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#विलुप्त होने
trendingwatch · 2 years
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मैनाटी रिश्तेदार, 700 नई प्रजातियां अब विलुप्त होने का सामना कर रही हैं
मैनाटी रिश्तेदार, 700 नई प्रजातियां अब विलुप्त होने का सामना कर रही हैं
द्वारा एसोसिएटेड प्रेस एक अंतरराष्ट्रीय संरक्षण संगठन ने शुक्रवार को कहा कि समुद्री स्तनपायी की एक कमजोर प्रजाति की आबादी, अबालोन की कई प्रजातियां और एक प्रकार का कैरेबियन प्रवाल अब विलुप्त होने का खतरा है। प्रकृति के संरक्षण के लिए अंतर्राष्ट्रीय संघ ने जैविक विविधता पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन, या COP15, मॉन्ट्रियल में सम्मेलन के दौरान अद्यतन की घोषणा की। संघ के सैकड़ों सदस्यों में दुनिया भर की…
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newsdaliy · 2 years
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देखें: प्रदर्शनकारियों ने साल्ट बे के लंदन स्टेक रेस्तरां को निशाना बनाया, स्टाफ ने उसे बाहर फेंक दिया
देखें: प्रदर्शनकारियों ने साल्ट बे के लंदन स्टेक रेस्तरां को निशाना बनाया, स्टाफ ने उसे बाहर फेंक दिया
रेस्तरां के कर्मचारियों ने प्रदर्शनकारियों को शारीरिक रूप से हटा दिया। 4 दिसंबर को मध्य लंदन के नाइट्सब्रिज में आठ कार्यकर्ताओं ने “नूसर-एट” को निशाना बनाया और एक छोटे से विरोध के बाद प्रसिद्ध रेस्तरां से खींच लिया गया। Nusr-Et लक्ज़री स्टीकहाउस की एक श्रृंखला है, जिसका स्वामित्व नुसरत गोकसे के पास है, जो एक तुर्की कसाई, रसोइया, भोजन मनोरंजन करने वाला और “साल्ट बे” के रूप में जाना जाने वाला…
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dlium · 18 days
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Homo neanderthalensis Thorin isolated more than 50,000 years before the species extinct
होमो निएंडरथेलेंसिस थोरिन प्रजाति विलुप्त होने से 50,000 साल पहले अलग हो गई थी
Homo neanderthalensis Thorin isoleret mere end 50.000 år før arten uddøde
尼安德特人托林在物种灭绝前 5 万多年与世隔绝
Homo neanderthalensis Thorin isolé plus de 50 000 ans avant l'extinction de l'espèce
尼安德特人索林 (Thorin) 在該物種滅絕前 5 萬多年就被分離出來
El Homo neanderthalensis Thorin se aisló más de 50.000 años antes de que la especie se extinguiera
হোমো নিয়ান্ডারথালেনসিস থোরিন প্রজাতি বিলুপ্ত হওয়ার 50,000 বছরেরও বেশি আগে বিচ্ছিন্ন হয়েছিল
Homo neanderthalensis Thorin wurde mehr als 50.000 Jahre vor dem Aussterben der Art isoliert
호모 네안데르탈렌시스 토린은 종이 멸종되기 5만 년 전에 고립되었습니다.
Homo neandertalensis Thorin isolou mais de 50.000 anos antes da extinção da espécie
Homo neanderthalensis Thorin ដាច់ឆ្ងាយជាង 50,000 ឆ្នាំមុនពេលប្រភេទសត្វផុតពូជ
Homo neanderthalensis Thorin isolato più di 50.000 anni prima dell'estinzione della specie
ホモ・ネアンデルターレンシス・トーリンは、種が絶滅する5万年以上前に隔離された
Homo neanderthalensis Thorin был изолирован более чем за 50 000 лет до вымирания вида
Homo neanderthalensis Thorin သည် မျိုးစိတ်မသုဉ်းမီ နှစ်ပေါင်း 50,000 ကျော် အထီးကျန်ခဲ့သည်
Homo neanderthalensis Thorin, türün neslinin tükenmesinden 50.000 yıldan fazla bir süre önce izole edildi
Homo neanderthalensis Thorin ໂດດດ່ຽວຫຼາຍກວ່າ 50,000 ປີກ່ອນທີ່ຊະນິດພັນຈະສູນພັນ.
Homo neanderthalensis Thorin wyizolowany ponad 50 000 lat przed wyginięciem gatunku
โฮโมนีแอนเดอร์ทาเลนซิส ธอริน ถูกแยกออกมาเมื่อกว่า 50,000 ปี ก่อนที่สายพันธุ์นี้จะสูญพันธุ์
Homo neanderthalensis Торін виділив більш ніж за 50 000 років до вимирання виду
होमो निएन्डरथालेन्सिस थोरिन प्रजाति लोप हुनुभन्दा ५०,००० वर्ष अघि अलग्गै
Homo neanderthalensis Thorin diisolasi lebih dari 50.000 tahun sebelum spesies tersebut punah
Homo neanderthalensis Thorin විශේෂය වඳ වී යාමට වසර 50,000 කට පෙර හුදකලා විය
Ang homo neanderthalensis Thorin ay naghiwalay ng higit sa 50,000 taon bago ang mga species ay naubos.
Dlium theDlium @dlium
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dainiksamachar · 2 months
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पति थे MLA तो सब्जी बेचती थीं जोबा मांझी, 6 CM के साथ रहीं मंत्री, MP बनने के बाद अब भी बेटे के साथ करती हैं खेती
चाईबासाः झारखंड में से जेएमएम की जोबा मांझी पहली बार सांसद बनीं, लेकिन इससे पहले जोबा मांझी छह मुख्यमंत्रियों की सरकार में मंत्री रह चुकी हैं। लेकिन जोबा मांझी की सादगी की चर्चा अब भी पूरे इलाके में होती है। पांच बार विधायक रह चुकीं 60 वर्षीय जोबा मांझी अपने बेटे के साथ अब भी खेती करते देखी जा सकती हैं। लोकसभा के मॉनसून सत्र में शामिल होने के पहले भी इस बार भी जोबा मांझी अपने बेटे के साथ खेती का जायजा लेने पहुंची। शादी के बाद भी जोबा मांझी का जमीन से नहीं टूटा रिश्ता सरायकेला-खरसावां जिले के राजनगर प्रखंड अंतर्गत रानीगंज गांव में जन्मी जोबा मांझी की पारिवारिक पृष्ठभूमि भी साधारण आदिवासी परिवारों की तरह रही। बचपन में वो अपनी मां और पिता के साथ खेतों पर जाती थीं। के साथ शादी होने के बाद भी जोबा मांझी का जमीन से नाता-रिश्ता टूटा नहीं। उनके पति देवेंद्र मांझी की गिनती 90 के दशक में झाखंड के प्रमुख आंदोलनकारी नेता के रूप में होती थी। ऐसे में जब देवेंद्र मांझी अलग झारखंड राज्य की लड़ाई में व्यस्त रहते थे। उस वक्त जोबा मांझी ही घर का सारा कामकाज के साथ खेती की जिम्मेदारी संभालती थीं। पति एमएलए थे, इतवारी बाजार में बेचती थीं सब्जी प्रारंभ से ही जोबा मांझी बेहद साधारण जीवन जीती हैं। जब उनके पति देवेंद्र मांझी विधायक थे, तब जोबा मांझी चक्रधरपुर के इतवारी बाजार में सब्ज़ी बेचती थीं। आज भी राजनीति में इतना ऊंचा मुकाम हासिल करने के बाद भी वह घर का काम खुद करती हैं। अपने खेतों में वह एक आम किसान की तरह काम करती नज़र आती हैं। उनकी सादगी और सरलता ही उनकी पहचान है। पति देवेंद्र मांझी की शहादत के बाद सक्रिय राजनीति में जोबा मांझी के पति देवेंद्र मांझी जल, जंगल और जमीन आंदोलन के प्रणेता थे। 1994 में देवेंद्र मांझी की हत्या कर दी गई। जिसके बाद जोबा मांझी सक्रिय राजनीति में आई हैं। उस समय कोई नहीं जानता था कि जोबा मांझी इतनी बड़ी नेता बनेंगी। जोबा मांझी 1995 में पहली बार विधायक बनीं। इसके बाद 2000, 2005, 2014 और 2019 में भी जोबा मांझी ने मनोहरपुर विधानसभा सीट से हासिल की। जबकि 2024 के लोकसभा चुनाव में भी सिंहभूम लोकसभा सीट से जोबा मांझी ने बड़ी जीत दर्ज की। उन्होंने बीजेपी की गीता कोड़ा को एक लाख 68 हज़ार से ज्यादा वोटों से हराया। यह जीत उनके लिए बहुत ख़ास है क्योंकि वह पहली बार सांसद बनी हैं। पति से सीखी सादगी, बनीं संघर्ष की प्रतिमूर्ति 1982 में जब स्वर्गीय देवेंद्र मांझी से जोबा मांझी की शादी हुई, तब से लेकर आज तक वो सादगी की शर्तों पर ही राजनीति करती हुई दिख रहीं हैं। ऐसे में जब कि मुखिया जैसे पद के नेता भी बड़ी-बड़ी लग्जरी गाड़ियों से चलने को स्टेटस सिंबल समझते हैं, वैसे दौर में जोबा मांझी की यह तस्वीर याद दिलाती है कि राजनीति में सादगी और संघर्ष जिंदा है। जोबा मांझी को अच्छी तरह से जानने वाले बड़े-बुजुर्गो का कहना है कि 90 के दशक में जब देवेंद्र मांझी मनोहरपुर के विधायक थे, तो जोबा मांझी हर रविवार को हाट में जाकर सब्जी बेचा करती थीं। राजनीति में ऐसी सादगी अब विलुप्त हो चुकी है। जोबा मांझी उन गिने-चुने नेताओं में हैं, जिन्होंने संघर्ष को ना सिर्फ जिया है, बल्कि जिंदा भी रखा है। छह मुख्यमंत्रियों के साथ 7 सरकारों में रहीं मंत्री जोबा मांझी के लिए सिंहभूम सीट से जीत उनके राजनीतिक सफ़र का एक अहम पड़ाव है। मनोहरपुर विधानसभा क्षेत्र से वे पांच बार विधायक रह चुकी हैं। इसके अलावा उन्हें 7 बार कैबिनेट मंत्री बनने का भी मौका मिला है। अब सांसद बनकर उन्होंने सिंहभूम की दूसरी महिला सांसद होने का गौरव भी हासिल किया है। उनका संघर्ष महिला सशक्तीकरण की एक मिसाल है। 1995 में पहली बार मनोहरपुर सीट से जीत हासिल करने के बाद उन्हें राबड़ी देवी की सरकार में उन्हें मंत्री बनाया गया। झारखंड बनने के बाद भी बाबूलाल मरांडी, अर्जुन मुंडा, मधु कोड़ा, शिबू सोरेन और हेमंत सोरेन की सरकारों में उन्हें मंत्री पद मिला। वह अपनी साफ़ छवि और ईमानदारी के लिए जानी जाती हैं। राजनीतिक विरासत संभालने के लिए पुत्र जगत मांझी तैयार जोबा मांझी ने इस बार झारखंड की सिंहभूम लोकसभा सीट से भारी अंतर से जीत हासिल की। इस जीत में उनके बेटे जगत मांझी का भी बहुत बड़ा योगदान है। जोबा मांझी सातवीं बार चुनाव जीती हैं लेकिन यह उनका पहला लोकसभा चुनाव था। जगत मांझी ने चुनाव प्रचार की पूरी ज़िम्मेदारी अपने कंधों पर उठा ली थी। उन्होंने बूथ मैनेजमेंट से लेकर स्टार प्रचारकों के कार्यक्रम तक, हर चीज़ का बखूबी ध्यान रखा। नामांकन के दौरान और रैलियों में भीड़ जुटाने में भी उनकी अहम भूमिका रही। उन्होंने कार्यकर्ताओं और समर्थकों का भी पूरा ख्याल रखा। जगत के इस काम से यह साफ़ है कि वह अपनी माँ के उत्तराधिकारी बनने के लिए तैयार हैं। जोबा के छोटे बेटे उदय मांझी और बबलू मांझी ने भी अलग-अलग… http://dlvr.it/TBNXKf
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sharpbharat · 2 months
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International tiger day in tata zoo : टाटा जू में इंटरनेशनल टाइगर डे मनाया गया, बाघ संरक्षण पर विस्तार से चर्चा
जमशेदपुर : इंटरनेशनल टाइगर डे, बाघ संरक्षण के प्रति जागरूकता बढ़ाने के लिए प्रतिवर्ष 29 जुलाई को मनाया जाने वाला एक वार्षिक उत्सव है. बाघ विलुप्त होने के कगार पर हैं और अंतर्राष्ट्रीय बाघ दिवस का उद्देश्य इस तथ्य की ओर ध्यान आकर्षित करना और विभिन्न माध्यमों से आम जनता के बीच जागरूकता फैलाकर उनकी घटती संख्या को रोकने का प्रयास करना है. टाटा स्टील जूलॉजिकल पार्क अपनी स्थापना के बाद से ही वन्यजीवों…
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rimaakter45 · 8 months
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नैतिक शाकाहारी भोजन: एक स्वस्थ, दयालु और अधिक टिकाऊ जीवन शैली
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परिचय:
हाल के वर्षों में, नैतिक शाकाहार ने महत्वपूर्ण आकर्षण प्राप्त किया है, और अच्छे कारण से। पशु कल्याण, मानव स्वास्थ्य और पर्यावरणीय स्थिरता के बारे में बढ़ती चिंताओं के साथ, बढ़ती संख्या में लोग नैतिक शाकाहारी जीवन शैली का विकल्प चुन रहे हैं। यह लेख की अवधारणा पर प्रकाश डालता हैनैतिक शाकाहारी भोजन, आम गलतफहमियों को दूर करते हुए जानवरों, मानव स्वास्थ्य और ग्रह के लिए इसके लाभों की खोज करना।
पशु कल्याण
नैतिक शाकाहार के पीछे प्राथमिक प्रेरणा जानवरों को होने वाले नुकसान को कम करने की ��च्छा है। नैतिक शाकाहारी मांस, डेयरी, अंडे और शहद सहित किसी भी पशु उत्पाद का सेवन करने से बचते हैं। इस जीवनशैली को अपनाकर, व्यक्तियों ने सक्रिय रूप से खाद्य उद्योग में जानवरों के शोषण को समाप्त कर दिया।
फैक्ट्री फार्मिंग, जहां जानवरों को भीड़भाड़, कैद और क्रूर प्रथाओं का शिकार बनाया जाता है, एक बड़ी चिंता का विषय है। नैतिक शाकाहारी इन उद्योगों से अपना समर्थन वापस लेने का विकल्प चुनते हैं, सक्रिय रूप से एक दयालु विकल्प को बढ़ावा देते हैं। पशु उत्पादों का बहिष्कार करके, नैतिक शाकाहारी लोग जानवरों की पीड़ा को कम करने में योगदान देते हैं, एक ऐसी दुनिया की वकालत करते हैं जो सभी संवेदनशील प्राणियों का सम्मान और महत्व करती है।
स्वास्थ्य सुविधाएं
आम धारणा के विपरीत, नैतिक शाकाहार कई स्वास्थ्य लाभ प्रदान करने वाला सिद्ध हुआ है। एक सुनियोजित शाकाहारी आहार इष्टतम स्वास्थ्य के लिए आवश्यक सभी आवश्यक पोषक तत्व प्रदान कर सक���ा है। शाकाहार व्यक्तियों को फलों, सब्जियों, साबुत अनाज, नट्स और बीजों का सेवन बढ़ाने के लिए प्रोत्साहित करता है, जिसके परिणामस्वरूप पोषक तत्वों से भरपूर आहार मिलता है जिसमें संतृप्त वसा और कोलेस्ट्रॉल कम होता है।
अध्ययनों से लगातार पता चला है कि शाकाहारी लोगों में हृदय रोग, उच्च रक्तचाप, मोटापा और कुछ कैंसर की दर कम होती है। पौधे-आधारित आहार पाचन तंत्र पर भी हल्का होता है, जिससे ऊर्जा का स्तर बढ़ता है और समग्र स्वास्थ्य में सुधार होता है। इसके अलावा, पशु उत्पादों को खत्म करने से मांस और डेयरी उपभोग से जुड़ी खाद्य जनित बीमारियों का खतरा काफी क�� हो जाता है।
पर्यावरणीय प्रभाव
पशु कृषि के पर्यावरणीय प्रभाव को कम करके नहीं आंका जा सकता। पशुधन खेती को ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन, वनों की कटाई, भूमि क्षरण, जल प्रदूषण और प्रजातियों के विलुप्त होने में महत्वपूर्ण योगदानकर्ता के रूप में पहचाना गया है। नैतिक शाकाहारी जीवनशैली अपनाकर, व्यक्ति जलवायु परिवर्तन से निपटने और भावी पीढ़ियों के लिए ग्रह को संरक्षित करने में सक्रिय भूमिका निभा सकते हैं।
यह सिद्ध हो चुका है कि पशु उत्पादों से भरपूर आहार की तुलना में पौधे आधारित आहार में कार्बन फुटप्रिंट कम होता है। कृषि पशुओं को खिलाने के लिए आवश्यक फसलों के लिए बड़ी मात्रा में भूमि और जल संसाधनों की आवश्यकता होती है, जिससे अंततः वनों की कटाई और पानी की कमी होती है। पौधों के स्रोतों से सीधे उपभोग करके, नैतिक शाकाहारी पानी के संरक्षण, ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करने और जैव विविधता की रक्षा करने में मदद करते हैं।
गलतफहमियों को दूर करना
नैतिक शाकाहार के पक्ष में ढेर सारे सबूत होने के बावजूद, कई गलतफहमियाँ बनी हुई हैं। शाकाहार के खिलाफ सबसे आम तर्कों में से एक यह धारणा है कि पौधे-आधारित आहार में आवश्यक पोषक तत्वों, विशेष रूप से प्रोटीन और विटामिन बी 12 की कमी होती है। हालाँकि, उचित योजना और ज्ञान के साथ, शाकाहारी लोग विभिन्न प्रकार के पौधों पर आधारित खाद्य पदार्थों को शामिल करके अपनी सभी पोषण संबंधी आवश्यकताओं को आसानी से पूरा कर सकते हैं।
यह भी ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि नैतिक शाकाहार प्रतिबंधात्मक भोजन या अभाव का पर्याय नहीं है। शाकाहार की बढ़ती लोकप्रियता के साथ, कई स्वादिष्ट पौधे-आधारित विकल्प सामने आए हैं, जो नैतिक शाकाहारियों को उनके मूल्यों से समझौता किए बिना, उन स्वादों और बनावटों का आनंद लेने की अनुमति देते हैं जो उन्हें हमेशा से पसंद रहे हैं।
निष्कर्ष:
नैतिक शाकाहार केवल एक आहार विकल्प से कहीं अधिक है; यह एक ऐसी जीवनशैली है जो करुणा, स्वास्थ्य और स्थिरता को बढ़ावा देती है। पशु कल्याण की रक्षा करके, व्यक्तिगत स्वास्थ्य में सुधार करके और पर्यावरणीय क्षति को कम करके, नैतिक शाकाहारी सक्रिय रूप से एक दयालु, स्वस्थ और अधिक टिकाऊ दुनिया के निर्माण में योगदान करते हैं। नैतिक शाकाहारी भोजन को अपनाने से न केवल व्यक्तियों बल्कि हमारे ग्रह के सामूहिक भविष्य की भी सेवा होती है।
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prakhar-pravakta · 1 year
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गाय पशु नहीं श्रष्टि का है वरदान : राजगुरु
सतना- वर्तमान गौ-सुधार नीति व विलुप्त होती भारतीय नस्लों के सम्बंध में वैदिक बसुंधरा में निवासरत पुरानीलंका आश्रम परमधाम चित्रकूट के लाखों-लाख अनुयायी आग्रह पूर्वक राष्ट्र सरकार और प्रदेश सरकार से अनुरोध करतें हैं की हमें यह जानना जरूरी है कि वैदिक ज्ञान,आधुनिक विज्ञान और अध्यात्म इन तीनों की बराबर रेखाओं के सम्मिलन से निर्मित होने वाले जैविक त्रिभुज को गाय कहते हैं।किन्तु प्रकृति-प्राणी जगत में…
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*#रसोई में भोजन बनाना छोड़ने का दुष्परिणाम : ज़रूर समझें
अमेरिका में क्या हुआ जब घर में खाना बनाना बंद हो गया ?
1980 के दशक के प्रसिद्ध अमेरिकी अर्थशास्त्रियों ने अमेरिकी लोगों को चेतावनी कि यदि वे परिवार में आर्डर देकर बाहर से भोजन मंगवाऐंगे तो देश मे परिवार व्यवस्था धीरे धीरे समाप्त हो जाएगी। साथ ही दूसरी चेतावनी दी कि यदि उन्होंने बच्चों का पालन पोषण घर के सदस्यो के स्थान पर बाहर से पालन पोषण की व्यवस्था की तो यह भी बच्चो के मानसिक विकास व परिवार के लिए घातक होगा।
लेकिन बहुत कम लोगों ने उनकी सलाह मानी। घर में खाना बनाना लगभग बंद हो गया है, और बाहर से खाना मंगवाने की आदत (यह अब नॉर्मल है), अमेरिकी परिवारों के विलुप्त होने का कारण बनी है जैसा कि विशेषज्ञों ने चेतावनी दी थी।
घर मे खाना बनाना मतलब परिवार के सदस्यों के साथ प्यार से जुड़ना।
*पाक कला मात्र अकेले खाना बनाना नहीं है। बल्कि केंद्र बिंदु है, पारिवारिक संस्कृति का।*
घर मे अगर कोई किचन नहीं है , बस एक बेडरूम है, तो यह घर नहीं है, यह एक हॉस्टल है।
*अब उन अमेरिकी परिवारों के बारे में जाने जिन्होंने अपनी रसोई बंद कर दी और सोचा कि अकेले बेडरूम ही काफी है?*
1-1971 में, लगभग 72% अमेरिकी परिवारों में एक पति और पत्नी थे, जो अपने बच्चों के साथ रह रहे थे।
2020 तक, यह आंकडा 22% पर आ गया है।
2-पहले साथ रहने वाले परिवार अब नर्सिंग होम (वृद्धाश्रम) में रहने लगे हैं।
3-अमेरिका में, 15% महिलाएं एकल महिला परिवार के रुप में रहती हैं।
4-12% पुरुष भी एकल परिवार के रूप में रहते हैं।
5-अमेरिका में 19% घर या तो अकेले रहने वाले पिता या माता के स्वामित्व में हैं।
6-अमेरिका में आज पैदा होने वाले सभी बच्चों में से 38% अविवाहित महिलाओं से पैदा होते हैं।उनमें से आधी लड़कियां हैं, जो बिना परिवारिक संरक्षण के अबोध उम्र मे ही शारीरिक शोषण का शिकार हो जाती है ।
7-संयुक्त राज्य अमेरिका में लगभग 52% पहली शादियां तलाक में परिवर्तित होती हैं।
8- 67% दूसरी शादियां भी समस्याग्रस्त हैं।
अगर किचन नहीं है और सिर्फ बेडरूम है तो वह पूरा घर नहीं है।
संयुक्त राज्य अमेरिका विवाह की संस्था के टूटने का एक उदाहरण है।
*हमारे आधुनिकतावादी भी अमेरिका की तरह दुकानों से या आनलाईन भोजन ख़रीदने की वकालत कर रहे हैं और खुश हो रहे हैं कि भोजन बनाने की समस्या से हम मुक्त हो गए हैं। इस कारण भारत में भी परिवार धीरे-धीरे अमेरिकी परिवारों की तरह नष्ट हो रहे हैं।*
जब परिवार नष्ट होते हैं तो मानसिक और शारीरिक दोनों ही स्वास्थ्य बिगड़ते हैं। बाहर का खाना खाने से अनावश्यक खर्च के अलावा शरीर मोटा और संक्रमण के प्रति संवेदनशील और बिमारीयों का घर हो जाता है।
शारीरिक स्वास्थ्य और मानसिक स्वास्थ्य किसी भी देश की अर्थव्यवस्था के लिए आवश्यक है।
*इसलिए हमारे घर के बड़े-बूढ़े लोग, हमें बाहर के खाने से बचने की सलाह देते थे*
लेकिन आज हम अपने परिवार के साथ रेस्टोरेंट में खाना खाते हैं...",
स्विगी और ज़ोमैटो के माध्यम से अजनबियों द्वारा पकाए गए( विभिन्न कैमिकल युक्त) भोजन को ऑनलाइन ऑर्डर करना और खाना, उच्च शिक्षित, मध्यवर्गीय लोगों के बीच भी फैशन बनता जा रहा है।
दीर्घकालिक आपदा होगी ये आदत...
*आज हमारा खाना हम तय नही कर रहे उलटे ऑनलाइन कंपनियां विज्ञापन के माध्यम से मनोवैज्ञानिक रूप से तय करती हैं कि हमें क्या खाना चाहिए...*
हमारे पूर्वज निरोगी और दिर्घायु इस लिए थे कि वो घर क्या ...यात्रा पर जाने से पहले भी घर का बना ताजा खाना बनाकर ही ले जाते थे ।
*इसलिए घर में ही बनाएं और मिल-जुलकर खाएं । पौष्टिक भोजन के अलावा, इसमें प्रेम और स्नेह निहित है।*
#भारतीयरसोई #देशीखानपान #अन्नदेवोभव:
#राष्ट्रभक्ति
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more-savi · 1 year
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Delhi mai Ghumane layak Jagah
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Delhi mai Ghumane layak Jagah
10 + Places to visit in Delhi - Tourist Attractions Delhi – Indian Tourist Attractions – 10 + amazing Tourist attractions in the capital city of India - Delhi.   दिल्ली में घूमने की जगह (Delhi Tourist Places In Hindi) पुराने किले को दिल्ली के प्रमुख पर्यटन स्थलों में से एक माना जाता है। यह इति��ास, संस्कृति और आकर्षक दृश्यों का एक समन्वय है। दिल्ली के पुराने किले की विस्तृत भूमि को हर वर्ष लाखों पर्यटक आते हैं। यहाँ पर विभिन्न ऐतिहासिक वास्तुकलाओं, गलियों, महलों और बागों को देखने के अलावा, इसके नजदीक स्थित रेड फोर्ट, जमा मस्जिद, राज घाट, चाँदनी चौक और जंतर मंतर जैसे अन्य प्रमुख पर्यटन स्थल भी हैं। पुराने किले में शाम के समय लाइट शो का प्रदर्शन किया जाता है जो दर्शकों को अपनी ओर आकर्षित करता है। इस लाइट शो के दौरान पुराने किले के विभिन्न हिस्सों पर उत्साह भरे रंगों का प्रयोग किया जाता है। इसमें जंगली जानवरों, पक्षियों और अन्य प्राकृतिक दृश्यों के अलावा ऐतिहासिक घटनाओं के भी चित्रण किए जाते हैं। इस लाइट शो का समय शाम 7:30 बजे से 8:00 बजे तक होता है। National War Memorial - नेशनल वॉर मेमोरियल नेशनल वॉर मेमोरियल दिल्ली का एक बहुत ही महत्वपूर्ण स्मारक है। यह स्मारक भारत के समस्त शहीदों को समर्पित है जिन्होंने देश के लिए जान दी है। इस स्मारक को 1965 और 1999 के युद्धों में अपने प्राणों की आहुति देने वाले लोगों की याद में बनाया गया है। स्मारक के मध्य में एक 15 मीटर ऊँचा स्तंभ है, जो देश के समस्त शहीदों को समर्पित है। स्तंभ के नीचे एक अखंड ज्योति लगातार जलती रहती है जो इस स्मारक की भावना को दर्शाती है। स्तंभ के किनारे पर शहीद हुए जवानों के नाम भी लिखे गए हैं जो देश के लिए जान देकर अपने प्राणों की आहुति दे गए थे। इस स्मारक को रात में लाइटिंग से सजाया गया है जो रात्रि के समय अद्भुत दृश्य प्रदान करता है। इसे देखने के लिए बहुत से लोग रात्रि में इसे जरूर देखते हैं। यह स्मारक एक ऐसा स्थान है जहाँ लोग शहीदों को याद करते हैं और उनके सम्मान में अपना संकल्प दोहराते हैं। Rashtrapati Bhavan - राष्ट्रपति भवन राष्ट्रपति भवन, जो नई दिल्ली में स्थित है, भारत के राष्ट्रपति का आधिकारिक निवास है। इसका क्षेत्रफल लगभग 340 एकड़ है जो दुनिया के सबसे बड़े निवासीय भवनों में से एक है। राष्ट्रपति भवन का निर्माण सन 1912 में शुरू हुआ था और सर एडविन लुटियन्स की निगरानी में 1929 में पूरा हुआ। राष्ट्रपति भवन में लगभग 340 कमरे होते हैं जिनकी देखभाल करने के लिए 700 से अधिक कर्मचारी होते हैं। यह एक समय में 110 लोगों को आराम से समायोजित कर सकता है। इसके अलावा, हर शनिवार को भवन में समारोही गार्ड का चेंजिंग कार्यक्रम आयोजित किया जाता है, जिसे पर्यटक भी देख सकते हैं। राष्ट्रपति भवन की वास्तुकला पश्चिमी और भारतीय शैलियों का मिश्रण है जो नई दिल्ली में आने वाले पर्यटकों के लिए एक महत्वपूर्ण आकर्षण है। Jantar Mantar - जंतर मंतर जंतर मंतर भारत के दो ऐसे स्थानों में से एक है, जहाँ समय और ग्रहों की गति का अध्ययन किया जाता है। इसे सन १७ से २४ ईसवी के बीच महाराजा सवाई जयसिंह ने निर्माण करवाया था। जंतर मंतर दिल्ली के अलावा जयपुर में भी है, जो कि उसी दौर में सवाई जयसिंह द्वारा बनवाया गया था। जंतर मंतर में १३ आर्किटेक्चर इकोनामी इंस्ट्रूमेंट होते हैं जो सूर्य की मदद से समय और ग्रहों की संपूर्ण जानकारी प्रदान करते हैं। इसमें कई अन्य यंत्र भी होते हैं जैसे राम यंत्र जो पिंडों के बारे में जानकारी प्रदान करता है, और मिश्र यंत्र जो साल के सबसे छोटे और बड़े दिन की जानकारी प्रदान करता है। जंतर मंतर के अन्दर जाने के लिए टिकट खरीदने की जरूरत होती है। यह एक महत्वपूर्ण पर्यटक स्थल है जो भारत के विविध वैज्ञानिक विकास की धरोहर है। Qutub Minar - कुतुब मीनार कुतुबमीनार भारत के ताज शहर दिल्ली में स्थित है और दुनिया की सबसे ऊंची इमारतों में से एक है। यह मीनार दिल्ली के दक्षिण में मोरोली नामक जगह पर स्थित है। इसका निर्माण सन 1192 ईस्वी में हुआ था तथा कुतुब तीन ऐबक ने कुतुब मीनार का निर्माण करवाया था। यह मीनार मुगल संस्कृति का उत्कृष्ट उदाहरण है और इसे बहुत समय से स्थायी रूप से दुनिया के साथियों के लिए एक आकर्षण के रूप में जाना जाता है। कुतुबमीनार की लंबाई 72.5 मीटर है और यह दिल्ली की सबसे बड़ी इमारत में से एक हैं। इसका निर्माण पत्थर और लाल पत्थर से किया गया है। कुतुबमीनार का अंतर्गत चार मंजिलें होती हैं और इसकी गुंबद की शीर्ष भाग में कई सुंदर नक्काशी लगी हुई है। कुतुबमीनार का निर्माण इस क्षेत्र के विलुप्त होने वाले मंदिरों के उपयोग से किया गया था। Lotus Temple - लोटस टेंपल लोटस टेंपल दिल्ली का एक अनोखा धार्मिक स्थल है। इस मंदिर का नाम सफेद कमल के आकार से प्रभावित होते हुए रखा गया है। इस मंदिर का निर्माण सन 1986 में किया गया था। इस मंदिर के अंदर कोई मूर्ति नहीं हैं और न ही इस मंदिर में कोई पूजा की जाती है। यह मंदिर बहाई उपासना के लिए बनाया गया है। इस मंदिर का निर्माण इस्लामिक स्थापत्य के प्रतिनिधित्व में बहाई समुदाय ने किया था। इस मंदिर में पंचमुखी बहाई धर्म के प्रतीक लगाए गए हैं। यह मंदिर दिल्ली के नेहरू प्लेस में स्थित है और यहां पर हर साल लाखों लोग आते हैं। इस मंदिर की सुंदरता और शांति का वातावरण दर्शकों को अद्भुत अनुभव प्रदान करता है। Humayun Tomb - हुमायूँ का मकबरा हुमायूँ के मकबरे का निर्माण उस समय करवाया गया था जब इस्लामी स्थानों का निर्माण मुगल शासकों द्वारा किया जाता था। इस मकबरे के निर्माण में पत्थर, सफेद मकईश और लाल पत्थर का इस्तेमाल किया गया था। इस मकबरे का आकर विशाल है जिसमें विभिन्न चौकों, बगीचों और फव्वारों को शामिल किया गया है। इस मकबरे में प्रवेश करने के लिए आपको एंट्री फीस देनी होगी। आप इस मकबरे के आसपास कई स्थानों को भी देख सकते हैं जैसे कि ईवान-ए-बाग़ा, ज़रीना नरग़िस का बाग़, नई बाग़, नई बाग़ बाज़ार आदि। इस मकबरे की तस्वीरों को देखकर इसकी सुंदरता का पता लगाया जा सकता है। यहां पर आने वाले दर्शकों को अपने आप को मुगल साम्राज्य के समय की जानकारी लेने का मौका भी मिलता है। Jama Masjid - जामा मस्जिद जामा मस्जिद दिल्ली की शानदार ऐतिहासिक इमारतों में से एक है। इसे मुगल सम्राट शाहजहाँ ने 1650 ईसा पूर्व बनवाया था। यह मस्जिद अपनी विस्तृतता एवं भव्यता के कारण भारत में अनेक पर्यटकों का आकर्षण बना हुआ है। इस मस्जिद को बनाने में करीब 5000 से अधिक कार्यकर्ताओं की आवश्यकता पड़ी थी। यह मस्जिद अपनी विशालता के कारण 25000 से अधिक लोगों को एक साथ नमाज पढ़ने की अनुमति देती है। इसके अलावा, इस मस्जिद की दीवार एक निश्चित कोण पर झुकी हुई है, जो इसे एक और विशेष दर्शनीय स्थल बनाता है। जामा मस्जिद देखने के लिए कोई एंट्री फीस नहीं होती है। परन्तु, इसे देखने के लिए आपको उचित ढंग से पहने हुए कपड़ों में आना चाहिए। साथ ही, अपनी जूते भी बाहर ही रख देनी चाहिए। इस तरह की कुछ नियमों को पालने से आप इस मस्जिद के दर्शन का अधिक आनंद उठा सकते हैं। Red Fort -  लाल किला लाल किला भारत के राष्ट्रपति आवास होने के साथ-साथ इतिहास और स्थानीय पर्यटन का एक महत्वपूर्ण केंद्र है। इस क��ले का निर्माण लाल बलुआ पत्थरों से किया गया है जो अपनी अद्भुत चमक और शानदार अर्किटेक्चर से पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करता है। शाम के समय इस किले के समक्ष स्थित म्यूजियम में आपको लाइट और साउंड का शो देखने को मिलेगा, जो इस किले के इतिहास को जानने का एक अद्भुत तरीका है। इस शो में इस किले के इतिहास के बारे में संक्षिप्त जानकारी दी जाती है जो आपको इस किले के महत्त्व और भारतीय इतिहास की महत्त्वपूर्ण घटनाओं के बारे में जानकारी प्रदान करती है। India Gate - इंडिया गेट इंडिया गेट भारत के प्रमुख इमारतों में से एक है और इसे अखिल भारतीय युद्ध स्मारक के नाम से भी जाना जाता है। यह दिल्ली के राजपथ मार्ग पर स्थित है और सन 1931 में बनाया गया था। इसमें 90000 शहीदों की याद में निर्माण किया गया था। इसके पास अमर जवान ज्योति भी है जो सन 1971 से लगातार जलती है। यहां पर आपको कोई चार्ज नहीं देना होता है और भारत के गणतंत्र दिवस के अवसर पर इस पर मेजवानी होती है। दिल्ली में खाने के लिए क्या फेमस है? दिल्ली भारत का खाने का राजधानी है जिसमें आप विभिन्न प्रकार के भोजन का आनंद ले सकते हैं। यहां कुछ प्रसिद्ध डिश हैं जिन्हें आपको जरूर प्रयास करना चाहिए: - पराँठे वाली गली: यह एक प्रसिद्ध खाने की गली है जहाँ आप पराँठे, लच्छे पराँठे, आलू पराँठे और अन्य विभिन्न प्रकार के पराँठे प्रयास कर सकते हैं। - चाट: दिल्ली चाट का स्थान है। आप यहाँ आलू टिक्की, पानी पूरी, भल्ले पापड़ी, रगड़ा पत्ती, धोकला और अन्य चाट प्रकार का स्वादिष्ट भोजन प्रयास कर सकते हैं। दिल्ली पहुंचने के लिए विभिन्न तरीके हैं। - हवाई जहाज़: दिल्ली में अपने लक्ष्य तक पहुंचने के लिए आप हवाई जहाज़ का इस्तेमाल कर सकते हैं। इंदिरा गांधी अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा दिल्ली का मुख्य हवाई अड्डा है। - ट्रेन: दिल्ली भारत के रेल मार्ग से जुड़ा हुआ है। दिल्ली के विभिन्न रेलवे स्टेशनों से आप अपने लक्ष्य तक जा सकते हैं। - बस: दिल्ली में बस सेवाएं भी उपलब्ध हैं। आप अपने लक्ष्य तक पहुंचने के लिए दिल्ली मेट्रो या बस का इस्तेमाल कर सकते हैं। - कार: आप अपनी गाड़ी से भी दिल्ली पहुंच सकते हैं। दिल्ली में सड़क नेटवर्क अच्छा है और आप टैक्सी या रेंटल कार का भी इस्तेमाल कर सकते हैं। दिल्ली कैसे घूमे? - मेट्रो: दिल्ली में मेट्रो भी उपलब्ध है जो बहुत ही सुरक्षित और त्वरित होता है। दिल्ली में मेट्रो की सेवाएं दिन के समय उपलब्ध हैं। दिल्ली के बारे मैं क्विज दिल्ली का पुराना नाम ................था। इंद्रप्रस्थ दिल्ली में सबसे ऊँची इमारत ............ है। आईटीओ टावर दिल्ली में स्थित भारत का सबसे बड़ा बाजार .............. है।चांदनी चौक दिल्ली में स्थित भारत के सबसे बड़े जैन मंदिर का नाम .............. है।जीनालय बहुबली ............विश्व धरोहर के रूप में यूनेस्को की वेबसाइट पर दर्ज है।रेड फोर्ट Also Explore Best Places to visit in Bhopal Pachmarhi – A Hidden Gem in Central India Read the full article
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getviralnewshub · 2 years
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147 फुट का क्षुद्रग्रह आज 38232 किमी प्रति घंटे की रफ्तार से पृथ्वी की ओर आ रहा है, नासा ने खतरे का नक्शा बनाया है
क्या आपने कभी सोचा है कि एक क्षुद्रग्रह कितना खतरनाक हो सकता है? खैर, जान लें कि यह बड़े पैमाने पर, ग्रह-व्यापी, विनाश ला सकता है। विशेष रूप से, ग्रह पृथ्वी से डायनासोर के विलुप्त होने का कारण ग्रह के साथ क्षुद्रग्रह की टक्कर माना जाता है। क्षुद्रग्रह के टकराने के प्रभाव की तीव्रता उसके आकार और गति पर भी निर्भर करती है। और अब, नासा ने एक विशाल 147 फुट के क्षुद्रग्रह के बारे में सतर्क किया है जो…
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sabkuchgyan · 2 years
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भारतीय जीवों की 29 प्रजातियां नई IUCN रेड लिस्ट में शामिल
भारतीय जीवों की 29 प्रजातियां नई IUCN रेड लिस्ट में शामिल
नई IUCN रेड लिस्ट में भारतीय जीवों की 29 प्रजातियों को शामिल किया गया है। इनमें सफेद गर्दन वाला डांसिंग फ्रॉग, अंडमान स्मूथहाउंड शार्क और हिमालयन फ्रिटिलरी फ्लावर शामिल हैं। इन खूबसूरत जीवों की प्रजातियां कई कारणों से विलुप्त होने के कगार पर हैं। लेकिन मुख्य कारण प्रदूषण, जलवायु परिवर्तन और बीमारियां हैं। भारत में मौजूद जानवरों की 29 प्रजातियां इस समय अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रही हैं। इनके नाम…
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swamisandeepani · 2 years
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आत्मज्ञान के प्रादुर्भूत होने पर भी प्रारब्ध स्वयं त्याग नहीं होते,किन्तु जैसे ही तत्त्वज्ञान का प्राकट्य होता है,वैसे ही प्रारब्ध का क्षय हो जाता है। जैसा कि स्वप्नलोक के देहादिक असत् होने के कारण जाग्रत् होने पर विलुप्त हो जाते हैं, विगत जन्मों में किये हुए कर्म ही प्रारब्ध है। भज मन 🙏 ओ३म् शान्तिश् शान्तिश् शान्तिः #sumarti https://www.instagram.com/p/Clm_mKEvkZP/?igshid=NGJjMDIxMWI=
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lok-shakti · 2 years
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'निष्क्रियता की पेचीदा गड़बड़ी': अगले छह महीनों में सैकड़ों संकटग्रस्त प्रजातियों की पुनर्प्राप्ति योजनाएँ समाप्त हो रही हैं
‘निष्क्रियता की पेचीदा गड़बड़ी’: अगले छह महीनों में सैकड़ों संकटग्रस्त प्रजातियों की पुनर्प्राप्ति योजनाएँ समाप्त हो रही हैं
संकटग्रस्त प्रजातियों की पुनर्प्राप्ति के लिए सैकड़ों योजनाएं अगले छह महीनों में उनके उपयोग की तारीख तक पहुंच जाएंगी क्योंकि सरकार मानती है कि ऑस्ट्रेलिया की पर्यावरण सुरक्षा की त्रुटिपूर्ण प्रणाली को कैसे सुधारा जाए। सूचना कानूनों की स्वतंत्रता के तहत गार्जियन ऑस्ट्रेलिया को जारी किए गए दस्तावेज़ों में विस्तार से बताया गया है कि कैसे अंडरसोर्सिंग, राज्य सरकारों के साथ असहमति, और विलुप्त होने के…
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dainiksamachar · 2 years
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न पूरा उल्लू है, न पूरा तोता... जरा दिमाग दौड़ाइए! यह कौन सा पक्षी है
नई दिल्ली: हर देश में कुछ ऐसे पक्षी होते हैं, जो वहां की स्थानीय जलवायु में पलते और बढ़ते हैं। ऐसा ही एक पक्षी अपने देश में काफी देखा और पसंद किया जाता है। जी हां, आपकी नकल करने वाला तोता। लेकिन जो तस्वीर आप यहां देख रहे हैं वह तोता नहीं है। वैसे, देखने में इसकी बनावट उल्लू की तरह लगती है लेकिन यह उल्लू भी नहीं है। इसे काकापो (Kakapo) कहते हैं। तोते और उल्लू से मिलने के कारण इनका नाम पड़ा owl parrot, हिंदी में हम कहें तो उल्लू-तोता। यह पक्षी न्यूजीलैंड में पाया जाता है लेकिन शिकार बढ़ने और सुरक्षित ठिकाने खत्म होने से ये प्यारे से पक्षी विलुप्त होने की कगार पर पहुंच गए हैं। बताते हैं कि न्यूजीलैंड में इंसानों के पहुंचने से पहले काकापो यहां बहुत थे। न्यूजीलैंड सरकार की रिपोर्ट के मुताबिक 249 काकापो ही बचे हैं। उड़ नहीं सकते काकापो तोते की तरह इस प्यारे से पक्षी को पाला जा सकता है। काकापो को दुनिया का सबसे वजनी तोता माना जाता है। महत्वपूर्ण बात यह है कि काकापो उड़ नहीं सकते हैं। ये दुनिया के एकमात्र फ्लाइटलेस पैरट होते हैं। दूसरे पक्षियों की तुलना में ये ज्यादा समय तक जीवित रह सकते हैं। बाजारों में इनकी कीमत 200 डॉलर के करीब आंकी जाती है। न्यूजीलैंड की सरकार और पर्यावरणप्रेमी इस पक्षी को बचाने के लिए युद्ध स्तर पर काम कर रहे हैं। इन्हें केवल शिकारियों से नहीं बचाना है बल्कि बीमारियों से दूर रखने के साथ ही आबादी बढ़ाने पर भी ध्यान देना है। ये पक्षी अलग तरह की आवाज निकालते हैं। खतरा महसूस होने पर ये जहां होते हैं, वहीं पर फ्रीज हो जाते हैं। काकापो की खासियत जान लीजिए * रात्रिचर प्राणी * उड़ नहीं सकते * संबंध बनाने के लिए मेल काकापो फीमेल को आकर्षित करते हैं। इसे एक तरह से मेल काकापो का प्रदर्शन समझिए। * ये करीब 90 साल तक जीवित रहते हैं और इसे दुनिया में सबसे ज्यादा जीवित रहने वाली चिड़िया की प्रजाति माना जाता है। * दुनिया में सबसे वजनी तोते की प्रजाति, वजन 1.4 किलो से लेकर 2.2 किलोग्राम तक। http://dlvr.it/ShqDCW
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sharpbharat · 4 months
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Jamshedpur rural village water problem : पोटका के भाटिन खड़िया कोचा में दो-दो जलमीनारें, पर ग्रामीण चुएं के पानी से प्यास बुझाने को मजबूर, दोनों जलमीनारों का खारा पानी ग्रामीणों के लिए बेकार, गांव के सबरों को भी अबुआ आवास दिलाने की उठी मांग
जादूगोड़ा : झारखंड सरकार आदिवासियों की विलुप्त होती सबर जनजाति को बुनियादी सुविधा मुहैया कराने के लिए कई योजनाएं चला रही है, लेकिन उन सबरों को इन योजनाओं का कितना लाभ मिल रहा है, इसकी सुधि लेनेवाला कोई नहीं है. जादूगोड़ा क्षेत्र की भाटिन पंचायत का झरिया गांव के सबर इसका अकाट्य प्रमाण हो सकते हैं, जिन्हें गांव में दो-दो जलमीनार होने के बावजूद आज भी मजबूरी में चुएं का पानी पीना पड़ता है. (नीचे भी…
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fastnews123 · 2 years
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लुइस अगासीज़ , पूर्ण रूप से जीन लुई रोडोल्फ़ अगासीज़ , (जन्म 28 मई, 1807, मोटियर, स्विटज़रलैंड-निधन 14 दिसंबर, 1873, कैम्ब्रिज , मैसाचुसेट्स , अमेरिका), स्विस मूल के अमेरिकी प्रकृतिवादी, भूविज्ञानी, और शिक्षक जिन्होंने देश में क्रांतिकारी योगदान दिया। ग्लेशियर गतिविधि और विलुप्त होने पर ऐतिहासिक कार्य के साथ प्राकृतिक विज्ञान का अध्ययनमछलियां । उन्होंने अपने अभिनव के माध्यम से स्थायी ख्याति प्राप्त कीशिक्षण विधियों , जिसने संयुक्त राज्य अमेरिका में प्राकृतिक विज्ञान शिक्षा के चरित्र को बदल दिया। अगासीज़ स्विटज़रलैंड के मोरात झील के तट पर बसे एक गाँव मोटियर के प्रोटेस्टेंट पादरी का बेटा था । बचपन में उन्होंने बिएन में व्यायामशाला और बाद में लॉज़ेन में अकादमी में भाग लिया । उन्होंने ज्यूरिख, हीडलबर्ग और म्यूनिख के विश्वविद्यालयों में प्रवेश किया और एर्लांगेन में दर्शनशास्त्र के डॉक्टर और म्यूनिख में डॉक्टर ऑफ मेडिसिन की डिग्री ली।(Louis Agassiz Biography in Hindi)                  एक युवा के रूप में, उन्होंने पश्चिमी स्विट्जरलैंड की ब्रूक मछली के तरीकों पर कुछ ध्यान दिया , लेकिन इचिथोलॉजी में उनकी स्थायी रुचि ब्राजील की मछलियों के व्यापक संग्रह के अध्ययन के साथ शुरू हुई, ज्यादातर अमेज़ॅन नदी से , जिसे 1819 में एकत्र किया गया था और 1820 म्यूनिख में दो प्रख्यात प्रकृतिवादियों द्वारा। उन प्रजातियों का वर्गीकरण 1826 में कलेक्टरों में से एक द्वारा शुरू किया गया था, और जब उनकी मृत्यु हो गई तो संग्रह को अगासीज़ में बदल दिया गया। काम पूरा हुआ और 1829 में सिलेक्टा जेनेरा एट स्पीशीज पिसियम के रूप में प्रकाशित हुआ। मछली के रूपों का अध्ययन अब से उनके शोध की प्रमुख विशेषता बन गया। 1830 में उन्होंने मध्य यूरोप के ताजे पानी की मछलियों के इतिहास का एक विवरणिका जारी की , जो 1839 से 1842 तक भागों में छपी। अगासिज़ के शुरुआती करियर में वर्ष 1832 सबसे महत्वपूर्ण साबित हुआ क्योंकि यह उन्हें पहले पेरिस ले गया, फिर वैज्ञानिक अनुसंधान का केंद्र, और बाद में स्विट्ज़रलैंड के नूचटेल में, जहाँ उन्होंने कई वर्षों के फलदायी प्रयास बिताए। पेरिस में रहते हुए उन्होंने लैटिन क्वार्टर में एक निर्दोष छात्र का जीवन जिया, खुद का समर्थन किया और कई बार जर्मन प्रकृतिवादी जैसे दोस्तों की दयालु रुचि से मदद की।अलेक्जेंडर वॉन हंबोल्ट -जिन्होंने उनके लिए नूचटेल में प्रोफेसर की उपाधि प्राप्त की- और बैरन कुवियर , अपने समय के सबसे प्रसिद्ध इचिथोलॉजिस्ट।           पहले से ही अगासीज़ यूरोप की विलुप्त मछलियों के समृद्ध भंडार में रुचि रखते थे, विशेष रूप से स्विट्जरलैंड में ग्लारस और वेरोना के पास मोंटे बोल्का की, जिनमें से उस समय केवल कुछ का ही गंभीर अध्ययन किया गया था। 1829 की शुरुआत में अगासीज़ ने उन लोगों के व्यापक और महत्वपूर्ण अध्ययन की योजना बनाईजीवाश्म और जहाँ भी संभव हो सामग्री इकट्ठा करने में अधिक समय बिताया। उनका युगांतरकारी कार्य,Recherches sur les poissons जीवाश्म, 1833 से 1843 तक भागों में दिखाई दिए। इसमें नामित जीवाश्म मछलियों की संख्या 1,700 से अधिक हो गई थी, और प्राचीन समुद्रों को उनके निवासियों के विवरण के माध्यम से फिर से रहने के लिए बनाया गया था। उस मौलिक कार्य का महान महत्व विलुप्त जीवन के अध्ययन को दिए गए प्रोत्साहन पर टिका है। मछलियों के साथ पाए जाने वाले अन्य विलुप्त जानवरों की ओर अपना ध्यान आकर्षित करते हुए, अगासीज़ ने 1838-42 में स्विट्जरलैंड के जीवाश्म ईचिनोडर्म्स पर दो खंड प्रकाशित किए और 1841-42 में एट्यूड्स क्रिटिक्स सुर लेस मोलस्क्स फॉसिल्स प्रकाशित किए। 1832 से 1846 तक उन्होंने न्यूचैटल विश्वविद्यालय में प्राकृतिक इतिहास के प्रोफेसर के रूप में कार्य किया। न्यूचैटल में उन्होंने कुछ समय के लिए अपने स्वयं के प्रकाशक के रूप में काम किया, और उनका निजी निवास गतिविधि का एक छत्ता बन गया, जिसमें कई युवा उनकी सहायता कर रहे थे। अब उन्होंने अपना नामकरणकर्ता जूलोगिकस शुरू किया, एक सूची जिसमें वैज्ञानिक नामकरण की शुरुआत से जानवरों की पीढ़ी पर लागू सभी नामों के संदर्भ थे , एक तारीख 1 जनवरी, 1758 को तय की गई थी। ब्रिटानिका प्रीमियम सदस्यता प्राप्त करें और अनन्य सामग्री तक पहुंच प्राप्त करें।अब सदस्यता लें           1836 में अगासीज़ ने अध्ययन की एक नई पंक्ति शुरू की: के आंदोलनों और प्रभावस्विट्जरलैंड के ग्लेशियर । कई लेखकों ने राय व्यक्त की थी कि बर्फ की ये नदियाँ एक बार बहुत अधिक व्यापक थीं और इस क्षेत्र में और जुरा पर्वत के शिखर तक बिखरे हुए अनिश्चित शिलाखंड ग्लेशियरों को हिलाकर ले गए थे। आर ग्लेशियर की बर्फ पर उन्होंने एक झोपड़ी, "होटल डेस न्यूचैटेलोइस" का निर्माण किया, जिसमें से उन्होंने और उनके सहयोगियों ने बर्फ की संरचना और आंदोलनों का पता लगाया। 1840 में उन्होंने अपने एट्यूड्स सुर लेस ग्लेशियरों को प्रका��ित किया , कुछ मायनों में उनका सबसे महत्वपूर्ण काम। इसमें अगासीज ने दिखाया कि भूगर्भीय रूप से हाल की अवधि में स्विट्जरलैंड एक विशाल बर्फ की चादर से ढका हुआ था। उनका अंतिम निष्कर्ष यह था कि "बर्फ की महान चादरें, जो अब ग्रीनलैंड में मौजूद हैं।", एक बार उन सभी देशों को कवर किया, जिनमें अनस्ट्रेटिफाइड बजरी (बोल्डर ड्रिफ्ट) पाई जाती है।"       Louis Agassiz history Louis Agassiz hindi about Louis Agassiz Louis Agassiz movie Louis Agassiz book Louis Agassiz Biography 
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