#लेकिन वेद और गीता में इसका कोई प्रमाण नहीं म
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#शास्त्रविरुद्ध_साधना_छठ_पूजा
छठ पूजा की व्यर्थता का प्रमाण
छठ पूजा सूर्य की उपासना का पर्व है, लेकिन वेद और गीता में इसका कोई प्रमाण नहीं मिलता। गीता में कहा गया है कि शास्त्रविरुद्ध साधना का कोई लाभ नहीं है। अधिक जानकारी के लिए Sant Rampal Ji Maharaj यूट्यूब चैनल देखें।
#शास्त्रविरुद्ध_साधना_छठ_पूजाछठ पूजा की व्यर्थता का प्रमाणछठ पूजा सूर्य की उपासना का पर्व है#लेकिन वेद और गीता में इसका कोई प्रमाण नहीं म
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🧑💻कबीर साहेब वास्तविक अविनाशी परमेश्वर हैं।🧑💻
हिंदू धर्म में 33 करोड़ देवी देवता माने जाते हैं और विडंबना यह है कि कोई हिंदू उन तैंतीस करोड़ देवताओं के नाम नहीं जानता। लोग आँख बंद करके बिना अपने शास्त्रों को पहचाने किसी भी देवी देवता को पूजनीय मान लेते हैं, और यह आशा करतें हैं की वह देवी या देवता उसकी व् उसके परिवार की रक्षा करेंगे, दुर्घटना व् बिमारियों से बचाएंगे।
लेकिन जब यह सभी देवी देवता खुद ही जन्म मृत्यु में है, स्वयं की मृत्यु नहीं रोक सकते तो हमे जीवन दान कैसे देंगे?
हमारे सद्ग्रन्थ बताते हैं की त्रिगुणात्मक देवता- ब्रह्मा, विष्णु, शिव भी जन्म और मृत्यु के चक्र में हैं और उनके माता-पिता भी है, पिता - ब्रह्म-काल (सदाशिव) और इनकी माता देवी दुर्गा (माया / अष्टांगी) हैं (प्रमाण- श्रीमद् देवी भागवत पुराण तीसरा स्कंध अध्याय 5 पेज 123), इसके अलावा गीता अध्याय 8 के श्लोक 17 में इन प्रभुओं की आयु का भी उल्लेख है।
जबकि वेद गवाही देते हैं कि परमात्मा अविनाशी है, अजर अमर है, उसका ना जन्म होता है ना मृत्यु।
वास्तव में पूर्ण अविनाशी परमेश्वर कबीर साहेब हैं। पवित्र यजुर्वेद अध्याय 1 मंत्र 15, अध्याय 5 के श्लोक नं. 1 व् 32 में, सामवेद के संख्या नं. 1400, 822 में, अथर्ववेद के काण्ड नं. 4 के अनुवाक 1 के श्लोक नं. 7, ऋग्वेद के म. 1 अ. 1 के सुक्त 11 के श्लोक नं. 4 में कबीर नाम लिख कर बताया गया है कि पूर्ण ब्रह्म कबीर (कविर्देव) है वही बन्धनों का शत्रु अर्थात् बन्दी छोड है। वह स्वप्रकाशित शरीर वाला प्रभु सतधाम अर्थात् सतलोक में रहता है।
स्वयं कविर्देव (कबीर परमेश्वर) जी ने अपनी अमृतवाणी में प्रमाण दिया है -
अविगत से चल आए, कोई मेरा भेद मर्म नहीं पाया।
न मेरा जन्म न गर्भ बसेरा, बालक हो दिखलाया।
काशी नगर जल कमल पर डेरा, वहाँ जुलाहे ने पाया।। मात-पिता मेरे कुछ नाहीं, ना मेरे घर दासी (पत्नी)।
जुलहा का सुत आन कहाया, जगत करें मेरी हाँसी।।
पाँच तत्व का धड़ नहीं मेरा, जानुं ज्ञान अपारा।
सत्य स्वरूपी (वास्तविक) नाम साहेब (पूर्ण प्रभु) का सोई नाम हमारा।।
अधर द्वीप (ऊपर सत्यलोक में) गगन गुफा में तहां निज वस्तु सारा।
ज्योत स्वरूपी अलख निरंजन (ब्रह्म) भी धरता ध्यान हमारा।।
हाड़ चाम लहु ना मेरे, कोई जाने सत्यनाम उपासी।
तारन तरन अभय पद दाता, मैं हूँ कबीर अविनाशी।।
जब यह जीवात्मा वास्तविक अविनाशी परमेश्वर कविर्देव (कबीर साहेब) की शरण में पूरे गुरू के माध्यम से आ जाती है अर्थार्त नाम से जुड़ ��ाती है तो फिर इसका जन्म तथा मृत्यु का कष्ट सदा के लिए समाप्त ��ो जाता है और सतलोक में वास्तविक परम शांति को प्राप्त करता है।
#कबीरपरमात्मा_अविनाशी_हैं
#SantRampalJiMaharaj
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पवित्र पुस्तक "कबीर परमेश्वर"
https://bit.ly/KabirParmeshwarBook
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🐾कबीर साहेब वास्तविक अविनाशी परमेश्वर हैं।🐾
#Godstory
#Thoughtsoftheday
अविगत से चल आए, कोई मेरा भेद मर्म नहीं पाया।
न मेरा जन्म न गर्भ बसेरा, बालक हो दिखलाया।
काशी नगर जल कमल पर डेरा, वहाँ जुलाहे ने पाया।। मात-पिता मेरे कुछ नाहीं, ना मेरे घर दासी (पत्नी)।
जुलहा का सुत आन कहाया, जगत करें मेरी हाँसी।।
पाँच तत्व का धड़ नहीं मेरा, जानुं ज्ञान अपारा।
सत्य स्वरूपी (वास्तविक) नाम साहेब (पूर्ण प्रभु) का सोई नाम हमारा।।
अधर द्वीप (ऊपर सत्यलोक में) गगन गुफा में तहां निज वस्तु सारा।
ज्योत स्वरूपी अलख निरंजन (ब्रह्म) भी धरता ध्यान हमारा।।
हाड़ चाम लहु ना मेरे, कोई जाने सत्यनाम उपासी।
तारन तरन अभय पद दाता, मैं हूँ कबीर अविनाशी।।
हिंदू धर्म में 33 करोड़ देवी देवता माने जाते हैं और विडंबना यह है कि कोई हिंदू उन तैंतीस करोड़ देवताओं के नाम नहीं जानता। लोग आँख बंद करके बिना अपने शास्त्रों को पहचाने किसी भी देवी देवता को पूजनीय मान लेते हैं, और यह आशा करतें हैं की वह देवी या देवता उसकी व् उसके परिवार की रक्षा करेंगे, दुर्घटना व् बिमारियों से बचाएंगे।
लेकिन जब यह सभी देवी देवता खुद ही जन्म मृत्यु में है, स्वयं की मृत्यु नहीं रोक सकते तो हमे जीवन दान कैसे देंगे?
हमारे सद्ग्रन्थ बताते हैं की त्रिगुणात्मक देवता- ब्रह्मा, विष्णु, शिव भी जन्म और मृत्यु के चक्र में हैं और उनके माता-पिता भी है, पिता - ब्रह्म-काल (सदाशिव) और इनकी माता देवी दुर्गा (माया / अष्टांगी) हैं (प्रमाण- श्रीमद् देवी भागवत पुराण तीसरा स्कंध अध्याय 5 पेज 123), इसके अलावा गीता अध्याय 8 के श्लोक 17 में इन प्रभुओं की आयु का भी उल्लेख है।
जबकि वेद गवाही देते हैं कि परमात्मा अविनाशी है, अजर अमर है, उसका ना जन्म होता है ना मृत्यु।
वास्तव में पूर्ण अविनाशी परमेश्वर कबीर साहेब हैं। पवित्र यजुर्वेद अध्याय 1 मंत्र 15, अध्याय 5 के श्लोक नं. 1 व् 32 में, सामवेद के संख्या नं. 1400, 822 में, अथर्ववेद के काण्ड नं. 4 के अनुवाक 1 के श्लोक नं. 7, ऋग्वेद के म. 1 अ. 1 के सुक्त 11 के श्लोक नं. 4 में कबीर नाम लिख कर बताया गया है कि पूर्ण ब्रह्म कबीर (कविर्देव) है वही बन्धनों का शत्रु अर्थात् बन्दी छोड है। वह स्वप्रकाशित शरीर वाला प्रभु सतधाम अर्थात् सतलोक में रहता है।
स्वयं कविर्देव (कबीर परमेश्वर) जी ने अपनी अमृतवाणी में प्रमाण दिया है -
जब यह जीवात्मा वास्तविक अविनाशी परमेश्वर कविर्देव (कबीर साहेब) की शरण में पूरे गुरू के माध्यम से आ जाती है अर्थार्त नाम से जुड़ जाती है तो फिर इसका जन्म तथा मृत्यु का कष्ट सदा के लिए समाप्त हो जाता है और सतलोक में वास्तविक परम शांति को प्राप्त करता है।
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#कबीरपरमात्मा_अविनाशी_हैं
#SantRampalJiMaharaj
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🧑💻कबीर साहेब वास्तविक अविनाशी परमेश्वर हैं।🧑💻
हिंदू धर्म में 33 करोड़ देवी देवता माने जाते हैं और विडंबना यह है कि कोई हिंदू उन तैंतीस करोड़ देवताओं के नाम नहीं जानता। लोग आँख बंद करके बिना अपने शास्त्रों को पहचाने किसी भी देवी देवता को पूजनीय मान लेते हैं, और यह आशा करतें हैं की वह देवी या देवता उसकी व् उसके परिवार की रक्षा करेंगे, दुर्घटना व् बिमारियों से बचाएंगे।
लेकिन जब यह सभी देवी देवता खुद ही जन्म मृत्यु में है, स्वयं की मृत्यु नहीं रोक सकते तो हमे जीवन दान कैसे देंगे?
हमारे सद्ग्रन्थ बताते हैं की त्रिगुणात्मक देवता- ब्रह्मा, विष्णु, शिव भी जन्म और मृत्यु के चक्र में हैं और उनके माता-पिता भी है, पिता - ब्रह्म-काल (सदाशिव) और इनकी माता देवी दुर्गा (माया / अष्टांगी) हैं (प्रमाण- श्रीमद् देवी भागवत पुराण तीसरा स्कंध अध्याय 5 पेज 123), इसके अलावा गीता अध्याय 8 के श्लोक 17 में इन प्रभुओं की आयु का भी उल्लेख है।
जबकि वेद गवाही देते हैं कि परमात्मा अविनाशी है, अजर अमर है, उसका ना जन्म होता है ना मृत्यु।
वास्तव में पूर्ण अविनाशी परमेश्वर कबीर साहेब हैं। पवित्र यजुर्वेद अध्याय 1 मंत्र 15, अध्याय 5 के श्लोक नं. 1 व् 32 में, सामवेद के संख्या नं. 1400, 822 में, अथर्ववेद के काण्ड नं. 4 के अनुवाक 1 के श्लोक नं. 7, ऋग्वेद के म. 1 अ. 1 के सुक्त 11 के श्लोक नं. 4 में कबीर नाम लिख कर बताया गया है कि पूर्ण ब्रह्म कबीर (कविर्देव) है वही बन्धनों का शत्रु अर्थात् बन्दी छोड है। वह स्वप्रकाशित शरीर वाला प्रभु सतधाम अर्थात् सतलोक में रहता है।
स्वयं कविर्देव (कबीर परमेश्वर) जी ने अपनी अमृतवाणी में प्रमाण दिया है -
अविगत से चल आए, कोई मेरा ��ेद मर्म नहीं पाया।
न मेरा जन्म न गर्भ बसेरा, बालक हो दिखलाया।
काशी नगर जल कमल पर डेरा, वहाँ जुलाहे ने पाया।। मात-पिता मेरे कुछ नाहीं, ना मेरे घर दासी (पत्नी)।
जुलहा का सुत आन कहाया, जगत करें मेरी हाँसी।।
पाँच तत्व का धड़ नहीं मेरा, जानुं ज्ञान अपारा।
सत्य स्वरूपी (वास्तविक) नाम साहेब (पूर्ण प्रभु) का सोई नाम हमारा।।
अधर द्वीप (ऊपर सत्यलोक में) गगन गुफा में तहां निज वस्तु सारा।
ज्योत स्वरूपी अलख निरंजन (ब्रह्म) भी धरता ध्यान हमारा।।
हाड़ चाम लहु ना मेरे, कोई जाने सत्यनाम उपासी।
तारन तरन अभय पद दाता, मैं हूँ कबीर अविनाशी।।
जब यह जीवात्मा वास्तविक अविनाशी परमेश्वर कविर्देव (कबीर साहेब) की शरण में पूरे गुरू के माध्यम से आ जाती है अर्थार्त नाम से जुड़ जाती है तो फिर इसका जन्म तथा मृत्यु का कष्ट सदा के लिए समाप्त हो जाता है और सतलोक में वास्तविक परम शांति को प्राप्त करता है।
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🧑💻कबीर साहेब वास्तविक अविनाशी परमेश्वर हैं।🧑💻
हिंदू धर्म में 33 करोड़ देवी देवता माने जाते हैं और विडंबना यह है कि कोई हिंदू उन तैंतीस करोड़ देवताओं के नाम नहीं जानता। लोग आँख बंद करके बिना अपने शास्त्रों को पहचाने किसी भी देवी देवता को पूजनीय मान लेते हैं, और यह आशा करतें हैं की वह देवी या देवता उसकी व् उसके परिवार की रक्षा करेंगे, दुर्घटना व् बिमारियों से बचाएंगे।
लेकिन जब यह सभी देवी देवता खुद ही जन्म मृत्यु में है, स्वयं की मृत्यु नहीं रोक सकते तो हमे जीवन दान कैसे देंगे?
हमारे सद्ग्रन्थ बताते हैं की त्रिगुणात्मक देवता- ब्रह्मा, विष्णु, शिव भी जन्म और मृत्यु के चक्र में हैं और उनके माता-पिता भी है, पिता - ब्रह्म-काल (सदाशिव) और इनकी माता देवी दुर्गा (माया / अष्टांगी) हैं (प्रमाण- श्रीमद् देवी भागवत पुराण तीसरा स्कंध अध्याय 5 पेज 123), इसके अलावा गीता अध्याय 8 के श्लोक 17 में इन प्रभुओं की आयु का भी उल्लेख है।
जबकि वेद गवाही देते हैं कि परमात्मा अविनाशी है, अजर अमर है, उसका ना जन्म होता है ना मृत्यु।
वास्तव में पूर्ण अविनाशी परमेश्वर कबीर साहेब हैं। पवित्र यजुर्वेद अध्याय 1 मंत्र 15, अध्याय 5 के श्लोक नं. 1 व् 32 में, सामवेद के संख्या नं. 1400, 822 में, अथर्ववेद के काण्ड नं. 4 के अनुवाक 1 के श्लोक नं. 7, ऋग्वेद के म. 1 अ. 1 के सुक्त 11 के श्लोक नं. 4 में कबीर नाम लिख कर बताया गया है कि पूर्ण ब्रह्म कबीर (कविर्देव) है वही बन्धनों का शत्रु अर्थात् बन्दी छोड है। वह स्वप्रकाशित शरीर वाला प्रभु सतधाम अर्थात् सतलोक में रहता है।
स्वयं कविर्देव (कबीर परमेश्वर) जी ने अपनी अमृतवाणी में प्रमाण दिया है -
अविगत से चल आए, कोई मेरा भेद मर्म नहीं पाया।
न मेरा जन्म न गर्भ बसेरा, बालक हो दिखलाया।
काशी नगर जल कमल पर डेरा, वहाँ जुलाहे ने पाया।। मात-पिता मेरे कुछ नाहीं, ना मेरे घर दासी (पत्नी)।
जुलहा का सुत आन कहाया, जगत करें मेरी हाँसी।।
पाँच तत्व का धड़ नहीं मेरा, जानुं ज्ञान अपारा।
सत्य स्वरूपी (वास्तविक) नाम साहेब (पूर्ण प्रभु) का सोई नाम हमारा।।
अधर द्वीप (ऊपर सत्यलोक में) गगन गुफा में तहां निज वस्तु सारा।
ज्योत स्वरूपी अलख निरंजन (ब्रह्म) भी धरता ध्यान हमारा।।
हाड़ चाम लहु ना मेरे, कोई जाने सत्यनाम उपासी।
तारन तरन अभय पद दाता, मैं हूँ कबीर अविनाशी।।
जब यह जीवात्मा वास्तविक अविनाशी परमेश्वर कविर्देव (कबीर साहेब) की शरण में पूरे गुरू के माध्यम से आ जाती है अर्थार्त नाम से जुड़ जाती है तो फिर इसका जन्म तथा मृत्यु का कष्ट सदा के लिए समाप्त हो जाता है और सतलोक में वास्तविक परम शांति को प्राप्त करता है।
#कबीरपरमात्मा_अविनाशी_हैं
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पवित्र पुस्तक "कबीर परमेश्वर"
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🧑💻कबीर साहेब वास्तविक अविनाशी परमेश्वर हैं।🧑💻
केवल अविनाशी परमात्मा ही आप की रक्षा कर सकते हैं और वह अविनाशी परमात्मा कबीर साहिब हैं इसका प्रमाण हमारे सद ग्रंथों में मौजूद है
हिंदू धर्म में 33 करोड़ देवी देवता माने जाते हैं और विडंबना यह है कि कोई हिंदू उन तैंतीस करोड़ देवताओं के नाम नहीं जानता। लोग आँख बंद करके बिना अपने शास्त्रों को पहचाने किसी भी देवी देवता को पूजनीय मान लेते हैं, और यह आशा करतें हैं की वह देवी या देवता उसकी व् उसके परिवार की रक्षा करेंगे, दुर्घटना व् बिमारियों से बचाएंगे।
लेकिन जब यह सभी देवी देवता खुद ही जन्म मृत्यु में है, स्वयं की मृत्यु नहीं रोक सकते तो हमे जीवन दान कैसे देंगे?
हमारे सद्ग्रन्थ बताते हैं की त्रिगुणात्मक देवता- ब्रह्मा, विष्णु, शिव भी जन्म और मृत्यु के चक्र में हैं और उनके माता-पिता भी है, पिता - ब्रह्म-काल (सदाशिव) और इनकी माता देवी दुर्गा (माया / अष्टांगी) हैं (प्रमाण- श्रीमद् देवी भागवत पुराण तीसरा स्कंध अध्याय 5 पेज 123), इसके अलावा गीता अध्याय 8 के श्लोक 17 में इन प्रभुओं की आयु का भी उल्लेख है।
जबकि वेद गवाही देते हैं कि परमात्मा अविनाशी है, अजर अमर है, उसका ना जन्म होता है ना मृत्यु।
वास्तव में पूर्ण अविनाशी परमेश्वर कबीर साहेब हैं। पवित्र यजुर्वेद अध्याय 1 मंत्र 15, अध्याय 5 के श्लोक नं. 1 व् 32 में, सामवेद के संख्या नं. 1400, 822 में, अथर्ववेद के काण्ड नं. 4 के अनुवाक 1 के श्लोक नं. 7, ऋग्वेद के म. 1 अ. 1 के सुक्त 11 के श्लोक नं. 4 में कबीर नाम लिख कर बताया गया है कि पूर्ण ब्रह्म कबीर (कविर्देव) है वही बन्धनों का शत्रु अर्थात् बन्दी छोड है। वह स्वप्रकाशित शरीर वाला प्रभु सतधाम अर्थात् सतलोक में रहता है।
स्वयं कविर्देव (कबीर परमेश्वर) जी ने अपनी अमृतवाणी में प्रमाण दिया है -
अविगत से चल आए, कोई मेरा भेद मर्म नहीं पाया।
न मेरा जन्म न गर्भ बसेरा, बालक हो दिखलाया।
काशी नगर जल कमल पर डेरा, वहाँ जुलाहे ने पाया।। मात-पिता मेरे कुछ नाहीं, ना मेरे घर दासी (पत्नी)।
जुलहा का सुत आन कहाया, जगत करें मेरी हाँसी।।
पाँच तत्व का धड़ नहीं मेरा, जानुं ज्ञान अपारा।
सत्य स्वरूपी (वास्तविक) नाम साहेब (पूर्ण प्रभु) का सोई नाम हमारा।।
अधर द्वीप (ऊपर सत्यलोक में) गगन गुफा में तहां निज वस्तु सारा।
ज्योत स्वरूपी अलख निरंजन (ब्रह्म) भी धरता ध्यान हमारा।।
हाड़ चाम लहु ना मेरे, कोई जाने सत्यनाम उपासी।
तारन तरन अभय पद दाता, मैं हूँ कबीर अविनाशी।।
जब यह जीवात्मा वास्तविक अविनाशी परमेश्वर कविर्देव (कबीर साहेब) की शरण में पूरे गुरू के माध्यम से आ जाती है अर्थार्त नाम से जुड़ जाती है तो फिर इसका जन्म तथा मृत्यु का कष्ट सदा के लिए समाप्त हो जाता है और सतलोक में वास्तविक परम शांति को प्राप्त करता है।
#कबीरपरमात्मा_अविनाशी_हैं
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