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khabaruttarakhandki · 4 years ago
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कोरोना का कर्नाटक मॉडल: केंद्र ने दी सलाह, दूसरे राज्य भी सीखें
Karnataka corona model: कोरोना के खिलाफ कर्नाटक सरकार के प्रयासों की तारीफ करते हुए केंद्र सरकार ने कहा है कि दूसरे राज्य भी इससे अच्छी चीजें सीखें और कोरोना (Coronavirus) का असर कम करने की कोशिश करें।
Edited By Nilesh Mishra | नवभारतटाइम्स.कॉम | Updated: 19 Jun 2020, 04:43:00 PM IST
महाराष्ट्र से लौटने वालों के लिए कर्नाटक सरकार ने जारी किए नए दिशानिर्देश
बेंगलुरु केंद्र सरकार ने कोरोना के खिलाफ कर्नाटक सरकार के प्रयासों की तारीफ की है। साथ ही साथ अन्य राज्यों को सलाह दी है कि वे ‘कर्नाटक मॉडल‘ अपनाकर कोरोना पर काबू करने की कोशिश करें। दरअसल, कर्नाटक सरकार ने कॉन्टैक्ट ट्रेसिंग, लक्षण मिलने पर क्वारंटीन और घर-घर जाकर सर्वे जैसे तरीकों से कोरोना पर काफी हद तक काबू पाया है। यही कारण है कि राज्य में कोरोना के मामले बाकी राज्यों की तुलना में काफी कम है। सरकारी एजेंसियों और टेक्नॉलजी के सहयोग से मरीजों के संपर्क में आए लोगों की सटीक पहचान की जा रही है। इससे शुरुआती स्तर पर ही संपर्क में आए लोगों को आइसोलेट कर दिया जाता है। केंद्र सरकार ने अन्य राज्यों से कहा है कि वे भी इन तरीकों को अपनाएं। आपको बता दें कि मुंबई के धारावी में भी कुछ इसी तरह के मॉडल को अपनाया गया और वहां कोरोना के पॉजिटिव केस एक तिहाई हो गए हैं। 50 गुना ज्यादा केस, चेन्नै को बेंगलुरु से छह खास चीजें सीखने की है जरूरत
मोबाइल ऐप्स और टेक्नॉलजी का बेहतरीन इस्तेमाल कर्नाटक में संक्रमित पाए जाने वाले शख्स के संपर्क में आए लोगों को हाई रिस्क कॉन्टैक्ट और लो रिस्क कॉन्टैक्ट में बांटा जा रहा है। इन सभी लोगों को अनिवार्य रूप से क्वारंटीन किया जा रहा है। सिर्फ कॉन्टैक्ट ट्रेसिंग में ही कम से कम 10 हजार प्रशिक्षित प्रफेशनल्स काम कर रहे हैं। इसके लिए मोबाइल ऐप्स का भी इस्तेमाल किया जा रहा है, जिससे कोरोना संक्रमण काफी हद तक सीमित हो रहा है।
सबसे सटीक टेस्‍ट का रिजल्‍ट आने में लग जाता है पूरा दिन
पूरी दुनिया में कोरोना टेस्‍ट करने के लिए सबसे ज्‍यादा RT-PCR का यूज हो रहा है। इसका फुल फॉर्म Reverse transcription-polymerase chain reaction है। वर्ल्‍ड हेल्‍थ ऑर्गनाइजेशन (WHO) और इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (ICMR) ने RT-PCR को टेस्टिंग का ‘गोल्‍ड स्‍टैंडर्ड’ बताया है। इसमें टेस्‍ट में DNA को ‘एम्‍प्‍ल‍िफाई’ किया जाता है ताकि उसे एनालाइज किया जा सके। इसके बाद सैंपल को PCR मशीन में रखा जाता है जो हीटिंग और कूलिंग के अलग-अलग साइकल्‍स के जरिए टारगेट DNA की करोड़ों कॉपी बनाती है। फिर इसमें एक डाई मिलाई जाती है, अगर सैंपल पॉजिटिव है तो डाई चमकने लगती है। लैब के भीतर यह टेस्‍ट लगभग 100% सटीक है। हालांकि सैंपल कलेक्‍शन से लेकर रिजल्‍ट्स आने तक में 24 घंटे या उससे ज्‍यादा भी लग सकते हैं। PCR मशीनें चलाना खर्चीला है और सैंपल्‍स आमतौर पर एक बैच में टेस्‍ट किए जाते हैं।
टेस्टिंग को और बेहतर करने के लिए दुनियाभर के रिसर्चर्स काम कर रहे हैं। RT-PCR के अलावा इनका इस्‍तेमाल भी कोरोना डिटेक्‍ट करने में हो रहा है।CT स्‍कैन: चीन में इसका खूब इस्‍तेमाल हुआ। कोविड-19 की वजह से होने वाली ‘लंग ऑपेसिटी’ का स्‍कैन में पता चल जाता है। वुहान में RT-PCR में पॉजिटिव मिले 97% मरीजों के CT स्‍कैन्‍स में निमोनिया के लक्षण दिखे। हालांकि कई और स्‍टडी कहती हैं कि CT स्‍कैन से बड़ी संख्‍या में पेशेंट्स का पता नहीं लगाया जा सकता।LAMP: यह PCR के प्रिंसीपल पर ही काम करता है। दोनों की टारगेट के जेनेटिक मैटीरियल को एम्प्लिफाई करते हैं। PCR में जहां कूलिंग और हीटिंग के लिए खास इक्विपमेंट यूज होता है, वहीं LAMP की टेस्टिंग मशीनरी छोटी होती है। इससे सिर्फ एक घंटे में नतीजे आ जाते हैं और टेस्टिंग के लिए ट्रेन्‍ड टेक्‍नीशियंस की जरूरत भी नहीं है। हालांकि इस टेस्‍ट का ज्‍यादा इस्‍तेमाल नहीं हुआ है।ऐंटीबॉडी टेस्‍ट: इससे मिनटों में रिजल्‍ट्स आते हैं मगर वो भरोसेमंद नहीं। यह कोई डायग्‍नोस्टिक टेस्‍ट नहीं है मतलब आपको यह पता चलेगा कि पह��े कभी आपको कोरोना हुआ था या नहीं।ऐंटीजेन टेस्‍ट: इस टेस्‍ट में उन प्रोटीन्‍स को डिटेक्‍ट किया जाता है जो वायरल का हिस्‍सा होती हैं। नाक या गले से सैंपल लेकर ऐंटीजेन टेस्‍ट मिनटों में रिजल्‍ट दे सकता है मगर RT-PCR जितना सटीक नहीं है। हालांकि इस टेस्‍ट को अस्‍पतालों और ऑफिसेज में लोगों को स्‍क्रीन करने के लिए यूज कर सकते हैं। 15 जून को ICMR ने देशी की पहली ऐंटीजेन टेस्टिंग किट को मंजूरी दी थी।जीन-एडिटिंग: कुछ रिसर्चर्स CRISPR नाम के एक जीन-एडिटिंग टूल का इस्‍तेमाल कर सैंपल्‍स में वायरस के जेनेटिक सीक्‍वेंस का पता लगा रहे हैं। यह तरीका जीका के अलावा और भी वायरस के लिए पहले यूज हो चुका है। ऐसी किट करीब 450 रुपये में बनाई जा सकती है जो प्रेग्‍नेंसी किट की तरह काम करती है। छोटे लेवल की एक स्‍टडी में इसने सटीक नतीजे दिए मगर बड़े पैमाने पर यह तरीका यूज नहीं हुआ है।
RT-PCR के जरिए सैंपल्‍स के एक बैच की टेस्टिंग में 4 से 8 घंटे लगते हैं मगर भारत में यह समय और ज्‍यादा है। एक बड़ी समस्‍या लिमिटेड इन्‍फ्रास्‍ट्रक्‍चर की है। देश में अब टेस्टिंग किट्स की कमी नहीं है क्‍योंकि अधिकतर हम घर में ही बनाने लगे हैं। मगर सैंपल्‍स का बैकलॉग बढ़ रहा है।
भारत में 1000 से भी कम लैब्‍स में टेस्टिंग हो रही है। बेहद कम लैब्‍स के पास ही सही मशीनरी और ट्रेन्‍ड स्‍टाफ है। खाली सैंपल जल्‍दी कलेक्‍ट करने से कुछ नहीं होता। उन्‍हें पास की मान्‍यता प्राप्‍त लैब में भेजना भी होता है जिसमें काफी टाइम लग जाता है।
ICMR ने पूरा जोर लगा दिया कि भारत में टेस्टिंग की संख्‍या बढ़े। उसका असर भी दिखा है। फिलहाल भारत की क्षमता रोज 3 लाख टेस्‍ट करने की है। 17 जून को देश में 1.65 लाख सैंपल्‍स टेस्‍ट किए गए। इस तारीख तक भारत ने कुल 62.5 लाख टेस्‍ट कर लिए थे। देश में प्रति 1000 आबादी पर सिर्फ 4.3 टेस्‍ट हो रहे हैं जो कि सबसे ज्‍यादा केसेज वाले देशों के मुकाबले बेहद कम हैं। 11 राज्‍य ऐसे हैं जो नैशनल टेस्टिंग एवरेज से भी नीचे हैं।
दिल्‍ली में कोरोना टेस्‍ट कराने पर 2,400 रुपये का खर्च आता है। अलग-अलग राज्‍यों में टेस्‍ट के रेट अलग हैं। एक्‍सपर्ट्स कहते हैं कि ज्‍यादा संख्‍या में टेस्‍ट करने से प्रति टेस्‍ट लागत और कम हो सकती है। ब्‍लूमबर्गक्विंट की एक रिपोर्ट के मुताबिक, अगर कोई लैब 10 हजार सैंपल्‍स प्रोसेस करे तो टेस्टिंग किट के दाम 500 रुपये तक गिर सकते हैं और लागत में अच्‍छी-खासी कमी आ सकती है। इसकी वजह ये है कि एक वक्‍त में मशीन कई सैंपल प्रोसेस कर सकती है मगर उसे कम सैंपल्‍स मिलेंगे जो वह रिर्सासेज का अंडर-यूटिलाइजेशन होगा।
जॉन्‍स हॉपकि��स यूनिवर्सिटी की एक रिसर्च बताती है कि कोविड-19 के लिए जल्‍दी टेस्‍ट करने पर रिपोर्ट निगेटिव आ सकती है। लक्षण दिखने के करीब तीन दिन बाद टेस्‍ट करने पर उसी मरीज का रिजल्‍ट पॉजिटिव आ सकता है। रिसर्चर्स के मुताबिक, ऐसा इसलिए हो सकता है कि वो स्‍वाब का नमूना लिया गया उसमें वायरस से इन्‍फेक्‍टेड सेल्‍स नहीं थीं या तो वायरस का लेवल कम था। इन्‍फेक्‍शन के शुरुआत दिनों में वायरल लोड कम रहता है, ऐसे में टैस्‍ट निगेटिव आ सकता है। 1300 से ज्‍यादा सैंपल्‍स पर रिसर्च में पता चला कि जिन लोगों ने इन्फेक्‍शन के चार दिन बाद टेस्‍ट कराया था, उनमें से 67% के रिजल्‍ट निगेटिव आए। हालांकि लक्षण दिखने के बाद टेस्ट करने पर यह दर गिरकर 38% हो गई। रिसर्च यह भी कहती है क‍ि इन्‍फेक्‍शन के 8 दिन बाद भी टेस्‍ट कराने पर, 20% के रिजल्‍ट फाल्‍स निगेटिव रहे। यानी लक्षण दिखने पर टेस्‍ट कराना ज्‍यादा सही है।
इन प्रयासों का नतीजा है कि कर्नाटक के बड़े नगर पालिका और नगर निगम क्षेत्रों में आने वाली झुग्गियों-बस्तियों में कोरोना बड़े स्तर पर नहीं फैल पाया है। इन इलाकों में इंस्टिट्यूशनल क्वारंटीन अनिवार्य है। साथ ही दूसरे राज्यों से आने वाले लोगों को ‘सेवा सिंधु’ पोर्टल पर रजिस्टर करने और और फिर उन्हें क्वारंटीन करने की अनिवार्यता ने काफी हद तक मदद की है।
कर्नाटक: कोविड-19 वॉर रूम के प्रमुख ने कहा, ‘ज्यादातर लोगों की मौत अस्पताल पहुंचने में देरी से हुई’
क्वारंटीन का उल्लंघन करने पर इंस्टिट्यूशनल क्वारंटीन में भेजा जा रहा फील्ड वर्क्स क्वारंटीन का पालन करवाने के लिए ‘क्वारंटीन वॉच ऐप्स’ का इस्तेमाल कर रहे हैं। कर्नाटक ने लोगों के सहयोग से होम क्वारंटीन को सफल बनाने के लिए मोबाइल स्कॉड बनाए हैं। इनकी मदद से क्वारंटीन का उल्लंघन करने वालों पर नजर रखी जाती है और उन्हें इंस्टिट्यूशनल क्वारंटीन में भेज दिया जाता है।
कर्नाटक में अभी तक कोरोना के कुल 7944 मामले सामने आए हैं, जिसमें से 4811 मरीज ठीक होकर डिस्चार्ज हो गए हैं। राज्य में अब कोरोना के कुल 2843 ऐक्टिव केस हैं। तमाम प्रयासों का नतीजा है कि कर्नाटक में 115 लोगों की ही मौत हुई है। राज्य में 3016 लोगों को आइसोलेशन में रखा गया है।
(एजेंसी इनपुट्स के साथ)
सांकेतिक तस्वीर
Web Title central government praises karantaka corona model(Hindi News from Navbharat Times , TIL Network)
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khabaruttarakhandki · 4 years ago
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कोरोना का कर्नाटक मॉडल: केंद्र ने दी सलाह, दूसरे राज्य भी सीखें
Karnataka corona model: कोरोना के खिलाफ कर्नाटक सरकार के प्रयासों की तारीफ करते हुए केंद्र सरकार ने कहा है कि दूसरे राज्य भी इससे अच्छी चीजें सीखें और कोरोना (Coronavirus) का असर कम करने की कोशिश करें।
Edited By Nilesh Mishra | नवभारतटाइम्स.कॉम | Updated: 19 Jun 2020, 04:43:00 PM IST
महाराष्ट्र से लौटने वालों के लिए कर्नाटक सरकार ने जारी किए नए दिशानिर्देश
बेंगलुरु केंद्र सरकार ने कोरोना के खिलाफ कर्नाटक सरकार के प्रयासों की तारीफ की है। साथ ही साथ अन्य राज्यों को सलाह दी है कि वे ‘कर्नाटक मॉडल‘ अपनाकर कोरोना पर काबू करने की कोशिश करें। दरअसल, कर्नाटक सरकार ने कॉन्टैक्ट ट्रेसिंग, लक्षण मिलने पर क्वारंटीन और घर-घर जाकर सर्वे जैसे तरीकों से कोरोना पर काफी हद तक काबू पाया है। यही कारण है कि राज्य में कोरोना के मामले बाकी राज्यों की तुलना में काफी कम है। सरकारी एजेंसियों और टेक्नॉलजी के सहयोग से मरीजों के संपर्क में आए लोगों की सटीक पहचान की जा रही है। इससे शुरुआती स्तर पर ही संपर्क में आए लोगों को आइसोलेट कर दिया जाता है। केंद्र सरकार ने अन्य राज्यों से कहा है कि वे भी इन तरीकों को अपनाएं। आपको बता दें कि मुंबई के धारावी में भी कुछ इसी तरह के मॉडल को अपनाया गया और वहां कोरोना के पॉजिटिव केस एक तिहाई हो गए हैं। 50 गुना ज्यादा केस, चेन्नै को बेंगलुरु से छह खास चीजें सीखने की है जरूरत
मोबाइल ऐप्स और टेक्नॉलजी का बेहतरीन इस्तेमाल कर्नाटक में संक्रमित पाए जाने वाले शख्स के संपर्क में आए लोगों को हाई रिस्क कॉन्टैक्ट और लो रिस्क कॉन्टैक्ट में बांटा जा रहा है। इन सभी लोगों को अनिवार्य रूप से क्वारंटीन किया जा रहा है। सिर्फ कॉन्टैक्ट ट्रेसिंग में ही कम से कम 10 हजार प्रशिक्षित प्रफेशनल्स काम कर रहे हैं। इसके लिए मोबाइल ऐप्स का भी इस्तेमाल किया जा रहा है, जिससे कोरोना संक्रमण काफी हद तक सीमित हो रहा है।
सबसे सटीक टेस्‍ट का रिजल्‍��� आने में लग जाता है पूरा दिन
पूरी दुनिया में कोरोना टेस्‍ट करने के लिए सबसे ज्‍यादा RT-PCR का यूज हो रहा है। इसका फुल फॉर्म Reverse transcription-polymerase chain reaction है। वर्ल्‍ड हेल्‍थ ऑर्गनाइजेशन (WHO) और इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (ICMR) ने RT-PCR को टेस्टिंग का ‘गोल्‍ड स्‍टैंडर्ड’ बताया है। इसमें टेस्‍ट में DNA को ‘एम्‍प्‍ल‍िफाई’ किया जाता है ताकि उसे एनालाइज किया जा सके। इसके बाद सैंपल को PCR मशीन में रखा जाता है जो हीटिंग और कूलिंग के अलग-अलग साइकल्‍स के जरिए टारगेट DNA की करोड़ों कॉपी बनाती है। फिर इसमें एक डाई मिलाई जाती है, अगर सैंपल पॉजिटिव है तो डाई चमकने लगती है। लैब के भीतर यह टेस्‍ट लगभग 100% सटीक है। हालांकि सैंपल कलेक्‍शन से लेकर रिजल्‍ट्स आने तक में 24 घंटे या उससे ज्‍यादा भी लग सकते हैं। PCR मशीनें चलाना खर्चीला है और सैंपल्‍स आमतौर पर एक बैच में टेस्‍ट किए जाते हैं।
टेस्टिंग को और बेहतर करने के लिए दुनियाभर के रिसर्चर्स काम कर रहे हैं। RT-PCR के अलावा इनका इस्‍तेमाल भी कोरोना डिटेक्‍ट करने में हो रहा है।CT स्‍कैन: चीन में इसका खूब इस्‍तेमाल हुआ। कोविड-19 की वजह से होने वाली ‘लंग ऑपेसिटी’ का स्‍कैन में पता चल जाता है। वुहान में RT-PCR में पॉजिटिव मिले 97% मरीजों के CT स्‍कैन्‍स में निमोनिया के लक्षण दिखे। हालांकि कई और स्‍टडी कहती हैं कि CT स्‍कैन से बड़ी संख्‍या में पेशेंट्स का पता नहीं लगाया जा सकता।LAMP: यह PCR के प्रिंसीपल पर ही काम करता है। दोनों की टारगेट के जेनेटिक मैटीरियल को एम्प्लिफाई करते हैं। PCR में जहां कूलिंग और हीटिंग के लिए खास इक्विपमेंट यूज होता है, वहीं LAMP की टेस्टिंग मशीनरी छोटी होती है। इससे सिर्फ एक घंटे में नतीजे आ जाते हैं और टेस्टिंग के लिए ट्रेन्‍ड टेक्‍नीशियंस की जरूरत भी नहीं है। हालांकि इस टेस्‍ट का ज्‍यादा इस्‍तेमाल नहीं हुआ है।ऐंटीबॉडी टेस्‍ट: इससे मिनटों में रिजल्‍ट्स आते हैं मगर वो भरोसेमंद नहीं। यह कोई डायग्‍नोस्टिक टेस्‍ट नहीं है मतलब आपको यह पता चलेगा कि पहले कभी आपको कोरोना हुआ था या नहीं।ऐंटीजेन टेस्‍ट: इस टेस्‍ट में उन प्रोटीन्‍स को डिटेक्‍ट किया जाता है जो वायरल का हिस्‍सा होती हैं। नाक या गले से सैंपल लेकर ऐंटीजेन टेस्‍ट मिनटों में रिजल्‍ट दे सकता है मगर RT-PCR जितना सटीक नहीं है। हालांकि इस टेस्‍ट को अस्‍पतालों और ऑफिसेज में लोगों को स्‍क्रीन करने के लिए यूज कर सकते हैं। 15 जून को ICMR ने देशी की पहली ऐंटीजेन टेस्टिंग किट को मंजूरी दी थी।जीन-एडिटिंग: कुछ रिसर्चर्स CRISPR नाम के एक जीन-एडिटिंग टूल का इस्‍तेमाल कर सैंपल्‍स में वायरस के जेनेटिक सीक्‍वेंस का पता लगा रहे हैं। यह तरीका जीका के अलावा और भी वायरस के लिए पहले यूज हो चुका है। ऐसी किट करीब 450 रुपये में बनाई जा सकती है जो प्रेग्‍नेंसी किट की तरह काम करती है। छोटे लेवल की एक स्‍टडी में इसने सटीक नतीजे दिए मगर बड़े पैमाने पर यह तरीका यूज नहीं हुआ है।
RT-PCR के जरिए सैंपल्‍स के एक बैच की टेस्टिंग में 4 से 8 घंटे लगते हैं मगर भारत में यह समय और ज्‍यादा है। एक बड़ी समस्‍या लिमिटेड इन्‍फ्रास्‍ट्रक्‍चर की है। देश में अब टेस्टिंग किट्स की कमी नहीं है क्‍योंकि अधिकतर हम घर में ही बनाने लगे हैं। मगर सैंपल्‍स का बैकलॉग बढ़ रहा है।
भारत में 1000 से भी कम लैब्‍स में टेस्टिंग हो रही है। बेहद कम लैब्‍स के पास ही सही मशीनरी और ट्रेन्‍ड स्‍टाफ है। खाली सैंपल जल्‍दी कलेक्‍ट करने से कुछ नहीं होता। उन्‍हें पास की मान्‍यता प्राप्‍त लैब में भेजना भी होता है जिसमें काफी टाइम लग जाता है।
ICMR ने पूरा जोर लगा दिया कि भारत में टेस्टिंग की संख्‍या बढ़े। उसका असर भी दिखा है। फिलहाल भारत की क्षमता रोज 3 लाख टेस्‍ट करने की है। 17 जून को देश में 1.65 लाख सैंपल्‍स टेस्‍ट किए गए। इस तारीख तक भारत ने कुल 62.5 लाख टेस्‍ट कर लिए थे। देश में प्रति 1000 आबादी पर सिर्फ 4.3 टेस्‍ट हो रहे हैं जो कि सबसे ज्‍यादा केसेज वाले देशों के मुकाबले बेहद कम हैं। 11 राज्‍य ऐसे हैं जो नैशनल टेस्टिंग एवरेज से भी नीचे हैं।
दिल्‍ली में कोरोना टेस्‍ट कराने पर 2,400 रुपये का खर्च आता है। अलग-अलग राज्‍यों में टेस्‍ट के रेट अलग हैं। एक्‍सपर्ट्स कहते हैं कि ज्‍यादा संख्‍या में टेस्‍ट करने से प्रति टेस्‍ट लागत और कम हो सकती है। ब्‍लूमबर्गक्विंट की एक रिपोर्ट के मुताबिक, अगर कोई लैब 10 हजार सैंपल्‍स प्रोसेस करे तो टेस्टिंग किट के दाम 500 रुपये तक गिर सकते हैं और लागत में अच्‍छी-खासी कमी आ सकती है। इसकी वजह ये है कि एक वक्‍त में मशीन कई सैंपल प्रोसेस कर सकती है मगर उसे कम सैंपल्‍स मिलेंगे जो वह रिर्सासेज का अंडर-यूटिलाइजेशन होगा।
जॉन्‍स हॉपकिंस यूनिवर्सिटी की एक रिसर्च बताती है कि कोविड-19 के लिए जल्‍दी टेस्‍ट करने पर रिपोर्ट निगेटिव आ सकती है। लक्षण दिखने के करीब तीन दिन बाद टेस्‍ट करने पर उसी मरीज का रिजल्‍ट पॉजिटिव आ सकता है। रिसर्चर्स के मुताबिक, ऐसा इसलिए हो सकता है कि वो स्‍वाब का नमूना लिया गया उसमें वायरस से इन्‍फेक्‍टेड सेल्‍स नहीं थीं या तो वायरस का लेवल कम था। इन्‍फेक्‍शन के शुरुआत दिनों में वायरल लोड कम रहता है, ऐसे में टैस्‍ट निगेटिव आ सकता है। 1300 से ज्‍यादा सैंपल्‍स पर रिसर्च में पता चला कि जिन लोगों ने इन्फेक्‍शन के चार दिन बाद टेस्‍ट कराया था, उनमें से 67% के रिजल्‍ट निगेटिव आए। हालांकि लक्षण दिखने के बाद टेस्ट करने पर यह दर गिरकर 38% हो गई। रिसर्च यह भी कहती है क‍ि इन्‍फेक्‍शन के 8 दिन बाद भी टेस्‍ट कराने पर, 20% के रिजल्‍ट फाल्‍स निगेटिव रहे। यानी लक्षण दिखने पर टेस्‍ट कराना ज्‍यादा सही है।
इन प्रयासों का नतीजा है कि कर्नाटक के बड़े नगर पालिका और नगर निगम क्षेत्रों में आने वाली झुग्गियों-बस्तियों में कोरोना बड़े स्तर पर नहीं फैल पाया है। इन इलाकों में इंस्टिट्यूशनल क्वारंटीन अनिवार्य है। साथ ही दूसरे राज्यों से आने वाले लोगों को ‘सेवा सिंधु’ पोर्टल पर रजिस्टर करने और और फिर उन्हें क्वारंटीन करने की अनिवार्यता ने काफी हद तक मदद की है।
कर्नाटक: कोविड-19 वॉर रूम के प्रमुख ने कहा, ‘ज्यादातर लोगों की मौत अस्पताल पहुंचने में देरी से हुई’
क्वारंटीन का उल्लंघन करने पर इंस्टिट्यूशनल क्वारंटीन में भेजा जा रहा फील्ड वर्क्स क्वारंटीन का पालन करवाने के लिए ‘क्वारंटीन वॉच ऐप्स’ का इस्तेमाल कर रहे हैं। कर्नाटक ने लोगों के सहयोग से होम क्वारंटीन को सफल बनाने के लिए मोबाइल स्कॉड बनाए हैं। इनकी मदद से क्वारंटीन का उल्लंघन करने वालों पर नजर रखी जाती है और उन्हें इंस्टिट्यूशनल क्वारंटीन में भेज दिया जाता है।
कर्नाटक में अभी तक कोरोना के कुल 7944 मामले सामने आए हैं, जिसमें से 4811 मरीज ठीक होकर डिस्चार्ज हो गए हैं। राज्य में अब कोरोना के कुल 2843 ऐक्टिव केस हैं। तमाम प्रयासों का नतीजा है कि कर्नाटक में 115 लोगों की ही मौत हुई है। राज्य में 3016 लोगों को आइसोलेशन में रखा गया है।
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