#हिन्दूसाहेबान_नहींसमझे_गीतावेदपुराणPart44 के आगे पढिए.....)
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#हिन्दूसाहेबान_नहींसमझे_गीतावेदपुराणpart45
"पूजा तथा साधना में अंतर"
प्रश्न 41 :- यह भी कहते हो कि पूर्ण मोक्ष की प्राप्ति के लिए ब्रह्मा, विष्णु, शिव, गणेश तथा देवी और क्षर ब्रह्म व अक्षर ब्रह्म की साधना करनी पड़ती है। दूसरी ओर कह रहे हो कि ब्रह्मा, विष्णु, शिव अन्य देवता हैं, क्षर ब्रह्म भी पूजा (भक्ति) योग्य नहीं है। केवल परम अक्षर ब्रह्म की ही पूजा (भक्ति) करनी चाहिए?
उत्तर :- पहले तो यह स्पष्ट करता हूँ कि पूजा तथा साधना में क्या अन्तर है?
• प्राप्य वस्तु की चाह पूजा कही जाती है तथा उसको प्राप्त करने के प्रयत्न को साधना कहते हैं।
उदाहरण : जैसे हमें जल प्राप्त करना है। यह हमारा प्राप्य है। हमें जल की चाह है। जल की प्राप्ति के लिए हैण्डपम्प लगाना पड़ेगा। हैण्डपम्प लगाने के लिए जो-जो उपकरण प्रयोग किए जाएँगे, बोकी लगाई जाएगी, यह प्रयत्न है। इसी प्रकार परमेश्वर का वह परमपद प्राप्त करना हमारी चाह है, जहाँ जाने के पश्चात् साधक लौटकर संसार में नहीं आता।
हमारा प्राप्य परमेश्वर तथा उनका सनातन परम धाम है। उसको प्राप्त करने के लिए किया गया नाम जाप हवन-यज्ञ आदि-2 साधना है। उस साधना से पूज्य वस्तु परमात्मा प्राप्त होगा। जैसे प्रश्न 13 के उत्तर में स्पष्ट किया है, वही सटीक उदाहरण है। उस पूर्ण मोक्ष के लिए तीन बार में दीक्षा क्रम पूरा करना होता है।
1. प्रथम नाम दीक्षा = ब्रह्मा, विष्णु, शिव, गणेश, देवी के मन्त्रों की साधना दी जाती है।
2. दूसरी बार में क्षर ब्रह्म तथा अक्षर ब्रह्म के दो अक्षर मन्त्र जाप दिए जाते हैं जिसको सन्तों ने "सत् नाम" कहा है। गीता अध्याय 17 श्लोक 23 में तीन नाम हैं, "ओम्-तत्-सत्" इस सतनाम में दो अक्षर होते हैं, एक "ओम्" (ऊँ) दूसरा "तत्" है। (यह सांकेतिक अर्थात् गुप्त नाम है जो उपदेश के समय उपदेशी को ही बताया जाता है)
3. तीसरी बार में सारनाम की दीक्षा दी जाती है जिस मन्त्र को गीता अध्याय 17 श्लोक 23 में "सत्" कहा है, यह भी सांकेतिक है। उपदेश लेने वाले को दीक्षा के समय बताया जाता है। इस प्रकार पूर्ण मोक्ष प्राप्त होता है।
"श्री ब्रह्मा, विष्णु तथा शिव जी ईश (परमात्मा) नहीं हैं" लेखक : हिन्दू धर्म गुरू साहेबान श्री विष्णु जी यानि श्री कृष्ण जी को जगदीश (जगत+ ईश) यानि सारे संसार का प्रभु बताते हैं। पुराणों को सत्य मानते हैं।
पेश है सबूत श्री शिव महापुराण से (जो गीताप्रेस गोरखपुर से प्रकाशित है) कि श्री विष्णु जी, श्री ब्रह्मा जी तथा श्री शिव जी "ईश" नहीं हैं। (ये जगदीश नहीं हैं।) इनका जन्म-मृत्यु होता है। इनका पिता काल ब्रह्म है।
कृपया पढ़ें प्रमाण के लिए शिव महापुराण (श्री वैकंटेश्वर प्रेस मुबंई से प्रकाशित जिसमें संस्कृत यानि मूल पाठ भी लिखा है, साथ में हिन्दी अनुवाद भी किया है) के विद्येश्वर संहिता खंड के अध्याय 5-10 की फोटोकॉपी इसी पुस्तक के पृष्ठ 150 पर।
प्रश्न 42 :- हम चारों वेदों (ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद तथा अथर्ववेद), श्रीमद्भगवत गीता, अठारह पुराणों, महाभारत ग्रंथ तथा श्रीमद्भगवत सुधा सागर को सत्य शास्त्र मानते हैं। इन्हीं सग्रन्थों को आधार मानकर ज्ञान बताते हैं तथा साधना बताते हैं। श्री कृष्ण उर्फ श्री विष्णु, श्री शिव जी, श्री देवी दुर्गा की पूजा करने को कहते हैं। श्राद्ध करना बताते हैं। देव पूजा करते तथा करवाते हैं।
उत्तर :- दास (संत रामपाल दास) बताना चाहता है कि श्रीमद्भगवत गीता अध्याय 16 श्लोक 23-24 में कहा कि :-
अध्याय 16 श्लोक 23 जो पुरूष यानि साधक शास्त्रविधि को त्यागकर अपनी इच्छा से मनमाना आचरण करता है। (जो शास्त्रों में वर्णित साधना नहीं है, वह साधना शास्त्रविधि त्यागकर स्वइच्छा से आचरण करना कहा है। वह न सिद्धि को प्राप्त होता है, न परमगति को, न सुख को ही। सबूत के लिए पढ़ें गीता अध्याय 16 श्लोक 23 की फोटोकॉपी। इसी पुस्तक के पृष्ठ 86 पर। गीता अध्याय 16 श्लोक 24:- (हे अर्जुन!) इससे तेरे लिए कर्तव्य यानि जो साधना करनी चाहिए और अकर्तव्य यानि जो साधना नहीं करनी चाहिए, उसके लिए शास्त्र ही प्रमाण हैं। ऐसा जानकर तू शास्त्रविधि से नियत कर्म कर यानि शास्त्रों में जो नहीं लिखा, वह न कर। जो शास्त्रों में वार्णित है, वही साधना कर। पढ़ें प्रमाण के लिए गीता अध्याय 16 श्लोक 24 की फोटोकॉपी इसी पुस्तक के पृष्ठ 87 पर।
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आध्यात्मिक जानकारी के लिए आप संत रामपाल जी महाराज जी के मंगलमय प्रवचन सुनिए। Sant Rampal Ji Maharaj YOUTUBE चैनल पर प्रतिदिन 7:30-8.30 बजे। संत रामपाल जी महाराज जी इस विश्व में एकमात्र पूर्ण संत हैं। आप सभी से विनम्र निवेदन है अविलंब संत रामपाल जी महाराज जी से नि:शुल्क नाम दीक्षा लें और अपना जीवन सफल बनाएं।
https://online.jagatgururampalji.org/naam-diksha-inquiry
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"पूजा तथा साधना में अंतर"
प्रश्न 41 :- यह भी कहते हो कि पूर्ण मोक्ष की प्राप्ति के लिए ब्रह्मा, विष्णु, शिव, गणेश तथा देवी और क्षर ब्रह्म व अक्षर ब्रह्म की साधना करनी पड़ती है। दूसरी ओर कह रहे हो कि ब्रह्मा, विष्णु, शिव अन्य देवता हैं, क्षर ब्रह्म भी पूजा (भक्ति) योग्य नहीं है। केवल परम अक्षर ब्रह्म की ही पूजा (भक्ति) करनी चाहिए?
उत्तर :- पहले तो यह स्पष्ट करता हूँ कि पूजा तथा साधना में क्या अन्तर है?
• प्राप्य वस्तु की चाह पूजा कही जाती है तथा उसको प्राप्त करने के प्रयत्न को साधना कहते हैं।
उदाहरण : जैसे हमें जल प्राप्त करना है। यह हमारा प्राप्य है। हमें जल की चाह है। जल की प्राप्ति के लिए हैण्डपम्प लगाना पड़ेगा। हैण्डपम्प लगाने के लिए जो-जो उपकरण प्रयोग किए जाएँगे, बोकी लगाई जाएगी, यह प्रयत्न है। इसी प्रकार परमेश्वर का वह परमपद प्राप्त करना हमारी चाह है, जहाँ जाने के पश्चात् साधक लौटकर संसार में नहीं आता।
हमारा प्राप्य परमेश्वर तथा उनका सनातन परम धाम है। उसको प्राप्त करने के लिए किया गया नाम जाप हवन-यज्ञ आदि-2 साधना है। उस साधना से पूज्य वस्तु परमात्मा प्राप्त होगा। जैसे प्रश्न 13 के उत्तर में स्पष्ट किया है, वही सटीक उदाहरण है। उस पूर्ण मोक्ष के लिए तीन बार में दीक्षा क्रम पूरा करना होता है।
1. प्रथम नाम दीक्षा = ब्रह्मा, विष्णु, शिव, गणेश, देवी के मन्त्रों की साधना दी जाती है।
2. दूसरी बार में क्षर ब्रह्म तथा अक्षर ब्रह्म के दो अक्षर मन्त्र जाप दिए जाते हैं जिसको सन्तों ने "सत् नाम" कहा है। गीता अध्याय 17 श्लोक 23 में तीन नाम हैं, "ओम्-तत्-सत्" इस सतनाम में दो अक्षर होते हैं, एक "ओम्" (ऊँ) दूसरा "तत्" है। (यह सांकेतिक अर्थात् गुप्त नाम है जो उपदेश के समय उपदेशी को ही बताया जाता है)
3. तीसरी बार में सारनाम की दीक्षा दी जाती है जिस मन्त्र को गीता अध्याय 17 श्लोक 23 में "सत्" कहा है, यह भी सांकेतिक है। उपदेश लेने वाले को दीक्षा के समय बताया जाता है। इस प्रकार पूर्ण मोक्ष प्राप्त होता है।
"श्री ब्रह्मा, विष्णु तथा शिव जी ईश (परमात्मा) नहीं हैं" लेखक : हिन्दू धर्म गुरू साहेबान श्री विष्णु जी यानि श्री कृष्ण जी को जगदीश (जगत+ ईश) यानि सारे संसार का प्रभु बताते हैं। पुराणों को सत्य मानते हैं।
पेश है सबूत श्री शिव महापुराण से (जो गीताप्रेस गोरखपुर से प्रकाशित है) कि श्री विष्णु जी, श्री ब्रह्मा जी तथा श्री शिव जी "ईश" नहीं हैं। (ये जगदीश नहीं हैं।) इनका जन्म-मृत्यु होता है। इनका पिता काल ब्रह्म है।
कृपया पढ़ें प्रमाण के लिए शिव महापुराण (श्री वैकंटेश्वर प्रेस मुबंई से प्रकाशित जिसमें संस्कृत यानि मूल पाठ भी लिखा है, साथ में हिन्दी अनुवाद भी किया है) के विद्येश्वर संहिता खंड के अध्याय 5-10 की फोटोकॉपी इसी पुस्तक के पृष्ठ 150 पर।
प्रश्न 42 :- हम चारों वेदों (ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद तथा अथर्ववेद), श्रीमद्भगवत गीता, अठारह पुराणों, महाभारत ग्रंथ तथा श्रीमद्भगवत सुधा सागर को सत्य शास्त्र मानते हैं। इन्हीं सग्रन्थों को आधार मानकर ज्ञान बताते हैं तथा साधना बताते हैं। श्री कृष्ण उर्फ श्री विष्णु, श्री शिव जी, श्री देवी दुर्गा की पूजा करने को कहते हैं। श्राद्ध करना बताते हैं। देव पूजा करते तथा करवाते हैं।
उत्तर :- दास (संत रामपाल दास) बताना चाहता है कि श्रीमद्भगवत गीता अध्याय 16 श्लोक 23-24 में कहा कि :-
अध्याय 16 श्लोक 23 जो पुरूष यानि साधक शास्त्रविधि को त्यागकर अपनी इच्छा से मनमाना आचरण करता है। (जो शास्त्रों में वर्णित साधना नहीं है, वह साधना शास्त्रविधि त्यागकर स्वइच्छा से आचरण करना कहा है। वह न सिद्धि को प्राप्त होता है, न परमगति को, न सुख को ही। सबूत के लिए पढ़ें गीता अध्याय 16 श्लोक 23 की फोटोकॉपी। इसी पुस्तक के पृष्ठ 86 पर। गीता अध्याय 16 श्लोक 24:- (हे अर्जुन!) इससे तेरे लिए कर्तव्य यानि जो साधना करनी चाहिए और अकर्तव्य यानि जो साधना नहीं करनी चाहिए, उसके लिए शास्त्र ही प्रमाण हैं। ऐसा जानकर तू शास्त्रविधि से नियत कर्म कर यानि शास्त्रों में जो नहीं लिखा, वह न कर। जो शास्त्रों में वार्णित है, वही साधना कर। पढ़ें प्रमाण के लिए गीता अध्याय 16 श्लोक 24 की फोटोकॉपी इसी पुस्तक के पृष्ठ 87 पर।
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यूपी में शिक्षकों और शिक्षा मित्रों को 20 जुलाई से दी जाएगी ऑनलाइन ट्रेनिंग, देखें पूरा शेड्यूल यूपी में प्राइमरी स्कूलों के शिक्षकों, शिक्षा मित्रों और प्रशिक्षकों को 20 जुलाई से 14 अगस्त तक प्रशिक्षण दिया जाएगा। वहाँ इसके लिए एआरपी व एसआरजी को 6 से 17 जुलाई तक प्रशिक्षण किया जाएगा ।... Source link
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बहिर मातृका न्यासम का प्रदर्शन
सोमशेखर शिवाचार्य द्वारा सिखाया गया,शिव आगमों के अनुसार बहिर मातृका न्यासम का प्रदर्शन, जैसा कि आदि कैलाश नित्यानंद सर्वज्ञपीठम में एक गुरुकुल बालसंत द्वारा प्रदर्शित किया गया।
मातृका न्यासम को बहिर (बाहरी) मातृका न्यास और अंतर (आंतरिक) मातृका न्यास में विभाजित किया जा सकता है। यह एक तांत्रिक प्रक्रिया है जहां हम संस्कृत के सभी अक्षरों का उपयोग करके अपने शरीर को एक देवता ( शैववाद मे परमशिव के रूप में ) के लिए समर्पित करते हैं। संस्कृत अक्षरों को माता माना जाता है। यह प्रक्रिया एक अनुष्ठान के दौरान की जाती है, उदाहरण के लिए, रुद्र होम (शैव आगम के अनुसार) के दौरान।
कृपया बिना मार्गदर्शन या दीक्षा के यह न्यास न करें। इस प्रक्रिया का एक विशिष्ट उद्देश्य है और इसे पारंपरिक रूप से नहीं किया जा सकता है। न्यास को शुरू से सीखने के लिए एक उपकरण के बजाय एक मार्गदर्शन के रूप में इस वीडियो का उपयोग करें।
#nyasa
#Nithyananda
#RevivalofKalilasa
#nithyanandhealth
https://fb.watch/de9oT6u5PO/
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#FridayThoughts
अध्यात्म में मूल रूप में पूज्य, पूजा, साधक तथा साधना शब्द आते हैं, जिनको समझना अनिवार्य है।
���स के साथ-साथ आध्यात्म ज्ञान बहुत महत्वपूर्ण है, उसको जानना चाहिए।
पूज्य :- परमेश्वर जिसे हम प्राप्त करने की इच्छा रखते हैं।
पूजा, अर्थात भक्ति :- जिस परमेश्वर को हम प्राप्त करना चाहते हैंउस के गुणों का ज्ञान हमें होता है, फिर उसकी प्राप्ति के लिए तड़फ, समर्पण,तथा आस्था अटूट श्रद्धा यह पूजा कहलाती है।
साधक :- परमेश्वर की प्राप्ति के लिए कमर कसकर प्रयत्न करनेवाला व्यक्ति साधक कहा जाता है, इसे पुजारी भी कह सकते हैं तथा भक्त भी।
साधना :- परमेश्वर अर्थात पूज्य पदार्थ की प्राप्ति के लिए किया जानेवाला प्रयत्न साधना कहलाती है।
उदाहरण :- जैसे किसी को पीने के पानी की आवश्यकता है, उसको ज्ञान हुआ कि पृथ्वी में नीचे पीने का मीठा पानी है, यह पूज्य पदार्थ हुआ अर्थात् पानी पूज्य वस्तु है। उसके प्राप्ति के लिए किया जाने वाला प्रयत्न ‘साधना‘ कहलाती है, जैसे बोकी लगाना, पाईप जमीन में डालना, फिर ऊपर हैंडपम्प लगाकर हैंडल से पम्प चलाना फिर पानी निकलता है।
पानी पूज्य हुआ, इसकी इच्छा करने वाला भक्त साधक हुआ।उसके पाने के लिए जो प्रयत्न मजदूरी की वह साधना हुई। पानी को प्राप्ति की इच्छा ‘पूजा‘ कहलाती है। साधना में प्रयोग किए गए उपकरण पूज्य नहीं होते परन्तु आदरणीय होते हैं। उनका विशेष ध्यान रखा जाता है।
=-=-=-=-=-=-=-=-=-=-=-=-=-=-=-=-=-=-= आप PlayStore पर Sant Rampal Ji Maharaj App डाउनलोड कर सकते हैं |आध्यात्मिक जानकारी के लिए आप संत रामपाल जी महाराज जी के मंगलमय प्रवचन सुनिए साधना टीवी पर प्रतिदिन 7:30-8.30 बजे..... Sant Rampal Ji Maharaj YOUTUBE चैनल पर प्रतिदिन 7:30-8.30 बजे। संत रामपाल जी महाराज जी इस विश्व में एकमात्र पूर्ण संत हैं। आप सभी से विनम्र निवेदन है अविलंब संत रामपाल जी महाराज जी से नि:शुल्क नाम दीक्षा लें और अपना जीवन सफल बनाएं।।संत रामपाल जी महाराज जी से निशुल्क नाम दीक्षा प्राप्त करने के लिए या अपना नज़दीकी नामदान केंद्र पता करने के लिए हमें +91 8222880541 नंबर पर कॉल करें ।
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अध्यात्म में मूल रूप में पूज्य, पूजा, साधक तथा साधना शब्द आते हैं, जिनको समझना अनिवार्य है।
इस के साथ-साथ आध्यात्म ज्ञान बहुत महत्वपूर्ण है, उसको जानना चाहिए।
पूज्य :- परमेश्वर जिसे हम प्राप्त करने की इच्छा रखते हैं।
पूजा, अर्थात भक्ति :- जिस परमेश्वर को हम प्राप्त करना चाहते हैंउस के गुणों का ज्ञान हमें होता है, फिर उसकी प्राप्ति के लिए तड़फ, समर्पण,तथा आस्था अटूट श्रद्धा यह पूजा कहलाती है।
साधक :- परमेश्वर की प्राप्ति के लिए कमर कसकर प्रयत्न करनेवाला व्यक्ति साधक कहा जाता है, इसे पुजारी भी कह सकते हैं तथा भक्त भी।
साधना :- परमेश्वर अर्थात पूज्य पदार्थ की प्राप्ति के लिए किया जानेवाला प्रयत्न साधना कहलाती है।
उदाहरण :- जैसे किसी को पीने के पानी की आवश्यकता है, उसको ज्ञान हुआ कि पृथ्वी में नीचे पीने का मीठा पानी है, यह पूज्य पदार्थ हुआ अर्थात् पानी पूज्य वस्तु है। उसके प्राप्ति के लिए किया जाने वाला प्रयत्न ‘साधना‘ कहलाती है, जैसे बोकी लगाना, पाईप जमीन में डालना, फिर ऊपर हैंडपम्प लगाकर हैंडल से पम्प चलाना फिर पानी निकलता है।
पानी पूज्य हुआ, इसकी इच्छा करने वाला भक्त साधक हुआ।उसके पाने के लिए जो प्रयत्न मजदूरी की वह साधना हुई। पानी को प्राप्ति की इच्छा ‘पूजा‘ कहलाती है। साधना में प्रयोग किए गए उपकरण पूज्य नहीं होते परन्तु आदरणीय होते हैं। उनका विशेष ध्यान रखा जाता है।
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