नहीं; उसकी अपनी ही गति है। लेकिन सार्थक में जीवन को डालना पड़ता है, दांव पर लगाना होता है। यह सूत्र कहता है: ‘मोह आवरण से युक्त योगी को सिद्धियां तो फलित हो जाती हैं, लेकिन आत्मज्ञान नहीं होता।’ मोह का आवरण इतना घना है कि अगर तुम धर्म की तरफ भी जाते हो तो तुम चमत्कार खोजते हो वहां भी। वहां भी अगर बुद्ध खड़े हों, तुम न पहचान सकोगे। तुम सत्य साईं बाबा को पहचानोगे। अगर बुद्ध और सत्य साईं बाबा दोनों खड़े हों, तो तुम सत्य साईं बाबा के पास जाओगे, बुद्ध के पास नहीं। क्योंकि बुद्ध ऐसी मूढ़ता न करेंगे कि तुम्हें ताबीज दें, हाथ से राख गिराएं; बुद्ध कोई मदारी नहीं हैं। लेकिन तुम मदारियों की तलाश में हो। तुम चमत्कार से प्र���ावित होते हो। क्योंकि तुम्हारी गहरी आकांक्षा, वासना परमात्मा की नहीं है; तुम्हारी गहरी वासना संसार की है। जहां तुम चमत्कार देखते हो, वहां लगता है कि यहां कोई गुरु है। यहां आशा बंधती है कि वासना पूरी होगी। जो गुरु हाथ से ताबीज निकाल सकता है, वह चाहे तो कोहिनूर भी निकाल सकता है। बस गुरु के चरणों में, सेवा में लग जाने की जरूरत है, आज नहीं कल कोहिनूर भी निकलेगा। क्या फर्क पड़ता है गुरु को! ताबीज निकाला, कोहिनूर भी निकल सकता है। कोहिनूर की तुम्हारी आकांक्षा है। कोहिनूर के लिए छोटे-छोटे लोग ही नहीं, बड़े से बड़े लोग भी चोर होने को तैयार हैं। जिस आदमी के हाथ से राख गिर सकती है शून्य से, वह चाहे तो तुम्हें अमरत्व प्रदान कर सकता है; बस केवल गुरु-सेवा की जरूरत है! नहीं, बुद्ध से तुम वंचित रह जाओगे; क्योंकि वहां कोई चमत्कार घटित नहीं होता। जहां सारी वासना समाप्त हो गई है, वहां तुम्हारी किसी वासना को तृप्त करने का भी कोई सवाल नहीं है। बुद्ध के पास तो महानतम चमत्कार, आखिरी चमत्कार घटित होता है--निर्वासना का प्रकाश है वहां। लेकिन तुम्हारी वासना से भरी आंखें वह न देख पाएंगी। बुद्ध को तुम तभी देख पाओगे, तभी समझ पाओगे, उनके चरणों में तुम तभी झुक पाओगे, जब सच में ही संसार की व्यर्थता तुम्हें दिखाई पड़ गई हो, मोह का आवरण टूट गया हो। मोह एक नशा है। जैसे नशे में डूबा हुआ कोई आदमी चलता है, डगमगाता; पक्का पता भी नहीं कहां जा रहा है, क्यों जा रहा है; चलता है बेहोशी में; ऐसे तुम चलते रहे हो। कितना ही तुम सम्हालो अपने पैरों को, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। सभी शराबी सम्हालने की कोशिश करते हैं। तुम अपने को भला धोखा दे लो, दूसरों को कोई धोखा नहीं हो पाता। सभी शराबी कोशिश करते हैं कि वे नशे में नहीं हैं; वे जितनी कोशिश करते हैं, उतना ही प्रकट होता है। और यह मोह नशा है। और जब मैं कहता हूं मोह नशा है, तो बिलकुल रासायनिक अर्थों में कहता हूं कि मोह नशा है। मोह की अवस्था में तुम्हारा पूरा शरीर नशीले द्रव्यों से भर जाता है--वैज्ञानिक अर्थों में भी। जब तुम किसी स्त्री के प्रेम में गिरते हो, तो तुम्हारा पूरे शरीर का खून विशेष रासायनिक ��्रव्यों से भर जाता है। वे द्रव्य वही हैं जो भांग में हैं, गांजे में हैं, एल एस डी में हैं। इसीलिए स्त्री अब, जिसके तुम प्रेम में पड़ गए हो, वह स्त्री अलौकिक दिखाई पड़ने लगती है। वह इस पृथ्वी की नहीं मालूम होती। जिस पुरुष के तुम प्रेम में पड़ जाओ, वह पुरुष इस लोक का नहीं मालूम पड़ता। नशा उतरेगा, तब वह दो कौड़ी का दिखाई पड़ेगा। जब तक नशा है! इसलिए तुम्हारा कोई भी प्रेम स्थायी नहीं हो सकता; क्योंकि नशे क�� अवस्था में किया गया है। वह मोह का एक रूप है। होश में नहीं हुआ है वह, बेहोशी में हुआ है। इसलिए हम प्रेम को अंधा कहते हैं। प्रेम अंधा नहीं है, मोह अंधा है। हम भूल से मोह को प्रेम समझते हैं। प्रेम तो आंख है; उससे बड़ी कोई आंख नहीं है। प्रेम की आंख से तो परमात्मा दिखाई पड़ जाता है--इस संसार में छिपा हुआ। मोह अंधा है; जहां कुछ भी नहीं है वहां सब-कुछ दिखाई पड़ता है। मोह एक सपना है। और जिनको हम योगी कहते हैं, वे भी इस मोह से ग्रस्त होते हैं। सिद्धियां तो हल हो जाती हैं। वे कुछ शक्तियां तो पा लेते हैं। शक्तियां पानी कठिन नहीं है। दूसरे के मन के विचार पढ़े जा सकते हैं--थोड़ा ही उपाय करने की जरूरत है। दूसरे के विचार प्रभावित किए जा सकते हैं--थोड़ा ही उपाय करने की जरूरत है। आदमी आए, तुम बता सकते हो कि तुम्हारे मन में क्या खयाल है--थोड़े ही उपाय करने की जरूरत है। यह विज्ञान है; धर्म का इससे कुछ लेना-देना नहीं है। मन को पढ़ने का विज्ञान है, जैसे किताब
को पढ़ने का विज्ञान है। जो अपढ़ है, वह तुम्हें किताब को पढ़ते देख कर बहुत हैरान होता है--क्या चमत्कार हो रहा है! जहां कुछ भी दिखाई नहीं पड़ता उसे, काले धब्बे हैं, वहां से तुम ऐसा आनंद ले रहे हो--कविता का, उपनिषद का, वेद का--मंत्रमुग्ध हो रहे हो! अपढ़ देख कर हैरान होता है। मुल्ला नसरुद्दीन के गांव में वह अकेला ही पढ़ा-लिखा आदमी था। और जब अकेला ही कोई पढ़ा-लिखा आदमी हो तो पक्का नहीं कि वह पढ़ा-लिखा है भी कि नहीं। क्योंकि कौन पता लगाए? गांव में जिसको भी चिट्ठी वगैरह लिखवानी होती, वह नसरुद्दीन के पास आता। वह चिट्ठी लिख देता था। एक दिन एक बुढ़िया आई। उसने कहा कि चिट्ठी लिख दो नसरुद्दीन! नसरुद्दीन ने कहा, अभी न लिख सकूंगा, मेरे पैर में बहुत दर्द है। बुढ़िया ने कहा, हद हो गई! पैर के दर्द से और चिट्ठी लिखने का संबंध क्या? नसरुद्दीन ने कहा, अब उस विस्तार में मत जाओ। लेकिन मैं कहता हूं कि पैर में दर्द है, और मैं चिट्ठी न लिखूंगा। बुढ़िया भी जिद्दी थी। उसने कहा, मैं बिना जाने जाऊंगी नहीं। क्योंकि मैं बेपढ़ी-लिखी हूं, लेकिन यह मैंने कभी सुना नहीं कि पैर के दर्द से चिट्ठी लिखने का क्या संबंध है। नसरुद्दीन ने कहा, तू नहीं मानती तो मैं बता दूं। फिर पढ़ने दूसरे गांव तक कौन जाएगा? वह मुझ ही को जाना पड़ता है। मेरी लिखी चिट्ठी मैं ही पढ़ सकता हूं। अभी मेरे पैर में दर्द है, मैं लिखने वाला नहीं। गैर पढ़ा-लिखा आदमी किताब में खोए आदमी को देख कर चमत्कृत होता है। लेकिन पढ़ना सीखा जा सकता है; उसकी कला है। तुम्हारे मन में विचार चलते हैं। तुम देखते हो विचारों को, दूसरा भी उनको देख सकता है; उसकी कला है। लेकिन उस विचारों को देखने की कला का धर्म से कोई भी संबंध नहीं। न किताब को पढ़ने की कला से धर्म का कोई संबंध है; न दूसरे के मन को पढ़ने की कला से धर्म का कोई संबंध है। जादूगर सीख लेते हैं; वे कोई सिद्ध पुरुष नहीं हैं। लेकिन तुम बहुत चमत्कृत होओगे। तुम गए किसी साधु के पास और उसने कहा कि आओ! तुम्हारा नाम लिया, तुम्हारे गांव का पता बताया और कहा कि तुम्हारे घर के बगल में एक नीम का झाड़ है। तुम दीवाने हो गए! लेकिन साधु को नीम के झाड़ से क्या लेना, तुम्हारे गांव से क्या लेना, तुम्हारे नाम से क्या मतलब! साधु तो वह है जिसे पता चल गया है कि किसी का कोई नाम नहीं, रूप नहीं, किसी का कोई गांव नहीं। ये गांव, नाम, रूप, सब संसार के हिस्से हैं। तुम संसारी हो! वह साधु भी तुम्हें प्रभावित कर रहा है, क्योंकि वह तुमसे गहरे संसार में है। उसने और भी कला सीख ली है। तुम्हारे बिना बताए वह बोलता है। वह तुम्हें प्रभावित करना चाहता है। ध्यान रखो, जब तक तुम दूसरे को प्रभावित करना चाहते हो, तब तक तुम अहंकार से ग्रस्त हो। आत्मा किसी को प्रभावित करना नहीं चाहती। दूसरे को प्रभावित करने में सार भी क्या है? क्या अर्थ है? पानी पर बनाई हुई लकीरों जैसा है। क्या होगा मुझे? दस हजार लोग प्रभावित हों कि दस करोड़ लोग प्रभावित हों, इससे होगा क्या? उनको प्रभावित करके मैं क्या पा लूंगा? अज्ञानियों की भीड़ को प्रभावित करने की इतनी उत्सुकता अज्ञान की खबर देती है। तो राजनेता दूसरों को प्रभावित करने में उत्सुक होता है, समझ में आता है। लेकिन धार्मिक व्यक्ति क्यों दूसरों को प्रभावित करने में उत्सुक होगा? और जब भी तुम दूसरे को प्रभावित करना चाहते हो, तब एक बात याद रखना, तुम आत्मस्थ नहीं हो। दूसरे को प्रभावित करने का अर्थ है कि तुम अहंकार स्थित हो। अहंकार दूसरे के प्रभाव को भोजन की तरह उपलब्ध करता है; उसी पर जीता है। जितनी आंखें मुझे पहचान लें, उतना मेरा अहंकार बड़ा होता है। अगर सारी दुनिया मुझे पहचान ले, तो मेरा अहंकार सर्वोत्कृष्ट हो जाता है। कोई मुझे न पहचाने--गांव से निकलूं, सड़क से गुजरूं, कोई देखे न, कोई रिकग्नीशन नहीं, कोई प्रत्यभिज्ञा नहीं; किसी की आंख में झलक न आए, लोग ऐसा जैसे कि मैं हूं ही नहीं--बस वहां अहंकार को चोट है। अहंकार चाहता है दूसरे ध्यान दें। यह बड़े मजे की बात है। अहंकार ध्यान नहीं करना चाहता; दूसरे उस पर ध्यान करें, सारी दुनिया उसकी तरफ देखे, वह केंद्र हो जाए। धार्मिक व्यक्ति, दूसरा मेरी तरफ देखे, इसकी फिक्र नहीं करता; मैं अपनी तरफ देखूं! क्योंकि अंततः वही मेरे साथ जाएगा। यह तो बच्चों की बात हुई। बच्चे खुश होते हैं कि दूसरे उनकी प्रशंसा करें। सर्टिफिकेट घर लेकर आते हैं तो नाचते-कूदते आते हैं। लेकिन बुढ़ापे में भी तुम सर्टिफिकेट मांग रहे हो? तब तुमने जिंदगी गंवा दी! सिद्धि की आकांक्षा दूसरों को प्रभावित करने में है। धार्मिक व्यक्ति की वह आकांक्षा नहीं है। वही तो सांसारिक का स्वभाव है। यह सूत्र कहता है: ‘मोह आवरण से युक्त योगी को सिद्धियां तो फलित हो जाती हैं, लेकिन आत्मज्ञान नहीं होता।’ वह कितनी ही बड़ी सिद्धियों को पा ले--उसके छूने ��े मुर्दा जिंदा हो जाए, उसके स्पर्श से बीमारियां खो जाएं, वह पानी को छू दे और
औषधि हो जाए--लेकिन उससे आत्मज्ञान का कोई भी संबंध नहीं है। सच तो स्थिति उलटी है कि जितना ही वह व्यक्ति सिद्धियों से भरता जाता है, उतना ही आत्मज्ञान से दूर होता जाता है। क्योंकि जैसे-जैसे अहंकार भरता है, वैसे-वैसे आत्मा खाली होती है; और जैसे-जैसे अहंकार खाली होता है, वैसे-वैसे आत्मा भरती है। तुम दोनों को साथ ही साथ न भर पाओगे। दूसरे को प्रभावित करने की आकांक्षा छोड़ दो, अन्यथा योग भी भ्रष्ट हो जाएगा। तब तुम योग भी साधोगे, वह भी राजनीति होगी, धर्म नहीं। और राजनीति एक जाल है। फिर येन केन प्रकारेण आदमी दूसरे को प्रभावित करना चाहता है। फिर सीधे और गलत रास्ते से भी प्रभावित करना चाहता है। लेकिन प्रभावित तुम करना ही इसलिए चाहते हो कि तुम दूसरे का शोषण करना चाहते हो। मैंने सुना है, चुनाव हो रहे थे; और एक संध्या तीन आदमी हवालात में बंद किए गए। अंधेरा था, तीनों ने अंधेरे में एक-दूसरे को परिचय दिया। पहले व्यक्ति ने कहा, मैं हूं सरदार संतसिंह। मैं सरदार सिरफोड़सिंह के लिए काम कर रहा था। दूसरे ने कहा, गजब हो गया! मैं हूं सरदार शैतानसिंह। मैं सरदार सिरफोड़सिंह के विरोध में काम कर रहा था। तीसरे ने कहा, वाहे गुरुजी की फतह! वाहे गुरुजी का खालसा! हद हो गई! मैं खुद सरदार सिरफोड़सिंह हूं। नेता, अनुयायी, पक्ष के, विपक्ष के--सभी कारागृहों के योग्य हैं। वही उनकी ठीक जगह है, जहां उन्हें होना चाहिए। क्योंकि पाप की शुरुआत वहां से होती है, जहां मैं दूसरे व्यक्ति को प्रभावित करने चलता हूं। क्योंकि अहंकार न शुभ जानता, न अशुभ; अहंकार सिर्फ अपने को भरना जानता है। कैसे अपने को भरता है, यह बात गौण है। अहंकार की एक ही आकांक्षा है कि मैं अपने को भरूं और परिपुष्ट हो जा��ं। और चूंकि अहंकार एक सूनापन है, सब उपाय करके भी भर नहीं पाता, खाली ही रह जाता है। तो जैसे-जैसे उम्र हाथ से खोती है, वैसे-वैसे अहंकार पागल होने लगता है; क्योंकि अभी तक भर नहीं पाया, अभी तक यात्रा अधूरी है और समय बीता जा रहा है। इसलिए बूढ़े आदमी चिड़चिड़े हो जाते हैं। वह चिड़चिड़ापन किसी और के लिए नहीं है; वह चिड़चिड़ापन अपने जीवन की असफलता के लिए है। जो भरना चाहते थे, वे भर नहीं पाए। और बूढ़े आदमी की चिड़चिड़ाहट और घनी हो जाती है; क्योंकि उसे लगता है कि जैसे-जैसे वह बूढ़ा हुआ है, वैसे-वैसे लोगों ने ध्यान देना बंद कर दिया है; बल्कि लोग प्रतीक्षा कर रहे हैं कि वह कब समाप्त हो जाए। मुल्ला नसरुद्दीन सौ साल का हो गया था। मैंने उससे पूछा कि क्या तुम कुछ कारण बता सकते हो नसरुद्दीन कि परमात्मा ने तुम्हें इतनी लंबी उम्र क्यों दी? उसने बिना कुछ झिझक कर कहा, संबंधियों के धैर्य की परीक्षा के लिए। सभी बूढ़े संबंधियों के धैर्य की परीक्षा कर रहे हैं। चौबीस घंटे देख रहे हैं कि ध्यान उनकी तरफ से हटता जा रहा है। मौत तो उन्हें बाद में म���टाएगी, लोगों की पीठ उन्हें पहले ही मिटा देती है। उससे चिड़चिड़ापन पैदा होता है। तुम सोच भी नहीं सकते कि निक्सन का चिड़चिड़ापन अभी कैसा होगा। सब की पीठ हो गई, जिनके चेहरे थे। जो अपने थे, वे पराए हो गए। जो मित्र थे, वे शत्रु हो गए। जिन्होंने सहारे दिए थे, उन्होंने सहारे छीन लिए। सब ध्यान हट गया। निक्सन अस्वस्थ हैं, बेचैन हैं, परेशान हैं। जो भी आदमी जाता है निक्सन के पास, उससे वे पहली बात यही पूछते हैं कि मैंने जो किया वह ठीक किया? लोग मेरे संबंध में क्या कह रहे हैं? अभी यह आदमी शिखर पर था, अब यह आदमी खाई में पड़ा है! यह शिखर और खाई किस बात की थी? यह आदमी तो वही है जो कल था, पद पर था; वही आदमी अभी भी है। सिर्फ अहंकार शिखर पर था, अब खाई में है; आत्मा तो जहां की तहां है। काश! इस आदमी को उसकी याद आ जाए, जिसका न कोई शिखर होता, न कोई खाई होती; न कोई हार होती, न जीत होती; जिसको लोग देखें तो ठीक, न देखें तो ठीक; जिसमें कोई फर्क नहीं पड़ता, जो एकरस है। उस एकरसता का अनुभव तुम्हें तभी होगा, जब तुम लोगों का ध्यान मांगना बंद कर दोगे। भिखमंगापन बंद करो। सिद्धियों से क्या होगा? लोग तुम्हें चमत्कारी कहेंगे; लाखों की भीड़ इकट्ठी होगी। लेकिन लाखों मूढ़ों को इकट्ठा करके क्या सिद्ध होता है--कि तुम इन लाखों मूढ़ों के ध्यान के केंद्र हो! तुम महामूढ़ हो! अज्ञानी से प्रशंसा पाकर भी क्या मिलेगा? जिसे खुद ज्ञान नहीं मिल सका, उसकी प्रशंसा मांग कर तुम क्या करोगे? जो खुद भटक रहा है, उसके तुम नेता हो जाओगे? उसके सम्मान का कितना मूल्य है? सुना है मैंने, सूफी फकीर हुआ, फरीद। वह जब बोलता था, तो कभी लोग ताली बजाते तो वह रोने लगता। एक दिन उसके शिष्यों ने पूछा, हद्द हो गई! लोग ताली बजाते हैं, तुम रोते किसलिए हो? तो फरीद ने कहा कि वे ताली बजाते हैं, तब मैं समझता हूं कि मुझसे कोई गलती हो गई होगी। अन्यथा वे ताली कभी न बजाते। ये गलत लोग! जब वे न ताली बजाते, न उनकी समझ में आता, तभी मैं समझता हूं कि कुछ ठीक बात कह रहा हूं। आखिर गलत आदमी की ताली
का मूल्य क्या है? तुम किसके सामने अपने को ‘सिद्ध’ सिद्ध करना चाह रहे हो? अगर तुम इस संसार के सामने अपने को ‘सिद्ध’ सिद्ध करना चाह रहे हो, तो तुम नासमझों की प्रशंसा के लिए आतुर हो। तुम अभी नासमझ हो। और अगर तुम सोचते हो कि परमात्मा के सामने तुम अपने को सिद्ध करना चाह रहे हो कि मैं सिद्ध हूं, तो तुम और महा नासमझ हो। क्योंकि उसके सामने तो विनम्रता चाहिए। वहां तो अहंकार काम न करेगा। वहां तो तुम मिट कर जाओगे तो ही स्वीकार पाओगे। वहां तुम अकड़ लेकर गए तो तुम्हारी अकड़ ही बाधा हो जाएगी। इसलिए तथाकथित सिद्ध परमात्मा तक नहीं पहुंच पाते। परम सिद्धियां उनकी हो जाती हैं, लेकिन असली सिद्धि चूक जाती है। वह असली सिद्धि है आत्मज्ञान। क्यों आत्मज्ञान चूक जाता है? क्योंकि सिद्धि भी दूसरे की तरफ देख रह�� है, अपनी तरफ नहीं। अगर कोई भी न हो दुनिया में, तुम अकेले होओ, तो तुम सिद्धियां चाहोगे? तुम चाहोगे कि पानी को छुऊं, औषधि हो जाए? मरीज को छुऊं, स्वस्थ हो जाए? मुर्दे को छुऊं, जिंदा हो जाए? कोई भी न हो पृथ्वी पर, तुम अकेले होओ, तो तुम ये सिद्धियां चाहोगे? तुम कहोगे, क्या करेंगे! देखने वाले ही न रहे। देखने वाले के लिए सिद्धियां हैं। दूसरे पर तुम्हारा ध्यान है, तब तक तुम्हारा अपने पर ध्यान नहीं आ सकता। और आत्मज्ञान तो उसे फलित होता है, जो दूसरे की तरफ से आंखें अपनी तरफ मोड़ लेता है।
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डीजीपी के सांप्रदायिक पोस्ट पर आपत्ति जताने के बाद रिटायर्ड एमपी कॉप को व्हाट्सएप ग्रुप से हटाया गया
डीजीपी के सांप्रदायिक पोस्ट पर आपत्ति जताने के बाद रिटायर्ड एमपी कॉप को व्हाट्सएप ग्रुप से हटाया गया
मध्य प्रदेश के डीजीपी विवेक जौहरी ने राज्य के आईपीएस अधिकारियों के एक व्हाट्सएप ग्रुप से एक सेवानिवृत्त वरिष्ठ पुलिस अधिकारी को मुस्लिम समुदाय के खिलाफ संदेश पोस्ट करने और कहने पर इसे हटाने से इनकार करने के लिए हटाने का आदेश दिया। विशेष डीजीपी (पुलिस सुधार) के रूप में सेवानिवृत्त हुई मैथिली शरण गुप्ता ने हाल ही में व्हाट्सएप ग्रुप, आईपीएस एमपी पर एक यूट्यूब चैनल लिंक साझा किया, जिसने हिंदुओं को…
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#एमपी पुलिस वाले सांप्रदायिक पोस्ट#एमपी पुलिस व्हाट्सएप ग्रुप#एमपी पुलिस सांप्रदायिक पोस्ट#जावेद अख्तरी#भारतीय एक्सप्रेस#मध्य प्रदेश पुलिस#मुस्लिम पूर्वजों
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एमपी में कानून व्यवस्था के लिए होगा ग्रेडिंग सिस्टम, अच्छा काम करने वाले जिलों को मिलेगा इनाम
एमपी में कानून व्यवस्था के लिए होगा ग्रेडिंग सिस्टम, अच्छा काम करने वाले जिलों को मिलेगा इनाम
मध्य प्रदेश में अब कानून व्यवस्था को लेकर ग्रेडिंग सिस्टम लागू किया गया है. इसको लेकर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कानून व्यवस्था की समीक्षा बैठक के दौरान अधिकारियों को निर्देश दिए हैं. मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने मंत्रालय में प्रदेश में कानून व्यवस्था की स्थिति की समीक्षा बैठक की. इस बैठक में गृह मंत्री डॉ. नरोत्तम मिश्रा, मुख्य सचिव इकबाल सिंह बैंस, डीजीपी विवेक जौहरी, अपर मुख्य सचिव…
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मजिस्ट्रियल जांच से पहले डीजीपी ने पुलिस प्रशासन को दी क्लीन चिट - News18 Hindi
मजिस्ट्रियल जांच से पहले डीजीपी ने पुलिस प्रशासन को दी क्लीन चिट – News18 Hindi
भोपाल विदिशा के गंजबासौदा में हुए अच्छे हादसे की जांच से पहले ही राज्य के डीजीपी विवेक जौहरी ने पुलिस प्रशासन को क्लीन चिट दे दी थी. क्लीन चिट की यह स्थिति ऐसे समय में आई है जब विदेश कलेक्टर पंकज जैन ने अपर जिलाधिकारी वरिंदावन सिंह को जांच अधिकारी नियुक्त कर मजिस्ट्रियल जांच के आदेश दिए हैं। डीजीपी ने किया ट्वीट डीजीपी विवेक जौहरी ने ट्वीट किया कि हादसे की पहली सूचना डायल हंड्रेड को 19:38 पर…
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कोरोना कर्फ्यू का संयमित व्यवहार के साथ कड़ाई से पालन कराना सुनिश्चित करें:- डीजीपी श्री जौहरी
भोपाल। प्रदेश पुलिस प्रमुख्य महानिदेशक श्री विवेक जौहरी की अध्यक्षता में नवीन पुलिस मुख्यालय स्थित कॉफ्रेंस हॉल में प्रदेश में कोविड-19 संक्रमण से पुलिस अधिकारियों- कर्मचारियों के बचाव और रोक���ाम तथा अपराध ट्रेंड्स विषय पर वीडियो कॉन्फ्रेंस आयोजित की गई। इस कॉफ्रेंसिंग में समस्त जोन अतिoपुलिस महानिदेशक / पुलिस महानिरीक्षक, पुलिस महानिरीक्षक (विसबल), पुलिस उप महानिरीक्षक रेंज, पुलिस उप महानिरीक्षक…
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Monitering of SP's work From PHQ: Special DG और ADG करेंगे जिलों में जाकर निरीक्षण
भोपाल। पुलिस अधीक्षकों के काम-काज पर पुलिस मुख्यालय की मॉनिटरिंग बढ़ने जा रही है। अब तक रेंज या पुलिस जोन के एडीजी या आईजी और डीआईजी ही निरीक्षण करने के लिए जिलों में जाते थे,लेकिन अब पुलिस मुख्यालय में पदस्थ स्पेशल डीजी और एडीजी भी हर महीने जिलों में जाकर निरीक्षण करेंगे।
इस संबंध में पुलिस मुख्यालय ने सभी स्पेशल डीजी और एडीजी को आदेश जारी कर दिए हैं। सीआईडी के एडीजी जीपी सिंह ने इस संबंध में प्रस्ताव बनाकर डीजीपी विवेक जौहरी को सौंपा था। इसी बीच पेटलावद विस्फोट कांड का फैसला आ गया, जिसमें आरोपियों को बरी कर दिया गया।
इससे मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान खासे नाराज हो गए। उनकी नाराजगी के ��ाद पुलिस मुख्यालय ने भी अब जिला पुलिस की मॉनिटरिंग बढ़ाने का तय कर दिया है। सीआईडी के प्रस्ताव को डीजीपी ने मंजूरी देते हुए स्पेशल डीजी और एडीजी को जिलों में जाकर निरीक्षण करने के निर्देश दिए गए हैं। ये अफसर महीने में एक या दो जिलों में जाकर निरीक्षण करेंगे।
बताया जाता है कि जो जिस शाखा का प्रमुख है वह जिलों में जाकर अपनी शाखा के संबंध में निरीक्षण करेगा। महिला अपराध शाखा के एडीजी जिलों में जाकर महिला अपराधों की समीक्षा करेंगे। वहीं एससीआरबी के एडीजी अपराधों का रिकॉर्ड और सीसीटीएनएस के संबंध में जिलों में जाकर निरीक्षण करेंगे। अभियोजन के स्पेशल डीजी जिलों में अभियोजन से संबंधित काम की समीक्षा करने के लिए जाएंगे। निरीक्षण की रिपोर्ट डीजीपी को अफसर सौंपेंगे।
https://mediawala.in/monitering-of-sps-work-from-phq-special-dg-and-adg/
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गृह विभाग का आरोप- डीजीपी विवेक जौहरी अपने अधिकार से बाहर जाकर IPS अफसरों की पोस्टिंग कर रहे, DGP बोले - ट्रांसफर के बाद अफसरों को प्रभार दिया जाता है [Source: स्पोर्ट्स | दैनिक भास्कर]
गृह विभाग का आरोप- डीजीपी विवेक जौहरी अपने अधिकार से बाहर जाकर IPS अफसरों की पोस्टिंग कर रहे, DGP बोले – ट्रांसफर के बाद अफसरों को प्रभार दिया जाता है [Source: स्पोर्ट्स | दैनिक भास्कर]
Home department charges- DGP Vivek Johri is transferring out of his authority to IPS officers, DGP said – After transfer, officers are given charge
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यूपी में आतंकियों की गिरफ्तारी के बाद मध्य प्रदेश में अलर्ट… #बेकारसेपत्रकार
यूपी में आतंकियों की गिरफ्तारी के बाद मध्य प्रदेश में अलर्ट… #बेकारसेपत्रकार
उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में दो आतंकियों की गिरफ्तारी के बाद गृहमंत्री नरोत्तम मिश्रा ने मध्य प्रदेश में भी अलर्ट जारी करने के निर्देश दिए हैं। डीजीपी विवेक जौहरी को सिमी और अन्य आतंकी संगठनों से जुड़े संदेही लोगों की पहचान और निगरानी करने को कहा गया है। कोरोना आपदा में पीड़ितों की मदद करने के बजाय सिर्फ मौतों के बारे में भय और भ्रम फैलाकर कांग्रेस के नेताओं ने साबित कर दिया है कि उनमें सेवा…
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एमपी पुलिस सहकारी बैंक में धांधली, डीजीपी ने पकड़ी मुसीबत
एमपी पुलिस सहकारी बैंक में धांधली, डीजीपी ने पकड़ी मुसीबत
पुलिस सहकारी बैंक में बाहरी लोगों के खाते खोले गए। भोपाल मप्र पुलिस सहकारी साख समिति (बैंक) की बाधाएं सामने आईं। यह व्यवधान किसी और ने नहीं बल्कि बैंक मामलों की समीक्षा के दौरान किया था। भोपाल सांसद ने सभी पर नजर रखने वाले पुलिस बैंक में खलल डाला। पुलिस सहकारी साख समिति (बैंक) बाधित हो गई। यह घोटाला खुद डीजीपी विवेक जौहरी ने किया था। उन्होंने उत्पीड़कों के खिलाफ कार्रवाई की मांग की। वहीं, राज्य…
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मध्य प्रदेश : DGP ने निकाला आदेश, नौकरी पर गैरहाजिर पुलिस कर्मचारियों पर होगी विभागीय अनुशासनिक कार्रवाई,
भोपाल। मध्य प्रदेश पुलिस विभाग में कार्यरत वह कर्मचारी, जो नौकरी के दौरान अपने कर्तव्यों से गैरहाजिर रहते हैं, उनके खिलाफ अब विभागीय अनुशासनिक कार्रवाई की जाएगी। मध्य प्रदेश पुलिस के डायरेक्टर जनरल (DG) विवेक जौहरी ने इस आशय के आदेश जारी कर दिए हैं। मिली जानकारी के अनुसार मध्य प्रदेश के DG विवेक जौहरी द्वारा जारी किए गए आदेश के मुताबिक मध्य प्रदेश सिविल सेवाएं (अवकाश) नियम-1977 में वर्णित नियम-24…
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