#अनोखा किस्सा
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‘मी खाली वाकून दोनच व्यक्तींच्या पाया पडलो, एक….’, नितीन गडकरी यांनी सांगितला अनोखा किस्सा
नाशिक : केंद्रीय मंत्री नितीन गडकरी (Nitin Gadkari) यांनी आज दिवंगत भाजप नेते गोपीनाथ मुंडे यांच्या आठवणींना उजाळा दिला. आपल्या राजकीय कारकिर्दीच्या सुरुवातीला गोपीनाथ मुंडे (Gopinath Munde) यांचं चांगलं सहकार्य लाभलं. गोपीनाथ मुंडे हे आपले नेते होते, असं नितीन गडकरी म्हणाले. नितीन गडकरी यांनी यावेळी एक किस्सा सांगितला. आपण भाजप पक्षाचे राष्ट्रीय अध्यक्ष झाल्यानंतर इंदूरमध्ये मोठ्या कार्यक्रमाचं…
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#BJP Gopinath Munde#BJP Leader Nitin Gadkari#BJP Nitin Gadkari#Nashik News#Political News#अनोखा किस्सा#नितीन गडकरी
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#NewsUpdate || मध्यप्रदेश || दमोह
मध्यप्रदेश के बाबा गोपालपुरी का अनोखा हठ योग, 6 साल से एक हाथ आसमान की तरफ है, राम जी के भक्त हैं गोपाल पूरी जी
भक्त भगवान पाने की चाहत में क्या-क्या नहीं करते हैं। ऐसा ही किस्सा मध्यप्रदेश के जिला दमोह के जिला मुख्यालय से 30 किलोमीटर दूर स्थित पथरिया के शनि सिद्ध धाम एक हठ योगी महंत का है। जिनका नाम है बाबा गोपाल पुरी। बाबा गोपाल पुरी श्रीराम जी के भक्त हैं। वे अपने एक हाथ को बीते छः सालों से आसमान की तरफ़ उठा के चौबीसों घंटो रखे हुए हैं।
उनका कहना है कि श्रीराम जी ने चौदह साल वनवास में कष्ट उठाए थे। वह उनके भक्त हैं और उन्होंने अपने एक हाथ को चौदह वर्षों के लिए भगवान को समर्पित कर दिया है। अपने एक हाथ का इस्तेमाल वह चौदह वर्षों तक नहीं करेंगे। उनका एक हाथ चौबीसों घंटे ऊपर रहने से रक्त संचार की कमी से दुर्बल हो गया है और नाखून भी काफ़ी बढ़ चुके है जिनको वें नहीं कांटते है।
अब सवाल ये है कि क्या इस प्रकार के मुनमुखी हठ योग से भगवान की प्राप्ति संभव है? कदापि नहीं! गीता जी अध्याय 3 के श्लोक 8 में कर्तव्य कर्म करने के लिए कहा गया है। कर्म न करने (हठयोग) की अपेक्षा कर्म करते हुए भक्ति साधना करने को श्रेष्ठ बताया गया है।
गीता जी अध्याय 16 के श्लोक 23 में भी कहा है कि जो व्यक्ति शास्त्र विधि को त्यागकर मनमाना आचरण करता है, उनको न कोई सुख की प्राप्ति होती है और न ही परमगति को यानी शास्त्र विरुद्ध साधना व्यर्थ की क्रिया है। वर्तमान समय में शास्त्र अनुकूल साधना केवल जगतगुरु तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज बता रहे है। उनके द्वारा बताई भक्ति की विधि से साधक आध्यात्मिक सुख और परमगति को प्राप्त कर सकता है।
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shah rukh suriya did not charge single penny for their work in r madhvan film rocketry the nambi effect- आर माधवन की 'रॉकेट्री: द नांबी इफेक्ट' में सूर्या और शाहरुख ने नहीं ली फीस, फ्री में किया काम
shah rukh suriya did not charge single penny for their work in r madhvan film rocketry the nambi effect- आर माधवन की ‘रॉकेट्री: द नांबी इफेक्ट’ में सूर्या और शाहरुख ने नहीं ली फीस, फ्री में किया काम
बॉलीवुड अभिनेता आर माधवन की फिल्म ‘रॉकेटरी: द नांबी इफेक्ट’ 1 जुलाई, 2022 को रिलीज होगी। इसके अलावा इसमें शाहरुख खान और सूर्या भी नजर आएंगे। आर माधवन फिलहाल रिलीज से पहले फिल्म का प्रमोशन कर रहे हैं। सोमवार को वह ऐसी ही एक फिल्म के प्रमोशन के लिए पहुंचे। वहां उन्होंने इस फिल्म से जुड़ा एक अनोखा किस्सा बताया। उन्होंने बताया कि कैसे शाहरुख खान ने प्रोजेक्ट में हिस्सा लेने की इच्छा जताई थी। यह…
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Latest Hindi News : Ajibo-garib - 5th Floor से गिरा बच्चा, लेकिन फिर हुआ चमत्कार.
नयी दिल्ली, TPS डेस्क: हरदोई जिले का अनोखा किस्सा, खेलते हुए डेढ़ साल का बच्चा 5 मंजिल से गिरा,पर सही सलामत उठ खड़ा हुआ. बात हरदोई जिले की है जहां एक अस्पताल की इमारत को बना रहे मजदूर का डेढ़ साल का बच्चा खेलते -खेलते पांचवी मंजिल से नीचे गिर जा गिरा. आसपास के लोगों ने जब यह मंजर देखा तो वहीं खड़े के खड़े रह गए. बच्चे की मां ने जब यह देखा तो माँ भागती हुई बच्ची के पास पहुंची उस को गोद में लेकर जोर जोर से रोने लगी और मदद की गुहार लगाने लगी. वहाँ पर काम कर रहे मजदूर भी दौड़े भागे देखने आए कि बच्चा जिंदा भी बचा है या नहीं. ज़ाहिर है ऐसी हालत में सब अपने होश खो बैठते हैं. लेकिन फिर जो हुआ वह किसी अजूबे से कम नहीं था, इसे कुदरत का करिश्मा कहना गलत नहीं होगा. वह बच्चा सही सलामत था और थोड़ी देर में उठ खड़ा हुआ. बच्चे को देख आसपास के लोग हक्के बक्के रह गए और लोगो की खुशी का ठिकाना नहीं रहा. बच्चे की मां जो रो-रोकर बेहाल थी वह भी अपने बच्चे को सही सलामत देख खुशी से फूली नहीं समा रही थी.
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KISSA-A-IAS: IAS नहीं होता तो यह डॉक्टर देश का अग्रणी न्यूरो सर्जन होता!
आज इस कॉलम में मैं किसी ऐसे IAS का किस्सा नहीं सुनाऊंगा, जिसने विपरीत परिस्थितियों में अपनी पढ़ाई की और UPSC की परीक्षा पास की। किसी ऐसे IAS के बारे में भी नहीं बताऊंगा, जिनकी प्रतिभा अद्भुत थी और वे बहुत कम उम्र में IAS बन गए थे। बल्कि, इस बार का कॉलम उस IAS पर केंद्रित है जो डॉक्टर है और IAS नहीं होते तो आज देश के अग्रणी न्यूरो सर्जन होते! उनके बारे में कहा जाता है कि वे जहां भी रहे अपने अनोखे कामकाज की वजह से पहचाने गए। वे जमीन से जुड़कर रहते हैं और आप लोगों की परेशानियों से सरोकार रखते हैं। ऐसे लोग कुछ ऐसा नहीं करते जो अनोखा हो, पर जो करते हैं उसका तरीका जरूर अनोखा होता है।
हम यहां बात कर रहे हैं आदिवासी बहुल जिले धार के कलेक्टर डॉ पंकज जैन की, जो 2012 बैच के IAS है। उनके ट्विटर हैंडल पर उन्होंने अपना परिचय कुछ इस अंदाज़ में लिखा है: मेडिकल डॉक्टर, हॉफवे न्यूरो सर्जन बाय एजुकेशन, पब्लिक सर्वेंट बाय प्रोफेशन, मेराथानर बाय इंटरेस्ट।
वे आज भी अपने आपको पहले डॉक्टर मानते हैं और इसलिए माना जा सकता है क��� उनमें संवेदनशीलता के गुण अतिरिक्त रूप से है। उन्हे ऐसे लोगों में गिना जा सकता है, जो जमीन से जुड़कर उन लोगों के साथ खड़े होते हैं, जिन्हें मदद की जरुरत है। वे जहां भी रहे, अपने कामकाज के तरीके से लोगों के लिए मिसाल बन गए। अपनी बेटी का दाखिला किसी बड़े नर्सरी स्कूल की जगह आंगनबाड़ी में करवाना ऐसी ही घटना है। जबकि, इस स्तर के अधिकारियों के बच्चे किसी इंटरनेशनल स्कूल में पढ़ते हैं! लेकिन, डॉ पंकज जैन ने जो किया उस घटना ने सबको चौंकाया तो था!
KISSA-A-IAS
यदि किसी IAS दंपत्ति की बेटी की पढाई आंगनवाड़ी से शुरू हो तो इसे क्या माना जाएगा! पिता और माता दोनो कलेक्टर, अपनी बेटी की पढ़ाई सामान्य तरीके से। उसके लिए अलग से कोई इंतजाम नहीं! वह सामान्य बच्चों के साथ जमीन पर बैठकर पढ़ती है। उनकी बेटी के साथ आंगनबाड़ी केंद्र में किसी ऑटो चालक का बेटा तो किसी मजदूर का बच्चा भी पढ़ता है। ये किस्सा है IAS डॉ पंकज जैन और उनकी पत्नी डॉ तन्वी सुंद्रियाल (जैन) की बेटी पंखुड़ी का। उस आंगनवाड़ी केंद्र के बच्चों को खुशी तब मिलती है, जब पंखुड़ी के पिता आते तो सभी बच्चों को चॉकलेट बांटते थे। इसलिए बच्चे उन्हें टॉफी वाले अंकल कहते थे। इस बारे में डॉ पंकज जैन का कहना है कि हम पहल करेंगे, तो दूसरे लोग भी सामने आएंगे।
तन्वी 2010 बैच की IAS हैं, जबकि, डॉ पंकज जैन 2012 बैच के हैं। ये घटना तब की है, जब 2019 में वे कटन��� में कलेक्टर बनाए गए थे।
डॉ पंकज जैन का कहना था कि पंखुड़ी जिस आंगनबाड़ी में पढ़ने जाती है, उस केंद्र के अलावा आसपास के चार-पांच केंद्र किसी प्ले-स्कूल से कम नहीं हैं। जब जिम्मेदार अधिकारी अपने बच्चों को ऐसी जगह भेजेंगे तो वहां के हालात अपने आप सुधर जाते हैं। वहां कोई कमी होती है, तो उसमें जल्दी सुधार भी आ जाता है। प्रदेश की तत्कालीन राज्यपाल आनंदी बेन पटेल को जब इस बात की जानकारी मिली, तो उन्होंने भी डॉ पंकज जैन को बधाई देते हुए उन्हें एक लेटर जारी किया था। राज्यपाल ने लिखा था लोक सेवक समाज में प्रेरणा के केंद्र होते हैं, उनके आचरण का समाज पालन करता है। कर्तव्यों के प्रति आपकी सहजता ने मुझे काफी ज्यादा प्रभावित किया है, आपके इस प्रयास से शासकीय सेवकों का दायित्व बोध बढ़ेगा! सरकार की कल्याणकारी योजनाओं के प्रभावी संचालन के प्रति सकारात्मक चेतना का संचार होगा। आशा है लोक सेवक के रूप में इसी निष्ठा और समर्पण के साथ जनसेवा में लगे रहेंगे।
सिर्फ यही एक घटना नहीं है, जिसने डॉ पंकज जैन को सबसे अलग खड़ा किया! वे जब मार्च 2019 में कटनी के कलेक्टर बनाए गए थे, तब कटनी में ट्रेन से उतरकर स्टेशन से सर्किट हाउस तक ऑटो से पहुंचे थे।
वे पेशेवर डॉक्टर हैं और कई साल तक दिल्ली के अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (AIIMS) नई दिल्ली में न्यूरो सर्जन रहे। डॉ पंकज ने 2006 में न्यूरो सर्जन के रूप में देश के इस सबसे बड़े चिकित्सा संस्थान में ज्वाइन किया। लेकिन, वे शीघ्र ही चिकित्सा क्षेत्र के कर्मशलाइजेशन से फेड अप हो गए। उन्हें लगा कि इस प्रोफेशन के माध्यम से वे जनता की और ज्यादा से ज्यादा लोगों की सेवा नहीं कर पाएंगे जो वह चाहते हैं और जो उनकी भावना है। उन्हें यह महसूस हुआ कि इस कार्य के लिए IAS ही एक मात्र माध्यम है।
उन्होंने 2011 में यूपीएससी की परीक्षा दी। पहले अटेम्प्ट में 594 रैंक आने पर उस साल IAS में चयन नहीं हो सका। उन्होंने फिर प्रयास किया और अगले साल 2012 में वे कामयाब हुए। UPSC में 15वीं रैंक मिली और इस प्रकार वे देश की सबसे महत्वपूर्ण और प्रतिष्ठित सेवा के अंग बन गए।
फ़िलहाल वे धार कलेक्टर हैं और यहां भी उनकी नवाचार की गतिविधियां जारी हैं। एक मंगलवार को जनसुनवाई में गुहार लेकर आए एक वृद्ध की नब्ज जांच ली। अनारद गांव के ये वृद्ध ��ीमारी को लेकर आर्थिक सहायता मांगने आए थे। कलेक्टर डॉ पंकज जैन जो खुद ही न्यूरो सर्जन हैं, उन्होंने वृद्ध से बीमारी के बारे में पूछा तो उसने बताया कि हाथ में दिक्कत है। कलेक्टर ने सुनवाई के बीच ही वृद्ध के हाथ को चेक किया और कहा कि आपको कोई बीमारी नहीं है, सिर्फ फिजियोथैरेपी की जरूरत है। फिर उन्होंने जिला अस्पताल के डॉक्टर को बुलाकर कहा कि इनकी फिजियोथेरेपी के इंतजाम किए जाएं।
डॉ पंकज जैन जब विदिशा में कलेक्टर थे, तब भी उन्होंने लीक से हटकर कई काम किए। एक बार जब वे सिरोंज तहसील के अथाईखेड़ा गए थे, तो एक किसान गंगाराम यादव ने कलेक्टर के सामने कुछ ऐसा कर दिया कि कलेक्टर से देखा नहीं गया! जहां किसान गंगाराम यादव झुककर कलेक्टर के सामने झुककर हाथ जोड़े नजर आए तो जवाब में कलेक्टर ने भी ऐसा किया। यह नज़ारा देखकर हर कोई हैरान था। उनकी यह तस्वीर भी सोशल मीडिया पर जमकर सुर्खी बनी थी।
दरअसल, किसान गंगाराम को बहुत बड़ा नुकसान हुआ था। उसका घर गिर गया था और खाने, पीने, पहनने, बिछाने सहित घर का सारा सामान ख़राब हो गया था। सारा सामान मिट्टी में दब गया था। कलेक्टर खुद किसान की समस्या हल करने पहुंचे थे। इससे किसान बहुत भावुक हो गया। उसने कलेक्टर को अपनी समस्याएं बताई और उनसे मदद की गुहार की। किसान ने कलेक्टर से घर, खाने-पीने और अनाज आदि की व्यवस्था के लिए कहा। इतना कहने के बाद किसान कलेक्टर के आगे झुकने लगा, तो डॉ पंकज जैन भी किसान के आगे हाथ जोड़कर पूरा झुक गए। उन्होंने किसान से ऐसा न करने के लिए कहा और किसान को हरसंभव मदद का भरोसा दिलाया। उन्होंने कहा कि हम आपकी समस्या सुनने और उनका निराकरण करने के लिए ही आए हैं। धैर्य से काम लें, आपकी सरकार सारी मदद करेगी।
प्रशासनिक अधिकारी के रूप में डॉक्टर पंकज जैन की छवि बिना पक्षपात किए ईमानदारी से कार्य करने की रही है। इसलिए जब विदिशा में रहे तो स्थानीय नेताओं से उनकी पटरी लंबे समय तक नहीं बैठ सकी। लेकिन, मुख्यमंत्री उनके काम से खुश थे इसलिए उनका तबादला नहीं हो सका। जब बहुत दबाव आया तो मुख्यमंत्री ने उन्हें आदिवासी बहुल धार जिले का कलेक्टर बनाकर भेजा, ताकि वे समाज के पिछड़े और गरीब तबके के लोगों की सेवा कर सकें।
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कलयुग की बहू ससुर के आखिरी शब्द थे," मेरी बहु नहीं ,तुम मेरा बेटा हो"! भारतीय समाज में नारी की स्थिति अधिक संतोषजनक नहीं है, शादी के बाद यदि स्त्री को किसी कारणवश पति द्वारा त्याग दिया जाता है तो, या तो ससुर��ल वाले भी उसे त्याग देते हैं, या वह स्त्री ही ससुराल छोड़ कर चली जाती है। ऐसे में यह किस्सा बहुत ही प्रेरणादायक और अपनेआप में अनोखा है।यह कहानी है, करनाल के न्यू चार चमन निवासी नीतू अरोड़ा जी की, जिन्होंने पुत्रवधू होते हुए भी पुत्र से अधिक कर्तव्य निभा कर साबित कर दिया कि रिश्ते केवल नाम और खून के नही अपितु प्यार और अपनेपन के भी होते हैं।मंगतराम जी के पुत्र एवं नीतू जी के पति हर्षदीप ने अपने पिता, पत्नी और दो बेटियों को छोड़कर दूसरी स्त्री के चक्कर में परिवार से किनारा कर लिया, लेकिन पुत्रवधू ने ससुर की बेटे की तरह सेवा कर रिश्तों की दिल छू लेने वाली कहानी लिख दी। नीतू ने तय किया वह बुजुर्ग को अकेला और निराश्रित छोड़कर नहीं जाएगी। वहीं रहेगी। उनके साथ। बेटा बन कर। वह अपनी दो बेटियों के साथ बुजुर्ग ससुर के साथ ही रहीं।नीतू जी अपने ससुर मंगतराम जी की पिछले दस वर्ष से सेवा सुश्रूषा कर रही थीं। मंगतराम जी का बेटा हर्षदीप जब दूसरी महिला के लिए घर छोड़ गया तो मंगतराम ने भी उससे अपने पुत्र होने का हक छीन लिया। उन्होंने बेटे को घर से बेदखल कर दिया और अपनी सारी संपत्ति अपनी पुत्रवधू व अपनी दो पोतियों के नाम कर दी। इतना ही नहीं उन्होंने ऐतिहासिक फैसला लेते हुए अपने निधन के बाद मुखाग्नि का अधिकार भी अपनी पुत्रवधू को ही दिया, जिसे नीतू ने पूरा किया। 80 वर्षीय बुजुर्ग ससुर मंगतराम का गत दिवस लंबी बीमारी के बाद निधन हो गया। अर्थी उठाते समय नीतू खुद आगे आई और ससुर की अर्थी को कंधा दिया। पिता तुल्य ससुर के चले जाने से वह गमजदा थीं। आंखों में आंसू थे, लेकिन वह पूरी मजबूती से अर्थी को लेकर श्मशान घाट पहुंची। उन्हें मुखाग्नि दी और अंतिम संस्कार की हर परंपरा निभाई।करनाल की यह घटना देश की पहली घटना होगी कि पुत्रवधू ने ससुर की अर्थी को कंधा दिया, मुखाग्नि दी। अब अस्थियों के विर्सजन और रस्म पगड़ी की तैयारी कर रही है।ऐसे प्रेरणादायक किस्से हमें बताते हैं कि रिश्ते किसी नाम या खून के मोहताज नही होते बस दिलों में अपनेपन का भाव होना चाहिए।
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11 साल बिस्तर पर पड़ा रहा छात्र, जब डॉक्टरों ने मानी हार तो खुद रिसर्च कर करवाया इलाज
चैतन्य भारत न्यूज करीब 11 साल तक बिस्तर पर पड़े रहने वाले कॉलेज के एक छात्र का अनोखा किस्सा सामने आया है। दरअसल छात्र की बीमारी का इलाज करने में जब सारे डॉक्टर नाकामयाब हो गए तो उसने खुद मेडिकल की रिसर्च पढ़ी और इसके जरिए सर्जरी करवाकर अपना इलाज खुद करवाया। यह मामला अमेरिका का है।
अमेरिका की रॉकहर्ट्स यूनिवर्सिटी में पढ़ने वाले डौग लिंडसे 1999 में जब 21 साल के थे, तब वह घर पर बेहोश होकर डाइनिंग टेबल से गिर पड़े। जिसके बाद वह बार-बार बेहोश होने लगे। उनके दिल की धड़कन धीरे होने लगती थी। वह कमजोर महसूस करने लगे। जानकारी के मुताबिक, लिंडसे एक समय में केवल 50 फीट तक ही चल सकते थे और कुछ ही मिनटों से ज्यादा नहीं खड़े हो सकते थे। वहीं डॉक्टर भी नहीं समझ पा रहे थे कि आखिर उन्हें हुआ क्या है।
डॉक्टरों ने लिंडसे की बीमारी को थॉयराइड से जुड़ा बताया लेकिन इलाज नहीं कर सके। इसके बाद लिंडसे ने खुद करीब ढाई हजार पेज की एंडोक्रिनोलॉजी (अंत:स्राव विद्या) पुस्तक पढ़ी। साल 2010 में लिंडसे को पता चला कि उसके एड्रीनल ग्लेंड्स (अधिवृक्क ग्रंथी) में ट्यूमर है। इसके बाद लिंडसे ने अपने वैज्ञानिक दोस्त की मदद से सर्जरी करवाई। वह चलने-फिरने लगे। 2014 तक वह पूरी तरह दौड़ने-भागने लगे।
आज के समय में लिंडसे पूरी तरह स्वस्थ है और अब वे मोटिवेशनल क्लासेस भी लेते हैं। बीमारी के दौरान लिंडसे को लगभग 22 घंटे बिस्तर पर गुजारना पड़ता था। खबरों के मुताबिक, जब लिंडसे छोटे थे तब उनकी मां और मौसी को भी यही बीमारी थी। Read the full article
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Latest Hindi News : Ajibo-garib - 5th Floor से गिरा बच्चा, लेकिन फिर हुआ चमत्कार.
नयी दिल्ली, TPS डेस्क: हरदोई जिले का अनोखा किस्सा, खेलते हुए डेढ़ साल का बच्चा 5 मंजिल से गिरा,पर सही सलामत उठ खड़ा हुआ. बात हरदोई जिले की है जहां एक अस्पताल की इमारत को बना रहे मजदूर का डेढ़ साल का बच्चा खेलते -खेलते पांचवी मंजिल से नीचे गिर जा गिरा. आसपास के लोगों ने जब यह मंजर देखा तो वहीं खड़े के खड़े रह गए. बच्चे की मां ने जब यह देखा तो माँ भागती हुई बच्ची के पास पहुंची उस को गोद में लेकर जोर जोर से रोने लगी और मदद की गुहार लगाने लगी. वहाँ पर काम कर रहे मजदूर भी दौड़े भागे देखने आए कि बच्चा जिंदा भी बचा है या नहीं. ज़ाहिर है ऐसी हालत में सब अपने होश खो बैठते हैं. लेकिन फिर जो हुआ वह किसी अजूबे से कम नहीं था, इसे कुदरत का करिश्मा कहना गलत नहीं होगा. वह बच्चा सही सलामत था और थोड़ी देर में उठ खड़ा हुआ. बच्चे को देख आसपास के लोग हक्के बक्के रह गए और लोगो की खुशी का ठिकाना नहीं रहा. बच्चे की मां जो रो-रोकर बेहाल थी वह भी अपने बच्चे को सही सलामत देख खुशी से फूली नहीं समा रही थी.
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उत्तर प्रदेश मे कई जिलें मे अंधविश्वास व्याप्त- अजीब तरीके अपनाकर भगा रहे कोरोना
देश में कोरोना की दूसरी लहर का कहर कमजोर पड़ता नज़र आ रहा है. तीसरी लहर की आशंका के साथ ही उससे निपटने की तैयारियां ज़ोरों से शुरू हो गई , टीकाकरण भी तेजी से हो रहा है. लेकिन इससे कोरोना के खिलाफ लड़ाई में उत्तर प्रदेश ही नहीं बल्कि देश के कई हिस्सों में अंधविश्वास भी दिखाई दे रहा है. कहीं लोग हवन की धूनी जमा रहे हैं तो कहीं नदियों के किनारे जल अर्पण ,कहीं पीपल के पेड़ के नीचे बैठकर ऑक्सीजन लेवल की पूर्ति भी हो ही रही ��ै. यह नज़ारे कई ज़िलों में देखने को मिल रहे है. सबसे बड़ी सोचने की हात यह है कि क्या होम हवन मात्र से कोरोना धव्स्त हो जाएगा. जहां एक तरफ प्रशासन के लिए चुनौती है टीकाकरण जब प्रदेश के गांवों में टीकाकरण का कड़ा विरोध प्रदर्शन हो रहा है. मुख्य रूप से अंधविश्वासस का किस्सा है चंदौली का.
चंदौली के अलीनगर वार्ड में एक काली मंदिर परिसर में भगवान कृष्ण की पूजा की गई. मुख्य रूप से यह पूजा यदुवंशी ���रते हैं जिसमें भगवान कृष्ण और बलराम की पूजा होती है. इसमें गोबर के उपलों को जलाकर मिट्टी के मटके में दूध की खीर बनाई गई और हैरानी की बात ये रही कि इस खौलती खीर से पुजारी ने नहाया. माना जाता है कि जब भक्तों की मदद के लिए भगवान श्रीकृष्ण ने गोवर्धन पर्वत उठाया था तब कई तरह की लीलाएं उस समय हुई और लोगों ने मां दुर्गा को शक्ति रूप मानकर भगवान कृष्ण और बलराम जी को खीर चढ़ाई. तब से ही यह परंपरा चली आ रही है. इसमें भक्त खीर का भोग लगाकर अपने शरीर पर लगाते हैं. पूजा करने वालों का कहना है कि दैवीय आपदा में भगवान को याद किया जाता है, अभी भी कोरोना के रूप में हमारे सामने दैवीय आपदा ही आई हुई है. ऐसे में हम रूठे हुए अपने इष्ट को मनाने का प्रयास कर रहे हैं.
वहीं दूसरा मामला बाराबंकी से आया, जहाँ ज़िले के सोहिलपुर गांव में ग्रामीणों ने ऑक्सीजन लेवल बढ़ाने का अनोखा और अजीब तरीका अपना रहे हैं. ग्रामीणों ने ऑक्सीजन लेवल बढ़ाने के लिए पुराने पीपल के पेड़ का सहारा लिया. कोरोना जैसी भयानक महामारी के दौरान गांव वाले इस पेड़ के नीचे बैठकर अपनी ऑक्सीजन लेवल बढ़ा रहे हैं. इस पेड़ के नीचे लगभग पूरा गांव इकट्ठा होकर अपना खाली समय काटता है. ग्रामीणों ने यह भी दावा किया है कि पीपल पर देवताओं का वास तो होता है और सबसे ज्यादा ऑक्सीजन प्रोडक्शन भी इस पेड़ से ही होता है.
वहीं बात करें फिरोज़ाबाद की तो यहां स्थानीय निवासी और सभासदों ने मिलकर कोरोना भगाने का नया तरीका निकाला. शिकोहाबाद नगर में कुछ मोहल्ले वाले रोज हवन करने के बाद हवनकुंड को ठेला पर लेकर गली-गली घूम रहे. हवन में गिलोय, कपूर, चंदन, पंच मेवा और लोबान समेत विशेष औषधियों से तैयार सामग्री डाली जा रही है. सभासद ने बताया कि एक तो मंत्रों से वातावरण में पॉजिटिव एनर्जी आती है दूसरा हवन से वातावरण शुद्ध होता है. एक तरफ कोरोना को जहा�� दवाइयों से हराया जाता है वहीं देवी देवताओं को याद कर कोरोना भगाने का प्रयास कर रहे हैं.
वहीं बहराइच में घाघरा किनारे बसे गांव बरसात में बाढ़ से त्रस्त हो जाते हैं, ऐसे में यहां घाघरा किनारे बसे गांव में नदी की पूजा की जाती है. कोरोना के समय में भी यह जारी है लेकिन इस बार हवन पूजन कर कोरोना को भगाने का प्रयास किया जा रहा है. यहां महिलाओं ने कोरोना महामारी को देखते हुए 7 दिन का व्रत रखा है और घाघरा नदी किनारे हवन पूजन कर रही है. पिछले 7 दिन से यह हवन पूजन 24 घण्टे चल रहा और महिलाओं ने बताया कि नदी की कटान से इतना परेशानी कभी नहीं हुई जितनी कोरोना से हुई, ऐसे में हम गंगा मैया से प्रार्थना पूजा कर रहे हैं कि इस बीमारी से निजात मिले.
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यूपी: वफादारी का अनोखा किस्सा, मालकिन की मौत से दुखी पालतू कुत्ते ने घर की चौथी मंजिल से लगा दी छलांग
https://theindianewstoday.com/%e0%a4%af%e0%a5%82%e0%a4%aa%e0%a5%80-%e0%a4%b5%e0%a4%ab%e0%a4%be%e0%a4%a6%e0%a4%be%e0%a4%b0%e0%a5%80-%e0%a4%95%e0%a4%be-%e0%a4%85%e0%a4%a8%e0%a5%8b%e0%a4%96%e0%a4%be-%e0%a4%95%e0%a4%bf%e0%a4%b8/ यूपी: वफादारी का अनोखा किस्सा, मालकिन की मौत से दुखी पालतू कुत्ते ने घर की चौथी मंजिल से लगा दी छलांग
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कुंडली का 'जेल योग' मिटाने यूपी में प्रशासन कर रहा अनोखा ट्रीटमेंट
कुंडली का ‘जेल योग’ मिटाने यूपी में प्रशासन कर रहा अनोखा ट्रीटमेंट
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न्यूज डेस्क, अमर उजाला, लखनऊ Updated Sun, 02 Sep 2018 01:22 PM IST
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केवल किसी अपराध के आरोपी ही लखनऊ की जेल में रातें नहीं बिताते हैं बल्कि ऐसे बहुत से लोग हैं जो अपनी इच्छा से ऐसा करते हैं। ऐसा लोग अपनी कुंडली के जेल योग से छुटकारा पाने के लिए करते हैं। बेशक आपको यह जानकर हैरानी हो लेकिन इस काम में जिला प्रशासन भी उनका पूरा साथ दे रहा है। इसी तरह का किस्सा सुनाया…
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नलिनी जयवंत ( 18 फ़रवरी, 1926- 20 दिसम्बर, 2010) भारतीय सिनेमा की उन सुन्दर अभिनेत्रियों में से एक थीं, जिन्होंने पचास और साठ के दशक में सिने प्रेमियों के दिलों पर राज किया। फ़िल्म 'काला पानी' का यह गीत 'नज़र लागी राजा तोरे बंगले पर', इस गीत पर नलिनी जयवंत द्वारा किये गए अभिनय को भला कौन भुला सकता है। नलिनी जयवंत ने अपने फ़िल्मी सफर की शुरुआत वर्ष 1941 में प्रदर्शित फ़िल्म 'राधिका' से की थी। अपने समय के मशहूर अभिनेता अशोक कुमार के साथ उनके प्रेम की अफवाहें भी उड़ी थीं। अभिनेता दिलीप कुमार, देव आनन्द और अशोक कुमार के साथ नलिनी जयवंत ने कई सफल फ़िल्में दी थीं।
परिचय
नलिनी जयवंत का जन्म 18 फ़रवरी, 1926 में ब्रिटिश भारत के बम्बई शहर (वर्तमान मुम्बई) में हुआ था। नलिनी के पिता और अभिनेत्री शोभना समर्थ (नूतन और तनुजा की माँ) की माँ रतन बाई रिश्ते में भाई-बहन थे, इसी नाते नलिनी, शोभना समर्थ की ममेरी बहन लगती थीं। वर्ष 1940 में नलिनी जयवंत ने निर्देशक वीरेन्द्र देसाई से विवाह किया। इस दौरान प्रसिद्ध अभिनेता अशोक कुमार के साथ नलिनी के ��्यार की अफवाहें भी उड़ीं। बाद के समय में नलिनी जयवंत ने अभिनेता प्रभु दयाल के स��थ दूसरा विवाह कर लिया। प्रभु दयाल के साथ उन्होंने कई फ़िल्मों में भी काम किया।
फ़िल्मी शुरुआत नलिनी जयवंत के हिन्दी सिनेमा में प्रवेश की कहानी भी काफ़ी रोचक है। किस्सा यूँ है कि हिन्दी सिनेमा के शुरुआती दौर के निर्माता-निदेशकों में से एक थे- चमनलाल देसाई। वीरेन्द्र देसाई इन्हीं चमनलाल देसाई के पुत्र थे। उनकी एक कंपनी थी 'नेशनल स्टूडियोज़'। एक दिन दोनों पिता-पुत्र फ़िल्म देखने सिनेमाघर पहुँचे। शो के दौरान दोनों की नज़र एक लड़की पर पड़ी, जो तमाम भीड़ में भी अपनी दमक बिखेर रही थी। यह नलिनी जयवंत थीं, जिनकी आयु उस समय बमुश्किल 13-14 बरस की ही थी। दोनों पिता-पुत्र की जोड़ी ने दिल ही दिल में इस लड़की को अपनी अगली फ़िल्म की हिरोइन चुन लिया और ख़्यालों में खो गए। फ़िल्म कब ख़त्म हो गई और कब वह लड़की अपने परिवार के साथ ग़ायब हो गई, इसकी ख़बर तक दोनों को न हुई.
https://youtu.be/2Oopf9qia3s
एक दिन वीरेन्द्र देसाई अभिनेत्री शोभना समर्थ से मिलने उनके घर पहुँचे तो देखा कि नलिनी वहाँ मौजूद थीं। नलिनी को देखते ही उनकी आँखों में चमक आ गई और बाछें खिल गईं। असल में शोभना समर्थ, जिन्हें बाद में अभिनेत्री नूतन और तनूजा की माँ और काजोल की नानी के रूप में अधिक जाना गया, नलिनी जयवंत के मामा की बेटी थीं। इस बार वीरेन्द्र देसाई ने बिना देर किए नलिनी के सामने फ़िल्म का प्रस्ताव रख दिया। नलिनी के लिए तो यह मन माँगी मुराद पूरी होने जैसा था। डर था तो सिर्फ पिता का, जो फ़िल्मों के सख्त विरोधी थे। लेकिन वीरेन्द्र देसाई ने उन्हें मना लिया। इस मानने के पीछे एक बड़ा कारण था पैसा। उस समय जयवंत परिवार की आर्थिक स्थिति कुछ ठीक नहीं थी। रहने के लिए भी उन्हें अपने एक रिश्तेदार के छोटे-से मकान में आश्रय मिला हुआ था। इस प्रकार नलिनी जयवंत की पहली फ़िल्म थी 'राधिका', जो 1941 में प्रदर्शित हुई। वीरेन्द्र देसाई के निर्देशन में बनी इस फ़िल्म के अन्य कलाकार थे- हरीश, ज्योति, कन्हैयालाल, भुड़ो आडवानी आदि। फ़िल्म में संगीत अशोक घोष का था। इस फ़िल्म के दस में से सात गीतों में नलिनी जयवंत की आवाज़ थी।
सफलता फ़िल्म 'राधिका' के बाद इसी वर्ष महबूब ख़ान के निर्देशन में एक फ़िल्म रिलीज़ हुई 'बहन'। इस फ़िल्म में नलिनी के साथ प्रमुख भूमिका में थे शेख मुख्तार। साथ में थीं नन्हीं-सी मीना कुमारी, जो 'बेबी मीना' के नाम से इस फ़िल्म में एक बाल कलाकार थीं। इस फ़िल्म में संगीतकार अनिल बिस्वास ने नलिनी जयवंत से चार गीत गवाए थे। इन चार गीतों में से वजाहत मिर्ज़ा का लिखा हुआ एक गीत था- 'नहीं खाते हैं भैया मेरे पान', जो बहुत लोकप्रिय हुआ। 1941 में ही फिर से वीरेन्द्र देसाई के ही निर्देशन में बनी फ़िल्म 'निर्दोष' आई, जिसमें मुकेश नायक की भूमिका में थे। फ़िल्म में मुकेश की आवाज़ में कुल तीन गीत थे, जिनमें एक सोलो गीत 'दिल ही बुझा हुआ हो तो फस्ले बहार क्या' था और बाकी दो नलिनी जयवंत के साथ युगल गीत थे, जबकि नलिनी के तीन सोलो गीत थे।
अपने एक संस्मरण में नलिनी जयवंत ने कहा था कि- "मैं जब बमुश्किल छह-सात साल की थी, तभी ऑल इंडिया रेडियो पर नए-नए शुरू हुए बच्चों के प्रोग्राम में भाग लेने लगी थी। इसी कार्यक्रम में हुई संगीत प्रतियोगिता में मैंने गायन के लिए प्रथम पुरस्कार जीता था।"[1] विवाह तथा तलाक नलिनी जयवंत अपनी पहली ही फ़िल्म से सितारा घोषित कर दी गई थीं। उस समय नलिनी फ्रॉक और दो चोटी के साथ स्कूल में पढ़ रही थीं। उम्र थी पन्द्रह साल। फ़िल्म 'आंख मिचौली' (1942) की सफलता ने उन्हें आसमान पर बिठा दिया। नलिनी को फ़िल्मों में सफलता तो मिल गई, लेकिन उसी के साथ नलिनी पर फिदा वीरेन्द्र देसाई को उनसे प्यार भी हो गया। शादी भी हो गई। इस मामले को उस दौर के लेखक ने इस तरह बयान किया है- "जब ये हंसती हैं तो मालूम होता है कि जंगल की ताज़गी में जान पड़ गई और नौ-शगुफ्ता कलियाँ फूल बनकर रुखसारों की सूरत में तब्दील हो गई हैं। नलिनी जयवंत ने 'आंख मिचौली' खेलते-खेलते मिस्टर वीरेन्द्र देसाई से 'दिल मिचौली' खेलना शुरू कर दिया और यह खेल अब बाकायदा शादी की कंपनी से फ़िल्माया जाकर ज़िंदगी के पर्दे पर दिखलाया जा रहा है।"[1] लेकिन नलिनी जयवंत का यह वैवाहिक जीवन अधिक दिन तक नहीं चल सका और वीरेन्द्र देसाई से उनका तलाक हो गया। नलिनी ने दूसरा विवाह अपने एक साथी कलाकार प्रभू दयाल से किया।
धमाकेदार वापसी
1950 के दशक में नलिनी जयवंत ने एक बार फिर धमाके के साथ अशोक कुमार के साथ फ़िल्म 'समाधि' और 'संग्राम' से नई ऊँचाई हासिल की। हालांकि 1948 की फ़िल्म 'अनोखा प्यार' में दिलीप कुमार और नर्गिस के मुकाबले जिस अंदाज़ में उन्होंने काम किया, उसकी ज़बर्दस्त तारीफ हो चुकी थी, लेकिन इन दो फ़िल्मों ने उनके स्ट��रडम में चार चाँद लगा दिए। फ़िल्म 'समाधि' में "गोरे-गोरे ओ बांके छोरे, कभी मेरी गली आया करो" गीत पर कुलदीप कौर के साथ उनका नाच अब तक याद किया जाता है।
सबसे बड़ी अदाकारा का दर्जा अशोक कुमार के साथ नलिनी जयवंत की जोड़ी कामयाब तो हुई, वहीं दोनों के रोमांस की चर्चा भी शुरू हो गई। अशोक कुमार ने अपने परिवार से अलग चैम्बूर के यूनियन पार्क इलाके में नलिनी जयवंत के सामने एक बंगला भी ले लिया, जहाँ वे ज़िंदगी के आखि़री दिनों में भी बने रहे और वहीं प्राण त्यागे। इस जोड़ी ने 1952 में 'काफिला', 'नौबहार' और 'सलोनी' फिर 1957 में 'मिस्टर एक्स' और 'शेरू' जैसी फ़िल्में कीं। दिलीप कुमार के साथ, जिन्होंने नलिनी जयवंत को 'सबसे बड़ी अदाकारा' का दर्जा दिया, उन्होंने 'अनोखा प्यार' के अलावा 'शिकस्त' (1953) और देव आनंद के साथ 'राही' (1952), 'मुनीमजी' (1955) और 'काला पानी' (1958) जैसी कामयाब फ़िल्में कीं।
पुरस्कार फ़िल्म 'काला पानी' में किशोरी बाई वाली भूमिका के लिए तो नलिनी जयवंत को सर्वश्रेष्ठ सह-अभिनेत्री का पुरस्कार भी मिला। निदेशक रमेश सहगल की दो फ़िल्मों 'शिकस्त' और 'रेलवे प्लेटफॉर्म' (1955) की भूमिकाओं के लिए भी नलिनी जयवंत को याद किया जाता है। 'काला पानी' के बाद उन्होंने फ़िल्मों में काम लगभग बंद कर दिया। दो फ़िल्में 'बॉम्बे रेसकोर्स' (1965) और 'नास्तिक' (1983) इसका अपवाद हैं। ये दोनों फ़िल्में भी रिश्तों के दबाव में ही कीं। 'नास्तिक' में उन्होंने अमिताभ बच्चन की माँ की भूमिका निभाई थी।[1]
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SCOOP: मैं हेमा मालिनी से शादी नहीं करना चाहता…पर कोई OPTION नहीं बचा हेमा मालिनी - जीतेंद्र और धर्मेंद्र का बड़ा ही अनोखा सा लव ट्राएंगल रहा है। हेमा मालिनी और जीतेंद्र की शादी होने वाली थी लेकिन हेमा मालिनी ने मंडप में जीतेंद्र को छोड़ दिया था। ना ना, जीतेंद्र के लिए ज़्यादा दुखी होने की ज़रूरत नहीं है क्योंकि जितने धोखेबाज़ किस्म के इंसान वो थे, उनके साथ ऐसा होना ही चाहिए था। वहीं इस पूरी कहानी में धर्मेंद्र, शादीशुदा और दो बच्चों के पिता होने के बाद भी अच्छे इंसान नज़र आएंगे। ये दिलचस्प किस्सा हिंदुस्तान टाइम्स ने छापा है जो कि हेमा मालिनी की बायो��्राफी का हिस्सा है। और सच में हेमा मालिनी जीतेंद्र की ये शादी का किस्सा किसी फिल्मी कहानी से कम नहीं है। मां बाप से छिपाया था रिश्ता सच ये था कि हेमा मालिनी धर्मेंद्र के प्यार में पागल थीं। जब उनकी मम्मी को पता चला तो वो गुस्सा काफी हुईं लेकिन सिचुएशन को कंट्रोल करने की ठान ली। ज़िंदगी में पहली बार, हेमा ने अपने मां बाप से अपना कोई रिश्ता छुपाया था और धर्मेंद्र से छिप कर मिलने के लिए वो कुछ भी करती थीं। पूरा दिन गायब हो गईं हेमा मालिनी एक बार, विद्रोह में हेमा मालिनी, दिन भर घर से गायब रहीं और रात में जब लौटीं तो उनके परिवार की जान में जान आई। लेकिन उनकी मां ने उन पर पहरा बढ़ा दिया। इसलिए हेमा मालिनी धर्मेंद्र से केवल फिल्म के सेट पर मिल सकती थीं जो कि उनके लिए बढ़िया तो क्योंकि वो दोनों साथ में कई फिल्में कर रहे थे। ढूंढा गया जीतेंद्र का रिश्ता हेमा की मां को लगा कि जल्द से जल्द हेमा मालिनी की शादी करवाना ही सही रहेगा। वो उनके लिए अच्छा लड़का ��ूंढने लगी जो उन्हें जीतेंद्र में मिल गया। जीतेंद्र और हेमा मालिनी उस वक्त दो फिल्में साथ कर रहे थे। दोनों के बीच अच्छी ट्यूनिंग थी। हेमा पर फिदा थे जीतेंद्र जीतेंद्र खुद भी हेमा मालिनी पर फिदा थे और काफी समय तक उनके पीछे पड़े रहे। लेकिन जब हेमा मालिनी नहीं मानी तो दोनों ने दोस्ती पर बात सेटल कर ली और फिर एक दूसरे के इतने अच्छे दोस्त बन गए कि एक दूसरे के राज़दार हो गए। धर्मेंद्र को था जीतेंद्र पर शक धर्मेंद्र को हेमा मालिनी और जीतेंद्र की दोस्ती पसंद नहीं थी। उन्हें हमेशा जीतेंद्र पर शक रहता था। एक बार तो उनका शक इतना बढ़ा कि वो जीतेंद्र और हेमा की फिल्म के सेट पर पहुंचे और शूट के बीच में हेमा को खींचते हुए ले गए और जीतेंद्र देखते रह गए। शुरू हो गई जीतेंद्र से शादी की तैयारी इधर हेमा मालिनी की मां ने जीतेंद्र से उनकी शादी की पूरी प्लानिंग कर ली। हेमा को जीतेंद्र के माता पिता से भी मिलना पड़ा कर दोनों के घरवाले मान गए। इस शादी के लिए सब काफी उत्साहित थे। जीतेंद्र के पास ऑप्शन नहीं था जीतेंद्र के खास दोस्त का कहना है कि जीतेंद्र मानते थे कि मैं हेमा से प्यार नहीं करता, वो भी मुझसे प्यार नहीं करती। लेकिन हम दोनों के घरवाले चाहते हैं कि ये शादी हो जाए। और मुझे कोई एतराज़ नहीं है क्योंकि हेमा एक अच्छी लड़की है। समझदारी की शादी ये शादी, एक समझदारी भरा सौदा थी। और इसे जल्द ही होना था क्योंकि कोई भी अपना मूड बदल सकता था। और इस शादी को बिल्कुल चुपचाप कराया जाना था कि किसी को कानों कान खबर ना हो। कोई भी किसी भी तरह की मुसीबत नहीं चाहता था। चुपचाप रातों रात भाग लिए थे हेमा - जीतेंद्र हेमा मालिनी और जीतेंद्र अपने परिवारों सहित रातोंरात मद्रास चले गए। वहां ये शादी संपन्न होनी थी। लेकिन किसी अखबार को ये खबर लग गई और उसने शा�� के एडिशन में ये छाप डाला। जीतेंद्र की थी एक गर्लफ्रेंड अखबार की खबर से धर्मेंद्र चौंक गए। उन्होंने सारा मामला अपने हाथ में लिया और शोभा सिप्पी के घर पहुंचे जो जीतेंद्र की एयरहोस्टेस गर्लफ्रेंड थीं। दोनों ही मामला संभालने मद्रास पहुंचे। एकदम फिल्मी सीन अब मद्रास में सीन किसी ब्लॉकबस्टर पिक्चर से कम नहीं था। दूल्हा दुल्हन, और दूल्हे की गर्लफ्रेंड, दुल्हन का बॉयफ्रेंड शादी रूकवाने पहुंचे हैं। हेमा मालिनी के पापा ने धर्मेंद्र को धक्के मारकर बाहर निकाला। हेमा मालिनी से की अकेले में बात धर्मेंद्र अपनी बात पर टिके रहे और बिना बद्तमीज़ी किए अपना विद्रोह दिखाते रहे। आखिरकार उन्हें हेमा मालिनी से अकेले बात करने की अनुमति दी गई। जबकि जीतेंद्र का परिवार, हेमा का परिवार और शादी कराने आया रजिस्ट्रार इंतज़ार करते रहे। धर्मेंद्र गिड़गिड़ाते रहे, जीतेंद्र पलट गए धर्मेंद्र अंदर हेमा मालिनी से गिड़गिड़ाते रहे कि इतनी बड़ी गलती मत करो। वहीं बाहर, जीतेंद्र की गर्लफ्रेंड शोभा ने उनसे पूछा कि क्या चल रहा है और जीतेंद्र अपनी गर्लफ्रेंड को धोखा देते हुए उनके सामने पलट गए और कहा कि मैं हेमा से ही शादी करूंगा। जीतेंद्र को मिला ज़ोर का तमाचा जब हेमा कमरे से बाहर आईं तो उन्होंने सबसे शादी टालने की रिक्वेस्ट की। लेकिन जीतेंद्र का परिवार अड़ गया कि या तो शादी अभी होगी या कभी नहीं होगी। हेमा ने तुरंत मना कर दिया। और जीतेंद्र दनदनाते हुए वहां से चल गए। English summary…
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अजब गजब : एक लड़की की स्किन बदलती है सांप की तरह, जानिए खबर
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शहर मेरे का तू ऐ शायर अजब अनोखा किस्सा लिख लोगों की इक भीड़ है फिर भी क्यों है इंसां तन्हा लिख शहर उगे खेतों में जाकर और गमलों में गांव उगे कुदरत की सीधी दुनिया में क्यों है उलटा पुलटा लिख चेहरों पर जंगल उग आये और जंगल में चेहरे गुम सदियों से ही ढूंढ रहे हैं चेहरे अपना चेहरा लिख मज़हब यां वो शै है जिससे मरघट ज़िंदा रहते हैं मंदिर, मस्जि़द और गुरुद्वारे सब धोखा हैं धोखा लिख दुनिया चाहे पत्थर मारे या सूली पर लटका दे तुझमें हिम्मत है तो अंधे राजा को तू अंधा लिख #ख़ाकसार (at Shri Madhopur, India)
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