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Raaz Aankhein Teri Lyrics In Hindi | राज़ आँखें तेरी हिंदी लिरिक्स – Arijit Singh:
Raaz Aankhein Teri Lyrics In Hindi | राज़ आँखें तेरी हिंदी लिरिक्स – Arijit Singh:
Raaz Aankhein Teri Lyrics In Hindi : राज आंखें तेरी हिंदी लिरिक्स फिल्म राज़ आँखें तेरी राज़ रीबूट 2016 का गाना है। इसमें इमरान हाशमी, कृति खरबंदा मुख्या कलाकार है । Raaz Aankhein Teri Song गीत को के सिंगर अरिजीत सिंह ने गाया हैं। गाने के बोल रश्मी विराग ने लिखे हैं और संगीत जीत गांगुली ने दिया है
Lyrics Title: Raaz Aankhein Teri Lyrics In Hindi Movies: Raaz Reboot
Singers: Arijit…
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कलयुग की कल्पना
कनक कटाक्ष कंगन सी, कोमल सी तेरी काया,
कादम्बनी के कलम से कल्पित तेरी काया ।
कंकर कंकर डाल काग ने, शिक्षक का स्वांग रचाया,
काल का रहस्य जानकर, समय का चक्कर लगाया ।
कर्ण में माँ कुंती कण कण में थी,
किंतु कुरुक्षेत्र की कहानी में एक अनकही अनबन भी थी ||
कपीश किशन के कानुश अर्जुन ही थे,
किंतु कौरव के साथ खड़े इस कौनतय के लिए कानून कुछ अलग थे |।
कब, क्यों, कौन, कहा और कैसे हर कहानी किशन के कनवी में कंठित थी ||
कर्म की कुंजी हो या धर्म की पूंजी,
चंद्रमा के कुरपता का राज़ को या काले पथ पर बिछा कांच हो,
हर कथा उन कृष्ण नैनो में अंकित थी ||
काम की कामना, ख्याति की वासना,
किरण्या की काशविनी में नाचना, यही तो है, इस कलयुग की विडंबना |
नारी का तिरस्कार, पुरुषो के अधिकारों का बहिष्कार,
पूज्य है तो केवल अंधकार,
तू नग्नता जानता है, तो तू है बहुत बड़ा कलाकार,
यह कलयुग है मेरे दोस्त,
निरर्थक – निराकार |
– अय्यारी
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[प्रेम पत्र खुद के लिए: दिन #2. १6th नवंबर २०२३. गुरूवार.]
सर्द सुबह की ठंड में गरम चाय सुकून की वो प्याली है जिसका खुमार दिन भर रहता है। सर्दियां आ चुकी है, असमंजस बरकरार है।
कहते हैं उम्मीद पर दुनिया कायम है, इसी के साथ मेरे कदम चलते चलते यहां तक आ चुके और सांसे ठहरती नही।
आज कल सुबह कब हुई? दोपहर कहा गई? शाम कब ढली? रात कैसे गुजरी कुछ समझ नही आ रहा... वक्त इतनी तेज रफ्तार पकड़ रहा है जैसे उसे कही पोहचने की जल्दी है। कुछ बातों को अपने अंदर रख तो लिया मगर वो इतनी भारी होती जा रही है मानो रूई में किसी ने पानी डाल दिया हो, ये राज़ तो रोज बढ़ता जा रहा हैं खैर किसी दिन यहां से निकल जाऊंगी।
लोग कहते हैं में खामोश बड़ी रहती हु,
में सोच में डूब कर गुमसुम सी रहती हु,
जब ऊंचे आसमान के परिंदो की उड़ान में बंद कमरे की खुली खिड़की से देखती हु,
तब में ये सोचती हु,
बदलाव मुझे नापसंद है फिर भी उड़ान की चाह है,
फिर याद आता है की में तो बंदिशों में रहती हु,
मगर,
जब चंद लोग मुझे ये कहते हैं की में बड़ा अच्छा में लिखती हु
बस इसीलिए,
मेरे कदम रुकते नही और में चलती रहती हु।
सिमरन। ~
खैर उम्मीद पर दुनिया कायम है और मुझ पर मेरा भविष्य।
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कबीर साहिब पर हुए हमले का राज़ | जानें कैसे बचे अद्भुत चमत्कार से! SA News
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saw ur gif
Here is a Song for you
ये चाँद सा रोशन चेहरा ज़ुल्फ़ों का रंग सुनहरा ये झील सी नीली आँखें कोई राज़ हैं इन में गेहेरा तारीफ़ करू क्या उसकी जिस ने तुम्हें बनाया ये चाँद सा रोशन चेहरा ज़ुल्फ़ों का रंग सुनेहरा ये झील सी नीली आँखें कोई राज़ हैं इन में गेहेरा तारीफ़ करू क्या उसकी जिस ने तुम्हें बनाया मैं खोज में हूँ मज़िल की और मंज़िल पास है मेरे मुखड़े से हटादो आँचल हो जाये दूर अँधेरे हो जाये दूर अँधेरे माना के ये जलवे तेरे कर देंगे मुझे दीवाना जी भरके ज़रा मैं देखूं अंदाज़ तेरा मस्ताना तारीफ़ करू क्या उसकी जिस ने तुम्हें बनाया ये चाँद सा रोशन चेहरा ज़ुल्फ़ों का रंग सुनेहरा ये झील सी नीली आँखें कोई राज़ हैं इन में गेहेरा तारीफ़ करू क्या उसकी जिस ने तुम्हें बनाया तारीफ़ करू क्या उसकी जिस ने तुम्हें बनाया तारीफ़ करू क्या उसकी जिस ने तुम्हें बनाया तारीफ़ करू क्या उसकी जिस ने तुम्हें बनाया तारीफ़ करू क्या उसकी जिस ने तुम्हें बनाया
Woahhhh thankyou meri jaan mwah 🎀
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Allam Iqbal said,
भरी बज़्म में राज़ की बात कह दी
बड़ा बे-अदब हूँ सज़ा चाहता हूँ
And Rahat Indori said,
सच बात कौन है जो सर-ए-आम कह सके
मैं कह रहा हूँ मुझ को सज़ा देनी चाहिए
And Krishna Bihari Noor said,
ज़िंदगी से बड़ी सज़ा ही नहीं
और क्या जुर्म है पता ही नहीं
And Akhtar Saiyad Khan said
किस जुर्म-ए-आरज़ू की सज़ा है ये ज़िंदगी
ऐसा तो ऐ ख़ुदा मैं गुनहगार भी नहीं
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चेहरे पे ख़ुशी छा जाती है आँखों में सुरूर आ जाता है
जब तुम मुझे अपना कहते हो अपने पे ग़ुरूर आ जाता है
तुम हुस्न की ख़ुद इक दुनिया हो शायद ये तुम्हें मालूम नहीं
महफ़िल ��ें तुम्हारे आने से हर चीज़ पे नूर आ जाता है
हम पास से तुम को क्या देखें तुम जब भी मुक़ाबिल होते हो
बेताब निगाहों के आगे पर्दा सा ज़रूर आ जाता है
जब तुम से मोहब्बत की हम ने तब जा के कहीं ये राज़ खुला
मरने का सलीक़ा आते ही जीने का शुऊ'र आ जाता है
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दर्द
दर्द लेकर सीने मे हम कुछ इस कदर मुस्कुराते हैं,
खुशी का हमारी लोग राज़ जानना चाहते हैं।
कैसे बताएँ लोगों को किस कदर ठोकर खाई है,
ये मुस्कुराने की आदत हमने वहीं से पाई है।
और माना मुकर गए हम अपने एक दो वादों से,
पर उम्मीद पर खरी वो भी कहाँ उतर पाई है।
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कनक कटाक्ष कंगन सी,
कोमल सी तेरी काया,
किंतु
कादम्बनी के कलम से कल्पित तेरी काया ।
कंकर कंकर डाल काग ने,
शिक्षक का स्वांग रचाया,
काल का रहस्य जानकर,
समय का चक्कर लगाया ।
कर्ण में माँ कुंती कण कण में थी,
किंतु कुरुक्षेत्र की कहानी में एक अनकही अनबन भी थी ||
कपीश किशन के कानुश अर्जुन ही थे,
किंतु कौरव के साथ खड़े ,
इस कौनतय के लिए कानून कुछ अलग थे |।
कब, क्यों, कौन, कहा और कैसे
हर कहानी किशन के कनवी में कंठित थी ||
कर्म की कुंजी हो या धर्म की पूंजी,
चंद्रमा के कुरपता का राज़ को या
काले पथ पर बिछा का��च हो,
हर कथा उन कृष्ण नैनो में अंकित थी ||
काम की कामना, ख्याति की वासना,
किरण्या की काशविनी में नाचना,
यही तो है, इस कलयुग की विडंबना |
नारी का तिरस्कार, पुरुषो के अधिकारों का बहिष्कार,
पूज्य है तो केवल अंधकार,
तू नग्नता जानता है, तो तू है बहुत बड़ा कलाकार,
यह कलयुग है मेरे दोस्त,
निरर्थक – निराकार |
– अय्यारी
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साइलेंट किलर by
Rajni kaur
किताब के बारे में...
मेरी यह पुस्तक जिंदगी के महत्व के बारे मे है। जिंदगी जो दुनिया का सबसे रहस्यमई राज़ है। इस राज़ का ना तो कोई आज तक पता लगा पाया है और ना ही कोई लगा पाएगा। कोई नहीं जानता कि इस दुनिया में उसे कब तक जीवित रहना है और ना ही कोई यह जान पाया है कि एक बार मरने के बाद हमें पुनर्जन्म मिलेगा भी या नहीं। अगर मैं अपनी बात करूं तो मुझे नहीं लगता कि पुनर्जन्म जैसी कोई बात होती है और अगर हमारा दुबारा जन्म होता भी होगा तो भी इतना तो स्पष्ट है कि इस जन्म में जो हमारे पास शरीर या जो लोग आज हमसे जुड़े हुए है वो हमें दुबारा कभी नहीं मिलते।
यदि आप इस पुस्तक के बारे में अधिक जानकारी प्राप्त करना चाहते हैं तो नीचे दिए गए लिंक से इस पुस्तक को पढ़ें या नीचे दिए गए दूसरे लिंक से हमारी वेबसाइट पर जाएँ!
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ਮਨੁੱਖ!
ਕੀ ਇੱਥੇ ਕਿਸੇ ਨੂੰ ਕਦੀ ਕੁਝ ਵੀ ਫ਼ਰਕ ਪੈਂਦਾ ਹੈ
ਕੌਣ ਮਰਿਆ ਏ ਤੇ ਇੱਥੇ ਕੌਣ ਜ਼ਿੰਦਾ ਰਹਿੰਦਾ ਹੈ!
ਮਨੁੱਖ ਕੱਟ ਕੇ ਹੀ ਰਹਿਣਾ ਚਾਹੁੰਦਾ ਹੈ ਹਰ ਪਾਸੋਂ
ਬਸ ਹਰ ਕੋਈ ਆਪਣੀ ਹੀ ਹਵਾ ‘ਚ ਬਹਿੰਦਾ ਹੈ!
ਹਰ ਕੋਈ ਅੰਦਰ ਹੀ ਅੰਦਰ ਮਰ ਰਿਹਾ ਹੈ ਇੱਥੇ
ਕਿਸੇ ਨੂੰ ਫੁਰਸਤ ਨਹੀਂ ਜਾਣੇ ਕੌਣ ਕੀ ਸਹਿੰਦਾ ਹੈ!
ਪਰਦੇ ਦਰਵਾਜ਼ੇ ਭਾਵੇਂ ਕਿਤੇ ਨਜ਼ਰ ਨਹੀਂ ਆਉਂਦੇ
ਹਰ ਕੋਈ ਅੰਦਰ ਕਿੰਨੇ ਭੇਦ ਦਬਾਈ ਰਹਿੰਦਾ ਹੈ!
ਕਿਸੇ ਨੂੰ ਦੂਜੇ ਦੇ ਗ਼ਮਾਂ ਦੀ ਕੋਈ ਵੀ ਖ਼ਬਰ ਨਹੀਂ
��ੱਥੇ ਹਰ ਕੋਈ ਕੰਮਾਂ ‘ਚ ਹੀ ਖਪਿਆ ਰਹਿੰਦਾ ਹੈ!
ਬੇਬਸੀ ਦੇ ਹੰਝੂਆਂ ਦਾ ਦਰਦ ਕੋਈ ਕੀ ਜਾਣੇਗਾ
ਕੌਣ ਜਾਣਦਾ ਏ ਕਿਸੇ ਤੇ ਕੀ ਸਿਤਮ ਢਹਿੰਦਾ ਹੈ!
ਕਿਲਕਾਰੀਆਂ ਤੇ ਕਿਤੇ ਸੁਣਾਈ ਨਹੀਂ ਦਿੱਤੀਆਂ
ਏਥੇ ਦਰਦ ਭਰੇ ਹੌਕਿਆਂ ਦਾ ਸ਼ੋਰ ਹੀ ਰਹਿੰਦਾ ਹੈ!
ਅਵਾਜ਼ ਤੇ ਨਿਕਲਣੀ ਕਦੋਂ ਦੀ ਬੰਦ ਹੋ ਗਈ ਸੀ
ਸਾਹਾਂ ਦਾ ਹਿਸਾਬ ਹੁਣ ਗਿਣਤੀ ਦਾ ਰਹਿੰਦਾ ਹੈ!
आदमी!
क्या यहां कभी किसी को फर्क पड़ता है
कौन मर गया और कौन यहाँ ज़िंदा रहता है!
आदमी सब ओर से कटकर जीना चाहता है
बस हर कोई अपनी-अपनी हवा में बहता रहता है!
हर कोई अंदर ही अंदर मर रहा है यहाँ
किसी को फ़ुरसत नहीं जाने कौन क्या सहता है!
पर्दे दरवाजे चाहे कहीं भी नजर नहीं आते
कितने राज़ हर कोई अपने अंदर ही दबाये रहता है!
किसी को दूसरे के गमों की कोई भी खबर नहीं
यहाँ हर कोई बस अपने ही काम में व्यस्त रहता है!
बेबसी के आंसुओं का दर्द कोई नहीं जान पाएगा
कौन जानेगा किस पर क्या सितम ढहता है
कहीं किलकारियाँ तो अब सुनाई नहीं देती
यहाँ सिर्फ दर्द भरी चीखों का शोर ही रहता है
आवाज तो निकलनी कब की बंद हो गयी थी
सांसों का हिसाब अब गिनती का ही रहता है!
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Mirov
#चैप्टर_1: अगर कभी ध्यान से सोचा जाये तो इंसान का अस्तित्व वह कुल इनफार्मेशन भर है जो वह अपनी आखिरी सांस तक हासिल करता है। यही उसकी मेमोरी है, यही उसके होने का अहसास है और यही उसका जीवन है। अगर किसी दिमाग़ से यह सारी इनफार्मेशन खुरच कर निकाल ली जाये तो फिर भले उसका शरीर बाकी रहे, लेकिन वह इंसान खत्म हो जायेगा, उसका अस्तित्व, "मैं" होने का अहसास मिट जायेगा और इसी से तो वह था। अब उसकी यह इनफार्मेशन अगर किसी दूसरे ब्लैंक दिमाग़ में या किसी आर्टिफिशियल ह्युमन में डाल दी जाये तो उसी इनफार्मेशन के सहारे वह कृत्रिम इंसान ख़ुद को वही इंसान समझेगा।
सोचिये कि कितना दिलचस्प है यह मेमोरी और इंसानी अस्तित्व का खेल… प्रस्तुत कहानी इसी विचार से शुरु होती है। इस विस्तृत कहानी का पहला चैप्टर इसी विचार से पैदा एक खोज है, जो एक चार सौ साल पुरानी हिमालयन रीज़न में दबी लाश की मेमोरी और आधुनिक युग के एक आर्टिफिशियल मानव के मेल के साथ शुरु होती है और अतीत में दबा एक ऐसा फसाना सामने आता है, जिससे ढेरों तरह की उलझनें खड़ी हो जाती हैं।
वहां मुगल साम्राज्य के उत्तरी किनारे पर बसी एक घाटी में वह सभ्यता मौजूद थी जो अपने महापूर्वज के लिये सोना-चांदी, क़ीमती कलाकृतियां/धरोहरें आदि लूट कर उस जगह इकट्ठी कर रही थी जो सत्रहवीं सदी में इक्कीसवीं सदी की आधुनिक सुविधाओं के साथ मौजूद थी, जो उस दौर में संभव ही नहीं था— लेकिन वह जगह ऐसे वीरानों में और भी जाने कितने पीछे से मौजूद थी। उन लुटेरों का महापूर्वज ख़ुद को दो सौ साल पुराना बताता था, जबकि दिखने में वह बस बत्तीस-चौंतीस की उम्र का ही था और वह झूठ भी नहीं बोल रहा था।
उन पुरानी स्मृतियों से जूझते एडगर वैलेंस के लिये वह सवाल ही नहीं बवाले जान नहीं थे, बल्कि आधुनिक दौर के वह लोग भी थे, जो उस पर अपने बाॅस को मारने और उनकी एक मोटी रकम लूटने का इल्ज़ाम लगा रहे थे— वह लड़की भी थी जो उस पर अपना शरीर लेने का इल्ज़ाम लगा रही थी और उससे अपना शरीर वापस चाहती थी, जबकि उसे ऐसा कुछ भी याद नहीं था।
#चैप्टर_2: एक आदमी अचानक ग़ायब होने के सौ साल बाद प्रकट होता है और बताता है कि उसने तो सिर्फ चार दिन किसी रहस्मयी जगह पर गुज़ारे हैं, और उसकी उम्र भी वही थी, जिससे दुनिया भर के लोगों की दिलचस्पी उस घाटी में हो जाती है, जहां वह रहस्यमयी जगह मौजूद थी। कुछ लोग हैं दुनिया में, जो सेटी (सर्च फाॅर एक्सट्रा टेरेस्ट्रियल इंटेलिजेंस) के लिये काम करते हैं या एन्शेंट एस्ट्रानाॅट थ्योरिस्ट कहलाते हैं— दुनिया भर में एलियन एग्जिस्टेंस के सबूत ढूंढते फिरते हैं और उन्हें एनालाईज करते हैं। उन्हें सौ साल बाद सामने आये इसी आदमी के भरोसे उस घाटी में एलियन एग्जिस्टेंस की भरपूर संभावनाएं दिखती हैं और वे इसका रहस्य पता करना चाहते हैं।
लेकिन उस घाटी के मुसाफिर बस वही नहीं थे— एक टीम वह भी थी, जिसके लोगों के देशों से सम्बंधित धरोहरें जो चार-पांच सौ साल पीछे के अतीत में चुराई गई थीं और सैकड़ों साल तक गुमशुदा रहने के बाद अब एकाएक नीलामी के ज़रिये बेची जाने लगी थीं— और बेचने वाले उसी खास घाटी में बैठे थे। उनके सिवा वे दो टीमें भी थीं, जिन्होंने चार सौ साल पीछे के इतिहास में दफन उस कहानी का पता लगाया था और अब वे न सिर्फ उस खज़ाने को हासिल करना चाहते थे, बल्कि उस जगह के राज़ को भी पता करना चाहते थे।
#चैप्टर_3: हम अपने ऑब्जर्वेबल यूनिवर्स में जितना कुछ देख जान पाते हैं, वह बस यूनिवर्स का चार-पांच प्रतिशत है और बाकी में जो अबूझ मटेरियल है, उसे हम डार्क मैटर और डार्क एनर्जी कह कर सम्बोधित करते हैं— लेकिन कहीं वही 94-95% यूनिवर्स ही तो असल यूनिवर्स नहीं है, जिसके लिये शैडो यूनिवर्स शब्द का इस्तेमाल होता है— और हमारा अपना जाना-पहचाना यूनिवर्स उस यूनिवर्स में आई मामूली एनाॅमली भर हो। कहानी का तीसरा चैप्टर इसी संभावना को साकार करते हुए इस वास्तविक यूनिवर्स का खाका खींचता है, जहां सब अनोखा है— उससे उलट, जो हमारा देखा और जाना-पहचाना है।
वहां भी सभ्यताएं हैं, तरक्की के पैमाने पर जीरो से लेकर वहां तक, कि वे पूरे यूनिवर्स तक को रीडिजाइन करने की क्षमता रखती हैं। जो सबसे तरक्कीशुदा सभ्यताएं हैं, वे इसी धुरी के अंतर्गत एक दूसरे के साथ संघर्ष में उलझे हैं और पृथ्वी से ट्रांसफार्म हो कर वहां पहुंचे लोगों को भी अपने साथ यह कह कर उलझा लेते हैं कि अगर उनका यूनिवर्स रीडिजाईन होता है तो इंसानों का यूनिवर्स ही कोलैप्स हो जायेगा। इस कठिन संघर्ष के अंतिम मरहले पर एक ऐसा महायुद्ध होता है, जिसमें पूरी की पूरी सभ्यताएं मिट जाती हैं।
तीनों किताबें एक साथ पब्लिश की गई हैं और ऑनलाइन बिक्री के लिये अमेज़न/फ्लिपकार्ट पर उपलब्ध हैं। जिन्हें डिजिटल फार्मेट में पढ़ना पसंद है, उनके लिये यह सुविधा किंडल पर मौजूद है। सभी लिंक पोस्ट के साथ ही संलग्न हैं।
Miro 1
Mirov 2
Mirov 3
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स्वास्थ्य का राज़: पुरुषों के लिए मल्टीविटामिन कैप्सूल! 💪✨
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Detective Aryan: The Ultimate Revelation | Suspense Thriller Movie | राज़ का पर्दाफाश
Watch the gripping suspense thriller movie 'Detective Aryan' as he uncovers the truth in a thrilling adventure. Get ready for a journey full of twists and turns!
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आपकी नज़रों में कुछ
महके हुए से राज़ हैं
आपसे से भी खूबसूरत
आपके अंदाज हैं !!!!
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